कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

हमने दीपावली मनाई

 II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II 

मूल पाठ-तद्रिन, 

                                          हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल'

 II  ॐ II

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II 

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II

सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II

कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता,  नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II

सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II

भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II

हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II

महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा  सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II

कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II

दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II

जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II

एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II

तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

 II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं  II

तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

*******************************************
आरती क्यों और कैसे?
संजीव 'सलिल'
*

ईश्वर के आव्हान तथा पूजन के पश्चात्
भगवान की आरती, नैवेद्य (भोग) समर्पण तथा अंत में विसर्जन किया जाता है। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है।  आरती करने ही नहीं, इसमें सम्मिलित होंने से भी पुण्य मिलता है। देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। आरती का गायन स्पष्ट, शुद्ध तथा उच्च स्वर से किया जाता है। इस मध्य शंख, मृदंग, ढोल, नगाड़े , घड़ियाल, मंजीरे, मटका आदि मंगल वाद्य बजाकर जयकारा लगाया जाना चाहिए।

आरती हेतु शुभ पात्र में
विषम संख्या (1, 3, 5 या 7) में रुई या कपास से बनी बत्तियां रखकर गाय के दूध से निर्मित शुद्ध घी भरें। दीप-बाती  जलाएं। एक थाली या तश्तरी में अक्षत (चांवल) के दाने रखकर उस पर आरती रखें। आरती का जल, चन्दन, रोली, हल्दी तथा पुष्प से पूजन करें। आरती को तीन या पाँच बार घड़ी के काँटों की दिशा में गोलाकार तथा अर्ध गोलाकार घुमाएँ। आरती गायन पूर्ण होने तक यह क्रम जरी रहे। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। आरती पूर्ण होने पर थाली में अक्षत पर कपूर रखकर जलाएं तथा कपूर से आरती करते हुए मन्त्र पढ़ें:
कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारं। 
सदावसन्तं हृदयारवंदे, भवं भवानी सहितं नमामि।।  
 पांच बत्तियों से आरती को पंच प्रदीप या पंचारती कहते हैं। यह  शरीर के पंच-प्राणों या पञ्च तत्वों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव पंच-प्राणों (पूर्ण चेतना) से ईश्वर को पुकारने का हो। दीप-ज्योति जीवात्मा की प्रतीक है। आरती करते समय ज्योति का बुझना अशुभ, अमंगलसूचक होता है। आरती पूर्ण होने पर घड़ी के काँटों की दिशा में अपने स्थान पट तीन परिक्रमा करते हुए मन्त्र पढ़ें:
यानि कानि च पापानि, जन्मान्तर कृतानि च।
तानि-तानि प्रदक्ष्यंती, प्रदक्षिणां पदे-पदे।। 
अब आरती पर से तीन बार जल घुमाकर पृथ्वी पर छोड़ें। आरती प्रभु की प्रतिमा के समीप लेजाकर दाहिने हाथ से प्रभु को आरती दें। अंत में स्वयं आरती लें तथा सभी उपस्थितों को आरती दें। आरती देने-लेने के लिए दीप-ज्योति के निकट कुछ क्षण हथेली रखकर सिर तथा चेहरे पर फिराएं तथा दंडवत प्रणाम करें। सामान्यतः आरती लेते समय थाली में कुछ धन रखा जाता है जिसे पुरोहित या पुजारी ग्रहण करता है।  भाव यह हो कि दीप की ऊर्जा हमारी अंतरात्मा को जागृत करे तथा ज्योति के प्रकाश से हमारा चेहरा दमकता रहे।   
सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।

कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं।

यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंतिहै कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।

जल-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।
दीपमालिका कल हर दीपक अमल-विमल यश-कीर्ति धवल दे......
                      शक्ति-शारदा-लक्ष्मी मैया, 'सलिल' सौख्य-संतोष नवल दें...






































 

सोमवार, 12 नवंबर 2012

दीवाली के संग : दोहा का रंग संजीव 'सलिल'

 दोहा सलिला:                                                                                          
diwali-puja2.jpg
दीवाली के संग : दोहा का रंग                           
                                                                                 
संजीव 'सलिल'
*
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न  पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
*

यह तन माटी का दिया, भर दे तेल-प्रयास।
'सलिल' प्राण-बाती जला, दस दिश धवल उजास ।।

ज्योति पर्व पर अनंत-अशेष शुभ कामनाएं



रविवार, 11 नवंबर 2012

लैब में शिशु --आरती प्रसाद

विशेष लेख:

लैब में शिशु

-आरती प्रसाद
*
क्या यह संभव है कि कोई लड़की मां बने और कुंवारी भी रहे! क्या?
नहीं?
गलत, यह संभव है।
अब बिना किसी पुरुष के संसर्ग में आये ईसा मसीह को जन्म देने वाली मदर मेरी से संबंधित गुत्थी भी सुलझ सकती है। 
बाल ब्रम्हचारी हनुमान जी के बिना महिला के संपर्क में आये पुत्र होने की कथा सत्य में बदल सकती है।
यह हम नहीं कहते... इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन की छात्र रही भारतीय मूल की आरती प्रसाद कह रही हैं। सहसा कोई इस पर आपको यकीन न हो, उनका दावा है कि यह संभव है।
वर्ष 1970 के दशक में चलिए। याद करिए लेस्ली ब्राउन को. लेस्ली ने आइवीएफ तकनीक से पहले ‘टेस्ट टय़ूब’ बेबी को जन्म दिया था, तो लोग चकित थे। इसे चिकित्सा जगत में क्रांति माना गया. सबने कहा कि अब कोई महिला बांझ नहीं कहलायेगी।

दरअसल, इस तकनीक में महिला के अंडाणु में टेस्ट टय़ूब के जरिये पुरुष के स्वस्थ शुक्राणु डाल कर सामान्य शिशु का जन्म कराया गया था। लेकिन नयी तकनीक में ऐसा नहीं होगा। पुरुष बिना महिला की मदद के पिता बन सकेगा। महिला बिना पुरुष के सहयोग के मां बनेगी. जिस दिन ऐसा हुआ, समझिए सेक्स का खात्मा हो जायेगा।

लंदन के इंपीरियल कॉलेज की छात्र और भारतीय मूल की आरती प्रसाद प्रजनन पर खुल कर बात करती हैं, सेक्स पर नहीं। तकनीक की छात्र आरती ने एक पुस्तक लिखी है। ‘लाइक ए वजिर्न : हाउ साइंस रीडिजाइनिंग द रुल्स ऑफ सेक्स’. इसमें उन्होंने ‘अल्टीमेट सोलो पैरेंट’ की अवधारणा पर जोर दिया है. आरती ने प्रजनन के ऐसे समीकरण पेश किये हैं, जो संभोग और परिवार की परिभाषा ही बदल कर रख देंगे।

