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रविवार, 12 जनवरी 2020

बाल नवगीत

बाल नवगीत:
संजीव
*
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
.
धरती माँ की मीठी लोरी
सुनकर मस्ती खूब करी
बहिन उषा को गिरा दिया
तो पिता गगन से डाँट पड़ी
धूप बुआ ने लपक चुपाया
पछुआ लाई
बस्ता-फूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
.
जय गणेश कह पाटी पूजन
पकड़ कलम लिख ओम
पैर पटक रो मत, मुस्काकर
देख रहे भू-व्योम
कन्नागोटी, पिट्टू, कैरम
मैडम पूर्णिमा के सँग-सँग
हँसकर
झूला झूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
.
चिड़िया साथ फुदकती जाती
कोयल से शिशु गीत सुनो
'इकनी एक' सिखाता तोता
'अ' अनार का याद रखो
संध्या पतंग उड़ा, तिल-लड़ुआ
खा पर सबक
न भूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
.

यूनान कल से आज

यूनान कल से आज 
प्रागैतिहासिक सभ्यता
यूनान की मुख्य भूमि और उसके द्वीप लगभग ४००० वर्ष ईसा पूर्व बस चुके थे। ई.पू. दूसरी सहस्त्राब्दी तक यहाँ ईजियाई सभ्यता थी जहाँ से लोगों के मिस्र और एशिया माइनर से संबंध सुगम थे। १७ वीं शताब्दी ई.पू. में बाल्कन क्षेत्र की ओर से ग्रीस और पेलोपोनसस्‌ पर आक्रमण हुए। सभी आक्रमणकारी जातियाँ- एकियाई, आर्केडी, इपोलियन, अपोली और आयोनी- ग्रीक भाषाओं से परिचित थीं। ई.पू. १५०० वर्ष तक मिनोई प्रभाव में एकियाई जाति ने ग्रीस में सभ्यता का विकास किया। माइसीनी युग, हीरो युग और होमर युग इस काल के नाम हैं। एकियाई तथा अन्य ग्रीसवासियों के बीच ई.पू. १२ वीं शती में हुए ट्रोजन युद्ध, की कथा पर होमर ने अपने विश्वप्रसिद्ध काव्य 'इलियड और ओडिसी' लिखे। ई.पू. ११०० में डोरियाई जाति ने ग्रीस पर आक्रमण कर पुरानी सभ्यता नष्ट कर, अपना केंद्र पेलोपोनेसस्‌ बनाया। एकियाई लोगों में से कुछ उत्तरी पश्चिमी यूरोप की ओर भागे, कुछ ने दासवृत्ति अपना ली। आयोनी और अपोली, ईजियाई द्वीपसमूह और एशिया माइनर की ओर चले गए। ई.पू. १००० तक संपूर्ण ईजियाई क्षेत्र में ग्रीक भाषी बस चुके थे।
हेलेनिक राज्य
१०००-४९९ ई.पू. में ग्रीक नगर-राज्यों की स्थापना और जातिभेद चेतना का प्रादुर्भाव हुआ। राजा शासित हेलेनिक राज्य शनै: शनै: राजतंत्र में परिवर्तित हुए। कुलीनतंत्र में राजनीतिक समानता प्राय: नहीं थी। ६५० ई.पू. में सामाजिक और राजनतिक संघर्षों ने कुलीन तंत्र को उखाड़ फेंका और अधिनायकवादी शासन की स्थापना हुई। केवल स्पार्टी में कुलीन तंत्र बन सका। कुछ अधिनायकवादी शासकों ने कला, साहित्य, व्यापार और उद्योग की उन्नति की। अधिनायकवाद जनपीड़न कर ई.पू. ५०० तक मिट गया। ई.पू. ७५०-५०० तक व्यापारिक और राजनीतिक कारणों से इटली तथा सिसली के कई भागों में ग्रीकों ने उपनिवेश बसाए। इनके उपनिवेश व्यापार के प्रसार की दृष्टि से स्पेन और फ्रांस तक भी फैले। कुछ दिन तक ग्रीकों का प्रसार मिस्त्र की ओर रुका रहकर, किन्तु ७ वीं शताब्दी ई.पू. में व्यापार सुगम हो गया। वहाँ ग्रीकों ने 'नाक्रेतिस' नगर बसाया। इसके बाद थ्रोस आदि कई उपनिवेश बसे। ये उपनिवेश अपने मुख्य राज्य से केवल भावात्मक संबंध रखते हुए, राजनीतिक रूप से स्वतंत्र थे। केवल कुछ, जैसे एपिडाम्नस, पेलोपोनिया, अंब्रासिय आदि कोरिंथ के उपनिवेश, राजनीतिक रूप से स्वतंत्र नहीं थे। सिराक्यूज़ और बैजंटियम अत्यंत संपन्न उपनिवेश थे। सामान्य धार्मिक भावना के कारण सारे उपनिवेशों में एकता कायम रही। डेल्फी में अपोलो ग्रीकों का मुख्य धार्मिक केंद्र था। ७-६ शती ई.पू. का काल सांस्कृतिक विकास और बौद्धिक जागरण का काल था।
स्पार्टा
५०० ई.पू. तक स्पार्टा और एथेंस ग्रीस के दो बड़े नगरराज्य बने। स्पार्टा का शासन प्राचीन परिपाटीवाले कुलीनों के हाथ में था। एथेंस के शासक मध्यवर्गीय और प्रजातांत्रिक थे। ई.पू. ७ वीं शताब्दी तक स्पार्टा में संस्कृति, काव्य और कला की प्रचुर उन्नति हुई। वहाँ की शासनपद्धति अत्यंत कठोर थी। शिशु के उत्पन्न होते ही, राज्य उसे अपने संरक्षण में लेकर युद्ध की शिक्षा देता था। लाइकर्गस स्पार्टा का संविधान निर्माता था। शासनसूत्र के संचालन के लिये दो सदन होते थे, जिनके अध्यक्ष दो राजा होते थे। अंतिम निर्णय का अधिकार निम्न सदन को था। पाँच न्यायाधीशों (एफर) द्वारा कार्यकारिणी समिति, न्याय और अनुशासन का संचालन होता था। वे राजाओं की गतिविधि पर भी नियंत्रण रखते थे। सैनिक शक्ति द्वारा स्पार्टा ने पेलीपोनेसस्‌ के संपूर्ण नगर अपने अधिकार में कर लिए और पेलोपोनेशियाई संघ के नेता के रूप में इस नगर ने अधिकृत नगरराज्यों को भी कुलीन तंत्र स्वीकार करने को बाध्य किया। स्पार्टा की सामाजिक व्यवस्था और विधान के निर्माता लाइकगर्स ने ९०० ईपू मे स्पर्ता की संस्थाओ का विकास किया।
एथेंस
ई.पू. ६८३ में एथेंस से राजतंत्र का समूलोच्छेदन हुआ। 'सोलन पिसिस्ट्राटस' ने कुछ सीमा तक जनमत का सम्मान किया, इसके बाद इसागोरस (अभिजाततंत्रवादी) और क्लेइस्थेनीज (जनतंत्रवादी) के नेतृत्व में संघर्ष के बाद जनतांत्रिक पद्धति की विजय हुई। स्पार्टा ने एथेंस के प्रजातंत्र को उखाड़ फेंकने के अनेक प्रयत्न किए, किंतु एथेंस ज्यों का त्यों रहा। ४९९-६३८ ई.पू. में फारस से युद्ध और नगरराज्यों में परस्पर संघर्ष आदि प्रमुख घटनाएँ हुईं। ग्रीस के कई नगरराज्यों ने अपना स्थान बहुत प्रभावशाली बना लिया।
फारस से युद्ध
एशिया माइनर और कुछ द्वीपों के नगर लीडिया के सम्राट् क्रिसस के प्रभाव में आ गए थे। वह हेलेनिक संस्कृति का पोषक और एक उदार शासक था। उसने नगरवासियों की आर्थिक और बौद्धिक उन्नति में योग दिया। ५४६ ई.पू. में फारस के तत्कालीन भ्रासट साइरस ने क्रिसस के अधिकार से सारे ग्रीक नगर छीन लिए। ५१२ ई.पू. में उसका उत्तराधिकारी दारायुश (Darius) एशिया माइनर के अन्य नगरों को जीतता हुआ ग्रीस के निकट तक चढ़ आया। लेकिन एरिट्रीया और एटिका (अत्तिका) को जीतने के पश्चात्‌ एथेंस की सेना से मराथन के युद्ध में पराजित हुआ। ४८० ई.पू. में पारसी सम्राट् जरक्सीज ने पुन: ग्रीस पर आक्रमण किया। एथंस, स्पार्टा और पेलोपोनेशियाई संघ के संयुक्त प्रतिरोध के बावजूद भी ग्रीस हार गया। किंतु ग्रीस की जलसेना से फारस की सेनाओं को पीछे लौटने को बाध्य किया। एक वर्ष पश्चात्‌ ४७९ ई.पू. में ग्रीकों ने प्रत्याक्रमणकर फारस की सारी सेनाओं को पीछ्र खदेड़ दिया। यह युद्ध दीर्घकाल तक चलता रहा। इसकी समाप्ति चतुर्थ शती ई.पू. में सिकंदर की फारस पर विजय के साथ हुई।
एथेनी राज्य
अब तक एथेंस नगर ग्रीक सभ्यता का केंद्र बन चुका था। आयोनी ग्रीकों ने स्पार्टा के अधिकार से मुक्त होकर एथेंस का नेतृत्व स्वीकार किया। ४६१ ई.पू. में पेरिक्लीज ने जनतंत्र को बढ़ाया। यह जनतंत्र मूल यूनानी जनता के लिये सीमित था। शेष लोग दासों की कोटि में थे। पेरिक्लीज के नेतृत्वकाल में एथेंस की राजनतिक-आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी।
पेलोपोनेशियाई युद्ध
