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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

नवगीत आश्वासन के उपन्यास

नवगीत:
संजीव

आश्वासन के उपन्यास 
कब जन गण की 
पीड़ा हर पाये?
.
नवगीतों ने व्यथा-कथाएँ
कही अंतरों में गा-गाकर
छंदों ने अमृत बरसाया
अविरल दुःख सह
सुख बरसाकर
दोहा आल्हा कजरी पंथी
कर्म-कुंडली बाँच-बाँचकर
थके-चुके जनगण के मन में
नव आशा
फसलें बो पाये
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नव प्रयास के मुखड़े उज्जवल
नव गति-नव यति, ताल-छंद नव
बिंदासी टटकापन देकर
पार कर रहे
भव-बाधा हर
राजनीति की कुलटा-रथ्या
घर के भेदी भक्त विभीषण
क्रय-विक्रयकर सिद्धांतों का
छद्म-कहानी
कब कह पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
हास्य-व्यंग्य जमकर विरोध में
प्रगतिशीलता दर्शा हारे
विडंबना छोटी कहानियाँ
थकीं, न लेकिन
नक्श निखारे
चलीं सँग, थक, बैठ छाँव में
कलमकार से कहे लोक-मन
नवगीतों को नवाचार दो
नयी भंगिमा
दर्शा पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.

नवगीत मफलर की जय

नवगीत:
संजीव
.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई. 
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
मेहनतकश हाथों ने बढ़
मतदान किया.
झुकाते माथों ने
गौरव का भान किया.
पंजे ने बढ़
बटन दबाया
स्वप्न बुने.
आशाओं के
कमल खिले
जयकार हुआ.
अवसर की जय
रात हटी तो प्रात हुई.
आसमान में आयी ऊषा.
पौध जगे,
पत्तियाँ हँसी,
कुछ कुसुम खिले.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
आम आदमी ने
खुद को
पहचान लिया.
एक साथ मिल
फिर कोइ अरमान जिया.
अपने जैसा,
अपनों जैसा
नेता हो,
गड़बड़ियों से लड़कर
जयी विजेता हो.
अलग-अलग पगडंडी
मिलकर राह बनें
केंद्र-राज्य हों सँग
सृजन का छत्र तने
जग सिरमौर पुनः जग
भारत बना सकें
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
११.२.२०१५ 

त्रिपदि / माहिया

कुछ त्रिपदियाँ
*
वादे मत बिसराना,
तुम हारो या जीतो-
ठेंगा मत दिखलाना।
*
जनता भी सयानी है,
नेता यदि चतुर तो
यान उनकी नानी है।
*
कर सेवा का वादा,
सत्ता-खातिर लड़ते-
झूठा है हर दावा।
*
पप्पू का था ठप्पा,
कोशिश रंग लाई है
निकला सबका बप्पा।
*
औंधे मुँह गर्व गिरा,
जुमला कह वादों को
नज़रों से आज गिरा।
*
रचना न चुराएँ हम,
लिखकर मौलिक रचना
निज नाम कमाएँ हम।
*
गागर में सागर सी
क्षणिका लघु, अर्थ बड़े-
ब्रज के नटनागर सी।
*
मन ने मन से मिलकर
उन्मन हो कुछ न कहा-
धीरज का बाँध ढहा।
*
है किसका कौन सगा,
खुद से खुद ने पूछा?
उत्तर जो नेह-पगा।
*
तन से तन जब रूठा,
मन, मन ही मन रोया-
सुनकर झूठी-झूठा।
*
तन्मय होकर तन ने,
मन-मृण्मय जान कहा-
क्षण भंगुर है दुनिया।
*

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

नवगीत आम आदमी

नवगीत: 
संजीव 
.
आम आदमी 
हर्ष हुलास 
हक्का-बक्का
खासमखास
रपटे
धारों-धार गये
.
चित-पट, पट चित, ठेलमठेल
जोड़-घटाकर हार गये
लेना- देना, खेलमखेल
खुद को खुद ही मार गये
आश्वासन या
जुमला खास
हाय! कर गया
आज उदास
नगदी?
नहीं, उधार गये
.
छोडो-पकड़ो, देकर-माँग
इक-दूजे की खींचो टाँग
छत पानी शौचालय भूल
फाग सुनाओ पीकर भाँग
जितना देना
पाना त्रास
बिखर गया क्यों
मोद उजास?
लोटा ले
हरि द्वार गये
.

नवगीत दुनिया बहुत सयानी

नवगीत : 
संजीव
.
दुनिया 
बहुत सयानी लिख दे 
.
कोई किसी की पीर न जाने
केवल अपना सच, सच माने
घिरा तिमिर में
जैसे ही तू
छाया भी
बेगानी लिख दे
.
अरसा तरसा जमकर बरसा
जनमत इन्द्रप्रस्थ में सरसा
शाही सूट
गया ठुकराया
आयी नयी
रवानी लिख दे
.
अनुरूपा फागुन ऋतु हर्षित
कुसुम कली नित प्रति संघर्षित
प्रणव-नाद कर
जनगण जागा
याद आ गयी
नानी लिख दे
.
भूख गरीबी चूल्हा चक्की
इनकी यारी सचमुच पक्की
सूखा बाढ़
ठंड या गर्मी
ड्योढ़ी बाखर
छानी लिख दे
.
सिहरन खलिश ख़ुशी गम जीवन
उजली चादर, उधड़ी सीवन
गौरा वर
धर कंठ हलाहल
नेह नरमदा
पानी लिख दे
.