आरती कहती हैं कि महिला किसी उम्र में खुद के स्टेम सेल और कृत्रिम वाइ क्रोमोजोम से नया अंडा और शुक्राणु तैयार कर सकेगी, जिससे प्रजनन होगा। महिला या पुरुष के गर्भ में नहीं पलेगा शिशु, कृत्रिम गर्भ में तैयार होगा। इस तरह एक महिला या पुरुष बिना किसी पार्टनर के बच्चे की मां या पिता बन सकेंगे। समलैंगिक पुरुष दोनों के डीएनए को मिला कर बच्च तैयार करवा सकेंगे। आरती कहती हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि भविष्य में ऐसा संभव होगा। हां, अभी यह नहीं कहा जा सकता कि कब?
 
एक दिन आयेगा..

विशेष प्रकार के प्लास्टिक कंटेनर को ‘गर्भ’ के रूप में विकसित किया जायेगा, जिसमें वैसे ही बैक्टीरिया और फ्लुइड होंगे, जो गर्भ में होते हैं। ऑस्ट्रेलिया में इसकी तैयारी चल रही है। एक दिन आयेगा, जब पुरुष बिना महिला साथी की मदद के पिता बन सकेंगे। आरती कहती हैं कि वैज्ञानिक कृत्रिम शुक्राणु तैयार कर चुके हैं, ‘अंडा’ भी जल्द विकसित कर लिया जायेगा।

चूहे पर प्रयोग सफल

आरती कहती हैं कि पशुओं पर इस तकनीक को आजमाया जा चुका है। मादा की अस्थि मज्जा से अंडा का निर्माण संभव हुआ है। वर्ष 2004 में बिना पिता के एक चूहे ‘कगूया’ का जन्म हो चुका है। नर की अस्थि मज्जा से शुक्राणु और अंडाणु तैयार हो सकते हैं, क्योंकि उनमें एक्स और वाइ दोनों क्रोमोजोम होते हैं। मादा में सिर्फ दो एक्स क्रोमोजोम पाये जाते हैं।

सार्क पर भी सफल प्रयोग

वर्ष 2008 में ग्रे नर्स सार्क की प्रजाति को बचाने के लिए कृत्रिम गर्भ तैयार किया गया। हर मादा सार्क में दो गर्भ थे, जिनमें दर्जनों अंडे तैयार किये गये। इनमें से महज दो अंडे बच पाये।
 
जापान और अमेरिका में रिसर्च

जापान और अमेरिका के वैज्ञानिक इंसानों पर प्रयोग कर रहे हैं। वैज्ञानिक हुंग चिंग लियु कहती हैं कि प्रयोगशाला में शिशु तैयार करना उनका अंतिम उद्देश्य है।
 
असर

महिलाओं की लाइफस्टाइल पूरी तरह बदल जायेगी। माता-पिता बनने के समय की चिंता से मुक्ति मिल जायेगी। मातृ सत्तात्मक प्रणाली फिर प्रारंभ हो सकेगी। ऐसी स्थिति में क्या करेंगी खाप पंचायतें? कोई  सन्तान नाजायज नहीं होगी। हो सकता है कि माता पिता अपनी पसंद के गुणों वाले बच्चे प्राप्त कर सकें।
जनसँख्या वृद्धि आज से बहुत ज्यादा हो सकती है।  धर्म परिवर्तन जैसे विवाद ख़त्म ही हो जायेंगे क्योंकि हर धर्म के लोग मनमानी संख्या में अनुयायियों से बच्चे पैदा करवा सकते हैं।

*******

********

कायस्थ सिर्फ जाति नहीं बल्कि पांचवा वर्ण

कायस्थ सिर्फ जाति नहीं बल्कि पांचवा वर्ण है!

कायस्थ समाज की जाति व्यवस्था पर एस ए अस्थाना ने एक अध्ययन किया है. अपने अध्ययन की भूमिका में वे लिखते हैं कि “स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश

तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। अतः हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं, हम बाबू नने के लिए नहीं, हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिए पैदा हुए हैं जिन्होंने हमें जन्म दिया है।”
एक घटना का जिक्र करते हुए अस्थाना अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि एक बार स्वामी विवेकानन्द से भी एक सभा में उनसे उनकी जाति पूछी गयी थी. अपनी जाति अथवा वर्ण के बारे में बोलते हुए विवेकानंद ने कहा था “मैं उस महापुरुष का वंशधर हूँ, जिनके चरण कमलों पर प्रत्येक ब्राह्मण ‘‘यमाय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै नमः’’ का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि प्रदान करता है और जिनके वंशज विशुद्ध रूप से क्षत्रिय हैं। यदि अपनें पुराणों पर विश्वास हो तो, इन समाज सुधारको को जान लेना चाहिए कि मेरी जाति ने पुराने जमानें में अन्य सेवाओं के अतिरिक्त कई शताब्दियों तक आधे भारत पर शासन किया था। यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता का शेष क्या रहेगा ? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, सबसे बड़े इतिहास वेत्ता, सबसे बड़े दार्शनिक, सबसे बड़े लेखक और सबसे बड़े धर्म प्रचारक हुए हैं। मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक से भारत वर्ष को विभूषित किया है।’’
वर्ण व्यवस्था में कायस्थों के स्थान के बारे में विवरण देते हुए वे खुद स्पष्टीकरण देते हुए लिखते हैं कि “अक्सर यह प्रश्न उठता रहता है कि चार वर्णों में क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में कायस्थ किस वर्ण से संबंधित है। स्पष्ट है कि उपरोक्त चारों वर्णों के खाँचे में, कायस्थ कहीं भी फिट नहीं बैठता है। अतः इस पर तरह-तरह की किंवदंतियां उछलती चली आ रही है। उपरोक्त यक्ष प्रश्न “किस वर्ण के कायस्थ” का माकूल जबाब देने का आज समय आ गया है कि सभी चित्रांश बन्धुओं को अपने समाज के बारे में सोचने का अपनी वास्तविक पहचान का ज्ञान होना परम आवश्यक है।”
शिव आसरे अस्थाना ने इस संबंध में जो तथ्य जुटाएं है और अध्ययन किया है वे महत्वपूर्ण हैं. अहिल्या कामधेनु संहिता और पद्मपुराण पाताल खण्ड के श्लोकों और साक्ष्यों से वे साबित करते हैं कि कायस्थ सिर्फ जाति नहीं बल्कि पांचवा वर्ण है. नीचे दिये गये उदाहरण देखिए-

