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मंगलवार, 17 नवंबर 2015

dipak alankar

अलंकार सलिला: ३१  
दीपक अलंकार
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    दीपक वर्ण्य-अवर्ण्य में, देखे धर्म समान 
    धारण करता हो जिसे, उपमा संग उपमान 

जहाँ वर्ण्य (प्रस्तुत) और अवर्ण्य (अप्रस्तुत) का एक ही धर्म स्थापित किया जाये, वहाँ दीपक अलंकार होता है। 

अप्रस्तुत एक से अधिक भी हो सकते हैं

तुल्ययोगिता और दीपक में अंतर यह है कि प्रथम में प्रस्तुत और प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत और अप्रस्तुत का धर्म 

समान होता है जबकि द्वितीय में प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों का समान  धर्म बताया जाता है

    जब प्रस्तुत औ' अप्रस्तुत, में समान हो धर्म

    तब दीपक जानो 'सलिल', समझ काव्य का मर्म

    यदि प्रस्तुत वा अप्रस्तुत, गहते धर्म समान

    अलंकार दीपक कहे, वहाँ सभी मतिमान

    दीपक वर्ण्य-अवर्ण्य के, देखे धर्म समान

    कारक माला आवृत्ति, तीन भेद लें जान

उदाहरण:

१. सोहत मुख कल हास सौं, अम्ल चंद्रिका चंद्र

   प्रस्तुत मुख और अप्रस्तुत चन्द्र को एक धर्म 'सोहत' से अन्वित किया गया है

२. भूपति सोहत दान सौं, फल-फूलन-उद्यान
    
    भूपति और उद्यान का सामान धर्म 'सोहत' दृष्टव्य है

३. काहू के कहूँ घटाये घटे नहिं, सागर औ' गन-सागर प्रानी

   प्रस्तुत हिंदवान और अप्रस्तुत कामिनी, यामिनी व दामिनी का एक ही धर्म 'लसै' कहा गया है

४. डूँगर केरा वाहला, ओछाँ केरा नेह
    वहता वहै उतावला, छिटक दिखावै छेह 

    अप्रस्तुत पहाड़ी नाले, और प्रस्तुत ओछों के प्रेम का एक ही धर्म 'तेजी से आरम्भ तथा शीघ्र अंत' कहा है 

५. कामिनी कंत सों, जामिनी चंद सोन, दामिनी पावस मेघ घटा सों 

    जाहिर चारहुँ ओर जहाँ लसै, हिंदवान खुमान सिवा सों

६. चंचल निशि उदवस रहैं, करत प्रात वसिराज

    अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज

७. नृप मधु सों गजदान सों, शोभा लहत विशेष  

अ. कारक दीपक:

जहाँ अनेक क्रियाओं में एक ही कारक का योग होता है वहाँ कारक दीपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. हेम पुंज हेमंत काल के इस आतप पर वारूँ

    प्रियस्पर्श की पुलकावली मैं, कैसे आज बिसारूँ?

    किन्तु शिशिर में ठंडी साँसें, हाय! कहाँ तक धारूँ?

    तन जारूँ, मन मारूँ पर क्या मैं जीवन भी हारूँ

२. इंदु की छवि में, तिमिर के गर्भ में,

    अनिल की ध्वनि में, सलिल की बीचि में

    एक उत्सुकता विचरती थी सरल,

    सुमन की स्मृति में, लता के अधर में

३. सुर नर वानर असुर में, व्यापे माया-मोह

    ऋषि मुनि संत न बच सके, करें-सहें विद्रोह  

४. जननी भाषा / धरती गौ नदी माँ / पाँच पालतीं  

५. रवि-शशि किरणों से हरें 
    तम, उजियारा ही वरें 
    भू-नभ को ज्योतित करें   

आ. माला दीपक:

जहाँ पूर्वोक्त वस्तुओं से उत्तरोक्त वस्तुओं का एकधर्मत्व स्थापित होता है वहाँ माला दीपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. घन में सुंदर बिजली सी, बिजली में चपल चमक सी

