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गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

अंक माहात्म्य (१-९)

अंक माहात्म्य (१-९)
*
शून्य जन्म दे सृष्टि को, सकल सृष्टि है शून्य
शून्य जुड़े घट शून्य हो, गुणा-भाग भी शून्य
*
एक ईश रवि शशि गगन, भू मैं तू सिर एक
गुणा-भाग धड़-नासिका, है अनेक में एक
*
दो जड़-चेतन नार-नर, कृष्ण-शुक्ल दो पक्ष
आँख कान कर पैर दो, अधर-गाल समकक्ष
*
तीन देव व्रत राम त्रय, लोक काल ऋण तीन
अग्नि दोष-गुण ताप ऋतु, धारा मामा तीन
*
चार धाम युग वेद रिपु, पीठ दिशाएँ चार
वर्ण आयु पुरुषार्थ चौ, चौका चौक अचार
*
पाँच देव नद अंग तिथि, तत्व अमिय शर पाँच
शील सुगंधक इन्द्रियाँ, कन्या नाड़ी साँच
*
छह दर्शन वेदांग ऋतु, शास्त्र पर्व रस कर्म
षडाननी षड राग हे, षड अरि-यंत्र न धर्म
*
सात चक्र ऋषि द्वीप स्वर, सागर पर्वत रंग
लोक धातु उपधातु दिन, अश्व अग्नि शुभ अंग
*
अष्ट लक्ष्मी सिद्धि वसु, योग कंठ के दोष
योग-राग के अंग अठ, आत्मोन्नति जयघोष
*
नौ दुर्गा ग्रह भक्ति निधि, हवन कुंड नौ तंत्र
साड़ी मोहे नौगजी, हार नौलखा मंत्र
*

