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रविवार, 28 जून 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
*
हर्ष; खुशी; उल्लास; सुख, या आनंद-प्रमोद।
हैं आकाश-कुसुम 'सलिल', अब आल्हाद विनोद।।
*
कहीं न हैपीनेस है, हुआ लापता जॉय।
हाथों में हालात के, ह्युमन बीइंग टॉय।।
*
एक दूसरे से मिलें, जब मन जाए झूम।
तब जीवन का अर्थ हो, सही हमें मालूम।।
*
मेरे अधरों पर खिले, तुझे देख मुस्कान।
तेरे लब यदि हँस पड़ें, पड़े जान में जान।।
*
तू-तू मैं-मैं भुलकर, मैं तू हम हों मीत।
तो हर मुश्किल जीत लें, यह जीवन की रीत।।
*
श्वास-आस संबंध बो, हरिया जीवन-खेत।
राग-द्वेष कंटक हटा, मतभेदों की रेत।।
*
२८.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

दोहा दुनिया : चंपा

दोहा दुनिया : चंपा 
चंपा तुझ में तीन गुण ,रूप ,रंग और बास
अवगुण केवल एक है ,भ्रमर ना आवै पास
चंपा बदनी राधिका भ्रमर कृष्ण का दास
निज जननी अनुहार के भ्रमर न जाये पास
इन दोनों दोहों के दोहाकारों के नाम भूल गया हूँ. बताइये

लघु कथा: बाँस

लघु कथा:
बाँस
.
गेंड़ी पर नाचते नर्तक की गति और कौशल से मुग्ध जनसमूह ने करतल ध्वनि की. नर्तक ने मस्तक झुकाया और तेजी से एक गली में खो गया.
आश्चर्य हुआ प्रशंसा पाने के लिये लोग क्या-क्या नहीं करते? चंद करतल ध्वनियों के लिये रैली, भाषण, सभा, समारोह, यहाँ ताक की खुद प्रायोजित भी कराते हैं. यह अनाम नर्तक इसकी उपेक्षा कर चला गया जबकि विरागी-संत भी तालियों के मोह से मुक्त नहीं हो पाते. मंदिर से संसद तक और कोठों से अमरोहों तक तालियों और गालियों का ही राज्य है.
संयोगवश अगले ही दिन वह नर्तक फिर मिला गया. आज वह पीठ पर एक शिशु को बाँधे हाथ में लंबा बाँस लिये रस्से पर चल रहा था और बज रही थीं तालियाँ लेकिन वह फिर गायब हो गया.
कुछ दिन बाद नुक्कड़ पर फिर दिख गया वह... इस बार कंधे पर रखे बाँस के दोनों ओर जलावन के गट्ठर टँगे थे जिन्हें वह बेचने जा रहा था..
मैंने पुकारा तो वह रुक गया. मैंने उसके नृत्य और रस्से पर चलने की कला की प्रशंसा कर पूछा कि इतना अच्छा कलाकार होने के बाद भी वह अपनी प्रशंसा से दूर क्यों चला जाता है? कला साधना के स्थान पर अन्य कार्यों को समय क्यों देता है?
कुछ पल वह मुझे देखता रहा फिर लम्बी साँस भरकर बोला : 'क्या कहूँ? कला साधना और प्रशंसा तो मुझे भी मन भाती है पर पेट की आग न तो कला से, न प्रशंसा से बुझती है. तालियों की आवाज़ में रमा रहूँ तो बच्चे भूखे रह जायेंगे.' मैंने जरूरत न होते हुए भी जलावन ले ली... उसे परछी में बैठाकर पानी पिलाया और रुपये दिए तो वह बोल पड़ा: 'सब किस्मत का खेल है. अच्छा-खासा व्यापार करता था. पिता को किसी से टक्कर मार दी. उनके इलाज में हुए खर्च में लिये कर्ज को चुकाने में पूँजी ख़त्म हो गयी. बचपन का साथी बाँस और उस पर सीखे खेल ही पेट पालने का जरिया बन गये.' इससे पहले कि मैं उसे हिम्मत देता वह फिर बोला:'फ़िक्र न करें, वे दिन न रहे तो ये भी न रहेंगे. अभी तो मुझे कहीं झुककर, कहीं तनकर बाँस की तरह परिस्थितियों से जूझना ही नहीं उन्हें जीतना भी है.' और वह तेजी से आगे बढ़ गया. मैं देखता रह गया उसके हाथ में झूलता बाँस
*

