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बुधवार, 6 नवंबर 2019

पोखर ठोंके दावा : अविनाश ब्योहार

कृति चर्चा 
'पोखर ठोंके दावा' : जल उफने ज्यों लावा 
चर्चाकार : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[कृति विवरण : पोखर ठोंके दावा, नवगीत संग्रह, अविनाश ब्योहार, प्रथम संस्करण २०१९, आकार  २० से. x १३ से., आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ १२०, प्रकाशन काव्य प्रकाशन, नवगीतकार संपर्क - रॉयल स्टेट कॉलोनी, माढ़ोताल, कटंगी मार्ग, जबलपुर ४८२००२, चलभाष ९८२६७९५३७२]
*
                     साहित्य सामायिक परिस्थितियों का साक्षी बनकर ही संतुष्ट नहीं होता, वह समय को दिशा देने या राह दिखाने की भूमिका का भी निर्वहन करता है। विविध विधाएँ और विविध रचनाकार 'हरि अनंत हरि अनंता' के सनातन सत्य को जानते हुए भी देश-काल-परिस्थितियों के संदर्भ में अपनी अनुभूतियों को ही अंतिम सत्य मानकर अभिव्यक्त करते हैं। ईर्षालु व्यक्तियों के संदर्भ में कहा गया है 'देख न सकहिं पराई विभूति' साहित्यकारों के संदर्भ में कहा जा सकता है 'देख न सकहिं पराई प्रतीति'। इस काल में सुख भोगते हुए दुःख के गीत गाना फैशन हो गया है। राजनैतिक प्रतिबद्धताओं को साहित्य पर लादना सर्वथा अनुचित है। हिंदी साहित्य को संस्कृत और लोक भाषाओँ से सनातनता की कालजयी समृद्ध विरासत प्राप्त होने के बाद भी समसामयिक साहित्य अवास्तविक वाग्विलास का ढेर बनता जा रहा है। नवगीत, लघुकथा व्यंग्य लेख, क्षणिका आदि केवल हुए केवल अतिरेकी  विसंगति वर्णन तक सीमित होकर रह गए हैं। नित्य पाचक चूर्ण फाँकनेवाले भुखमरी को केंद्र में रखकर गीत रचे, वातानुकूलित भवन में रह रही कलम जेठ की तपिश की व्यथा-कथा कहे, विलासी जीवन जी रहा त्याग -वैराग का पाठ पढ़ाये तो यह ढोंग और पाखंड ही है। 

                     साहित्यिक मठाधीशों द्वारा नकारे जाने का खतरा उठाकर भी  जिन युवा कलमों ने अपनी राह आप बनाने का प्रयास करना ठीक समझा है, उनमें एक हैं अविनाश ब्योहार। ग्रामवासी, खेतिहर किन्तु सुशिक्षा की विरासत से संपन्न और नगरीय जीवन जी रहे अविनाश शहर-गाँव की खाई से परिचित ही नाहने हैं, उसे लाँघकर आगे बढ़े हैं। इसलिए उनकी क्षणिकाओं और नवगीतों में न सुख और न दुःख का अतिरेकी शब्दांकन होता है। वे कम शब्दों में अधिक अभिव्यक्त करने के अभ्यासी हैं। कंजूसी की हद तक शब्दों की मितव्ययिता उनकी प्रतिबद्धता है। लघ्वाकारी नवगीत रचकर वे अपनी लीक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। 'पोखर ठोंके दावा' के पूर्व उनका एक अन्य लघुगीत संकलन 'मौसम अंगार है' तथा क्षणिका संग्रह 'अंधी पीसे कुत्ते खाएँ' प्रकाशित हैं। अविनाश के नवगीत उनकी क्षणिकाओं का विस्तार प्रतीत होते हैं। 

                      चोर-पुलिस की मिली-भगत एक अप्रिय सच्चाई है। अविनाश के अनुसार -
क्रिमिनल के लिए
सैरगाह है थाना।
रपट करने में
दाँतों पसीना आया।

                  शहरों का यांत्रिक जीवन और समयाभाव उत्सवधर्मी भारतीय मन को दुखी करे, यह स्वाभाविक है। 'कोढ़ में खाज' यह कि कृत्रिमता का आवरण ओढ़कर हम जीवन को और अधिक नीरस बना रहे हैं- 
रंगों में डूब
गई होली।
हवाओं में
उड़ रहा गुलाल।
रंगोत्सव में
घुलता मलाल।।
नकली-नकली
है बोली। 

                        नवधनाढ्यों द्वारा खुद श्रम न करना और श्रमजीवी को समुचित पारिश्रमिक न देना, सामाजिक रोग बन गया है। अविनाश इससे क्षुब्ध होकर लिखते हैं- 
चेहरा ग्लो करता।
हुआ फेशियल
औ' मसाज।
विचार हैं संकीर्ण,
बहुत सकरे।
आटो के पैसे
बहुत अखरे।।
आया-महरी
करतीं हैं
इनके सारे काज। 

                         सरकार की पूंजीपति समर्थक नीति मध्यम वर्ग का जीवन दूभर कर रही है। कवि स्वयं इस वर्ग  की पीड़ा का भुक्तभोगी है। वह इस नीति पर शब्द-प्रहार करते हुए लक्षणा में अपनी व्यथा-कथा का संकेत करता है- 
डेबिट कार्ड के आगे
बटुआ है लाचार।

                         सामाजिक विसंगतियों के फलस्वरूप शासन-प्रशासन ही नहीं न्याय व्यवस्था भी दम तोड़ रही है। अविनाश इस कटु सत्य के चश्मदीद साक्षी हैं। दिल्ली में वकील-पुलिस टकराव ने इसे सामने ला दिया है। अविनाश इसका कारण मुवक्किलों द्वारा तिल को ताड़ बना देने तथा वकीलों द्वारा झूठ  बोलने की मानसिकता को मानते हैं - 
लग जाती है
तुच्छ-तुच्छ

बातों की रिट ....
....मनगढ़ंत कहानी
कूट रचना है।
झूठी मिसिल-
गवाही से
बचना है।।

                   मेघ करे / धूप की चोरी, सपनों ने / सन्यास ओढ़ा, उम्मीद पर करने लगी / संवेदना हस्ताक्षर, अफसर-बाबू / में साँठ -गाँठ,  थाना कोर्ट कचहरी है / अंधी गूँगी बहरी है जैसी अभिव्यक्तियाँ हिंदी को नए मुहावरे देती हैं। 