    आँखों में काली पुतली, पुतली में श्याम झलक सी

    प्रतिमा में सजीवता सी, बस गर्भ सुछवि आँखों में

    थी एक लकीर ह्रदय में, जो अलग रही आँखों में

२. रवि से शशि, शशि से धरा, पहुँचे चंद्र किरण 
    कदम-कदम चलकर करें, पग मंज़िल का वरण

३. ध्वनि-लिपि, अक्षर-शब्द मिल करें भाव अभिव्यक्त
    काव्य कामिनी को नहीं, अलंकार -रस त्यक्त  

४. कूल बीच नदिया रे / नदिया में पानी रे 
    पानी में नाव रे / नाव में मुसाफिर रे  
    नाविक पतवार ले / कर नदिया पार रे

५. माथा-बिंदिया / गगन-सूर्य सम / मन को मोहें


इ. आवृत्ति दीपक:

जहाँ अर्थ तथा पदार्थ की आवृत्ति हो वहाँ पर आवृत्ति दीपक अलंकार होता हैइसके तीन प्रकार पदावृत्ति दीपक, 

अर्थावृत्ति दीपक तथा पदार्थावृत्ति दीपक हैं

क. पदावृत्ति दीपक:

जहाँ भिन्न अर्थोंवाले क्रिया-पदों की आवृत्ति होती है वहाँ पदावृत्ति दीपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. तब इस घर में था तम छाया,

    था मातम छाया, गम छाया,

                          -भ्रम छाया

२. दीन जान सब दीन, नहिं कछु राख्यो बीरबर

३. आये सनम, ले नयन नम, मन में अमन, 

                        तन ले वतन, कह जो गए, आये नहीं, फिर लौटकर

ख. अर्थावृत्ति दीपक:

जहाँ एक ही अर्थवाले भिन्न क्रियापदों की आवृत्ति होती है, वहाँ अर्थावृत्ति दीपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. सर सरजा तब दान को, को कर सकत बखान?

    बढ़त नदी गन दान जल उमड़त नद गजदान

२. तोंहि बसंत के आवत ही मिलिहै इतनी कहि राखी हितू जे

    सो अब बूझति हौं तुमसों कछू बूझे ते मेरे उदास न हूजे

    काहे ते आई नहीं रघुनाथ ये आई कै औधि के वासर पूजे

    देखि मधुव्रत गूँजे चहुँ दिशि, कोयल बोली कपोतऊ कूजे

३. तरु पेड़ झाड़ न टिक सके, झुक रूख-वृक्ष न रुक सके, 
    
    तूफान में हो नष्ट शाखा-डाल पर्ण बिखर गये 

ग. पदार्थावृत्ति दीपक:

जहाँ पद और अर्थ दोनों की आवृत्ति हो वहाँ,पदार्थावृत्ति दीपक अलंकार होता है

उदाहरण

१. संपत्ति के आखर तै पाइ में लिखे हैं, लिखे भुव भार थाम्भिबे के भुजन बिसाल में

    हिय में लिखे हैं हरि मूरति बसाइबे के, हरि नाम आखर सों रसना रसाल में

    आँखिन में आखर लिखे हैं कहै रघुनाथ, राखिबे को द्रष्टि सबही के प्रतिपाल में

    सकल दिशान बस करिबे के आखर ते, भूप बरिबंड के विधाता लिखे भाल में

२. 

    दीपक अलंकार का प्रयोग कविता में चमत्कार उत्पन्न कर उसे अधिक हृद्ग्राही बनाता है

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navgeet

एक रचना:
*
मानवासुर!
है चुनौती
हमें भी मारो।
*
हम नहीं हैं एक
लेकिन एक हैं हम।
जूझने को मौत से भी
हम रखें दम।
फोड़ते हो तुम
मगर हम बोलते हैं
गगन जाए थरथरा
सुन बोल 'बम-बम'।
मारते तुम निहत्थों को
क्रूर-कायर!
तुम्हारा पुरखा रहा
दनु अंधकासुर।
हम शहादत दे
मनाते हैं दिवाली।
जगमगा देते
दिया बन रात काली।
जानते हैं देह मरती
आत्मा मरती नहीं है।
शक्ल है
कितनी घिनौनी, जरा
दर्पण तो निहारो
मानवासुर!
है चुनौती
हमें भी मारो।
*
मनोबल कमजोर इतना
डर रहे परछाईं से भी।
रौंदते कोमल कली
भूलो न सच तुम।
बो रहे जो
वही काटोगे हमेशा
तडपते पल-पल रहोगे
दर्द होगा पर नहीं कम।
नाम मत लो धर्म का
तुम हो अधर्मी!
नहीं तुमसे अधिक है
कोई कुकर्मी।
जब मरोगे
हँसेगी इंसानियत तब।
शूल से भी फूल
ऊगेंगे नए अब ।
निरा अपना, नया सपना
नित नया आकार लेगा।
किन्तु बेटा भी तुम्हारा
तुम्हें श्रृद्धांजलि न देगा
जा उसे मारो।
मानवासुर!
है चुनौती
हमें भी मारो।
*