गीत ब्रम्ह कमल


* ब्रम्ह कमल
* कमल, कुमुद, व कमलिनी का प्रयोग कहीं-कहीं भिन्न पुष्प प्रजातियों के रूप में है, कहीं-कहीं एक ही प्रजाति के पुष्प के पर्याय के रूप में. कमल के रक्तकमल, नीलकमल तथा श्वेतकमल तीन प्रकार रंग के आधार पर वर्णित हैं. कमल-कमलिनी का विभाजन बड़े-छोटे आकार के आधार पर प्रतीत होता है. कुमुद को कहीं कमल, कहीं कमलिनी कहा गया है. कुमद के साथ कुमुदिनी का भी प्रयोग हुआ है. कमल सूर्य के साथ उदित होता है, उसे सूर्यमुखी, सूर्यकान्ति, रविप्रिया आदि कहा गया है. रात में खिलनेवाली कमलिनी को शशिमुखी, चन्द्रकान्ति, रजनीकांत, कहा गया है. रक्तकमल के लाल रंग की श्री तथा हरि के कर-पद पल्लवों से समानता के कारण हरिपद, श्रीकर जैसे पर्याय बने हैं, सूर्य, चन्द्र, विष्णु, लक्ष्मी, जल, नदी, समुद्र, सरोवर आदि से जन्म के आधार पर बने पर्यायों के साथ जोड़ने पर कमल के अनेक और पर्यायी शब्द बनते हैं. मुझसे अनुरोध था कि कमल के सभी पर्यायों को गूँथकर रचना करूँ. माँ शारदा के श्री चरणों में यह कमल-माल अर्पित कर आभारी हूँ. सभी पर्यायों को गूंथने पर रचना लंबी होगी. पाठकों की प्रतिक्रिया ही बताएगी कि गीतकार निकष पर खरा उतर सका या नहीं?
गीत
शतदल पंकज कमल
*
शतदल, पंकज, कमल, सूर्यमुख
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.
शूल चुभा सुरभित गुलाब का फूल-
कली-मन म्लान कर रहा...
*
जंगल काट, पहाड़ खोदकर
ताल पाटता महल न जाने.
भू करवट बदले तो पल में-
मिट जायेंगे सब अफसाने..
सरवर सलिल समुद्र नदी में
खिल इन्दीवर कुई बताता
हरिपद-श्रीकर, श्रीपद-हरिकर
कृपा करें पर भेद न माने..
कुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का गान कर रहा.
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.....
*
*
पुण्डरीक सिंधुज वारिज
तोयज उदधिज नव आस जगाता.
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता..
पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख-
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता.
उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का भान कर रहा.
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.....
*
बिसिनी नलिन सरोज कोकनद
जाति-धर्म के भेद न मानें.
मन मिल जाए ब्याह रचायें-
एक गोत्र का खेद न जानें..
दलदल में पल दल न बनाते,
ना पंचायत, ना चुनाव ही.
शशिमुख-रविमुख रह अमिताम्बुज
बैर नहीं आपस ठानें..
अमलतास हो या पलाश
पुहकर पुष्कर का गान कर रहा.
सौगन्धिक पुन्नाग अलोही
श्रम-सीकर से
स्नान कर
*
१०-७-२०१०
-----------------
अभिनव प्रयोग-
१९. कमल-कमलिनी विवाह
*
* रक्त कमल
अंबुज शतदल कमल
अब्ज हर्षाया रे!
कुई कमलिनी का कर
गहने आया रे!...
**
हिमकमल
अंभज शीतल उत्पल देख रहा सपने
बिसिनी उत्पलिनी अरविन्दिनी सँग हँसने
कुंद कुमुद क्षीरज अंभज नीरज के सँग-
नीलाम्बुज नीलोत्पल नीलोफर भी दंग.
कँवल जलज अंबोज नलिन पुहुकर पुष्कर
अर्कबन्धु जलरुह राजिव वारिज सुंदर
मृणालिनी अंबजा अनीकिनी वधु मनहर
यह उसके, वह भी
इसके मन भाया रे!...
*
* नील कमल
बाबुल ताल, तलैया मैया हँस-रोयें
शशिप्रभ कुमुद्वती कैरविणी को खोयें.
निशापुष्प कौमुदी-करों मेंहदी सोहे.
शारंग पंकज पुण्डरीक मुकुलित मोहें.
बन्ना-बन्नी, गारी गायें विष्णुप्रिया.
पद्म पुंग पुन्नाग शीतलक लिये हिया.
रविप्रिय श्रीकर कैरव को बेचैन किया
अंभोजिनी अंबुजा
हृदय अकुलाया रे!...
**
श्वेत कमल
चंद्रमुखी-रविमुखी हाथ में हाथ लिये
कर्णपूर सौगन्धिक श्रीपद साथ लिये.
इन्दीवर सरसिज सरोज फेरे लेते.
मौन अलोही अलिप्रिय सात वचन देते.
असिताम्बुज असितोत्पल-शोभा कौन कहे?
सोमभगिनी शशिकांति-कंत सँग मौन रहे.
'सलिल'ज हँसते नयन मगर जलधार बहे
श्रीपद ने हरिकर को
पूर्ण बनाया रे!...
*
२०-७-२०१२
* कमल हर कीचड़ में नहीं खिलता. गंदे नालों में कमल नहीं दिखेगा भले ही कीचड़ हो. कमल का उद्गम जल से है इसलिए वह नीरज, जलज, सलिलज, वारिज, अम्बुज, तोयज, पानिज, आबज, अब्ज है. जल का आगर नदी, समुद्र, तालाब हैं... अतः कमल सिंधुज, उदधिज, पयोधिज, नदिज, सागरज, निर्झरज, सरोवरज, तालज भी है. जल के तल में मिट्टी है, वहीं जल और मिट्टी में मेल से कीचड़ या पंक में कमल का बीज जड़ जमता है इसलिए कमल को पंकज कहा जाता है. पंक की मूल वृत्ति मलिनता है किन्तु कमल के सत्संग में वह विमलता का कारक हो जाता है. क्षीरसागर में उत्पन्न होने से वह क्षीरज है. इसका क्षीर (मिष्ठान्न खीर) से कोई लेना-देना नहीं है. श्री (लक्ष्मी) तथा विष्णु की हथेली तथा तलवों की लालिमा से रंग मिलने के कारण रक्त कमल हरि कर, हरि पद, श्री कर, श्री पद भी कहा जाता किन्तु अन्य कमलों को यह विशेषण नहीं दिया जा सकता. पद्मजा लक्ष्मी के हाथ, पैर, आँखें तथा सकल काया कमल सदृश कही गयी है. पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना के नेत्र गुलाबी भी हो सकते हैं, नीले भी. सीता तथा द्रौपदी के नेत्र क्रमशः गुलाबी व् नीले कहे गए हैं और दोनों को पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना विशेषण दिए गये हैं. करकमल और चरणकमल विशेषण करपल्लव तथा पदपल्लव की लालिमा व् कोमलता को लक्ष्य कर कहा जाना चाहिए किन्तु आजकल चाटुकार कठोर-काले हाथोंवाले लोगों के लिये प्रयोग कर इन विशेषणों की हत्या कर देते हैं. श्री राम, श्री कृष्ण के श्यामल होने पर भी उनके नेत्र नीलकमल तथा कर-पद रक्तता के कारण करकमल-पदकमल कहे गये. रीतिकालिक कवियों को नायिका के अन्गोंपांगों के सौष्ठव के प्रतीक रूप में कमल से अधिक उपयुक्त अन्य प्रतीक नहीं लगा. श्वेत कमल से समता रखते चरित्रों को भी कमल से जुड़े विशेषण मिले हैं. मेरे पढ़ने में ब्रम्हकमल, हिमकमल से जुड़े विशेषण नहीं आये... शायद इसका कारण इनका दुर्लभ होना है. इंद्र कमल (चंपा) के रंग चम्पई (श्वेत-पीत का मिश्रण) से जुड़े विशेषण नायिकाओं के लिये गर्व के प्रतीक हैं किन्तु पुरुष को मिलें तो निर्बलता, अक्षमता, नपुंसकता या पाण्डुरोग (पीलिया ) इंगित करते हैं. कुंती तथा कर्ण के पैर कोमलता तथा गुलाबीपन में साम्यता रखते थे तथा इस आधार पर ही परित्यक्त पुत्र कर्ण को रणांगन में अर्जुन के सामने देख-पहचानकर वे बेसुध हो गयी थीं.
*
हिम कमल
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में खड़ी थ्येनशान पर्वत माले में समुद्र सतह से तीन हजार मीटर ऊंची सीधी खड़ी चट्टानों पर एक विशेष किस्म की वनस्पति उगती है, जो हिम कमल के नाम से चीन भर में मशहूर है। हिम कमल का फूल एक प्रकार की दुर्लभ मूल्यवान जड़ी बूटी है, जिस का चीनी परम्परागत औषधि में खूब प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से ट्यूमर के उपचार में, लेकिन इधर के सालों में हिम कमल की चोरी की घटनाएं बहुत हुआ करती है, इस से थ्येन शान पहाड़ी क्षेत्र में उस की मात्रा में तेजी से गिरावट आयी। वर्ष 2004 से हिम कमल संरक्षण के लिए व्यापक जनता की चेतना उन्नत करने के लिए प्रयत्न शुरू किए गए जिसके फलस्वरूप पहले हिम कमल को चोरी से खोदने वाले पहाड़ी किसान और चरवाहे भी अब हिम कमल के संरक्षक बन गए हैं।