ब्राहस्य मुख मसीद बाहु राजन्यः कृतः।
उरुतदस्य वैश्य, पद्यायागू शूद्रो अजायतः।। (अहिल्या कामधेनु संहिता)
अर्थात् नव निर्मित सृष्टि के उचित प्रबन्ध तथा समाज की सुव्यवस्था के लिए श्री ब्रह्मा जी ने अपनें मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा चरणों से शूद्र उत्पन्न कर वर्ण ‘‘चतुष्टय’’ (चार वर्णों) की स्थापना की। सम्पूर्ण प्राणियों के शुभ-अशुभ कार्यों का लेखा-जोखा रखनें व पाप-पुण्य के अनुसार उनके लिये दण्ड या पुरस्कार निश्चित करने का दायित्ंव श्री ब्रह्मा जी ने श्री धर्मराज को सौंपा। कुछ समय उपरान्त श्री धर्मराज जी ने देखा कि प्रजापति के द्वारा निर्मित विश्व के समस्त प्राणियों का लेखा-जोखा रखना अकेले उनके द्वारा सम्भव नहीं है। अतः धर्मराज जी ने श्री ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि ‘हे देव! आपके द्वारा उत्पन्न प्राणियों का विस्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। अतः मुझे एक सहायक की आवश्यकता है। जिसे प्रदान करनें की कृपा करें।

‘‘अधिकारेषु लोका नां, नियुक्तोहत्व प्रभो।
सहयेन बिना तंत्र स्याम, शक्तः कथत्वहम्।।’’ (अहिल्या कामधेनु संहिता)
श्री धर्मराज जी के निवेदन पर विचार हेतु श्री ब्रह्मा जी पुनः ध्यानस्त हो गये। श्री ब्रह्मा जी एक कल्प तक ध्यान मुद्रा में रहे, योगनिद्रा के अवसान पर कार्तिक शुल्क द्वितीया के शुभ क्षणों में श्री ब्रह्मा जी ने अपने सन्मुख एक श्याम वर्ण, कमल नयन एक पुरूष को देखा, जिसके दाहिने हाथ में लेखनी व पट्टिका तथा बायें हाथ में दवात थी। यही था श्री चित्रगुप्त जी का अवतरण।

‘‘सन्निधौ पुरुषं दृष्टवा, श्याम कमल लोचनम्।
लेखनी पट्टिका हस्त, मसी भाजन संयुक्तम्।।’’ (पद्मपुराण-पाताल खण्ड)
इस दिव्य पुरूष का श्याम वर्णी काया, रत्न जटित मुकुटधारी, चमकीले कमल नयन, तीखी भृकुटी, सिर के पीछे तेजोमय प्रभामंडल, घुघराले बाल, प्रशस्त भाल, चन्द्रमा सदृश्य आभा, शंखाकार ग्रीवा, विशाल भुजाएं व उभरी जांघे तथा व्यक्तित्व में अदम्य साहस व पौरूष झलक रहा था। इस तेजस्वी पुरूष को अपने सन्मुख देख ब्रह्मा जी ने पूछा कि आप कौन है? दिव्य पुरूष ने विनम्रतापूर्वक करबद्ध प्रणाम कर कहा कि आपने समाधि में ध्यानस्त होकर मेरा आह्नवान चिन्तन किया, अतः मैं प्रकट हो गया हूँ। मैं आपका ही मानस पुत्र हूँ। आप स्वयं ही बताये कि मैं कौन हूँ ? कृपया मेरा वर्ण- निरूपण करें तथा स्पष्ट करें कि किस कार्य हेतु आपने मेरा स्मरण किया। इस प्रकार ब्रह्माजी अपने मानस पुत्र को देख कर बहुत हर्षित हुये और कहा कि हे तात! मानव समाज के चारों वर्णों की उत्पत्ति मेरे शरीर के पृथक-पृथक भागों से हुई है, परन्तु तुम्हारी उत्पत्ति मेरी समस्त काया से हुई है इस कारण तुम्हारी जाति ‘‘कायस्थ’’ होगी।

मम् कायात्स मुत्पन्न, स्थितौ कायोऽभवत्त।
कायस्थ इति तस्याथ, नाम चक्रे पितामहा।। (पद्म पुराण पाताल खण्ड)

काया से प्रकट होनें का तात्पर्य यह है कि समस्त ब्रह्म-सृष्टि में श्री चित्रगुप्त जी की अभिव्यक्ति। अपनें कुशल दिव्य कर्मों से तुम ‘‘कायस्थ वंश’’ के संस्थापक होंगे। तुम्हें समस्त प्राणि मात्र की देह में अर्न्तयामी रूप से स्थित रहना होगा। जिससे उनकी आंतरिक मनोभावनाएं, विचार व कर्म को समझने में सुविधा हो।
‘‘कायेषु तिष्ठतति-कायेषु सर्वभूत शरीरेषु।
अन्तर्यामी यथा निष्ठतीत।।’’ (पद्य पुराण पाताल खण्ड)

ब्रह्माजी ने नवजात पुत्र को यह भी स्पष्ट किया कि ‘‘आप की उत्पत्ति हेतु मैने अपने चित्त को एकाग्र कर पूर्ण ध्यान में गुप्त किया था अतः आपका नाम ‘‘चित्रगुप्त’’ ही उपयुक्त होगा। आपका वास नगर कोट में रहेगा और आप चण्डी के उपासक होंगे।
‘‘चित्रं वचो मायागत्यं, चित्रगुप्त स्मृतो गुरूवेः।
सगत्वा कोट नगर, चण्डी भजन तत्परः।।’’ (पद्य पुराण पाताल खण्ड)
अपने इन उदाहरणों के जरिए वे साबित करते हैं कि कायस्थ पांचवा वर्ण है. अगर यह सच है तो कम से कम यह किताब भारत की वर्ण व्यवस्था को बड़ी चुनौती देती है. अभी तक की स्थापित मान्यताओं के उलट यह एक पांचवे वर्ण को सामने लाती है जिसका उल्लेख खुद स्वामी विवेकानन्द ने भी किया है. शिव आसरे अस्थाना मानते हैं कि वे खुद जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करते हैं लेकिन इसकी उपस्थिति और प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता.
लेकिन उनके इस अध्ययन से वह सवाल और जटिल हो जाता है जो वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में घालमेल करता है. कायस्थ वर्ण का अस्तित्व कोई आज का नहीं है. यह हजारों साल पुराना है. उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार से लेकर कश्मीर तक किसी न किसी काल में कायस्थ राजा रहे हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि अयोध्या में रघुवंश से पहले कायस्थों का ही शासन था. अगर पुरातन भारत में इस जाति/वर्ण का स्वर्णिम इतिहास रहा है तो आधुनिक भारत में डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, सुभाष चंद्र बोस और विवेकानंद इसी वर्ण या जाति व्यवस्था से आते हैं. लेकिन यहां सवाल इन महापुरुषों का जाति निर्धारण करना नहीं है बल्कि उस चुनौती को समझना है जो जाति और वर्ण का घालमेल करता है. जाति के नाम पर नाक भौं सिकोड़नेवाले लोग भले ही तात्विक विवेचन से पहले ही अपना निर्णय कर लें लेकिन शिव आसरे अस्थाना का यह काम निश्चित रूप से भारतीय जाति व्यवस्था को समझने के लिए लिहाज से एक बेहतरीन प्रयास है....