स्पार्टा और एथेंस के विचारों में बहुत भेद था। एथेंस मूलत: व्यापारिक शक्तिसंचय की प्रवृत्तिवाला उपनिवेशवादीसाम्राज्यवादी राज्य था और स्पार्टा ग्रीस के सभी नगरराज्यों का राजनीतिक नेतृत्व चाहता था। फलत: नेतृत्व के लिये इन दोनों तथा इनसे सबंधित नगर राज्यों में १० वर्ष से भी अधिक समय तक युद्ध हुआ। दोनों ओर धन जन की अपार हानि हुई। ४२१ ई.पू. में कुछ काल के लिये शांति संधि हुई, किंतु तीन वर्ष बाद दोनों पक्षों में पुन: युद्ध हुआ। इस बार एथेंस की भंयकर पराजय हुई, उसका अस्तित्व महत्वहीन हो गया। कोरिंथ और थीबीज जैसे नगरराज्य स्पार्टा से मिल गए। कुछ समय बाद स्पार्टा की नीति से क्षुब्ध होकर कोरिंथ, थीबीज और अर्गसि ने एथेंस से मिलकर स्पार्टा के विरुद्ध संधि की। किंतु स्पार्टा के फारस से संधि करने के फलस्वरूप एथेंस की संधि भंग हो गई और एशिया माइनर के ग्रीक नगर फारस के अधिकार में चले गए। ३७१ ई.पू. में स्पार्टा ने थीबीज के विरुद्ध युद्ध छेड़ा, किंतु हार कर इतिहास से मिट गया। थीबीज की शक्ति बढ़ने लगी थी। उसने भी अन्य नगरों के प्रति कठोर नीति से काम लिया। स्पार्टा एथेंस के बीच संधि हुई। ३६२ ई.पू. के बाद थीबीज का महत्व समाप्त सा हो गया।
यूनानी संस्कृति - दास प्रथा
युद्ध और अशांति के वातावरण में भी ई.पू. ५ वीं शताब्दी में एथेंस के नेतृत्व में ग्रीस में कला और साहित्य की प्रशंसनीय उन्नति हुई। पाथेंनान, प्रोलिया और हेफिस्टस के मंदिर आदि समृद्ध वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने उसी युग में प्रस्तुत हुए। फिदियस, मिरन और पॉलीक्ट्सि आदि प्रसिद्ध वास्तुकलाकार थे। चिकित्साजगत्‌ में हिपाक्रिटस के अन्वेषणों ने अनेक चिकित्साशास्त्रियों का मार्गदर्शन कराया। हिरैक्लिट्स, एंपिडाक्लीज और डिमाक्रिट्स (दिमोक्रितस) आदि दार्शनिकों ने तत्वचिंतन में महत्वपूर्ण योग दिया। शताब्दी के अंत में विश्व के महान्‌ दार्शनिक सुकरात का जन्म हुआ। क्रांतिकारी विचारों के कारण एथेंसवालों ने उन्हें ३९९ ई.पू. में विष दे दिया । हिरोडोटस को इतिहास का पिता कहा जाता है। थ्यूसीदाइदीज़ दूसरा महान्‌ इतिहासकार था, उसने पेलोपोनेशियन युद्ध का विस्तृत वृत्तांत प्रामाणिक रूप से लिखा। एक्लिज, सोफोक्लीज, यूरीपिदीज और अरिस्ताफेनीज के दु:खांत और सुखांत नाटक इसी समय लिखे गए । पिंडार और बकाइलिदीज ने राष्ट्रनायकों की प्रशस्ति में काव्यग्रंथ लिखे। इस युग में एथेंस ग्रीस में कला और साहित्य का नेता था। प्राचीन ग्रीस मुख्यत: एथेंस के इतिहास में दासप्रथा उल्लेखनीय है। इस संदर्भ में प्रजातांत्रिक पद्धति और दूसरी शासन पद्धतियों में विशेष भेद नहीं था। वर्तमान राजनीतिक सिद्धांत में 'श्रम के महत्व' को मुख्य स्थान प्राप्त हैं। प्राचीन सिद्धान्तों में 'श्रम' राजनीतिक अधिकारों की अयोग्यता का परिचायक था। कृछ काल तक तो हस्तकलाविदों की भी दासों की कोटि में रखा गया था। फिर भी अन्यराज्यों की अपेक्षा एथेंस में दासों की स्थिति अच्छी थी। एथेंस में इनके प्रति कुछ न्याय भी था।
मकदूनिया, सिकंदर और हेलेनी राज्य
इसी समय उत्तर ग्रीस में मकदूनिया नाम का एक शक्तिशाली राज्य उभर रहा था। ई.पू. ३५९ में फिलिप वहाँ का सम्राट् हुआ (दे. फिलिप द्वितीय)। अन्य ग्रीकी नगर राज्यों से मकदूनिया विजयी हुआ। कोरिंथ और थीबीज सैनिक अड्डे बन गए। फिलिपकी हत्या के बाद उसका पुत्र सिकंदर महान्‌ मकदूनिया का सम्राट् हुआ। सिकंदर ने ३३८ - १४५ ई.पू. सारे बिखरे हुए ग्रीस को अपने झंडे के नीचे एकत्र कर लिया। वह अन्य राज्यों की जीतता हुआ पंजाब (भारत) आकर लौट गया। ३२३ ई.पू. में बैबिलोन (बाबुल) में उसकी मृत्यु हुई। वह संपूर्ण विश्व में एक राज्य और एक संस्कृति देखने का इच्छुक था। सिकंदर की मृत्यु से उसका विस्तृत साम्राज्य छिन्न भिन्न हो गया। संघर्षो की लंबी श्रृखंला में तीन शक्तिशाली हेलेनी राज्य- ऐंटोगोनस्‌ के नेतृत्व में मकदूनिया, सेल्यूकिदों के नेतृत्व में एशिया माइनर तथा सीरिया और तोल्मियों के नेतृत्व में मिस्त्र उदित हुए। ई.पू. दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में एपिसर के सम्राट् पाइसर ने रोमनों के विरुद्ध इटली पर आक्रमण किया। मकदूनिया के सम्राट् फिलिप ने इस युद्ध में हस्तक्षेप किया था। इस घटना को प्रथम मकदूनियाई युद्ध कहा जाता है। द्वितीय मकदूनियाई युद्ध (२०१-१९७ ई.पू.) में फिलिप की पराजय हुई। ग्रीस के अन्य राज्य रोमनों ने फिलिप के अधिकार से मुक्त करवा दिए। ई.पू. १९२ से १८९ तक स्थिति बदल गई। इतालियों और रोमनों के बीच युद्ध में फिलिप ने रोमनों का साथ दिया। परिस्थितियाँ इस प्रकार उत्पन्न होती गईं कि मकदूनियाँ ने दो युद्ध और लड़े। ई.पू. १४६ में यह रोम से भी पराजित हुआ। रोम से सारे ग्रीस को केंद्रित कर मकदूनिया में शासक नियुक्त किया।
रोमन काल (१४६ ई.पू.)
रोम ने ग्रीस और मकदूनिया पर आधिपत्य के साथ सिकंदर द्वारा विजित पूर्वी प्रदेशों पर भी अधिकार जमा लिया। एथेंस में कला और संस्कृति की उन्नति रोमनों के काल में ज्यों की त्यों रही। जस्तिनियन ने एथेंस के बौद्धिक उन्नयन में हस्तक्षेप कर सिकंदरिया को दार्शनिक शिक्षाओं का केंद्र बनाया। इससे रोम ने भी ग्रीस कला और संस्कृति से बहुत कुछ लिया। कुस्तुंतुनिया राजधानी बनी। थिडोसियस की मृत्यु के पश्चात्‌ पूरा साम्राज्य दो भागों में बँटा। पश्चिमी ग्रीस के पतन (१७६) के पश्चात्‌ पूर्वार्ध भाग बैजंटाइन साम्राज्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। किंतु जब मुसलमानों ने कुस्तुंतुनिया पर अधिकार किया तो यह राज्य भी समाप्त हो गया।
बैंजंटाइन साम्राज्य
यह राज्य नौकरशाही से आरंभ हुआ। इस साम्राज्य का पूरा इतिहास, अपनी रक्षा के लिये बाल्कन, दक्षिणी इटली और एशिया माइनर से हुए युद्धों का इतिहास है। विजीगोथिक, गोथिक और बल्गोरियन जातियों के भी आक्रमण हुए। सम्राट् जस्तिनियन ने वह भूमि फिर पाने का प्रयत्न किया। धार्मिक मतभेदों के कारण सन्‌ ८०० में, जब चार्लमैन रोम का सम्राट् हुआ, कुस्तुंतुनिया और रोम अलग अलग हो गए । नवीं शताब्दी के अंत में सम्राट निकेफोरस फोकास द्वितीय और जोन जिमिसेस ने राज्य को किसी प्रकार बचाने की चेष्टा की।' इसके बाद सेलजुक तुर्को के आक्रमणों ने राज्य को अतिशय शक्तिहीन बना दिया। १३ वीं शताब्दी से लेकर १५ वीं शताब्दी के आरंभ तक इस साम्राज्य में बड़ी उथल पुथल हुई। अंत में आटोमन (उस्मानी) तुर्कों ने १४५३ में कुस्तुंतुनिया पर अधिकार कर लिया। शनै: शनै: संपूर्ण ग्रीस पर उनका अधिकार हो गया।
आधुनिक यूनान
फ्रांस की क्रांति और तुर्क शासन के क्रमिक पतन आदि की घटनाओं से और अन्य देशों में बसे ग्रीकी लोगों की समृद्धि से ग्रीस के नेताओं में तुर्कों से अपने देश को मुक्त कराने की इच्छा जगी। रूस, ब्रिटेन और फ्रांस के उत्साहित करने पर वहाँ की जनता ने तुर्को के विरुद्ध सन्‌ १८२१ से १८२९ तक संघर्ष कर ग्रीस को एक स्वतंत्र राष्ट्र बना लिया। बवारिया का राजकुमार आथो सन्‌ १८३२ में ओटो प्रथम के नाम से सम्राट् बनाया गया। दो वर्ष पश्चात्‌ एथेंस नगर देश की राजधानी बना। सम्राट् ओटो की व्यक्तिगत नीतियों से क्षुब्ध होकर वहाँ की जनता ने सन्‌ १८४३ में उसके विरुद्ध आंदोलन करके संसदीय परंपरा कायम की। २० मार्च १८४४ को जनतंत्रवादी ग्रीस का पहला संविधान बना। इसमें सम्राट् पद की पूर्णतया समाप्ति नहीं थी। डेनमार्क का राजकुमार विलियम जार्ज १८६३ में ओटो का उत्तराधिकारी हुआ। दूसरी बार के बने संविधान में सारी राजनीतिक शक्ति सम्राट् के हाथ से निकलकर जन प्रतिनिधियों के हाथ में केंद्रित हो गई। १८६९ में ब्रिटिश सरकार ने आयोनी द्वीपों को भी ग्रीस राज्य में मान लिया। १८९७ में ग्रीस, क्रीट पर आधिपत्य जमाने के लोभ में टर्की से पराजित हुआ। कुछ बड़ी शक्तियों के हस्तक्षेप से क्रीट स्वायत्त शासन की इकाई बना और टर्की का आधिपत्य समाप्त हो गया। कुछ सैन्य अधिकारियों के ग्रीस की साम्राज्यवृद्धि की नीति के विरुद्ध विद्रोह को तत्कालीन प्रधान मंत्री एलूथीरिथस बेनीजेलास ने कुशलता से दबा दिया।