                   लीक से हटकर अविनाश ने नवगीतों में कुछ नए रंग घोले हैं- 
सूरज ने
धूप से कहा
मौसम रंगीन
हो गया।
अब चलने लगी हैं
चुलबुली हवाऐं।
आपस में पेड़
जाने क्या बतियायें।।

                   ऋतु परिवर्तन का आनंद भूल रहे समाज को कवि मौसम का मजा लेने की सीख देता है। जाड़े का रंग देखें -
सबको बहुत
लुभाता है
जाड़े का मौसम।
महल, झोपड़ी,
गाँव-शहर हो।
या फिर दिन के
आठ पहर हो।।
कभी-कभी
तो लगता है

भाड़े का मौसम।

                            वर्षा के लोक गीत जान जीवन को संप्राणित करते हैं- 
वसुधा ने
कजरी गाई।
हरियाली को
बधाई।।
फुनगी से बोली

चश्मे-बद्दूर।

                             शहरी संबंधों की अजनबियत पर सटीक टिप्पणी - 
उखड़े-उखड़े से
मिलते है ं
कालोनी क े लोग।
है औपचारिक
सी बातें।
हमदर्दी पर
निष्ठुर घातें।।
उनका मिलना
अक्सर लगता

महज एक संयोग।

                           अविनाश के नवगीतों का वैशिष्ट्य जमीनी सच से जुड़ाव, सम्यक शब्द-चयन और वैचारिक स्पष्टता है। क्रमश: परिपक्व होती यह कलम नवगीतों को एक नए आयाम से समृद्ध करने का माद्दा रखती है। 
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संपर्क - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, 
ईमेल - salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष ९४२५१८३२४४   
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चुप्पियों को तोड़ते हैं - योगेंद्र प्रताप मौर्य

कृति चर्चा: 
चुप्पियों को तोड़ते हैं  -  नवाशा से जोड़ते हैं  
चर्चाकार : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
                                सृष्टि के निर्माण का मूल 'ध्वनि' है। वैदिक वांगमय में 'ओंकार' को मूल कहा गया है तो विज्ञान बिंग बैंग थियोरी'की दुहाई देता है। मानव सभ्यता के विकास के बढ़ते चरण 'ध्वनि' को सुनना-समझना, पहचानना, स्मरण रखना, उसमें अन्तर्निहित भाव को समझना, ध्वनि की पुनरावृत्ति कर पाना, ध्वनि को अंकित कर सकना और अंकित को पुनः ध्वनि के रूप में पढ़-समझ सकना है। ध्वनि से आरम्भ कर ध्वनि पर समाप्त होने वाला यह चक्र सकल कलाओं और विद्याओं का मूल है। प्रकृति-पुत्र  मानव को ध्वनि का यह अमूल्य उपहार जन्म और प्रकृति से मिला। जन्मते ही राव (कलकल) करने वाली सनातन सलिला को जल प्रवाह के शांतिदाई कलकल 'रव' के कारण 'रेवा' नाम मिला तो जन्मते ही उच्च रुदन 'रव' के कारण  शांति हर्ता कैकसी तनय को 'रावण' नाम मिला। परम शांति और परम अशांति दोनों का मूल 'रव' अर्थात ध्वनि ही है। यह ध्वनि जीवनदायी पंचतत्वों में व्याप्त है। सलिल, अनिल, भू, नभ, अनल में व्याप्त कलकल, सनसन, कलरव, गर्जन, चरचराहट आदि ध्वनियों का प्रभाव देखकर आदि मानव ने इनका महत्व जाना। प्राकृतिक घटनाओं जल प्रवाह, जल-वृष्टि, आँधी-तूफ़ान, तड़ितपात, सिंह-गर्जन, सर्प की फुँफकार, पंछियों का कलरव-चहचहाहट, हास, रुदन, चीत्कार, आदि में अंतर्निहित अनुभूतियों की प्रतीति कर, उन्हें स्मरण रखकर-दुहराकर अपने साथियों को सजग-सचेत करना, ध्वनियों को आरम्भ में संकेतों फिर अक्षरों और शब्दों के माध्यम से लिखना-पढ़ना अन्य जीवों की तुलना में मानव के द्रुत और श्रेष्ठ विकास का कारण बना। 
                           नाद की देवी सरस्वती और लिपि, लेखनी, स्याही और अक्षर दाता चित्रगुप्त की अवधारणा व सर्वकालिक पूजन ध्वनि के प्रति मानवीय कृतग्यता ज्ञापन ही है। ध्वनि में 'रस' है। रस के बिना जीवन रसहीन या नीरस होकर अवांछनीय होगा। इसलिए 'रसो वै स:' कहा गया। वह (सृष्टिकर्ता रस ही है), रसवान भगवान और रसवती भगवती। यह रसवती जब 'रस' का उपहार मानव के लिए लाई तो रास सहित आने के कारण 'सरस्वती' हो गई। यह 'रस' निराकार है। आकार ही चित्र का जनक होता है। आकार नहीं है अर्थात चित्र नहीं है, अर्थात चित्र गुप्त है। गुप्त चित्र को प्रगट करने अर्थात निराकार को साकार करनेवाला अक्षर (जिसका क्षर न हो) ही हो सकता है। अक्षर अपनी सार्थकता के साथ संयुक्त होकर 'शब्द' हो जाता है। 'अक्षर' का 'क्षर' त्रयी (पटल, स्याही, कलम) से मिलन द्वैत को मिटाकर अद्वैत की सृष्टि करता है। ध्वनि प्राण संचार कर रचना को जीवंत कर देती है। तब शब्द सन्नाटे को भंग कर मुखर हो जाते हैं, 'चुप्पियों को तोड़ते हैं'। 

                                शब्द का अन्य त्रयी (अर्थ, रस, लय) से संयोग सर्व हित साध सके तो साहित्य हो जाता है। सबका हित समाहित करता साहित्य जन-जन के कंठ में विराजता है। शब्द-साधना तप और योग दोनों है। इंद्र की तरह ध्येय प्राप्ति हेतु 'योग' कर्ता 'योगेंद्र' का 'प्रताप', पीड़ित-दलित मानव रूपी 'मुरा' से व्युत्पन्न 'मौर्य' के साथ संयुक्त होकर जन-वाणी से जन-हित साधने के लिए शस्त्र के स्थान पर शास्त्र का वरण करता है तो आदि कवि की परंपरा की अगली कड़ी बनते हुए काव्य रचता है। यह काव्य नवता और गेयता का वरण  कर नवगीत के रूप में सामने हो तो उसे आत्मसात करने का मोह संवरण कैसे किया जा सकता है? 

