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गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

laghukatha

लघु कथा:
उत्सव २
*
बेटी ने माँ को बताया की उसकी कक्षा में एक लड़की होशियार है लेकिन किताब न लाने के कारण उसे रोज डाँट पड़ती है। उसके पिता रिक्शा चलाते हैं।

अगले दिन स्कूल जाते समय माँ ने बेटी को एक पैकेट दिया कि उस लड़की के लिये है, दे देना। लड़की स्कूल से लौटी तो माँ से पूछा कि बिना माँगे, अपने पैसे खर्च कर पढ़ाई का सामान क्यों भिजवाया?

माँ बोली: 'तुम खाना खा रही हो और एक चिड़िया भूख से मर रही हो तो देखती रहोगी?'

' नहीं, उसको थोड़ा खाना-पानी दे दूँगी, वह खा-पीकर फुर्र से उड़ जाएगी। दाना लेकर घर जाएगी तो उसके बच्चे कित्ते खुश होंगे'

'यही तो, तुम्हारी सहेली घर जाकर पढ़ेगी, अच्छी नंबर लाएगी तो वह और उसके घर के सब लोग खुश होंगे, तुमको दुआ देंगे, तभी तो मनेगा उत्सव।'

***


smart city

स्मार्ट सिटी हेतु सुझाव :
प्रस्तोता: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
पूर्व संभागीय परियोजना यंत्री, अधिवक्ता,
२०४ विजय अपार्टमेंट नेपियर टाउन जबलपुर 
o७६१ २४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४
salil.sanjiv@gmail.com
१. पुराने जबलपुर में तोड़-फोड़ न कर नया जबलपुर अलग बसाया जाए जिसका विकास विशव अधुनातन शहरों की तर्ज पर हो. नवीनतम उपादान जुटाएँ जाएँ और १०० वर्ष बाद की जनसंख्या के हिसाब से गणना कर सभी व्यवस्थाएं हों.
२. शाहपुरा भिटौनी में गैस फिलिंग प्लांट का लाभ तत्काल शहर को मिले, गैस सिलिंडर हटाकर पाइप से गैस सप्लाई हो. जनता को सिलिंडर की कालाबाजारी से मुक्ति मिले.
३. जबलपुर से नरसिंहपुर और जबलपुर से कटनी ई एम यू ट्रेन सुबह-शाम चलायी जाए जिससे रोज आने-जाने वालों को सहूलियत हो.
४. जबलपुर के हर बड़े सरकारी दफ्तर, अपार्टमेंट, कॉलोनी, टाउनशिप, शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों आदि में भूमिगत मिनी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, उन पर कार पार्किंग तथा छतों से रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था हो. साथ ही सौर बिजली की व्यवस्था हो. इससे प्रदूषण घटेगा, भूजलस्तर बढ़ने से पेय जल तथा खेती हेतु काम लगत में पानी की उपलब्धता बढ़ेगी, बिजली बचेगी।
५. घरों से रोज कचरा संग्रह हेतु निविदा बुलाएं या नीलामी की जाए. कचरा घरों से सीधे एकत्र किया जाए. सड़क किनारे से डस्ट बिन समाप्त किये जाएँ। कचरे का निस्तारण केरल में प्रयोग हो रही पद्धति से हो.
६. शहर के विविध हिस्सों तथा नए जबलपुर को जोड़ने के लिए मेट्रो ट्रैन का प्रस्ताव तैयार किया जाए.
७. बड़े फुहारे क्षेत्र के विकास हेतु क्लोवर लीफ रोड हरसिंग का मॉडल अपनाया जाए जिससे सड़क के बाएं हाथ पर चलते हुए ही किसी भी दिशा में जाया जा सके.
८. बेंगलुरु के विश्वेश्वरैया मुसियम की तरह जबलपुर में एक विज्ञानं संग्रहालय हो जिसमें भौतिकी, यांत्रिकी, रसायन, चिकित्सा आदि क्षेत्रों के विविध मशीनों के वर्किंग मॉडल हों जिनकी कार्य प्रणाली देख-समझ कर युवा छात्र शोधोन्मुखी हो सकें.
९. नगर के हर मोहल्ले में हर सड़क के रिड्यूस्ड लेवल तय किया जाए जिससे घरों का प्लिंथ लेवल तय ही सके. अभी की तरह सड़क मरम्मत होते-होते घर डूब में न जाएँ।
१०. शासकीय अबियांत्रिकी महाविद्यालय को आई टी आई में उन्नत किया जाए.
११. नर्मदा नदी को गहरा के गुजरात से जबलपुर तक लघु जलपोत आने योग्य बनाया जाए. बाँध स्थलों पर बाई पास नहर बना कर जल यातायात सुनिश्चित किया जाए.
संदेश में फोटो देखें
Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

vyatirek alankar

अलंकार सलिला: २६ 


व्यतिरेक अलंकार 
*



















*
हिंदी गीति काव्य का वैशिष्ट्य अलंकार हैं. विविध काव्य प्रवृत्तियों को कथ्य का अलंकरण मानते हुए 