प्रथम विश्वयुद्ध में ग्रीस तटस्थ रहा। सम्राट् अलेक्जंडर की मृत्यु (१९२०) के बाद संसदीय निर्वाचन में बेनीजेलास दल की हार हुई। १९२२ में सम्राट् कांस्टैंटिन ने एशिया माइनर के अल्पसंख्यक ग्रीक नगरों को मुक्त कराने के लिये टर्की के विरुद्ध युद्ध किया, किंतु पराजित हुआ। बाद में परस्पर नगरों की अदला बदली हो गई। बेनीजेलास दल के आंदोलन ने १९२४ से 1935 तक जनतंत्र कायम रखा किंतु १९३५ में पुन: राजशाही की विजय हुई। १९३६ में जनतांत्रिक पद्धति का समूलोच्छेदन हुआ और वाक्स्वातंत््रय, जनसभाओं और राजनीतिक संगठनों पर रोक लगा दी। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यहाँ भी राष्ट्रीय समाजवादी जर्मनी की तरह अधिनायकवाद था। दोनों विश्वयुद्धों के बीच ग्रीस बाल्कन राष्ट्रों में सहयोग के लिये सक्रिय था। १९३०में पहला बाल्कन सम्मेलन एथेंस में हुआ। १९४० में इटली को युद्धसंबंधी सुविधा न प्रदान करने पर इटली ने ग्रीस पर आक्रमण कर दिया। प्रारंभिक असफलताओं के बाद ग्रीस ने इटालियन सेनाओं को अल्बानिया में खदेड़ दिया और लगभग २०,००० सैनिक बंदी बना लिए। ग्रेट ब्रिटेन ने उसे अल्बानिया छोड़कर हट जाने के लिये बाध्य किया। जर्मनी ने ब्रिटेन और ग्रीस का संबंध देखकर ग्रीस को रौंद डाला और दो सप्ताह में क्रीट पर भी जर्मनी का झंडा फहरा गया। सन्‌ १९४१ ओर उसके बाद ग्रीस में अनेक छोटे बड़े राजनीतिक संगठन हुए। इनमें बहुतों के पास कोई निश्चय कार्यक्रम नहीं था ब्रिटिश प्रतिनिधियों के साथ १९४३ में राजनीतिक दलों के नेताओं ने तय किया कि स्वस्थ जनमत तैयार होने के पूर्व तक सत्ता के अधिकार के लिये सम्राट् की नियुक्ति होनी चाहिए। राजनीतिक संगठनों ने सम्राट् को अपना सहयोग दिया। किंतु आगे चलकर इन दोनों में सत्ता के लिये संघर्ष हुआ। संघर्ष के लंबे काल में ब्रिटिश सेनाओं को हस्तक्षेप करना पड़ा। शक्तिशाली दल 'नेशनल लिबरेशन फ्रंट' का भी प्रभाव बहुत क्षीण हो गया। फिर भी संघर्ष कम नहीं हुए। एथेंस में रक्तरंजित क्रांति हुई। अंततोगत्वा सोफोलिस के निर्देशन में सारे केंद्रीय गुटों की सम्मिलित सरकार बनी। मार्च, १९४६ में आम चुनाव हुए, संसद् में अनदार दल का बहुमत हुआ। सम्राट् जार्ज द्वितीय की मृत्यु पर उसका भाई पाल प्रथम शासनाध्यक्ष हुआ। वह बहुत अंशों तक प्रभावशाली सिद्ध हुआ, यहाँ तक कि कुछ उदारदलीय भी उसके पक्ष में सम्मिलित हो गए। तत्कालीन ग्रीक सरकार के विरुद्ध १९४७ में गृहयुद्ध छिड़ा। विद्रोही जनता सरकार का संगठन जनरल मारकास वाफिया दीस की अध्यक्षता में चाहती थी। इनकी अल्बानिया, यूनोस्लाविया और बल्गेरिया से सहायता मिलती थी। मार्च, १९४८ में यह विद्रोह दबाया जा सका, किंतु इससे धन जन की अपार क्षति हुई।