क्या बात कही है........
http://www.facebook.com/KaYasthaAreBestinEvEryFieLd
जिन साथियों ने अभी तक मंच के पेज को लाइक नहीं किया है वो कृपा करके निम्न लिंक को क्लिक करे ओर पेज खुलने पर लाइक करके मंच से जुड़े – ये मेरा विनम्र अनुरोध है@!
http://www.facebook.com/KaYasthaAreBestinEvEryFieLd

kayastha activities



Photo

PhotoPhoto: 'सुविचार':-ऋद्धि-गौरव-धन को अपना मानने से आदमी बोझिल बनता है और ऋद्धि लाघव से वह हल्का बनता है |यानी जब धन का संग्रह सीमित क्षेत्र में होता है,तब वातावरण में दबाव,तनाव और भार की अनुभूति होती है| जब धन का अवगाह-क्षेत्र व्यापक हो जाता है, तब वातावरण दबाव,तनाव और भार की अनुभूति से शून्य हो जाता है|Photo: भोपाल महानगर के समस्त कायस्थ संगठनो के सहयोग से चित्रांश प्रतिभाओं का सम्मान समारोह १८ नवम्बर २०१२ को मानस भवन, भोपाल में आयोजित किया जा रहा है, अगर आप भी किसी प्रतिभा के धनी है या आप अपने किसी ऐसे बाल, युवा या वरिष्ट चित्रांश बंधुओं को जानते है जो प्रतिभाशाली हो, तो आप ऐसी प्रतिभाओं को सम्मान हेतु संस्था से अवश्य अवगत करायें, धन्यवादPhotoPhoto

शनिवार, 10 नवंबर 2012

एका: सर्व कायस्थ एकता मंच

एका: सर्व कायस्थ एकता मंच बैठक दिनांक 8.11.12 जबलपुर



बाएं से सर्व श्री / श्रीमती रजनी जी, रत्ना जी, आदर्श जी, सलिल जी, सचिन जी, देवेन्द्र जी।

शिशु गीत सलिला : 1 संजीव 'सलिल'

शिशु गीत सलिला : १ 
संजीव 'सलिल'
*
१. श्री गणेश
श्री गणेश की बोलो जय,
पाठ पढ़ो होकर निर्भय।
अगर सफलता पाना है-
काम करो होकर तन्मय।।
२. सरस्वती
माँ सरस्वती देतीं ज्ञान,
ललित कलाओं की हैं खान।
जो जमकर अभ्यास करे-
वही सफल हो, पा वरदान।। 
३. भगवान
सुन्दर लगते हैं भगवान,
सब करते उनका गुणगान।
जो करता जी भर मेहनत-
उसको देते हैं वरदान।।
*
४. देवी
देवी माँ जैसी लगती,
काम न लेकिन कुछ करती।
भोग लगा हम खा जाते-
कभी नहीं गुस्सा करती।।
*
५. धरती माता धरती सबकी माता है,
सबका इससे नाता है।
जगकर सुबह प्रणाम करो-
फिर उठ बाकी काम करो।।
*
६. भारत माता 
सजा शीश पर मुकुट हिमालय,
नदियाँ जिसकी करधन।
सागर चरण पखारे निश-दिन-
भारत माता पावन।
*
७. हिंदी माता
हिंदी भाषा माता है,
इससे सबका नाता है।
सरल, सहज मन भाती है-
जो पढ़ता मुस्काता है।।
*
८. गौ माता
देती दूध हमें गौ माता,
घास-फूस खाती है।
बछड़े बैल बनें हल खीचें
खेती हो पाती है।
गोबर से कीड़े मरते हैं,
मूत्र रोग हरता है,
अंग-अंग उपयोगी
आता काम नहीं फिकता है।
गौ माता को कर प्रणाम
सुख पाता है इंसान।
बन गोपाल चराते थे गौ
धरती पर भगवान।।
*
९. माँ -१  माँ ममता की मूरत है,
देवी जैसी सूरत है।
थपकी देती, गाती है,
हँसकर गले लगाती है।
लोरी रोज सुनाती है,
सबसे ज्यादा भाती है।।
*

१०. माँ -२ माँ हम सबको प्यार करे,
सब पर जान निसार करे।
माँ बिन घर सूना लगता-
हर पल सबका ध्यान धरे।।
*

हिंदी सीखें: अर्थवाही शब्द रचना डॉ. मधुसूदन

https://mail-attachment.googleusercontent.com/attachment/u/0/?ui=2&ik=dad2fa7c6e&view=att&th=13ae842f42f275d9&attid=0.2&disp=inline&safe=1&zw&saduie=AG9B_P8iolpeP3f4iPAHowfQMMHF&sadet=1352522475837&sads=R3pw8gaUBXJO7yzeozB3tHqQ2ic
हिंदी सीखें:                                   अर्थवाहीशब्द रचना
डॉ. मधुसूदन
*
 सूचना: एकाग्रता बनाए रखे, और कुछ समझते समझते, धीरे-धीरे पढें, मैं मेरी ओर से पूरा प्रयास करूंगा, विषय को सरल बनाने के लिए। धन्यवाद।