पिंगलविदों ने उन्हें पहचान और वर्गीकृत कर समीक्षा के लिये एक आधार प्रस्तुत किया है. विश्व की 

किसी अन्य भाषा में अलंकारों के इतने प्रकार नहीं हैं जितने हिंदी में हैं.




आज हम जिस अलंकार की चर्चा करने जा रहे हैं वह उपमा से सादृश्य रखता है इसलिए सरल है. उसमें 



उपमा के चारों तत्व उपमेय, उपमान, साधारण धर्म व वाचक शब्द होते हैं.


उपमा में सामान्यतः उपमेय (जिसकी समानता स्थापित की जाये) से उपमान (जिससे समानता 



स्थापित की जाये) श्रेष्ठ होता है किन्तु व्यतिरेक में इससे सर्वथा विपरीत उपमेय को उपमान से भी श्रेष्ठ 

बताया जाता है.

श्रेष्ठ जहाँ उपमेय हो, याकि हीन उपमान. 
अलंकार व्यतिरेक वह, कहते हैं विद्वान..


तुलना करते श्रेष्ठ की, जहाँ हीन से आप. 
रचना में व्यतिरेक तब, चुपके जाता व्याप..



करें न्यून की श्रेष्ठ से, तुलना सहित विवेक. 
अलंकार तब जानिए, सरल-कठिन व्यतिरेक..
उदाहरण:

१. संत ह्रदय नवनीत समाना, कहौं कविन पर कहै न जाना. 
निज परताप द्रवै नवनीता, पर दुःख द्रवै सुसंत पुनीता..    - तुलसीदास (उपमा भी)

यहाँ संतों (उपमेय) को नवनीत (उपमान) से श्रेष्ठ प्रतिपादित किया गया है. अतः, व्यतिरेक अलंकार है.

२. तुलसी पावस देखि कै, कोयल साधे मौन. 
अब तो दादुर बोलिहैं, हमें पूछिहैं कौन..   - तुलसीदास (उपमा भी)

यहाँ श्रेष्ठ (कोयल) की तुलना हीन (मेंढक) से होने के कारण व्यतिरेक है.

३. संत सैल सम उच्च हैं, किन्तु प्रकृति सुकुमार..

यहाँ संत तथा पर्वत में उच्चता का गुण सामान्य है किन्तु संत में कोमलता भी है. अतः, श्रेष्ठ की हीन से तुलना होने के कारण व्यतिरेक है.

४. प्यार है तो ज़िन्दगी महका
हुआ इक फूल है ! 
अन्यथा; हर क्षण, हृदय में 
तीव्र चुभता शूल है !     -महेंद्र भटनागर

यहाँ प्यार (श्रेष्ठ) की तुलना ज़िन्दगी के फूल या शूल से है जो, हीन हैं. अतः, व्यतिरेक है.

. धरणी यौवन की
 सुगन्ध से भरा हवा का झौंका -राजा भाई कौशिक

६. तारा सी तरुनि तामें ठाढी झिलमिल होति.
    मोतिन को ज्योति मिल्यो मल्लिका को मकरंद.

    आरसी से अम्बर में आभा सी उजारी लगे

    प्यारी राधिका को प्रतिबिम्ब सो लागत चंद..--देव 

७. मुख मयंक सो है सखी!, मधुर वचन सविशेष 

८. का सरवर तेहि देऊँ मयंकू, चाँद कलंकी वह निकलंकू  

९. नव विधु विमल तात! जस तोरा, उदित सदा कबहूँ नहिं थोरा (रूपक भी) 

