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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

alankar salila : rupak

अलंकार सलिला 

: २२ : रूपक अलंकार























एक वर्ण्य का हो 'सलिल', दूजे पर आरोप 
अलंकार रूपक  करे, इसका उसमें लोप 
*
इसको उसका रूप दे, रूपक कहता बात 
रूप-छटा मन मोह ले, अलंकार विख्यात  
*
किसी वस्तु को दे 'सलिल', जब दूजी का रूप 
अलंकार रूपक कहे, निरखो छटा अनूप  
*
जब कवि एक व्यक्ति या वस्तु को किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु रूप देता है तो रूपक अलंकार होता है  रूपक में मूल का अन्य में उसी तरह लोप होना बताया बताया जाता है जैसे नाटक में पात्र के रूप में अभिनेता खुद को विलीन कर देता है

उदाहरण: 

१. चरन-सरोज पखारन लागा 

२. निष्कलंक यश- मयंक, 
    पैठ सलिल-धार-अंक
     रूप निज निहारता     

जब प्रस्तुत या उपमेय पर अप्रस्तुत या उपमान का निषेधरहित आरोप किया जाता है तब रूपक अलंकार होता है यह आरोप २ प्रकार का होता है प्रथम अभेदात्मक या वास्तविक  तथा द्वितीय भेदात्मक, तद्रूपात्मक या आहार्य। इस आधार पर रूपक के २ प्रकार या रूप हैं अ. अभेद रूपक एवं आ. तद्रूप रूपक। 

उक्त दोनों के ३ उप भेद क. सम, ख. अधिक तथा ग. न्यून हैं 

उदाहरण:

क. सम अभेद रूपक: 

१. उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग 
    विकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भृंग  

२. नेह-नर्मदा नहाकर, मन-मयूर के नाम 
    तन्मय तन ने लिख दिया, चिन्मय चित बेदाम   

ख. अधिक अभेद रूपक:


       जिस अभेद रूपक में समानता होते हुए भी उपमेय को उपमान से कुछ अधिक दिखाया या बताया जाता वहाँ अधिक अभेद रूपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. नव वधु विमल तात जस तोरा। रघुवर किंकर कुमुद चकोरा 
    उदित सदा अथ इहि कबहू ना। घटिहि न जग नभ दिन-दिन दूना

२. केसरि रंग के अंग की वास वसी रहै याही से पास घनेरी
    चित्रमयी क्षिति भीति सवै रघुनाथ लसै प्रतिबिंबिनि घेरी
    प्यारी के रूप अनूप की और कहाँ लौ कहौं महिमा बहुतेरी
    आनन चंद की कैसी अमंद रहै घर में दिन-रात उजेरी

ग. न्यून या हीन अभेद रूपक: 

     जहाँ उपमेय में उपमान से  कुछ कमी होने पर भी अभेदता स्पष्ट की जाती है, वहाँ न्यून या हीन अभेद  रूपक अलंकार होता है  

उदाहरण:

१.  उषा रंगीली किन्तु सजनि उसमें वह अनुराग नहीं 
    निर्झर में अक्षय स्वर-प्रवाह है पर वह विकल विराग नहीं 
    ज्योत्स्ना में उज्ज्वलता है पर वह प्राणों का मुस्कान नहीं 
    फूलों में हैं वे अधर किंतु उनमें वह मादक गान नहीं 

२. आई हौं देखि सराहे न जात हैं, या विधि घूँघट में फरके हैं 
    मैं तो जानी मिले दोउ पीछे ह्वै कान लख्यो कि उन्हें हरके हैं 
    रंगनि ते रूचि ते रघुनाथ विचारु करें कर्ता करके हैं 
    अंजन वारे बड़े दृग प्यारि के खंजन प्यारे बिना परके हैं 

च. सम तद्रूप रूपक :

जहाँ उपमेय को उपमान का दूसरा रूप कहा जाता है वहाँ सम रूपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. दृग कूँदन को दुखहरन, सीत करन मनदेस 
    यह वनिता भुव लोक की, चन्द्रकला शुभ वेस 

२. मन-मेकल गिरिशिखर से, नेह-नर्मदा धार
    बह तन-मन की प्यास हर, बाँटे हर्ष अपार     

छ. अधिक तद्रूप :

जब उपमेय और उपमान की तद्रूपता दर्शायी जाते समय उपमेय में कोई बात अधिक हो, तब अधिक तद्रूप रूपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. लगत कलानिधि चाँदनी, निशि में ही अभिराम 
    दिपति अपर विधु वदन की, आभा आठों जाम 

२. अर्धांगिनी बहिना सुता, नहीं किसी का मोल 
    माँ की ममता है मगर, सचमुच ही अनमोल  

ज. न्यून या हीन तद्रूप रूपक

जहाँ उपमेय में उपमान से यत्किंचित न्यून गुण होने पर भी तद्रूपता दिखाई जाए, वहाँ न्यून तद्रूप रूपक अलंकार होता है