(१) अर्थवाही भारतीय शब्द
तेल शब्द कहांसे आया? तो पढ़ा हुआ स्मरण है, कि तेल शब्द का मूल तिलहै। अब तिल को निचोड़ने से जो द्रव निकला उसे 'तैल' कहा गया। यह प्रत्ययों के नियमाधीन बनता है। जैसे मिथिला से मैथिल, और फिर मैथिली, विदर्भ से बना वैदर्भ, और फिर वैदर्भी तो उसी प्रकार तिल से बना हुआ इस अर्थ में तैल कहा गया। मूलतः तिल से निचोड़कर निकला इसलिए, उसे तैल कहा, फिर हिन्दी में तैल से तेल हो गया, बेचनेवाला तेली हो गया। इस तेल का अर्थ विस्तार भी हुआ, और आज सरसों, नारियल, अरे मिट्टी का भी तेल बन गया।

हाथ को करभी कहा जाता है, क्यों कि हाथों से काम करतेहैं। पैरों को चरण, क्यों कि पैरों से विचरण किया जाता है। आंखों को नयन’, इसी लिए, कि वे हमें गन्तव्य की ओर (नयन करते) ले जाते हैं। ऐसे ऐसे हमारे शब्द बनते चले जाते हैं। यास्क मुनि निरुक्त लिख गए हमारे लिए।

(२) शब्द कलेवर में अर्थ
ऐसे, कुछ परम्परा गत शब्दों के उदाहरणों से, शब्दों के कलेवर में कैसे अर्थ भरा गया है, यह विशद करना चाहता हूँ।  शब्द अपने गठन में अपना अर्थ ढोते हुए चलता है, या अर्थ वहन कर चलता है। इस लिए हमारी बहुतेरी शब्द रचना प्रमुखतः अर्थवाही (अर्थ ढोनेवाली) है। जब शब्द ही अर्थवाही, (अर्थ-सूचक) हो, तो उसका अर्थ शब्द के उच्चारण से ही प्रकट हो जाता है। इस कारण, पारिभाषिक शब्दों की व्याख्याओं को रटना नहीं पड़ता और देवनागरी के कारण स्पेलिंग भी रटना नहीं पड़ता।

(३) लेखक की समस्या
कठिनाई यह है, कि जिन उदाहरणों द्वारा, समझाने का प्रयास होगा, उन्हें समझने में भी कुछ शुद्ध हिन्दी या संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है। स्वतंत्रता के बाद संस्कृत को (और हिन्दी) को भी बढ़ावा देना तो दूर, उसकी घोर उपेक्षा ही हुयी, इसी कारण आप पाठकॊं को भी मेरी बात, स्वीकार करने में शायद कठिनाई हो सकती है। फिर भी इस विषय पर लिखने के अतिरिक्त कोई और उपाय नहीं। अतः एकाग्रता बनाए रखे, और कुछ समझने के लिए धीरे-धीरे पढ़ें, मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करूंगा, विषय को सरल बनाने के लिए। इस लेख में कुछ परिचित, और प्रति दिन बोले जाने वाले शब्दों के उदाहरण लेता हूँ। पारिभाषिक शब्दों के उदाहरण, कभी आगे लेख में दिए जा सकते हैं।

(४) नदी, की शब्दार्थ वहन की शक्ति
नदी, सरिता, तरंगिणी सारे जल प्रवाह के ही नाम है। नदी का बीज धातु नद है। संस्कृत में, ”या नादति सा नदीऐसी व्याख्या करेंगे। नाद का अर्थ, है ध्वनि या गर्जना। यहां अर्थ हुआ, जो प्रवाह कल कल छल छल नाद करता हुआ बहता है, उसे नदी कहा जाएगा।

नदी ऐसा नाद किस कारण करती है? भूगोल में आप ने पढ़ा होगा, कि जब एक प्रवाह पर्वत की ऊँचाई से गिरता है, तो अल्हड़ बालिका की भाँति, शिलाओं पर टकराते-टकराते एक कर्ण मधुर नाद करता हुआ, उछल -कूद करते नीचे उतरता है। इस कर्ण मधुर गूँज को ही नाद संज्ञा दी गयी है। और ऐसी ध्वनि करते करते जो प्रवाह बहता है, उसे ही नदी कहा जाता है: 'या नादयति सा नदी।' -जो नाद करती है, वह नदी है। अतः नदी शब्द के अंतर्गत नाद अक्षर जुड़े होना ही उसका अर्थ वहन माना जा सकता है। इसे ही शब्दार्थ वहन की शक्ति कहा गया है। तो बंधुओं नदी, जल-वहन ही नहीं पर अपना अर्थ भी वहन कर रही है। अर्थ को भी ढो रही है। यह हमारी देव वाणी संस्कृत का चमत्कार है। अब यदि आप पूछेंगे, कि नदी को सरिता क्यों कहा जाता है?

(५) सरिता
सरिता का शब्द बीज धातु 'सृ' है। अब जब ऊपरी नदी का जल प्रवाह पहाड़ों से समतल भूमि पर उतर आता है, तो ढलान घटने के कारण, उसकी गति धीमी होती जाती है, और जब और भूमि सपाट होने लगती है, तो, बहाव की गति और धीमी हो जाती है, तो वह प्रवाह सरने लगता है, जैसे कोई सर्प सर रहा है तो अब उसे नदी नहीं सरिता नाम से जानेंगे और संस्कृत में व्याख्या करेंगे, ”या सरति सा सरिता। हिन्दी में, जो सरते-सरते (सरकते-सरकते) बहती है, वह सरिता है। तो पाठकों, बोलचाल की भाषा में हम सरिता और नदी में भेद नहीं करते पर शब्द बीज दोनों के अलग हैं। इसलिए वास्तव में अर्थ भी अलग है।

(६) तरंगिणी
वैसे तथाकथित नदी को तरंगिणी भी कहा जाता है। किस नदी को तरंगिणी कहा जाएगा?  लहरों को, आप जानते होंगे, तरंग भी कहते हैं। 'तरंग' शब्द भी अपना तैरने का अर्थ साथ लेकर ही है। जो जल-पृष्ठ पर तैरता है वह तरंग है। यह 'तृ' बीज-धातु से निकला हुआ शब्द है: 'यः तरति सः तरंगः' अर्थ होगा, जिस नदी पर लहरें नाच रही है, उसे तरंगिणी कहा जाएगा। यह सारे शब्द, तरंग, तरंगिणी, तारक, तरणी, अवतार 'तॄ' धातु से निकले हुए हैं।

निघंटुमें (नदी) के लिए ३७ नाम गिनाए गए हैं।
निघंटु के पश्चात भी पाणिनीय विधि से और भी नाम है। निघंटु वेदों के शब्दों का संग्रह है। उसके शब्दों की व्युत्पत्तियों का शोध करने वाले ग्रन्थों को निरुक्त कहते हैं। यास्क मुनि ने अतीव तर्क शुद्ध निरुक्त लिखा है।