विश्व के समस्त पदार्थों में जैसे, ब्रह्म एकरस आप्त
वैसे अंक नौ सर्वत्र ह्रास -वृद्धि रहित , एक सा ब्याप्त
नौ का गुणन करने पर भी रहता ज्यों का त्योंही
इसका सम्पूर्ण पहाडा रहे,आदि से अंत तक वही
आठ के अंक में जब एक अंक और होता संयुक्त
नौ का रूप धारण कर ह्रास वृद्धि से होता मुक्त
अंक आठ माया स्वरुप ,जब हो माया ब्रह्म में लीन
स्वरुप खोकर होती विलीन, घटना बढ़ना होता क्षीण
नवग्रह ,नौ छंद,नौ रस,नौ दुर्गा, नौ नाडी,नौ हव्य,
नौ सिद्धि, नौ निधि ,नौ रत्न, नौ छवि ,नौ द्रव्य
तुलसी नौ की महिमा की तुलना करे श्री राम संग
आदि अंत नीरबाहिये, अंक नौ करे ना नियम भंग
नवधा भक्ति ....श्रवण ,कीर्तन,स्मरण ,पादसेवन ,अर्चन ,वंदन ,दास्य ,सख्य,आत्मनिवेदन
नौ सिद्धि .......ब्राह्मी, वैष्णवी, रौद्री, महेश्वरी, नार सिंही, वाराही, इन्द्रानी, कार्तिकी, सर्वमंगला
नौ निधि,,,पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप ,मुकुंद ,कुंद, नील, ख़राब
नौ रत्न,,,मानक, मोती, मूंगा, वैदूर्य ,गोमेद, हीरा, पद्मराग, पन्ना, नीलम
नौ दुर्गा ....शैलपुत्री ,ब्रह्मचारिणी ,चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, काल रात्री, महागौरी, सिद्धिदात्री
नौ गृह.....सूर्य, चन्द्रमा ,भौम ,बुध ,गुरु ,शुक्र ,शनि ,राहू ,केतु
नौ छंद....दोहा, सोरठा,चौपाई ,हरिगीतिका ,त्रिभंगी ,नाग स्वरुपिनी ,तोमर ,भुजन्ग्प्रयत ,तोटक
नौ छवि....द्दृती, लावण्य, स्वरुप, सुंदर, रमणीय, कांटी, मधुर, मृदु, सुकुमार
नौ द्रव्य ....पृथ्वी, जल, तेज ,वायु ,नभ ,काल, दिक्, आत्म, मन
काव्य शाश्त्र के नौ रस ....श्रृंगार, हास्य ,करुण ,रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स ,अद्भुत ,शांत
नौ हव्य....घृत ,दुग्ध, दधि, मधु,चीनी, तिल ,चावल, यव, मेवा
नौ नाडी ....इडा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, गज, जिम्हा ,पुष्प, प्रसादा, शनि ,शंखिनी
पृथवी के नौ खंड ..किम्पुरुष ,इलावृत ,रम्यक ,हिरंमय , कुरु, हरी, भारत,केतुमाल, भाद्रक्ष
शरीर के नौ द्वार ...दो नेत्र ,दो नाक दो कान ,मुख, गुदा, उपस्थ
किसी ब्यक्ति के घर आने पर नौ अमृत खर्च करे ...मीठे वचन ,सौम्य दृष्टि ,सौम्य मुख ,सौम्य मन ,खड़ा होना, स्वागत करना ,प्रेम से बात चीत करना ,पास बैठना ,जाते समय पीछे पीछे जाना