उदाहरण:

१. दुइ भुज के हरि रघुवर सुंदर वे 
   एक जीभ के लछिमन दूसर सेष 
   रस भरे यश भरे कहै कवि रघुनाथ रंग भरे रूप भरे खरे अंग कल के 
   कमलनिवास परिपूरन सुवास आस भावते के चंचरीक लोचन चपल के 
   जगमग करत भरत ड्यटी दीह पोषे जोबन दिनेश के सुदेश भुजबल के 
   गाइबे के जोग भये ऐसे हैं अम्मल फूले तेरे नैन कोमल कमल बिनु जल के 

२. राम-श्याम अभिराम हैं, दोनों हरि के रूप 
    लड़ते-लड़वाते रहे, जीत-जिता अपरूप 

रूपक के ३ अन्य भेद सांग, निरंग तथा परम्परित हैं।   

इ. सांग रूपक : 

जब उपमेय का उपमान पर आरोप करते समय उपमेय के अंगों का भी उपमान के अंगों पर आरोप किया जाए तो वहां सांग (अंग सहित) रूपक होता है। सांग में उपमेय-उपमान समानता स्थापित करते समय उनके अंगों की भी समानता स्थापित की जाती है। 

उदाहरण:

१. ऊधो! मेरा हृदयतल था एक उद्यान न्यारा 
                  शोभा देतीं अमित उसमें कल्पना-क्यारियाँ थीं 
    न्यारे-न्यारे कुसुम कितने भावों के थे अनेकों 
                  उत्साहों के विपुल विटपी मुग्धकारी महा थे 
    लोनी-लोनी नवल लतिका थीं अनेकों उमंगें 
                  सद्वाञ्छा के विहग उसके मंजुभाषी बड़े थे 
    धीरे-धीरे मधुर हिलतीं वासना-बेलियाँ थीं 
                  प्यारी आशा-पवन जब थी डोलती स्निग्ध हो के 

यहाँ ह्रदय को उद्यान बताते हुए उद्यान के अंगों की हृदय के अंगों से सामंता स्थापित की गई है: उद्यान - ह्रदय, क्यारियाँ -कल्पनाएँ, कुसुम - ह्रदय के विविध भाव, वृक्ष - उत्साह, लतिकाएँ - उमंगें, पक्षी - सदवांछाएँ, बेलें - वासनाएँ, पवन - आशा लोनी = सुन्दर   


२. मेरे मस्तक के छत्र मुकुट वसुकाल सर्पिणी के शतफन 
    मुझ चिर कुमारिका के ललाट में नित्य नवीन रुधिर चंदन 
    आँजा करती हूँ चितधूम् का ड्रग में अंध तिमिर अञ्जन 
    श्रृंगार लपट की चीयर पहन, नचा करती मैं छूमछनन 

 क्रांति की नर्तकी से सामंता स्थापित करते हुए उनके अंगों की समानता (छत्र मुकुट - शत फन, रुधिर - चन्दन, चिताधूम - तिमिरअंजन, लपट - चीर) दर्शायी गयी है। 

३. निर्वासित थे राम, राज्य था कानन में भी 
    सच ही है श्रीमान! भोगते सुख वन में भी 
    चंद्रातप था व्योम तारका रत्न जड़े थे 
    स्वच्छ दीप था सोम, प्रजा तरु-पुञ्ज खड़े थे 
    शांत नदी का स्रोत बिछा था, अति सुखकारी 
    कमल-कली का नृत्य हो रहा था मन-हारी 

यहाँ कानन और राज्य का साम्य स्थापित करते समय अंगोंपांगों का साम्य (चन्द्रातप - व्योम, रत्न - तारे, दीप - चन्द्रमा, प्रजा - तरु-पुञ्ज, बिछावन - शांत नदी का स्रोत, नर्तकी - कमल कली) दृष्टव्य है

४. कौशिक रूप पयोनिधि पावन, प्रेम-वारि अवगाह सुहावन  
    राम-रूप राकेस निहारी, बढ़ी बीचि पुलकावलि बाढ़ी 

विश्वामित्र - समुद्र, प्रेम - पानी, राम - चण्द्रमा, पुलकावलि - लहर कौशिक = विश्वामित्र, पयोनिधि - समुद्र, बीचि = तरंग। 

. बरखा ऋतु रघुपति-भगति, तुलसी सालि-सु-दास 
    राम-नाम बर बरन जुग, सावन-भदों मास 

राम-भक्ति - वर्षा, तुलसी जैसे रामभक्त = धान, रा म - सावन-भादों 

६. हरिमुख पंकज भ्रुव धनुष, खंजन लोचन नित्त 
    बिम्ब अधर कुंडल मकर, बसे रहत मो चित्त 

