कुल पेज दृश्य

बुधवार, 2 नवंबर 2011

धारावाहिक  उपन्यास :
 
प्रस्तुत है श्री महेश द्विवेदी का उपन्यास भीगे पंख धारावाहिक के रूप में... पाठकीय प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है...

 भीगे पंख
   
श्री महेश द्विवेदी

                        मोहित-रज़िया-सतिया                      


        यह कहानी विभिन्न मनः-स्थितियों मंे जी रहे तीन ऐसे पात्रों की कहानी है जो असामान्य जीवन जीने को अभिशप्त हैं। 
        थामस ए. हैरिस नामक अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक ने अपनी विश्वविख्यात पुस्तक ‘आई. ऐम. ओ. के.ः यू. आर. ओ. के.’ में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि कोई भी शिशु अपने जन्म के समय एवं शैशवास्था में उपलब्ध परिस्थितियों के अनुसार जन्म के पश्चात अधिक से अधिक पांच वर्ष में अपने लिये निम्नलिखित चार जीवन-स्थितियों /मनः-स्थितियों/ मे से कोई एक जीवन-स्थिति निर्धारित कर लेता है, जो जीवनपर्यंत उसक्रे अंतर्मन एवं आचरण को प्रभावित करती रहती हैं।


1. ‘आई ऐम नौट ओ. के.ः यू आर ओ. के.’                                 
             जब एक शिशु माता के गर्भ के वातानुकूलित एवं सुरक्षित वातावरण से निकलकर बाहर आता है तो प्रायः उसे आंख में चुभने वाले प्रकाश, त्वचा मे कटन पैदा करने वाली शीत, जलाने वाली गी्रष्म, अथवा कर्णकटु ध्वनियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उसे गम्भीर असुरक्षा का अनुभव होता है। तब मॉ की गोद उसे सुरक्षा प्रदान करती है। स्वनियंत्रण से परे वाह्य वातावरण की कटुता एवं तत्पष्चात प्राप्त मॉ की गोद का सुरक्षात्मक अनुभव उसमें ‘आई. ऐम. नौट ओ. के.ः यू आर ओ. के.’ की मनःस्थिति उत्पन्न करता है। यदि जन्म के पश्चात प्रारम्भिक महीनों में शिशु की अस्वस्थता के कारण, अथवा घर की दुरूह परिस्थितियों के कारण अथवा घर के अन्य सदस्यों के व्यवहार के कारण ऐसी स्थिति बार बार आती रहे कि शिशु को असुरक्षात्मक अनुभव होते रहें और उसे मॉ, नर्स अथवा पिता आदि की गोद की सुरक्षा की उपलब्धता के बिना जीवन कठिन लगने लगे, तो ‘आई. एम नौट ओ. के., यू आर ओ. के.’ की मनःस्थिति स्थायी हो जाती है। प्रायः ऐसा व्यक्ति हीनभावना से ग्रसित रहकर साहसपूर्ण कदम उठाने में दूसरों का आसरा देखने लगता है और अपने प्रत्येक निर्णय को इस कसौटी पर परख कर लेता है कि इसमंे दूसरों का अनुमोदन प्राप्त होगा अथवा नहीं।


2. ‘आई ऐम ओ. के.ः यू आर नौट ओ. के.’
         बचपन में सुरक्षा एवं प्यार की आवश्यकता होती है, परंतु यदि उस समय किसी व्यक्ति को अवहेलना क्रे साथ साथ दुत्कार एवं गम्भीर शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना भी मिलती है तो उसका मन विद्रोहरत होकर ‘आई. एम. ओ. के.ः यू आर. नौट. ओ. के.’ की जीवनस्थिति स्थापित कर लेता है। ऐसा व्यक्ति प्रायः स्वार्थ को सर्वोपरि समझने वाला  बन जाता है एवं स्वार्थ साधन हेतु समाज के नियम एवं कानून का उल्लंघन करने में वह किसी प्रकार की ग्लानि का अनुभव कम ही करता है।