रचना - प्रति रचना : इंदिरा प्रताप / संजीव 'सलिल'

रचना - प्रति रचना : इंदिरा प्रताप / संजीव 'सलिल'
*
रचना:
अमलतास का पेड़
इंदिरा प्रताप
*
वर्षों बाद लौटने पर घर
आँखें अब भी ढूँढ रही हैं
पेड़ पुराना अमलतास का,
सड़क किनारे यहीं खड़ा था
लदा हुआ पीले फूलों से|
पहली सूरज की किरणों से
सजग नीड़ का कोना–कोना,
पत्तों के झुरमुट के पीछे,
कलरव की धुन में गाता था,
शिशु विहगों का मौन मुखर हो|
आँखें अब भी ढूँढ रही हैं
तेरी–मेरी
पेड़ पुराना अमलतास का
लदा हुआ पीले फूलों से
कुछ दिन पहले यहीं खड़ा था|
गुरुवार, २३ अगस्त २०१२
*****
Indira Pratap <pindira77@yahoo.co.in
प्रतिरचना:
अमलतास का पेड़
संजीव 'सलिल'
**
तुम कहते हो ढूँढ रहे हो
पेड़ पुराना अमलतास का।
*
जाकर लकड़ी-घर में देखो
सिसक रही हैं चंद टहनियाँ,
कचरा-घर में रोती कलियाँ,
बिखरे फूल सड़क पर करते
चीत्कार पर कोई न सुनता।
करो अनसुना.
अपने अंतर्मन से पूछो:
क्यों सन्नाटा फैला-पसरा
है जीवन में?
घर-आंगन में??
*
हुआ अंकुरित मैं- तुम जन्मे,
मैं विकसा तुम खेल-बढ़े थे।
हुईं पल्लवित शाखाएँ जब
तुमने सपने नये गढ़े थे।
कलियाँ महकीं, कँगना खनके
फूल खिले, किलकारी गूँजी।
बचपन में जोड़ा जो नाता
तोड़ा सुन सिक्कों की खनखन।
तभी हुई थी घर में अनबन।
*
मुझसे जितना दूर हुए तुम,
तुमसे अपने दूर हो गए।
मन दुखता है यह सच कहते
आँखें रहते सूर हो गए।
अब भी चेतो-
व्यर्थ न खोजो,
जो मिट गया नहीं आता है।
उठो, फिर नया पौधा रोपो,
टूट गये जो नाते जोड़ो.
पुरवैया के साथ झूमकर
ऊषा संध्या निशा साथ हँस
स्वर्गिक सुख धरती पर भोगो
बैठ छाँव में अमलतास की.
*