(७) अर्थ परिवर्तन
उक्त उदाहरणों से निष्कर्ष निकलता है कि अर्थ में परिवर्तन होता रहता है किन्तु यह परिवर्तन की प्रक्रिया सर्वथा ऊटपटांग नहीं होती। अर्थ विस्तार एक प्रकार की प्रक्रिया है। जो तिल से तेल बनने की प्रक्रिया में दर्शाई गयी है और भी बहुत उदाहरण है। कुछ उदाहरण संक्षेप में प्रस्तुत करता हूँ।

(८)प्रवीण
अब, प्रवीण शब्द का विश्लेषण करते हैं। शब्द को देखने से पता चलता है, कि, यह शब्द वीणा शब्द के अंश 'वीण' के साथ 'प्र' उपसर्ग जोड़कर बना है। प्र+वीण=प्रवीण। संस्कृत में कहेंगे,–>’प्रकृष्टो वीणायाम्‌’, अर्थ हुआ, 'वीणा बजाने में कुशल व्यक्ति' इस प्रवीण शब्द का अर्थ विस्तार हुआ, और किसी भी कला, शास्त्र, या काम में निपुण व्यक्ति को, प्रवीण कहा जाने लगा कोई झाड़ू देने में प्रवीण कोई भोजन पकाने में प्रवीण, कोई व्यापार में प्रवीण। चाहे इन लोगों ने कभी वीणा को छुआ तक ना होफिर भी वे प्रवीण कहाने लगे।

(९) कुशल
ऐसा ही दूसरा अर्थ विस्तृत शब्द हैं, कुशल। कुशल शब्द का अर्थ था कुश लानेवालाकुश उखाड़ने में सतर्कता से काम लेना पड़ता है। एक तो उसकी सही पहचान करना, और दूसरे उखाड़ते समय सावधानी बरतना, नहीं तो उसके नुकीले अग्रभाग से उँगलियों के छिद जाने का भय बना रहता है। आरम्भ में 'कुशल' केवल कुश सावधानी से उखाड़लाने की चतुराई का वाचक था पर पश्चात किसी भी प्रकार की चतुराई का वाचक बन गया। अब किसी भी काम में चतुर व्यक्ति को कुशल कहा जाता है। कुश, कुशल, कुशलता, कौशल्य इसी जुडे हुए शब्द है।

(१०) कुशाग्रता
इसी कुश से जुडा हुआ शब्द है कुशाग्रता। कुश का अग्र भाग नुकीला, पैना होता है। ऐसी पैनी बुद्धि को कुशाग्रता और ऐसे व्यक्ति को कुशाग्र बुद्धिवाला कहा जाएगा।

(११) गोरज मूहूर्त
मुझे और एक शब्द जो प्रिय है, वह है गोरज मुहूर्त। सन्ध्या का समय है। गांव के बाहर दूर गौएंबछड़े इत्यादि चराके वापस लाए जा रहें हैं और गौओं के चरणों तले से रज-धूलि उड़ रही है। इस रजके उड़ने की जो समय घटिका है, उसका हमारे जिन पुरखों ने 'गोरज-मूहूर्त' नामकरण किया। वे आज के किसी भी कवि से कम नहीं होंगे। मुझे तो लिखते-लिखते भी भावुकता से हृदय गदगद हो जाता है।

(७)संध्या, या संध्याकाल।
शब्द ही क्या-क्या भाव जगाता है?  दिवस का अन्त और रात्रि का आगमन। रात्रि-दिवस का मिलन या सन्धि काल, सन्ध्या कहते ही अर्थ प्रकट।

(१२) मनः अस्ति स मानवः
मानव शब्द की व्याख्या है, 'वही मानव है, जिसे मन है'। मन विचार करने के लिए होता है। संस्कृत व्याख्या होगी- 'मनः अस्ति स मानवः'। आप जानते होंगे कि, मन होने के कारण मानव विचार कर सकता है। अन्य प्राणी विचार करने में असमर्थ है, वे जन्म-जात (Instinct) वृत्ति लेकर जन्म लेते हैं।
एक दूसरी भी व्याख्या दी जाती है, मानव की। वह है मनु के पुत्र के नाते ,मानव। जैसे पांडु के पुत्र पांडव, कुरू के कौरव, रघु के पुत्र सारे राघव। ठीक वैसे ही मनु के पुत्र मानव कहाए


(१३) उधार शब्द क्यों नहीं?
जो शब्द अंग्रेज़ी से, उधार लिए जाते हैं, उन में यह गुण होता नहीं है, और होता भी है, तो उसका संदर्भ परदेशी लातिनी या यूनानी होने से हमारी भाषाओं में वैसा शब्द लड़खड़ाते चलता है। पता चल जाता है, कि शब्द लंगड़ा रहा है, उच्चारण लड़खड़ा रहा है। दूसरा कारण, उस शब्द पर हमारे उपसर्ग, प्रत्यय, समास, सन्धि इत्यादिका वृक्ष (संदर्भ: शब्द वृक्ष) खड़ा नहीं किया जा सकता। शब्द अकेला ही स्वीकार कर के, स्पेलिंग और व्याख्या भी रटनी पड़ती है। शब्द अर्थवाही नहीं होता।

(१४) व्यक्ति (अव्यक्त व्यक्त व्यक्ति )
उसी प्रकार अन्य शब्द व्यक्ति है, परमात्मा की उत्तम कृति जहाँ व्यक्त होती है, वह व्यक्ति है। जन्म के पहले हम अव्यक्त थे, जन्मे तो व्यक्त हुए, और मृत्यु के बाद फिर से अव्यक्त में विलीन हो जाएंगे। इतना बडा सत्य जब हम किसी को 'व्यक्ति' कहते हैं, तो व्यक्त करते हैं। अंग्रेज़ी में जब हम इसका अनुवाद Individual करते हैं, तो क्या यह अर्थ व्यक्त होता है? नहीं, नहीं।
ऐसे बहुत सारे उदाहरण दिए जा सकते हैं।

(१५) वृक्ष
वृक्ष को वृक्ष क्यों कहते हैं? 'वृक्ष्‌ वृक्षते'। वृक्ष धातु बीज का अर्थ होता है, वेष्टित करना, आवरित करना, आवरण प्रदान करना। तो अर्थ हुआ जो आवरण करते हैं, वे वृक्षहै। आवरण के कारण छाया भी देते हैं। छाया देने का अर्थ वृक्ष के साथ जुड़ा हुआ है।