१०. विधि सों कवि सब विधि बड़े, यामें संशय नाहिं 
     
     खट रस विधि की सृष्टि में, नव रस कविता मांहि

११. अवनी की ऊषा सजीव थी, अंबर की सी मूर्ति न थी 

१२. सम सुबरन सुखमाकर, सुखद न थोर 
     
     सीय-अंग सखि! कोमल, कनक कठोर

१३. साहि के सिवाजी गाजी करयौ दिल्ली-दल माँहि, 

                                          पाण्डवन हूँ ते पुरुषार्थ जु बढ़ि कै 

     सूने लाख भौन तें, कढ़े वे पाँच रात में जु, 

                               द्यौस लाख चौकी तें अकेलो आयो कढ़ि कै 

१४. स्वर्ग सदृश भारत मगर यहाँ नर्मदा वहाँ नहीं 

     लड़ें-मरें सुर-असुर वहाँ, यहाँ संग लड़ते नहीं  - संजीव वर्मा 'सलिल'

***

geet: sawan gagane - rabindra nath thakur

एक सुंदर बांग्ला गीत: सावन गगने घोर घनघटा 

गर्मी से हाल बेहाल है। इंतजार है कब बादल आएं और बरसे जिससे तन - मन को शीतलता मिले। कुदरत के खेल कुदरत जाने, जब इन्द्र देव की मर्जी होगी तभी बरसेंगे। गर्मी से परेशान तन को शीतलता तब ही मिल पाएगी लेकिन मन की शीतलता का इलाज है हमारे पास। सरस गीत सुनकर भी मन को शीतलता दी जा सकती है ना तो आईये आज एक ऐसा ही सुन्दर गीत सुनकर आनन्द लीजिए।

यह सुन्दर बांग्ला गीत लिखा है भानु सिंह ने.. गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगौर अपनी प्रेम कवितायेँ भानुसिंह के छद्‍म नाम से लिखते थे। यह 'भानु सिंहेर पदावली' का हिस्सा है। इसे स्वर दिया है कालजयी कोकिलकंठी गायिका लता जी ने, हिंदी काव्यानुवाद किया है आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने.
बांगला गीत
सावन गगने घोर घन घटा निशीथ यामिनी रे
कुञ्ज पथे सखि कैसे जावब अबला कामिनी रे।
उन्मद पवने जमुना तर्जित घन घन गर्जित मेह
दमकत बिद्युत पथ तरु लुंठित थरहर कम्पित देह
घन-घन रिमझिम-रिमझिम-रिमझिम बरखत नीरद पुंज
शाल-पियाले ताल-तमाले निविड़ तिमिरमय कुञ्‍ज।
कह रे सजनी, ये दुर्योगे कुंजी निर्दय कान्ह
दारुण बाँसी काहे बजावत सकरुण राधा नाम
मोती महारे वेश बना दे टीप लगा दे भाले
उरहि बिलुंठित लोल चिकुर मम बाँध ह चम्पकमाले।
गहन रैन में न जाओ, बाला, नवल किशोर क पास
गरजे घन-घन बहु डरपावब कहे भानु तव दास।
हिंदी काव्यानुवाद
श्रावण नभ में बदरा छाये आधी रतिया रे
बाग़ डगर किस विधि जाएगी निर्बल गुइयाँ रे
मस्त हवा यमुना फुँफकारे गरज बरसते मेघ
दीप्त अशनि मग-वृक्ष लोटते थरथर कँपे शरीर
घन-घन रिमझिम-रिमझिम-रिमझिम बरसे जलद समूह
शाल-चिरौजी ताड़-तेजतरु घोर अंध-तरु व्यूह
सखी बोल रे!, यह अति दुष्कर कितना निष्ठुर कृष्ण
तीव्र वेणु क्यों बजा नाम ले 'राधा' कातर तृष्ण
मुक्ता मणि सम रूप सजा दे लगा डिठौना माथ
हृदय क्षुब्ध है, गूँथ चपल लट चंपा बाँध सुहाथ
रात घनेरी जाना मत तज कान्ह मिलन की आस
रव करते 'सलिलज' भय भारी, 'भानु' तिहारा दास
***

भावार्थ
सावन की घनी अँधेरी रात है, गगन घटाओं से भरा है और राधा ने ठान लिया है कि कुंजवन में कान्हा से मिलने जाएगी। सखी समझा रही है, मार्ग की सारी कठिनाइयाँ गिना रही है - देख कैसी उन्मत्त पवन चल रही है, राह में कितने पेड़ टूटे पड़े हैं, देह थर-थर काँप रही है। राधा कहती हैं - हाँ, मानती हूँ कि बड़ा कठिन समय है लेकिन उस निर्दय कान्हा का क्या करूँ जो ऐसी दारुण बांसुरी बजाकर मेरा ही नाम पुकार रहा है। जल्दी से मुझे सजा दे। कवि भानु प्रार्थना करते हैं ऐसी गहन रैन में नवलकिशोर के पास मत जाओ, बाला।