country and minority communitie- putin

देश और अल्पसंख्यक: 

अल्पसंख्यकों को सीख : 


रूस के राष्ट्रपति श्री व्लादिमिर पुतिन ने गत ४ अगस्त २०१५ को डूमा (रुसी संसद) को संबोधित कर रूस निवासी मुस्लिम अल्पसंख्यकों के संबंध में संक्षिप्त नीतिगत वक्तव्य दिया। भारतीय संसद में प्रधानमंत्री ऐसा वक्तव्य दें तो क्या होगा? पढ़िए श्री पुतिन का वक्तव्य, क्या भारत के साम्यवादी इसका समर्थन करेंगे? अगर नहीं तो क्यों? धर्म निरपेक्षता की समर्थक कांग्रेस, समाजवादी और दलित राजनीति कर रहे नेता इस नीति को स्वीकार लें तो देश का भला हो.


रूस में, रूसियों की तरह रहें, कहीं से भी आया हों , यदि वह रूस में रहना चाहता है. रूस में काम करना और खाना चाहता है तो उसे रूसी बोलना और रूसी कानूनों का सम्मान करना ही पड़ेगा। यदि वे शरीआ कानून को प्राथमिकता देते हैं और मुसलमानों की ज़िन्दगी जीते हैं तो हम उन्हें उन स्थानों पर जाने की सलाह देते हैं जहाँ वह राज्य का कानून है. रूस मुस्लिम अल्पसंख्यकों की जरूरत नहीं है. अल्पसंख्यकों को रूस की जरूरत है, और हम उन्हें विशेष सुविधाएँ नहीं देंगे, अथवा अपने कानूनों को उनकी इच्छापूर्ति के लिये नहीं बदलेंगे, वे कितनी भी जोर से भेदभाव चिल्लाएँ कोई फर्क नहीं पड़ता। हम अपनी रूसी सभ्यता का असम्मान सहन नहीं करेंगे. यदि हमें एक देश की तरह ज़िंदा रहना है तो बेहतर है कि हम अमेरिका, इंग्लॅण्ड, हॉलैंड और फ़्रांस से सबल लें. मुस्लिम उन देशों को हड़प रहे हैं और वे रूस को नहीं हड़प सकते। शरीआ कानूनों और मुसलमानों के शुरुआती तौर-तरीकों और हीन संस्कृति से रुसी रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं की तुलना नहीं की जा सकती। 
यह माननीय विधायिका जब नए कानून बनाने का विचार करे तो इसे यह देखते हुए कि मुस्लिम अल्पसंख्यक रूसी नहीं हैं, सर्वप्रथम रूसी राष्ट्र के हित का ध्यान रखना होगा। 



डूमा के सदस्यों ने ५ मिनिट तक खड़े होकर करतल धवनि करते हुए श्री पुतिन का अभिनंदन किया। 



क्या भारत के सांसद इस प्रसंग से कुछ सीख लेंगे??