(१६) भारतीय शब्द-व्युत्पत्ति
भारतीय शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर रचा जाता है। व्युत्पत्ति का अर्थ है 'विशेष उत्पत्ति'।
अंग्रेज़ी शब्दों की Etymology होती है। Etymology का अर्थ होता है, शब्द का प्रवास ढूँढना। शब्द किस भाषा में जन्मा, वहां से और किन-किन भाषाओं में गया, और अंत में अंग्रेज़ी में कैसे आया। उसे आप शब्द-प्रवास कह सकते हैं।

(१७) गुणवाचक संस्कृत शब्द
संस्कृत में , गुणवाचक अर्थ भरकर शब्द रचने की परम्परा है। लातिनी की परम्परा नहीं है, ऐसा नहीं, पर हमारी परम्परा बहुत ही समृद्ध है और हमारे लिए लातिनी परम्परा का उपयोग नहीं, जब तक हम कुछ लातिनी भी न सीख ले। इससे उलटे संस्कृत परम्परा है।आप जैसे वस्तुओं के गुण वर्णित करेंगे, वैसा शब्द संस्कृत आपको देने में समर्थ है। आपको केवल गुण दर्शाने होंगे। संस्कृत शब्द गुण-वाचक, अर्थ-वाचक, अर्थ-बोधक, अर्थ-वाही होता है।

(१८) अंग्रेज़ी का शब्द
अंग्रेज़ी का शब्द किसी वस्तु पर आवश्यकता पड़ने पर आरोपित किया जाता है। अंग्रेज़ी शब्द का इतिहास ढूँढा जाता है, कि किस भाषासे वह लिया गया है? संस्कृत शब्द मूलतः गुणवाचक होता है। अपने गुणों को उसके अर्थ को साथ वहन करता है। अंग्रेज़ी ने कम से कम पचास भाषाओं से शब्द लिए, इस लिए उसकी खिचड़ी बनी हुयी है। उसके उच्चारण का भी कोई एक सूत्रता नहीं, नियम नहीं। इस विषय में कभी हमारे अंग्रेज़ी के दीवानों ने सोचा है?
___________________________-


arthwahi-term-composition-dr-mudan

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

Blogger पर Content Slider जोड़ना एकदम सरल है

0 Cmt and 0 Rct


आशा करता हूँ कि आपको पिछला HTML5 स्लाइडर (Slider) पसंद आया होगा। जैसा कि मैंने कहा था कि तरह-तरह के सरल स्लाइडर (Slider) आपके लिए तकनीक दृष्टा पर समय-समय पर दिये जायेंगे ताकि आप अपने ब्लॉग को सुंदर बना सकें और अपने ब्लॉग पर चुनिंदा पोस्टों की ब्लॉग पर नुमाइश कर सकें। मैं जो स्लाइडर (Slider) आपके लिए लाया हूँ उसको कंटेंट स्लाइडर (Content Slider) भी कहा जाता है जिसमें आप एक फोटो, पोस्ट का शीर्षक और पोस्ट का संक्षिप्त विवरण डाल सकते हैं। नीचे दिया गया चित्र कंटेंट स्लाइडर (Content Slider) कैसा दिखता है उसका प्रारूप है।

Content Slider Preview
Content Slider Preview

Sections of Content Slider
Sections of Content Slider

विशेषताएँ: Features
  1. इस स्लाइडर (Slider) में जोड़े गये पोस्ट शीर्षकRead More पर क्लिक करके पाठक आपकी पोस्ट (Post) तक पहुँच सकते हैं।
  2. इसके अतिरिक्त स्लाइडर से जोड़ी गयी फोटो एक निश्चित आकार (Fixed Sized) में रहती है जिससे आपके द्वारा प्रयोग की गयी फोटो के छोटे व बड़े आकार का अधिक महत्व नहीं रह जाता है।

See Slider Demo

कंटेंट स्लाइडर को ब्लॉग पर कैसे जोड़ें? | How to add Content Slider on Blogger


नोट:
1. किसी भी परिवर्तन से पूर्व टेम्प्लेट (Template) का बैकअप (Backup) ज़रूर ले लीजिए| कैसे? यह जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
2. ब्लॉगर टेम्पलेट (Blogger template) में बदलाव की अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।

नीचे दिये सभी चरण (Steps) पूरे कीजिए -

1- Dashboard ›› Blog's Template ›› Edit HTML ›› Proceed ›› Search for ]]></b:skin>

2- अब नीचे दिया गया CSS CODE इसके ऊपर पेस्ट कर दीजिए

#feature{ background:#f4f4f1;  width:525px;  height:280px;  padding:10px;  margin:0 auto 20px}
.slider{ margin:0;  padding:0}
.sliderwrapper{ background:#fff;  position:relative;  overflow:hidden;  width:100%;  height:250px}
.thumbnailz{ float:left;  margin:0;  padding:10px}
.thumbnailz img{ width:250px !important;  height:230px !important}
.contentdiv{ height:250px !important}
.pagination{ width:510px;  text-align:right;  background:#f4f4f1;  padding:0 0 0 10px;  height:20px;  margin-top:10px}
.pagination a{ padding:2px 7px;  text-decoration:none;  color:#fff;  background:#D04528}
.pagination a:hover, .pagination a.selected{ background:#fff;  color:#444}
.desc{ overflow:hidden;  padding:5px 10px 10px 0;  margin:0}
.desc p{ margin:10px 0 0 0;  padding:0}
.desc h2 a{ color:#D04528;  font-size:24px}

3- इसके बाद टेम्पलेट में </body> Tag की खोज कीजिए और नीचे दी गयी जावा स्क्रिप्ट (JS) इसके ऊपर पेस्ट कर दीजिए

<script src='//ajax.googleapis.com/ajax/libs/jquery/1.8.2/jquery.min.js'/>
<script src='//techprevue.googlecode.com/files/contentslider.js'/>
<script>
featuredcontentslider.init({
id: &quot;slider1&quot;, //id of main slider DIV
contentsource: [&quot;inline&quot;, &quot;&quot;], //Valid values: [&quot;inline&quot;, &quot;&quot;] or [&quot;ajax&quot;, &quot;path_to_file&quot;]
toc: &quot;#increment&quot;, //Valid values: &quot;#increment&quot;, &quot;markup&quot;, [&quot;label1&quot;, &quot;label2&quot;, etc]
nextprev: [&quot;Previous&quot;, &quot;Next&quot;], //labels for &quot;prev&quot; and &quot;next&quot; links. Set to &quot;&quot; to hide.
enablefade: [true, 0.5], //[true/false, fadedegree]
autorotate: [true, 6000], //[true/false, pausetime]
onChange: function(previndex, curindex){ //event handler fired whenever script changes slide
//previndex holds index of last slide viewed b4 current (1=1st slide, 2nd=2nd etc)
//curindex holds index of currently shown slide (1=1st slide, 2nd=2nd etc)
}
})
</script>