२८-६-२०१७ 

मीरां - तुलसी संवाद

मीरां - तुलसी संवाद
कृष्ण-भक्त मीरां बाई और राम-भक्त तुलसीदास के मध्य हुआ निम्न पत्राचार शंका-समाधान के साथ पारस्परिक विश्वास और औदार्य का भी परिचायक है। इष्ट अलग-अलग होने और पूर्व परिचय न होने पर भी दोनों में एक दूसरे के प्रति सहज सम्मान का भाव उल्लेखनीय है। काश. हम सब इनसे प्रेरणा लेकर पारस्परिक विचार-विनिमय से शंकाओं का समाधान कर सकें-
राजपरिवार ने राजवधु मीरां को कृष्ण भक्ति छोड़कर सांसारिक जीवन यापन हेतु बाध्य करना चाहा। पति भोजराज द्वारा प्रत्यक्ष विरोध न करने पर भी ननद ऊदा ने मीरां को कष्ट देने में कोई कसर न छोड़ी। प्रताड़ना असह्य होने पर मीरां ने तुलसी को पत्र भेजा-

स्वस्ति श्री तुलसी कुलभूषण, दूषन हरन गोसाई।
बारहिं बार प्रनाम करहूँ अब, हरहूँ सोक समुदाई।।
घर के स्वजन हमारे जेते, सबन्ह उपाधि बढ़ाई।
मेरे माता-पिता के समहौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई।
साधु-संग अरु भजन करत माहिं, देत कलेस महाई।।
हमको कहा उचित करिबो है, सो लिखिए समझाई।।

हे कुलभूषण! दूषण को मिटानेवाले, गोस्वामी तुलसीदास जी सादर प्रणाम। आपको बार-बार प्रणाम करते हुए निवेदन है कि मेरे अनगिन शोकों को हरने की कृपा करें। हमारे घर के जितने स्वजन (परिवारजन) हैं वे हमारी पीड़ा बढ़ा रहे हैं। यहाँ 'उपाधि' शब्द का प्रयोग व्यंगार्थ में है, व्यंग्य करते हुए सम्मानजनक शब्द इस तरह कहना कि उसका विपरीत अर्थ सुननेवाले को अपमानजनक लगकर चुभे और दर्द दे। साधु-संतों के साथ बैठकर भजन करने पर वे मुझे अत्यधिक क्लेश देते हैं। आप मेरे माता-पिता के समकक्ष तथा ईश्वर के भक्तों को सुख देनेवाले हैं। मुझे समझाकर लिखिए कि मेरे लिए क्या करना उचित है?
मीराबाई के पत्र का जबाव तुलसीदास ने इस प्रकार दिया:-
जाके प्रिय न राम बैदेही।
सो नर तजिए कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।।
नाते सबै राम के मनियत सुह्मद सुसंख्य जहाँ लौ।
अंजन कहा आँखि जो फूटे, बहुतक कहो कहाँ लौ।।

तुलसी के समक्ष धर्म संकट यह था कि उनसे एक भक्त और राजरानी मार्गदर्शन चाह रही थी जिसके इष्ट भिन्न थे। वे मना भी कर सकते थे, मौन भी रह सकते थे। मीरा से राजपरिवार के विपरीत जाने को कहते तो मीरा को राज परिवार की और अधिक नाराजी झेलनी पड़ती,जो मीरां के कष्ट भी बढ़ाती। राज परिवार की बात मानने को कहते तो मीरां को ईश्वर भक्ति छोड़नी पड़ती जो स्वयं ईश्वर भक्त होने के नाते तुलसी कर नहीं सकते थे। तुलसी ने आदर्श और व्यवहार में समन्वय बैठाते हुए उत्तर में बिना संबोधन किये मीरां को मार्गदर्शन दिया ताकि मीरा पर परपुरुष का पत्र मिलने का आरोप न लगाया जा सके। तुलसी ने लिखा: 'जिसको भगवान राम और भगवती सीता अर्थात अपना इष्ट प्रिय न हो उसे परम प्रिय होने भी करोड़ों शत्रुओं के समान घातक समझते हुए त्याग देना चाहिए। (यहाँ मीरां को संकेत है कि वे राजपरिवार और राजमहल त्याग दें, जिसका मीरां ने पालन भी किया और कृष्ण मंदिर को निवास बना लिया)। जीवन में जितने भी संबंध हैं वे सब वहीँ तक मान्य हैं जहाँ तक भगवान् की उपासना में बाधक न हों। ऐसा अंजन किस काम का जो आँख ही फोड़ दे अर्थात वह नाता पालने योग्य नहीं है जिसके कारण अपना इष्ट भगवद्भक्ति छोड़ना पड़े। इससे अधिक और क्या कहूँ?
***