                                  कवि शब्द-सिपाही होता है। भाषा कवि का अस्त्र और शस्त्र  दोनों होती है। भाषा के साथ छल कवि को सहन नहीं होता। वह मुखर होकर अपनी पीड़ा को वाणी देता है -
लगा भाल पर 
बिंदी हिंदी-
ने धूम मचाई
बाहर-बाहर 
खिली हुयी 
पर भीतर से मुरझाई
लील गए हैं
अनुशासन को
फैशन के दीवाने
इंग्लिश देखो
मार रही है 
भोजपुरी को ताने

                                  गाँवों से नगरों की और पलायन, स्वभाषा बोलने में लज्जा और गलत ही सही विदेशी भाषा बोलने में छद्म गौरव की प्रतीति कवि को व्यथित करती है।  यहाँ व्यंजना कवि के भावों को पैना बनाती है-
अलगू की 
औरत को देखो
बैठी आस बुने है
भले गाँव में 
पली-बढ़ी है
रहना शहर चुने है
घर की 
खस्ताहाली पर भी
आती नहीं दया है
सीख चुकी वह 
यहाँ बोलना
फर्राटे से 'हिंग्लिश'
दाँतों तले 
दबाए उँगली
उसे देखकर 'इंग्लिश'
हर पल फैशन 
में रहने का
छाया हुआ नशा है

                                  लोकतंत्र लोक और तंत्र के मध्य विश्वास का तंत्र है। जब जन प्रतिनिधियों का कदाचरण इस विश्वास को नष्ट कर देता है तब जनता जनार्दन की पीड़ा को कवि गीत के माध्यम से स्वर देता है -
संसद स्वयं 
सड़क तक आई
ले झूठा आश्वासन
छली गई फिर
भूख यहाँ पर
मौज उड़ाये शासन
लंबे-चौड़े
कोरे वादे
जानें पुनः मुकरना

                                  अपसंस्कृति के संक्रांति काल में समय से पहले सयानी होती सहनशीलता में अन्तर्निहित लाक्षणिकता पाठक को अपने घर-परिवेश की प्रतीत होती है -
सुबह-सुबह
अखबार बाँचता
पीड़ा भरी कहानी
सहनशीलता 
आज समय से
पहले हुई सयानी
एक सफर की 
आस लगाये
दिन का घाम हुआ
अय्याशी 
पहचान न पाती
अपने और पराये
बीयर ह्विस्की 
'चियर्स' में

किससे कौन लजाये?

धर्म के नाम पर होता पाखंड कवि को सालता है। रावण से अधिक अनीति करनेवाले रावण को जलाते हुए भी अपने कुकर्मों पर नहीं लजाते। धर्म के नाम पर फागुन  में हुए रावण वध को कार्तिक में विजय दशमी से जोड़नेवाले भले ही इतिहास को झुठलाते हैं किन्तु कवि को विश्वास है कि अंतत: सच्चाई ही जीतेगी -
फिर आयी है 
विजयादशमी
मन में ले उल्लास
एक ओर 
कागज का रावण
एक ओर इतिहास
एक बार फिर
सच्चाई की
होगी झूठी जीत 

                                   शासक दल के मुखिया द्वारा बार-बार चेतावनी देना, अनुयायी भक्तों द्वारा चेतावनी की अनदेखी कर अपनी कारगुजारियाँ जारी रखी जाना, दल प्रमुख द्वारा मंत्रियों-अधिकारियों दलीय कार्यकर्ताओं के काम काम करने हेतु प्रेरित करना और सरकार का सोने रहना आदि जनतंत्री संवैधानिक व्यवस्थ के कफ़न में कील ठोंकने की तरह है -
महज कागजी
है इस युग के
हाकिम की फटकार
बे-लगाम 
बोली में जाने
कितने ट्रैप छुपाये
बहरी दिल्ली 
इयरफोन में
बैठी मौन उगाये
लंबी चादर 
तान सो गई

जनता की सरकार

                                 कृषि प्रधान देश को उद्योग प्रधान बनाने की मृग-मरीचिका में दम तोड़ते किसान की व्यथा कवि को विचलित  करती है-
लगी पटखनी 
फिर सूखे से
धान हुये फिर पाई
एक बार फिर से
बिटिया की
टाली गयी सगाई
गला घोंटती 
यहाँ निराशा

टूट रहे अरमान

                               इन नवगीतों में योगेंद्र ने अमिधा, व्यंजना और लक्षणा तीनों  का यथावश्यक उपयोग किया है। इन नवगीतों की भाषा सहज, सरल, सरस, सार्थक और सटीक है। कवि जानता है कि शब्द  अर्थवाही होते हैं। अनुभूति को अभिव्यक्त  करते शब्दों की अर्थवत्ता मुख्या घटक है, शब्द का देशज, तद्भव, तत्सम या अन्य  भाषा से व्युत्पन्न हो पाठकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, समीक्षक  भले ही नाक-भौं सिकोड़ते रहे-
उतरा पानी
हैंडपम्प का
हत्था बोले चर-चर
बिन पानी के
व्याकुल धरती
प्यासी तड़प रही है
मिट्टी में से
दूब झाँकती
फिर भी पनप रही है  
                                'दूब झाँकती', मुखर यहाँ अपराध / ओढ़कर / गाँधी जी की खादी, नहीं भरा है घाव / जुल्म का / मरहम कौन लगाये, मेहनत कर / हम पेट भरेंगे / दो मत हमें सहारे,  जैसे प्रयोग कम शब्दों में  अधिक कहने की सामर्थ्य रखते हैं। यह कवि कौशल योगेंद्र के उज्जवल भविष्य के प्रति आशा जगाता है। 

                               रूपक, उपमा आदि अलंकारों तथा बिम्बों-प्रतीकों के माध्यम से यत्र-तत्र प्रस्तुत शब्द-चित्र नवोदित की सामर्थ्य का परिचय देते हैं- 
जल के ऊपर
जमी बर्फ का
जलचर स्वेटर पहने
सेंक रहा है 
दिवस बैठकर
जलती हुई अँगीठी
और सुनाती
दादी सबको
बातें खट्टी-मीठी
आसमान 
बर्फ़ीली चादर
पंछी लगे ठिठुरने
दुबका भोर 
रजाई अंदर

