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रविवार, 29 जनवरी 2012

बासंती दोहा गीत... फिर आया ऋतुराज बसंत --संजीव 'सलिल'

बासंती दोहा गीत... 

फिर आया ऋतुराज बसंत 

--संजीव 'सलिल'

बासंती दोहा गीत...
फिर आया ऋतुराज बसंत
संजीव 'सलिल' 
फिर आया ऋतुराज बसंत,
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
*' 
आम्र-मंजरी मोहती, 
गौरा-बौरा मुग्ध.
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
*
कुहू-कुहू की टेर सुन,
शुक भरमाया खूब. 
मिली लजाई सारिका ,
प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
भोर सुनहरी गुनगुनी,
निखरी-बिखरी धूप.                                शयन कक्ष में देख चुप- 
हुए भामिनी-भूप...
'सलिल' वरे अद्वैत जग,
नहीं द्वैत में तंत.....
*****

शनिवार, 28 जनवरी 2012

दोहा सलिला : दोहा संग मुहावरा-२ --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा संग मुहावरा-२
संजीव 'सलिल'
*
'अंकुश रखना' सीख ले, मतदाता यदि आज.
नेता-अफसर करेंगे, जल्दी उनके काज.१२.
*
'अपने मुँह बनते मियाँ मिट्ठू' नाहक आप.
'बात बने' जब गैर भी 'करें नाम का जाप'.१३.
*
खुद ही अपने पैर पर, रहे कुल्हाडी मार.
जब छलते हैं किसी को, जतला झूठा प्यार.१४.
*
'अपना गला फँसा लिया', कर उन पर विश्वास.
जो न सगे निज बाप के, था न तनिक आभास.१५.
*
'अंधे को दीपक दिखा', बारें नाहक तेल.
हाथ पकड़ पथ दें दिखा, तभी हो सके मेल.१६.
*
कर 'अंगद के पैर' सी, कोशिश- ले परिणाम.
व्यर्थ नहीं करना सलिल, 'आधे मन से काम'.१७.
*
नहीं 'अँगूठा दिखाना', अपनों से हो क्लेश.
'ठेंगे पर मत मारना', बढ़ जायेगा द्वेष.१८.
*
'घोड़े दौड़ा अक्ल के', रहे पहेली बूझ.
'अकलमंद की दुम बने', उत्तर सका न सूझ.१९.
*
'अपना सा मुँह रह गया', हारे आम चुनाव.
'कर अरण्य रोदन' रहे, 'सलिल' न 'देना भाव'.२०.
*
'आँखों का तारा हुआ', नटखट कान्हा ढीठ.
खाये माखन चुराकर, गोप 'उतारें दीठ'.२१.
*

मुक्तिका: ये न मुमकिन हो सका --संजीव 'सलिल'






मुक्तिका
ये न मुमकिन हो सका
संजीव 'सलिल'
*
आप को अपना बनाऊँ ये न मुमकिन हो सका.
गीत अपने सुर में गाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

आपके आने के सपना देखकर अँखियाँ थकीं.
काग बोले काऊँ-काऊँ ये न मुमकिन हो सका..

अपने घर में शेर, जा बाहर हुआ हूँ ढेर मैं.
जीत का छक्का उड़ाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

वायदे कर वोट पाये, और कुर्सी भी मिली.
वायदा अपना निभाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

बेटियों ने निभाया है फर्ज़ अपना इस तरह.
कर बिदा उनको भुलाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

जड़ सभी बीमारियों की एक ही पायी 'सलिल'.
पसीना हँसकर बहाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

लिख रहा लेकिन खुशी से 'सलिल' मैं मरहूम हूँ.
देख उनकी झलक पाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