नौ बातें उन्नति में बाधक है .....चुगली या निंदा करना ,परस्त्री सेवन ,क्रोध ,दुसरे का बुरा करना ,अप्रिय करना झूठ ,द्वेश,दंभ ,जाल रचना
धर्म रूप नवक....सत्य, शौच, अहिंसा, क्षमा, दान, दया, मन का निग्रह, अस्तेय,इन्द्रियों का निग्रह
नौ प्रकार की जीविका निषिद्ध मानी गई है...भीख, नट, नृत्य,भांड ,कुटनी, वेश्या ,रिश्वत ,जुआ, चोरी
नौ कर्म नहीं छोड़ने चाहिए ...संध्या स्नान ,जप, हवन ,यज्ञ,दान, पूजा ,ब्रह्मचर्य ,अहिंसा
नौ ब्यक्तियों को क्रोध नहीं करना चाहिए ....शश्त्री,मर्मी, प्रभु, शठ ,धनी, वैध,वंदी, कवि ,चतुर मानस
नौ स्थान भ्रष्ट होने पर शोभा नहीं पाते ....राजा ,कुलवधू ,विप्र ,मंत्री ,स्तन ,डांट ,केश ,नख ,मनुष्य
गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में सर्वप्रथम नौ देवों की वंदना की ...गणेश ,सरस्वती ,भवानी ,शंकर ,गुरु ,वाल्मीकि ,हनुमान ,सीता ,श्री राम
ब्रह्मण के नौ गुण....अंत :करणका निग्रह करना ,इन्द्रियों का दमन करना,धर्मपालन के लिये कष्ट सहना ,बहार भीतर से शुद्ध रहना ,दूसरों के अपराधों को क्षमा करना ,मन इन्द्रिय और शरीर को सरल रखना ,वेद ,ईश्वर ,शाश्त्र ,ईश्वर ,परलौक आदि में श्रद्धा रखना ,वेद शाश्त्रों का अध्यन ,अद्ध्यापन करना परमात्मा के तत्वों का अनुभव करना
नौ सम्बन्धी ...धैर्य पिता , क्षमा माता, नित्य शान्ति स्त्री ,सत्य पुत्र ,दया भगिनी ,मन :संयम भ्राता, भूमितल सुकोमल शय्या ,दिशाएँ वस्त्र ,ज्ञाना मृत भोजन ,
आइये देखे ९ का पहाडा ....
९,१८,२७,३६,४५,....पहाड़े की हर संख्या नौ रहती है यथा ..
९,१+८=९,२+७=९,३+६=९,४+५=९....आदि
हिंदी या संस्कृत की वर्ण माला में दो भेद होते हैं एक स्वर दूसरा व्यंजन .अ से अ :तक १२ स्वर और क से ह तक ३३ व्यंजन कुल मिला कर ४५ जो ४+५=९ बनाते है I

ब्रह्म में चार अक्षरों का समन्वय है ब=२३(तेइसवां व्यंजन),र =२७,ह =३३,म =२५,चारों अक्षरों का जोड़ है १०८ ,१+०+८=९ बनाता हैI
जब ब्रह्म पूर्ण है तो संसार अपना मूल्य कम क्या रखेगा.....
स=३२,अं=१५,स=३२ ,आ =२,र=२७,कुल मिला कर हुए १०८ ,१+०+८=९
जब ब्रह्म और संसार तुल्य है तब संसार के चारो युग भी अपना अधिकार कम क्यों करें I
सत्ययुग ...१७२८०००=१+७+२+८=१८=१+८=९
त्रेता युग ...१२९६०००=१+२+९+६=१८=१+८=९
द्वापर युग ...८६४०००=८+६+४=१८=१+८=९
कलयुग ...४३२०००=४+३+२=९
चारो युग की सामूहिक वर्ष संख्या है ४३२००००=४+३+२=९