बाहर झाँके पल-पल 

                                विसंगियों  के साथ आशावादी उत्साह का स्वर  नवगीतों को भीड़ से अलग, अपनी पहचान प्रदान करता है। उत्सवधर्मिता भारतीय जन जीवन के लिए के लिए संजीवनी का काम करती है। अपनत्व और जीवट के सहारे भारतीय जनजीवन यम के दरवाजे से भी सकुशल लौट आता है। होली का अभिवादन शीर्षक नवगीत नेह नर्मदा  प्रवाह का साक्षी है- 
ले आया ऋतुओं 
का राजा
सबके लिए गुलाल
थोड़ा ढीला 
हो आया है
भाभी का अनुशासन
पिचकारी
से करतीं देखो
होली का अभिवादन
किसी तरह का
मन में कोई
रखतीं नहीं मलाल
ढोलक,झाँझ,
मजीरों को हम
दें फिर से नवजीवन
इनके होंठों पर 
खुशियों का
उत्सव हो आजीवन
भूख नहीं 
मजबूर यहाँ हो

करने को हड़ताल
  

                                'चुप्पियों को तोड़ते हैं' से योगेंद्र प्रताप मौर्य ने नवगीत के आँगन में प्रवेश किया है। वे पगडंडी को चहल-पहल करते देख किसानी अर्थात श्रम या उद्योग करने हेतु उत्सुक हैं। देश का युवा मन, कोशिश के दरवाजे पर दस्तक देता है - 
सुबह-सुबह 
उठकर पगडंडी
करती चहल-पहल है
टन-टन करे 
गले की घंटी
करता बैल किसानी

उद्यम निरर्थक-निष्फल नहीं होता, परिणाम लाता है- 
श्रम की सच्ची 
ताकत ही तो
फसल यहाँ उपजाती
खुरपी,हँसिया 
और कुदाली
मजदूरों के साथी



तीसी,मटर
चना,सरसों की
फिर से पकी फसल है
चूल्हा-चौका
बाद,रसोई
खलिहानों को जाती
देख अनाजों 
के चेहरों को
फूली नहीं समाती
टूटी-फूटी
भले झोपड़ी  

लेकिन हृदय महल है

नवगीत की यह भाव मुद्रा इस संकलन की उपलब्धि है। नवगीत के आँगन में उगती कोंपलें इसे 'स्यापा ग़ीत, शोकगीत या रुदाली नहीं, आशा गीत, भविष्य गीत, उत्साह गीत बनाने की दिशा में पग बढ़ा रही है। योगेंद्र प्रताप मौर्य की पीढ़ी यदि नवगीत को इस मुकाम पर ले जाने की कोशिश करती है तो यह स्वागतेय है। किसी नवगीत संकलन का इससे बेहतर समापन हो ही नहीं सकता। यह संकलन पाठक बाँधे ही नहीं रखता अपितु उसे अन्य नवगीत संकलन पढ़ने  प्रेरित भी करता है। योगेंद्र 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। 
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संपर्क : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', विश्व  हिंदी संस्थान, ४०१ विजय  अपार्टमेंट, नेपियरटाउन , जबलपुर ४८२००१, चलभाष - ९४२५१८३२४४, ईमेल - salil.sanjiv@gmail.com 
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सरस्वती नदी

मेरठ। सीसीएसयू के इतिहास विभाग में बुधवार को आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में सरस्वती नदी की प्रमाणिकता के साक्ष्य प्रस्तुत किए गए। वक्ताओं ने पौराणिक ग्रंथों के अतिरिक्त इसरो द्वारा किए गए शोध कार्य एवं अन्य वैज्ञानिक साक्ष्यों के माध्यम से सरस्वती नदी की प्रमाणिकता को प्रस्तुत किया। इस दौरान इसके विलुप्त होने और पुन: प्राप्ति की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला गया। इसरो के पश्चिमी क्षेत्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र जोधपुर से आए वैज्ञानिक डॉ. बीके भद्रा ने कहा कि 50 वषरें से सरस्वती नदी पर शोध हो रहा है। विज्ञान इतिहास से अलग नहीं है। ऋग्वेद, महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में सरस्वती नदी का उल्लेख है। ब्रिटिश काल के एक मानचित्र में भी इस नदी का उल्लेख है। अभी तक की खोज से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि सरस्वती नदी के किनारे सिंधु सभ्यता के समान ही एक अन्य सभ्यता विकसित थी, जो कि सिंधु सभ्यता से काफी प्राचीन थी। डॉ. भद्रा ने कहा कि इसरो ने सेटेलाइट के माध्यम से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात आदि में सरस्वती से संबंधित स्थानों को चिन्हित किया है। उन्होंने कहा कि सेटेलाइट से मिले चित्रों के स्थान पर जैसलमेर में 2000-2002 के बीच 21 नलकूप खोदे गए, जिनमें मीठा पेयजल का भंडार मिला है। इससे मरूभूमि का विकास हुआ है। साथ ही सीमात क्षेत्रों में सैनिकों को भी शुद्ध पेयजल मिल रहा है। सरस्वती नदी शोध संस्थान, जोधपुर से आए मदन गोपाल व्यास जी ने कहा कि कुछ लोग सरस्वती नदी के अस्तित्व को लेकर सवाल उठाते हैं, उन्हें वैज्ञानिक साक्ष्य स्वयं जवाब दे रहें हैं। 1869 में खंभात की खाड़ी और 1893 में राजस्थान में सदानीरा के प्रमाण मिल चुके हैं। नासा से प्राप्त चित्र भी सरस्वती नदी का प्रवाह मार्ग पाकिस्तान पंजाब से राजस्थान तक होने की पुष्टि कर रहें हैं। उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी के मिले यह प्रमाण सिद्ध करते हैं कि भारत की ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन हैं। भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर भी सदानीरा के प्रवाह मार्ग की पुष्टि कर चुका है। उन्होंने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार ने सरस्वती नदी के प्रवाह पर जनउपयोगी कायरें को करने के लिए 68.67 करोड़ रुपये की योजना बनाकर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर और जैसलमेर जिलों में कोर ड्रिलिंग करवाई जाएगी। पश्चिमी राजस्थान में जीपीआरएस सर्वे कराकर इस नदी के प्रवाह मार्ग पर कम से कम सौ ट्यूबवेल लगवाए जाएंगे।

सोमवार, 4 नवंबर 2019

मुक्तक

कार्यशाला ३२
मुक्तक लिखें
आज की पंक्ति हुई है भीड़ क्यों?
*
उदाहरण-
आज की पंक्ति हुई है भीड़ क्यों?
तोड़ती चिड़िया स्वयं ही नीड क्यों?
जी रही 'लिव इन रिलेशन' खुद सुता
मायके की उठे मन में हीड़ क्यों?
*
टीप- हीड़ = याद
आज की पंक्ति हुई है भीड़ क्यों, यह कौन जाने?
समय है बेढब, न सच्ची बात कोई सुने-माने
कल्पना का क्या कभी आकाश, भू छूती कभी है
प्रेरणा मिथलेश से पा सलिल बहना ध्येय ठाने
*