इस समय ग्रीस में औद्योगिक प्रगति कुछ अंशों में हुई, किंतु राजनीतिक और सामाजिक स्थिति निराशापूर्ण रही। सितंबर, १९४७ से नवंबर, १९४९ तक दस सरकारें बदलीं। पैपागस के नेतृत्व में रैली दल के बहुमत में आने पर कुछ जन अधिकारों में वृद्धि हुई और राजनीति में स्थिरता आई। संयुक्त राज्य अमरीका की सहायता में न्यूनता की गई। फिर भी देश की अच्छी उन्नति हुई। रूसी गुट से निकलने के बाद यूगोस्लाविया से उसके संबंध अच्छे हुए। १९५२ में टर्की के साथ ग्रीस नाटो (नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) का सदस्य हुआ। फरवरी, १९५३ में यूगोस्लाविया टर्की और ग्रीस में पारस्परिक सहयोग और सुरक्षा की संधि हुई। १९५२ में ग्रीस और बल्गेरिया के बीच सीमा विवाद हुआ, किंतु ग्रीस ने अपनी आंतरिक राजनीति में साम्यवाद को कभी पनपने नहीं दिया। १९५४ में एथेंस और साइप्रस में ब्रिटिश हस्तक्षेप के विरुद्ध विद्रोह भड़का। अंत में, ब्रिटिश हस्तक्षेप का मामला संयुक्त राष्ट्रसंघ में विचारार्थ पेश किया गया। १९५९ में लंदन-ज्यूरिख समझौते के अनुसार साइप्रस समस्या के प्रस्ताव द्वारा तुर्की और ग्रीस के संबंधों में स्थिरता आई। नवंबर, १९६२ में ग्रीस यूरोपीय सम्मिलित बाजार में शामिल हुआ।
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सरस्वती वंदना - मोहन शशि