आयुर्वेद रस चिकित्सा


आयुर्वेद रस चिकित्सा है - षडरस चिकित्सा है

ये ६ रस हैं
रस ---------------प्रभाव
१) मधुर ------कफ बढ़ाता है
२) अम्ल -----कफ , पित्त बढ़ाता है
३) लवण ---- पित्त बढ़ाता है
४) कटु ------ पित्त बढ़ाता है
५) तिक्त ----- वात बढ़ती है
६) कषाय -----वात बढ़ती है
मधुर = मीठा ,
अम्ल = खट्टा,तेज जलन जैसे लहसुन ,
लवण = नमकीन ,
कटु = चरपरा ,
तिक्त = कडुवा ,
कषाय = कसैला ,फीका
६) कषाय इन छ में से कोई एक रस हमारे भीतर बढ़ा होता है और रोग मिटाना है तो उस रस को कम करना होता है। यदि मधुर रस से परेशानी हो रही है,कफ बढ़ रहा है , तो आपको सबसे निचे के रस को अपने भीतर बढ़ाना होगा। अर्थात कसैला रस लो तो मीठे रस का प्रभाव तेजी से कम होगा। मीठा अर्थात कफ। तो मधुर से परेशान हो तो उससे दूर के रस कटु - तिक्त - कषाय का प्रयोग बढ़ाओ आपको शीघ्र मुक्ति मिलेगी। ऐसी औषधि लो ऐसी सब्जी फल फूल लो कसैले प्रभाव के निकट के हों। अम्ल प्रभाव से मुक्ति चाहिए तो भी निचे के रस डालो - अर्थात कड़वा लो,कसैला लो
मधुर पदार्थ अम्ल कफ बढ़ाएंगे ,लवण कटु पित्त बढ़ाएंगे ,तिक्त कषाय वात बढ़ाएंगे
निचे वाले वात देंगे - अर्थात यदि वात से परेशान हो तो ऊपर का रस मधुर या अम्ल लो
तो इसको समझो - रस के स्वाद समझो और आवश्यकतानुसार उपचार करो
१ क्रम के रस से रोग है तो ४ या ५ या ६ क्रम के रस प्रयोग बढ़ाओ - यदि मधुर रस से रोग है और मधुर रस सेवन ही बढ़ा के रखा है तो रोग और कुपित होगा। मानलो आप मधुर रस का प्रभाव मिटाने को कषाय रस का सेवन बढ़ाते हो तो इससे मधुर का प्रभाव तो मिटेगा परन्तु कषाय रस वायु बढ़ाता है - वायु रोगी की यदि वायु बढ़ी तो उसका जीना दूभर हो जाएगा तब आप साथ में कुछ वायु कम करने वाली चीजें भी लो।
घर की सभी सब्जियों - फलों - आसपास के पेड़ों की पत्तियों को चख के रखो उनके रस के स्वाद को चख के रखो , मसालों के रस को समझो और आवश्यकतानुसार प्रयोग कर लो।
जैसे आप पित्त से परेशान हो रहे हो और पास में तिक्त रस वाला कडुवा नीम है तो फट से नीम की पत्ती तोड़ो और पित्त से तुरंत राहत पाओ
देखो हर चीज के नाम कितना चिंतन से रखे हैं - उनका गुण धर्म समझाते हुए
अजवायन = अज वायु न - वायु उतपन्न न होने दे -- अज वाय न
तो वायु परेशान करे तो अजवायन की सहायता लो - वायुकारक दाल सब्जी में अजवायन का छौंक दो
धनिया = दाह नहीं आ - दाहनीआ - धनिया - और सत्य है धनिया दाह - गर्मी को रोकता है - पित्त,गर्मी परेशान करे तो धनिया लो। यह त्रिदोष नाशक है। अर्थात सब्जी उष्ण प्रकृति की बन रही है तो अधिक धनिया डाल के उसे ठंडी प्रकृति की कर लो।
हल्दी = हल दाह आई = यह थोड़ी सी दाह देती है
लहसुन = लौ है सुन - अरे इसमें लौ है
जीरा = जरा - यह जरा ,जला देता है - अग्नि देता है
जैसे किसी को मधुमेह है तो मेंथीदाना लाभ देता है - भीगी मेंथी कसैली होती है और मधुमेह रोगी मीठे रस से परेशान है - तो मेंथी मीठे रस को कम करती है इससे रोगी को राहत मिलती है अंगों को कुछ माह राहत मिली रहे तो रोग नष्ट हो जाता है। तो आप अपना रोग देखो कि आप कौन से रस से परेशान हो ३ क्रम के रस से परेशान हो तो उससे दूर के रस १ या ६ का सेवन बढ़ाओ और तुरंत राहत पाओ। पर ध्यान रहे ६ प्रकार का रस १ क्रम के रस का घोर शत्रु है किन्तु इसका अधिक सेवन वायु बढ़ाएगा अब यदि आप वायु के भी रोगी हो तो कुछ वायु मिटाने वाली चीजें भी साथ में लेनी पड़ सकती हैं जैसे काली मिर्च ,हींग आदि। कुछ माह आप इसपे अच्छे से चिंतन कर लो आपको ८० % जीवन में दवाई नहीं लेनी पड़ेगी। आप घर की सब्जी मसाले फल दूध आदि से ही अपना उपचार कर लोगे
अब यह शनि को लो - शनि का प्रभाव "वात कारक" होता है - अतः वात कारक चीजें दान करने को कहा गया है - तेल शनि पर चढ़ाओ -- शनि पर तेल चढाने से शनि का प्रभाव कम नहीं होगा - आप ठंडे दिन शनिवार को ठंडा तेल न लो - दान करना अर्थात हम इसका सेवन नहीं कर सकते अतः आप ले जाओ - शनिवार ठंडा दिन माना गया है - ठंडे दिन को ठंडा सरसों का तेल खाया तो वायु बढ़ जायेगी अतः शनि पे चढ़ाओ अपनी जान बचाओ - आप मत चढ़ाओ शनि पर पर सेवन न करो। काली उड़द ठंडी होती है वात कारक होती है अतः उड़द न लो इसलिए शनि के नाम पर दान करने को कहा। आप दान न करो सेवन रोक दो यदि वायु से पीड़ित हो - वायुकारक शनि से पीड़ित हो तो। अब सबको गहराई से समझा नहीं सकते अतः दान से जोड़ा गया। दान देने से ग्रह प्रभाव कैसे हटेगा यह हर तर्कपूर्ण मानव को सोचना चाहिए। दान न करो उसका सेवन न करो अतः दान दिखाया गया। आपके लिए काली दाल तेल हानिकारक है यह जताने को इसे दान करने को कहा गया