नवगीत : तुम

नवगीत :
तुम
*
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
सूरज करता ताका-झाँकी
मन में आँकें सूरत बाँकी
नाच रहे बरगद बब्बा भी
झूम दे रहे ताल।
तुम इठलाईं
तो पनघट पे
कूकी मौन रसाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
सद्यस्नाता बूँदें बरसें
देख बदरिया हरषे-तरसे
पवन छेड़ता श्यामल कुंतल
उलझें-सुलझे बाल।
तुम खिसियाईं
पल्लू थामे
झिझक न करो मलाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
बजी घंटियाँ मन मंदिर में
करी अर्चना कोकिल स्वर में
रीझ रहे नटराज उमा पर
पहना, पहनी माल।
तुम भरमाईं
तो राधा लख
नटवर हुए निहाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
करछुल-चम्मच बाजी छुनछन
बटलोई करती है भुनभुन
लौकी हाथ लगाए हल्दी
मुकुट टमाटर लाल।
तुम पछताईं
नमक अधिक चख
स्वेद सुशोभित भाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
पूर्वा सँकुची कली नवेली
हुई दुपहरी प्रखर हठीली
संध्या सुंदर, कलरव सस्वर
निशा नशीली चाल।
तुम हुलसाईं
अपने सपने
पूरे किये कमाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*

गीत

गीत-
*
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
राकेशी ज्योत्सना न शीतल, लिये क्रांति की नव मशाल है
*
अचल रहे संकल्प, विकल्पों पर विचार का समय नहीं है
हुई व्यवस्था ही प्रधान, जो करे व्यवस्था अभय नहीं है
*
कल तक रही विदेशी सत्ता, क्षति पहुँचाना लगा सार्थक
आज स्वदेशी चुने हुए से टकराने का दृश्य मार्मिक
कुरुक्षेत्र की सीख यही है, दु:शासन से लड़ना होगा
धृतराष्ट्री है न्याय व्यवस्था मिलकर इसे बदलना होगा
वादों के अम्बार लगे हैं, गांधारी है न्यायपीठ पर
दुर्योधन देते दलील, चुक गये भीष्म, पर चलना होगा
आप बढ़ा जी टकराने अब उसका तिलकित नहीं भाल है
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
*
हाथ हथौड़ा तिनका हाथी लालटेन साइकिल पथ भूले
कमल मध्य को कुचल, उच्च का हाथ थाम सपनों में झूले
निम्न कटोरा लिये हाथ में, अनुचित-उचित न देख पा रहा
मूल्य समर्थन में, फंदा बन कसा गले में कहर ढा रहा
दाल टमाटर प्याज रुलाये, खाकर हवा न जी सकता जन
पानी-पानी स्वाभिमान है, चारण सत्ता-गान गा रहा
छाते राहत-मेघ न बरसें, टैक्स-सूर्य का व्याल-जाल है
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
*
महाकाल जा कुंभ करायें, क्षिप्रा में नर्मदा बहायें
उमा बिना शिव-राज अधूरा, नंदी चैन किस तरह पायें
सिर्फ कुबेरों की चाँदी है, श्रम का कोई मोल नहीं है
टके-तीन अभियंता बिकते, कहे व्यवस्था झोल नहीं है
छले जा रहे अपनों से ही, सपनों- नपनों से दुःख पाया
शानदार हैं मकां, न रिश्ते जानदार कुछ तोल नहीं है
जल पलाश सम 'सलिल', बदल दे अब न सहन के योग्य हाल है
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
***
१८-६-२०१६

नवगीत खिला मोगरा

नवगीत
खिला मोगरा
*
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
महक उठा मन
श्वास-श्वास में
गूँज उठी शहनाई।
*
हरी-भरी कोमल पंखुड़ियाँ
आशा-डाल लचीली।
मादक चितवन कली-कली की
ज्यों घर आई नवेली।
माँ के आँचल सी सुगंध ने
दी ममता-परछाई।
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
*
ननदी तितली ताने मारे
छेड़ें भँवरे देवर।
भौजी के अधरों पर सोहें
मुस्कानों के जेवर।
ससुर गगन ने
विहँस बहू की
की है मुँह दिखलाई।
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
*
सजन पवन जब अंग लगा तो
बिसरा मैका-अँगना।
द्वैत मिटा, अद्वैत वर लिया
खनके पायल-कँगना।
घर-उपवन में
स्वर्ग बसाकर
कली न फूल समाई।
खिला मोगरा
जब-जब, मुझको
याद किसी की आई।
***
२८-६-२०१६

humour


humour

Interviewer: Let me check ur
english, tell me d opposite of
good.?
Banta: Bad.

Interviewer: Come
Banta: Go.

Interviewer: Ugly?
Banta: Pichhlli.
...
Interviewer: PICHLLI
Banta: UGLY.

Interviewer: Shut Up.
Banta: Keep talking.

Interviewer: Ok, now stop all dis
Banta: Ok, now carry on all dis.

Interviewer: Abey, chup ho
ja..chup ho ja..chup ho jaa.
Banta: Abey bolta ja..bolta ja..bolta
ja.

Interviewer: Arey, yaar.
Banta: Arey dushman.

Interviewer: Get Out
Banta: Come In.

Interviewer: Oh my God.
Banta: Oh, my devil.