१११.२.२०१५ 

रस चर्चा

रस-गगरी
*
काव्य को पढ़ने या सुनने से मिलनेवाला अलौकिक आनंद ही रस है। काव्य मानव मन में छिपे भावों को जगाकर रस की अनुभूति कराता है।

भरत मुनि के अनुसार "विभावानुभाव संचारी संयोगाद्रसनिष्पत्तिः"
अर्थात् विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
रस को साहित्य की आत्मा तथा ब्रम्हानंद सहोदर कहा गया है।
रस के ४ अंग स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव व संचारी भाव हैं।
विभिन्न संदर्भों में रस का अर्थ: एक प्रसिद्ध सूक्त है-
'रसौ वै स:'
अर्थात् वह परमात्मा ही रस रूप आनंद है।
'कुमारसंभव' में प्रेमानुभूति, पानी, तरल और द्रव के अर्थ में रस शब्द का प्रयोग हुआ है। 'मनुस्मृति' मदिरा के लिए रस शब्द का प्रयोग करती है। मात्रा, खुराक और घूँट के अर्थ में रस शब्द प्रयुक्त हुआ है। 'वैशेषिक दर्शन' में चौबीस गुणों में एक गुण का नाम रस है।
रस छह माने गए हैं- कटु, अम्ल, मधुर, लवण, तिक्त और कषाय।
स्वाद, रुचि और इच्छा के अर्थ में भी कालिदास रस शब्द का प्रयोग करते हैं। 'रघुवंश', आनंद व प्रसन्नता के अर्थ में रस शब्द काम में लेता है। 'काव्यशास्त्र' में किसी कविता की भावभूमि को रस कहते हैं। रसपूर्ण वाक्य को काव्य कहते हैं।
भर्तृहरि सार, तत्व और सर्वोत्तम भाग के अर्थ में रस शब्द का प्रयोग करते हैं। 'आयुर्वेद' में शरीर के संघटक तत्वों के लिए 'रस' शब्द प्रयुक्त हुआ है।
सप्तधातुओं को भी रस कहते हैं। पारे को रसेश्वर अथवा रसराज कहा है। पारसमणि को रसरत्न कहते हैं। मान्यता है कि पारसमणि के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। रसज्ञाता को रसग्रह कहा गया है। 'उत्तररामचरित' में इसके लिए रसज्ञ शब्द प्रयुक्त हुआ है। भर्तृहरि काव्यमर्मज्ञ को रससिद्ध कहते हैं। 'साहित्यदर्पण' प्रत्यक्षीकरण और गुणागुण विवेचन के अर्थ में रस परीक्षा शब्द का प्रयोग करता है। नाटक के अर्थ में 'रसप्रबन्ध' शब्द प्रयुक्त हुआ है।
करस प्रक्रिया: स्थायी भाव,  विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से मानव-ह्रदय में रसोत्पत्ति होती है। ये तत्व ह्रदय के स्थाई भावों को परिपुष्ट कर आनंदानुभूति करते हैं। रसप्रक्रिया न हो मनुष्य ही नहीं सकल सृष्टि रसहीन या नीरस हो जाएगी। संस्कृत में रस सम्प्रदाय के अंतर्गत इस विषय का विषद विवेचन भट्ट, लोल्लट, शंकुक, विश्वनाथ कविराज, अभिनव गुप्त आदि आचार्यों ने किया है। रस प्रक्रिय के अंग निम्न हैं-
१. स्थायी भाव- मानव ह्र्दय में हमेशा विद्यमान, छिपाये न जा सकनेवाले, अपरिवर्तनीय भावों को स्थायी भाव कहा जाता है।
रस: हिंदी साहित्य में श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स  अद्भुत, शांत और वात्सल्य रस मुख्य हैं।
१.  स्थायी भाव-
रति, हास शोक क्रोध उत्साह भय घृणा विस्मय निर्वेद संतान प्रेम आदि।
२. विभाव-
किसी व्यक्ति के मन में स्थायी भाव उत्पन्न करनेवाले कारण को विभाव कहते हैं। व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति भी विभाव हो सकती है। ‌
विभाव के दो प्रकार अ. आलंबन व आ. उद्दीपन हैं। ‌
अ. आलंबन: आलंबन विभाव के सहारे रस निष्पत्ति होती है। इसके दो भेद आश्रय व विषय हैं ‌।
आश्रयः जिस व्यक्ति में स्थायी भाव स्थिर रहता है उसे आश्रय कहते हैं। ‌श्रृंगार रस में नायक नायिका एक दूसरे के आश्रय होंगे।‌
विषयः जिसके प्रति आश्रय के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न हो, उसे विषय कहते हैं ‌ "क" को "ख" के प्रति प्रेम हो तो "क" आश्रय तथा "ख" विषय होगा।‌
आ. उद्दीपन विभाव- आलंबन द्वारा उत्पन्न भावों को तीव्र करनेवाले कारण उद्दीपन विभाव कहे जाते हैं। जिसके दो भेद बाह्य वातावरण व बाह्य चेष्टाएँ हैं। कभी-कभी प्रकृति भी उद्दीपन का कार्य करती है। यथा पावस अथवा फागुन में प्रकृति की छटा रस की सृष्टि कर नायक-नायिका के रति भाव को अधिक उद्दीप्त करती है। गर्जन सुनकर डरनेवाला व्यक्ति आश्रय, सिंह विषय, निर्जन वन, अँधेरा, गर्जन आदि उद्दीपन विभाव तथा सिंह का मुँह फैलाना आदि विषय की बाह्य चेष्टाएँ हैं ।
३. अनुभावः आश्रय की बाह्य चेष्टाओं को अनुभाव या अभिनय कहते हैं। भयभीत व्यक्ति का काँपना, चीखना, भागना या हास्य रसाधीन व्यक्ति का जोर-जोर से हँसना, नायिका के रूप पर नायक का मुग्ध होना आदि।
४. संचारी (व्यभिचारी) भाव- आश्रय के चित्त में क्षणिक रूप से उत्पन्न अथवा नष्ट मनोविकारों या भावों को संचारी भाव कहते हैं। भयग्रस्त व्यक्ति के मन में उत्पन्न शंका, चिंता, मोह, उन्माद आदि संचारी भाव हैं। मुख्य ३३ संचारी भाव निर्वेद, ग्लानि, मद, स्मृति, शंका, आलस्य, चिंता, दैन्य, मोह, चपलता, हर्ष, धृति, त्रास, उग्रता, उन्माद, असूया, श्रम, क्रीड़ा, आवेग, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अवमर्ष, अवहित्था, मति, व्याथि, मरण, त्रास व वितर्क हैं।
***
संजीव