शनि प्रभाव है और आपको वायु नहीं बनती तो आप तेल उड़द जी भरके खाओ ,कोई दान न करो 

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
दो कौड़ी का आदमी, पशु का थोड़ा मोल।
नायक सबका खुदा है, धन्य-धन्य हम झेल।।
*
तू मारे या छोड़ दे, है तेरा उपकार।
न्याय-प्रशासन खड़ा है, हाथ बाँधकर द्वार।।
*
आज कदर है उसी की, जो दमदार दबंग।
इस पल भाईजान हो, उस पल हो बजरंग।।
*
सवा अरब है आदमी, कुचल घटाया भार।
पशु कम मारे कर कृपा, स्वीकारो उपकार।।
*
हम फिल्मी तुम नागरिक, आम न समता एक।
खल बन रुकते हम यहाँ, मरे बने रह नेक।।
*
8.4.2018

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
महाकाव्य बब्बा की मूँछें, उजली पगड़ी
खण्डकाव्य नाना के नाना किस्से रोचक
दादी-नानी बन प्रबंध करती हैं बतरस
सुन अंग्रेजी-गिटपिट करते बच्चे भौंचक
ईंट कहीं की, रोड़ा आया और कहीं से
अपना
आप विधाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
लक्षाधिक है छंद सरस जो चाहें रचिए
छंदहीन नीरस शब्दों को काव्य न कहिए
कथ्य सरस लययुक्त सारगर्भित मन मोहे
फिर-फिर मुड़कर अलंकार का रूप निरखिए
बिम्ब-प्रतीक सलोने कमसिन सपनों जैसे
निश-दिन
खूब दिखाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
दृश्य-श्रव्य-चंपू काव्यों से भाई-भतीजे
द्विपदी, त्रिपदी, मुक्तक अपनेपन से भीजे
ऊषा, दुपहर, संध्या, निशा करें बरजोरी
पुरवैया-पछुवा कुण्डलि का फल सुन खीजे
बौद्धिकता से बोझिल कविता
पढ़ता
पर बिसराता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
गीत प्रगीत अगीत नाम कितने भी धर लो
रच अनुगीत मुक्तिका युग-पीड़ा को स्वर दो
तेवरी या नवगीत शाख सब एक वृक्ष की
जड़ को सींचों, माँ शारद से रचना-वर लो
खुद से
खुद बतियाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
८-४-२०१७

नवगीत: संजीव . बाँस

नवगीत:
संजीव
.
बाँस हैं हम
.
पत्थरों में उग आते हैं
सीधी राहों पर जाते हैं
जोड़-तोड़ की इस दुनिया में
काम सभी के हम आते हैं
नहीं सफल के पीछे जाते
अपने ही स्वर में गाते हैं
यह न समझो
नहीं कूबत
फाँस हैं हम
बाँस हैं हम
.
चाली बनकर चढ़ जाते हैं
तम्बू बनकर तन जाते हैं
नश्वर माया हमें न मोहे
अरथी सँग मरघट जाते हैं
वैरागी के मन भाते हैं
लाठी बनकर मुस्काते हैं
निबल के साथी
उसीकी
आँस हैं हम
बाँस हैं हम
.
बन गेंड़ी पग बढ़वाते हैं
अगर उठें अरि भग जाते हैं
मिले ढाबा बनें खटिया
सबको भोजन करवाते हैं
थके हुए तन सो जाते हैं
सुख सपनों में खो जाते हैं
ध्वज लगा
मस्तक नवाओ
नि-धन का धन
काँस हैं हम
बाँस हैं हम
*

नवगीत

नवगीत:
समाचार है...
संजीव 'सलिल'
*
बैठ मुड़ेरे चिड़िया चहके'
समाचार है.
सोप-क्रीम से जवां दिख रही
दुष्प्रचार है...
*
बिन खोले- अख़बार जान लो,
कुछ अच्छा, कुछ बुरा मान लो.
फर्ज़ भुला, अधिकार माँगना-
यदि न मिले तो जिद्द ठान लो..
मुख्य शीर्षक अनाचार है.
और दूसरा दुराचार है.
सफे-सफे पर कदाचार है-
बना हाशिया सदाचार है....
पैठ घरों में टी. वी. दहके
मन निसार है...
*
अब भी धूप खिल रही उज्जवल.
श्यामल बादल, बरखा निर्मल.
वनचर-नभचर करते क्रंदन-
रोते पर्वत, सिसके जंगल..
घर-घर में फैला बजार है.
अवगुन का गाहक हजार है.
नहीं सत्य का चाहक कोई-
श्रम सिक्के का बिका चार है..
मस्ती, मौज-मजे का वाहक
असरदार है...
*
लाज-हया अब तलक लेश है.
चुका नहीं सब, बहुत शेष है.
मत निराश हो बढ़े चलो रे-
कोशिश अब करनी विशेष है..
अलस्सुबह शीतल बयार है.
खिलता मनहर हरसिंगार है.
मन दर्पण की धूल हटायें-
चेहरे-चेहरे पर निखार है..
एक साथ मिल मुष्टि बाँधकर
संकल्पित करना प्रहार है...
८-४-२०१७
*

नवगीत

नवगीत
धत्तेरे की
*
धत्तेरे की
चप्पलबाज।
*
पद-मद चढ़ा, न रहा आदमी
है असभ्य मत कहो आदमी
चुल्लू भर पानी में डूबे
मुँह काला कर
चप्पलबाज
धत्तेरे की
चप्पलबाज।
*
हाय! जंगली-दुष्ट आदमी
पगलाया है भ्रष्ट आदमी
अपना ही थूका चाटे फिर
झूठ उचारे
चप्पलबाज
धत्तेरे की
चप्पलबाज।
*
गलती करता अगर आदमी
क्षमा माँगता तुरत आदमी
गुंडा-लुच्चा क्षमा न माँगे
क्या हो बोलो
चप्पलबाज?
धत्तेरे की
चप्पलबाज।
*