Interviewer: shhhhhhh
banta: Hurrrrrrrrrrrrrrr

Interviewer: mere bap chup hoja
banta: mere bete bolta reh

Interviewer: U are rejected
Banta: I m selected. Oye Bolo ta ra
ra ra ra hayo rabba!!
***

विमर्श : नदी घाटियों का दोषपूर्ण विकास

विमर्श : नदी घाटियों का दोषपूर्ण विकास
प्रिय नरेंद्र जी, उमा जी
सादर वन्दे मातरम
मुझे आपका ध्यान नदी घाटियों के दोषपूर्ण विकास की ओर आकृष्ट करना है.
मूलतः नदियां गहरी तथा किनारे ऊँचे पहाड़ियों की तरह और वनों से आच्छादित थे. कालिदास का नर्मदा तट वर्णन देखें। मानव ने जंगल काटकर किनारों की चट्टानें, पत्थर और रेत खोद लिये तो नदी का तक और किनारों का अंतर बहुत कम बचा. इससे भरनेवाले पानी की मात्रा और बहाव घाट गया, नदी में कचरा बहाने की क्षमता न रही, प्रदूषण फैलने लगा, जरा से बरसात में बाढ़ आने लगी, उपजाऊ मिट्टी बाह जाने से खेत में फसल घट गयी, गाँव तबाह हुए.
इस विभीषिका से निबटने हेतु कृपया, निम्न सुझावों पर विचार कर विकास कार्यक्रम में यथोचित परिवर्तन करने हेतु विचार करें:
१. नदी के तल को लगभग १० - १२ मीटर गहरा, बहाव की दिशा में ढाल देते हुए, ऊपर अधिक चौड़ा तथा नीचे तल में कम चौड़ा खोदा जाए.
२. खुदाई में निकली सामग्री से नदी तट से १-२ किलोमीटर दूर संपर्क मार्ग तथा किनारों को पक्का बनाया जाए ताकि वर्षा और बाढ़ में किनारे न बहें।
३. घाट तक आने के लिये सड़क की चौड़ाई छोड़कर शेष किनारों पर घने जंगल लगाए जाएँ जिन्हें घेरकर प्राकृतिक वातावरण में पशु-पक्षी रहें मनुष्य दूर से देख आनंदित हो सके।
४. गहरी हुई बड़ी नदियों में बड़ी नावों और छोटे जलयानों से यात्री और छोटी नदियों में नावों से यातायात और परिवहन बहुत सस्ता और सुलभ हो सकेगा। बहाव की दिशा में तो नदी ही अल्प ईंधन में पहुंचा देगी। सौर ऊर्जा चलित नावों से वर्ष में ८-९ माह पेट्रोल -डीज़ल की तुलना में लगभग एक बटे दस धुलाई व्यय होगा। प्राचीन भारत में जल संसाधन का प्रचुर प्रयोग होता था।
५. घाटों पर नदी धार से ३००-५०० मीटर दूर स्नानागार-स्नान कुण्ड तथा पूजनस्थल हों जहाँ जलपात्र या नल से नदी उपलब्ध हो। नदी के दर्शन करते हुए पूजन-तर्पण हो। प्रयुक्त दूषित जल व् अन्य सामग्री घाट पर बने लघु शोधन संयंत्र में उपचारित का शुद्ध जल में परिवर्तित की जाने के बाद नदी के तल में छोड़ा जाए। तथा नदी का प्रदुषण समाप्त होगा तथा जान सामान्य की आस्था भी बनी सकेगी। इस परिवर्तन के लिये संतों-पंडों तथा स्थानी जनों को पूर्व सहमत करने से जन विरोध नहीं होगा।
६. नदी के समीप हर शहर, गाँव, कस्बे, कारखाने, शिक्षा संस्थान, अस्पताल आदि में लघु जल-मल निस्तारण केंद्र हो। पूरे शहर के लिए एक वृहद जल-नल केंद्र मँहगा, जटिल तथा अव्यवहार्य है जबकि लघु ईकाइयां कम देखरेख में सुविधा से संचालित होने के साथ स्थानीय रोजगार भी सृजित करेंगी। इनके द्वारा उपचारित जल नदियों में छोड़ना सुरक्षित होगा।
७. एक राज्यों में बहने वाली नदियों पर विकास योजना केंद्र सरकार की देख-रेख और बजट से हो जबकि एक राज्य की सीमा में बह रही नदियों की योजनों की देखरेख और बजट राज्य सरकारें देखें।जिन स्थानों पर निवासी २५ प्रतिशत जन सहयोग दान करें उन्हें प्राथमिकता दी जाए। हिस्सों में स्थानीय जनों ने बाँध बनाकर या पहाड़ खोदकर बिना सरकारी सहायता के अपनी समस्या का निदान खोज लिया है और इनसे लगाव के कारण वे इनकी रक्षा व मरम्मत भी खुद करते है जबकि सरकारी मदद से बनी योजनाओं को आम जन ही लगाव न होने से हानि पहुंचाते हैं। इसलिए श्रमदान अवश्य हो। ७० के दशक में सरकारी विकास योजनाओं पर ५० प्रतिशत श्रमदान की शर्त थी, जो क्रमशः काम कर शून्य कर दी गयी तो आमजन लगाव ख़त्म हो जाने के कारण सामग्री की चोरी करने लगे और कमीशन माँगा जाने लगा।श्रमदान करनेवालों को रोजगार मिलेगा।
८. नर्मदा में गुजरात से जबलपुर तक, गंगा में बंगाल से हरिद्वार तक तथा राजस्थान, महाकौशल, बुंदेलखंड और बघेलखण्ड में छोटी नदियों से जल यातायात होने पर इन पिछड़े क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाएगा।

