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मंगलवार, 24 जून 2014

chhand salila: alha chhand -sanjiv

छंद सलिला:
आल्हा/वीर/मात्रिक सवैयाRoseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति , अर्ध सम मात्रिक छंद, प्रति चरण मात्रा ३१ मात्रा, यति १६ -१५, पदांत गुरु गुरु, विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।),

लक्षण छंद:

आल्हा मात्रिक छंद सवैया, सोलह-पन्द्रह यति अनिवार्य.    
गुरु-लघु चरण अंत में रखिये, सिर्फ वीरता हो स्वीकार्य..
अलंकार अतिशयता करता बना राई को 'सलिल' पहाड़.
    
ज्यों मिमयाती बकरी सोचे, गुँजा रही वन लगा दहाड़..

उदाहरण:

१. बुंदेली के नीके बोल... संजीव 'सलिल'
*
तनक न चिंता करो दाऊ जू, बुंदेली के नीके बोल.
जो बोलत हैं बेई जानैं, मिसरी जात कान मैं घोल..
कबू-कबू ऐसों लागत ज्यौं, अमराई मां फिररै डोल.
आल्हा सुनत लगत हैं ऐसो, जैसें बाज रए रे ढोल..

अंग्रेजी खों मोह ब्याप गौ, जासें मोड़ें जानत नांय.
छींकें-खांसें अंग्रेजी मां, जैंसें सोउत मां बर्रांय..
नीकी भासा कहें गँवारू, माँ खों ममी कहत इतरांय.
पाँव बुजुर्गों खें पड़ने हौं, तो बिनकी नानी मर जांय..

फ़िल्मी धुन में टर्राउट हैं, आँय-बाँय फिर कमर हिलांय.
बन्ना-बन्नी, सोहर, फागें, आल्हा, होरी समझत नांय..
बाटी-भर्ता, मठा-महेरी, छोड़ केक बिस्कुट बें खांय.
अमराई चौपाल पनघटा, भूल सहर मां फिरें भुलांय..
*

२. कर में  ले तलवार घुमातीं, दुर्गावती करें संहार.
    यवन भागकर जान बचाते  गिर-पड़ करते हाहाकार.  
    सरमन उठा सूँढ से फेंके, पग-तल कुचले मुगल-पठान.  
    आसफ खां के छक्के छूटे, तोपें लाओ बचे तब जान.

३. एक-एक ने दस-दस मारे, हुआ कारगिल खूं से लाल 
    आये कहाँ से कौन विचारे, पाक शिविर में था भूचाल 
    या अल्ला! कर रहम बचा जां, छूटे हाथों से हथियार  
    कैसे-कौन निशाना साधे, तजें मोर्चा हो बेज़ार 
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कमंद, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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chhand salila: kamand chhand -sanjiv

छंद सलिला:
कमंदRoseछंद 


संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १५-१७, पदांत गुरु गुरु

लक्षण छंद:
  रखें यति पंद्रह-सत्रह पर, अमरकण्टकी लहर लहराती 
  छंद कमंद पदांत गुरु-गुरु, रसगंगा ज्यों फहर फहराती 

उदाहरण:
१. प्रभु को भजते संत सुजान, भुलाकर अहंकार-मद सारा
    जिसने की दीन की सेवा, उसने जन्म का पाप उतारा
    संग न गया कभी कहीं कुछ, कुछ संग बोलो किसके आया
    किसे सगा कहें हम अपना, किसको बोलो बोलें पराया 

२. हम सब भारत माँ के लाल, चरण में सदा समर्पित होंगे
    उच्च रखेंगे माँ का भाल, तन-मन के सुमन अर्पित होंगे
    गर्व है हमको मैया पर, गर्व हम पर मैया को होगा
    सर कटा होंगे शहीद जो, वे ही सुपूजित चर्चित होंगे
 
३. विदेशी भाषा में शिक्षा, मिले- उचित है भला यह कैसे?
    विरासत की सतत उपेक्षा, करी- शुभ ध्येय भला यह कैसे?
    स्वमूल्य का अवमूल्यन कर, परमूल्यों को बेहतर बोलें
    'सलिल' अमिय में अपने हाथ, छिपकर हलाहल कैसे घोलें?
                  
                              *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कमंद, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila: kamand chhand  -sanjiv
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lekh: bharat ki bahubhashikta -pro. mahavir saran jain

आलेख - भारत की बहुभाषिकता : एक विवेचना

प्रो. महावीर सरन जैन 
(भारत में एक ओर बहुभाषिकता दूसरी ओर भिन्न भाषा-परिवारों की भारतीय भाषाओं की भाषिक समानता तथा भारतीय भाषाओं के विकास का अपेक्षित विकास न होने के मूल कारण की विवेचना)

*

भारत में भाषाओं, प्रजातियों, धर्मों, सांस्कृतिक परम्पराओं एवं भौगोलिक स्थितियों का असाधारण एवं अद्वितीय 
वैविध्य विद्यमान है। विश्व के इस सातवें विशालतम देश को पर्वत तथा समुद्र शेष एशिया से अलग करते हैं जिससे इसकी
अपनी अलग पहचान है, अविरल एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, राष्ट्र की अखंडित मानसिकता है। “अनेकता में एकता
तथा “एकता में अनेकता” की विशिष्टता के कारण भारत को विश्व में अद्वितीय सांस्कृतिक लोक माना जाता है।

भाषिक दृष्टि से भारत बहुभाषी देश है। यहाँ मातृभाषाओं की संख्या 1500 से अधिक है (जनगणना 1991, रजिस्ट्रार 
जनरल ऑफ इण्डिया) । इस जनगणना के अनुसार दस हजार से अधिक लोगो द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या
114 है। (जम्मू और कश्मीर की जनगणना न हो पाने के कारण इस रिपोर्ट में लद्दाखी का नाम नहीं है। इसी प्रकार इस 
जनगणना में मैथिली को हिन्दी के अन्तर्गत स्थान मिला है। अब मैथिली भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची की 
एक परिगणित भाषा है।) लद्दाखी एवं मैथिली को सम्मिलित करने पर दस हजार से अधिक लोगो द्वारा बोली जाने वाली 
भाषाओं की संख्या 116 हो जाती है।