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

navgeet sugga bolo

गीतः 
सुग्गा बोलो 
जय सिया राम...
सन्जीव
*
सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
*
काने कौए कुर्सी को
पकड़ सयाने बन बैठे
भूल गये रुकना-झुकना
देख आईना हँस एँठे
खिसकी पाँव तले धरती
नाम हुआ बेहद बदनाम...
*
मोहन ने फिर व्यूह रचा
किया पार्थ ने शर-सन्धान
कौरव हुए धराशायी
जनगण सिद्‍ध हुआ मतिमान
खुश मत हो, सच याद रखो
जन-हित बिन होगे गुमनाम...
*
हर चूल्हे में आग जले
गौ-भिक्षुक रोटी पाये
सांझ-सकारे गली-गली
दाता की जय-जय गाये
मौका पाये काबलियत
मेहनत पाये अपना दाम...
*
१३-७-२०१४

muktika mil gaya

मुक्तिका 
मिल गया 
*
घर में आग लगानेवाला, आज मिल गया है बिन खोजे. 
खुद को खुदी मिटानेवाला, हाय! मिल गया है बिन खोजे.
*
जयचंदों की गही विरासत, क्षत्रिय शकुनी दुर्योधन भी
बच्चों को धमकानेवाला, हाथ मिल गया है बिन खोजे.
*
'गोली' बना नारियाँ लूटीं, किसने यह भी तनिक बताओ?
निज मुँह कालिख मलनेवाला, वीर मिल गया है बिन खोजे.
*
सूर्य किरण से दूर रखा था, किसने शत-शत ललनाओं को?
पूछ रहे हैं किले पुराने, वक्त मिल गया है बिन खोजे.
*
मार मरों को वीर बन रहे, किंतु सत्य को पचा न पाते
अपने मुँह जो बनता मिट्ठू, मियाँ मिल गया है बिन खोजे.
*
सत्ता बाँट रही जन-जन को, जातिवाद का प्रेत पालकर
छद्म श्रेष्ठता प्रगट मूढ़ता, आज मिल गया है बिन खोजे.
*
अब तक दिखता जहाँ ढोल था, वहीं पोल सब देख हँस रहे
कायर से भी ज्यादा कायर, वीर मिल गया है बिन खोजे.
***
२५.१.२०१८

navgeet gayee bhains

नवगीत:
संजीव
.
गयी भैंस 
पानी में भाई!
गयी भैंस पानी में
.
पद-मद छोड़ त्याग दी कुर्सी
महादलित ने की मनमर्जी
दाँव मुलायम समझा-मारा
लालू खुश चार पायें चारा
शरद-नितिश जब पीछे पलटे
पाँसे पलट हो गये उलटे
माँझी ने ही
नाव डुबोई
लगी सेंध सानी में
.
गाँधी की दी खूब दुहाई
कहा: 'सादगी है अपनाई'
सत्तर लाखी सूट हँस रहा
फेंक लँगोटी तंज कस रहा
'सब का नेता' बदले पाला
कहे: 'चुनो दल मेरा वाला'
जनगण ने
जब भौंहें तानीं
गया तेल घानी में
.
८-२-२०१५