हरिमुख - पंकज, भ्रुव - धनुष, खंजन - लोचन, बिम्ब - अधर, कुंडल - मकर

७. चन्दन सा वदन, चंचल चितवन, धीरे से तेरा ये मुस्काना 
    मुझे दोष न देना जग वालों, हो जाऊँ अगर मैं दीवाना 
    ये काम कमान भँवें तेरी, पलकों के किनारे कजरारे 
    माथे पर सिंदूरी सूरज, ओंठों पे दहकते अंगारे 
    साया भी जो तेरा पड़ जाए, आबाद हो दिल का वीराना 

ई. निरंग रूपक :

जब उपमेय मात्र का आरोप उपमान पर किया जाए अर्थात उपमेय-अपमान की समनता बताई  उनके अंगों का उल्लेख न हो तो निरंग रूपक होता है 

उदाहरण:

१. चरण-कमल मृदु मंजु तुम्हारे 

२. हरि मुख मृदुल मयंक 

३. ईश्वर-अल्लाह एक समान

४. धरती मेरी माता, पिता आसमान 
    मुझको तो अपना सा लागे सारा जहान 

५. 

उ. परम्परित रूपक: 

जहाँ प्रधान रूपक अन्य रूपक पर आश्रित हो, अथवा उपमेय का उपमान पर आरोपण किसी अन्य आरोप पर आधारित हो वहां परंपरित रूपक होता है। ।परंपरित में दो रूपक होते हैं। एक रूपक का कारण आधार दूसरा रूपक होता है। 

उदाहरण: 

१. आशा मेरे हृदय-मरु की मंजु मंदाकिनी है 

यहाँ ह्रदय-मरु तथा मंजु-मंदाकनी दो रूपक हैं। आशा को मंदाकिनी बनाया जाना तभी उपयुक्त है जब हृदय को मरु बताया जा चुका हो 

२. रविकुल-कैरव विधु-रघुनायक 

रविकुल को कैरव बताने के पश्चात रघुनायक को विधु बताया गया है। यहाँ २ रूपक हैं। पश्चात्वर्ती रूपक पूर्ववर्ती रूपक पर आधारित है

३. किसके मनोज-मुख चन्द्र को निहारकर 
    प्रेम उर सागर सदैव है उछलता 

यहाँ मुख-चन्द्र रूपक उर-सागर रूपक का आधार है

४. प्रेम-अतिथि है खड़ा द्वार पर, ह्रदय-कपाट खोल दो तुम!

ह्रदय-कपाट का रूपक प्रेम-अतिथि के रूपक बिना अपूर्ण प्रतीत होगा

५. यह छोटा सा शिशु है मेरा, जीवन-निशि का शुभ्र सवेरा 

जीवन-निशि के रूपक पर शिशु-शुभ्र सवेरा का रूपक आधृत है. 

***

alankar salila

अलंकार सलिला:

पहचानिए अलंकार :
*
जाने बहार हुस्न तेरा बेमिसाल है
( गायक मो. रफ़ी, गीतकार शकील बदायूनी, संगीतकार रवि, चलचित्र प्यार किया तो डरना क्या, वर्ष १९६३)
*
पास बैठो तबियत बहल जाएगी
मौत भी आ गयी हो तो टल जाएगी
( गायक मो. रफ़ी, गीतकार इंदीवर, संगीतकार , चलचित्र पुनर्मिलन)
*
तोरा मन दरपन कहलाये
नहले-बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाये
( गायक आशा भोंसले, गीतकार , संगीतकार रवि, चलचित्र काजल १९६५)
*


devi geet

लोक सलिला- 
देवीगीत 
- प्रतिभा सक्सेना.




















*
मइया पधारी मोरे अँगना,
मलिनिया फूल लै के आवा,
*
ऊँचे पहारन से उतरी हैं मैया,
छायो उजास जइस चढ़त जुन्हैया.
रचि-रचि के आँवा पकाये ,
कुम्हरिया ,दीप लै के आवा.
*
सुन के पुकार मइया मैया जाँचन को आई ,
खड़ी दुआरे ,खोल कुंडी रे माई !
वो तो आय हिरदै में झाँके ,
घरनिया प्रीत लै के आवा ,
*
दीपक कुम्हरिया ,फुलवा मलिनिया ,
चुनरी जुलाहिन की,भोजन किसनिया.
मैं तो पर घर आई -
दुल्हनियाँ के मन पछतावा.
*
उज्जर हिया में समाय रही जोती .
रेती की करकन से ,निपजे रे मोती.
काहे का सोच बावरिया,
मगन मन-सीप लै के आवा !
*

desh aur alpsankhyak : putin

देश और अल्पसंख्यक :


अल्पसंख्यकों को सीख : 
रूस के राष्ट्रपति श्री व्लादिमिर पुतिन ने गत ४ अगस्त २०१५ को डूमा (रुसी संसद) को संबोधित कर रूस निवासी मुस्लिम अल्पसंख्यकों के संबंध में संक्षिप्त नीतिगत वक्तव्य दिया। भारतीय संसद में प्रधानमंत्री ऐसा वक्तव्य दें तो क्या होगा? पढ़िए श्री पुतिन का वक्तव्य, क्या भारत के साम्यवादी इसका समर्थन करेंगे? अगर नहीं तो क्यों? धर्म निरपेक्षता की समर्थक कांग्रेस, समाजवादी और दलित राजनीति कर रहे नेता इस नीति को स्वीकार लें तो देश का भला हो.