९. इससे भूजल स्तर बढ़ेगा और सदियों के लिए पेय जल की समस्या हल हो जाएगी।भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी।
कृपया, इन बिन्दुओं पर गंभीरतापूर्वक विचारण कर, क्रियान्वयन की दिशा में कदम उठाये जाने हेतु निवेदन है।
संजीव वर्मा
एक नागरिक

दोहा दोहा चिकित्सा

दोहा दोहा चिकित्सा
गर्म दूध-गुड़ नित पिएँ, त्वचा नर्म हो आप
हर विकार मिट वजन घट, रोग न पाए व्याप
गुड़ अदरक नित चबाएँ, जोड़ दर्द हो दूर
मासिक समय न दर्द हो, केश बढ़ें भरपूर
श्वास फूलती है अगर, दवा श्रेष्ठ अंजीर
कफ-बलगम कर दूर यह, शीघ्र मिटाए पीर
रात फुला अंजीर त्रय, पानी में खा भोर
पानी पी लें माह भर, करें न नाहक शोर
काढ़ा तुलसी सौंठ का, श्वसन तंत्र का मीत
श्वास फूलने दमा में, सेवन उत्तम रीत
सोंठ चूर्ण चुटकी, नमक काला, काली मिर्च
तुलसी पत्ते पाँच सँग, काला नमक उबाल
काली मिर्ची सौंठ सँग, सेवन करे कमाल
अजवाइन को पीसकर, पानी संग उबाल
पिएँ भाप लें यदि दमा, मिटे न करे निढाल
तिल का तेल गरम मलें, छाती पर लें सेक
दमा श्वास पीड़ा मिटे, है सलाह यह नेक
श्वास दमा पीड़ा घटे, खाएँ फल अंगूर
अंगूरी से दूर हों, लाभ मिले भरपूर
चौलाई रस-शहद पी, नित्य खाइए साग
कष्ट न दे हो दूर झट, श्वास रोग खटराग
तीन कली लहसुन डला, दूध उबालें मीत
शयन पूर्व पी लीजिए, श्वास रोग लें जीत
काढ़ा सेवन सौंफ का, बलगम करता दूर
श्वसन रोग से मुक्ति पा, बजे श्वास संतूर
लौंग-शहद काढ़ा बना, पीते रहें हुजूर
श्वसन तंत्र मजबूत हो, श्वास मिले भरपूर
शहद-दालचीनी मिला, पिएँ गुनगुना नीर
या पी लें गोमूत्र तो, घटे श्वास की पीर
हींग-शहद चुप चाटिए, चार बार रह शांत
साँस फूलने से मिले, मुक्ति न रहें अशांत
नीबू रस पानी गरम, पिएँ मिले आराम
केला सेवन मत करें, लेती श्वास विराम
गुड़-सरसों के तेल में, डाल मिला लें मौन
नित करिए सेवन मलें, रोग न जाने कौन
ताजे फल सब्जी हरी, चने अंकुरित श्रेष्ठ
चिकनाई एसिड तजें, कार्बोहाइड्रेट नेष्ठ
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हिंदी व्याकरण : अनुस्वार और अनुनासिक

हिंदी व्याकरण : अनुस्वार और अनुनासिक चंद्रबिंदु 
अनुस्वार- अनुस्वार का चिह्न (ं) यह है, यह तो आप सब जानते ही हैं।
हर व्यंजन कहलाने वाले वर्ग के पाँचवें वर्ण जैसे - ङ् ञ् ण् न् म् का प्रयोग जब किया जाता है तो इन वर्णों को परिवर्तित करके इनकी जगह अनुस्वार लगाया जाता है।
हिंदी केन्द्रीय मानकीकरण द्वारा वर्तनी संबंधी कई नियम बनाए गए हैं, जिसे सन 2012 में लागू किया गया है। [1]
कंप्यूटर के कुंजी पटल में सीमित स्थान होने के कारण वर्णों में अनुस्वार का प्रयोग निम्नलिखित तरीके से किए जाने को मान्य रूप दिया गया है।
जैसे:
पङ्कज - पंकज
चञ्चल - चंचल,
घमण्ड, - घमंड
आनन्द - आनंद
सम्बन्ध - संबंध
पर ऊपर लिखे शब्दों के मानक रूप में पारित किए जाने के बाद भी कुछ शब्द जैसे - दण्ड, निबन्ध या सम्बन्ध आज भी प्रचलन में हैं।
पर कई जगहों पर पंचम वर्ण के बात कोई दूसरा वर्ण आता है तो उसके स्थान पर अनुस्वार नहीं लगेगा।
जैसे - अन्य सही है अंय नहीं।
चिन्मय और उन्मुख सही है, चिंमय और उंमुख नहीं।
अब बात करते हैं, अनुनासिक क्या है?
अनुनासिक - अनुनासिक का चिह्न चंद्रबिंदु(ँ) है। अनुनासिक व्यंजन नहीं है, स्वरों का ध्वनिगुण है।
चंद्रबिंदु(ँ) का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है, जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर न लगी हों।
यह ध्यान देने वाली बात है।
जैसे: अ, आ, ऊ, ए,
अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह के अलावा नाक से भी हवा निकलती है, तो उपर्युक्त लिखे शब्द में चंद्रबिंदु का प्रयोग होगा।
जैसे :– अँ आँ, ऊँ, एँ,
अँगना, आँख, ऊँचा, आएँ
आपके प्रश्न के अनुसार चाहूँगा, लिखूँगा, हूँ लिखना सही है क्योंकि उन अक्षरों में ऊँ स्वर की ध्वनि आ रही है, जिसे बोलने में मुँह के साथ नाक से भी आवाज निकलती है।
अब जैसे माँ, चाँद या आँख लिखना है तो यहाँ भी चंद्र बिंदु का प्रयोग होगा क्योंकि इन्हें बोलने में आँ स्वर की ध्वनि आ रही है।
आप स्वयं बोल कर देख लीजिए।
कई बार हंस / हँस को लेकर भी दुविधा हो जाती है कि क्या सही है?
हंस - एक पक्षी का नाम है तो हंस लिखने पर यही समझा जाता है। यहाँ न् का प्रयोग अनुस्वार में किया गया है।
हँस - इसका मतलब हँसने से है तो हँसना लिखने पर ह के ऊपर चंद्र बिंदु का ही प्रयोग होगा।