***********
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com

दोहा सलिला: दोहा संग मुहावरा --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा संग मुहावरा
संजीव 'सलिल'
*
दोहा संग मुहावरा, दे अभिनव आनंद.
'गूंगे का गुड़' जानिए, पढ़िये-गुनिये छंद.१.
*
हैं वाक्यांश मुहावरे, जिनका अमित प्रभाव.
'सिर धुनते' हैं नासमझ, समझ न पाते भाव.२.
*
'अपना उल्लू कर रहे, सीधा' नेता आज.
दें आश्वासन झूठ नित, तनिक न आती लाज.३.
*
'पत्थर पड़ना अकल पर', आज हुआ चरितार्थ.
प्रतिनिधि जन को छल रहे, भुला रहे फलितार्थ.४.
*
'अंधे की लाठी' सलिलो, हैं मजदूर-किसान.
जिनके श्रम से हो सका भारत देश महान.५.
*
कवि-कविता ही बन सके, 'अंधियारे में ज्योत'
आपद बेला में सकें, साहस-हिम्मत न्योत.६.
*
राजनीति में 'अकल का, चकराना' है आम.
दक्षिण के सुर में 'सलिल', बोल रहा है वाम.७.
*
'अलग-अलग खिचडी पका', हारे दिग्गज वीर.
बतलाता इतिहास सच, समझ सकें मतिधीर.८.
*
जो संसद में बैठकर, 'उगल रहा अंगार'
वह बीबी से कह रहा, माफ़ करो सरकार.९.
*
लोकपाल के नाम पर, 'अगर-मगर कर मौन'.
सारे नेता हो गए, आगे आए कौन?१०?
*
'अंग-अंग ढीला हुआ', तनिक न फिर भी चैन.
प्रिय-दर्शन पाये बिना आकुल-व्याकुल नैन.११.
*****

नवगीत: शीत से कँपती धरा --संजीव 'सलिल'

नवगीत:

शीत से कँपती धरा

संजीव 'सलिल'

*
शीत से कँपती धरा की
ओढ़नी है धूप
कोहरे में छिप न पाये
सूर्य का शुभ रूप

सियासत की आँधियों में उड़ाएँ सच की पतंग
बाँध जोता और माँझा, हवाओं से छेड़ जंग
उत्तरायण की अँगीठी में बढ़े फिर ताप-
आस आँगन का बदल रवि-रश्मियाँ दें रंग
स्वार्थ-कचरा फटक-फेंके
कोशिशों का सूप

मुँडेरे श्रम-काग बैठे सफलता को टेर
न्याय-गृह में देर कर पाये न अब अंधेर
लोक पर हावी नहीं हो सेवकों का तंत्र-
रजक-लांछित सिया वन जाए न अबकी बेर
झोपड़ी में तम न हो
ना रौशनी में भूप

पड़ोसी दिखला न पाए अब कभी भी आँख
शौर्य बाली- स्वार्थ रावण दबाले निज काँख
क्रौच को कोई न शर अब कभी पाये वेध-
आसमां को नाप ले नव हौसलों का पांख
समेटे बाधाएँ अपनी
कोख में अब कूप
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

गीत: गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा... --संजीव 'सलिल'

गीत:
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
संजीव 'सलिल'
*
मार समय की सहें मूक हो, कोई न तेरा-मेरा.
पीर, वेदना, तन्हाई निश-दिन करती पग-फेरा..
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
तुमने वन-पर्वत खोये, मैंने खोया सुख-चैन.
दर्द तुम्हारे दिल में है, मेरे भी भीगे नैन..
लोभ-हवस में झुलसा है, हम दोनों का ही डेरा.
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
शकुनि सियासत के हाथों हम दोनों हारे दाँव.
हाथ तुम्हारे घायल हैं, मेरे हैं चोटिल पाँव..
जीना दूभर, नेता अफसर व्यापारी ने घेरा.
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
तुमने चौपालों को खोया, मैंने नुक्कड़ खोये.
पनघट वहाँ सिसकते, गलियाँ यहाँ बिलखकर रोये..
वहाँ अमन का, यहाँ चैन का बाकी नहीं बसेरा.
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
तुम्हें तरसता देख जुटायी मैंने रोजी-रोटी.
चिपक गया है पेट पीठ से, गिन लो बोटी-बोटी..
खोटी-खोटी सुना रहे क्यों नहीं प्यार से हेरा?
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
ले विकास का नाम हर तरफ लूट-पाट है जारी.
बैठ शाख पर चला रहा शाखा पर मानव आरी..
सिसके शाम वहाँ, रोता है मेरे यहाँ सवेरा.
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*

बुधवार, 25 जनवरी 2012

गणतंत्र दिवस पर विशेष :          
कहाँ हैं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ?                   