सरस्वती वंदना
मोहन शशि

















जन्म - १ अप्रैल १९३७, जबलपुर।
आत्मज - स्मृति शेष छाब्रनि देवी - स्मृतिशेष कालीचरण यादव।
जीवन संगिनी - श्रीमती राधा यादव।
संप्रति - प्रखर पत्रकार दैनिक नवभारत, दैनिक भास्कर जबलपुर, सूत्रधार मिलन।
प्रकाशन - काव्य संग्रह सरोज, तलाश एक दाहिने हाथ की, राखी नहीं आई, हत्यारी रात, शक्ति साधना, दुर्गा महिमा, अमिय, देश है तो सुनो, जान हैं बेटियाँ, बेटे से बेटी भली, जगो बुंदेला जगे बुंदेली।
उपलब्धि - वर्ल्ड यूथ कैंप युगोस्लाविया में सचिव, हिंदी काव्य पथ पर सुवर्णिक पदक, जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद परकारिता पुरस्कार प्रथम विजेता, शताधिक साहित्यिक सम्मान।
संपर्क - गली २, शांति नगर, दमोह नाका, जबलपुर ४८२००२ मध्य प्रदेश।
चलभाष - ९४२४६५८९१९।
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माँ वाणी मधुमय कर वाणी।
जय जय जय माँ वीणापाणी।।

जयति-जयति जय सुर की सागर,
मात ज्ञान की भर दो गागर।
बुद्धि विवेक ज्ञान दो माता!,
जई-जयति सुख-शांति प्रदाता।
टेर सुनो माँ! जग कल्याणी!
जय जय जय माँ वीणापाणी।।

चाह नहीं तुलसी बन जाऊँ,
न 'कबीर' निर्गुण पथ पाऊँ।
न 'दिनकर' , न बनूँ 'निराला',
जुगनू सा मन भरो उजाला।
मात! विराजो 'शशि' की वाणी
जय जय जय माँ वीणापाणी।।
***

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
दर्पण का दिल देखता
कहिए, जग में कौन?
.
आप न कहता हाल
भले रहे दिल सिसकता
करता नहीं खयाल
नयन कौन सा फड़कता?
सबकी नज़र उतारता
लेकर राई-नौन
.
पूछे नहीं सवाल
नहीं किसी से हिचकता
कभी न देता टाल
और न किंचित ललकता
रूप-अरूप निहारता
लेकिन रहता मौन
.
रहता है निष्पक्ष
विश्व हँसे या सिसकता
सब इसके समकक्ष
जड़ चलता या फिसलता
माने सबको एक सा
हो आधा या पौन

(मुखड़ा दोहा, अन्तरा सोरठा)

शनिवार, 11 जनवरी 2020

लघुकथा: निपूती भली थी

लघुकथा:
निपूती भली थी
-आचार्य संजीव 'सलिल'
*
बापू के निर्वाण दिवस पर देश के नेताओं, चमचों एवं अधिकारियों ने उनके आदर्शों का अनुकरण करने की शपथ ली. अख़बारों और दूरदर्शनी चैनलों ने इसे प्रमुखता से प्रचारित किया.