navgeet

नवगीत:
रिश्ते 
*
सांस बन गए रिश्ते 

अनजाने पहचाने लगते
अनचीन्हे नाते, मन पगते
गैरों को अपनापन देकर
हम सोते या जगते
ठगे जा रहे हम औरों से
या हम खुद को ठगते?
आस बन गए रिश्ते
.
दिन भर बैठे आँख फोड़ते
शब्द-शब्द ही रहे जोड़ते
दुनिया जोड़े रूपया-पैसा
कहिए कैसे छंद छोड़ते?
गीत अगीत प्रगीत विभाजन
रहे समीक्षक हृदय तोड़ते
फांस बन गए रिश्ते
.
नभ भू समुद लगता फेरा
गिरता बहता उड़ता डेरा
मीठा मैला खरा होता
'सलिल' नहीं रोके पग-फेरा
दुनियादारी सीख न पाया
क्या मेरा क्या तेरा
कांस बन गए रिश्ते
*

navgeet

नवगीत
एक पसेरी
*
एक पसेरी पढ़
तोला भर लिखना फिर तू
.
अनपढ़, बिन पढ़ वह लिखे
जो आँधर को ही दिखे
बहुत सयाने, अति चतुर
टके तीन हरदम बिके
बर्फ कह रहा घाम में
हाथ-पैर झुलसे-सिके
नवगीतों को बाँधकर
खूँटे से कुछ क्यों टिके?
मुट्ठी भर तो लुटा
झोला भर धरना फिर तू
एक पसेरी पढ़
तोला भर लिखना फिर तू
.
सूरज ढाँके कोहरे
लेते दिन की टोह रे!
नदी धार, भाषा कभी
बोल कहाँ ठहरे-रुके?
देस-बिदेस न घूमते
जो पग खाकर ठोकरें
बे का जानें जिन्नगी
नदी घाट घर का कहें?
मार अहं को यार!
किसी पर मरना फिर तू
एक पसेरी पढ़
तोला भर लिखना फिर तू
.

लाठी ने कब चाहा
पाये कोई सहारा?
चंदा ने निज रूप
सोच कब कहाँ निहारा
दियासलाई दीपक
दीवट दें उजियारा
जला पतंगा, दी आवाज़
न टेर गुहारा
ऐब न निज का छिपा
गैर पर छिप धरना तू
एक पसेरी पढ़
तोला भर लिखना फिर तू
***

बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

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लघु कथा:
मैया 
*
प्रसाद वितरण कर पुजारी ने थाली रखी ही थी कि उसने लाड़ से कहा: 'काए? हमाये पैले आरती कर लई? मैया तनकऊ खुस न हुईहैं। हमाये हींसा का परसाद किते गओ?'

'हओ मैया! पधारो, कउनौ की सामत आई है जो तुमाए परसाद खों हात लगाए? बिराजो और भोग लगाओ। हम अब्बइ आउत हैं, तब लौं देखत रहियो परसाद की थाली कूकुर न जुठार दे.'

'अइसे कइसे जुठार दैहे हम बाको मूँड न फोर देबी, जा तो धरो है लट्ठ।' कोने में रखी डंडी को इंगित करते हुए बालिका बोली। 

पुजारी गया तो बालिका मुस्तैद हो गयी. कुछ देर बाद भिखारियों का झुण्ड निकला।'काए? दरसन नई किए? चलो, इतै आओ.… परसाद छोड़ कहें कहू गए तो लापता हो जैहो जैसे लीलावती-कलावती के घरवारे हो गए हते. पंडत जी सें कथा नई सुनी का?' 

भिखारियों को दरवाजे पर ठिठकता देख उसने फिर पुकार लगाई: 'दरवज्जे पे कए ठांड़े हो? इते लौ आउत मां गोड़ पिरात हैं का?' जा गरू थाल हमसें नई उठात बनें। लेओ' कहते हुए प्रसाद की पुड़िया उठाकर उसने हाथ बढ़ा दिया तो भिखारी ने हिम्मतकर पुड़िया ली और पुजारी को आते देख  दहशत में जाने को उद्यत हुए तो बालिका फिर बोल पड़ी: 'इनखें सींग उगे हैं का जो बाग़ रए हो? परसाद लए बिना कउनौ नें जाए. ठीक है ना पंडज्जी?'