नवगीत

नवगीत
*
दर्द होता है
मगर
चुपचाप सहता।
*
पीर नदियों की
सुनाते घाट देखे।
मंज़िलों का दर्द
कहते ठाठ लेखे।
शूल पैरों को चुभे
कितने, कहाँ, कब?
मौन बढ़ता कदम
चुप रह
नहीं कहता?
*
चूड़ियों की कथा
पायल ने कही है।
अचकनों की व्यथा
अनसुन ही रही है।
मर्द को हो दर्द
जग कहता, न होता
शिला निष्ठुर मौन
झरना
पीर तहता।
*
धूप को सब चाहते
सूरज न भाता।
माँग भर सिंदूर
अनदेखा लजाता।
सौंप देता गृहस्थी
लेता न कुछ भी
उठाता नखरे
उपेक्षित
नित्य दहता।
*
संजीव
३.११.२०१८
९४२५१८३२४४

दोहा दिवाली

दोहा दिवाली
*
मृदा नीर श्रम कुशलता, स्वेद गढ़े आकार।
बाती डूबे स्नेह में, ज्योति हरे अँधियार।।
*
तम से मत कर नेह तू, झटपट जाए लील।
पवन झँकोरों से न डर, जल बनकर कंदील।।
*
संसद में बम फूटते, चलें सभा में बाण।
इंटरव्यू में फुलझड़ी, सत्ता में हैं प्राण।।
*
पति तज गणपति सँग पुजें, लछमी से पढ़ पाठ।
बाँह-चाह में दो रखे, नारी के हैं ठाठ।।
*
रिद्धि-सिद्धि, हरि की सुने, कोई न जग में पीर।
छोड़ गए साथी धरें, कैसे कहिए धीर।।
*
संजीव, ३.११.२०१८

विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर

 ॐ शब्द ब्रहमाय नम:
विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
समन्वय प्रकाशन-अभियान
*
जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार।
सलिल बचा; पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।
*
संस्थान की मासिक बैठक केंद्रीय कार्यालय में संपन्न हुई। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने संस्थान की गतिविधियों पर संतोष व्यक्त करते हुए विविध सारस्वत अनुष्ठानों की जानकारी दी।
१. 'वीणापाणी वंदना' - वेद-पुराणों में सरस्वती जी के उद्भव, पूजनादि से संबंधित जानकारी, त्रिदेवियों की अवधारणा, ३२ भाषाओँ-बोलिओं में सरस्वती वंदनाएँ, देश-विदेश में सरस्वती मंदिरों के चित्रादि सहेजने, तथा १५० रचनाकारों की २०० से अधिक सरस्वती वंदनाएँ प्राप्त होने से अवगत कराया। यह संग्रहणीय ग्रंथ बिना कोइ अग्रिम निधि लिए प्रकाशित किया जा रहा है। प्रकाशन के पश्चात् सहभागियों को रियायती दर पर बिना डाक व्यय के तथा अन्य पाठकों को डाक व्यय निशुल्क उपलब्ध कराया जायेगा।
२. दोहा शतक मंजूषा - पूर्व प्रकाशित ३ भागों "दोहा-दोहा नर्मदा", दोहा सलिला निर्मला" तथा "दोहा दीप्त दिनेश" की सफलता के पश्चात् दोहा शतक मंजूषा ४ "दोहा है आशा-किरण" हेतु १० दोहाकारों के दोहे सम्पादन हेतु प्राप्त होने व् मात्र ५ स्थान शेष रहने की सूचना दी। दोहे स्वीकृत होने के पश्चात् सहभागिता निधि ३०००/ जमा करनी होगी। हर सहभागी को ११ प्रतियाँ बिना डाक व्यय भेजी जाएँगी। सहभागी पूर्व प्रकाशित ३ भाग (८००/-) रियायती दर पर ५००/- में प्राप्त कर सकेंगे।
३. "प्रीत के गीत" - श्रृंगार गीतों के इस संकलन हेतु २ श्रृंगार गीत, ११००/- सहभागिता निधि, चित्र, व परिचय आमंत्रित है। सहभागियों को संकलन की २ प्रतियों निशुल्क तथा अतिरिक्त प्रतियाँ रियायती दर पर बिना डाक व्यय मिलेंगी। श्री बसंत शर्मा व् श्री विनोद जैन 'वाग्वर' संपादन सहयोगी होंगे।
४. "सार्थक लघुकथाएँ" - इस संकलन हेतु ५ लघुकथाएँ (शब्द सीमा २५०), ६००/- सहभागिता निधि, चित्र, व परिचय आमंत्रित है। सहभागियों को संकलन की २ प्रतियाँ निशुल्क तथा अतिरिक्त प्रतियाँ रियायती दर पर बिना डाक व्यय मिलेंगी।
५. अभियान वाट्स ऐप समूह - समूह की गतिविधियों पर चर्चा में सदस्यों ने रचनाओं के स्तर पर संतोष व्यक्त किया। विषय बद्ध रचना प्रक्रिय के प्रति गंभीर होने की आवश्यकता अनुभव की गयी। पटल पर रचनाओं की संख्या वृद्धि तथा त्रुटि-सुधर की आवश्यकता अनुभव की गयी।
६. नवगीत महोत्सव लखनऊ, ९-१० नवंबर - श्री बसंत शर्मा द्वारा अपरिहार्य कारणों से असमर्थता व्यक्त करने पर श्री सलिल तथा श्री जयप्रकाश श्रीवास्तव द्वारा सहभागिता करने का निर्णय लिया गया।
७. टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य-कला महोत्सव भोपाल - संस्थान की ओर से श्री सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' तथा श्री-श्रीमती भट्ट सहभागिता करेंगे।
८. युवा उत्कर्ष साहित्य मंडल दिल्ली - श्री बसंत शर्मा संस्थान का प्रतिनिधित्व करेंगे।
९. उपस्थित सदस्यों ने नवीन रचनाओं का पथ किया जिन पर विमर्श कर संशोधन सुझाए गए।
१०. आगामी बैठक तय करने हेतु मुख्यालय सचिव श्रीमती छाया सक्सेना को अधिकृत किया गया।
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दोहा गीत