अगले दिन एक तिहाई अर्थात नेताओं और चमचों ने अपनी आँखों पर हाथ रख कर कर्तव्य की इति श्री कर ली. उसके बाद दूसरे तिहाई अर्थात अधिकारियों ने कानों पर हाथ रख लिए, तीसरे दिन शेष तिहाई अर्थात पत्रकारों ने मुँह पर हाथ रखे तो भारत माता प्रसन्न हुई कि देर से ही सही इन्हे सदबुद्धि तो आई.
उत्सुकतावश भारत माता ने नेताओं के नयनों पर से हाथ हटाया तो देखा वे आँखें मूंदे जनगण के दुःख-दर्दों से दूर सता और सम्पत्ति जुटाने में लीन थे. दुखी होकर भारत माता ने दूसरे बेटे अर्थात अधिकारियों के कानों पर रखे हाथों को हटाया तो देखा वे आम आदमी की पीडाओं की अनसुनी कर पद के मद में मनमानी कर रहे थे. नाराज भारत माता ने तीसरे पुत्र अर्थात पत्रकारों के मुँह पर रखे हाथ हटाये तो देखा नेताओं और अधिकारियों से मिले विज्ञापनों से उसका मुँह बंद था और वह दोनों की मिथ्या महिमा गा कर ख़ुद को धन्य मान रहा था.
अपनी सामान्य संतानों के प्रति तीनों की लापरवाही से क्षुब्ध भारत माता के मुँह से निकला- 'ऐसे पूतों से तो मैं निपूती ही भली थी.
* * * * *

लावणी - पुस्तक मेला

लावणी
*
छंद विधान: यति १६-१४, समपदांती द्विपदिक मात्रिक छंद, पदांत नियम मुक्त।
पुस्तक मेले में पुस्तक पर, पाठक-क्रेता गायब हैं।
थानेदार प्रकाशक कड़ियल, विक्रेतागण नायब हैं।।
जहाँ भीड़ है वहाँ विमोचन, फोटो ताली माला है।
इंची भर मुस्कान अधर पर, भाषण घंटों वाला है।।
इधर-उधर ताके श्रोता, मीठा-नमकीन कहाँ कितना?
जितना मिलना माल मुफ्त का, उतना ही हमको सुनना।।
फोटो-सेल्फी सुंदरियों के, साथ खिंचा लो चिपक-चिपक।
गुस्सा हो तो सॉरी कह दो, खोज अन्य को बिना हिचक।।
मुफ्त किताबें लो झोला भर, मगर खरीदो एक नहीं।
जो पढ़ने को कहे समझ लो, कतई इरादे नेक नहीं।।
हुई देश में व्याप्त आजकल, लिख-छपने की बीमारी।
बने मियाँ मिट्ठू आपन मुँह, कविगण करते झखमारी।।
खुद अभिनंदन पत्र लिखा लो, ले मोमेंटो श्रीफल शाल।
स्वल्पाहार हरिद्रा रोली, भूल न जाना मल थाल।।
करतल ध्वनि कर चित्र खींच ले, छपवा दे अख़बारों में।
वह फोटोग्राफर खरीद लो, सज सोलह सिंगारों में।।
जिम्मेदारी झोंक भाड़ में, भूलो घर की चिंता फ़िक्र।
धन्य हुए दो ताली पाकर, तरे खबर में पाकर ज़िक्र।।
***
११.१.२०१९

नवगीत

नवगीत 
*
भीड़ का हिस्सा नहीं
छाँव हूँ मैं, धूप भी हूँ
खेत हूँ मैं, कूप भी हूँ
महल का ठस्सा नहीं
लोक हूँ मैं स्वाभिमानी
देशप्रेमी आत्मदानी
वायवी किस्सा नहीं
खींच कर तृष्णा बुझाओ
गले बाँधो, मुक्ति पाओ
कसूरी रस्सा नहीं
भाग्य लिखता कर परिश्रम
बाँध मुट्ठी, आँख रख नम
बेतुका घिस्सा नहीं
***

शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

नवगीत

नवगीत:
*
सत्याग्रह के नाम पर.
तोडा था कानून
लगा शेर की दाढ़ में
मनमानी का खून
*
बीज बोकर हो गये हैं दूर
टीसता है रोज ही नासूर
तोड़ते नेता सतत कानून
सियासत है स्वार्थ से भरपूर
.
भगतसिंह से किया था अन्याय
कौन जाने क्या रहा अभिप्राय?
गौर तन में श्याम मन का वास
देश भक्तों को मिला संत्रास
.
कब कहाँ थे खो गये सुभाष?
बुने किसने धूर्तता के पाश??
समय कैसे कर सकेगा माफ़?
वंश का ही हो न जाए नाश.
.
तीन-पाँच पढ़ते रहे
अब तक जो दो दून
समय न छोड़े सत्य की
भट्टी में दे भून
*
नहीं सुधरे पटकनी खाई
दाँत पीसो व्यर्थ मत भाई
शास्त्री जी की हुई क्यों मौत?
अभी तक अज्ञात सच्चाई
.
क्यों दिये कश्मीरियत को घाव?
दहशतों का बढ़ गया प्रभाव
हिन्दुओं से गैरियत पाली
डूबा ही दी एकता की नाव
.
जान की बाजी लगाते वीर
जीतते हैं युद्ध सहकर पीर
वार्ता की मेज जाते हार
जमीं लौटा भोंकते हो तीर
.
क्यों बिसराते सत्य यह
बिन पानी सब सून?
अब तो बख्शो देश को
'सलिल' अदा कर नून
*

लघुकथा


२०१८ की लघुकथाएँ: २
समानाधिकार
*
"माय लार्ड! मेरे मुवक्किल पर विवाहेतर अवैध संबंध बनाने के आरोप में कड़ी से कड़ी सजा की माँग की जा रही है। उसे धर्म, नैतिकता, समाज और कानून के लिए खतरा बताया जा रहा है। मेरा निवेदन है कि अवैध संबंध एक अकेला व्यक्ति कैसे बना सकता है? संबंध बनने के लिए दो व्यक्ति चाहिए, दोनों की सहभागिता, सहमति और सहयोग जरूरी है। यदि एक की सहमति के बिना दूसरे द्वारा जबरदस्ती कर सम्बन्ध बनाया गया होता तो प्रकरण बलात्कार का होता किंतु इस प्रकरण में दोनों अलग-अलग परिवारों में अपने-अपने जीवन साथियों और बच्चों के साथ रहते हुए भी बार-बार मिलते औए दैहिक सम्बन्ध बनाते रहे - ऐसा अभियोजन पक्ष का आरोप है।
भारत का संविधान भाषा, भूषा, क्षेत्र, धर्म, जाति, व्यवसाय या लिंग किसी भी अधर पर भेद-भाव का निषेध कर समानता का अधिकार देता है। यदि पारस्परिक सहमति से विवाहेतर दैहिक संबंध बनाना अपराध है तो दोनों बराबर के अपराधी हैं, दोनों को एक सामान सजा मिलनी चाहिए अथवा दोनों को दोष मुक्त किया जाना चाहिए।अभियोजन पक्ष ने मेरे मुवक्किल के साथ विवाहेतर संबंध बनानेवाली के विरुद्ध प्रकरण दर्ज नहीं किया है, इसलिए मेरे मुवक्किल को भी सजा नहीं दी जा सकती।
वकील की दलील पर न्यायाधीश ने कहा- "वकील साहब आपने पढ़ा ही है कि भारत का संविधान एक हाथ से जो देता है उसे दूसरे हाथ से छीन लेता है। मेरे सामने जिसे अपराधी के रूप में पेश किया गया है मुझे उसका निर्णय करना है। जो अपराधी के रूप में प्रस्तुत ही नहीं किया गया है, उसका विचारण मुझे नहीं करना है। आप अपने मुवक्किल के बचाव में तर्क दे पर संभ्रांत महिला और उसके परिवार की बदनामी न हो इसलिए उसका उल्लेख न करें।"
अपराधी को सजा सुना दी गयी और सिर धुनता रह गया समानाधिकार।
**** salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८ ****