रूस में, रूसियों की तरह रहें, कहीं से भी आया हों , यदि वह रूस में रहना चाहता है. रूस में काम करना और खाना चाहता है तो उसे रूसी बोलना और रूसी कानूनों का सम्मान करना ही पड़ेगा। यदि वे शरीआ कानून को प्राथमिकता देते हैं और मुसलमानों की ज़िन्दगी जीते हैं तो हम उन्हें उन स्थानों पर जाने की सलाह देते हैं जहाँ वह राज्य का कानून है. रूस मुस्लिम अल्पसंख्यकों की जरूरत नहीं है. अल्पसंख्यकों को रूस की जरूरत है, और हम उन्हें विशेष सुविधाएँ नहीं देंगे, अथवा अपने कानूनों को उनकी इच्छापूर्ति के लिये नहीं बदलेंगे, वे कितनी भी जोर से भेदभाव चिल्लाएँ कोई फर्क नहीं पड़ता। हम अपनी रूसी सभ्यता का असम्मान सहन नहीं करेंगे. यदि हमें एक देश की तरह ज़िंदा रहना है तो बेहतर है कि हम अमेरिका, इंग्लॅण्ड, हॉलैंड और फ़्रांस से सबल लें. मुस्लिम उन देशों को हड़प रहे हैं और वे रूस को नहीं हड़प सकते। शरीआ कानूनों और मुसलमानों के शुरुआती तौर-तरीकों और हीन संस्कृति से रुसी रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं की तुलना नहीं की जा सकती। 
यह माननीय विधायिका जब नए कानून बनाने का विचार करे तो इसे यह देखते हुए कि मुस्लिम अल्पसंख्यक रूसी नहीं हैं, सर्वप्रथम रूसी राष्ट्र के हित का ध्यान रखना होगा। 
डूमा के सदस्यों ने ५ मिनिट तक खड़े होकर करतल धवनि करते हुए श्री पुतिन का अभिनंदन किया। 
क्या भारत के सांसद इस प्रसंग से कुछ सीख ??

ladimir Putin's speech - SHORTEST SPEECH EVER
On August 04, 2015, Vladimir Putin, the Russian president, addressed the Duma, (Russian Parliament), and gave a speech about the tensions with minorities in Russia:
In Russia, live like Russians. Any minority, from anywhere, if it wants to live in Russia, to work and eat in Russia, it should speak Russian, and should respect the Russian laws. If they prefer Sharia Law, and live the life of Muslim's then we advise them to go to those places where that's the state law.
Russia does not need Muslim minorities. Minorities need Russia, and we will not grant them special privileges, or try to change our laws to fit their desires, no matter how loud they yell 'discrimination'. We will not tolerate disrespect of our Russian culture. We better learn from the suicides of America, England, Holland and France, if we are to survive as a nation. The Muslims are taking over those countries and they will not take over Russia. The Russian customs and traditions are not compatible with the lack of culture or the primitive ways of Sharia Law and Muslims.
When this honorable legislative body thinks of creating new laws, it should have in mind the Russian national interest first, observing that the Muslims Minorities Are Not Russians. The politicians in the Duma gave Putin a five minute standing ovation.

sharmnak

शर्मनाक:

navgeet

एक रचना:
*
नदी वही है 
nadi wahi hai 
लेकिन वह घर-घाट नहीं है 
lekin wah ghar-ghat naheen hai
*
खिलता हुआ पलाश सुलगता
khilta huaa palash sulagta
वॅलिंटाइन पर्व याद कर
valentine parv yaad kar
हवा बसंती, फ़िज़ां नशीली
hawa basanti fizaa nasheelee
बहक रही है लिपट-चिपटकर
bahak rahi hai lipat-chipatkar
घूँघट-बेंदा, पायल-झुमका
ghunghat, benda, payal jhumka
झिझक-झेंपती लाज कहाँ है?
jhijhak-jhenpati, laaj kahan hai?
सर की, दर की
sar ki, dar ki,
फ़िक्र जिसे थी, बाट नहीं है
fikr jise thee, baat naheen hai
नदी वही है
nadi wahi hai
लेकिन वह घर-घाट नहीं है
lekin wah ghar-ghat naheen hai
*
पनघट, नुक्क्ड़, चौपालों से
panghat, nukkad, chaupalon se,
अपनापन हो गया पराया
apnapan ho gaya paraya
खलिहानों ने अमराई को-
khalihanon ne amrayee ko
लूट-रौंदकर दिल बहलाया
loot-rondkar dil bahlaya
नौ दिन-रात पूज नौ देवी
nau din-raat pooj nav devi
खुद को, जग को छले भक्त ही
khud ko. jag ko chhle bhakt hi
बदी बढ़ी पर
bdi barhi par
हुई न अब तक खाट खड़ी है
huee n ab tak khat khadi hai
नदी वही है
nadi wahi hai
लेकिन वह घर-घाट नहीं है
lekin wah ghar-ghat naheen hai
*
पुरा-पुरातन दिव्य सभ्यता
pura-puratan divy sabhyata
अब केवल बाजार हो गयी
ab kewal bazar ho gayee
रिश्ते-नाते, ममता-लोरी
rishte-nate-mamta-lori
राखी, बिंदिया भार हो गयी
rakhi-bindiya bhar ho gayee
जंगल, पर्वत, रेत, शिलाएँ
jangal parvat ret shilayen
बेचीं, अब आत्मा की बारी
becheen, ab aatam ki bari
संसाधन हैं
sanshadhan hain
तबियत मगर उचाट हुई है
tabiyat magar uchaat hi hain
नदी वही है
nadi wahi hai
लेकिन वह घर-घाट नहीं है
lekin wah ghar-ghat naheen hai
*