*
Vladimir Putin's speech - SHORTEST SPEECH EVER
On August 04, 2015, Vladimir Putin, the Russian president, addressed the Duma, (Russian Parliament), and gave a speech about the tensions with minorities in Russia:
In Russia, live like Russians. Any minority, from anywhere, if it wants to live in Russia, to work and eat in Russia, it should speak Russian, and should respect the Russian laws. If they prefer Sharia Law, and live the life of Muslim's then we advise them to go to those places where that's the state law.
Russia does not need Muslim minorities. Minorities need Russia, and we will not grant them special privileges, or try to change our laws to fit their desires, no matter how loud they yell 'discrimination'. We will not tolerate disrespect of our Russian culture. We better learn from the suicides of America, England, Holland and France, if we are to survive as a nation. The Muslims are taking over those countries and they will not take over Russia. The Russian customs and traditions are not compatible with the lack of culture or the primitive ways of Sharia Law and Muslims.
When this honorable legislative body thinks of creating new laws, it should have in mind the Russian national interest first, observing that the Muslims Minorities Are Not Russians. The politicians in the Duma gave Putin a five minute standing ovation.

muktika

मुक्तिका - 
*
मुस्कुराती रही, खिलखिलाती रहो 
पैर रख भूमि पर सिर उठाती रहो

मेहनती तुम बनो, मुश्किलों में तनो
कैद घर में न रह आती-जाती रहो
.
मान जाओ न रूठो अधिक देर तक
रूठ जाए कोई तो मनाती रहो
.
हो सहनशील सबको पता सत्य है
जो न माने, न नाहक बताती रहो
.
कोयलों सम मधुर गीत गाओ मगर
कुछ सबक बाज को भी सिखाती रहो
.
नर्मदा सी बहो, मत मलिनता गहो
मुश्किलों के शिखर लड़ ढहाती रहो
.
तिनके बिखरे अगरचे नशेमन के हैं
तिनके जोड़ो नशेमन बनाती रहो
*

सोमवार, 16 नवंबर 2015

नवगीत:

एक रचना:

छाया है आतंक का
मकड़जाल चहुँ ओर
*
कहता है इतिहास
एक साथ लड़ते रहे
दानव गण सायास।
.
निर्बल को दे दंड
पाते थे आनंद वे
रहे सदा उद्दंड।
.
नहीं जीतती क्रूरता चाहे जितने जुल्म कर
संयम रखती शूरता।
.
रात नहीं कोई हुई
जिसके बाद न भोर
छाया है आतंक का
मकड़जाल चहुँ ओर
*
उठो, जाग, हो एक
भिड़ो तुरत आतंक से
रखो इरादे नेक।
.
नहीं रिलीजन, धर्म
या मजहब आतंक है
मिटा कीजिए कर्म।
.
भुला सभी मतभेद
लड़, वरना हों नष्ट सब
व्यर्थ न करिए खेद।
.
कटे पतंग न शांति की
थाम एकता डोर
छाया है आतंक का
मकड़जाल चहुँ ओर
***

समीक्षा, गिरिमोहन गुरु,पशुपति नाथ उपाध्याय, नवगीत,

कृति चर्चा: 
समीक्षा के अभिनव सोपान : नवगीत का महिमा गान 
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
[कृति विवरण: समीक्षा के अभिनव सोपान, संपादक डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय, वर्ष २०१४, पृष्ठ १२४, २००/-, आकार डिमाई, आवरण पेपरबैक, दोरंगी,  प्रकाशक शिव संकल्प साहित्य परिषद्, गृह निर्माण मंडल कोलोनी, होशंगाबाद, चलभाष ९४२५० ४०९२१, संपादक संपर्क- ८/२९ ए शिवपुरी, अलीगढ २०२००१ ]                                             
*
किसी विधा पर केंद्रित कृति का प्रकाशन और उस पर चर्चा होना सामान्य बात है किन्तु किसी कृति पर केन्द्रित समीक्षापरक आलेखों का संकलन कम ही देखने में आता है. विवेच्य कृति सनातन सलिला नर्मदा माँ के भक्त, हिंदी मैया के प्रति समर्पित ज्येष्ठ और श्रेष्ठ रचनाकार श्री गुरुमोहन गुरु की प्रथम नवगीत कृति 'मुझे नर्मदा कहो' पर लिखित समालोचनात्मक लेखों का संकलन है. इसके संपादक डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय स्वयं हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं. युगबोधवाही कृतिकार, सजग समीक्षक और विद्वान संपादक का ऐसा मणिकांचन संयोग कृति को शोध छात्रों के लिये उपयोगी बना सका है. 