समीक्षा ‘सरे राह’ -सुमनलता श्रीवास्तव

पुस्तक सलिलां-
‘सरे राह’ मुखौटे उतारती कहानियाॅ
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
[पुस्तक परिचय- सरे राह, कहानी संग्रह, डाॅं. सुमनलता श्रीवास्तव, प्रथम संस्करण २०१५, आकार २१.५ से.मी. x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी पेपरबैक लेमिनेटेड जैकट सहित, मूल्य १५० रु., त्रिवेणी परिषद प्रकाशन, ११२१ विवेकानंद वार्ड, जबलपुर, कहानीकार संपर्क १०७ इंद्रपुरी, नर्मदा मार्ग, जबलपुर।]
0
‘कहना’ मानव के अस्तित्व का अपरिहार्य अंग है। ‘सुनना’,‘गुनना’ और ‘करना’ इसके अगले चरण हैं। इन चार चरणों ने ही मनुष्य को न केवल पशु-पक्षियों अपितु सुर, असुर, किन्नर, गंधर्व आदि जातियों पर जय दिलाकर मानव सभ्यता के विकास का पथ प्रशस्त किया। ‘कहना’ अनुशासन और उद्दंेश्य सहित हो तो ‘कहानी’ हो जाता है। जो कहा जंाए वह कहानी, क्या कहा जाए?, वह जो कहे जाने योग्य हो, कहे जाने योग्य क्या है?, वह जो सबके लिये हितकर है। जो सबके हित सहित है वही ‘साहित्य’ है। सबके हित की कामना से जो कथन किया गया वह ‘कथा’ है। भारतीय संस्कृति के प्राणतत्वों संस्कृत और संगीत को हृदयंगम कर विशेष दक्षता अर्जित करनेवाली विदुषी डाॅ. सुमनलता श्रीवास्तव की चैथी कृति और दूसरा कहानी संग्रह ‘सरे राह’ उनकी प्रयोगधर्मी मनोवृत्ति का परिचाायक है।
विवेच्य कृति मुग्धा नायिका, पाॅवर आॅफ मदर, सहानुभूति, अभिलषित, ऐसे ही लोग, सेवार्थी, तालीम, अहतियात, फूलोंवाली सुबह, तीमारदारी, उदीयमान, आधुनिका, विष-वास, चश्मेबद्दूर, क्या वे स्वयं, आत्मरक्षा, मंजर, विच्छेद, शुद्धि, पर्व-त्यौहार, योजनगंधा, सफेदपोश, मंगल में अमंगल, सोच के दायरे, लाॅस्ट एंड फाउंड, सुखांत, जीत की हार तथा उड़नपरी 28 छोटी पठनीय कहानियों का संग्रह है।
इस संकलन की सभी कहानियाॅं कहानीकार कम आॅटोरिक्शा में बैठने और आॅटोरिक्शा सम उतरने के अंतराल में घटित होती हैं। यह शिल्यगत प्रयोग सहज तो है पर सरल नहीं है। आॅटोरिक्शा नगर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुॅंचाने में जो अल्प समय लेता है, उसके मध्य कहानी के तत्वों कथावस्तु, चरित्रचित्रण, पात्र योजना, कथेपकथन या संवाद, परिवेश, उद्देश्य तथा शैली का समावेश आसान नहीं है। इस कारण बहुधा कथावस्तु के चार चरण आरंभ, आरोह, चरम और अवरोह कां अलग-अलग विस्तार देे सकना संभव न हो सकने पर भी कहानीकार की कहन-कला के कौशल ने किसी तत्व के साथ अन्याय नहीं होने दिया है। शिल्पगत प्रयोग ने अधिकांश कहानियों को घटना प्रधान बना दिया है तथापि चरित्र, भाव और वातावरण यथावश्यक-यथास्थान अपनी उपस्थिति दर्शाते हैं।
कहानीकार प्रतिष्ठित-सुशिक्षित पृष्ठभूमि से है, इस कारण शब्द-चयन सटीक और भाषा संस्कारित है। तत्सम-तद्भव शब्दों का स्वाभविकता के साथ प्रयोग किया गया है। संस्कृत में शोधोपाधि प्राप्त लेखिका ने आम पाठक का ध्यानकर दैनंदिन जीवन में प्रयोग की जा रही भाषा का प्रयोग किया है। ठुली, फिरंगी, होंड़ते, गुब्दुल्ला, खैनी, हीले, जीमने, जच्चा, हूॅंक, हुमकना, धूरि जैसे शब्दकोष में अप्राप्त किंतु लोकजीवन में प्रचलित शब्द, कस्बाई, मकसद, दीदे, कब्जे, तनख्वाह, जुनून, कोफ्त, दस्तखत, अहतियात, कूवत आदि उर्दू शब्द, आॅफिस, आॅेडिट, ब्लडप्रैशर, स्टाॅप, मेडिकल रिप्रजेन्टेटिव, एक्सीडेंट, केमिस्ट, मिक्स्ड जैसे अंग्रेजी शब्द गंगो-जमनी तहजीब का नजारा पेश करते हैं किंतु कहीं-कहंी समुचित-प्रचलित हिंदी शब्द होते हुए भी अंग्रेजी शब्द का प्रयोग भाषिक प्रदूषण प्रतीत होतं है। मदर, मेन रोड, आफिस आदि के हिंदी पर्याय प्रचलित भी है और सर्वमान्य भी किंतु वे प्रयोग नहीं किये गये। लेखिका ने भाषिक प्रवाह के लिये शब्द-युग्मों चक्कर-वक्कर, जच्चा-बच्चा, ओढ़ने-बिछाने-पहनने, सिलाई-कढ़ाई, लोटे-थालियाॅं, चहल-पहल, सूर-तुलसी, सुविधा-असुविधा, दस-बारह, रोजी-रोटी, चिल्ल-पों, खोज-खबर, चोरी-चकारी, तरो-ताजा, मुड़ा-चुड़ा, रोक-टोक, मिल-जुल, रंग-बिरंगा, शक्लो-सूरत, टांका-टाकी आदि का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया है।