Kavita :


एक रचना:                                      नेपाली अनुवाद :
संजीव वर्मा 'सलिल'                           विधि गुरुङ्ग 


*                                                    *
ओ मेरी नेपाली सखी!                        हे मेरो नेपाली संगी!
एक सच जान लो                              एउटा सत्य थाहा पाऊ
समय के साथ आती-जाती है               समय संग आउञ्छ जान्छ
धूप और छाँव                                   छाया र घाम
लेकिन हम नहीं छोड़ते हैं                    तर हामी छोर्दैनौ है
अपना घर या गाँव।                           आफ्नो घर र गाम
परिस्थितियाँ बदलती हैं,                     परिस्थिति बद्लि रहन्छ
दूरियाँ घटती-बढ़ती हैं                         दुरी घटी-बढ़ी रहन्छ
लेकिन दोस्त नहीं बदलते                    तर मित्रता बदलिन्दैन
दिलों के रिश्ते नहीं टूटते।                    मनको नाता तुतिन्दैन
मुँह फुलाकर रूठ जाने से                     मुख फुलाएर रिसाउने बितिकै
सदियों की सभ्यताएँ                           सदियौंको सभ्यता
समेत नहीं होतीं।                               बिलिन हुँदैन।
हम-तुम एक थे,                                हामी तिमि एक थियौं ,
एक हैं, एक रहेंगे।                              एक छौं एक रही रहनेछौ
अपना सुख-दुःख                               आफ्नो सुख-दुःख,
अपना चलना-गिरना                          हिंद्नु- लड्नु
संग-संग उठना-बढ़ना                         संग - संग उठ्नु - अघि बढनु
कल भी था,                                      हिजो पनि थियौं,
कल भी रहेगा।                                  आज पनि छौं भोलिनी रहनेछौं
आज की तल्खी                                 आजको कट्तुता
मन की कड़वाहट                               मनको कड़वाहट
बिन पानी के बदल की तरह                 पानी बिनको बादल सरी
न कल थी,                                       न हिजो थियो
न कल रहेगी।                                   न भोली रहन्छ
नेपाल भारत के ह्रदय में                       नेपाल भारतको मनमा
भारत नेपाल के मन में                        भारत नेपालको मनमा
था, है और रहेगा।                              सदा रहन्छ।
इतिहास हमारी मित्रता की                   इतिहांस ले हाम्रो मित्रता को
कहानियाँ कहता रहा है,                       कथा सुनाउंछ
कहता रहेगा।                                    सुनाई रहनेछ
आओ, हाथ में लेकर हाथ                     आऊ, हाथ मा लिएर हाथ
कदम बढ़ाएँ एक साथ                          पाइला चालऊं एक साथ
न झुकाया है, न झुकाएँ                       न निहुराएको थियौं, शिर न झुकाउने छौं
हमेशा ऊँचा रखें अपना माथ।               हमेसा उच्च थियो शिर उच्चनै राख्ने छौं
नेता आयेंगे-जायेंगे                             नेता आउँछ - जान्छ
संविधान बनेंगे-बदलेंगे                        संबिधान बन्छ बद्लिन्छ
लेकिन हम-तुम                                 तर तिमि-हामी,
कोटि-कोटि जनगण                            करोडौं जनता
न बिछुड़ेंगे, न लड़ेंगे                            न छुट छौं, न लड्छौं
दूध और पानी की तरह                        दूध र पानी जस्तै
शिव और भवानी की तरह                    शिव र पार्वती जस्तै
जन्म-जन्म साथ थे,                           जुनी जुनी साथ थियौं
हैं और रहेंगे                                      छौं र रही रहन्छौं
ओ मेरी नेपाली सखी!                         हे मेरो नेपाली संगी!
***                                                  ***

विचार:

doha

दोहा सलिला :