दोहा गीत:
दीपक लेकर हाथ
*
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।
हैं प्रसन्न माँ भारती,
जनगण-मन के साथ।।
*
अमरनाथ सह भवानी,
कार्तिक-गणपति झूम।
चले दिवाली मनाने,
भायी भारत-भूम।।
बसे नर्मदा तीर पर,
गौरी-गौरीनाथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
*
सरस्वती सिंह पर हुईं,
दुर्गा सदृश सवार।
मेघदूत सम हंस उड़,
गया भुवन के पार।।
ले विरंचि को आ गया,
कर प्रणाम नत माथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
*
सलिल लहर संजीव लख,
सफल साधना धन्य।
त्याग पटाखे, शंख-ध्वनि,
दस दिश गूँज अनन्य।।
श्रम-सीकर से स्नानकर,
मानव हुआ सनाथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
*
संजीव
४.११.२०१८
७९९९५५९६१८

गणितीय मुक्तक

गणितीय मुक्तक:
*
बिंदु-बिंदु रखते रहे, जुड़ हो गयी लकीर।
जोड़ा किस्मत ने घटा, झट कर दिया फकीर।।
कोशिश-कोशिश गुणा का, आरक्षण से भाग-
रहे शून्य के शून्य हम, अच्छे दिन-तकदीर।।
*
खड़ी सफलता केंद्र पर, परिधि प्रयास अनाथ।
त्रिज्या आश्वासन मुई, कब कर सकी सनाथ।।
छप्पन इंची वक्ष का निकला भरम गुमान-
चाप सिफारिश का लगा, कभी न श्रम के हाथ।।
*
गुणा अधिक हो जोड़ से, रटा रहे तुम पाठ।
उल्टा पा परिणाम हम, आज हुए हैं काठ।।
एक गुणा कर एक से कम, ज्यादा है जोड़-
एक-एक ग्यारह हुए जो उनके हैं ठाठ।।
*
संजीव
४.११.२०१८
७९९९५५९६१८

नवगीत

नवगीत:
महका-महका
संजीव
महका-महका
मन-मंदिर रख सुगढ़-सलौना
चहका-चहका
आशाओं के मेघ न बरसे
कोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाए
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताए
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी
आँखें चमकें
कहाँ जाएगी मंजिल
सपने हों न पराए
बहका-बहका
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका
लख मयंक की छटा अनूठी
सज्जन हरषे.
नेह नर्मदा नहा नवेली
पायस परसे.
नर-नरेंद्र अंतर से अंतर
बिसर हँस रहे.
हास-रास मधुमास न जाए-
घर से, दर से.
दहका-दहका
सूर्य सिंदूरी, उषा-साँझ संग
धधका-दहका...
***
salil.sanjiv@gmil.com

नवंबर २०१९ : कब - क्या?

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नवंबर २०१९ : कब - क्या?
०१ गुरु गोविंद सिंह पुण्यतिथि
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ दिवस
०३ संत दयाराम वाला जयंती
०४ गणितविद् शकुंतला देवी जयंती १९९९, प्रतिदत्त ब्रह्मचारी जन्म
०५ अक्षय/आँवला जयंती
०६ अभिनेता संजीव कुमार निधन
०७ भौतिकीविद् चंद्रशेखर वेंकटेश्वर रमण जन्म १८८८
०८ देव उठनी एकादशी, गन्ना ग्यारस, तुलसी विवाह, संत नामदेव जयंती, महाकवि कालिदास जयंती।
१० मिलाद-उन-नबी, महाप्रसाद अग्निहोत्री निधन।
१२ गुरु नानक देव जयंती, म. सुदर्शन जयंती, महामना मालवीय निधन १९४६।
१३ भेड़ाघाट मेला।
१४ बाल दिवस, जवाहरलाल नेहरू जयंती, विश्व मधुमेह दिवस।
१५ बिरसा मुंडा जयंती, संत विनोबा दिवस, जयशंकर प्रसाद निधन १९३७।
१६ विश्व सहिष्णुता दिवस, सचिव तेंदुलकर रिटायर २०१३।
१७ लाला लाजपतराय बलिदान दिवस १९२८, बाल ठाकरे दिवंगत २०१२, तुकड़ोजी जयंती, भ. मायानंद चैतन्य जयंती।
१८ काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठा दिवस।
१९ म. लक्ष्मीबाई जयंती १८२८, इंदिरा गाँधी जयंती १९१७, मातृ दिवस
२१- भौतिकीविद् चंद्र शेखर वेंकट रमण निधन १९७०
२२ झलकारी बाई जयंती, दुर्गादास पुण्यतिथि।
२३ सत्य साई जयंती, जगदीश चंद्र बलि निधन १९३७।
२४ गुरु तेगबहादुर बलिदान, अभिनेता महीपाल जन्म १९१९, अभिनेत्री टुनटुन निधन २००३, साहित्यकार महीप सिंह २०१५, ।
२६ डॉ. हरि सिंह गौर जयंती।
२७ बच्चन निधन १९०७।
२८ जोतीबा फूले निधन १८९०।
२९ शरद सिंह १९६३।
३० जगदीश चंद्र बसु जन्म १८५८, मायानंद चैतन्य जयंती, मैत्रेयी पुष्पा जन्म।
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दोही छंद

छंद सलिला ;
दोही
*
लक्षण छंद -
चंद्र कला पंद्रह शुभ मान, रचें विषम पद आप।
एक-एक ग्यारह सम जान, लघु पद-अंत सुमाप।।
*
उदहारण -
स्नेह सलिल अवगाहन करे, मिट जाए भव ताप।
मदद निबल की जो नित करे, हो जाए प्रभु जाप।।
*
संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१८३२४४

हाथी समानार्थी,

समानार्थी शब्द: संस्कृत में हाथी के ४००० समानार्थियों में से कुछ
*
समानार्थी कुञ्जरः,गजः,हस्तिन्, हस्तिपकः,द्विपः, द्विरदः, वारणः, करिन्, मतङ्गः, सुचिकाधरः, सुप्रतीकः, अङ्गूषः, अन्तेःस्वेदः, इभः, कञ्जरः, कञ्जारः, कटिन्, कम्बुः, करिकः, कालिङ्गः, कूचः, गर्जः, चदिरः, चक्रपादः, चन्दिरः, जलकाङ्क्षः, जर्तुः, दण्डवलधिः, दन्तावलः, दीर्घपवनः, दीर्घवक्त्रः, द्रुमारिः, द्विदन्तः, द्विरापः, नगजः, नगरघातः, नर्तकः, निर्झरः, पञ्चनखः, पिचिलः, पीलुः, पिण्डपादः, पिण्डपाद्यः, पृदाकुः, पृष्टहायनः, पुण्ड्रकेलिः, बृहदङ्गः, प्रस्वेदः, मदकलः, मदारः, महाकायः, महामृगः, महानादः, मातंगः, मतंगजः, मत्तकीशः, राजिलः, राजीवः, रक्तपादः, रणमत्तः, रसिकः, लम्बकर्णः, लतालकः, लतारदः, वनजः, वराङ्गः, वारीटः, वितण्डः, षष्टिहायनः, वेदण्डः, वेगदण्डः, वेतण्डः, विलोमजिह्वः, विलोमरसनः, विषाणकः।
(आभार - जमुना कृष्णराज)