karya shala kavita karen

आये कविता करें: ११
पर्ण छोड़ पागल हुए, लहराते तरु केश ।
आदिवासी रूप धरे, जंगल का परिवेश ।। - संदीप सृजन
- सलिल सर! आपने मेरे दोहे पर टीप दी धन्यवाद .... मुझे पता है तीसरे चरण में जगण ऽ।ऽ हो रहा है इसे आप सुधार कर भेजने का कष्ट करे
= यहाँ एक बात और विचारणीय है. वृक्ष पत्ते अर्थात वस्त्र छोड़ पागल की तरह केश या डालियाँ लहरा रहे हैं. इसे आदिवासी रूप कैसे कहा जा सकता है? आदिवासी होने और पागल होने में क्या समानता है?
- क्या नग्न शब्द का उपयोग किया जाए
= नंगेपन और अदिवासियों में भी कोइ सम्बन्ध नहीं है. उनसे अधिक नग्न नायिकाएं दूर दर्शन पर निकट दर्शन कराती रहती हैं.
- आदिवासी शब्द प्रतीक है .... जैसे अंधे को सूरदास कहा जाता है
= लेकिन यह एक समूचा संवर्ग भी है. क्या वह आहत न होगा? यदि आप एक आदिवासी होते तो क्या इस शब्द का प्रयोग इस सन्दर्भ में करते?
पर्ण छोड़ पागल हुए, तरु लहराते केश
शहर लीलता जा रहा, जंगल का परिवेश. -यह कैसा रहेगा?
-बिम्ब के प्रयोग में क्या आपत्ति? ... कई लोगो ने ये प्रयोग किया है
= मुझे कोई आपत्ति नहीं. यदि आप वही कहना चाहते हैं जो व्यक्त हो रहा है तो अवश्य कहें. यदि अनजाने में वह व्यक्त हो रहा है जो मंतव्य नहीं है तो परिवर्तन को सोचें. दोहा आपका है. जैसा चाहें कहें. मैं अपना सुझाव वापिस लेता हूँ. आपको हुई असुविधा हेतु खेद है.
- शहरी परवेश का पत्ते त्यागने से कोई संबध नही होता ..... पेड कही भी हो स्वभाविक प्रक्रिया मे वसंत मे पत्ते त्याग देते है. सर! कोई असुविधा या खेद की बात नही .... मै जानता हूँ आप छंद के विद्वान है... मेरे प्रश्न पर आप मुझे संतुष्ट करे तो कृपा होगी .. मै तो लिखना सीख रहा हूँ. मुझे समाधान नही संतुष्टि चाहिए ... जो आप दे सकते है.
= साहित्य सबके हितार्थ रचा जाता है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रचनाकार को होती ही है. मुझे ऐसा लगता है कि अनावश्यक किसी को मानसिक चोट क्यों पहुँचे ? उक्ति है: 'सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयात मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम' अर्थात जब सच बोलो तो प्रिय बोलो / अप्रिय सच को मत ही बोलो'.
- नीलू मेघ जी का एक दोहा देखें
महुआ भी गदरा गया , बौराया है आम
मौसम ने है काम किया मदन हुआ बदनाम...
यहाँ 'मौसम ने है काम किया' १३ के स्थान पर १४ मात्राएँ हैं. कुछ परिवर्तन ' मौसन ने गुल खिलाया' करने से मात्रिक संतुलन स्थापित हो जाता है, 'गुल खिलाना' मुहावरे का प्रयोग दोहे के चारूत्व में वृद्धि करता है.

navgeet man ki lagam

नवगीत:
संजीव
.
मन की 
मत ढीली लगाम कर 
.
मन मछली है फिसल जायेगा
मन घोड़ा है मचल जायेगा
मन नादां है भटक जाएगा
मन नाज़ुक है चटक जायेगा
मन के
संयम को सलाम कर
.
तन माटी है लोहा भी है
तन ने तन को मोहा भी है
तन ने पाया - खोया भी है
तन विराग का दोहा भी है
तन की
सीमा को गुलाम कर
.
धन है मैल हाथ का कहते
धन को फिर क्यों गहते रहते?
धनाभाव में जीवन दहते
धनाधिक्य में भी तो ढहते
धन को
जीते जी अनाम कर
.
जीवन तन-मन-धन का स्वामी
रखे समन्वय तो हो नामी
जो साधारण वह ही दामी
का करे पर मत हो कामी
जीवन
जी ले, सुबह-शाम कर
***
९-२-२०१५

navgeet khoob hansa

नवगीत:
संजीव
.
जब जग मुझ पर झूम हँसा 
मैं दुनिया पर खूब हँसा
.
रंग न बदला, ढंग न बदला
अहं वहं का जंग न बदला
दिल उदार पर हाथ हमेशा
ज्यों का त्यों है तंग न बदला
दिल आबाद कर रही यादें
शूल विरह का खूब धँसा
.
मैंने उसको, उसने मुझको
ताँका-झाँका किसने-किसको
कौन कहेगा दिल का किस्सा?
पूछा तो दिल बोला खिसको
जब देखे दिलवर के तेवर
हिम्मत टूटी कहाँ फँसा?
***

९-२-२०१५ 

navgeet neki kar

नवगीत:
संजीव

'नेकी कर 
दरिया में डालो'
कह गये पुरखे
.
याद न जिसको
रही नीति यह
खुद से खाता रहा
भीती वह
देकर चाहा
वापिस ले ले
हारा बाजी
गँवा प्रीति वह
कुछ भी कर
आफत को टालो
कह गये पुरखे
.
जीत-हार
जो हो, होने दो
भाईचारा
मत खोने दो
कुर्सी आएगी
जाएगी
जनहित की
फसलें बोने दो
लोकतंत्र की
नींव बनो रे!
कह गए पुरखे
***

valentine rose day tofee day muktak

हास्य सलिला:
लाल गुलाब 
संजीव
*
लालू जब घर में घुसे, लेकर लाल गुलाब
लाली जी का हो गया, पल में मूड ख़राब
'झाड़ू बर्तन किये बिन, नाहक लाये फूल
सोचा, पाकर फूल मैं जाऊंगी सच भूल
लेकिन मुझको याद है ए लाली के बाप!
फूल शूल के हाथ में देख हुआ संताप
फूल न चौका सम्हालो, मैं जाऊं बाज़ार
सैंडल लाकर पोंछ दो जल्दी मैली कार.'
****
हास्य सलिला:
वैलेंटाइन पर्व:
संजीव
*
भेंट पुष्प टॉफी वादा आलिंगन भालू फिर प्रस्ताव
लला-लली को हुआ पालना घर से 'प्रेम करें' शुभ चाव
कोई बाँह में, कोई चाह में और राह में कोई और
वे लें टाई न, ये लें फ्राईम, सुबह-शाम बदलें का दौर