चार भाषा परिवार:
यूरोप एवं एशिया महाद्वीप के भाषा-परिवारों में से “दक्षिण एशिया” में मुख्यतः चार भाषा-परिवारों  की भाषायें बोली 
जाती हैं। भारत में भी सामी भाषा परिवार की “अरबी” के अपवाद के अलावा इन्हीं चार भाषा परिवारों की भाषायें बोली 
जाती हैं। ये चार भाषा परिवार हैं:
Ⅰ भारोपीय परिवार: (भारत में भारत-ईरानी उपपरिवार की आर्य भाषाएँ तथा दरद शाखा की कश्मीरी बोली जाती हैं। 
कश्मीरी अब भाषा वैज्ञानिक भारतीय आर्य भाषाओं के अन्तर्गत  है। भारत की जनसंख्या के 75. 28 प्रतिशत व्यक्ति इस 
परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं। “जर्मेनिक” उपपरिवार की अंग्रेजी के मातृभाषी भी भारत में निवास करते हैं जिनकी 
संख्या 178,598 है।)
Ⅱ द्रविड़ परिवार: (भारत में 22. 53 प्रतिशत व्यक्ति इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं)
Ⅲ आग्नेय परिवार: (आस्ट्रिक या आस्ट्रो-एशियाटिक): (इन भाषाओं के प्रयोक्ता 1. 13 प्रतिशत है।
Ⅳ सिनो-तिब्बती परिवार: (इस परिवार की स्यामी/थाई/ताई उपपरिवार की अरुणाचल प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा 
खम्प्टी को छोड़कर भारत में तिब्बत-बर्मी उपपरिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता 0.97
प्रतिशत हैं अर्थात भारत की जनसंख्या के एक प्रतिशत से भी कम व्यक्ति इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं) इन 116 
भाषाओं में से आठ भाषाओं (08) के बोलने वाले भारत के विभिन्न राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में निवास करते हैं तथा 
जिनका भारत में अपना भाषा-क्षेत्र नहीं है।

1.संस्कृत प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल की भाषा है। विभिन्न राज्यों के कुछ व्यक्ति एवं परिवार अभी भी संस्कृत का
व्यवहार मातृभाषा के रूप में करते हैं।

2. अरबी एवं 3. अंग्रेजीः मुगलों के शासनकाल के कारण अरबी तथा अंग्रेजों के शासन काल के कारण अंग्रेजी के बोलने 
वाले भारत के विभिन्न भागों में निवास करते हैं। भारत में सामी/सेमेटिक परिवार की अरबी के बोलने वालों की भारत
कुल जनसंख्या 21,975 है। भारत के सात राज्यों में इस भाषा के बोलनेवालों की संख्या एक हजार से अधिक हैः (1)बिहार (2) कर्नाटक (3) मध्यप्रदेश (4) महाराष्ट्र (5)
तमिलनाडु (6) उत्तरप्रदेश (7) पश्चिम बंगाल । भारत-यूरोपीय परिवार की जर्मेनिक उपपरिवार की अंग्रेजी को मातृ-भाषा
के रूप में बोलने वालों की भारत में कुल जनसंख्या 178,598 है। तमिलनाडु, कर्नाटक एवं पश्चिम बंगाल में इसके बोलने
वालों की संख्या सबसे अधिक है। यह संख्या तमिलनाडु में 22,724, कर्नाटक में 15,675 एवं पश्चिम बंगाल में 15,394 है।

4. सिन्धी एवं 5.लहँदाः इनके भाषा-क्षेत्र पाकिस्तान में हैं। सन् 1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान से आकर इन 
भाषाओं के बोलने वाले भारत के विभिन्न भागों में बस गए। 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में लहँदा बोलनेवालों
की संख्या 27,386 है। इस भाषा के बोलने वाले आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश,
दिल्ली आदि में रहते हैं तथा अपनी पहचान मुल्तानी-भाषी के रूप में अधिक करते हैं। सिंधी संविधान की परिगणित 
भाषाओं के अंतर्गत है। इस भाषा के बोलने वालों की संख्या 2,122,848 है। इस भाषा के बोलने वाले गुजरात, महाराष्ट्र, 
मध्य प्रदेश, राजस्थान राज्यों में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में निवास करते हैं। ये भारत के 31 राज्यों केन्द्रशासित प्रदेशों
में निवास करते हैं। लहँदा एवं सिन्धी दोनो भाषाओं के बोलने वालों में द्विभाषिता/ त्रिभाषिता / बहुभाषिता का प्रसार हो 
रहा है। जो जहाँ बसा है, वहाँ की भाषा से इनके भाषा रूप में परिवर्तन हो रहा है।

6. नेपालीः इसका भी भारत में कोई भाषाक्षेत्र नहीं है। यह भी परिगणित भाषाओं के अंतर्गत समाहित है। नेपाली भाषी भी
भारत के अनेक राज्यों में बसे हुए हैं।। भारत में इनके बोलने वालों की संख्या 2,076,645 है। पश्चिम बंगाल, असम एवं 
सिक्किम में इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। पश्चिम बंगाल में 860,403, असम में 432,519 तथा सिक्किम में 256,418
नेपाली-भाषी निवास करते हैं। इनके अतिरिक्त पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर एवं मेघालय राज्यों में तथा 
उत्तर भारत के हिमाचल प्रदेश में इनकी संख्या एक लाख से तो कम है मगर 45 हजार से अधिक है।

7. तिब्बतीः तिब्बती भारत के 26 राज्यों में रह रहे हैं। इनकी मातृ भाषा तिब्बती है जिनकी संख्या 69,416 है। कर्नाटक, 
हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है।