किसी भाषा का विकास साहित्य से ही होता है। हिंदी विश्वभाषा बनने का सपना तभी साकार कर सकती है जब उसके साहित्य में भाषा का मानक रूप हो। लेखिका सुशिक्षित ही नहीं सुसंस्कृत भी हैं, उनकी भाषा अन्यों के लिये मानक होगी। विवेच्य कृति में बहुवचन शब्दों में एकरूपता नहीं है। ‘महिलाएॅं’ में हिंदी शब्दरूप है तो ‘खवातीन’ में उर्दू शब्दरूप, जबकि ‘रिहर्सलों’ में अंग्रेजी शब्द को हिंदी व्याकरण-नियमानुसार बहुवचन किया ंगया है।
सुमन जी की इन कहानियों की शक्ति उनमें अंतर्निहित रोचकता है। इनमें ‘उसने कहा था’ और ‘ताई’ से ली गयी प्रेरणा देखी जा सकती है। कहानी की कोई रूढ़ परिभाषा नहीं हो सकती। संग्रह की हर कहानी में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में लेखिका और आॅटोरिक्शा है, सूत्रधार, सहयात्री, दर्शक, रिपोर्टर अथवा पात्र के रूप में वह घटना की साक्ष्य है। वह घटनाक्रम में सक्रिय भूमिका न निभाते हुए भी पा़त्र रूपी कठपुतलियों की डोरी थामे रहती है जबकि आॅटोेरिक्शा रंगमंच बन जाता है। हर कहानी चलचित्र के द्श्य की तरह सामने आती है। अपने पात्रों के माघ्यम से कुछ कहती है और जब तक पाठक कोई प्रतिकिया दे, समाप्त हो जाती है। समाज के श्वेत-श्याम दोनों रंग पात्रों के माघ्यम ेंसे सामने आते हैं।
अनेकता में एकता भारतीय समाज और संस्कृति दोनों की विशेषता है। यहाॅं आॅटोरिक्शा और कहानीकार एकता तथा घटनाएॅं और पात्र अनेकता के वाहक है। इन कहानियों में लघुकथा, संस्मरण, रिपोर्ताज और गपशप का पुट इन्हें रुचिकर बनाता है। ये कहानियाॅं किसी वाद, विचार या आंदोलन के खाॅंचे में नहीं रखी जा सकतीं तथापि समाज सुधार का भाव इनमें अंतर्निहित है। ये कहानियाॅं बच्चों नहीं बड़ों, विपन्नों नहीं संपन्नों के मुखौटों के पीछे छिपे चेहरों को सामने लाती हैं, उन्हें लांछित नहीं करतीं। ‘योजनगंधा’ और ‘उदीयमान’ जमीन पर खड़े होकर गगन छूने, ‘विष वास’, ‘सफेदपोश’, ‘उड़नपरी’, ‘चश्मेबद्दूर आदि में श्रमजीवी वर्ग के सदाचार, ‘सहानूभूति’, ‘ऐसे ही लोग’, ‘शुद्धि’, ‘मंगल में अमंगल’ आदि में विसंगति-निवारण, ‘तालीम’ और ‘सेवार्थी’ में बाल मनोविज्ञान, ‘अहतियात’ तथा ‘फूलोंवाली सुबह’में संस्कारहीनता, ‘तीमारदारी’, ‘विच्छेद’ आदि में दायित्वहीनता, ‘आत्मरक्षा’ में स्वावलंबन, ‘मुग्धानायिका’ में अंधमोह को केंद्र में रखकर कहानीकार ने सकारात्मक संदेष दिया है।
सुमन जी की कहानियों का वैशिष्ट्य उनमें व्याप्त शुभत्व है। वे गुण-अवगुण के चित्रण में अतिरेकी नहीं होतीं। कालिमा की न तो अनदेखी करती हैं, न भयावह चित्रण कर डराती हैं अपितु कालिमा के गर्भ में छिपी लालिमा का संकेत कर ‘सत-शिव-सुंदर’ की ओर उन्मुख होने का अवसर पाने की इच्छा पाठक में जगााती हैं। उनकी आगामी कृति में उनके कथा-कौशल का रचनामृत पाने की प्रतीक्षा पाठक कम मन में अनायास जग जाती है, यह उनकी सफलता है।
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- समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४ , salil.sanjiv@gmail.com