एकाक्षरी श्लोक, विलोम काव्य

संस्कृत - चमत्कारी भाषा
*
एकाक्षरी श्लोक
महाकवि माघ ने अपने महाकाव्य 'शिशुपाल वध' में एकाक्षरी श्लोक दिया है -
दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः ।
दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः ॥ १४४
अर्थ - वरदाता, दुष्टनाशक, शुद्धक, आततायियों के अंतक क्षेत्रों पर पीड़क शर का संधान करें।
विलोम पद
माघ विलोमपद रचने में भी निपुण थे।
वारणागगभीरा सा साराभीगगणारवा ।
कारितारिवधा सेना नासेधा वारितारिका ॥४४
पर्वतकारी हाथियों से सुसज्ज सेना का सामना करना अति दुष्कर है। यह विराट सेना है, त्रस्त-भयभीत लोगों की चीत्कार सुनाई दे रही है। इसने अपने शत्रुओं को मार दिया है।
विलोम काव्य
श्री राघव यादवीयं - बाएँ से दाएँ रामकथा, दाएँ से बाएँ कृष्णकथा
बाएँ से दाएँ
वन्देऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥
मैं श्री राम का वंदन करता हूँ जो सीता जी के लिए धड़कते हुए ह्रदय के साथ
रावण और उसके सहायकों का वधकर, सह्याद्रि पर्वतों को पार कर, रावण तथा उसके सहायकों का वध कर, लंबे समय बाद, सीता सहित अयोध्या वापिस आए हैं।
I pay my obeisance to Lord Shri Rama, who with his heart pining for Sita, travelled across the Sahyadri Hills and returned to Ayodhya after killing Ravana and sported with his consort, Sita, in Ayodhya for a long time.
दाएँ से बाएँ
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी मारामोरा ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देहं देवं ॥
मैं श्री कृष्ण का वंदन करता हूँ जिनका ह्रदय श्री लक्ष्मी का निवास है, जो त्याग-तप से ध्यान करने योग्य हैं, जो रुक्मिणी तथा अन्य संगणियों को दुलारते हैं, जो गोपियों द्वारा पूजित हैं तथा जगनागाते हुए रत्नों से शोभायमान हैं।
I bow to Lord Shri Krishna, whose chest is the sporting resort of Shri Lakshmi; who is fit to be contemplated through penance and sacrifice, who fondles Rukmani and his other consorts and who is worshipped by the gopis, and who is decked with jewels radiating splendour.
आभार: श्रीमती जमुना कृष्णराज
छंद सलिला ;
दोही
*
लक्षण छंद -
चंद्र कला पंद्रह शुभ मान, रचें विषम पद आप।
एक-एक ग्यारह सम जान, लघु पद-अंत सुमाप।।
*
उदहारण -
स्नेह सलिल अवगाहन करे, मिट जाए भव ताप।
मदद निबल की जो नित करे, हो जाए प्रभु जाप।।
*
संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१८३२४४  

रविवार, 3 नवंबर 2019

बैठक ३-११-२०१९

ॐ शब्द ब्रहमाय नम:
विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
समन्वय प्रकाशन-अभियान
*
जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार।
सलिल बचा; पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।
*
संस्थान की मासिक बैठक केंद्रीय कार्यालय में संपन्न हुई। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने संस्थान की गतिविधियों पर संतोष व्यक्त करते हुए विविध सारस्वत अनुष्ठानों की जानकारी दी।
१. 'वीणापाणी वंदना' - वेद-पुराणों में सरस्वती जी के उद्भव, पूजनादि से संबंधित जानकारी, त्रिदेवियों की अवधारणा, ३२ भाषाओँ-बोलिओं में सरस्वती वंदनाएँ, देश-विदेश में सरस्वती मंदिरों के चित्रादि सहेजने, तथा १५० रचनाकारों की २०० से अधिक सरस्वती वंदनाएँ प्राप्त होने से अवगत कराया। यह संग्रहणीय ग्रंथ बिना कोइ अग्रिम निधि लिए प्रकाशित किया जा रहा है। प्रकाशन के पश्चात् सहभागियों को रियायती दर पर बिना डाक व्यय के तथा अन्य पाठकों को डाक व्यय निशुल्क उपलब्ध कराया जायेगा।
२. दोहा शतक मंजूषा - पूर्व प्रकाशित ३ भागों "दोहा-दोहा नर्मदा", दोहा सलिला निर्मला" तथा "दोहा दीप्त दिनेश" की सफलता के पश्चात् दोहा शतक मंजूषा ४ "दोहा है आशा-किरण" हेतु १० दोहाकारों के दोहे सम्पादन हेतु प्राप्त होने व् मात्र ५ स्थान शेष रहने की सूचना दी। दोहे स्वीकृत होने के पश्चात् सहभागिता निधि ३०००/ जमा करनी होगी। हर सहभागी को ११ प्रतियाँ बिना डाक व्यय भेजी जाएँगी। सहभागी पूर्व प्रकाशित ३ भाग (८००/-) रियायती दर पर ५००/- में प्राप्त कर सकेंगे।
३. "प्रीत के गीत" - श्रृंगार गीतों के इस संकलन हेतु २ श्रृंगार गीत, ११००/- सहभागिता निधि, चित्र, व परिचय आमंत्रित है। सहभागियों को संकलन की २ प्रतियों निशुल्क तथा अतिरिक्त प्रतियाँ रियायती दर पर बिना डाक व्यय मिलेंगी। श्री बसंत शर्मा व् श्री विनोद जैन 'वाग्वर' संपादन सहयोगी होंगे।
४. "सार्थक लघुकथाएँ" - इस संकलन हेतु ५ लघुकथाएँ (शब्द सीमा २५०), ६००/- सहभागिता निधि, चित्र, व परिचय आमंत्रित है। सहभागियों को संकलन की २ प्रतियाँ निशुल्क तथा अतिरिक्त प्रतियाँ रियायती दर पर बिना डाक व्यय मिलेंगी।
५. अभियान वाट्स ऐप समूह - समूह की गतिविधियों पर चर्चा में सदस्यों ने रचनाओं के स्तर पर संतोष व्यक्त किया। विषय बद्ध रचना प्रक्रिय के प्रति गंभीर होने की आवश्यकता अनुभव की गयी। पटल पर रचनाओं की संख्या वृद्धि तथा त्रुटि-सुधर की आवश्यकता अनुभव की गयी।
६. नवगीत महोत्सव लखनऊ, ९-१० नवंबर - श्री बसंत शर्मा द्वारा अपरिहार्य कारणों से असमर्थता व्यक्त करने पर श्री सलिल तथा श्री जयप्रकाश श्रीवास्तव द्वारा सहभागिता करने का निर्णय लिया गया।
७. टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य-कला महोत्सव भोपाल - संस्थान की ओर से श्री सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' तथा श्री-श्रीमती भट्ट सहभागिता करेंगे।
८. युवा उत्कर्ष साहित्य मंडल दिल्ली - श्री बसंत शर्मा संस्थान का प्रतिनिधित्व करेंगे।
९. उपस्थित सदस्यों ने नवीन रचनाओं का पथ किया जिन पर विमर्श कर संशोधन सुझाए गए।
१०. आगामी बैठक तय करने हेतु मुख्यालय सचिव श्रीमती छाया सक्सेना को अधिकृत किया गया।
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शनिवार, 2 नवंबर 2019