***
मुक्तक :
संजीव
.
जो हुआ अनमोल है बहुमूल्य, कैसे मोल दूँ मैं ?
प्रेम नद में वासना-विषज्वाल कैसे घोल दूँ मैं?
तान सकता हूँ नहीं मैं तार, संयम भंग होगा-
बजाना वीणा मुझे है कहो कैसे झोल दूँ मैं ??
.
मानकर पूजा कलम उठायी है
मंत्र गायन की तरह चलायी है
कुछ न बोले मौन हैं गोपाल मगर
जानता हूँ कविता उन्हें भायी है
.
बेरुखी ज्यों-ज्यों बढ़ी ज़माने की
करी हिम्मत मैंने आजमाने की
मिटेंगे वे सब मुझे भरोसा है-
करें जो कोशिश मुझे मिटाने की
.
सर्द रातें भी कहीं सोती हैं?
हार वो जान नहीं खोती हैं
गर्म जो जेब उसे क्या मालुम
जाग ऊसर में बीज बोती हैं
.
बताओ तो कौन है वह, कहो मैं किस सा नहीं हूँ?
खोजता हूँ मैं उसे, मैं तनिक भी जिस सा नहीं हूँ
हर किसी से कुछ न कुछ मिल साम्यता जाती है मुझको-
इसलिए हूँ सत्य, माने झूठ मैं उस सा नहीं हूँ
.
राह कितनी भी कठिन हो, पग न रुकना अग्रसर हो
लाख ठोकर लगें, काँटें चुभें, ना तुझ पर असर हो
स्वेद से श्लथ गात होगा तर-ब-तर लेकिन न रुकना
सफल-असफल छोड़ चिंता श्वास से जब भी समर हो
...

९-२-२०१५ 

doha valentine

दोहा सलिला:
वैलेंटाइन 
संजीव
*
उषा न संध्या-वंदना, करें खाप-चौपाल 
मौसम का विक्षेप ही, बजा रहा करताल
*
लेन-देन ही प्रेम का मानक मानें आप
किसको कितना प्रेम है?, रहे गिफ्ट से नाप
*
बेलन टाइम आगया, हेलमेट धर शीश
घर में घुसिए मित्रवर, रहें सहायक ईश
*
पर्व स्वदेशी बिसरकर, मना विदेशी पर्व
नकद संस्कृति त्याग दी, है उधार पर गर्व
*
उषा गुलाबी गाल पर, लेकर आई गुलाब
प्रेमी सूरज कह रहा, प्रोमिस कर तत्काल
*
धूप गिफ्ट दे धरा को, दिनकर करे प्रपोज
देख रहा नभ मन रहा, वैलेंटाइन रोज
*
रवि-शशि से उपहार ले, संध्या दोनों हाथ
मिले गगन से चाहती, बादल का भी साथ
*
चंदा रजनी-चाँदनी, को भेजे पैगाम
मैंने दिल कर दिया है, दिलवर तेरे नाम
*
पुरवैया-पछुआ कहें, चखो प्रेम का डोज
मौसम करवट बदलता, जब-जब करे प्रपोज
*

९.२.२०१५ 

das matrik chhand

दस मात्रिक छंद
२५. १० लघु मात्रा
हर दम छल मत कर
शुभ तज, अशुभ न वर
पथ पर बढ़, मत रुक
नित नव करतब कर
.
'सलिल' प्रवह कलकल
सुख गहकर पल-पल
रुक मत कल रख चल
मनुज न बन अब कल
*
२६. ८ लघु, १ गुरु
नित नर्तित नटवर
गुरु गर्वित गिरिधर
चिर चर्चित चंचल
मन हरकर मनहर
*
२७. ६ लघु, २ गुरु
नित महकती कली
खिल चहकती भली
ललच भँवरे मिले
हँस, बहकती कली
राह फिसलन भरी
झट सँभलती कली
प्रीत कर मत अभी
बहुत सँकरी गली
संयमित रह सदा
सुरभि देकर ढली
*
२८. ४ लघु, ३ गुरु
धन्य-धन्य शंकर
वन्दन संकर्षण
भोले प्रलयंकर
दृढ़ हो आकर्षण
आओ! डमरूधर
शाश्वत संघर्षण
प्रगटे गुप्तेश्वर
करें कृपा-वर्षण
.
हमें साथ रहना
मिला हाथ रहना
सुख-दुःख हैं सांझा
उठा माथ कहना
*
२९. २ लघु, ४ गुरु
बोलो, सच बोलो
पोल नहीं खोलो
सँग तुम्हारे जो
तुम भी तो हो लो
.
तू क्यों है बेबस?
जागो-भागो हँस
कोई देगा न साथ
सोते-रोते नाथ?
*
३०. ५ गुरु
जो चाहो बोलो
बातों को तोलो
झूठों को छोड़ा
सच्चे तो हो लो
.
जो होना है हो
रोकोगे? रोको
पाया खो दोगे
खोया पा लोगे
*