  राम प्रसाद बिस्मिल     

*                                    
देश आजाद होने के बाद संसद में कई बार माँग उठती है कि कथित विमान-दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए सरकार कोशिश करे। मगर प्रधानमंत्री नेहरूजी इस माँग को प्रायः दस वर्षों तक टालने में सफल रहते हैं। भारत सरकार इस बारे में ताईवान सरकार (फारमोसा का नाम अब ताईवान हो गया है) से भी सम्पर्क नहीं करती।
 
 अन्त में जनप्रतिनिगण जस्टिस राधाविनोद पाल की अध्यक्षता में गैर-सरकारी जाँच आयोग के गठन का निर्णय 
लेते हैं। तब जाकर नेहरूजी 1956 में भारत सरकार की ओर से जाँच-आयोग के गठन की घोषणा करते हैं।  
 
लोग सोच रहे थे कि जस्टिस राधाविनोद पाल को ही आयोग की अध्यक्षता सौंपी जायेगी। विश्वयुद्ध के बाद जापान के युद्धकालीन प्रधानमंत्री सह युद्धमंत्री जेनरल हिदेकी तोजो पर जो युद्धापराध का मुकदमा चला था, उसकी ज्यूरी (वार क्राईम ट्रिब्यूनल) के एक सदस्य थे- जस्टिस पाल।
 
मुकदमे के दौरान जस्टिस पाल को  जापानी गोपनीय दस्तावेजों के अध्ययन का अवसर मिला था, अतः स्वाभाविक  रूप से वे उपयुक्त व्यक्ति थे जाँच-आयोग की अध्यक्षता के लिए। 

(प्रसंगवश जान लिया जाय कि ज्यूरी के बारह सदस्यों में से एक जस्टिस पाल ही थे, जिन्होंने जेनरल तोजो का बचाव किया था। जापान ने दक्षिण-पूर्वी एशियायी देशों को अमेरीकी, ब्रिटिश, फ्राँसीसी और पुर्तगाली आधिपत्य से मुक्त कराने के 
लिए युद्ध छेड़ा था। नेताजी के दक्षिण एशिया में अवतरण के बाद भारत को भी ब्रिटिश आधिपत्य से छुटकारा दिलाना उसके अजेंडे में शामिल हो गया आजादी के लिए संघर्ष करना कहाँ से  
 ‘अपराध’ हो गया? जापान ने कहा था- ‘एशिया- एशियायियों के लिए’- इसमें गलत क्या था? जो भी हो, जस्टिस राधाविनोद पाल
का नाम जापान में सम्मान के साथ लिया जाता है।) मगर नेहरू जी को आयोग की  
अध्यक्षता के लिए सबसे योग्य व्यक्ति केवल शाहनवाज खान नजर आते हैं। शाहनवाज खान- उर्फ, लेफ्टिनेण्ट जेनरल एस.एन.
खान। कुछ याद आया?
 
आजाद हिन्द फौज के भूतपूर्व सैन्याधिकारी, शुरु में नेताजी 
के दाहिने हाथ थे, मगर इम्फाल-कोहिमा फ्रण्ट से उनके विश्वासघात  की खबर आने के बाद नेताजी ने उन्हें रंगून मुख्यालय वापस बुलाकर उनका कोर्ट-मार्शल करने का आदेश 
दे दिया था।

उनके बारे में यह भी बताया जाता है कि कि लाल    
किले के कोर्ट-मार्शल में उन्होंने खुद यह स्वीकार 
किया था कि आई.एन.ए./आजाद हिन्द फौज में 
रहते हुए उन्होंने गुप्त रुप से ब्रिटिश सेना को मदद 
ही पहुँचाने का काम किया था। यह भी जानकारी 
मिलती है कि बँटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले 
गये थे, मगर नेहरूजी उन्हें भारत वापस बुलाकर 
अपने मंत्रीमण्डल में उन्हें सचिव का पद देते हैं।
विमान-दुर्घटना में नेताजी को मृत घोषित कर देने के बाद 
शाहनवाज खान को नेहरू मंत्री मण्डल में रेल राज्य मंत्री पद प्रदान किया जाता है.   


आयोग के दूसरे सदस्य सुरेश कुमार बोस (नेताजी के बड़े भाई) खुद को शाहनवाज खान के निष्कर्ष से अलग कर लेते हैं। उनके अनुसार, जापानी राजशाही ने विमान-दुर्घटना   का ताना-बाना बुना है, और नेताजी जीवित हैं।   
***                                                                     
 
शाहनवाज आयोग का निष्कर्ष देशवासियों के गले के नीचे नहीं उतरता है। साढ़े तीन सौ सांसदों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर सरकार को 1970 में (11 जुलाई) एक दूसरे आयोग का गठन करना पड़ता है। यह इन्दिराजी का समय है। इस आयोग का अध्यक्ष जस्टिस जी.डी. खोसला को बनाया जाता है।

जस्टिस घनश्याम दास खोसला के बारे में तीन तथ्य जानना ही  काफी होगा:

1. वे नेहरूजी के मित्र रहे हैं;

2. वे जाँच के दौरान ही श्रीमती इन्दिरा गाँधी की जीवनी लिख     
रहे थे, और

3. वे नेताजी की मृत्यु की जाँच के साथ-साथ तीन अन्य आयोगों की भी अध्यक्षता कर रहे थे।

सांसदों के दवाब के चलते आयोग को इस बार ताईवान
भेजा जाता है। मगर ताईवान जाकर  
जस्टिस खोसला  किसी भी सरकारी संस्था से सम्पर्क नहीं करते- वे बस  हवाई अड्डे तथा
शवदाहगृह से घूम आते हैं। कारण यह  है कि
 ताईवान के साथ भारत का कूटनीतिक सम्बन्ध नहीं है।                                                

हाँ, कथित विमान-दुर्घटना में जीवित बचे कुछ
लोगों का बयान यह आयोग लेता है, मगर  
पाकिस्तान में बसे मुख्य गवाह कर्नल  
हबिबुर्रहमान खोसला आयोग से मिलने से इन्कार कर देते हैं। 
 
खोसला आयोग की रपट पिछले शाहनवाज आयोग की रपट का सारांश साबित होती है। इसमें अगर नया कुछ है, तो वह है- भारत सरकार को इस मामले में पाक-साफ एवं 
ईमानदार साबित करने की पुरजोर कोशिश।                                             
***
 
28 अगस्त 1978 को संसद में प्रोफेसर समर गुहा के सवालों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई कहते हैं कि कुछ ऐसे आधिकारिक दस्तावेजी अभिलेख (Official Documentary Records) उजागर हुए हैं, जिनके आधार पर; साथ ही, पहले के दोनों
आयोगों के निष्कर्षों पर उठने वाले सन्देहों तथा (उन रपटों में दर्ज) गवाहों के विरोधाभासी बयानों के मद्देनजर सरकार के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल है कि वे निर्णय अन्तिम हैं।
 
प्रधानमंत्री जी का यह आधिकारिक बयान अदालत में चला जाता है और वर्षों बाद ३०  

अप्रैल 1998 को कोलकाता उच्च न्यायालय      सरकार को आदेश देता है कि उन अभिलेखों 
के प्रकाश में फिर से इस मामले की जाँच 
करवायी जाए।

अब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री हैं। 
दो-दो जाँच आयोगों का हवाला देकर सरकार 
इस मामले से पीछा छुड़ाना चाह रही थी, मगर        
न्यायालय के आदेश के बाद सरकार को तीसरे 
आयोग के गठन को मंजूरी देनी पड़ती है।

इस बार सरकार को मौका न देते हुए आयोग के 
अध्यक्ष के रूप में (अवकाशप्राप्त) न्यायाधीश मनोज 
कुमार मुखर्जी की नियुक्ति खुद सर्वोच्च न्यायालय ही 
कर देता है।
जहाँ तक हो पाता है, सरकार मुखर्जी आयोग के गठन और उनकी जाँच में रोड़े अटकाने की कोशिश करती है, मगर जस्टिस मुखर्जी जीवट के आदमी साबित होते हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी वे जाँच को आगे बढ़ाते रहते हैं।
 
आयोग सरकार से उन दस्तावेजों (“टॉप सीक्रेट” पी.एम.ओ. फाईल 2/64/78-पी.एम.) की माँग करता है, जिनके आधार पर 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संसद में बयान दिया था, और जिनके आधार पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने तीसरे जाँच-आयोग के गठन का आदेश दिया था।
 
प्रधानमंत्री कार्यालय और गृहमंत्रालय दोनों साफ मुकर जाते हैं- ऐसे कोई दस्तावेज नहीं हैं; होंगे भी      
तो हवा में गायब हो गये आप यकीन नहीं करेंगे कि जो 
दस्तावेज खोसला आयोग को दिए गए थे, वे दस्तावेज 
तक मुखर्जी योग को देखने नहीं दिए जाते, 'गोपनीय' और 'अतिगोपनीय' दस्तावेजों की बात तो छोड़ ही दीजिये । 
प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय सभी 
जगह नौकरशाहों का यही एक जवाब-

“भारत के संविधान की धारा 74(2) और साक्ष्य कानून के भाग 123 एवं 124 के तहत इन दस्तावेजों को आयोग को         
नहीं दिखाने का “प्रिविलेज” उन्हें प्राप्त है!”

