एक कविता;
होता था घर एक.'
संजीव 'सलिल'
*
*
शायद बच्चे पढेंगे
'होता था घर एक.'
शब्द चित्र अंकित किया
मित्र कार्य यह नेक.
अब नगरों में फ्लैट हैं,
बंगले औ' डुप्लेक्स.
फार्म हाउस का समय है
मिलते मल्टीप्लेक्स.
बेघर खुद को कर रहे
तोड़-तोड़ घर आज.
इसीलिये गायब खुशी
हर कोई नाराज़.
घर न इमारत-भवन है
घर होता सम्बन्ध.
नाते निभाते हैं जहाँ
बिना किसी अनुबंध.
भारत ही घर की बने
अद्भुत 'सलिल' मिसाल.
नाते नव बनते रहें
देखें आप कमाल.
बिना मिले भी मन मिले,
होती जब तकरार.
दूजे पल ही बिखरता
निर्मल-निश्छल प्यार.
मतभेदों को हम नहीं
बना रहे मन-भेद.
लगे किसी को ठेस तो
सबको होता खेद.
नेह नर्मदा निरंतर
रहे प्रवाहित मित्र.
भारत ही घर का बने
'सलिल' सनातन चित्र..
*
+++++++++++ + ++++
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 16 अगस्त 2010
एक कविता; होता था घर एक.' संजीव 'सलिल'
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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8 टिप्पणियां:
आ. सलिल जी ,
बहुत सुन्दर भाव भरी कविता है यह - चरितार्थ होती रहे-सदा-सर्वदा !
आपको साधुवाद .
- प्रतिभा.
Pankaj
Sir, Bahut hi sundar chitran kiya hai aapane...
Shahid :
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
वाह! वाह! संजीव जी बहुत सुन्दर कविता लिखी हैं ई-कविता ग्रुप तो घर जैसा ही लगता है...
सादर
ye jindagi ek khoobsurat kavita hai aur mai ise jee bhar ke jeenaa chahati hoon.....
sunita shanoo
man pakheroo fir udd chala
आ० सलिल जी,
सुन्दर भाव, अनुकरणीय ऐसी कविता का स्वागत
कमल
आदरणीय सलिल जी,
आमीन! सुन्दर लिखा है आपने!
घर न इमारत-भवन है
घर होता सम्बन्ध.
नाते निभाते हैं जहाँ -- निभाते---> निभते ?
बिना किसी अनुबंध.
सादर शार्दुला
गिरीश बिल्लोरे …
waah
सर जी तुसी आ गये जी
१९ अगस्त २०१० ८:३२ अपराह्न
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ब्लॉगर रानीविशाल ने कहा…
घर न इमारत-भवन है
घर होता सम्बन्ध.
नाते निभाते हैं जहाँ
बिना किसी अनुबंध.
100 pratishat sahi baat....bahut hi bhadiya rachana!
Dhanywaad.
ब्लॉगर रानीविशाल …
घर न इमारत-भवन है
घर होता सम्बन्ध.
नाते निभाते हैं जहाँ
बिना किसी अनुबंध.
100 pratishat sahi baat....bahut hi bhadiya rachana!
Dhanywaad.
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