कृत्यारम्भ में संपादकीय के अंतर्गत डॉ. उपाध्याय ने नवगीत के उद्भव, विकास तथा श्री गुरु के अवदान की चर्चा कर,  नवगीत की नव्य परंपरा का संकेत करते हुए छंद, लय, यति, गति, आरोह-अवरोह, ध्वनि आदि के प्रयोगों, चैतन्यता, स्फूर्ति, जागृति आदि भावों तथा जनाकांक्षा व जनभावनाओं के समावेशन को महत्वपूर्ण माना है. नवगीत प्रवर्तकों में से एक डॉ. शंभुनाथ सिंह ने उद्योगप्रधान नागरिक जीवन की गद्यात्मकता के भीतर जीवित कोमलतम मानवीय अनुभूतियों के छिपे कारणों को गीत के माध्यम से उद्घाटित कर नवगीत आन्दोलन को गति दी. डॉ. किशोर काबरा नवगीत में बढ़ते नगरबोध का संकेतन करते हुए वर्तमान में नवगीतकारों की चार पीढ़ियों को सक्रिय मानते हैं. उनके अनुसार पुरानी पीढ़ी छ्न्दाश्रित, बीच की पीढ़ी लयाश्रित, नई पीढ़ी लोकगीताश्रित तथा नवागत पीढ़ी लयविहीन नवगीत लिख रही है. इस प्रसंग में उल्लेखनीय है की मैंने लोकगीतों तथा विविध छंदों की लय तथा नवागत पीढ़ी द्वारा सामान्यत: प्रयोग की जा रही भाषा में नवगीत रचे तो डॉ. शंभुनाथ सिंह द्वारा इंगित तत्वों को अंतिम कहते हुए कतिपय रचनाकारों ने न केवल उन्हें नवगीत मानने से असहमति जताई अपितु यहाँ तक कह दिया कि नवगीत किसी की खाला का घर नहीं है जिसमें कोई भी घुस आये. इस संकीर्णतावादियों द्वारा हतोत्साहित करने के बावजूद यदि नवागत पीढ़ी नवगीत रच रही है तो उसका कारण श्री गिरिमोहन गुरु, श्री भगवत दुबे, श्री मधुकर अष्ठाना, श्री किशोर काबरा, श्री राधेश्याम बंधु, कुमार रवीन्द्र,  डॉ. रामसनेही लाल यायावर, श्री ब्रजेश श्रीवास्तव जैसे परिवर्तनप्रेमी नवगीतकारों का प्रोत्साहन है. 

'मुझे नर्मदा कहो' (५१ नवगीतों का संकलन) पर समीक्षात्मक आलेख लेखकों में सर्व श्री / श्रीमती डॉ. राधेश्याम 'बन्धु', डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय, डॉ. विनोद निगम, डॉ. किशोर काबरा, डॉ. दयाकृष्ण विजयवर्गीय, डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, डॉ. सूर्यप्रकाश शुक्ल, डॉ. प्रेमशंकर रघुवंशी, विजयलक्ष्मी 'विभा', मोहन भारतीय, छबील कुमार मैहर, महेंद्र नेह, डॉ. हर्षनारायण 'नीरव', गोपीनाथ कालभोर, अशोक गीते, डॉ. मधुबाला, डॉ. जगदीश व्योम, डॉ. कुमार रविन्द्र, डॉ. गिरिजाशंकर शर्मा, डॉ. शरद नारायण खरे, कृष्णस्वरूप शर्मा, डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र, डॉ. विजयमहादेव गाडे, भगवती प्रसाद द्विवेदी, जगदीश श्रीवास्तव, सरिता सुराणा जैन, श्रीकृष्ण शर्मा, राजेंद्र सिंह गहलोत, डॉ. दिवाकर दिनेश गौड़, नर्मदा प्रसाद मालवीय, डॉ. नीलम मेहतो, डॉ. उमेश चमोला, डॉ. रानी कमलेश अग्रवाल, प्रो. भगवानदास जैन, डॉ. हरेराम पाठक 'शब्दर्षि', रामस्वरूप मूंदड़ा, यतीन्द्रनाथ 'राही', डॉ. अमरनाथ 'अमर', डॉ. ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग', डॉ. तिलक सिंह, डॉ. जयनाथ मणि त्रिपाठी, मधुकर गौड़, डॉ. मुचकुंद शर्मा, समीर श्रीवास्तव जैसे सुपरिचित हस्ताक्षर हैं.     