भारत सरकार के रवैये के विपरीत ताईवान सरकार मुखर्जी 
आयोग द्वारा माँगे गये एक-एक दस्तावेज को आयोग के 
सामने प्रस्तुत करती है। चूँकि ताईवान के साथ भारत के 
कूटनीतिक सम्बन्ध नहीं हैं, इसलिए भारत सरकार किसी 
प्रकार का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दवाब ताईवान सरकार पर नहीं 
डाल पाती है।                                                                  

हाँ, रूस के मामले में ऐसा नहीं है। भारत का रूस के साथ गहरा सम्बन्ध है, अतः रूस सरकार का स्पष्ट मत है कि जब तक 
भारत सरकार आधिकारिक रुप से अनुरोध नहीं भेजती, वह 
आयोग को न तो नेताजी से जुड़े गोपनीय दस्तावेज देखने दे 
सकती है और न ही कुजनेत्स, क्लाश्निकोव- जैसे महत्वपूर्ण 
गवाहों का साक्षात्कार लेने दे सकती है। आप अनुमान लगा 
सकते हैं- आयोग रूस से खाली हाथ लौटता है।

यह भी जिक्र करना प्रासंगिक होगा कि मुखर्जी आयोग जहाँ  “गुमनामी बाबा” के मामले में गम्भीर तरीके से जाँच करता है, 
वहीं स्वामी शारदानन्द के मामले में गम्भीरता नहीं दिखाता। आयोग फैजाबाद के राम भवन तक तो आता है, जहाँ गुमनामी 
बाबा रहे थे; राजपुर रोड की उस कोठी तक नहीं जाता, जहाँ शारदानन्द रहे थे। आयोग गुमनामी बाबा की हर वस्तु की 
जाँच करता है, मगर उ.प्र. पुलिस/प्रशासन से शारदानन्द के      
अन्तिम संस्कार के छायाचित्र माँगने का कष्ट नहीं उठाता।
 

मई' 64 के बाद जब स्वामी शारदानन्द सतपुरा (महाराष्ट्र) के मेलघाट के जंगलों में अज्ञातवास गुजारते हैं, तब उनके साथ सम्पर्क में रहे डॉ. सुरेश पाध्ये का कहना है कि उन्होंने खुद नेताजी (स्वामी
शारदानन्द) और उनके परिवारजनों तथा वकील के
कहने के कारण (1971 में) ‘खोसला आयोग’ के सामने सच्चाई का बयान नहीं किया था।
 
अब चूँकि स्वामीजी का देहावसान हो चुका है, इसलिए वे (26 जून 2003 को) मुखर्जी आयोग को सच्चाई बताते हैं। मगर आयोग उनकी तीन दिनों की गवाही को (अपनी रिपोर्ट में) आधे वाक्य में समेट देता है और दस्तावेजों को (जो कि वजन में ही 70
किलो है) एकदम नजरअन्दाज कर देता है। यह सब कुछ किसके दवाब में   किया जाता है- यह राज तो आने वाले समय में ही खुलेगा।

2005 में दिल्ली में फिर काँग्रेस की सरकार बनती है। यह सरकार 
मई में जाँच आयोग को छह महीनों का विस्तार देती है।            
8 नवम्बर को आयोग अपनी रपट सरकार को सौंप देता है। सरकार इस पर कुण्डली मारकर बैठ जाती है। दवाब पड़ने पर 18 मई 2006 को रपट को संसद के पटल पर रखा जाता है।

मुखर्जी आयोग को पाँच विन्दुओं पर जाँच करना था:               
1. नेताजी जीवित हैं या मृत? 
2. अगर वे जीवित नहीं हैं, तो क्या उनकी मृत्यु विमान-दुर्घटना 
में हुई, जैसा कि बताया जाता है? 
3. क्या जापान के रेन्कोजी मन्दिर में रखा अस्थि भस्म नेताजी  का है? 
4. क्या उनकी मृत्यु कहीं और, किसी और तरीके से हुई, अगर ऐसा है, तो कब और कैसे? 
5. अगर वे जीवित हैं, तो अब वे कहाँ हैं?
आयोग का निष्कर्ष कहता है कि-
1. नेताजी अब जीवित नहीं हैं।
2. किसी विमान-दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु नहीं 
हुई है।
3. रेन्कोजी मन्दिर (टोक्यो) में रखा अस्थिभस्म 
नेताजी का नहीं है।
4. उनकी मृत्यु कैसे और कहाँ हुई- इसका जवाब 
आयोग नहीं ढूँढ़ पाया।
5. इसका उत्तर क्रमांक 1 में दे दिया गया है। 