नेह-नर्मदा नहाकर, मन-मयूर के नाम 
तन्मय तन ने लिख दिया, चिन्मय चित बेदाम

***

राम मंदिर

current affair

व्यंग्य:

आवेदन आमंत्रित हैं.…

राष्ट्रीय साहित्य अकादमी आवेदन आमंत्रित करती है उन सभी से जो-

१. विगत आम चुनाव में जनता द्वारा दिये गए निर्णय को पचा नहीं सके हैं.
२. स्वतंत्रता प्राप्ति से ६८ साल बाद भी अपनी विचारधारा को जनस्वीकृति नहीं दिला सके
 ३. तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादियों  को दबाव में रखकर विविध अकादमियों और शिक्षा संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश करते रहे
 ४. प्रशासनिक कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते रहे और हिंसक जनान्दोलनों में निर्दोष ग्रामीणों को झोंकते रहे
 ५. सीमा विवादों में भारत सरकार के पक्ष को गलत और चीन को सही मानते रहे
 ६. आतंकवादियों के मानवाधिकारों के पहरुआ हैं
 ७. जिन्हें कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं के साथ होता अन्याय, अन्याय नहीं प्रतीत होता
 ८. जो प्रगतिवादी कविता के नाम पर आम आदमी को समझ न आनेवाली भाषा के पैरोकार हैं
 ९. छंद को तिरस्कृत कर गीत के मरने की घोषणा कर चुके हैं
१०. साहित्य में यथार्थ के नाम पर अश्लील और गाली-गलौज भरी भाषा के पक्षधर हैं
११. जो सांप्रदायिक एकता का अर्थ बहुसंख्यकों का दमन और अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण मानते हैं
१२. येन-केन-प्रकारेण मोदी सरकार के विरोध में वातावरण बनाने के लिये कटिबद्ध हैं
१३.  असामाजिक तत्वों द्वारा की गयी हत्याओं की जाँच वैधानिक एजेंसियों द्वारा कराये जाने पर विश्वास नहीं रखते
१४. चिन्ह-चिन्ह कर बाँटी गयी रेवड़ियों से पुरस्कृत होकर खुद को स्वनामधन्य मानने लगे किन्तु जिन्हें जाननेवाले नाममात्र के हैं
१५. जिन्होंने आवेदन कर पुरस्कार जुगाडे, किताबों की सैकड़ों प्रतियों को पुस्तकालयों में खपवाया, शिक्षण संस्थाओं में जाकर किराये और भत्ते प्राप्त किये

प्राप्त पुरस्कारों तथा अन्य लाभों का विवरण देते हुए पुरस्कार वापिसी हेतु आवेदन फ़ौरन से पेश्तर प्रस्तुत करें और अपनी आत्मा पर लड़े बोझ से मुक्त हों. आपके द्वारा प्राप्त लाभों के विवरण के अनुसार राशि का चेक प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमा कर विवरण संलग्न करें।

प्राप्त आवेदनों पर तत्काल पुरस्कार वापिसी की अनुमति दी जाकर आत्मावलोकन, आत्मालोचन तथा आत्मोन्नयन के सपनो पर पग रखने के लिये आपको धन्यवाद दिया जायेगा।

इश्वर से प्रार्थना है कि शेष जीवन में आपको पुरस्कारों का मोह न व्यापे, क्योंकि जब पुरस्कृत होना साध्य और रचना कर्म साधन हो जाता है तब न रचना अमर होती है, न रचनाकार। 

बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

smaran alankar

अलंकार सलिला

: २१ : स्मरण अलंकार








एक वस्तु को देख जब दूजी आये याद
अलंकार 'स्मरण' दे, इसमें उसका स्वाद

करें किसी की याद जब, देख किसी को आप.
अलंकार स्मरण 'सलिल', रहे काव्य में व्याप..
*
कवि को किसी वस्तु या व्यक्ति को देखने पर दूसरी वस्तु या व्यक्ति याद आये तो वहाँ स्मरण अलंकार होता है.

जब पहले देखे-सुने किसी व्यक्ति या वस्तु के समान किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु को देखने पर उसकी याद हो आये तो स्मरण अलंकार होता है.

स्मरण अलंकार समानता या सादृश्य से उत्पन्न स्मृति या याद होने पर ही होता है. किसी से संबंधित अन्य व्यक्ति या वस्तु की याद आना स्मरण अलंकार नहीं है.

'स्मृति' नाम का एक संचारी भाव भी होता है. वह सादृश्य-जनित स्मृति (समानता से उत्पन्न याद) होने पर भी होता है और और सम्बद्ध वस्तुजनित स्मृति में भी. स्मृति भाव और स्मरण अलंकार दोनों एक साथ हो भी सकते हैं और नहीं भी.

स्मरण अलंकार से कविता अपनत्व, मर्मस्पर्शिता तथा भावनात्मक संवगों से युक्त हो जाती है.