8. उर्दू जम्मू - कश्मीर की राजभाषा है तथा आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार कर्नाटक आदि राज्यों की दूसरी प्रमुख भाषा 
है। भारतीय संविधान में उर्दू को हिन्दी से भिन्न परिगणित भाषा माना गया है। इसके बोलने वाले भारत के आन्ध्र प्रदेश, 
बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दिल्ली तथा तमिलनाडु में निवास करते हैं भारत मे 
इनकी संख्या 43,406,932 है। भाषिक दृष्टि से हिन्दी एवं उर्दू भिन्न भाषाएँ नहीं हैं तथा इस सम्बंध में आगे विचार किया जाएगा।

परिगणित भाषाएँ -

भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में परिगणित भाषाओं की संख्या अब 22 है। प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल की
संस्कृत के अलावा निम्नलिखित 21 आधुनिक भारतीय भाषाएँ परिगणित हैं:- 1.असमिया 2. बंगला 3. बोडो 4. डोगरी 5.
गुजराती 6. हिन्दी 7. काश्मीरी 8. कन्नड़ 9.कोंकणी 10. मैथिली 11. मलयालम 12. मणिपुरी 13. मराठी 14. नेपाली 15. 
ओडि़या 16. पंजाबी 17. तमिल 18. तेलुगु 19. संथाली 20. सिन्धी 21. उर्दू इन 22 परिगणित भाषाओं में से पन्द्रह भाषाएँ
भारतीय आर्य भाषा उप परिवार की, चार भाषाएँ द्रविड़ परिवार की, एक भाषा (संथाली) आग्नेय परिवार की मुंडा उप
रिवार की तथा दो भाषाएँ (बोडो एवं मणिपुरी) तिब्बत-बर्मी उप परिवार की हैं। 1991 की जनगणना प्रकाशन के समय 
(सन् 1997) में परिगणित भाषाओं की संख्या 18 हुई थी। 1991 के बाद कोंकणी, मणिपुरी एवं नेपाली परिगणित भाषाओं 
में जुड़ गई थी। इस जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 838,583,988 थी में से 96. 29 प्रतिशत लोग अर्थात् 
807,441,612 व्यक्ति उन 18 परिगणित भाषाओं में से किसी एक भाषा को बोलने वाले थे।

भारत की प्रमुख भाषाएँ-


भारत की प्रमुख 20 भाषाएँ निम्न हैं -

क्रमभाषा का नाम2001 की जनगणना के अनुसार वक्ताओं की संख्याभारत की जनसंख्या में भाषा के वक्ताओं का प्रतिशत1991 की जनगणना के अनुसार वक्ताओं की संख्याभारत की जनसंख्या में भाषा के वक्ताओं का प्रतिशत
1हिन्दी (परिगणित)422,048,64241.03 %329,518,08739.29 %
2बांग्ला / बंगला (परिगणित)83,369,7698.11 %69,595,7388.30 %
3तेलुगू (परिगणित)74,002,8567.19 %66,017,6157.87 %
4मराठी (परिगणित)71,936,8946.99 %62,481,6817.45 %
5तमिल (परिगणित)60,793,8145.91 %53,006,3686.32 %
6उर्दू (परिगणित)51,536,1115.01 %43,406,9325.18 %
7गुजराती (परिगणित)46,091,6174.48 %40,673,8144.85 %
8कन्नड़ (परिगणित)37,924,0113.69 %32,753,6763.91 %
9मलयालम (परिगणित)33,066,3923.21 %28,061,3133.62 %
10ओडिया / ओड़िआ
(परिगणित)
33,017,4463.21 %28,061,3133.35 %
11पंजाबी (परिगणित)29,102,4772.83 %23,378,7442.79%
12असमिया /असमीया (परिगणित)13,168,4841.28 %13,079,6961.56 %
13मैथिली (परिगणित)12,179,1221.18 %हिन्दी के अन्तर्गत परिगणित
14भीली / भिलोदी9,582,9570.93 %5,572,308
15संताली (परिगणित)6,469,6000.63 %5,216,3250.622 %
16कश्मीरी / काश्मीरी
(परिगणित)
5,527,6980.54 %विवरण अनुपलब्ध
17नेपाली (परिगणित)2,871,7490.28 %2,076,6450.248 %
18गोंडी2,713,7900.26 %2,124,852
19सिंधी (परिगणित)2,535,4850.25 %2,122,8480.253 %
20कोंकणी (परिगणित)2,489,0150.24 %1,760,6070.210 %


इनमें हिन्दी - उर्दू भाषिक दृष्टि से भिन्न भाषाएँ नहीं हैं। मैथिली 1991 की जनगणना में हिन्दी के अन्तर्गत ही समाहित 
थी। नेपाली एवं सिंधी का भारत में भाषा-क्षेत्र नहीं है। 
1. हिन्दी – उर्दूयद्यपि भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी और उर्दू अलग अलग भिन्न भाषाएँ हैं मगर भाषिक दृष्टि से दोनों में भेद नहीं है।
इस दृष्टि से विशेष अध्ययन के लिए देखें –
1.  प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी-उर्दू का सवाल तथा पाकिस्तानी राजदूत से मुलाकात, मधुमती (राजस्थान साहित्य अकादमी की शोध पत्रिका), अंक 6, वर्ष 30, पृष्ठ 10-22, उदयपुर (जुलाई, 1991))।
2.  प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी-उर्दू, Linguistics and Linguistics, studies in Honor of  Ramesh Chandra Mehrotra, Indian Scholar Publications, Raipur, pp. 311-326 (1994))।
3.  प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी – उर्दू का अद्वैत, संस्कृति (अर्द्ध-वार्षिक पत्रिका) पृष्ठ 21 – 30, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, (2007))।
4. हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैतः (रचनाकार, 06 जुलाई, 2010)
http://www.rachanakar.org/2010/07/2.html
1. हिन्दी-उर्दू का अद्वैतः अभिनव इमरोज़, वर्ष – 3, अंक – 17, सभ्या प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ 34 – 43 (जनवरी, 2014)