स्वाभाविक रुप से सरकार इस रिपोर्ट को खारिज कर देती है। 
                                                                                
अगर हम यहाँ यह अनुमान लगायें कि भारत सरकार ने “अराजकता” या “राजनीतिक अस्थिरता” फैलने की बात 
कहकर मुखर्जी आयोग को ‘चौथे’ विन्दु पर ज्यादा आगे 
न बढ़ने का अनुरोध किया होगा, तो क्या हम बहुत गलत          
होंगे?
*

मंगलवार, 24 जनवरी 2012


रचना-प्रतिरचना
 ग़ज़ल:
कभी-कभी
मैत्रेयी अनुरूपा
 *

पने ला ला कर आँखों में कोई बोता कभी कभी                                                                   शाम अकेली को यादें दे कोई भिगोता कभी कभी
इश्क मुहब्बत,गम तन्हाई सब ही गहरे दरिया हैं
बातें करते सभी,लगाता कोई गोता कभी कभी
बस्ती के उजले दामन पर कितने काले धब्बे हैं
कितना अच्छा होता इनको कोई धोता कभी कभी
मन तो माला के मनकों सा मोती मोती बिखरा है
अपनेपन की डोरी लेकर कोई पोता कभी कभी
शायर प्पगल आशिक ही तो रातों के दरवेश रहे
फ़िक्रे-सुकूँ में थक थक कर ही कोई सोता कभी कभी
वज़्मे सुखन के नये चलन में शायर तो हर कोई हुआ
वाह वाह भी करते, मिलता कोई श्रोता कभी कभी
गज़लों के ताने बाने तो बुन लेती है अनुरूपा
पल जो कवितायें लिखवाता, कोई होता कभी कभी
*
           मुक्तिका :
           कभी-कभी
              संजीव 'सलिल'
          
 *
अपनों को अपनापन देकर कोई खोता कभी-कभी                                                                                अँखियों में सपनों को पाले कोई रोता कभी-कभी

अरमानों के आसमान में उड़ा पतंगें कोशिश की                               बाँध मगर पहले ले श्रम का कोई जोता कभी-कभी                             

बनते अपने मुँह मिट्ठू तुम चलो मियाँ सच बतलाओ                           गुण गाता औरों का भी क्या कोई तोता कभी-कभी                       

साये ने ही साथ अँधेरे में छोड़ा है अपनों का                              इसीलिये तो भेज न पाया कोई न्योता कभी-कभी

अपनों के जीने-मरने में हुए सम्मिलित सभी 'सलिल'                                                                               गैरों की लाशों को भी क्या कोई ढोता कभी-कभी

         
*******

*
 

सोनिया ने ही रचा इंदिरा गांधी की हत्या का षड्यंत्र- सुदर्शन

   

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रमुख के.एस.सुदर्शन ने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी पर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया। सुदर्शन ने सोनिया को सीआईए की एजेंट भी बताया। सुदर्शन ने यह भी कहा कि सोनिया अपनी मां की अवैध संतान है। हिंदू विरोधी दुष्प्रचार के खिलाफ आरएसएस के धरने पर मीडिया से चर्चा में सुदर्शन ने यह बातें कहीं।

सोनिया के पिता जेल में थे – सुदर्शन ने दावा किया कि जिस समय सोनिया का जन्म हुआ उसके पिता जेल में थे। इस बात को छुपाने के लिए ही वे अपनी जन्मतिथि 1944 के बजाय 1946 बताती हैं। उन्होंने दावा किया कि सोनिया का असली नाम सोनिया माइनो है। और वह सीआईए की एजेंट थी। राजीव गांधी ने ईसाई धर्म ग्रहण कर राबटरे नाम से उससे शादी की। बाद में इंदिरा गांधी ने वैदिक पद्धति से उनकी शादी कराई। इंदिरा गांधी को इस बात की भनक लग गई थी कि सोनिया सीआईए एजेंट है, लेकिन इंदिरा उसका अपने हिसाब से उपयोग करना चाहती थी। पंजाब में आतंकवाद के चरम पर पहुंचने पर सोनिया ने इंदिरा की हत्या का षडयंत्र रचा। इंदिरा गांधी की सुरक्षा से सतवंत सिंह को हटाने की बात हुई थी, लेकिन सोनिया ने यह नहीं होने दिया। जब इंदिरा गांधी को गोली लगी तो उन्हें करीब के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले जाने की वजह वह एम्स ले गई थी, जो काफी दूर था। तब तक उनका काफी खून बह चुका था। एम्स के डॉक्टरों ने कहा-ब्राट डेड (यानी रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।) फिर राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने के बाद इंदिरा गांधी की मृत्यु की घोषणा की गई।