डॉ. नामवर सिंह के अनुसार 'नवगीत ने जनभावना और जनसंवादधर्मिता को  अपनी अंतर्वस्तु के रूप में स्वीकार किया है, इसलिए वह जनसंवाद धर्मिता की कसौटी पर खरा उतर सका है.' यह खारापन गुरु जी के नवगीतों में राधेश्याम 'बन्धु'  जी ने देखा है. डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय ने गुरु जी के मंगीतों में जीवन की विडंबनाओं को देखा है:

सभा थाल ने लिया हमेशा / मुझे जली रोटी सा 
शतरंजी जीवन का अभिनय / पिटी हुई गोटी सा 
सदा रहा लहरों के दृग में / हो न सका तट का 

गुरु जी समसामयिकता के फलक पर युगीन ज्वलंत सामाजिक-राजनैतिक विषमताओं, विसंगतियों एवं विडम्बनाओं का यथार्थवादी अंकन करने में समर्थ हैं- 

सूरज की आँखों में अन्धकार छाया है 
बुरा वक्त आया है 
सिर्फ भरे जेब रहे प्रजातंत्र भोग 
बाकी मँहगाई के मारे हैं लोग 
सड़कों को छोड़ देश पटरी पर आया है.

डॉ. किशोर काबरा गुरु जी के नवगीतों में ग्रामीण परिवेश एवं आंचलिक संस्पर्श दोनों की उपस्थिति पूर्ण वैभव सहित पाते हैं-

ढोल की धुन / पाँव की थिरकन / मंजीरे मौन / चुप रहने लगा चौपाल / टेलीविजन पर / देखता / भोपाल 
डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी इन नवगीतों में सामाजिक विसंगतियों का प्रभावी चित्रण पाती हैं- 

बाहर है नकली बहार / भीतर है खालीपन 
निर्धनता की भेंट चढ़ गया / बेटी का यौवन 
तेल कहाँ उपलब्ध / सब्जी पानी से छौंक रहे 

विजयलक्ष्मी 'विभा' को गुरु जी के नवगीतों में अफसरशाही पर प्रहार संवेदनशील मानव के लिए एक चुनौती के रूप में दीखता है- 

आओ! प्रकाश पियें / अन्धकार उगलें / साथ-साथ चलें 
कुर्सी के पैर बनें / भार वहन करें 
अफसर के जूतों की / कील सहन करें 
तमतमाये चेहरों को झुकें / विजन झलें 

लेखकों ने नीर-क्षीर  विवेकपूर्ण दृष्टि से गुरु जी के नवगीतों के विविध पक्षों का आकलन किया है. नवगीत के विविध तत्वों, उद्भव, विकास, प्रभाव, समीक्षा के तत्वों आदि का सोदाहरण उल्लेख कर विद्वान लेखनों और संपादक ने इस कृति को नवगीत लेखन में प्रवेशार्थियों और शोधछात्रों के लिए सन्दर्भ ग्रन्थ की तरह उपयोगी बना दिया है. 
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- समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ salil.sanjiv@gmail.com, -७६१ २४१११३१ 
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कृति चर्चा:
समीक्षा के बढ़ते चरण : गुरु साहित्य का वरण 
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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[कृति विवरण: समीक्षा के बढ़ते चरण, समालोचनात्मक संग्रह, डॉ. कृष्ण गोपाल मिश्र, वर्ष २०१५, पृष्ठ ११२, मूल्य २००/-, आकार डिमाई, आवरण पेपरबैक, दोरंगी, प्रकाशक शिव संकल्प साहित्य परिषद, नर्मदापुरम, होशंगाबाद ४६१००१, चलभाष ९४२५१८९०४२, लेखक संपर्क: ए / २० बी कुंदन नगर, अवधपुरी, भोपाल चलभाष ९८९३१८९६४६]