संस्कृति : महाभारत के अज्ञात तत्व

संस्कृति : महाभारत के अज्ञात तत्व
  • राजा शान्तनु की दूसरी शादी एक केवट कन्या से होती है। जिसका नाम मत्स्यगंधा था। जिसका नाम आगे चलकर सत्यवती हो गया। “शांतनु, जो कि एक राजा, मतलब क्षत्रिय थे, ने केवट कन्या से विवाह किया।” यह घटना हमें सिखाती है कि हिन्दू धर्म में अपने वर्ण से बाहर विवाह कर सकते हैं। जो आजकल के समय में आसानी से मान्य नहीं है। कहने का आशय, माता-पिता की सहमति से तो नही हो रहा है।
  • अगला सबक हमे रुक्मणि और द्रौपदी से मिलता है। रुक्मणि के पिता एवं भाई ने रुक्मणि मर्जी के बिना उसका विवाह शिशुपाल से तय कर दिया। तो रुक्मणि ने कृष्ण से विवाह कर लिया। पिता की इच्छा के विरुद्ध। इसी प्रकार द्रौपदी ने कर्ण से विवाह करने से मना कर दिया था। ये दोनों घटनाऐं हमे शिक्षा देती हैं कि कन्या की इच्छा के विरुद्ध उसका विवाह करना वर्जित है।
  • रानी कुंती और रानी सत्यवती दोनों को विवाह के पूर्व ही संतान थी। कुंती को महारथी कर्ण और सत्यवती को महर्षि वेदव्यास विवाह के पूर्व ही जन्मे थे।
  • अधिकांश लोग यह नहीं जानते, कि राजा पाण्डु और राजा धृतराष्ट्र के जैविक पिता महर्षि वेदव्यास थे। जबकि कानूनी पिता विचित्रवीर्य थे।
  • सभी पांडव अलग- अलग देवताओं के पुत्र थे।
  • रानी गांधारी की सभी संतानों का जन्म वेदव्यास ने टेस्टट्यूब बेबी जैसी विधि अपनाकर किया था, जिसे नियोग कहते थे।
  • शिखंडी जन्म से लड़की थी। मगर गन्धर्व की सहायता से उसने लिंग परिवर्तन करवाया था। बिल्कुल वैसा ही जैसा आज प्रचलित है। अर्जुन ने भी एक साल के लिए लिंग बदला था।
  • भगवान बलराम की जैविक माता देवकी थी। मगर देवकी के गर्भ को रोहणी की कोख में प्रतिस्थापित कर दिया गया था। आज कल की सरोगेट मदर जैसे।
  • अर्जुन ने विराट युध्द में क्लोरोफार्म की तरह का हथियार का प्रयोग कर सभी कौरवों को बेहोश किया था।
  • ऊपर जिन तथ्यों का मैंने वर्णन किया है, वो हिन्दू धर्म की आधुनिकता को सब के सामने लाने के लिए किया है। लोगों से आशा है, कि वो स्वविवेक का प्रयोग करेंगे; न कि भावना का।

हिंदी व्याकरण : एकल और दोहरा उद्दरण चिह्न

हिंदी में एकल उद्धरण (' ') और दोहरा उद्धरण/कोटेशन (" ") कब प्रयोग किये जाते हैं ।
एकल उद्धरण = किसी उपनाम , शीर्षक , उपाधि के लिए एकल उद्धरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे - पंडित श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी ।
हरिवंशराय बच्चन जी की प्रसिद्ध रचना 'मधुशाला' है ।
( इन दोनों उदाहरणों में क्रमशः निराला और मधुशाला के लिए एकल उद्धरण चिह्न का प्रयोग किया गया है ।)
दोहरा उद्धरण = किसी कथन को ज्यों का त्यों उतारने के लिए या किसी की परिभाषा देने के लिए दोहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है ।
जैसे - " दया ही सबसे बड़ा धर्म है " ( यह महाभारत से लिया गया वाक्य है । )
" नार विवश नर शकल गौसाई , नाचाई नर मरकट की नाई " ।