मुक्तक

मुक्तक 
मुक्त मन से लिखें मुक्तक 
सुप्त को दें जगा मुक्तक 
तप्त को शीतल करेंगे 
लुप्त को लें बुला मुक्तक
*

muktak

मुक्तक 
हमें ही है आना 
हमें ही है छाना 
बताता है नेता 
सताता है नेता 
*

तकनीक- जीन एडिटिंग: कल और आज

तकनीक-
जीन एडिटिंग: कल और आज
संजीव
*
भारतीय पौराणिक वांग्मय में अनेक प्रसंग हैं जिनमें असामान्य जन्म संकेतित है। गणेश,  कार्तिकेय, दशरथ नंदन, सीता, कौरव, द्रौपदी आदि के प्रसंग सर्वविदित हैं। विग्यान सम्मत टैस्ट ट्यूब बेबी और सरोगेसी जन्म काल्पनिक कहे जाते अनेक प्रसंगों को प्रामाणिक ठहरा रहा है।महाभारत कालीन विश्वामित्र के जन्म की कथा तथा विश्वामित्र की बहिन सत्यवती की कोख से महर्षि जमदग्नि के जन्म की कथा असामान्य हैं। गांधारी को गर्भपात पश्चात् मांसपिंड से वेदव्यास द्वारा सौ कौरवों का जन्म कराना अब तक अविश्वसनीय माना जाता रहा है।

राजा गाधि की पुत्री सत्यवती की विवाह ऋषि ऋचीक से हुआ था। सत्यवती को संतान न होने पर ऋचीक ने कृत्रिम विधि से संतान प्राप्ति का निश्चय किया। सत्यवती ने अपनी माता के लिए पुत्र प्राप्ति का उपाय करने को कहा ताकि उनके पिता को गद्दी का वारिस मिल सके। भृगु ने दिव्य औषधियों से युक्त दो चरु (घड़ा की तरह के पात्र)
तैयार किए। सत्यवती को लिए वैदग्य पुत्र तथा उनकी माता के लिए क्षत्रिय पुत्र हो ऐसे गुण सूत्रों की रचना ऋचीक ने की। सत्यवती की माँ को संदेह हुआ कि जामाता ने अपनी पत्नि को लिए श्रेष्ठ पुत्र की उपाय किया होगा। उन्होंने चुपचाप चरु बदल लिए। फलत: सत्यवती को वीरवर जमदग्नि तथा माँ को ऋषि विश्वामित्र की- प्राप्ति हुई। जमदग्नि-पुत्र परशुराम भी वीर हुए।

महाभारत काल में ही गर्भ-धारण के नवें माह में गांधारी का गर्भपात होने पर महर्षि व्यास ने सौ चरुओं में औषधियुक्त घी भरकर इनमें मांस पिंड को टुकड़े डालकर उनके मुँह बंद कर दिए। कुथ दिन बाद गांधारी ने एक पुत्री की कामना की तो व्यास ने एक चरु खोलकर उसके मांसपिंड का उपचार कर चरु बंद  कर दिया। इनसे दो वर्ष बाद ९९ कौरव भाइयों तथा उनकी एक बहिन दुबला का जन्म हुआ।

मार्स काल में चाणक्य द्वारा बिंबसार का जन्म भी असाधारण विधि से कराया गया था। ऐसे प्रसंगों को गल्प कहा जाता रहा पर अब विग्यान इन पर सत्यता की मुहर लगाने जा रहा है।

विग्यान के अनुसार हर नया जीव पुराने का नया संस्करण होता है। वह नए रंग-रूप को साथ वंशानुगत गुण-दोष लेकर पैदा होता है। यदि भ्रूण की कोशिकाओं में बदलाव किया जा सके तो वंशानुगत दोषों, बीमारियों को दूर किया जा सकता है तथा वांछित गुण संपन्न जातक प्राप्त किया जा सकता है। चीनी वैग्यानिक हे जियानकुई ने वंशानुगत संशोधन (जीन एडिटिंग) की तकनीक 'क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिनड्रोमिक रिपीट्स' (सीआरआईएसपीआर) द्वारा नवंबर २०१८ के अंतिम सप्ताह में दो बच्चियों को जन्म की दावा किया है। इस तकनीक में एक जीनोम से- आनुवंशिक तत्व निकालकर अन्य जीनोम में डाला जाता है। डीएनए में कोशिका स्तर पर बदलाव से संतान को माता-पिता की बीमारियों से मुक्त किया जा सकता है।
जियानकुई का दावा है कि उन्होंने एचआईवी (एड्स) संक्रमित पिता की जीन कुंडली में बदलाव कर नवजातों को इस वंशानुगत रोग से मुक्ति दिलाई है।