2. मैथिली की स्थिति –
भारतीय संविधान में 22 दिसम्बर, 2003 से मैथिली को हिन्दी से अलग परिगणित भाषा का दर्जा मिल गया है। लेखक ने अन्यत्र स्पष्ट किया है कि खड़ी बोली के आधार पर मानक हिन्दी का विकास अवश्य हुआ है किन्तु खड़ी बोली ही हिन्दी नहीं है। ‘हिन्दी भाषा क्षेत्र’ के अन्तर्गत जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं उन सबकी समष्टि का नाम हिन्दी है। ‘हिन्दी भाषा क्षेत्र’ के अन्तर्गत ही मैथिली भी आती है।
इस दृष्टि से विशेष अध्ययन के लिए देखें –
1. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: भाषा एवं भाषा-विज्ञान, अध्याय 4, भाषा के विविध रूप एवं प्रकार, लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद (1985))।
2. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी भाषा के विविध रूप, श्री जैन विद्यालय, हीरक जयंती स्मारिका, कलकत्ता, पृष्ठ 2-5 (1994)
3. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी भाषा के उपभाषिक रूप, हिन्दी साहित्य परिषद्, बुलन्द शहर, स्वर्ण जयंती स्मारिका (1995)
4. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: अलग नहीं हैं भाषा और बोली, अक्षर पर्व, अंक 6, वर्ष 2, देशबंधु प्रकाशन विभाग, रायपुर (1999)
5. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी की अंतर-क्षेत्रीय, अंतर्देशीय एवं अंतर्राष्ट्रीय भूमिका, सातवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन स्मारिका, पृष्ठ 13-23, भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद्, नई दिल्ली (2003)
6. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाएँ एवं हिन्दी, गगनांचल,पृष्ठ 43 – 46, वर्ष 28, अंक 4, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, नई दिल्ली, (अक्टूबर – दिसम्बर, 2005))।
7.हिन्दी भाषा का क्षेत्र एवं हिन्दी के क्षेत्रगत रूपः (रचनाकार, 05 जुलाई, 2010)
http://www.rachanakar.org/2010/07/1.html
8.प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी, विश्व हिन्दी पत्रिका – 2011, पृष्ठ 17-23, विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरीशस (2011))।
9. हिन्दी भाषा के विविध रूप (रचनाकार, 14 सितम्बर, 2012)
www.rachanakar.org/2012/09/blog-post_3077.html
10. http://www.scribd.com/doc/105906549/Hindi-Divas-Ke-Avasa
11. हिन्दी दिवस पर संदेश (रचनाकार, 14 सितम्बर, 2012)
www.rachanakar.org/2012/09/blog-post_3077.html
12. हिन्दी भाषा के सम्बन्ध में कुछ विचार (प्रवक्ता, 20 जून, 2013)
http://www.pravakta.com/reflections-in-relation-to-hindi-language
13. हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार (उगता भारत, 26 जून, 2013)
http://www.ugtabharat.com
14. हिन्दी देश को जोड़ने वाली भाषा है (रचनाकार, 14 सितम्बर, 2013)
http://www.rachanakar.org/2013/09/blog-post_14.html
15. हिन्दी देश को जोड़ने वाली भाषा है; इसे उसके अपने ही घर में न तोड़ें (प्रवक्ता, 14 सितम्बर, 2013)
http://www.pravakta.com/hindi-is-the-language-of-hindustan
16. हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार: विश्व हिन्दी पत्रिका, पाँचवा अंक, विश्व हिन्दी सचिवालय, भारत सरकार व मॉरीशस सरकार की द्विपक्षीय संस्था, मॉरीशस (2013)

हिन्दी भाषा क्षेत्र के हिन्दी भाषियों की संख्या -
2001 की जनगणना के अनुसार हिन्दी के वक्ताओं की संख्या 422,048,642 है। उर्दू के वक्ताओं की संख्या 51,536,111 है 
तथा मैथिली के वक्ताओं की संख्या 12,179,122 है। हम अलग अलग आलेखों एवं पुस्तकों में विवेचित कर चुके हैं कि 
भाषिक दृष्टि से हिन्दी एवं उर्दू में कोई अन्तर नहीं है।इसी प्रकार हम विभिन्न आलेखों में हिन्दी भाषा-क्षेत्र की विवेचना 
प्रस्तुत कर चुके हैं जिससे यह स्पष्ट है कि मैथिली सहित किस प्रकार हिन्दी भाषा-क्षेत्र के समस्त भाषिक रूपों की 
समष्टि का नाम हिन्दी है। इस आधार पर हिन्दी-उर्दू के बोलने वालों की संख्या (जिसमें मैथिली की संख्या भी शामिल है)
है – 585,763,875 ( अट्ठावन करोड़, सत्तावन लाख, तिरेसठ हज़ार आठ सौ पचहत्तर) । यह संख्या भाषा के वक्ताओं की है।
भारत में द्वितीय एवं तृतीय भाषा के रूप में हिन्दीतर भाषाओं का बहुसंख्यक समुदाय हिन्दी का प्रयोग करता है। इनकी 
संख्या का योग तथा विदेशों में रहने वाले हिन्दी भाषियों की संख्या का योग सौ करोड़ से कम नहीं है।

भारतीय भाषाओं की भाषिक समनाता तथा एकता:
भाषिक दृष्टि से भी भारत में एक ओर अद्भुत विविधताएँ हैं वहीं दूसरी ओर भिन्न भाषा-परिवारों की भाषाओं के बोलने 
वालों के बीच तथा एक भाषा परिवार के विभिन्न भाषियों के बीच भाषिक समानता एवं एकता का विकास भी हुआ है। 
भाषिक एकता विकसित होने के अनेक कारण हैं। कारणों का मूल आधार विभिन्न भाषा-परिवारों तथा एक भाषा-परिवार
के विभिन्न भाषा-भाषियों का एक ही भूभाग में शताब्दियों से निवास करना है, उनके आपसी सामाजिक सम्पर्क हैं एवं 
इसके फलस्वरूप पल्लवित सांस्कृतिक एकता है।

भारत की सामाजिक संरचना एवं बहुभाषिकता को ध्यान में रखकर विद्वानों ने भारत को समाज-भाषा वैज्ञानिक विशाल,
असाधारण एवं बृहत भीमकाय (जाइअॅन्ट) की संज्ञा प्रदान की है।हमने भारतीय भाषाओं की समानता एवं एकता की 
अपनीअवधारणा एवं संकल्पना की अन्यत्र विस्तार से विवेचना की है। यह पुस्तक का विवेच्य विषय है। सम्प्रति, हम 
यह कहना चाहते हैं कि भारत में भिन्न भाषा परिवारों की बोली जाने वाली भाषाएँ आपस में अधिक निकट एवं समान हैं
बनिस्पत उन भाषा-परिवारों की उन भाषाओं के जो भारतीय महाद्वीप से बाहर के देशों में बोली जाती हैं। उदाहरण के लिए
आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ आधुनिक भारतीय द्रविड़ भाषाओं के जितने निकट हैं उतने निकट वे भारोपीय परिवार 
के अन्य उपपरिवारों की भाषाओं के नहीं हैं जो भारतीय महाद्वीप के बाहर के देशों में बोली जातीभारतीय भाषाओं के 
विकास का अपेक्षित विकास न होने का मूल कारण आने वाले समय में वही भाषायें विकसित हो सकेंगी तथा ज़िन्दा रह 
पायेंगी जिनमें इन्टरनेट पर न केवल सूचनाएँ अपितु प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित सारी सामग्री उपलब्ध होगी। भाषा 
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इक्कीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक भाषाओं की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी आएगी। 
हमें सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के प्रौद्योगिकी विकास के सम्बंध में विचार करना चाहिए। इसका कारण यह है कि आने
वाले युग में, वही भाषाएँ ही टिक पायेंगी जिनका व्यवहार अपेक्षाकृत व्यापक क्षेत्र में होगा तथा जो भाषिक प्रौद्योगिकी की
दृष्टि से इतनी विकसित हो जायेंगी जिससे इन्टरनेट पर काम करने वाले प्रयोक्ताओं के लिए उन भाषाओं में उनके प्रयोजन
की सामग्री सुलभ होगी। इस विकास के रास्ते में, भारतीयों का अंग्रेजी के प्रति अंध मोह सबसे बड़ी रुकावट है।

सूचना प्रौद्यौगिकी के संदर्भ में हिन्दी एवं सभी भारतीय भाषाओं की प्रगति एवं विकास के संदर्भ में, मैं एक बात की ओर
विद्वानों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। व्यापार, तकनीकी और चिकित्सा आदि क्षेत्रों की अधिकांश बहुराष्ट्रीय 
कम्पनियाँ अपने माल की बिक्री के लिए सम्बंधित सॉफ्टवेयर ग्रीक, अरबी, चीनी सहित संसार की लगभग 30 से अधिक
 भाषाओं में बनाती हैं मगर वे हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में पैक नहीं बनाती। उनके प्रबंधक इसका कारण यह 
बताते हैं कि हम यह अनुभव करते हैं कि हमारी कम्पनी को हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भाषिक पैक 
बनाने की जरूरत नहीं है। हमारे प्रतिनिधि भारतीय ग्राहकों से अंग्रेजी में आराम से बात कर लेते हैं अथवा हमारे भारतीय
ग्राहक अंग्रेजी में ही बात करना पसंद करते हैं। यह स्थिति कुछ उसी प्रकार की है जैसी मैं तब अनुभव करता था जब मैं 
रोमानिया के बुकारेस्त विश्वविद्यालय में हिन्दी का विजिटिंग प्रोफेसर था। मेरी कक्षा के हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थी बड़े 
चाव से भारतीय राजदूतावास जाते थे मगर वहाँ उनको हिन्दी नहीं अपितु अंग्रेजी सुनने को मिलती थी। हमने अंग्रेजी को
इतना ओढ़ लिया है जिसके कारण न केवल हिन्दी का अपितु समस्त भारतीय भाषाओं का अपेक्षित विकास नहीं हो पा 
रहा है। जो कम्पनी ग्रीक एवं अरबी में सॉफ्टवेयर बना रही हैं वे हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय 
भाषाओं में सॉफ्टवेयर केवल इस कारण नहीं बनाती क्योंकि उसके प्रबंधकों को पता है कि भारतीय उच्च वर्ग अंग्रेजी 
मोह से ग्रसित है। इसके कारण भारतीय भाषाओं में जो सॉफ्टवेयर स्वाभाविक ढंग से सहज बन जाते, वे नहीं बन रहे हैं। 
भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी पिछड़ रही है। इस मानसिकता में जिस गति से बदलाव आएगा उसी गति से 
हमारी भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी का भी विकास होगा। हम हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि
भारतीय भाषाओं के संदर्भ में, इस बात को दोहराना चाहते हैं कि हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय 
भाषाओं में काम करने वालों को अधिक से अधिक सामग्री इन्टरनेट पर डालनी चाहिए। मशीनी अनुवाद को सक्षम 
बनाने के लिए यह जरूरी है कि इन्टरनेट पर हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय भाषाओं में में प्रत्येक 
विषय की सामग्री उपलब्ध हो। जब प्रयोक्ता को हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय भाषाओं में डॉटा 
उपलब्ध होगा तो उसकी अंग्रेजी के प्रति निर्भरता में कमी आएगी तथा अंग्रेजी के प्रति हमारे उच्च वर्ग की अंध भक्ति में भी
कमी आएगी।

प्रोफेसर महावीर सरन जैन
सेवा निवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, भारत सरकार
123, हरि एन्कलेव, बुलन्द शहर 203001

 साभार: रचनाकार 



सोमवार, 23 जून 2014

chaupal charcha: jammu-kashmir article 370 -sanjiv

चौपाल चर्चा:
जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद ३७० 
संजीव 
*
भारत की स्वतंत्रता के समय भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ के अनुसार भारतीय रियासतों को छूट थी कि वे भारत या पाकिस्तान में से जिसके साथ चाहें विलय करें या दोनों में से किसी से विलय न कर स्वतंत्र रहें। कश्मीर, हैदराबाद तथा जूनागढ़ को छोड़कर शेष रियासतों ने अधिमिलन पत्र हस्ताक्षरित कर भारत के साथ मिलन स्वीकार कर लिया। जूनागढ़ की जनता ने नवाब से विद्रोह कर भारत में विलय की घोषणा कर दी तो नवाब पाकिस्तान भाग गया। हैदराबाद में जनता भारत  चाहती थी जबकि नवाब पाकिस्तान में। तब सरदार पटेल ने सैन्य कार्यवाही कर जनता के चाहे अनुसार नवाब को भारत में विलय स्वीकारने हेतु बाध्य कर दिया।

जम्मू-कश्मीर के एक भाग में मुस्लिम जनसँख्या अधिक थी तो दूसरे में हिंदू, राजा हिन्दू तो वज़ीर मुसलमान। मुसलमान वज़ीर शेख अब्दुल्ला तथा जनता भारत में विलय के पक्ष में थे, पाकिस्तान मुस्लिम आबादी का आधार लेकर अपना दावा कर रहा था, जबकि महाराज हरिसिंह स्वतंत्र देश के रूप में रहना चाहते थे। पाकिस्तान ने अनिश्चितता का लाभ उठाने की नियत से फ्रोंटियर के पठानों को शस्त्र देकर कश्मीर पर हमलाकर कब्ज़ा करने के लिए भेजा। अपना बचाव करने में असमर्थ होकर २६-१०-१९४७ को महाराज ने भारत सरकार के पास विलय पत्र भेजा।

महाराज तथा भारत सरकार के बीच वार्ता में महाराजा ने जनप्रतिनिधियों के सहयोग से उत्तरदायी सरकार बनाकर वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव कराना तथा कश्मीरी संविधान निर्माण हेतु विधान सभा बनाना स्वीकार कर ५-३-१९४८ को उद्घोषणा जारी की।महाराज के स्थान सत्तासीन युवराज कर्णसिंह ने २५-११-१९४९ को एक उद्घोषणा जारी की जिसके आधार पर संविधान के भाग २१ में अनुच्छेद ३७० अस्थायी संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध सम्मिलित कर  ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्ज़ा दिया है। इसके अनुसार अनुच्छेद २३८ के उपबंध जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होंगे। इस राज्य के सम्बन्ध में भारत की कानून बनाने की शक्ति उन विषयों तक सीमित होगी जिनको राष्ट्रपति राज्य सरकार से परामर्श कर अधिमिलन पत्र में निर्दिष्ट ऐसे विषय के रूप घोषित कर दे उक्त जिस पर भारत कानून बना सकता है। 

अतः संसद को जम्मू -कश्मीर के सम्बन्ध में स्वरक्षा, यातायात, मुद्रा (सिक्का) तथा विदेश नीति के सम्बन्ध में ही कानून बनाने का अधिकार है. अन्य विषयों पर कानून कश्मीर सरकार की सहमति से ही बनाया जा सकता है। राष्ट्रपति ने संविधान जम्मू-कश्मीर में प्रभावशील होने का आदेश १९५० में जारी तथा १९५४ में परिवर्तित किया। अनुच्छेद २४६ के अनुसार अवशिष्ट शक्तियाँ संसद को नहीं कश्मीर विधान सभा को है। 

इस अनुच्छेद के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विविध वादों में निर्गत निर्णयों के अनुसार यह अनुच्छेद अस्थायी है किन्तु इसे राज्य विधान सभा की सहमति से ही समाप्त किया जा सकता है। 

इसी अनुच्छेद में गुजरात, महाराष्ट्र, नागालैंड, सिक्किम मिजोरम आदि सम्बन्धी विशेष उपबंधों की चर्चा है 

samyik geet: mausam bdl raha hai -sanjiv

गीत:
मौसम बदल रहा है…
संजीव
*
मौसम बदल रहा है
टेर रही अमराई
परिवर्तन की आहट
पनघट से भी आई...
*
जन आकांक्षा नभ को
छूती नहीं अचंभा
छाँव न दे जनप्रतिनिधि
ज्यों बिजली का खंभा
आश्वासन की गर्मी
सूरज पीटे डंका
शासन भरमाता है
जनगण मन में शंका
अपचारी ने निष्ठा
बरगद पर लटकाई 
सीता-द्रुपदसुता अब
घर में भी घबराई...
*
मौनी बाबा गायब
दूजा बड़बोला है
रंग भंग में मिलकर
बाकी ने घोला है 
पत्नी रुग्णा लेकिन
रास रचाये बुढ़ापा
सुत से छोटी बीबी
मिले शौक है व्यापा
घोटालों में पीछे
ना सुत, नहीं जमाई
संसद तकती भौंचक
जनता है भरमाई...
*
अच्छे दिन आये हैं
रखो साल भर रोजा
घाटा घटा सकें वे
यही रास्ता खोजा
हिंदी की बिंदी भी
रुचे न माँ मस्तक पर
धड़क रहा दिल जन का
सुन द्वारे पर दस्तक
क्यों विरोध की खातिर
हो विरोध नित भाई
रथ्या हुई सियासत
निष्कासित सिय माई...
***

रविवार, 22 जून 2014

hindi ke shabd salila: sanjiv

सामयिकी:
हिंदी की शब्द सलिला
संजीव 
*
आजकल हिंदी विरोध और हिनदी समर्थन की राजनैतिक नूराकुश्ती जमकर हो  रही है। दोनों पक्षों का वास्तविक उद्देश्य अपना राजनैतिक स्वार्थ  साधना है। दोनों पक्षों को हिंदी या अन्य किसी भाषा से कुछ लेना-देना नहीं है। सत्तर के दशक में प्रश्न को उछालकर राजनैतिक रोटियाँ सेंकी जा चुकी हैं। अब फिर तैयारी है किंतु तब  आदमी तबाह हुआ और अब भी होगा। भाषाएँ और बोलियाँ एक दूसरे की पूरक हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं। खुसरो से लेकर हजारीप्रसाद द्विवेदी और कबीर से लेकर तुलसी तक हिंदी ने कितने शब्द संस्कृत. पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, बुंदेली, भोजपुरी, बृज, अवधी, अंगिका, बज्जिका, मालवी निमाड़ी, सधुक्कड़ी, लश्करी, मराठी, गुजराती, बांग्ला और अन्य देशज भाषाओँ-बोलियों से लिये-दिये और कितने अंग्रेजी, तुर्की, अरबी, फ़ारसी, पुर्तगाली आदि से इसका कोई लेख-जोखा संभव नहीं है. 

इसके बाद भी हिंदी पर संकीर्णता, अल्प शब्द सामर्थ्य, अभिव्यक्ति में अक्षम और अनुपयुक्त होने का आरोप लगाया जाना कितना सही है? गांधी जी ने सभी भारतीय भाषाओँ को देवनागरी लिपि में लिखने का सुझाव दिया था ताकि सभी के शब्द आपस में घुलमिल सकें और कालांतर में एक भाषा का विकास हो किन्तु  प्रश्न पर स्वार्थ की रोटी सेंकनेवाले अंग्रेजीपरस्त गांधीवादियों और नौकरशाहों ने यह न होने दिया और ७० के दशक में हिन्दीविरोध दक्षिण की राजनीति में खूब पनपा  

संस्कृत से हिंदी, फ़ारसी होकर अंग्रेजी में जानेवाले अनगिनत शब्दों में से कुछ हैं: मातृ - मातर - मादर - मदर, पितृ - पितर - फिदर - फादर, भ्रातृ - बिरादर - ब्रदर, दीवाल - द वाल, आत्मा - ऐटम, चर्चा - चर्च (जहाँ चर्चा की जाए), मुनिस्थारि = मठ, -मोनस्ट्री = पादरियों आवास, पुरोहित - प्रीहट - प्रीस्ट, श्रमण - सरमन = अनुयायियों के श्रवण हेतु प्रवचन, देव-निति (देवों की दिनचर्या) - देवनइति (देव इस प्रकार हैं) - divnity = ईश्वरीय, देव - deity - devotee, भगवद - पगवद - pagoda फ्रेंच मंदिर, वाटिका - वेटिकन, विपश्य - बिपश्य - बिशप, काष्ठ-द्रुम-दल(लकड़ी से बना प्रार्थनाघर) - cathedral, साम (सामवेद) - p-salm (प्रार्थना), प्रवर - frair, मौसल - मुसल(मान), कान्हा - कान्ह - कान  - खान, मख (अग्निपूजन का स्थान) - मक्का, गाभा (गर्भगृह) - काबा, शिवलिंग - संगे-अस्वद (काली मूर्ति, काला शिवलिंग), मखेश्वर - मक्केश्वर, यदु - jude, ईश्वर आलय - isreal (जहाँ वास्तव  इश्वर है), हरिभ - हिब्रू, आप-स्थल - apostle, अभय - abbey, बास्पित-स्म (हम अभिषिक्त हो चुके) - baptism (बपतिस्मा = ईसाई धर्म में दीक्षित), शिव - तीन नेत्रोंवाला - त्र्यम्बकेश - बकश - बकस - अक्खोस - bachenelion (नशे में मस्त रहनेवाले), शिव-शिव-हरे - सिप-सिप-हरी - हिप-हिप-हुर्राह, शंकर - कंकर - concordium - concor, शिवस्थान - sistine chapel (धर्मचिन्हों का पूजास्थल), अंतर - अंदर - अंडर, अम्बा- अम्मा - माँ मेरी - मरियम आदि           

हिंदी में प्रयुक्त अरबी भाषा के शब्द : दुनिया, ग़रीब, जवाब, अमीर, मशहूर, किताब, तरक्की, अजीब, नतीज़ा, मदद, ईमानदार, इलाज़, क़िस्सा, मालूम, आदमी, इज्जत, ख़त, नशा, बहस आदि ।

हिंदी में प्रयुक्त फ़ारसी भाषा के शब्द : रास्ता, आराम, ज़िंदगी, दुकान, बीमार, सिपाही, ख़ून, बाम, क़लम, सितार, ज़मीन, कुश्ती, चेहरा, गुलाब, पुल, मुफ़्त, खरगोश, रूमाल, गिरफ़्तार आदि ।

हिंदी में प्रयुक्त तुर्की भाषा के शब्द : कैंची, कुली, लाश, दारोगा, तोप, तलाश, बेगम, बहादुर आदि ।

हिंदी में प्रयुक्त पुर्तगाली भाषा के शब्द : अलमारी, साबुन, तौलिया, बाल्टी, कमरा, गमला, चाबी, मेज, संतरा आदि ।

हिंदी में प्रयुक्त अन्य भाषाओ से: उजबक (उज्बेकिस्तानी, रंग-बिरंगे कपड़े पहननेवाले) = अजीब तरह से रहनेवाला, 

हिंदी में प्रयुक्त बांग्ला शब्द: मोशाय - महोदय, माछी - मछली, भालो - भला, 

हिंदी में प्रयुक्त मराठी शब्द: आई - माँ, माछी - मछली,  

अपनी आवश्यकता  हर भाषा-बोली से शब्द ग्रहण करनेवाली  व्यापक  में से उदारतापूर्वक शब्द देनेवाली हिंदी ही भविष्य की विश्व भाषा है इस सत्य को जितनी जल्दी स्वीकार किया जाएगा, भाषायी विवादों का समापन हो सकेगा।
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sanatan sahitya: ved, puran smritiyan:

सनातन साहित्य : वेद, पुराण स्मृतियाँ 

हमारा पारम्परिक सनातन साहित्य विश्व मानवता की अमूल्य धरोहर है. इसकी एक झलका निम्न है। इस में आप भी अपनी जानकारी जोड़िये:
*
वेद हमारे धर्मग्रन्थ हैं । वेद संसार के पुस्तकालय में सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं । वेद का ज्ञान सृष्टि के आदि में परमात्मा ने अग्नि , वायु , आदित्य और अंगिरा – इन चार ऋषियों को एक साथ दिया था । वेद मानवमात्र के लिये हैं । 

वेद चार हैं ---- 
१. ऋग्वेद – इसमें तिनके से लेकर ब्रह्म – पर्यन्त सब पदार्थो का ज्ञान दिया हुआ है । इसमें १०,५२२ मन्त्र हैं । 
२. यजुर्वेद – इसमें कर्मकाण्ड है । इसमें अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन है । इसमें १,९७५ मन्त्र हैं । 
३. सामवेद – यह उपासना का वेद है । इसमें १,८७५ मन्त्र हैं । 
४. अथर्ववेद – इसमें मुख्यतः विज्ञान – परक मन्त्र हैं । इसमें ५,९७७ मन्त्र हैं । 

उपवेद – चारों वेदों के चार उपवेद हैं । क्रमशः – आयुर्वेद , धनुर्वेद , गान्धर्ववेद और अर्थवेद । 

वेदांग - ज्योतिष: नेत्र (सौरमंडल, मुहूर्त आदि), निरुक्त, कान: (वैदिक शब्द-व्याख्या आदि), शिक्षा: नासिका  ( वेद मंत्र उच्चारण), व्याकरण: मुख (वैदिक शब्दार्थ), कल्प: हाथ (सूत्र / कल्प साहित्य- धर्म सूत्र: वर्ण, आश्रम आदि, श्रोत सूत्र: वृहद यज्ञ विधान, गृह्य सूत्र: लघु यज्ञ विधान, संस्कार, शुल्व सूत्र: वेदी निर्माण), छंद: पैर (काव्य लक्षण,  आदि) 

पुराण - मुख्य १८ ब्रम्ह, पद्म, विष्णु, शिव, नारदीय, श्रीमद्भागवत, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रम्हवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़, वायु (ब्रम्हांड) । स्कंद पुराण का एक भाग नर्मदापुराण के नाम से प्रकाशित है। सेठ गोविन्ददास ने गांधी पुराण लिखा किन्तु वह इस श्रेणी में नहीं है

उपनिषद – अब तक प्रकाशित होने वाले उपनिषदों की कुल संख्या २२३ है , परन्तु प्रामाणिक उपनिषद ११ ही हैं । इनके नाम हैं --- ईश , केन , कठ , प्रश्न , मुण्डक , माण्डूक्य , तैत्तिरीय , ऐतरेय , छान्दोग्य , बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर । 

ब्राह्मण ग्रन्थ – इनमें वेदों की व्याख्या है । चारों वेदों के प्रमुख ब्राह्मणग्रन्थ ये हैं --- 
ऐतरेय , शतपथ , ताण्ड्य और गोपथ । 

दर्शनशास्त्र – आस्तिक दर्शन छह हैं – न्याय , वैशेषिक , सांख्य , योग , पूर्वमीमांसा और वेदान्त । 

स्मृतियाँ – स्मृतियों की संख्या ६५ है। मुख्य १८ स्मृतियाँ मनु, याज्ञवल्क्य, अत्रि, विष्णु, अंगिरस, यम, संवर्त, कात्यायन, बृहस्पति, पराशर, व्यास, शंख, दक्ष, गौतम, शातातप तथा वशिष्ठ रचित हैं 

 इनके अतिरिक्त आरण्यक, विमानशास्त्र आदि अनेक ग्रन्थ हैं

***

शनिवार, 21 जून 2014

chhand salila: madan chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

 
रूपमाला / मदन / मदनावतारी छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति चौदह-दस, पदांत गुरु-लघु (जगण) 


लक्षण छंद:
  रूपमाला रत्न चौदह, दस दिशा सम ख्यात
  कला गुरु-लघु रख चरण के, अंत उग प्रभात
  नाग पिंगल को नमनकर, छंद रचिए आप्त 
  नव रसों का पान करिए, ख़ुशी हो मन-व्याप्त 
 
उदाहरण: 
१. देश ही सर्वोच्च है- दें / देश-हित में प्राण 
    जो- उन्हीं के योग से है / देश यह संप्राण
    करें श्रद्धा-सुमन अर्पित / यादकर बलिदान
    पीढ़ियों तक वीरता का / 'सलिल'होगा गान

२. वीर राणा अश्व पर थे, हाथ में तलवार 
    मुगल सैनिक घेर करते, अथक घातक वार
    दिया राणा ने कई को, मौत-घाट उतार 

    पा न पाये हाय! फिर भी, दुश्मनों से पार 
    ऐंड़ चेटक को लगायी, अश्व में थी आग 
    प्राण-प्राण से उड़ हवा में, चला शर सम भाग 
    पैर में था घाव फिर भी, गिरा जाकर दूर 
    प्राण त्यागे, प्राण-रक्षा की- रुदन भरपूर 
    किया राणा ने, कहा: 'हे अश्व! तुम हो धन्य 
    अमर होगा नाम तुम हो तात! सत्य अनन्य। 
                  
                              *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)