राजीव को था शक – सुदर्शन ने दावा किया कि राजीव गांधी को भी सोनिया पर शक हो गया था और वे उसे छोड़ने का मन बना रहे थे। सुदर्शन ने सोनिया पर राजीव की हत्या के षडच्यंत्र का आरोप लगाते हुए कहा कि सोनिया के इशारे पर ही श्रीपेरुंबदुर की सभा में जेड प्लस सुरक्षा नहीं की गई। सुदर्शन ने सवाल किया कि इंदिरा और राजीव दोनों का पोस्टमार्टम क्यों नहीं हुआ? और इस बात की जांच क्यों नहीं होती कि राजीव को जेड प्लस सुरक्षा क्यों नहीं उपलब्ध कराई गई। संवाददाताओं के पूछने पर उन्होंने कहा कि एक ग्रीक परिवार जो इटली का निवासी है और एक कांग्रेस नेता ने उन्हें यह सारी जानकारी दी। सुदर्शन ने उस नेता का नाम उजागर करने से इनकार कर दिया।



(भोपाल रिपोर्टर से साभार )
admin@www.janokti.com
जनोक्ति डेस्क

रविवार, 22 जनवरी 2012

हास्य कुंडली: --संजीव 'सलिल'

हास्य कुंडली
संजीव 'सलिल'
*

कल्लू खां गोरे मिले, बुद्धू चतुर सुजान.
लखपति भिक्षा माँगता, विद्यापति नादान..
विद्यापति नादान, कुटिल हैं भोला भाई.
देख सरल को जटिल, बुद्धि कवि की बौराई.
कलमचंद अनपढ़े, मिले जननायक लल्लू.
त्यागी करते भोग, 'सलिल' गोरेमल कल्लू..
*
अचला-मन चंचल मिला, कोमल-चित्त कठोर.
गौरा-वर्ण अमावसी, श्यामा उज्जवल भोर..
श्यामा उज्जवल भोर, अर्चना करे न पूजा.
दृष्टिविहीन सुनयना, सुलभा सदृश न दूजा..
मधुरा मृदुल कोकिला, कर्कश दिल दें दहला.
रक्षा करें आक्रमण, मिलीं विपन्ना कमला..
*
कहाँ कै मरे कैमरे, लेते छायाचित्र.
छाया-चित्र गले मिलें, ज्यों घनिष्ठ हों मित्र..
ज्यों घनिष्ठ हों मित्र, रात-दिन चंदा-सूरज.
एक बिना दूजा बेमानी, ज्यों धरती-रज..
लोकतंत्र में शोकतंत्र का राज्य है यहाँ.
बेहयाई नेता ने ओढ़ी, शर्म है कहाँ?..
*
जल न जलन से पायेगा, तू बेहद तकलीफ.
जैसे गजल कहे कोइ, बिन काफिया-रदीफ़..
बिन काफिया-रदीफ़, रुक्न-बहरों को भूले.
नहीं गाँव में शेष, कजरिया सावन झूले..
कहे 'सलिल कविराय', सम्हाल जग में है फिसलन.
पर उन्नति से खुश हो, दिल में रह ना जलन..
*


रूपम-रेनू परिणय : रजत जयंती पर

ॐ 
परात्पर परम ब्रम्ह कर्मेश्वर श्री चित्रगुप्त़ाय नमः 

रूपम-रेनू परिणय : रजत जयंती पर काव्यांजलि 
 *
वंदन श्री विघ्नेश का, रखें कृपा की दृष्टि
विधि-हरि-हर प्रति पल रखें, 'सलिल' स्नेह की वृष्टि