उदाहरण:

१. प्राची दिसि ससि उगेउ सुहावा
    सिय-मुख सुरति देखि व्है आवा
   
   यहाँ पश्चिम दिशा में उदित हो रहे सुहावने चंद्र को सीता के सुहावने मुख के समान देखकर राम को सीता याद आ रही है. अत:, स्मरण अलंकार है.

२. बीच बास कर जमुनहि आये
    निरखि नीर लोचन जल छाये

     यहाँ राम के समान श्याम वर्ण युक्त यमुना के जल को देखकर भरत को राम की याद आ रही है. यहाँ स्मरण अलंकार और स्मृति भाव दोनों है.

३. सघन कुञ्ज छाया सुखद, शीतल मंद समीर
    मन व्है जात वहै वा जमुना के तीर

कवि को घनी लताओं, सुख देने वाली छाँव तथा धीमी बाह रही ठंडी हवा से यमुना के तट की याद आ रही है. अत; यहाँ स्मरण अलंकार और स्मृति भाव दोनों है.

४. देखता हूँ 
    जब पतला इंद्रधनुषी हलका
    रेशमी घूँघट बादल का 
    खोलती है कुमुद कला
    तुम्हारे मुख का ही तो ध्यान 
     तब करता अंतर्ध्यान।

    यहाँ स्मरण अलंकार और स्मृति भाव दोनों है.

५. ज्यों-ज्यों इत देखियत मूरुख विमुख लोग
                     त्यौं-त्यौं ब्रजवासी सुखरासी मन भावै है 
    सारे जल छीलर दुखारे अंध कूप देखि 
                     कालिंदी के कूल काज मन ललचावै है 
    जैसी अब बीतत सो कहतै ना बने बैन 
                     नागर ना चैन परै प्रान अकुलावै है 
    थूहर पलास देखि देखि के बबूर बुरे 
                     हाथ हरे हरे तमाल सुधि आवै है 

६. श्याम मेघ सँग पीत रश्मियाँ देख तुम्हारी
    याद आ रही मुझको बरबस कृष्ण मुरारी.
    पीताम्बर ओढे हो जैसे श्याम मनोहर.
    दिव्य छटा अनुपम छवि बाँकी प्यारी-प्यारी.

७ . जो होता है उदित नभ में कौमुदीनाथ आके
    प्यारा-प्यारा विकच मुखड़ा श्याम का याद आता

८. छू देता है मृदु पवन जो, पास आ गात मेरा
     तो हो आती परम सुधि है, श्याम-प्यारे-करों की

९. सजी सबकी कलाई
   पर मेरा ही हाथ सूना है.
   बहिन तू दूर है मुझसे
   हुआ यह दर्द दूना है.

१०. धेनु वत्स को जब दुलारती
    माँ! मम आँख तरल हो जाती.
    जब-जब ठोकर लगती मग पर
    तब-तब याद पिता की आती.

११. जब जब बहार आयी और फूल मुस्कुराये 
    मुझे तुम याद आये.

स्मरण अलंकार का एक रूप ऐसा मिलता है जिसमें उपमेय के सदृश्य उपमान को देखकर उपमेय का प्रत्यक्ष दर्शन करने की लालसा तृप्त हो जाती है. 

१२. नैन अनुहारि नील नीरज निहारै बैठे बैन अनुहारि बानी बीन की सुन्यौ करैं 
     चरण करण रदच्छन की लाली देखि ताके देखिवे का फॉल जपा के लुन्यौं करैं  
     रघुनाथ चाल हेत गेह बीच पालि राखे सुथरे मराल आगे मुकता चुन्यो करैं 
     बाल तेरे गात की गाराई सौरि ऐसी हाल प्यारे नंदलाल माल चंपै की बुन्या करैं 

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lokgeet

एक लोकरंगी प्रयास-
देवी को अर्पण.
*
मैया पधारी दुआरे
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
घर-घर बिराजी मतारी हैं मैंया!
माँ, भू, गौ, भाषा हमारी है मैया!
अब लौं न पैयाँ पखारे रे हमने
काहे रहा मन भुलाना
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
आसा है, श्वासा भतारी है मैया!
अँगना-रसोई, किवारी है मैया!
बिरथा पड़ोसन खों ताकत रहत ते,
भटका हुआ लौट आवा

रे भैया! झूम-झूम गावा
*
राखी है, बहिना दुलारी रे मैया!
ममता बिखरे गुहारी रे भैया!
कूटे ला-ला भटकटाई -
सवनवा बहुतै सुहावा

