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बुधवार, 26 अगस्त 2009

नव गीत: आचार्य संजीव 'सलिल'

नव गीत:

आचार्य संजीव 'सलिल'

जिनको कीमत नहीं
समय की
वे न सफलता
कभी वरेंगे...

*

समय न थमता,
समय न झुकता.
समय न अड़ता,
समय न रुकता.
जो न समय की
कीमत जाने,
समय नहीं
उसको पहचाने.
समय दिखाए
आँख तनिक तो-
ताज- तख्त भी
नहीं बचेंगे.....

*

समय सत्य है,
समय नित्य है.
समय तथ्य है,
समय कृत्य है.
साथ समय के
दिनकर उगता.
साथ समय के
शशि भी ढलता.
हो विपरीत समय
जब उनका-
राहु-केतु बन
ग्रहण डसेंगे.....

*

समय गिराता,
समय उठाता.
समय चिढाता,
समय मनाता.
दुर्योधन-धृतराष्ट्र
समय है.
जसुदा राधा कृष्ण
समय है.
शूल-फूल भी,
गगन-धूल भी
'सलिल' समय को
नमन करेंगे...

***********

8 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey : ने कहा…

समय बहुत बलवान । सुन्दर रचना

Divya Narmada ने कहा…

मिथिला सँग मिथलेश ने, झेला समय-प्रभाव.
सुख-दुःख सम होकर सहा, रखकर संत-स्वभाव..

Udan Tashtari ने कहा…

२७ अगस्त २००९ ६:४५ AM को, Udan Tashtari sameer.lal@gmail.com ने "नव गीत: आचार्य संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

समय की ताकत को पहचानना ही होगा..सुन्दर संदेश देता नव गीत..बधाई एवं आभार!

Divya Narmada ने कहा…

उड़न तश्तरी समय का जाने सच्चा मोल.
हर उड़ान होती 'सलिल', सफल चले पग तोल..
धन्यवाद.

Dr. Smt. ajit gupta ने कहा…

Dr. Smt. ajit gupta ने आपकी पोस्ट " नव गीत: आचार्य संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

जिनको कीमत नहीं समय की

वे न सफलता कभी वरेंगे। बहुत सुंदर गीत बन पडा है। बधाई।

Divya Narmada ने कहा…

समय न सीमित, समय अमित है.

समय-साथ जो चले, अजित है.

समय पृष्ठ पर कर हस्ताक्षर-

श्रम-सीकर से, 'सलिल' अमित है.

शोभना चौरे ने कहा…

bahut sundar sanesh deta yh nav geet

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

चौरे-चौरे पर समय, अलख जगाता नित्य.

रुचे शोभना मोहना, आत्मा हो आदित्य..