नव वर्ष

संजीव ने 5 साल पहले की एक याद साझा की है.

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
लोकतंत्र का
पंछी बेबस
.
नेता पहले डालें दाना
फिर लेते पर नोच
अफसर रिश्वत गोली मारें
करें न किंचित सोच
व्यापारी दे
नशा रहा डँस
.
आम आदमी खुद में उलझा
दे-लेता उत्कोच
न्यायपालिका अंधी-लूली
पैरों में है मोच
ठेकेदार-
दलालों को जस
.
राजनीति नफरत की मारी
लिए नींव में पोच
जनमत बहरा-गूँगा खो दी
निज निर्णय की लोच
एकलव्य का
कहीं न वारिस

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
रब की मर्ज़ी
डुबा नाखुदा
गीत गा रहा
.
किया करिश्मा कोशिश ने कब?
काम न आयी किस्मत, ना रब
दुनिया रिश्ते भूल गयी सब
है खुदगर्ज़ी
बुला, ना बुला
मीत भा रहा
.
तदबीरों ने पाया धोखा
तकरीरों में मिला न चोखा
तस्वीरों का खाली खोखा
नाता फ़र्ज़ी
रहा, ना रहा
जीत जा रहा
.
बादल गरजा दिया न पानी
बिगड़ी लड़की राह भुलानी
बिजली तड़की गिरी हिरानी
अर्श फर्श को
मिला, ना मिला
रीत आ रहा

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
उम्मीदों की फसल
उगना बाकी है
.
अच्छे दिन नारों-वादों से कब आते हैं?
कहें बुरे दिन मुनादियों से कब जाते हैं?
मत मुगालता रखें जरूरी खाकी है
सत्ता साध्य नहीं है
केवल साकी है
.
जिसको नेता चुना उसीसे आशा है
लेकिन उसकी संगत तोला-माशा है
जनप्रतिनिधि की मर्यादा नापाकी है
किससे आशा करें
मलिन हर झाँकी है?
.
केंद्रीकरण न करें विकेन्द्रित हो सत्ता
सके फूल-फल धरती पर लत्ता-पत्ता
नदी-गाय-भू-भाषा माँ, आशा काकी है
आँख मिलाकर
तजना ताका-ताकी है

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
मन मीरां तन राधिका,तरें जपें घनश्याम।
पूछ रहे घनश्याम मैं जपूँ कौन सा नाम?
*
जिसको प्रिय तम हो गया, उसे बचाए राम।
लक्ष्मी-वाहन से सखे!, बने न कोई काम।।
*
प्रिय तम हो तो अमावस में मत बालो दीप।
काला कम्बल ओढ़कर, काजल नैना लीप।।
*
प्रियतम बिन कैसे रहे, मन में कहें हुलास?
विवश अधर मुस्का रहे, नैना मगर उदास।।
*
चाह दे रही आह का, अनचाहा उपहार।
वाह न कहते बन रहा, दाह रहा आभार।।
*
बिछुड़े आनंदकंद तो, छंद आ रहा याद।
बेचारा कब से करे, मत भूलो फरियाद।।
*
निठुर द्रोण-मूरत बने, क्यों स्नेहिल संजीव।
सलिल सलिल सा तरल हो, मत करिए निर्जीव।।

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
छोडो हाहाकार मियाँ!
.
दुनिया अपनी राह चलेगी
खुदको खुद ही रोज छ्लेगी
साया बनकर साथ चलेगी
छुरा पीठ में मार हँसेगी
आँख करो दो-चार मियाँ!
.
आगे आकर प्यार करेगी
फिर पीछे तकरार करेगी
कहे मिलन बिन झुलस मरेगी
जीत भरोसा हँसे-ठगेगी
करो न फिर भी रार मियाँ!
.
मंदिर में मस्जिद रच देगी
गिरजे को पल में तज देगी
लज्जा हया शरम बेचेगी
इंसां को बेघर कर देगी
पोंछो आँसू-धार मियाँ!

१०-१-२०१५ 

सोरठा

सोरठा
मन बैठा था मौन, लिखवाती संगत रही।
किसका साथी कौन?, संग खाती पंगत रही।।
*

लघुकथा- औरतों की उन्नति

लघुकथा-

औरतों की उन्नति
*
अपने लेखन की प्रशंसा सुन मित्र ने कहा - 'आप सबसे प्रशंसा पाकर मन प्रसन्न होता है किंतु मेरे पति प्राय: कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते। मेरा ख़याल है कि उन्हें मेरा लिखना पसंद नहीं है परन्तु आप कहते हैं कि ऐसा नहीं है। यदि उन्हें मेरा लिखना औए मेरा लिखा अच्छा लगता है तो यह जानकर मुझे ख़ुशी और गौरव ही अनुभव होगा। मुझे उनकी जो बात अच्छी लगती है मैं कह देती हूँ, वे क्यों नहीं कहते?'

"क्या उन्होंने कभी आपको रोका, अप्रसन्नता व्यक्त की या आपके कार्य में बाधक हुए?"