4- सभी परिवर्तन सावधानी पूर्वक पूरे कर लेने के बाद टेम्पलेट को SAVE कर दीजिए

5- अब आपको लेआउट (Layout) में जाकर एक HTML/Javascript Gadget जोड़ना है इसके लिए Add a Gadget पर क्लिक कीजिए
[Dashboard ›› Blog's Layout ›› Add a Gadget ›› HTML/Javascript Gadget]

6- इस गैजेट (Gadget) में आपको नीचे दिया कोड पेस्ट करके गैजेट को SAVE कर दीजिए
<div id="feature">
        <div class="sliderwrapper" id="slider1">
            <!-- Begin of Content Slider 1 -->
            <div class="contentdiv">
          <div class="thumbnailz">
       <img alt="ALT_IMG" src="http://i.minus.com/ivTnPCT8qUGvT.jpg" />
                </div>    
                <div class="desc">
       <h2><a href="#Post_Link_1">Post Title 1</a></h2>
       <p>Short Description about post 1 in 100 words</p>
                                     <a style='text-align:right;' href="#Post_Link_1">Read More...</a>
  </div>
            </div>
            <!-- End of Content Slider 1 -->

            <!-- Begin of Content Slider 2 -->
            <div class="contentdiv">
          <div class="thumbnailz">
       <img alt="ALT_IMG" src="http://i.minus.com/i7oMaU7tRPsxV.jpg" />
                </div>    
                <div class="desc">
       <h2><a href="#Post_Link_2">Post Title 2</a></h2>
       <p>Short Description about post 2 in 100 words</p>
                                     <a style='text-align:right;' href="#Post_Link_2">Read More...</a>
  </div>
            </div>
            <!-- End of Content Slider 2 -->

            <!-- Begin of Content Slider 3 -->
            <div class="contentdiv">
          <div class="thumbnailz">
       <img alt="ALT_IMG" src="http://i.minus.com/iAlUYKB0Cg4yZ.jpg" />
                </div>    
                <div class="desc">
       <h2><a href="#Post_Link_3">Post Title 3</a></h2>
       <p>Short Description about post 3 in 100 words</p>
                                     <a style='text-align:right;' href="#Post_Link_3">Read More...</a>
  </div>
            </div>
            <!-- End of Content Slider 3 -->

            <!-- Begin of Content Slider 4 -->
            <div class="contentdiv">
          <div class="thumbnailz">
       <img alt="ALT_IMG" src="http://i.minus.com/iuxI5V15twm0B.jpg" />
                </div>    
                <div class="desc">
       <h2><a href="#Post_Link_4">Post Title 4</a></h2>
       <p>Short Description about post 4 in 100 words</p>
                                     <a style='text-align:right;' href="#Post_Link_4">Read More...</a>
  </div>
            </div>
            <!-- End of Content Slider 4 -->

       </div>
         <div class="pagination" id="paginate-slider1"/>
    </div>
</div>

इस गैजेट में जोड़ा जाने वाला कोड स्लाइडर कंटेंट (Slider Content) है जिसे आपको अपने अनुसार बदलना होगा। मतलब ये है कि यही वो कोड है जिसमें आपको फोटो, पोस्ट शीर्षक और संक्षिप्त विवरण जोड़ना है।

यह परिवर्तन कैसे किये जायें इसके लिए नीचे दिये उदाहरण कोड को समझें। आप इस स्लाइडर में कितनी भी स्लाइड जोड़ सकते हैं किंतु ब्लॉग को धीमा होने से रोकने के लिए अधिकतम 5 से 10 स्लाइडर (5 to 10 Slides) ही जोड़ें।

<!-- Begin of Content Slider 1 -->
            <div class="contentdiv">
          <div class="thumbnailz">
       <img alt="ALT_IMG" src="http://i.minus.com/ivTnPCT8qUGvT.jpg" />
                </div>    
                <div class="desc">
       <h2><a href="#Post_Link_1">Post Title 1</a></h2>
       <p>Short Description about post 1 in 100 words</p>
                                     <a href="#Post_Link_1">Read More...</a>
  </div>
            </div>
            <!-- End of Content Slider 1 -->

ऊपर दिया कोड स्लाइडर की एक स्लाइड (1 Slide) का है। इसमें 4 भाग (Part) हैं जिन्हें आपको बदलना है।

1. http://i.minus.com/ivTnPCT8qUGvT.jpg ›› यह उदाहरण इमेज लिंक है
2. #Post_Link_1 ›› इसे आपको पोस्ट लिंक से बदलना है
3. Post Title 1 ›› इसे आपको पोस्ट शीर्षक से बदलना है
4. Short Description about post 1 in 100 words ›› इसकी जगह आप लगभग 100 शब्दों में पोस्ट का संक्षिप्त विवरण दें

इसी प्रकार बाक़ी स्लाइडस्‌ (Remaining Slides) के लिए कोड बदलकर आप अपना स्लाइडर तैयार कर सकते हैं। मेरे द्वारा दिए गये स्लाइडर में 4 स्लाइडस्‌ (Slides) हैं आप इसमें और भी स्लाइडस्‌ जोड़ सकते हैं।

आशा करता हूँ कि आप इस स्लाइडर को अपने ब्लॉग पर जोड़ने में सफल हो जायेंगे। पोस्ट पसंद आये तो फेसबुक पेज अवश्य [LIKE] करें।

सोमवार, 5 नवंबर 2012

कविता: दीप्ति शर्मा

कविता: 



Deepti Sharma की प्रोफाइल फोटो
 
दीप्ति शर्मा

*
अक्सर सवाल करती हूँ
उन टँगी तस्वीरों से
क्या वो बोलती हैं??
नहीं ना !!
फिर क्यों एक टक
यूँ मौन रह देखतीं हैं मुझे
कि जैसे जानती हैं
हर एक रहस्य जो कैद है
मन के अँधेरे खँड़रों में
क्या जवाब दे सकती हैं
मेरी उलझनों का
कुछ उड़ते हुए
असहाय सवालों का
जो मौन में दबा रखे हैं
शायद कहीं भीतर ।
©