इसके पूर्व चीन ने २०१८ में ही वंशाणु परिवर्धन और भ्रूणीय स्तंभ कोशिका (एंब्रायोनिक स्टेम सेल) की मदद से २०-१० भ्रूणों से २९ स्वस्थ संतानों को जन्म दिया गया जिन्होंने संतानों को जन्म दिया तथा खुद पूरी उम्र जिए। चीन में दो चूहों की मदद से संतानोत्पत्ति का प्रयोग किया गया पर वह अल्पजीवी रही। शोधकर्ता क्ली धोई के अनुसार जो नर या दो मादा चूहों से भी संतानोत्पत्ति संभव है। भारत में 'पुनर्मूषको भव' (फिर चुहिया हो जा) कहानी में ऋषि बाज से त्रस्त चुहिया को मानवी बनाकर पाते हैं तथा  विवाहयोग्य होने पर उसके द्वारा सूर्य, बादल, पवन व पर्वत को ठुकराकर चूहे को पसंद करने पर फिर चुहिया बनाकर ब्याह देते हैं। यह कथा  वंशानुगत गुण-दोष का प्रभाव तथा बदलाव का सत्य युगों से बताती आई है जिसे अब विग्यान सत्य सिद्ध कर रहा है।

मनचाहे गुणयुक्त संतान की कामना पूर्ति की राह सहज नहीं है। जीन विलीन करने की तकनीकों से सरीसृपों व उभयचर जीवों तथा मछलियों में केवल नर या मादा से संतान उत्पन्न करने में सफलता मिलने का बाद भी दो चुहियों से पैदा की गई संतान में कमियाँ पाई गईं जिन्हें हैप्लॉयड एंब्रायोनिक स्टेम सेल की मदद से दूर किया गया। २०१८ के आरंभ में चाइनीज़ इंस्टीयूट अॉफ न्यूरोसाइंस के वैग्यानिकों ने बंदर की त्वचा से ली गई स्तंभ कोशिकाओं से भ्रूण की विकास कर बंदरों को अस्तित्व में लाए हैं। लगभग २-२ साल पहले डॉली नामित भेड़ का उत्सर्जन विभाजित स्तंभ कोशिकाओं को विशिष्ट कोशिका के रूप में विकसित कर किया गया था। मेंढक,  भेड़,  कुत्ता, बिल्ली, सुअर, चूहे, खरगोश व गाय आदि २० से अधिक जैव-प्रजातियों को क्लोन से उत्पन्न किया जा चुका है किंतु मानव क्लोन बनाना अब तक संभव नहीं हुआ था।

किसी प्राणी की कायिक कोशिका (सोमोटिक सेल) के केंद्रक (न्यूक्लियस) का स्थानांतरण अति कठिन है। यह ऐसी अलिंगी प्रक्रिया है जिससे किसी प्राणी की प्रतिकृति तैयार की जा सकती है। चीनी वैग्यानिकों ने 'मकैक' प्रजाति के वानरों के क्लोन से 'हुआ-हुआ' और 'झोंग-झोंग' वानरों को अवतरित कर चमत्कार किया। इसका उद्देश्य एक जैसे जींसवाले वानरों का निर्माण करना बताया गया ताकि मानवों हेतु अनिवार्य औषधियों के परीक्षण किए जा सकें। इस तरह पार्किंसन,  हृदय रोग आदि पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।

चीन जीन संशोधन से चूहे और क्लोन पद्धति से- दो वानरों का निर्माण कर कृत्रिम मानव निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया है। एड्स पीड़ित पिता - एड्स मुक्त माता की संतान को वंशानुगत एड्स से मुक्त रखने के लिए कोशिका से एड्स विषाणु को 'क्रिस्पर कैश ९' तकनीक द्वारा अलग किया गया। इस तकनीक को 'अणु कैंची' कहा जा सकता है। यह तकनीक 'कैश ९' नामक एंजाइम का प्रयोग कर डीएनए में प्रवाहित विषाणु को काटकर पृथक कर देती है। इस प्रक्रिया में आरएनए अणु दिशा-निदेशक की तरह कार्य करता है। जीव परिवर्तन द्वारा इच्छित गुण युक्त बच्चे या 'डिजाइनर बच्चे' उत्पन्न किए जा सकेंगे। इसमें अनंत संभावनाएँ छिपी हैं। बच्चों को रोगमुक्त करने के साथ अति बुद्धिमान बनाना भी संभव हो सकेगा। 

'जीन संपादन' (जीन एडिटिंग) मानव जीवन के रहस्य छिपाए तीन अरब रासायनिक रेखा-तंतु मानव जीनोमों में परिवर्तन कर मनचाहे गुणयुक्त संतति प्राप्ति का प्रयास है। 

मानव-जीनोम की संरचना को वर्ष २००० में अमरीका के क्लेग वेंटर व फ्रांसिस कॉलिंस ने जीवन की आधारभूत संजीवनी डीएनए (डिअॉक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड) के असंख्य अणुओं का प्रक्रिया को समझा। दुनिया के सामने पहली बार डीएनए की जटिल-रहस्यमय संरचना प्रकट हुई। मानव मस्तिष्क में क्रिया-प्रतिक्रिया संकेतक एक लाख से अधिक डीएनए-तंतु (जीन) होने की पूर्वधारणा भंग हुई। इन दोनों ने प्रमाणित किया कि मानव शरीर में तीस हजार जीन हैं। मनुष्यों और चूहों के जीवों में सादृश्यता के कारण मनुष्य की आंतरिक संरचना को समझने के लिए सर्वाधिक प्रयोग चूहों पर किए गए। जीनों के व्यवहार व प्रभाव की जानकारी बढ़ने के साथ रोगों पर नियंत्रण कोशिका स्तर पर ही पाया जा सकेगा। जीन एडिटिंग चिकित्सा जगत में क्रांतिकारी परिवर्तन की वाहक होगी।