'हओ मैया!' अनदेखी करते हुए पुजारी ने कहा।

***

laghu katha

लघुकथा:
रिश्ते
*
लंबे विदेश प्रवास के बीच पति के किसी अन्य महिला से जुड़ने का समाचार पाकर बिखर गयी थी वह। पति का फोन सुनना भी बंद कर दिया। विश्वास और संदेह में डूबते-उतराते उसने अपना कार्य निबटाया और स्वदेश लौट आयी।
जितने मुँह उतनी बातें, सत्य की तलाश में एक दिन किसी को कुछ बताये बिना मन कड़ा कर वह पहुँच गयी पति के दरवाज़े पर।
दरवाज़ा खटकाने को थी कि अंदर से किसी को डाँटते हुए महिला स्वर सुनाई पड़ा 'कितनी बार कहा है अपना ध्यान रखा करिए लेकिन सुनते ही नहीं हो, भाभी का नंबर दो तो उनसे ऐसी शिकायत करूँ कि आपकी खटिया खड़ी कर दें।'
'किससे शिकायत करोगी और क्या वह न तो अपनी खबर देती है, न कोई फोन उठाती है। हमारे घरवाले पहले ही इस विवाह के खिलाफ थे। तुम्हें मना करता करता हूँ फिर भी रोज चली आती हो, लोग पीठ पीछे बातें बनायेंगे।'
'बनाने दो बातें, भाई को बीमार कैसे छोड़ दूँ?.... उसका धैर्य जवाब दे गया। भरभराती दीवार सी ढह पड़ी.… आहट सुनते ही दरवाज़ा खुला, दो जोड़ी आँखें पड़ीं उसके चेहरे पर गड़ी की गड़ी रह गयीं। तुम-आप? चार हाथ सहारा देकर उसे उठाने लगे। उसे लगा धरती फट जाए वह समा जाए उसमें, इतना कमजोर क्यों था उसका विश्वास? उसकी आँखों से बह रहे थे आँसू पर मुस्कुरा रहे थे रिश्ते।
************

geet

एक गीत -
आकर्षण 
*
तन के प्रति मन का आकर्षण 
मन में तन के लिये विकर्षण 
कितना उचित? 
कौन बतलाये?
*
मृण्मय मन ने तन्मय तन को
जब ठुकराया तब यह जाना
एक वही जिसने लांछित हो
श्वासों में रस घोल दिया है
यश के वश कोशिश-संघर्षण
नियम संग संयम का तर्पण
क्यों अनुचित है?
कौन सिखाये??
कितना उचित?
कौन बतलाये?
तन के प्रति मन का आकर्षण
मन में तन के लिये विकर्षण
*
नंदन वन में चंदन-वंदन
महुआ मादक अप्रतिम गन्धन
लाल पलाश नटेरे नैना
सती-दाह लख जला हिया है
सुधि-पावस का अमृत वर्षण
इसका उसको सब कुछ अर्पण
क्यों प्रमुदित पल ?
मौन बिताये??
कितना उचित?
कौन बतलाये?
तन के प्रति मन का आकर्षण
मन में तन के लिये विकर्षण
*
यह-वह दोनों लीन हुए जब
तनिक न तिल भर दीन हुए तब
मैंने, तूने या किस-किसने
उस पल को खो आत्म, जिया है?
है असार संसार विलक्षण
करे आक्रमण किन्तु न रक्षण
क्या-क्यों अनुमित?
कौन बनाये??
कितना उचित?
कौन बतलाये?
तन के प्रति मन का आकर्षण
मन में तन के लिये विकर्षण
*

muktika

मुक्तिका:
संजीव 
*
रात चूहे से चुहिया यूँ बोली 
तू है पोरस तो मैं सिकंदर हूँ 
.
चौंक चूहा छिपा के मुँह बोला:
तू बँदरिया, मैं तेरा बंदर हूँ
.
शोख चुहिया ने हँस जवाब दिया:
तू न गोरख, न मैं मछंदर हूँ
*
तू सुधा मेरी, मान जा प्यारी!
मैं तेरा अपना दोस्त चन्दर हूँ
.
दिया नहले पे दहला चुहिया ने
तू है मंदर मगर मैं मंदिर हूँ
.
सर झुका चूहे ने सलाम किया:
मलिका तूफान, मैं बवंडर हूँ
.
जा किनारे खड़े लहर गिनना
याद रखना कि मैं समंदर हूँ
.
बाहरी दुनिया मुबारक हो तुझे
तू है बाहर, मैं घर के अंदर हूँ
*


मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015

Gopaldas Neeraj Live

हम लोग : नीरज का कारवां

गोपालदास नीरज 1: कारवाँ गुज़र गया Gopaldas Neeraj 1: Karwaan New

Gopal Das Niraj for Bahoot Khoob