सरस्वती वंदना- तमिल, महाकवि सुब्रमण्य भारती

सरस्वती वंदना - तमिल
महाकवि सुब्रमण्य भारती

Subramanya Bharathi Signature.jpg
*
वेळ्ळै तामरै....



वेल्लै तामरै पूविल इरुप्पाळ
वीणे  से ̧युम ओलियिल इरुप्पाळ।
कोळ्ळै इन्बम कुलवु कविदै
कूरुम पावलर उळ्ळत्तिल इरुप्पाळ।। वेळ्ळै तामरै.....

उळ्ळताम पोरुळ तेड़ि उणर्दे
ओदुम वेदत्तिन उळ्निन्डंा ेळिर्वाळ।
कळ्ळमटं मुनिवर्गळ कूरुम
करुणैवासगतुट्पोरुळावाळ। वेळ्ळै तामरै.....

मादर तेन्कुरल पाट्टिलिरुप्पाळ,
मक्कळ पेसुम मळलयिल उळ्ळाळ।
गीतम पाडुम कुयिलिन कुरलिल
किळियिन नाविल इरुप्पिडम कोळ्वाळ।।  वेळ्ळै तामरै..... 


कोदगन्डं तोळि़लुदित्तागि
कुलवु चित्तिरम गोपुरम कोविल।
इदननैत्तिन एळि़लिडैयुटंाळ
इन्बमे वडिवागिड पेटंाळ।। वेळ्ळै तामरै..... 
वेळ्ळै तामरै....

महाकवि सुब्रमण्य भारती रचित सरस्वती वंदना
श्वेत कमल.....अनुवाद-डाॅ.जमुना कृष्णराज 

श्वेत कमल पुष्पों में बसती
और वीणा की झंकार में।
आनंदित करती कविता के
रचयिता के मन में है  बसती।।श्वेत कमल.......

गूढ़ अर्थों को प्रबोध करते  
वेदोच्चार के मंत्रों में बसती।
निष्कलंक मुनियों के करुणामय
वचनों का सार है बनती।।श्वेत कमल.......

गायिका के मीठे स्वर में और
शिशु की तुतली बोली में बसती।
गीत गाती कोयल के कंठ में 
और तोते की जिव्हा में बसती।। श्वेत कमल....... 

सुंदर चित्रों और कलाकृतियों में,
मंदिरों में भी है बसती।
सुंदरता साकार बन वह
खुशियाँ हमें है प्रदान करती।। श्वेत कमल....... 

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सरस्वती वंदना - कन्नड़

सरस्वती वंदना - कन्नड़ 
कृष्णमाचार पद्माचरण 














जन्म - २१-४-१९२० निधन - २२-७-२००२ 
आत्मज - स्व. जनकम्मा - स्व. आसुरी वी. राघवाचार्यलु 
संगीत निदेशन - मलैया मक्कालू, पा-पुण्य। 
*
श्रृंगपुराधीश्वरी शारदे!

शुभमंगळे सर्वाभीष्टप्रदे।
शंकर सन्नुते, श्री पद्मचरणे,
सकल कला विशारदे,
सलहेन्न ताये१, सामगान प्रिये।। 
श्रृंगपुराधीश्वरी.... 

करुणिसम्मा!२ श्रुतिगल माते!३   
कमनीय सप्तस्वर पूजिते 
काव्य गान कला स्वरूपिणी
कामित दायिनी कल्याणी जननी।। 
श्रृंगपुराधीश्वरी......
*
१. मेरी रक्षा करो हे माँ!, २. कृपा करो, ३. श्रुतिगति आदि की माता!
(साभार: जमुना कृष्णराज)
======================
हिंदी अनुवाद 
श्रृंगपुर अधीश्वरी शारदे! 

शुभ-मंगलकारिणी, अभीष्टप्रदे! 
जिनके पग पद्म सम, रक्षा करें। 
कलाओं  की तुम्ही हो विशारदे। 
सामगान प्रिय जिन्हें, रक्षा करें। 
श्रृंगपुर अधीश्वरी शारदे!

श्रुतियों की मैया! कृपा करें। 
सत सुर कमनीय, तुम्हें पूजते। 
काव्य गान कला रूप हैं तेरे 
अमित शांतिदात्री माँ कल्याण करें। 
श्रृंगपुर अधीश्वरी शारदे!
***


शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

नवगीत: राष्ट्रलक्ष्मी!

नवगीत:
राष्ट्रलक्ष्मी!
श्रम सीकर है
तुम्हें समर्पित
खेत, फसल, खलिहान
प्रणत है
अभियन्ता, तकनीक
विनत है
बाँध-कारखाने
नव तीरथ
हुए समर्पित
कण-कण, तृण-तृण
बिंदु-सिंधु भी
भू नभ सलिला
दिशा, इंदु भी
सुख-समृद्धि हित
कर-पग, मन-तन
समय समर्पित
पंछी कलरव
सुबह दुपहरी
संध्या रजनी
कोशिश ठहरी
आसें-श्वासें
झूमें-खांसें
अभय समर्पित
शैशव-बचपन
यौवन सपने
महल-झोपड़ी
मानक नापने
सूरज-चंदा
पटका-बेंदा
मिलन समर्पित
*