रे भैया! झूम-झूम गावा
*
बहुतै लड़ैती पिआरी रे मैया!
बिटिया हो दुनिया उजारी रे मैया!
'बज्जी चलो' बैठ काँधे कहत रे!
चिज्जी ले ठेंगा दिखावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
तोहरे लिये भए भिखारी रे मैया!
सूनी थी बखरी, उजारी रे मैया!
तार दये दो-दो कुल तैंने 
घर भर खों सुरग बनावा  
रे भैया! झूम-झूम गावा
*

devi geet

कुछ लोकरंग-
देवी को अर्पण
- प्रतिभा सक्सेना.
*
मइया पधारी मोरे अँगना,
मलिनिया फूल लै के आवा,
*
ऊँचे पहारन से उतरी हैं मैया,
छायो उजास जइस चढ़त जुन्हैया.
रचि-रचि के आँवा पकाये ,
कुम्हरिया ,दीप लै के आवा.
*
सुन के पुकार मइया मैया जाँचन को आई ,
खड़ी दुआरे ,खोल कुंडी रे माई !
वो तो आय हिरदै में झाँके ,
घरनिया प्रीत लै के आवा ,
*
दीपक कुम्हरिया ,फुलवा मलिनिया ,
चुनरी जुलाहिन की,भोजन किसनिया.
मैं तो पर घर आई -
दुल्हनियाँ के मन पछतावा.
*
उज्जर हिया में समाय रही जोती .
रेती की करकन से ,निपजे रे मोती.
काहे का सोच बावरिया,
मगन मन-सीप लै के आवा !
*

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015

ananvaya alankar

अलंकार सलिला 

: २१  : अनन्वय अलंकार

















बने आप उपमेय ही, जब खुद का उपमान 
'सलिल' अनन्वय है वहाँ, पल भर में ले जान 
*
किसी काव्य प्रसंग में उपमेय स्वयं ही उपमान हो तथा पृथक उपमान का अभाव हो तो अनन्वय अलंकार होता है.  

उदाहरण:

१. लही न कतहुँ हार हिय मानी।  इन सम ये उपमा उर जानी।।

२. हियौ हरति औ' करति अति, चिंतामनि चित चैन 
    वा सुंदरी के मैं लखे, वाही के से नैन  

३. अपनी मिसाल आप हो, तुम सी तुम्हीं प्रिये! 
    उपमान कैसे दे 'सलिल', जूठे सभी हुए

४. ये नेता हैं नेता जैसे, चोर-उचक्के इनसे बेहतर

५. नदी नदी सम कहाँ रह गयी?, शेष ढूह है रेत के 
    जहाँ-तहाँ डबरों में पानी, नदी हो गयी खेत रे!

६. भारत माता 
    समान है, केवल 
    भारत माता।    -हाइकु 

७. नहीं लता सी दूसरी  
    कहीं गायिका हुई है 
    लता आप हैं लता सी -जनक छंद    


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geet

एक रचना
*











*
जय हिंदी जगवाणी!
जय मैया भारती!!
*
क्षर जग को दे अक्षर
बहा शब्द के निर्झर
रस जल, गति-यति लहरें
भाव-बिंब बह-ठहरें
रूपक-उपमा ललाम
यमक-श्लेष कर प्रणाम
अनुप्रासिक छवि देखें
वक्र-उक्ति अवरेखें
शब्द-शक्ति ज्योत बाल
नित करती आरती
जय हिंदी जगवाणी!
जय मैया भारती!!
*
हास्य करुण शांत वीर
वत्सल श्रृंगार नीर 
अद्भुत वीभत्स रौद्र
जन-मन की हरें पीर
गोहा, चौपाई, गीत
अमिधा-लक्षणा प्रीत
व्यंजना उकेर चित्र
छंदों की बने मित्र
लघु-गुरु, गण, गुण तुम पर
शारद माँ  वारती
*
लेख, कथा, उपन्यास,
व्यंग्य कहे मिटे त्रास
क्रिया संज्ञा सर्वनाम
कर अनाम को प्रणाम
कह रहे कहावतें
रच रुचिर मुहावरे
अद्भुत सामर्थ्यवान
दिग्दिगंत करे गान
स्नेह-'सलिल' गंग बहा
दे सुज्ञान तारती

***
जबलपुर
बैठकी १३.१०.२०१५ 






सोमवार, 12 अक्टूबर 2015

aawhan gaan

आव्हान गान:
*
जागो माँ!, जागो माँ!!
*
*
सघन तिमिर आया घिर
तूफां है हावी फिर.
गौरैया घायल है
नष्ट हुए जंगल झिर.
बेबस है राम आज
रजक मिल उठाये सिर.
जनमत की सीता को
निष्ठा से पागो माँ.
जागो माँ!, जागो माँ!!
*
शकुनि नित दाँव चले
कृष्णा को छाँव छले.
शहरों में आग लगा
हाथ सेंक गाँव जले.
कलप रही सत्यवती
बेच घाट-नाव पले.
पद-मद के दानव को
मार-मार दागो माँ
जागो माँ!, जागो माँ!!
*
करतल-करताल लिये
रख ऊँचा भाल हिये.
जस गाते झूम अधर
मन-आँगन बाल दिये.
घंटा-ध्वनि होने दो
पंचामृत जगत पिये.
प्राणों को खुद भी
ज्यादा प्रिय लागो माँ!
जागो माँ!, जागो माँ!!
*