मुक्तिका अम्मी

मुक्तिका
अम्मी
संजीव 'सलिल'
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माहताब की जुन्हाई में
झलक तुम्हारी पाई अम्मी
दरवाजे, कमरे आँगन में
हरदम पडी दिखाई अम्मी
कौन बताये कहाँ गयीं तुम
अब्बा की सूनी आँखों में
जब भी झाँका पडी दिखाई
तेरी ही परछाईं अम्मी
भावज जी भर गले लगाती
पर तेरी कुछ बात और थी
तुझसे घर अपना लगता था
अब बाकी पहुनाई अम्मी
बसा सासरे केवल तन है
मन तो तेरे साथ रह गया
इत्मीनान हमेशा रखना-
बिटिया नहीं परायी अम्मी
अब्बा में तुझको देखा है
तू ही बेटी-बेटों में है
सच कहती हूँ, तू ही दिखती
भाई और भौजाई अम्मी.
तू दीवाली, तू ही ईदी
तू रमजान फाग होली है
मेरी तो हर श्वास-आस में
तू ही मिली समाई अम्मी
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दोहा सलिला

दोहा सलिला
संजीव सलिल
देवी इतनी प्रार्थना, रहे हमेशा होश
काम 'सलिल' करता रहे, घटे न किंचित जोश
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कौन किसी का सगा है, और पराया कौन?
जब भी चाहा जानना, उत्तर पाया मौन
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ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत0
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त
८-४-२०१०
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर
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दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ
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नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार
८-४-२०१३
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हास्य दोहे

हास्य दोहे:
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बेचो घोड़े-गधे भी, सोओ होकर मस्त.
खर्राटे ऊँचे भरो, सब जग को कर त्रस्त..
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दूर रहो उससे सदा, जो धोता हो हाथ.
गर पीछे पड़ जायेगा, मुश्किल होगा साथ..
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टाँग अड़ाना है 'सलिल', जन्म सिद्ध अधिकार.
समझ सको कुछ या नहीं, दो सलाह हर बार..
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देवी दर्शन कीजिए, भंडारे के रोज
देवी खुश हो जब मिले, बिना पकाए भोज
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हर ऊँची दूकान के, फीके हैं पकवान
भाषण सुन कर हो गया, बच्चों को भी ज्ञान
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नोट वोट नोटा मिलें, जब हों आम चुनाव
शेष दिनों मारा गया, वोटर मिले न भाव
८-४-२०१०
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संवस