हम एक-

वसुधैव कुटुंबकम् और विश्वैक नीड़म् की भारतीय अवधारणाओं को इस अनुसंधान ने सत्य प्रमाणित किया है। दुनिया के सभी मनुष्यों के ९९.९९ प्रतिशत जीन समान पाए गए हैं। भारतीय अध्यात्म एक ब्रम्ह से सकल सृष्टि की उत्पत्ति मानता  है। पौराणिक साहित्य सबको मनु-शतरूपा का वंशज कहता है। ईसाई व मुसलमान मत आदम-हव्वा की औलाद बताते हैं। अमरीकी वैग्यानिकों मार्क स्टोकर व डेविड थॉलर ने एक लाख प्रजातियों के पचास लाख पशुओं व मानवों के डीएनए बारकोड परीक्षण कर सब मानवों को एक ही स्त्री-पुरुष की संतानें बताया है जो लगभग दो लाख साल पहले पृथ्वी पर कहीं रहते थे। 

यह भी कि हर दस में से नौ प्राणियों का जन्म व विकास एक ही माता-पिता से- हुआ है और सभी जीवों की ९९ प्रतिशत प्रजातियाँ विद्यमान हैं। सनातन धर्म में प्रचलित दशावतार की अवधारणा को यह खोज सही बताती है।

नर ही प्रमुख 

जीनों में अधिकतम परिवर्तन नर प्रजातियों में पाए गए हैं। वे आनुवंशिक गुण-दोषों के वाहक हैं। संभवत: इसीलिए नर को प्रमुखता प्राप्त हुई। लगभग ढाई करोड़ साल पहले वनमानुष से मानव के विकास का राज भी तथा ग्यानेंद्रियों-कर्मेंद्रियों के विकास का मूल यहीं मिला। पंद्रह हजार मानव रोगों में से पाँच हजार को ही विग्यान अब तक जान सका है । इनमें से भी अधिकतर का उपचार प्रतिरोधी (एंटीबायोटिक्स) औषधियों पर आधारित है। एचआईवी, एड्स, स्तन कैंसर, वंशानुगत अंधत्व, मिरगी आदि तीस जीन आधारित बीमारियों का पता लग चुका है। अमरीकी व दक्षिण कोरियाई वैग्यानिकों ने २०१७ में साइंस पत्रिका में हृदय की धमनियों में चर्बी बढ़ानेवाला जीन की खोजकर उसे जीन एडिटिंग वंशाणु परिवर्धन प्रौद्योगिकी कैश ९ द्वारा दूर करने का दावा किया है। वंशानुगत कर्क रोग (कैंसर), मधुमेह, सीजोफ्रेनिया, नशा आदि रोगों के जड़-मूल से समाप्त करने मेंजीन एडिटिंग सक्षम होगी पर दमा, रक्तचाप, जोड़ दर्द का कारण जीन न होने से इन पर प्रभावी नहीं होगी। 

सवालों का चक्रव्यूह 

जीन एडिटिंग को प्रकृति या विधाता के काम में हस्तक्षेप मानकर इसका विरोध करनेवाले आस्तिक असंख्य हैं। इसके राजनैतिक दुरुपयोग व सामाजिक दुष्प्रभावों की आशंकाएँ भी अनंत हैं। भारत में अल्ट्रासोनोग्राफी का सामाजिक दुष्प्रभाव पुरुषों की तुलना में स्त्री जन्म दर में गिरावट के रूप में देखा गया। जीन एडिटिंग को रंग विशेष की संतानों कि लिए प्रयोग किए जाने पर विषमता बढ़ेगी। हर दंपति विद्वान, सुंदर,  सबल संतान लाएगा तो समाज से विविधता समाप्त हो जाएगी। विधिक व कानूनी पहलू की दृष्टि से भी जीन एडिटिंग नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करेगी। आज डाटा कनेक्शन,  डाटा चोरी का संकट सामने है,  कल डीएनए बैंक, डीएनए चोरी व दुरुपयोग का संकट जीना हराम करेगा। 

प्रश्न यह भी है कि क्या जीन एडिटिंग से आतंकवादी और आपराधिक मानसिकता को समाप्त किया जा सकेगा?  भारतीय वांग्मय में अनेक कथाएँ हैं जिनमें देवताओं से- विशिष्ट शक्तियाँ पाने, उनका दुरुपयोग कर आतंक फैलाने और मानवता के खतरे में पड़ने का वर्णन है। क्या यह जीनथिरैपी से ही नहीं हुआ होगा या भविष्य में नहीं होगा? ऐसा हुआ तो जीन थिरैपी वरदान कम अभिशाप अधिक होगी। मनुष्य विग्यान की इस अनुपम तकनीक से क्या करेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है पर फिलहाल तो अनंत संभावनाओं के दरवाजे खोल रही है जीन कुंडली।

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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

मुक्तक

मुक्तक
साहित्य की आराधना आनंद ही आनंद है. 
काव्य-रस की साधना आनंद ही आनंद है. 
'सलिल' सा बहते रहो, सच की शिला को फोड़कर. 
रहे सुन्दर भावना आनंद ही आनंद है.