3. ‘आई ऐम नौट ओ. के.ः यू आर नौट ओ. के.’
         यदि शिशु के बढ़ते समय विपरीत परिस्थितियों के कारण उसके जन्म के समय उत्पन्न ‘आई ऐम नौट ओ. के.’ की भावनात्मक स्थिति को सुधारने के अवसर नहीं मिलते है और साथ ही मॉ-बाप व अन्य बडों़ से भी प्यार एवं सुरक्षा की अपेक्षा तिरस्कार एवं अवहेलना मिलते हैं तो वह ‘आई. एम. नौट ओ. के.ः यू. आर. नौट. ओ. के.’ की मनःस्थिति को अपने जीवन मंे स्थापित कर लेता है। ऐसा व्यक्ति प्रायः निराशा में डूबकर उस शैशवकाल की कल्पना में रमा रहना चाहता है जब जन्म के प्रारम्भिक दिनों में उसे प्यार एवं सुरक्षा मिले थे। प्रायः ऐसे लोग अवसादग्रस्त रहकर संसार से विरक्ति की स्थिति में जीने लगते हैं और यदा कदा आत्महत्या द्वारा अथवा सब कुछ नश्टकर मुक्ति की कामना भी करते है।


4.आई एम ओ. के.ः यू आर ओ. के.
      यह एक संतुलित जीवन स्थिति है। यदि शिशु को अपने प्रारम्भिक जीवन में समुचित सुरक्षा, प्यार एवं दिशा निर्देशन मिलता है तो वह ‘आई. एम. ओ. के.ः यू. आर. ओ. के.’ की जीवनस्थिति को स्थायी बना लेता है। ऐसा व्यक्ति प्रायः षांतिमय एवं सामंजस्यपूर्ण जीवन जीता है।


               मनुश्य विषेश के जीन्स की संरचना भी एक सीमा तक षिषु की जीवन-स्थिति के निर्धारण को प्रभावित करती है परंतु शैशवकाल के अनुभव असामान्य प्रकृति को सामान्य अथवा सामान्य प्रकृति को असामान्य बनाने में अधिक महत्व रखते हैं। सभी नवजात शिशु कुछ न कुछ अवधि के लिये प्रथम जीवनस्थिति से अवश्य गुज़रते हैं। भविष्य की परिस्थितियों के अनुसार किसी किसी में वह स्थायी हो जाती है और कुछ में परिस्थितियों के अनुसार द्वितीय अथवा तृतीय  जीवनस्थिति स्थायी हो जाती है। प्रथम तीनों स्थितियां व्यक्ति को एक असामान्य जीवन जीने को उद्वेलित करतीं रहतीं हैं। चतुर्थ जीवनस्थिति शिशु के प्रति प्रेम-प्रदर्शन एवं लालन-पालन में बरती गई समझदारी से स्थापित होती है; इस जीवनस्थिति का व्यक्ति संतुलित जीवन जीता है।


       मनोवैज्ञानिकों ने मनुष्य के व्यवहार को ‘पेरेंट, ऐडल्ट, ऐंड चाइल्ड’ की कैटेगरीज़ में भी बांटा है। उनके अनुसार प्रथम जीवनस्थिति में जीने वाले  व्यक्ति की किसी समस्या पर प्रतिक्रिया प्रायः चाइल्ड की प्रतिक्रिया के समान होती है- हीनभावनामय एवं परोन्मुखी; द्वितीय जीवनस्थिति में जीने वाले व्यक्ति की प्रतिक्रिया प्रायः पेरेंट की प्रतिक्रिया केे समान होती है- अपने उचित अथवा अनुचित निर्णय को बलात ठोकने वाली, तृतीय जीवनस्थिति में जीने वाले व्यक्ति की प्रतिक्रिया अवसादमय एवं निराशापूर्ण होती है एवं चतुर्थ जीवनस्थिति में जीने वाले व्यक्ति की प्रतिक्रिया वैसी समझदारीपूर्ण होती है जैसी एक ऐडल्ट की होनी चाहिये।


       इस कहानी के तीनों पात्र मोहित, सतिया और रज़िया असामान्य परंतु एक दूसरे से भिन्न जीवनस्थितियेंा में जीने वाले व्यक्ति हैं जो भवसागर मे गोते लगाते हुए एक दूसरे के निकट आ गये हैं- मोहित ‘आई ऐम नौट ओ. के.ः यू आर ओ. के.’ की चाइल्ड की जीवनस्थिति मे है, सतिया ‘आई ऐम ओ. के.ः यू आर नौट ओ. के.’ की पेरेंट की जीवनस्थिति मे है और रज़िया ‘आई ऐम नौट ओ. के.ः यू आर नौट ओ. के.’ की अवसादमय स्थिति में जी रही है। 
 
                                                                    

कोई टिप्पणी नहीं: