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शनिवार, 13 जुलाई 2013

doha salila: 8 --shyamal suman

pratinidhi doha kosh 8  - 

Soahn Paroha 'Salil', jabalpur  


प्रतिनिधि दोहा कोष ८ : 

 इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती  नवीन सी. चतुर्वेदी, पूर्णिमा बर्मन तथा प्रणव भारती,  डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', अर्चना मलैया,सोहन परोहा 'सलिल' तथा साज़ जबलपुरी के दोहे। आज अवगाहन कीजिए श्यामल 'सुमन' रचित दोहा सलिला में :

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संकलन - संजीव
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श्यामल सुमन

यूँ रोया पर्वत सुमन

चमत्कार विज्ञान का, सुविधा मिली जरूर।
भौतिक दूरी कम हुई, अपनेपन से दूर।।

होती थी कुछ देर पर, चिट्ठी से सम्वाद।
मोबाइल में है कहाँ, उतना मीठा स्वाद।।

साक्षर थी भाभी नहीं, भैया थे परदेश।
बातें दिल की सुमन से, लिखवाती संदेश।।

विश्व-ग्राम ने अब सुमन, लाया है दुर्योग।
गाँवों में मिलते नहीं, सीधे साधे लोग।।

यूँ रोया पर्वत सुमन, शायद पहली बार।
रोते हैं सब देखकर, मानव का संहार।।

प्राकृतिक सौन्दर्य का, इक अपना है गीत।
कोशिश है विज्ञान की, दर्ज करें हम जीत।।

नियति-नियम के संग में, चले सदा विज्ञान।
फिर क्यों देखेंगे सुमन, यह भीषण नुकसान।।

जहरीला इन्सान

जैसे जैसे लोग के, बदले अभी स्वभाव।
मौसम पर भी देखिए, उसके अलग प्रभाव।।

जाड़े में बारिश हुई, औ बारिश में धूप।
गरमी में पानी नहीं, बारिश हुई अनूप।।

कौन सफाई अब करे, जब मरते हैं जीव।
बर्बर मानवता सुमन, गिद्ध हुए निर्जीव।।

नीलकंठ पक्षी अभी, कहाँ देखते लोग।
सदियों से जो कर रहे, दूर फसल के रोग।।

चूहे नित करते सुमन, दाने का नुकसान।
डरे हुए हैं साँप भी, जहरीला इन्सान।।

घास कहाँ मिलते सुमन, हिरण,गाय लाचार।
शेर सहित हैं घात में, बैठे हुए सियार।।

गंगा जीवनदायिनी, आज हुई बीमार।
नदियाँ सारी सूखतीं, कारण सुमन विचार।

सोना हो चाहत अगर

सोना हो चाहत अगर, सोना हुआ मुहाल।
दोनो सोना कब मिले, पूछे सुमन सवाल।।

खर्च करोगे कुछ सुमन, घटे सदा परिमाण।
ज्ञान, प्रेम बढ़ते सदा, बाँटो, देख प्रमाण।।

अलग प्रेम से कुछ नहीं, प्रेम जगत आधार।
देख सुमन ये क्या हुआ, बना प्रेम बाजार।

प्रेम त्याग अपनत्व से, जीवन हो अभिराम।
बनने से पहले लगे, अब रिश्तों के दाम।।

जीवन के संघर्ष में, नहीं किसी से आस।
भीतर जितने प्रश्न हैं, उत्तर अपने पास।।

देखो नित मिलता सुमन, जीवन से सन्देश।
भला हुआ तो ठीक पर, नहीं किसी को क्लेश।।

दोनों कल के बीच में, फँसा हुआ है आज।
कारण बिल्कुल ये सुमन, रोता आज समाज।।

राजनीति में अब सुमन, नैतिकता है रोग।
लाखों में बिकते अभी, दो कौड़ी के लोग।।

चीजें मँहगीं सब हुईं, लोग हुए हलकान।
केवल सस्ती है सुमन, इन्सानों की जान।।

संसाधन विकसित हुए, मगर बुझी ना प्यास।
वादा करते हैं सभी, टूटा है विश्वास।।

होते हैं अब हल कहाँ, आम लोग के प्रश्न।
चिन्ता दिल्ली को नहीं, रोज मनाते जश्न।।

प्रायः पूजित हैं अभी, नेता औ भगवान।
काम न आए वक्त पर, तब रोता इन्सान।।

सुनता किसकी कौन अब, प्रायः सब मुँहजोर।
टूट रहे हैं नित सुमन, सम्बन्धों की डोर।।

रोने से केवल सुमन, क्या सुधरेगा हाल।
हाथ मिले जब लोग के, सुलझे तभी सवाल।।

मंदिर जाता भेड़िया

शेर पूछता आजकल, दिया कौन यह घाव।
लगता है वन में सुमन, होगा पुनः चुनाव।।

गलबाँही अब देखिये, साँप नेवले बीच।
गद्दी पाने को सुमन, कौन ऊँच औ नीच।।

मंदिर जाता भेड़िया, देख हिरण में जोश।
साधु चीता अब सुमन, फुदक रहा खरगोश।।

पीता है श्रृंगाल अब, देख सुराही नीर।
थाली में खाये सुमन, कैसे बगुला खीर।।

हुआ जहाँ मतदान तो, बिगड़ गए हालात।
फिर से निकलेगी सुमन, गिद्धों की बारात।।

प्रायः सभी कुदाल

छोटी दुनिया हो गयी, जैसे हो इक टोल।
दूरी आपस की घटी, पर रिश्ते बेमोल।।

क्रांति हुई विज्ञान की, बढ़ा खूब संचार।
आतुर सब एकल बने, टूट रहा परिवार।।

हाथ मिलाते जब सुमन, जतलाते हैं प्यार।
क्या पड़ोस में कल हुआ, बतलाते अखबार।।

कौन आज खुरपी बने, पूछे सुमन सवाल।
जो दिखता है सामने, प्रायः सभी कुदाल।।

तारे सा टिमटिम करे, बनते हैं महताब।
ऐसे भी ज्ञानी सुमन, पढ़ते नहीं किताब।।

नारी है माता कभी


मैं सबसे अच्छा सुमन, खतरनाक है रोग।
हैं सुर्खी में आजकल, दो कौड़ी के लोग।।

लाज बिना जो बोलते, हो करके बेबाक।
समझे जाते हैं वही, आज सुमन चालाक।।

चर्चा पूरे देश में, जागा है इन्सान।
पूजित नारी का सुमन, लौट सके सम्मान।।

घटनाओं पर बोलते, परम्परा के दूत।
कारण बतलाते सुमन, है पश्चिम का भूत।।

नारी है माता कभी, कभी बहन का प्यार।
और प्रेयसी भी सुमन, मगर उचित व्यवहार।।

कैसा हुआ समाज

ताकत जीने की मिले, वैसा दुख स्वीकार।
जीवन ऐसे में सुमन, खुद पाता विस्तार।।

दुख ही बतलाता हमें, सुख के पल अनमोल।
मुँह सुमन जब आँवला, पानी, मिश्री-घोल।।

जामुन-सा तन रंग पर, हृदय चाँद का वास।
आकर्षक चेहरा सुमन, पसरे स्वयं सुवास।।

जीवन परिभाषित नहीं, अलग सुमन के रंग।
करते परिभाषित सभी, सबके अपने ढंग।।

मातम जहाँ पड़ोस में, सुन शहनाई आज।
हृदय सुमन का रो पड़ा, कैसा हुआ समाज।।

चाहत सारे सुख मिले, मिहनत से परहेज।
शायद ऐसे लोग ही, माँगे सुमन दहेज।।

लेखन में अक्सर सुमन, अनुभव का गुणगान।
गम-खुशियों की चासनी, साहित्यिक मिष्ठान।।

शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार

आँगन सूना घर हुआ, बच्चे घर से दूर।
मजदूरी करने गया, छोड़ यहाँ मजबूर।।

जल्दी से जल्दी बनें, कैसे हम धनवान।
हम कुदाल बनते गए, दूर हुई संतान।।

ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश।।

कहाँ मिला कुछ आसरा, वृद्ध हुए माँ बाप।
कहीं सँग ले जाय तो, मातु पिता अभिशाप।।

जैसी भी है जिन्दगी, करो सुमन स्वीकार।
शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार।।

रीति बहुत विपरीत

जीवन में नित सीखते, नव-जीवन की बात।
प्रेम कलह के द्वंद में, समय कटे दिन रात।।

चूल्हा-चौका सँग में, और हजारो काम।
डरते हैं पतिदेव भी, शायद उम्र तमाम।।

झाड़ू, कलछू, बेलना, आलू और कटार।
सहयोगी नित काज में, और कभी हथियार।।

जो ज्ञानी व्यवहार में, करते बाहर प्रीत।
घर में अभिनय प्रीत के, रीति बहुत विपरीत।।

मेहनत बाहर में पति, देख थके घर-काज।
क्या करते, कैसे कहें, सुमन आँख में लाज।।

नेता और कुदाल

चली सियासत की हवा, नेताओं में जोश।
झूठे वादे में फँसे, लोग बहुत मदहोश।।

दल सारे दलदल हुए, नेता करे बबाल।
किस दल में अब कौन है, पूछे लोग सवाल।।

मुझ पे गर इल्जाम तो, पत्नी को दे चांस।
हार गए तो कुछ नहीं, जीते तो रोमांस।।

जनसेवक राजा हुए, रोया सकल समाज।
हुई कैद अब चाँदनी, कोयल की आवाज।।

नेता और कुदाल की, नीति-रीति है एक।
समता खुरपी सी नहीं, वैसा कहाँ विवेक।।

कलतक जो थी झोपड़ी, देखो महल विशाल।
जाती घर तक रेल अब, नेता करे कमाल।।

धवल वस्त्र हैं देह पर, है मुख पे मुस्कान।
नेता कहीं न बेच दे, सारा हिन्दुस्तान।।

सच मानें या जाँच लें, नेता के गुण चार।
बड़बोला, झूठा, निडर, पतितों के सरदार।।

पाँच बरस के बाद ही, नेता आये गाँव।
नहीं मिलेंगे वोट अब, लौटो उल्टे पाँव।।

जगी चेतना लोग में, है इनकी पहचान।
गले सुमन का हार था, हार गए श्रीमान।।

मच्छड़ का फिर क्या करें

मैंने पूछा साँप से दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।।

कुत्ता रोया फूटकर यह कैसा जंजाल।
सेवा नमकहराम की करता नमकहलाल।।

जीव मारना पाप है कहते हैं सब लोग।
मच्छड़ का फिर क्या करें फैलाता जो रोग।।

दुखित गधे ने एक दिन छोड़ दिया सब काम।
गलती करता आदमी लेता मेरा नाम।।

बीन बजाये नेवला साँप भला क्यों आय।
जगी न अब तक चेतना भैंस लगी पगुराय।।

नहीं मिलेगी चाकरी नहीं मिलेगा काम।
न पंछी बन पाओगे होगा अजगर नाम।।

गया रेल में बैठकर शौचालय के पास।
जनसाधारण के लिये यही व्यवस्था खास।।

रचना छपने के लिये भेजे पत्र अनेक।
सम्पादक ने फाड़कर दिखला दिया विवेक।।

सुमन आग भीतर लिए

हार जीत के बीच में, जीवन एक संगीत।
मिलन जहाँ मनमीत से, हार बने तब जीत।।

डोर बढ़े जब प्रीत की, बनते हैं तब मीत।
वही मीत जब संग हो, जीवन बने अजीत।।

रोज परिन्दों की तरह, सपने भरे उड़ान।
सपने गर जिन्दा रहे, लौटेगी मुस्कान।।

रौशन सूरज चाँद से. सबका घर संसार।
पानी भी सबके लिए, क्यों होता व्यापार।।

रोना भी मुश्किल हुआ, आँखें हैं मजबूर।
पानी आँखों में नहीं, जड़ से पानी दूर।।

निर्णय शीतल कक्ष से, अब शासन का मूल।
व्याकुल जनता हो चुकी, मत कर ऐसी भूल।।

सुमन आग भीतर लिए, खोजे कुछ परिणाम।
मगर पेट की आग ने, बदल दिया आयाम।।

बस माँगे अधिकार

कैसे कैसे लोग से भरा हुआ संसार।
बोध नहीं कर्त्तव्य का बस माँगे अधिकार।।

कहने को आतुर सभी पर सुनता है कौन।
जो कहने के योग्य हैं हो जाते क्यों मौन।।

आँखों से बातें हुईं बहुत सुखद संयोग।
मिलते कम संयोग यह जीवन का दुर्योग।।

मैं अचरज से देखता बातें कई नवीन।
मूरख मंत्री के लिऐ अफसर बहुत प्रवीण।।

जनता बेबस देखती जन-नायक है दूर।
हैं बिकते अब वोट भी सुमन हुआ मजबूर।।

नारी बिन सूना जगत

मँहगाई की क्या कहें, है प्रत्यक्ष प्रमाण।
दीन सभी मर जायेंगे, जारी है अभियान।।

नारी बिन सूना जगत, वह जीवन आधार।
भाव-सृजन, ममता लिए, नारी से संसार।।

भाव-हृदय जैसा रहे, वैसा लिखना फर्ज।
और आचरण हो वही, इसमें है क्या हर्ज।।

कट जायेंगे पेड़ जब, क्या तब होगा हाल।
अभी प्रदूषण इस कदर, जगत बहुत बेहाल।।

नदी कहें नाला कहें, पर यमुना को आस।
मुझे बचा ले देश में, बनने से इतिहास।।

सबकी चाहत है यही, पास रहे कुछ शेष।
जो पाते संघर्ष से, उसके अर्थ विशेष।।

जीवन तो बस प्यार है, प्यार भरा संसार।
सांसारिक इस प्यार में, करे लोग व्यापार।।

सतरंगी दुनिया सदा, अपना रंग पहचान।
और सादगी के बिना, नहीं सुमन इन्सान।।

आशा की किरणें जगी


तन की सीमा से भली, मन की सीमा जान।
मन को वश में कर सके, वही असल इन्सान।।

आशा की किरणें जगीं, भले अंधेरी राह।
नीरवता सुख दे जिसे, सुन्दर उसकी चाह।।

अभिनय करने में यहाँ, नेता बहुत प्रवीण।
भाषण, आश्वासन सहित, खींचे चित्र नवीन।।

खट्टा तब मीठा लगे, जब हो प्रियतम पास।
घड़ी मिलन की याद में, होते नहीं उदास।।

व्यंग्य-बाण के साथ में, हो रचना में धार।
बदलेंगे तब नीति ये, जनता के अनुसार।।

किया बहुत मैंने यहाँ, गम दुनिया की बात।
प्रथम मिलन को याद कर, सचमुच इक सौगात।।

हर विकास के नाम पर, क्या होता है आज?
सबकी कोशिश से बचे, दीनों की आवाज।।

श्लील और अश्लील में, कौन बताये भेद?
आदम युग हम जा रहे, प्रकट करें बस खेद।।

रचना भी है आपकी, भाव आपके खास।
सुमन सजाया बस इसे, कैसा रहा प्रयास?

प्रश्न अनूठा सामने

प्रश्न अनूठा सामने, क्या अपनी पहचान?
छुपे हुए संघर्ष में, सारे प्रश्न-निदान।।

कई समस्या सामने, कारण जाने कौन?
मिला न कारण आजतक, समाधान है मौन।।

बीज बनाये पेड़ को, पेड़ बनाये बीज।
परिवर्तन होता सतत, बदलेगी हर चीज।।

बारिश चाहे लाख हों, याद नहीं धुल पाय।
याद करें जब याद को, दर्द बढ़ाती जाय।।

सुख दुख दोनों में मजा, जो लेते हैं स्वाद।
डरना नहीं विवाद से, जीवन एक विवाद।।

आये कितने रूप में, भारत में भगवान।
नेता जो इन्सान है, रहते ईश समान।।

प्यार बसा संसार में, सांसारिक है प्यार।
बदल गया कुछ प्यार यूँ, सुमन करे व्यापार।।

उलझन जीवन की सखा

उलझन जीवन की सखा, कभी न छूटे साथ।
सुलझेंगे उलझन तभी, मिले हाथ से हाथ।।

शब्द ब्रह्म बनते वहीं, जब हो भाव सुयोग।
शब्दों से ही कष्ट है, शब्द भगाये रोग।।

आशा हो जब संगिनी, जीना है आसान।
जीवन में खुशियाँ मिले, हटे दुखों से ध्यान।।

प्रहरी था जनतंत्र का, आज बना बाजार।
पैसे खातिर मीडिया, करता आज प्रचार।।

सृजन भाव के संग में, कर्मशील इन्सान।
कटते हैं जीवन सहज, मिलते कई प्रमाण।।

बचपन की यादें भली, बेहतर है एहसास।
खोजे दुख में आदमी, अपना ही इतिहास।।

ताले नफरत के जड़े, लोग आज हैं तंग।
हँसना, रोना, प्यार का, बदल गया है ढ़ंग।।

विज्ञापन पढ़ के लगा, बड़े काम की चीज।
सेवन करने पर बना, परमानेन्ट मरीज।।

खींचो कश सिगरेट के, भागे नहीं तनाव।
सार्थक चिन्तन हो अगर, बढ़ता नित्य प्रभाव।।

बातें बिल्कुल आपकी, और सुमन एहसास।
शब्द सजाया सोचकर, जहाँ लगा जो खास।।

एक अनोखी बात

पाँच बरस के बाद ही, क्यों होती है भेंट?
मेरे घर की चाँदनी, जिसने लिया समेट।।

ऐसे वैसे लोग को, मत करना मतदान।
जो मतवाला बन करे, लोगों का अपमान।।

प्रत्याशी गर ना मिले, मत होना तुम वार्म।
माँग तुरत भर दे वहीं, सतरह नम्बर फार्म।।

सत्ता के सिद्धान्त की, एक अनोखी बात।
अपना कहते हैं जिसे, उससे ही प्रतिघात।।

जनता के उत्थान की, फिक्र जिन्हें दिन रात।
मालदार बन बाँटते, भाषण की सौगात।।

घोटाले के जाँच हित, बनते हैं आयोग।
आए सच कब सामने, वैसा कहाँ सुयोग।।

रोऊँ किसके पास मैं, जननायक हैं दूर।
छुटभैयों के हाथ में, शासन है मजबूर।।

व्यथित सुमन हो देखता, है गुलशन बेहाल।
लोग सही चुन आ सकें, छूटेगा जंजाल।।
*************
 

muktika: --sanjiv

मुक्तिका :
संजीव
*
खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.
झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..
*
सडक पर ले पादुका अभिषेक करतीं बेटियां
शोहदों की सुधरती ही नहीं फिर भी हरकतें
*
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
* ​
बदनीयत होकर ज़माना खुश न अब तक हो सका
नेक नीयत से 'सलिल' ने पाई हरदम बरकतें.
*
नींव में पड़ता नहीं चुपचाप रहकर यदि 'सलिल'
कहें तो किस तरह  मिलतीं सर छिपाने को छतें.
*

adhyatm:

अध्यात्म: 
Photo: माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं, जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें........
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क्या आप जानते हैं पूजा में मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला में कितने मोती होतेहैं?
पूजन में मंत्र जप के लिए जो माला उपयोग की जाती है उसमें 108 मोती होते हैं। माला में 108 ही मोती क्यों होते हैं इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।
यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
यहां जानिए मंत्र जप की माला में 108 मोती होने के पीछे क्या रहस्य है...
भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्रजप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह साक्षात् महादेवका प्रतीक ही है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।
शास्त्रों में लिखा है कि-
बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फलं भवेत्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। इनके साथ ही माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है उसकी मनोकामनएं बहुत जल्द पूर्ण होती है। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
आगे जानिए कुछ अलग-अलग कारण जिनके आधार पर माला में 108 मोती रखे जाते हैं...
माला में 108 मोती रहते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि...
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा।।
इस श्लोक के अनुसार एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है उसी से माला के मोतियों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है।
इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माला के 108 मोती और सूर्य की कलाओं का संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता हैए छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकरमाला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मोती सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं।
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाएराशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 2चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो किसुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्याप्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप काएक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं, जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें........
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क्या आप जानते हैं पूजा में मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला में कितने मोती होतेहैं?
पूजन में मंत्र जप के लिए जो माला उपयोग की जाती है उसमें 108 मोती होते हैं। माला में 108 ही मोती क्यों होते हैं इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।
यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
यहां जानिए मंत्र जप की माला में 108 मोती होने के पीछे क्या रहस्य है...
भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्रजप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह साक्षात् महादेवका प्रतीक ही है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।
शास्त्रों में लिखा है कि-
बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फलं भवेत्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। इनके साथ ही माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है उसकी मनोकामनएं बहुत जल्द पूर्ण होती है। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
आगे जानिए कुछ अलग-अलग कारण जिनके आधार पर माला में 108 मोती रखे जाते हैं...
माला में 108 मोती रहते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि...
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा।।
इस श्लोक के अनुसार एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है उसी से माला के मोतियों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है।
इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माला के 108 मोती और सूर्य की कलाओं का संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता हैए छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकरमाला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मोती सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं।
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाएराशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 2चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो किसुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्याप्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप काएक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।


tretment of snake bite

ज्ञान-विज्ञान :

Photo: मित्रो अपना कीमती समय दे कर पोस्ट जरुर पड़े !

दोस्तो सबसे पहले साँपो के बारे मे एक महत्वपूर्ण बात आप ये जान लीजिये ! कि
अपने देश भारत मे 550 किस्म के साँप है ! जैसे एक cobra है ,viper है ,karit
है ! ऐसी 550 किस्म की साँपो की जातियाँ हैं ! इनमे से मुश्किल से 10 साँप है
जो जहरीले है सिर्फ 10 ! बाकी सब non poisonous है! इसका मतलब ये हुआ 540 साँप
ऐसे है जिनके काटने से आपको कुछ नहीं होगा !! बिलकुल चिंता मत करिए !

लेकिन साँप के काटने का डर इतना है (हाय साँप ने काट लिया ) और कि कई बार आदमी
heart attack से मर जाता है !जहर से नहीं मरता cardiac arrest से मर जाता है !
तो डर इतना है मन मे ! तो ये डर निकलना चाहिए !

वो डर कैसे निकलेगा ????

जब आपको ये पता होगा कि 550 तरह के साँप है उनमे से सिर्फ 10 साँप जहरीले हैं
! जिनके काटने से कोई मरता है ! इनमे से जो सबसे जहरीला साँप है उसका नाम है !
russell viper ! उसके बाद है karit इसके बाद है viper और एक है cobra ! king
cobra जिसको आप कहते है काला नाग !! ये 4 तो बहुत ही खतरनाक और जहरीले है इनमे
से किसी ने काट लिया तो 99 % chances है कि death होगी !

लेकिन अगर आप थोड़ी होशियारी दिखाये तो आप रोगी को बचा सकते हैं
होशियारी क्या दिखनी है ???

आपने देखा होगा साँप जब भी काटता है तो उसके दो दाँत है जिनमे जहर है जो शरीर
के मास के अंदर घुस जाते हैं ! और खून मे वो अपना जहर छोड़ देता है ! तो फिर
ये जहर ऊपर की तरफ जाता है ! मान लीजिये हाथ पर साँप ने काट लिया तो फिर जहर
दिल की तरफ जाएगा उसके बाद पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! ऐसे ही अगर पैर पर काट
लिया तो फिर ऊपर की और heart तक जाएगा और फिर पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! कहीं भी
काटेगा तो दिल तक जाएगा ! और पूरे मे खून मे पूरे शरीर मे उसे पहुँचने मे 3
घंटे लगेंगे !

मतलब ये है कि रोगी 3 घंटे तक तो नहीं ही मरेगा ! जब पूरे दिमाग के एक एक
हिस्से मे बाकी सब जगह पर जहर पहुँच जाएगा तभी उसकी death होगी otherwise नहीं
होगी ! तो 3 घंटे का time है रोगी को बचाने का और उस तीन घंटे मे अगर आप कुछ
कर ले तो बहुत अच्छा है !

क्या कर सकते हैं ?? ???

घर मे कोई पुराना इंजेक्शन (injection) हो तो उसे ले और आगे जहां सुई(needle)
लगी होती है वहाँ से काटे ! सुई(needle) जिस पलास्टिक मे फिट होती है उस
प्लास्टिक वाले हिस्से को काटे !! जैसे ही आप सुई के पीछे लगे पलास्टिक वाले
हिस्से को काटेंगे तो वो injection एक सक्षम पाईप की तरह हो जाएगा ! बिलकुल
वैसा ही जैसा होली के दिनो मे बच्चो की पिचकारी होती है !

उसके बाद आप रोगी के शरीर पर जहां साँप ने काटा है वो निशान ढूँढे ! बिलकुल
आसानी से मिल जाएगा क्यूंकि जहां साँप काटता है वहाँ कुछ सूजन आ जाती है और दो
निशान जिन पर हल्का खून लगा होता है आपको मिल जाएँगे ! अब आपको वो injection(
जिसका सुई वाला हिस्सा आपने काट दिया है) लेना है और उन दो निशान मे से पहले
एक निशान पर रख कर उसको खीचना है ! जैसी आप निशान पर injection रखेंगे वो
निशान पर चिपक जाएगा तो उसमे vacuum crate हो जाएगा ! और आप खींचेगे तो खून उस
injection मे भर जाएगा ! बिलकुल वैसे ही जैसे बच्चे पिचकारी से पानी भरते हैं
! तो आप इंजेक्शन से खींचते रहिए !और आप first time निकलेंगे तो देखेंगे कि उस
खून का रंग हल्का blackish होगा या dark होगा तो समझ लीजिये उसमे जहर मिक्स हो
गया है !

तो जब तक वो dark और blackish रंग blood निकलता रहे आप खिंचीये ! तो वो सारा
निकल आएगा ! क्यूंकि साँप जो काटता है उसमे जहर ज्यादा नहीं होता है 0.5
मिलीग्राम के आस पास होता है क्यूंकि इससे ज्यादा उसके दाँतो मे रह ही नहीं
सकता ! तो 0.5 ,0.6 मिलीग्राम है दो तीन बार मे आपने खीच लिया तो बाहर आ जाएगा
! और जैसे ही बाहर आएगा आप देखेंगे कि रोगी मे कुछ बदलाव आ रहा है थोड़ी
consciousness (चेतना) आ जाएगी ! साँप काटने से व्यकित unconsciousness हो
जाता है या semi consciousness हो जाता है और जहर को बाहर खींचने से चेतना आ
जाती है ! consciousness आ गई तो वो मरेगा नहीं ! तो ये आप उसके लिए first aid
(प्राथमिक सहायता) कर सकते हैं !

इसी injection को आप बीच से कट कर दीजिये बिलकुल बीच कट कर दीजिये 50% इधर 50%
उधर ! तो आगे का जो छेद है उसका आकार और बढ़ जाएगा और खून और जल्दी से उसमे
भरेगा !
तो ये आप रोगी के लिए first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए ये कर सकते हैं !
____________________________

दूसरा एक medicine आप चाहें तो हमेशा अपने घर मे रख सकते हैं बहुत सस्ती है
homeopathy मे आती है ! उसका नाम है NAJA (N A J A ) ! homeopathy medicine है
किसी भी homeopathy shop मे आपको मिल जाएगी ! और इसकी potency है 200 ! आप
दुकान पर जाकर कहें NAJA 200 देदो ! तो दुकानदार आपको दे देगा ! ये 5 मिलीलीटर
आप घर मे खरीद कर रख लीजिएगा 100 लोगो की जान इससे बच जाएगी ! और इसकी कीमत
सिर्फ पाँच रुपए है ! इसकी बोतल भी आती है 100 मिलीग्राम की 70 से 80 रुपए की
उससे आप कम से कम 10000 लोगो की जान बचा सकते हैं जिनको साँप ने काटा है !

और ये जो medicine है NAJA ये दुनिया के सबसे खतरनाक साँप का ही poison है
जिसको कहते है क्रैक ! इस साँप का poison दुनिया मे सबसे खराब माना जाता है !
इसके बारे मे कहते है अगर इसने किसी को काटा तो उसे भगवान ही बचा सकता है !
medicine भी वहाँ काम नहीं करती उसी का ये poison है लेकिन delusion form मे
है तो घबराने की कोई बात नहीं ! आयुर्वेद का सिद्धांत आप जानते है लोहा लोहे
को काटता है तो जब जहर चला जाता है शरीर के अंदर तो दूसरे साँप का जहर ही काम
आता है !

तो ये NAJA 200 आप घर मे रख लीजिये !अब देनी कैसे है रोगी को वो आप जान लीजिये
!
1 बूंद उसकी जीभ पर रखे और 10 मिनट बाद फिर 1 बूंद रखे और फिर 10 मिनट बाद 1
बूंद रखे !! 3 बार डाल के छोड़ दीजिये !बस इतना काफी है !

और राजीव भाई video मे बताते है कि ये दवा रोगी की जिंदगी को हमेशा हमेशा के
लिए बचा लेगी ! और साँप काटने के एलोपेथी मे जो injection है वो आम
अस्तप्तालों मे नहीं मिल पाते ! डाक्टर आपको कहेगा इस अस्तपाताल मे ले जाओ
उसमे ले जाओ आदि आदि !!

और जो ये एलोपेथी वालो के पास injection है इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए है !
और अगर मिल जाएँ तो डाक्टर एक साथ 8 से -10 injection ठोक देता है ! कभी कभी
15 तक ठोक देता है मतलब लाख-डेड लाख तो आपका एक बार मे साफ !! और यहाँ सिर्फ
10 रुपए की medicine से आप उसकी जान बचा सकते हैं !

और राजीव भाई इस video मे बताते है कि injection जितना effective है मैं इस
दवा(NAJA) की गारंटी लेता हूँ ये दवा एलोपेथी के injection से 100 गुना
(times) ज्यादा effective है !

तो अंत आप याद रखिए घर मे किसी को साँप काटे और अगर दवा(NAJA) घर मे न हो !
फटाफट कहीं से injection लेकर first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए आप
injection वाला उपाय शुरू करे ! और अगर दवा है तो फटाफट पहले दवा पिला दे और
उधर से injection वाला उपचार भी करते रहे !
दवा injection वाले उपचार से ज्यादा जरूरी है !!
________________________________
तो ये जानकारी आप हमेशा याद रखे पता नहीं कब काम आ जाए हो सकता है आपके ही
जीवन मे काम आ जाए ! या पड़ोसी के जीवन मे या किसी रिश्तेदार के काम आ जाए! तो
first aid के लिए injection की सुई काटने वाला तरीका और ये NAJA 200 hoeopathy
दवा ! 10 - 10 मिनट बाद 1 - 1 बूंद तीन बार
रोगी की जान बचा सकती है !!

आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !!

भारत मे 550 किस्म के साँप है ! जैसे एक cobra है ,viper है ,karit
है ! ऐसी 550 किस्म की साँपो की जातियाँ हैं ! इनमे से मुश्किल से 10 साँप है
जो जहरीले है सिर्फ 10 ! बाकी सब non poisonous है! इसका मतलब ये हुआ 540 साँप
ऐसे है जिनके काटने से आपको कुछ नहीं होगा !! बिलकुल चिंता मत करिए !

लेकिन साँप के काटने का डर इतना है (हाय साँप ने काट लिया ) और कि कई बार आदमी
heart attack से मर जाता है !जहर से नहीं मरता cardiac arrest से मर जाता है !
तो डर इतना है मन मे ! तो ये डर निकलना चाहिए !

वो डर कैसे निकलेगा ????

जब आपको ये पता होगा कि 550 तरह के साँप है उनमे से सिर्फ 10 साँप जहरीले हैं
! जिनके काटने से कोई मरता है ! इनमे से जो सबसे जहरीला साँप है उसका नाम है !
russell viper ! उसके बाद है karit इसके बाद है viper और एक है cobra ! king
cobra जिसको आप कहते है काला नाग !! ये 4 तो बहुत ही खतरनाक और जहरीले है इनमे
से किसी ने काट लिया तो 99 % chances है कि death होगी !

लेकिन अगर आप थोड़ी होशियारी दिखाये तो आप रोगी को बचा सकते हैं
होशियारी क्या दिखनी है ???

आपने देखा होगा साँप जब भी काटता है तो उसके दो दाँत है जिनमे जहर है जो शरीर
के मास के अंदर घुस जाते हैं ! और खून मे वो अपना जहर छोड़ देता है ! तो फिर
ये जहर ऊपर की तरफ जाता है ! मान लीजिये हाथ पर साँप ने काट लिया तो फिर जहर
दिल की तरफ जाएगा उसके बाद पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! ऐसे ही अगर पैर पर काट
लिया तो फिर ऊपर की और heart तक जाएगा और फिर पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! कहीं भी
काटेगा तो दिल तक जाएगा ! और पूरे मे खून मे पूरे शरीर मे उसे पहुँचने मे 3
घंटे लगेंगे !

मतलब ये है कि रोगी 3 घंटे तक तो नहीं ही मरेगा ! जब पूरे दिमाग के एक एक
हिस्से मे बाकी सब जगह पर जहर पहुँच जाएगा तभी उसकी death होगी otherwise नहीं
होगी ! तो 3 घंटे का time है रोगी को बचाने का और उस तीन घंटे मे अगर आप कुछ
कर ले तो बहुत अच्छा है !

क्या कर सकते हैं ?? ???

घर मे कोई पुराना इंजेक्शन (injection) हो तो उसे ले और आगे जहां सुई(needle)
लगी होती है वहाँ से काटे ! सुई(needle) जिस पलास्टिक मे फिट होती है उस
प्लास्टिक वाले हिस्से को काटे !! जैसे ही आप सुई के पीछे लगे पलास्टिक वाले
हिस्से को काटेंगे तो वो injection एक सक्षम पाईप की तरह हो जाएगा ! बिलकुल
वैसा ही जैसा होली के दिनो मे बच्चो की पिचकारी होती है !

उसके बाद आप रोगी के शरीर पर जहां साँप ने काटा है वो निशान ढूँढे ! बिलकुल
आसानी से मिल जाएगा क्यूंकि जहां साँप काटता है वहाँ कुछ सूजन आ जाती है और दो
निशान जिन पर हल्का खून लगा होता है आपको मिल जाएँगे ! अब आपको वो injection(
जिसका सुई वाला हिस्सा आपने काट दिया है) लेना है और उन दो निशान मे से पहले
एक निशान पर रख कर उसको खीचना है ! जैसी आप निशान पर injection रखेंगे वो
निशान पर चिपक जाएगा तो उसमे vacuum crate हो जाएगा ! और आप खींचेगे तो खून उस
injection मे भर जाएगा ! बिलकुल वैसे ही जैसे बच्चे पिचकारी से पानी भरते हैं
! तो आप इंजेक्शन से खींचते रहिए !और आप first time निकलेंगे तो देखेंगे कि उस
खून का रंग हल्का blackish होगा या dark होगा तो समझ लीजिये उसमे जहर मिक्स हो
गया है !

तो जब तक वो dark और blackish रंग blood निकलता रहे आप खिंचीये ! तो वो सारा
निकल आएगा ! क्यूंकि साँप जो काटता है उसमे जहर ज्यादा नहीं होता है 0.5
मिलीग्राम के आस पास होता है क्यूंकि इससे ज्यादा उसके दाँतो मे रह ही नहीं
सकता ! तो 0.5 ,0.6 मिलीग्राम है दो तीन बार मे आपने खीच लिया तो बाहर आ जाएगा
! और जैसे ही बाहर आएगा आप देखेंगे कि रोगी मे कुछ बदलाव आ रहा है थोड़ी
consciousness (चेतना) आ जाएगी ! साँप काटने से व्यकित unconsciousness हो
जाता है या semi consciousness हो जाता है और जहर को बाहर खींचने से चेतना आ
जाती है ! consciousness आ गई तो वो मरेगा नहीं ! तो ये आप उसके लिए first aid
(प्राथमिक सहायता) कर सकते हैं !

इसी injection को आप बीच से कट कर दीजिये बिलकुल बीच कट कर दीजिये 50% इधर 50%
उधर ! तो आगे का जो छेद है उसका आकार और बढ़ जाएगा और खून और जल्दी से उसमे
भरेगा !
तो ये आप रोगी के लिए first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए ये कर सकते हैं !
____________________________

दूसरा एक medicine आप चाहें तो हमेशा अपने घर मे रख सकते हैं बहुत सस्ती है
homeopathy मे आती है ! उसका नाम है NAJA (N A J A ) ! homeopathy medicine है
किसी भी homeopathy shop मे आपको मिल जाएगी ! और इसकी potency है 200 ! आप
दुकान पर जाकर कहें NAJA 200 देदो ! तो दुकानदार आपको दे देगा ! ये 5 मिलीलीटर
आप घर मे खरीद कर रख लीजिएगा 100 लोगो की जान इससे बच जाएगी ! और इसकी कीमत
सिर्फ पाँच रुपए है ! इसकी बोतल भी आती है 100 मिलीग्राम की 70 से 80 रुपए की
उससे आप कम से कम 10000 लोगो की जान बचा सकते हैं जिनको साँप ने काटा है !

और ये जो medicine है NAJA ये दुनिया के सबसे खतरनाक साँप का ही poison है
जिसको कहते है क्रैक ! इस साँप का poison दुनिया मे सबसे खराब माना जाता है !
इसके बारे मे कहते है अगर इसने किसी को काटा तो उसे भगवान ही बचा सकता है !
medicine भी वहाँ काम नहीं करती उसी का ये poison है लेकिन delusion form मे
है तो घबराने की कोई बात नहीं ! आयुर्वेद का सिद्धांत आप जानते है लोहा लोहे
को काटता है तो जब जहर चला जाता है शरीर के अंदर तो दूसरे साँप का जहर ही काम
आता है !

तो ये NAJA 200 आप घर मे रख लीजिये !अब देनी कैसे है रोगी को वो आप जान लीजिये
!
1 बूंद उसकी जीभ पर रखे और 10 मिनट बाद फिर 1 बूंद रखे और फिर 10 मिनट बाद 1
बूंद रखे !! 3 बार डाल के छोड़ दीजिये !बस इतना काफी है !

और राजीव भाई video मे बताते है कि ये दवा रोगी की जिंदगी को हमेशा हमेशा के
लिए बचा लेगी ! और साँप काटने के एलोपेथी मे जो injection है वो आम
अस्तप्तालों मे नहीं मिल पाते ! डाक्टर आपको कहेगा इस अस्तपाताल मे ले जाओ
उसमे ले जाओ आदि आदि !!

और जो ये एलोपेथी वालो के पास injection है इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए है !
और अगर मिल जाएँ तो डाक्टर एक साथ 8 से -10 injection ठोक देता है ! कभी कभी
15 तक ठोक देता है मतलब लाख-डेड लाख तो आपका एक बार मे साफ !! और यहाँ सिर्फ
10 रुपए की medicine से आप उसकी जान बचा सकते हैं !

और राजीव भाई इस video मे बताते है कि injection जितना effective है मैं इस
दवा(NAJA) की गारंटी लेता हूँ ये दवा एलोपेथी के injection से 100 गुना
(times) ज्यादा effective है !

तो अंत आप याद रखिए घर मे किसी को साँप काटे और अगर दवा(NAJA) घर मे न हो !
फटाफट कहीं से injection लेकर first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए आप
injection वाला उपाय शुरू करे ! और अगर दवा है तो फटाफट पहले दवा पिला दे और
उधर से injection वाला उपचार भी करते रहे !
दवा injection वाले उपचार से ज्यादा जरूरी है !!
________________________________
तो ये जानकारी आप हमेशा याद रखे पता नहीं कब काम आ जाए हो सकता है आपके ही
जीवन मे काम आ जाए ! या पड़ोसी के जीवन मे या किसी रिश्तेदार के काम आ जाए! तो
first aid के लिए injection की सुई काटने वाला तरीका और ये NAJA 200 hoeopathy
दवा ! 10 - 10 मिनट बाद 1 - 1 बूंद तीन बार
रोगी की जान बचा सकती है !!

gyan-vigyan: smaran shakti barhayen

ज्ञान-विज्ञान

Photo: स्मरणशक्ति कैसे बढ़ायें?

अच्छी और तीव्र स्मरण शक्ति के लिए हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ, सबल और निरोग रहना होगा। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और सशक्त हुए बिना हम अपनी स्मृति को भी अच्छी और तीव्र नहीं बनाये रख सकते।

आप यह बात ठीक से याद रखें कि हमारी यादशक्ति हमारे ध्यान पर और मन की एकाग्रता पर निर्भर करती है। हम जिस तरफ जितना ज्यादा एकाग्रतापूर्वक ध्यान देंगे, उस तरफ हमारी विचारशक्ति उतनी ज्यादा केन्द्रित हो जायेगी। जिस कार्य में भी जितनी अधिक तीव्रता, स्थिरता और शक्ति लगायी जायेगी, उतनी गहराई और मजबूती से वह कार्य हमारे स्मृति पटल पर अंकित हो जायेगा।

स्मृति को बनाये रखना ही स्मरणशक्ति है और इसके लिए जरूरी है सुने हुए व पढ़े हुए विषयों का बार-बार मानना करना, अभ्यास करना। जो बातें हमारे ध्यान में बराबर आती रहती हैं, उनकी याद बनी रहती है और जो बातें लम्बे समय तक हमारे ध्यान में नहीं आतीं, उन्हें हम भूल जाते हैं। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने अभ्यासक्रम (कोर्स) की किताबों को पूरे मनोयोग से एकाग्रचित्त होकर पढ़ा करें और बारंबार नियमित रूप से दोहराते भी रहें। फालतू सोच विचार करने से, चिंता करने से, ज्यादा बोलने से, फालतू बातें करने से, झूठ बोलने से या बहाने बाजी करने से तथा कार्य के कार्यों में उलझे रहने से स्मरणशक्ति नष्ट होती है।

बुद्धि कहीं बाजार में मिलने वाली चीज नही है, बल्कि अभ्यास से प्राप्त करने की और बढ़ायी जाने वाली चीज है। इसलिए आपको भरपूर अभ्यास करके बुद्धि और ज्ञान बढ़ाने में जुटे रहना होगा।

विद्या, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च किया जाय उतना ही ये बढ़ते जाते हैं जबकि धन या अन्य पदार्थ खर्च करने पर घटते हैं। विद्या की प्राप्ति और बुद्धि के विकास के लिए आप जितना प्रयत्न करेंगे, अभ्यास करेंगे, उतना ही आपका ज्ञान और बौद्धिक बल बढ़ता जायगा।

सतत अभ्यास और परिश्रम करने के लिए यह भी जरूरी है कि आपका दिमाग और शरीर स्वस्थ व ताकतवर बना रहे। यदि अल्प श्रम में ही आप थक जायेंगे तो पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा समय तक मन नहीं लगेगा। इसलिए निम्न प्रयोग करें।

आवश्यक सामग्रीः शंखावली (शंखपुष्पी) का पंचांग कूट-पीसकर, छानकर, महीन, चूर्ण करके शीशी में भर लें। बादाम की 2 गिरी और तरबूज, खरबूजा, पतली ककड़ी और मोटी खीरा ककड़ी इन चारों के बीज 5-5 ग्राम, 2 पिस्ता, 1 छुहारा, 4 इलायची (छोटी), 5 ग्राम सौंफ, 1 चम्मच मक्खन और एक गिलास दूध लें।

विधिः रात में बादाम, पिस्ता, छुहारा और चारों मगज 1 कप पानी में डालकर रख दें। प्रातःकाल बादाम का छिलका हटाकर उन्हें दो बार बूँद पानी के साथ पत्थर पर घिस लें और उस लेप को कटोरी में ले लें। फिर पिस्ता, इलायची के दाने व छुहारे को बारीक काट-पीसकर उसमें मिला लें। चारों मगज भी उसमें ऐसे ही डाल लें। अब इन सबको अच्छी तरह मिलाकर खूब चबा-चबाकर खा जायें। उसके बाद 3 ग्राम शंखावली का महीन चूर्ण मक्खन में मिलाकर चाट लें और एक गिलास गुनगुना मीठा दूध 1-1 घूँट करके पी लें। अंत में, थोड़े सौंफ मुँह में डालकर धीरे-धीरे 15-20 मिनट तक चबाते रहें और उनका रस चूसते रहें। चूसने के बाद उन्हें निगल जायें।

लाभः यह प्रयोग दिमागी ताकत, तरावट और स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए बेजोड़ है। साथ ही साथ यह शरीर में शक्ति व स्फूर्ति पैदा करता है। लगातार 40 दिन तक प्रतिदिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर खाली पेट इसका सेवन करके आप चमत्कारिक लाभ देख सकते हैं।

यह प्रयोग करने के दो घंटे बाद भोजन करें। उपरोक्त सभी द्रव्य पंसारी या कच्ची दवा बेचने वाले की दुकान से इकट्ठे ले आयें और 15-20 मिनट का समय देकर प्रतिदिन तैयार करें। इस प्रयोग को आप 40 दिन से भी ज्यादा, जब तक चाहें कर सकते हैं।

एक अन्य प्रयोगः एक गाजर और लगभग 50-60 ग्राम पत्ता गोभी अर्थात् 10-12 पत्ते काटकर प्लेट में रख लें। इस पर हरा धनिया काटकर डाल दें। फिर उसमें सेंधा नमक, काली मिर्च का चूर्ण और नींबू का रस मिलाकर खूब चबा चबाकर नाश्ते के रूप में खाया करें।
भोजन के साथ एक गिलास छाछ भी पिया करें।

1) जड़-पत्तों सहित ब्राह्मी को उखाडकर एवं जल से धोकर ओखली में कुटे और कपडे में छाल ले. तत्पश्चात उसके एक तोले रस में छह माशे गौ घृत डालकर पकावे और हल्दी, आँवला, कूट, निसोत, हरड, चार-चार तोले, पीपल, वायविडंग, सेंधा नमक, मिश्री और बच एक-एक तोले इन सबकी चटनी उसमे डालकर मंद आग पर पकावे. जब पानी सुख जाए और घृत शेष रहे, तो उसे छानकर, लेवे और प्रतिदिन प्रातः काल एक तोला घृत चाटे. इसके सेवन से वाणी शुद्ध होती है. सात दिन तक सेवन करने से अनेक शास्त्रों को धारण कराता है. १८ प्रकार के कोढ़, ६ प्रकार के बवासीर, २ प्रकार के गुल्मी, २० प्रकार के प्रमेह और खाँसी दूर होती है. बंध्या स्त्री और अल्प वीर्य वाले मनुष्टों के लिए यह सारस्वत घृत वर्ण, वायु और बल को बढाता है. –चक्रदत्त.

२) बच का एक माशा चूर्ण जल, दूध या घृत के साथ एक मास सेवन करने से मनुष्य पंडित और बुद्धिमान बन जाता है. –वृहन्नीघण्टु

३) बेल कि जड़ का छाल और शतावरी का क्वाथ प्रतिदिन दूध के साथ स्नान और हवन के पश्चात पीजिए. इससे आयु और बुद्धि कि वृद्धि होती है. –सुश्रुत

४) गिलोय, ओंगा, वायविडंग, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बच, सोंठ और शतावर इन सबको बराबर लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनावे और प्रातःकाल चार माशे मिश्री के साथ चाटे, तो तीन हजार श्लोक कंठस्थ करने कि शक्ति हो जाती है.

सावधानियाँ

रात को 9 बजे के बाद पढ़ने के लिए जागरण करें तो आधे-आधे घंटे के अंतर पर आधा गिलास ठंडा पानी पीते रहें। इससे जागरण के कारण होने वाला वातप्रकोप  नहीं होगा। वैसे 11 बजे से पहले सो जाना ही उचित है।

लेटकर या झुके हुए बैठकर न पढ़ा करें। रीढ़ की हड्डी सीधी रखकर बैठें। इससे आलस्य या निद्रा का असन नहीं होगा और स्फूर्ति बनी रहेगी। सुस्ती महसूस हो तो थोड़ी चहलकदमी करें। नींद भगाने के लिए चाय या सिगरेट का सेवन कदापि न करें।

स्मरणशक्ति कैसे बढ़ायें?

अच्छी और तीव्र स्मरण शक्ति के लिए हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ, सबल और निरोग रहना होगा। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और सशक्त हुए बिना हम अपनी स्मृति को भी अच्छी और तीव्र नहीं बनाये रख सकते।

आप यह बात ठीक से याद रखें कि हमारी यादशक्ति हमारे ध्यान पर और मन की एकाग्रता पर निर्भर करती है। हम जिस तरफ जितना ज्यादा एकाग्रतापूर्वक ध्यान देंगे, उस तरफ हमारी विचारशक्ति उतनी ज्यादा केन्द्रित हो जायेगी। जिस कार्य में भी जितनी अधिक तीव्रता, स्थिरता और शक्ति लगायी जायेगी, उतनी गहराई और मजबूती से वह कार्य हमारे स्मृति पटल पर अंकित हो जायेगा।

स्मृति को बनाये रखना ही स्मरणशक्ति है और इसके लिए जरूरी है सुने हुए व पढ़े हुए विषयों का बार-बार मानना करना, अभ्यास करना। जो बातें हमारे ध्यान में बराबर आती रहती हैं, उनकी याद बनी रहती है और जो बातें लम्बे समय तक हमारे ध्यान में नहीं आतीं, उन्हें हम भूल जाते हैं। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने अभ्यासक्रम (कोर्स) की किताबों को पूरे मनोयोग से एकाग्रचित्त होकर पढ़ा करें और बारंबार नियमित रूप से दोहराते भी रहें। फालतू सोच विचार करने से, चिंता करने से, ज्यादा बोलने से, फालतू बातें करने से, झूठ बोलने से या बहाने बाजी करने से तथा कार्य के कार्यों में उलझे रहने से स्मरणशक्ति नष्ट होती है।

बुद्धि कहीं बाजार में मिलने वाली चीज नही है, बल्कि अभ्यास से प्राप्त करने की और बढ़ायी जाने वाली चीज है। इसलिए आपको भरपूर अभ्यास करके बुद्धि और ज्ञान बढ़ाने में जुटे रहना होगा।

विद्या, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च किया जाय उतना ही ये बढ़ते जाते हैं जबकि धन या अन्य पदार्थ खर्च करने पर घटते हैं। विद्या की प्राप्ति और बुद्धि के विकास के लिए आप जितना प्रयत्न करेंगे, अभ्यास करेंगे, उतना ही आपका ज्ञान और बौद्धिक बल बढ़ता जायगा।

सतत अभ्यास और परिश्रम करने के लिए यह भी जरूरी है कि आपका दिमाग और शरीर स्वस्थ व ताकतवर बना रहे। यदि अल्प श्रम में ही आप थक जायेंगे तो पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा समय तक मन नहीं लगेगा। इसलिए निम्न प्रयोग करें।

आवश्यक सामग्रीः शंखावली (शंखपुष्पी) का पंचांग कूट-पीसकर, छानकर, महीन, चूर्ण करके शीशी में भर लें। बादाम की 2 गिरी और तरबूज, खरबूजा, पतली ककड़ी और मोटी खीरा ककड़ी इन चारों के बीज 5-5 ग्राम, 2 पिस्ता, 1 छुहारा, 4 इलायची (छोटी), 5 ग्राम सौंफ, 1 चम्मच मक्खन और एक गिलास दूध लें।

विधिः रात में बादाम, पिस्ता, छुहारा और चारों मगज 1 कप पानी में डालकर रख दें। प्रातःकाल बादाम का छिलका हटाकर उन्हें दो बार बूँद पानी के साथ पत्थर पर घिस लें और उस लेप को कटोरी में ले लें। फिर पिस्ता, इलायची के दाने व छुहारे को बारीक काट-पीसकर उसमें मिला लें। चारों मगज भी उसमें ऐसे ही डाल लें। अब इन सबको अच्छी तरह मिलाकर खूब चबा-चबाकर खा जायें। उसके बाद 3 ग्राम शंखावली का महीन चूर्ण मक्खन में मिलाकर चाट लें और एक गिलास गुनगुना मीठा दूध 1-1 घूँट करके पी लें। अंत में, थोड़े सौंफ मुँह में डालकर धीरे-धीरे 15-20 मिनट तक चबाते रहें और उनका रस चूसते रहें। चूसने के बाद उन्हें निगल जायें।

लाभः यह प्रयोग दिमागी ताकत, तरावट और स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए बेजोड़ है। साथ ही साथ यह शरीर में शक्ति व स्फूर्ति पैदा करता है। लगातार 40 दिन तक प्रतिदिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर खाली पेट इसका सेवन करके आप चमत्कारिक लाभ देख सकते हैं।

यह प्रयोग करने के दो घंटे बाद भोजन करें। उपरोक्त सभी द्रव्य पंसारी या कच्ची दवा बेचने वाले की दुकान से इकट्ठे ले आयें और 15-20 मिनट का समय देकर प्रतिदिन तैयार करें। इस प्रयोग को आप 40 दिन से भी ज्यादा, जब तक चाहें कर सकते हैं।

एक अन्य प्रयोगः एक गाजर और लगभग 50-60 ग्राम पत्ता गोभी अर्थात् 10-12 पत्ते काटकर प्लेट में रख लें। इस पर हरा धनिया काटकर डाल दें। फिर उसमें सेंधा नमक, काली मिर्च का चूर्ण और नींबू का रस मिलाकर खूब चबा चबाकर नाश्ते के रूप में खाया करें।
भोजन के साथ एक गिलास छाछ भी पिया करें।

1) जड़-पत्तों सहित ब्राह्मी को उखाडकर एवं जल से धोकर ओखली में कुटे और कपडे में छाल ले. तत्पश्चात उसके एक तोले रस में छह माशे गौ घृत डालकर पकावे और हल्दी, आँवला, कूट, निसोत, हरड, चार-चार तोले, पीपल, वायविडंग, सेंधा नमक, मिश्री और बच एक-एक तोले इन सबकी चटनी उसमे डालकर मंद आग पर पकावे. जब पानी सुख जाए और घृत शेष रहे, तो उसे छानकर, लेवे और प्रतिदिन प्रातः काल एक तोला घृत चाटे. इसके सेवन से वाणी शुद्ध होती है. सात दिन तक सेवन करने से अनेक शास्त्रों को धारण कराता है. १८ प्रकार के कोढ़, ६ प्रकार के बवासीर, २ प्रकार के गुल्मी, २० प्रकार के प्रमेह और खाँसी दूर होती है. बंध्या स्त्री और अल्प वीर्य वाले मनुष्टों के लिए यह सारस्वत घृत वर्ण, वायु और बल को बढाता है. –चक्रदत्त.

२) बच का एक माशा चूर्ण जल, दूध या घृत के साथ एक मास सेवन करने से मनुष्य पंडित और बुद्धिमान बन जाता है. –वृहन्नीघण्टु

३) बेल कि जड़ का छाल और शतावरी का क्वाथ प्रतिदिन दूध के साथ स्नान और हवन के पश्चात पीजिए. इससे आयु और बुद्धि कि वृद्धि होती है. –सुश्रुत

४) गिलोय, ओंगा, वायविडंग, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बच, सोंठ और शतावर इन सबको बराबर लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनावे और प्रातःकाल चार माशे मिश्री के साथ चाटे, तो तीन हजार श्लोक कंठस्थ करने कि शक्ति हो जाती है.

सावधानियाँ

रात को 9 बजे के बाद पढ़ने के लिए जागरण करें तो आधे-आधे घंटे के अंतर पर आधा गिलास ठंडा पानी पीते रहें। इससे जागरण के कारण होने वाला वातप्रकोप नहीं होगा। वैसे 11 बजे से पहले सो जाना ही उचित है।

लेटकर या झुके हुए बैठकर न पढ़ा करें। रीढ़ की हड्डी सीधी रखकर बैठें। इससे आलस्य या निद्रा का असन नहीं होगा और स्फूर्ति बनी रहेगी। सुस्ती महसूस हो तो थोड़ी चहलकदमी करें। नींद भगाने के लिए चाय या सिगरेट का सेवन कदापि न करें।

chitra par kavita: kahan ja rahe ho... -sanjiv

चित्र पर कविता:
प्रस्तुत है चित्र, रच दीजिए इस पर सरस कविता 
http://static.mydailyhonk.com/wp-content/uploads/2013/05/Rich-2.jpg
नव गीत:कहाँ जा रहे हो…
संजीव
*
पाखी समय का
ठिठक पूछता है
कहाँ जा रहे हो?...
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
तूफां में उड़ते पंछी भटककर
लिये हाथ में हाथ जाते कहाँ हो?
बैठे हो क्यों बन्धु! खुद में सिमटकर
साथी प्रलय से
सतत जूझता और
सुस्ता रहे हो?...
*
मलय कोई देखे कैसे नयन भर
विलय कोई लेखे कैसे शयन कर
निलय काँपते देख झंझा-झकोरे
मनुज क्यों सशंकित थमकर, ठिठककर  
साथी 'सलिल' का 
नहीं सूझता देख
मुस्का रहे हो?...
*


 

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

ज्ञानविज्ञान :
पीपल के पत्ते से मोबाइल चार्ज करें
राजीव दीक्षित
*
Photo: यह बहुत अजीब है परन्तु सत्य है !!!  राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

अब आपको अपने मोबाइल को चार्ज करने के लिए मोबाइल चार्जर की आवश्यकता नही है आपको केवल पीपल के दो हरे पत्ते चाहिए और कुछ समय बाद आपकी मोबाइल चार्ज हो जाएगी।

जल्द ही लोगों ने इसको सिख लिया फिर परीक्षण किया और पाया के परिणाम उत्साहजनक हैं। यदि आपकी मोबाइल की चार्ज ख़तम हो जाये और आप किसी जंगल के भीतर हो तो आपको किसी भी चार्जर की उपयोग की आवश्यकता नही। आप बस दो पीपल के पत्ते तोडिये और आपका काम हो जायेगा। 

यह बहुत अच्छा विचार है और अपने मोबाइल चार्ज करने के लिए आसान है। आपको अपने मोबाइल की बैटरी को खोलना और पीपल के पत्ते के साथ कनेक्ट करना होगा। कुछ समय के बाद आपके मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाएगी।

हालांकि यह अविश्वसनीय है, लेकिन जैसे ही चित्रकूट के निवासियों को इस खोज के बारे में पता चला वे इस खबर को विश्वास नहीं कर सके। लेकिन जब वे इसको व्यावहारिक रूप से देखा तो घटना की सत्यता को स्वीकार किया।

अब सैकड़ों मोबाइल धारक इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं और उनके मोबाइल फोन चार्ज कर रहें है।

जबकि वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार, यह सिर्फ म्युचुअल ऊर्जा विद्युत ऊर्जा शक्ति में बदलना है जो बैटरी में संचित होता है। उन्होंने कहा कि यह शोध का विषय है।
पीपल पत्ती का उपयोग से मोबाइल की बैटरी चार्ज करने का मार्गदर्शन :-
1. अपने मोबाइल की कवर खोलिए।
2. बैटरी को निकाले।
3. पीपल / अश्वथ्थ पेड़ के दो ताज़ा पत्ते लीजिये।
4. अपने मोबाइल की बैटरी टर्मिनल पर इन पत्तियों के ठूंठ को एक मिनट के लिए छु कर रखिये।
5. अब मुलायम कपड़े से मोबाइल बैटरी टर्मिनल साफ करिए।
6. अपनी बैटरी फिर से आपके मोबाइल में रखिये और स्विच ओन करिए।
7. अब आप परिणाम देख सकते हैं।
8. यदि आवश्यक हो ताजा पत्तों के साथ इस प्रक्रिया को दोहराएँ।

राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

अब आपको अपने मोबाइल को चार्ज करने के लिए मोबाइल चार्जर की आवश्यकता नही है आपको केवल पीपल के दो हरे पत्ते चाहिए और कुछ समय बाद आपकी मोबाइल चार्ज हो जाएगी।

जल्द ही लोगों ने इसको सिख लिया फिर परीक्षण किया और पाया के परिणाम उत्साहजनक हैं। यदि आपकी मोबाइल की चार्ज ख़तम हो जाये और आप किसी जंगल के भीतर हो तो आपको किसी भी चार्जर की उपयोग की आवश्यकता नही। आप बस दो पीपल के पत्ते तोडिये और आपका काम हो जायेगा।

यह बहुत अच्छा विचार है और अपने मोबाइल चार्ज करने के लिए आसान है। आपको अपने मोबाइल की बैटरी को खोलना और पीपल के पत्ते के साथ कनेक्ट करना होगा। कुछ समय के बाद आपके मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाएगी।

हालांकि यह अविश्वसनीय है, लेकिन जैसे ही चित्रकूट के निवासियों को इस खोज के बारे में पता चला वे इस खबर को विश्वास नहीं कर सके। लेकिन जब वे इसको व्यावहारिक रूप से देखा तो घटना की सत्यता को स्वीकार किया।

अब सैकड़ों मोबाइल धारक इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं और उनके मोबाइल फोन चार्ज कर रहें है।

जबकि वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार, यह सिर्फ म्युचुअल ऊर्जा विद्युत ऊर्जा शक्ति में बदलना है जो बैटरी में संचित होता है। उन्होंने कहा कि यह शोध का विषय है।
पीपल पत्ती का उपयोग से मोबाइल की बैटरी चार्ज करने का मार्गदर्शन :-
1. अपने मोबाइल की कवर खोलिए।
2. बैटरी को निकाले।
3. पीपल / अश्वथ्थ पेड़ के दो ताज़ा पत्ते लीजिये।
4. अपने मोबाइल की बैटरी टर्मिनल पर इन पत्तियों के ठूंठ को एक मिनट के लिए छु कर रखिये।
5. अब मुलायम कपड़े से मोबाइल बैटरी टर्मिनल साफ करिए।
6. अपनी बैटरी फिर से आपके मोबाइल में रखिये और स्विच ओन करिए।
7. अब आप परिणाम देख सकते हैं।
8. यदि आवश्यक हो ताजा पत्तों के साथ इस प्रक्रिया को दोहराएँ।

rani padmini ka amar balidan - rajni saxena

इतिहास के झरोखे से: 
महारानी पद्मिनी की बलिदान गाथा
रजनी सक्सेना

Photo: १३०२इश्वी में मेवाड़ के राजसिंहासन पर रावल रतन सिंह आरूढ़ हुए. उनकी रानियों में एक थी पद्मिनी जो श्री लंका के राजवंशकी राजकुँवरी थी.
रानी पद्मिनी का अनिन्द्य सौन्दर्य यायावर गायकों (चारण/भाट/कवियों) के गीतों का विषय बन गया था.
दिल्ली के तात्कालिक सुल्तान अल्ला-उ-द्दीन खिलज़ी ने पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन सुना और वह पिपासु हो गया उस सुंदरी को अपने हरम में शामिल करने के लिए. अल्ला-उ-द्दीन ने चित्तौड़ (मेवाड़ की राजधानी) की ओर कूच किया अपनी अत्याधुनिक हथियारों से लेश सेना के साथ. मकसद था चित्तौड़ पर चढ़ाई कर उसे जीतना और रानी पद्मिनी को हासिल करना.ज़ालिम सुलतान बढा जा रहा था,चित्तौड़गढ़ के नज़दीक आये जा रहा था.उसने चित्तौड़गढ़ में अपने दूत को इस पैगामके साथ भेजा कि अगर उसको रानी पद्मिनी को सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा. रणबाँकुरे राजपूतों के लिए यह सन्देश बहुत शर्मनाक था.उनकी बहादुरी कितनी ही उच्चस्तरीय क्यों ना हो, उनके हौसले कितने ही बुलंद क्यों ना हो, सुलतान की फौजी ताक़त उनसे कहीं ज्यादा थी. रणथम्भोर के किले को सुलतान हाल ही में फतह कर लिया था ऐसे में बहुत ही गहरे सोच का विषय हो गया था सुल्तान का यह घृणित प्रस्ताव, जो सुल्तान की कामुकता और दुष्टता का प्रतीक था.कैसे मानी ज सकती थी यह शर्मनाक शर्त.नारी के प्रति एक कामुक नराधम का यहरवैय्या क्षत्रियों के खून खौला देने के लिए काफी था.
रतन सिंह जी ने सभी सरदारों से मंत्रणा की, कैसे सामना किया जाय इस नीच लुटेरे का जो बादशाह के जामे में लिपटा हुआ था.कोई आसान रास्ता नहीं सूझ रहा था.मरने मारने का विकल्प तो अंतिम था.क्यों ना कोई चतुराईपूर्ण राजनीतिक कूटनीतिक समाधान समस्या का निकाला जाय ?रानी पद्मिनी न केवल अनुपम सौन्दर्यकी स्वामिनी थी, वह एक बुद्धिमता नारी भी थी. उसने अपने विवेक से स्थिति पर गौर किया और एक संभावित हल समस्या का सुझाया.
अल्ला-उ-द्दीनको जवाब भेजा गया कि वह अकेला निरस्त्र गढ़ (किले) में प्रवेश कर सकता है, बिना किसी को साथ लिए,राजपूतों का वचन है कि उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा….हाँ वह केवल रानी पद्मिनी को देख सकता है..बस. उसके पश्चात् उसे चले जाना होगा चित्तौड़ को छोड़ कर…. जहाँ कहीं भी.
उम्मीद कम थी कि इस प्रस्ताव को सुल्तान मानेगा.किन्तु आश्चर्य हुआ जब दिल्ली के आका ने इस बात को मान लिया. निश्चित दिन को अल्ला-उ-द्दीन पूर्व के चढ़ाईदार मार्ग से किले के मुख्य दरवाज़े तक चढ़ा, और उसके बाद पूर्व दिशा में स्थित सूरजपोल तक पहुंचा. अपने वादे के मुताबिक वह नितान्त अकेला और निरस्त्र था.पद्मिनी के पति रावल रतन सिंह ने महलतक उसकी अगवानी की.
महल के उपरी मंजिल पर स्थित एक कक्ष कि पिछली दीवार पर एक दर्पण लगाया गया, जिसके ठीक सामने एक दूसरे कक्ष की खिड़की खुल रही थी…उस खिड़की के पीछे झील में स्थित एक मंडपनुमा महल था जिसे रानी अपनेग्रीष्म विश्राम के लिए उपयोग करती थी. रानी मंडपनुमा महल में थी जिसका बिम्ब खिडकियों से होकर उस दर्पण में पड़ रहा था अल्लाउद्दीन को कहा गया कि दर्पण में झांके. हक्केबक्के सुलतान ने आईने की जानिब अपनी नज़र की और उसमें रानी का अक्स उसे दिख गया …तकनीकी तौर पर.उसेरानी साहिबा को दिखा दिया गया था….
सुल्तान को एहसास हो गया कि उसके साथ चालबाजी की गयी है, …किन्तु बोल भी नहीं पा रहा था, मेवाड़ नरेश ने रानी के दर्शन कराने का अपना वादा जो पूरा किया था……और उस पर वह नितान्त अकेला और निरस्त्र भी था. परिस्थितियां असमान्य थी, किन्तु एक राजपूत मेजबान की गरिमा को अपनाते हुए,दुश्मन अल्लाउद्दीन को ससम्मान वापस पहुँचाने मुख्य द्वार तक स्वयं रावल रतन सिंह जी गये थे …..अल्लाउद्दीन ने तो पहले से ही धोखे की योजना बना रखी थी .उसके सिपाही दरवाज़े के बाहर छिपे हुए थे….दरवाज़ा खुला…….रावल साहब को जकड लिया गया और उन्हें पकड़ कर शत्रु सेना के खेमे में कैद कर दिया गया.रावल रतन सिंह दुश्मन की कैद में थे.अल्लाउद्दीन ने फिर से पैगाम भेजा गढ़ में कि राणाजी को वापस गढ़ में सुपुर्द कर दिया जायेगा, अगर रानी पद्मिनी को उसे सौंप दिया जाय.चतुर रानी ने काकोसा गोरा और उनके १२वर्षीय भतीजे बादल से मशविरा किया और एक चातुर्यपूर्णयोजना राणाजी को मुक्त करने के लिए तैयार की.
अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा गया कि अगले दिन सुबह रानी पद्मिनी उसकी खिदमत में हाज़िर हो जाएगी, दिल्ली में चूँकि उसकी देखभालके लिए उसकी खास दसियों की ज़रुरत भी होगी, उन्हें भी वह अपने साथ लिवा लाएगी. प्रमुदित अल्लाउद्दीन सारी रात्रि सो न सका…कब रानी पद्मिनी आये उसके हुज़ूर में, कब वह विजेता की तरह उसे भी जीते…..कल्पना करता रहा रात भर पद्मिनी के सुन्दर तन की….प्रभात बेला में उसने देखा कि एक जुलुस सा सात सौ बंद पालकियों का चला आ रहा है.खिलज़ी अपनी जीत पर इतरा रहा था.खिलज़ी ने सोचा था कि ज्योंही पद्मिनी उसकी गिरफ्त में आ जाएगी, रावल रतन सिंह का वधकर दिया जायेगा…और चित्तौड़ परहमला कर उस पर कब्ज़ा करलिया जायेगा. कुटिल हमलावर इस सेज्यादा सोच भी क्या सकता था.खिलज़ी के खेमे में इस अनूठे जुलूस ने प्रवेशकिया……और तुरंतअस्तव्यस्तता का माहौल बन गया…पालकियों से नहीं उतरी थी अनिन्द्यसुंदरी रानी पद्मिनी औरउसकी दासियों का झुण्ड……बल्कि पालकियों से कूद पड़े थे हथियारों से लेश रणबांकुरे राजपूत योद्धा ….जो अपनी जान पर खेल कर अपने राजा को छुड़ा लेने का ज़ज्बा लिए हुए थे.गोरा और बादल भी इन में सम्मिलित थे.मुसलमानों ने तुरत अपने सुल्तान को सुरक्षा घेरे में लिया. रतन सिंहजी को उनके आदमियों ने खोज निकाला और सुरक्षा के साथ किले में वापस ले गये.घमासान युद्ध हुआ,जहाँ दया करुणा को कोई स्थान नहीं था.मेवाड़ी और मुसलमान दोनों ही रण-खेत रहे. मैदान इंसानी लाल खून से सुर्ख हो गया था. शहीदों में गोरा और बादल भी थे, जिन्होंने मेवाड़ के भगवा ध्वज की रक्षा के लिए अपनी आहुति दे दी थी.
अल्लाउद्दीन की खूब मिटटी पलीद हुई.खिसियाता, क्रोध में आग बबूला होता हुआ, लौमड़ी सा चालाक और कुटिल सुल्तान दिल्ली को लौट गया. उसे चैन कहाँ था, जुगुप्सा का दावानल उसे लगातार जलाए जा रहा था. एक औरत ने उस अधिपति को अपने चातुर्य और शौर्य सेमुंह के बल पटक गिराया था. उसका पुरुषचित्त उसे कैसे स्वीकारका सकता था….उसके अहंकार को करारी चोट लगी थी….मेवाड़ का राज्य उसकी आँख की किरकिरी बन गया था. कुछ महीनों के बाद वह फिर चढ़ बैठा था चित्तौडगढ़ पर, ज्यादा फौज और तैय्यारी के साथ. उसने चित्तौड़गढ़ के पास मैदान में अपना खेमा डाला. किले को घेरलिया गया……किसी का भी बाहर निकलना सम्भव नहीं था…दुश्मन कि फौजके सामने मेवाड़ के सिपाहियों की तादाद और ताक़त बहुत कम थी. थोड़े बहुत आक्रमण शत्रु सेना पर बहादुर राजपूत कर पाते थे लेकिन उनको कहा जा सकता था ऊंट के मुंह में जीरा. सुल्तान की फौजें वहां अपना पड़ाव डाले बैठी थी, इंतज़ारमें. छः महीने बीत गये, किले में संगृहीत रसद ख़त्म होने को आई. अब एक ही चारा बचा था, “करो या मरो.”या “घुटने टेको.” आत्मसमर्पण या शत्रु के सामने घुटने टेक देना बहादुर राजपूतों के गौरव लिए अभिशाप तुल्य था,………
ऐसे में बस एक ही विकल्प बचा था झूझना…..युद्ध करना…..शत्रु का यथा संभव संहार करते हुए वीरगति को पाना. बहुत बड़ी विडंबना थी कि शत्रु के कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. वे न केवल पुरुषों को मारते काटते, नारियों से बलात्कार करते और उन्हें भी मार डालते.यही चिंता समायी थी धर्म परायणशिशोदिया वंश के राजपूतों में. …….
और मेवाड़ियों ने एक ऐतिहासिक निर्णयलिया…..किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों, नारियलों एवम् अन्य इंधनों का ढेर लगाया गया…..सारी स्त्रियों ने,रानी से दासी तक, अपने बच्चों के साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया….सजी हुई चित्ता को घी, तेल और धूप से सींचा गया….औरपलीता लगाया गया. चित्ता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी……नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी…..अपने पुरुषों को अश्रुपूरितविदाई दे रही थी….अंत्येष्टि के शोक गीत गाये जा रही थी. अफीम अथवा ऐसेही किसी अन्य शामक औषधियों के प्रभाव से प्रशांत हुई, महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चित्ता कि ओर प्रस्थान किया…..और कूद पड़ी धधकती चित्ता में….अपने आत्मदाह के लिए….जौहर के लिए….देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए. जय एकलिंग, हर हरमहादेव के उदघोषों से गगन गुंजरितहो उठा था. आत्माओं का परमात्मा से विलय हो रहा था.
अगस्त २५, १३०३कि भोर थी, आत्मसंयमी दुखसुख को समानरूप से स्वीकार करने वाला भाव लिए, पुरुष खड़े थे उस हवन कुन्ड के निकट, कोमलता से भगवद गीता के श्लोकों का कोमल स्वर में पाठ करते हुए…..अपनी अंतिमश्रद्धा अर्पित करते हुए…. प्रतीक्षा में कि वह विशाल अग्नि उपशांत हो. पौ फटगयी…..सूरज कि लालिमा ताम्रवर्ण लिए आकाश में आच्छादित हुई…..पुरुषों ने केसरिया बागे पहन लिए….अपने अपने भालपर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया….मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा….दुर्ग के द्वार खोल दिए गये.
जय एकलिंग….हर हर महादेव कि हुंकार लगते रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े शत्रु सेना पर……मरने मारनेका ज़ज्बा था….आखरी दम तक अपनी तलवारों को शत्रु का रक्त पिलाया…और स्वयं लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये.अल्लाउद्दीन खिलज़ी की जीत उसकी हार थी, क्योंकि उसे रानी पद्मिनी का शरीर हासिल नहीं हुआ, मेवाड़ कि पगड़ी उसके कदमों में नहीं गिरी. चातुर्य और सौन्दर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी ने उसे एक बार और छल लिया था.

आभार Thakur's Era (Rajput Era) Page

१३०२ ईस्वी में मेवाड़ के राजसिंहासन पर रावल रतन सिंह आरूढ़ हुए. उनकी रानियों में एक थी पद्मिनी जो श्री लंका के राजवंश की राजकुँवरी थी. रानी पद्मिनी का अनिन्द्य सौन्दर्य यायावर गायकों (चारण/भाट/कवियों) के गीतों का विषय बन गया था. दिल्ली के तात्कालिक सुल्तान अल्ला-उ-द्दीन खिलज़ी ने पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन सुना और वह पिपासु हो गया उस सुंदरी को अपने हरम में शामिल करने के लिए. अल्ला-उ-द्दीन ने चित्तौड़ (मेवाड़ की राजधानी) की ओर कूच किया अपनी अत्याधुनिक हथियारों से लैस सेना के साथ. मकसद था चित्तौड़ पर चढ़ाई कर उसे जीतना और रानी पद्मिनी को हासिल करना. ज़ालिम सुलतान बढा जा रहा था, चित्तौड़गढ़ के नज़दीक आये जा रहा था. उसने चित्तौड़गढ़ में अपने दूत को इस पैगाम के साथ भेजा कि अगर उसको रानी पद्मिनी को सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा. रणबाँकुरे राजपूतों के लिए यह सन्देश बहुत शर्मनाक था. उनकी बहादुरी कितनी ही उच्चस्तरीय क्यों ना हो, उनके हौसले कितने ही बुलंद क्यों ना हो, सुलतान की फौजी ताक़त उनसे कहीं ज्यादा थी. रणथम्भोर के किले को सुलतान हाल ही में फतह कर लिया था ऐसे में बहुत ही गहरे सोच का विषय हो गया था सुल्तान का यह घृणित प्रस्ताव, जो सुल्तान की कामुकता और दुष्टता का प्रतीक था, कैसे माना जा  सकता था? नारी के प्रति एक कामुक नराधम का यह रवैय्या क्षत्रियों के खून खौला देने के लिए काफी था.

रतन सिंह जी ने सभी सरदारों से मंत्रणा की, कैसे सामना किया जाए इस नीच लुटेरे का जो बादशाह के जामे में लिपटा हुआ था?. कोई आसान रास्ता नहीं सूझ रहा था. मरने-मारने का विकल्प तो अंतिम था. क्यों ना कोई चतुराईपूर्ण राजनीतिक कूटनीतिक समाधान समस्या का निकाला जाय? रानी पद्मिनी न केवल अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी थी, वह एक बुद्धिमती नारी भी थी. उसने अपने विवेक से स्थिति पर गौर किया और एक संभावित हल समस्या का सुझाया.

अल्ला-उ-द्दीन को जवाब भेजा गया कि वह अकेला निरस्त्र गढ़ (किले) में प्रवेश कर सकता है, बिना किसी को साथ लिए, राजपूतों का वचन है कि उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा….हाँ, वह केवल रानी पद्मिनी को देख सकता है. उसके पश्चात् उसे चले जाना होगा चित्तौड़ को छोड़ कर…. उम्मीद कम थी कि इस प्रस्ताव को सुल्तान मानेगा. किन्तु आश्चर्य हुआ जब दिल्ली के आका ने इस बात को मान लिया. निश्चित दिन को अल्ला-उ-द्दीन पूर्व के चढ़ाईदार मार्ग से किले के मुख्य दरवाज़े तक चढ़ा, और उसके बाद पूर्व दिशा में स्थित सूरजपोल तक पहुंचा. अपने वादे के मुताबिक वह नितान्त अकेला और निरस्त्र था. पद्मिनी के पति रावल रतन सिंह ने महल तक उसकी अगवानी की.

महल के उपरी मंजिल पर स्थित एक कक्ष कि पिछली दीवार पर एक दर्पण लगाया गया, जिसके ठीक सामने एक दूसरे कक्ष की खिड़की खुल रही थी…उस खिड़की के पीछे झील में स्थित एक मंडपनुमा महल था जिसे रानी अपने ग्रीष्म विश्राम के लिए उपयोग करती थी. रानी मंडपनुमा महल में थी जिसका बिम्ब खिडकियों से होकर उस दर्पण में पड़ रहा था अल्लाउद्दीन को कहा गया कि दर्पण में झांके. हक्के-बक्के सुलतान ने आईने की जानिब अपनी नज़र की और उसमें रानी का अक्स उसे दिख गया, तकनीकी तौर पर उसे रानी साहिबा को दिखा दिया गया था….