समीक्षा के बढ़ते चरण नर्मदांचल के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार गिरिमोहन गुरु रचित हिंदी ग़ज़लों पर केंद्रित समीक्षात्मक लेखों का संग्रह है जिसका संपादन हिंदी प्राध्यापक व रचनाकार डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र ने किया है. डॉ. मिश्र के अतिरिक्त डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय, डॉ. लक्ष्मीकांत पाण्डेय, डॉ. रोहिताश्व अष्ठाना, डॉ. आर. पी. शर्मा 'महर्षि', डॉ. श्यामबिहारी श्रीवास्तव, श्री अरविन्द अवस्थी, डॉ. रामवल्लभ आचार्य, डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ, श्री युगेश शर्मा,श्री लक्ष्मण कपिल, श्री फैज़ रतलामी, श्री रमेश मनोहरा, श्री नर्मदा प्रसाद मालवीय, श्री नन्द कुमार मनोचा, डॉ. साधना संकल्प, श्री भास्कर सिंह माणिक, श्री भगवत दुबे, डॉ. विजय महादेव गाड़े, श्री बाबूलाल खण्डेलवाल, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', डॉ. भगवानदास जैन, श्री अशोक गीते, श्री मदनमोहन उपेन्द्र, प्रो. उदयभानु हंस, डॉ. हर्ष नारायण नीरव, श्री कैलाश आदमी द्वारा गुरु वांग्मय की विविध कृतियों पर लिखित आलेखों का यह संग्रह शोध छात्रों के लिए गागर में सागर की तरह संग्रहणीय और उपयोगी है. उक्त के अतिरिक्त डॉ. कृष्णपाल सिंह गौतम, डॉ. महेंद्र अग्रवाल, डॉ. गिरजाशंकर शर्मा, श्री बलराम शर्मा, श्री प्रकाश राजपुरी लिखित परिचयात्मक समीक्षात्मक लेख, परिचयात्मक काव्यांजलियाँ, साहित्यकारों के पत्रों आदि ने इस कृति की उपयोगिता वृद्धि की है. ये सभी रचनाकार वर्तमान हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं.


गुरु जी बहुविधायी सृजनात्मक क्षमता के धनी-धुनी साहित्यकार हैं. वे ग़ज़ल, दोहे, गीत, नवगीत, समीक्षा, चालीसा आदि क्षेत्रों में गत ५ दशकों से लगातार लिखते-छपते रहे हैं. कामराज विश्व विद्यालय मदुरै में 'गिरिमोहन गुरु और उनका काव्य' तथा बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल में 'पं. गिरिमोहन गुरु के काव्य का समीक्षात्मक अध्ययन दो लघु शोध संपन्न हो चुके हैं. ८ अन्य शोध प्रबंधों में गुरु-साहित्य का संदर्भ दिया गया है. गुरु साहित्य पर केंद्रित १० अन्य संदर्भ इस कृति में वर्णित हैं. कृति के आरंभ में नवगीतकार, ग़ज़लकार, मुक्तककार, दोहाकार, क्षणिककर, भक्तिकाव्यकार के रूप में गुरु जी के मूल्यांकन करते उद्धरण संगृहीत किये गए है.

गुरु जी जैसे वरिष्ठ साहित्य शिल्पी के कार्य पर ३ पीढ़ियों की कलमें एक साथ चलें तो साहित्य मंथन से नि:सृत नवनीत सत्य-शिव-सुंदर के तरह हर जिज्ञासु के लिए ग्रहणीय होगा ही. विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों के ग्रंथालयों में ऐसी कृतियाँ होना ही चाहिए ताकि नव पीढ़ी उनके अवदान से परिचित होकर उन पर कार्य कर सके.

गिरि मोहन गुरु गिरि शिखर सम शोभित है आज 
अगणित मन साम्राज्य है, श्वेत केश हैं ताज 


दोहा लिख मोहा कभी, करी गीत रच प्रीत 
ग़ज़ल फसल नित नवल ज्यों, नीत नयी नवगीत 


भक्ति काव्य रचकर छुआ, एक नया आयाम 
सम्मानित सम्मान है, हाथ आपका थाम 


संजीवित कर साधना, मन्वन्तर तक नाम 
चर्चित हो ऐसा किया, तुहिन बिन्दुवत काम 


'सलिल' कहे अभिषेक कर, हों शतायु तल्लीन 
सृजन कर्म अविकल करें, मौलिक मधुर नवीन


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