सोचते हुए मित्र ने कहा - 'नहीं, इसके विपरीत सासू माँ द्वारा मुझे कोई काम बताने पर खुद करने लगते हैं और मुझे निकलने का अवसर उपलब्ध करा देते हैं। मेरे माँगने से पहले ही मेरी अलमारी में यथावश्यक धन रख देते हैं।' 

"तब तो उनका समर्थन आपके साथ है ही, फिर भी शिकायत?"

'क्यों नहीं हो? वे मेरे साथ क्यों नहीं आते? जब बुलाती हूँ तो चालक को गाड़ी लेकर भेज देते हैं।'

"आपकी सब सुविधा का ध्यान रखते हैं, सहयोग भी करते हैं। फिर तो आपको शिकायत नहीं होना चाहिए। उनकी रूचि साहित्य में नहीं होगी इसलिए नहीं आते।"      

'भाड़ में जाए उनकी रूचि, उन्हें मेरा ध्यान रखना चाहिए। उनकी पत्नी मैं हूँ। मुझे किसी के बारे में कुछ कहना हो तो किससे कहूँ? किसी को कैसे बताऊँ की वो मेरे कितना ध्यान रखते हैं?'

" यह बताने की जरूरत ही क्या है?"                                                                                                                                                             
' आप सब आदमी लोग एक जैसे होते हैं, आपको औरतों की खुशियों का ख्याल ही नहीं होता।'

"आप भी तो उनके संगीत कार्यक्रम में नहीं जातीं। "

'मैं क्यों जाऊँ? ये तो निठल्लों के शौक हैं। काम न काज, बैठे-बैठे तार टकराते रहो। गजब ये कि दूसरे निठल्ले बैठे वाह वाह करते रहते हैं।''

"तब तो हिसाब बराबर हो गया न?"

'अरे वाह, ऐसे कैसे हो गया हिसाब बराबर? उनका कर्तव्य है कि मेरा साथ दें। मैं उनके बेकार के शौक में समय क्यों बर्बाद करूँ? मेरे पास पहले ही समय की कमी है पर उन्हें तो सब छोड़कर पहले मेरे साथ आना ही चाहिए न? आप सब मर्द एक जैसे होते हैं, औरतों की उन्नति नहीं चाहते।' मैं कुछ बोल पाता इसके पहले ही आक्रोश भरे स्वर में फुंफकारती हुई वे सभागार में प्रवेश कर गईं।    

***

मुक्तक

एक मुक्तक
मन जी भर करता रहा, था जिसकी तारीफ
उसने पल भर भी नहीं, कभी करी तारीफ
जान-बूझ जिस दिन नहीं, मन ने की तारीफ
उस दिन वह उन्मन मना, कर बैठी तारीफ

*

हिंदी आरती

हिंदी आरती
*
भारती भाषा प्यारी की।
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
वर्ण हिंदी के अति सोहें,
शब्द मानव मन को मोहें।
काव्य रचना सुडौल सुन्दर
वाक्य लेते सबका मन हर।
छंद-सुमनों की क्यारी की
आरती हिंदी न्यारी की।।
*
रखे ग्यारह-तेरह दोहा,
सुमात्रा-लय ने मन मोहा।
न भूलें गति-यति बंधन को-
न छोड़ें मुक्तक लेखन को।
छंद संख्या अति भारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
विश्व की भाषा है हिंदी,
हिंद की आशा है हिंदी।
करोड़ों जिव्हाओं-आसीन
न कोई सकता इसको छीन।
ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

भगवती प्रसाद देवपुरा

भगवती प्रसाद देवपुरा
जन्म - १३ - १० १९२७ जहाजपुर, भीलवाड़ा।
आत्मज - रतनकुँवर - लक्ष्मीचंद्र देवपुरा।
पत्नी - लक्ष्मी देवी देवपुरा।
शिक्षा - एम्. ए., बी. एड.,  साहित्यरत्न।
संप्रति - शिक्षा प्रसार अधिकारी। प्रधानमंत्री साहित्य मंडल नाथद्वारा। सभापति हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग।
पुस्तकें - १. श्री नाथद्वारा दर्शन, २. सुदर्शन कवच, ३. प्रभातिया  संग्रह, ४. मुन्ने का कोट, ५. अंतिम उत्तर, ६. दहेज का दानव, ७. उपकार कबूतर का, ८. अंरेजी हटाओ आंदोलन, ९. सांप का बदला, १०. सुख की घड़ियाँ, ११. बलिदान पुरस्कार, १२. साहब की कृतज्ञता, १३. ग्लानि और त्याग, १४. मौनी बाबा की करतूत
संपादन - १. अष्ट छाप स्मृति ग्रन्थ,  २. गुसाईं विट्ठलदास स्मृति ग्रन्थ, ३. गो. हरिराय स्मृति ग्रन्थ, ४. गो. गोकुलनाथ स्मृति ग्रन्थ, ५. श्रीनाथ जी अंक,  ६. हीरक जयंती  ग्रंथ, ७. महाकवि बृजकोकिल नंददास, ८. विश्वकवि गो. तुलसीदास, ९. कोकोईलकण्ठी कवि और कीर्तनकार छीतस्वामी, १०. गुरुगोविंद के अनन्य उपासक गोविंददास, ११. गुरु गोविन्द के चरण चंचरीक चतुर्भुजदास, १२. अष्टछाप के कलित कवि और कीर्तनकार अधिकारी श्रीकृष्णदास, १३. अष्टछापिय भक्ति, काव्य और संगीत के रसस्रोत महाकवि परमानंददास,  १४. पुस्तिमार्ग के जहाज महाकवि श्री सूरदास, १५. कमनीय कवी और कलित कीर्तनकार श्री कुंभनदास  १६-१७ सूरसागर, पत्रिका हरसिंगार। 
सम्मान - साहित्य वाचस्पति अभिसंस्तवन ग्रंथ २१०००/-, , महाकवि सूरदास साहित्य सम्मान, मेघ श्याम स्मृति सम्मान ११०००/-, बृज विभूति सम्मान ११०००/-, देवेंसर पुरस्कार ११०००/-, तुलसी पुरस्कार ५०००/-, सन्तभक्त मीरा सारस्वत सम्मान ५०००/-, प्रज्ञाभूषण प्रज्ञानंद सम्मान २१०००/-,