सुल्तान को एहसास हो गया कि उसके साथ चालबाजी की गयी है, …किन्तु बोल भी नहीं पा रहा था, मेवाड़ नरेश ने रानी के दर्शन कराने का अपना वादा जो पूरा किया था…… और उस पर वह नितान्त अकेला और निरस्त्र भी था. परिस्थितियां असमान्य थी, किन्तु एक राजपूत मेजबान की गरिमा को अपनाते हुए, दुश्मन अल्लाउद्दीन को ससम्मान वापस पहुँचाने मुख्य द्वार तक स्वयं रावल रतन सिंह जी गये थे …..अल्लाउद्दीन ने तो पहले से ही धोखे की योजना बना रखी थी. उसके सिपाही दरवाज़े के बाहर छिपे हुए थे…. दरवाज़ा खुला……. रावल साहब को जकड लिया गया और उन्हें पकड़कर शत्रु सेना के खेमे में कैद कर दिया गया. रावल रतन सिंह दुश्मन की कैद में थे. अल्लाउद्दीन ने फिर से पैगाम भेजा गढ़ में कि राणाजी को वापस गढ़ में सुपुर्द कर दिया जायेगा, अगर रानी पद्मिनी को उसे सौंप दिया जाए . चतुर रानी ने काकोसा गोरा और उनके १२ वर्षीय भतीजे बादल से मशविरा किया और एक चातुर्यपूर्ण योजना राणाजी को मुक्त करने के लिए तैयार की.
अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा गया कि अगले दिन सुबह रानी पद्मिनी उसकी खिदमत में हाज़िर हो जाएगी, दिल्ली में चूँकि उसकी देखभाल के लिए उसकी खास दासियों की ज़रुरत भी होगी, उन्हें भी वह अपने साथ लाएगी. प्रमुदित अल्लाउद्दीन सारी रात्रि सो न सका…कब रानी पद्मिनी आये उसके हुज़ूर में, कब वह विजेता की तरह उसे भी जीते….. कल्पना करता रहा रात भर पद्मिनी के सुन्दर तन की…. प्रभात बेला में उसने देखा कि सात सौ बंद पालकियों का जुलूस चला आ रहा है. खिलज़ी अपनी जीत पर इतरा रहा था. खिलज़ी ने सोचा था कि ज्योंही पद्मिनी उसकी गिरफ् त में आ जाएगी, रावल रतन सिंह का वध कर दिया जायेगा… और चित्तौड़ पर हमला कर उस पर कब्ज़ा कर लिया जायेगा. कुटिल हमलावर इस से ज्यादा सोच भी क्या सकता था.? खिलज़ी के खेमे में इस अनूठे जुलूस ने प्रवेश किया……और तुरंत अस्त-व्यस्तता का माहौल बन गया… पालकियों से नहीं उतरी थी अनिन्द्य सुंदरी रानी पद्मिनी और उसकी दासियों का झुण्ड…… बल्कि पालकियों से कूद पड़े थे हथियारों से लैस रणबांकुरे राजपूत योद्धा ….जो अपनी जान पर खेल कर अपने राजा को छुड़ा लेने का ज़ज्बा लिए हुए थे. गोरा और बादल भी इन में सम्मिलित थे. मुसलमानों ने तुरत अपने सुल्तान को सुरक्षा घेरे में लिया. रतन सिंह जी को उनके आदमियों ने खोज निकाला और सुरक्षा के साथ किले में वापस ले गये. घमासान युद्ध हुआ, जहाँ दया-करुणा को कोई स्थान नहीं था. मेवाड़ी और मुसलमान दोनों ही रण-खेत रहे. मैदान इंसानी लाल खून से सुर्ख हो गया था. शहीदों में गोरा और बादल भी थे, जिन्होंने मेवाड़ के भगवा ध्वज की रक्षा के लिए अपनी आहुति दे दी थी.

अल्लाउद्दीन की खूब मिटटी पलीद हुई. खिसियाता, क्रोध में आग बबूला होता हुआ, लौमड़ी सा चालाक और कुटिल सुल्तान दिल्ली को लौट गया. उसे चैन कहाँ था? जुगुप्सा का दावानल उसे लगातार जलाए जा रहा था. एक औरत ने उस अधिपति को अपने चातुर्य और शौर्य से मुंह के बल पटक गिराया था. उसका पुरुष चित्त उसे कैसे स्वीकार कर सकता था…. उसके अहंकार को करारी चोट लगी थी…. मेवाड़ का राज्य उसकी आँख की किरकिरी बन गया था. कुछ महीनों के बाद वह फिर चढ़ बैठा था चित्तौडगढ़ पर, ज्यादा फौज और तैय्यारी के साथ. उसने चित्तौड़गढ़ के पास मैदान में अपना खेमा डाला. किले को घेर लिया गया……किसी का भी बाहर निकलना सम्भव नहीं था…दुश्मन की फौज के सामने मेवाड़ के सिपाहियों की तादाद और ताक़त बहुत कम थी. थोड़े बहुत आक्रमण शत्रु सेना पर बहादुर राजपूत कर पाते थे लेकिन उनको कहा जा सकता था ऊंट के मुंह में जीरा. सुल्तान की फौजें वहां अपना पड़ाव डाले बैठी थी, इंतज़ार में. छः महीने बीत गये, किले में संग्रहीत रसद ख़त्म होने को आई. अब एक ही चारा बचा था, “करो या मरो.” या “घुटने टेको.” आत्मसमर्पण या शत्रु के सामने घुटने टेक देना बहादुर राजपूतों के गौरव लिए अभिशाप तुल्य था, बस एक ही विकल्प बचा था जूझना….. युद्ध करना….. शत्रु का यथा संभव संहार करते हुए वीरगति को पाना. बहुत बड़ी विडंबना थी कि शत्रु के कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. वे न केवल पुरुषों को मारते काटते, नारियों से बलात्कार करते और उन्हें भी मार डालते. यही चिंता समायी थी धर्म परायण सीसोदिया वंश के राजपूतों में.

मेवाड़ियों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया….. किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों, नारियलों एवम् अन्य इंधनों का ढेर लगाया गया….. सारी स्त्रियों ने, रानी से दासी तक,  अपने बच्चों के साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया….सजी हुई चित्ता को घी, तेल और धूप से सींचा गया…. और पलीता लगाया गया. चित्ता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी…… नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी….. अपने पुरुषों को अश्रुपूरित विदाई दे रही थी…. अंत्येष्टि के शोक गीत गाये जा रही थी. अफीम अथवा ऐसे ही किसी अन्य शामक औषधियों के प्रभाव से प्रशांत हुई, महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चित्ता की ओर प्रस्थान किया….. और कूद पड़ी धधकती चित्ता में…. अपने आत्मदाह के लिए…. जौहर के लिए…. देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए. जय एकलिंग, हर हर महादेव के उदघोषों से गगन गुंजरित हो उठा था. आत्माओं का परमात्मा से विलय हो रहा था.

अगस्त २५, १३०३ की भोर थी, आत्मसंयमी दुख-सुख को समान रूप से स्वीकार करने वाला भाव लिए, पुरुष खड़े थे उस हवन कुन्ड के निकट, कोमलता से भगवद गीता के श्लोकों का कोमल स्वर में पाठ करते हुए…..अपनी अंतिम श्रद्धा अर्पित करते हुए…. प्रतीक्षा में कि वह विशाल अग्नि उपशांत हो. पौ फट गयी…..सूरज की लालिमा ताम्रवर्ण लिए आकाश में आच्छादित हुई….. पुरुषों ने केसरिया बाने पहन लिए…. अपने अपने भाल पर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया…. मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा…. दुर्ग के द्वार खोल दिए गये. 'जय एकलिंग….हर हर महादेव ' की हुंकार लगाते रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े शत्रु सेना पर……मरने-मारने का ज़ज्बा था…. आखरी दम तक अपनी तलवारों को शत्रु का रक्त पिलाया…और स्वयं लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये. अल्लाउद्दीन खिलज़ी की जीत उसकी हार थी, क्योंकि उसे रानी पद्मिनी का शरीर हासिल नहीं हुआ, मेवाड़ की पगड़ी उसके कदमों में नहीं गिरी. चातुर्य और सौन्दर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी ने उसे एक बार और मात दे दी थी.
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amar shaheed

Photo: हिन्दुस्तानमे आज हमारी सेना के दो जवानो को गद्दार पाकिस्तान के जवानो ने पीठ के पीछे से वार किया और वो लोग शहीद हुए। मेरे महादेव से उन जवान भाई श्री सुधानकर सिंह और भाई श्री हेमराज के आत्मा को परम सदगति दे यही दुआ हे। और हमारे भ्रष्ट और नमाले नेताओ को मर्दानगी दे और इट का जवाब पत्थर से दे। ताकि हमारे शहीदों जवान को सही रूप में शांति मिले। हमारे नेताओ में मर्दानगी हे तो इनका मुह तोड़ जवाब दे " यही श्रधांजलि हे। : श्री गिरिबापू

हिन्दुस्तान मे आज हमारी सेना के दो जवानो को गद्दार पाकिस्तान के जवानो ने पीठ के पीछे से वार कर  शहीद कर दिया। जवान भाई श्री सुधाकर सिंह और भाई श्री हेमराज के आत्मा को परम सदगति दे यही दुआ हे। और हमारे नेताओ को मर्दानगी दे कि ईंट का जवाब पत्थर से दें ताकि हमारे शहीदों जवान को सही रूप में शांति मिले।
शर्म आनी चाहिए सेकुलरिस्टो को इस चित्र को देखकर ... एक ओर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर शहीद लॉसनायक सुधाकर के बलिदान होने पर शव यात्रा मे स्वयं कंधा दिया, और मीडीया के पूछने पर ज़वाब दिया अब पाक की इस नापाक हारकर पर उसे मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए !

....वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश मे मुख्यमंत्री या कोई भी अधिकारी वीर शहीद लॉसनायक हेमराज की सुध तक नहीं लेने आया । और अखिलेश यादव का भी अभी तक पाकिस्तान पर कोई बयान नहीं ??


Photo: शर्म आनी चाहिए सेकुलरिस्टो को इस चित्र को देखकर ... एक ओर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर शहीद लॉसनायक सुधाकर के बलिदान होने पर शव यात्रा मे स्वयं कंधा दिया, और मीडीया के पूछने पर ज़वाब दिया अब पाक की इस नापाक हारकर पर उसे मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए !

....वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश मे मुख्यमंत्री या कोई भी अधिकारी वीर शहीद लॉसनायक हेमराज की सुध तक नहीं लेने आया । और अखिलेश यादव का भी अभी तक पाकिस्तान पर कोई बयान नहीं ??


peacock

बरसो मेघा बरसो रे

Photo: भक्तो के आठ भाव जो श्री भगवान् को प्रिये है !

१. अहिंसा (तन मन वचनसे न किसी का बुरा चाहना और ना ही करना )२.इन्द्रिये-निग्रेह (इन्द्रियोंको मनमाने विषेयोमें ना जाने देना )३. प्राणिमात्र पर दया (ये संत स्वभाव का भी लक्षण है ! संत हिरदये नवनीत समाना .....दुसरोके दुःख को अपना दुःख समझकर दूर करने की चेष्टा करना )४. शान्ति (किसी भी अवस्थामें चितका छुब्ध न होना)५. शम (मन का वशमें रहना)६.तप (स्वधर्म के पालन के लिये कष्ट सहना )७.ध्यान (अपने आराध्य देव में चित को लगाना )८.सत्य (सत्य तो अपने आपमें प्रगट है जिसे प्रगट करनेके लिये किसी सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती )...श्रीराधेश्याम...हरि हर

sharmnaak

शर्म हमको मगर नहीं आती

Photo: Prince Kumawat हिन्दू हो, कुछ प्रतिकार करो, तुम भारत माँ के क्रंदन का !
यह समय नहीं है, शांति पाठ और गाँधी के अभिनन्दन का !!
यह समय है शस्त्र उठाने का, गद्दारों को समझाने का !
शत्रु पक्ष की धरती पर, फिर शिव तांडव दिखलाने का !!
यह समय है हर एक हिन्दू के, राणा प्रताप बन जाने का !
इस हिन्दुस्थान की धरती पर, फिर भगवा ध्वज फहराने का !!
जब शस्त्रों से परहेज तुम्हे, तोराम-राम क्यों जपते हो !
क्या जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो !!
साभार :- प्रिन्स कुमावत

शर्मनाक :

शर्मनाक :

Photo: क्या स्वतंत्रता के लिए जान की कुर्बानी देने वाले अमर सेनानियों की याद में बनी समाधियों की अब ऐसी ही दुर्दशा होगी? क्या यही हमारी असली स्वतंत्रता है ? आज की यह खबर स्वतंत्रता दिवस के स्वाद को कसैला कर रही है?


इसका जवाब किसके पास मिलेगा?

chitr par kavita: nav geet kahan ja rahe ho --sanjiv

नव गीत:
कहाँ जा रहे हो…
संजीव
*
पाखी समय का
ठिठक पूछता है
कहाँ जा रहे हो?...
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
तूफां में उड़ते पंछी भटककर
लिए  हाथ में हाथ जाते कहाँ हो?
बैठा है कोई खुद में सिमटकर
साथी प्रलय का
सतत जूझता है
सुस्ता रहे हो?...
*
मलय कोई देखे कैसे नयन भर
विलय कोई लेखे कैसे शयन कर
घन श्याम आते न छाते यहाँ हो?
बेकार है कार थमकर, ठिठककर 
साथी 'सलिल' का
नहीं सूझता है
मुस्का रहे हो?...
*