शारद-श्री-शक्ति त्रयी, रहें हमारे साथ
काम करें निष्काम हम, ऊँचा रखकर माथ

 
प्रकृति-पुरुष मिलकर करें, एक-दूजे को पूर्ण
रहे सकल संसार यह, बिन सहकार अपूर्ण

'रेनू-रूपम' कर रहे, मिल सपने साकार
 'निमिषा-निकिता' ने किया, सुरभित गृह-संसार

दें 'महेंद्र-सरला' मुदित, सुरपुर से आशीष
'कृष्णमोहन-मिथलेश' मिल, मना रहे हैं ईश

 'अनुपम पूनम अनुपमा, स्नेह-साधना दैव
अजय रुचिर राजीव सी, प्रीति प्रियंक सदैव

रूपाली-राकेश मिल, गएँ स्वागत गीत
नीलम मीनू अनीता, लें दिल से दिल जीत

वेड-प्रकाश तिमिर हरे, दें आशीष उमेश
श्वास-श्वास दीपित करे, विहँस मयंक-दिनेश

दीप-शिखा सम साथ हों, रूपम-रेनु हमेश
 अंतर में अंतर न हो, ईश कभी भी लेश

रिद्धि-सिद्धि नव निधि करें, हे विघ्नेश प्रदान
'सलिल-साधना' माँगते, प्रभु से मिल वरदान

स्वर्गोपम सुख पा सकें, रूपम-रेनू नित्य
मन्वंतर तक पल सके, तुहिना-प्रीति अनित्य

**********************************            
 
 

शनिवार, 21 जनवरी 2012

साक्षात्कार ... माधवी शर्मा गुलेरी जी से ... --लावण्य शाह

साक्षात्कार  ...  
 माधवी शर्मा गुलेरी जी से ... 
लावण्य   शाह
 

  

'तेरी कुड़माई हो गई है ? हाँ, हो गई।.... देखते नहीं, यह रेशम से कढा हुआ सालू।'' जेहन में ये पंक्तियाँ और पूरी कहानी आज भी है .चंद्रधर शर्मा गुलेरी ' जी की ' उसने कहा था ' प्रायः हर साहित्यिक प्रेमियों की पसंद में अमर है . अब आप सोच रहे होंगे किसी के ब्लॉग की चर्चा में यह प्रसंग क्यूँ , स्वाभाविक है सोचना और ज़रूरी है मेरा बताना . तो आज मैं जिस शक्स के ब्लॉग के साथ आई हूँ , उनके ब्लॉग का नाम ही आगे बढ़ते क़दमों को अपनी दहलीज़ पर रोकता है - " उसने कहा था " ब्लॉग के आगे मैं भी रुकी और नाम पढ़ा और मन ने फिर माना - गुम्बद बताता है कि नींव कितनी मजबूत है ! जी हाँ , 'उसने कहा था ' के कहानीकार चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की परपोती माधवी शर्मा गुलेरी का ब्लॉग है - 'उसने कहा था ' - http://guleri.blogspot.com/
माधवी ने २०१० के मई महीने से लिखना शुरू किया ... 'खबर' ब्लॉग की पहली रचना है , पर 'तुम्हारे पंख' में एक चिड़िया सी चाह और चंचलता है , जिसे जीने के लिए उसने कहा था की नायिका की तरह माधवी का मन एक डील करता है रेस्टलेस कबूतरों से -
"क्यों न तुम घोंसला बनाने को 
ले लो मेरे मकान का इक कोना
और बदले में दे दो
मुझे अपने पंख!" .... ज़िन्दगी की उड़ान जो भरनी है !
माधवी की मनमोहक मासूम सी मुस्कान में कहानियों वाला एक घर दिखता है ... जिस घर से उन्हें एक कलम मिली , मिले अनगिनत ख्याल ... हमें लगता है कविता जन्म ले रही है , पर नहीं कविता तो मुंदी पलकों में भी होती है , दाल की छौंक में भी होती है , होती है खामोशी में - ... कभी भी, कहीं भी , ............ बस वह आकार लेती है कुछ इस तरह -
"रोटी और कविता

मुझे नहीं पता
क्या है आटे-दाल का भाव
इन दिनों 

नहीं जानती 
ख़त्म हो चुका है घर में 
नमक, मिर्च, तेल और
दूसरा ज़रूरी सामान 

रसोईघर में क़दम रख 
राशन नहीं
सोचती हूं सिर्फ़
कविता 

आटा गूंधते-गूंधते
गुंधने लगता है कुछ भीतर
गीला, सूखा, लसलसा-सा 

चूल्हे पर रखते ही तवा 
ऊष्मा से भर उठता है मस्तिष्क 

बेलती हूं रोटियां 
नाप-तोल, गोलाई के साथ
विचार भी लेने लगते हैं आकार 

होता है शुरू रोटियों के
सिकने का सिलसिला
शब्द भी सिकते हैं धीरे-धीरे 

देखती हूं यंत्रवत्
रोटियों की उलट-पलट
उनका उफान 

आख़िरी रोटी के फूलने तक
कविता भी हो जाती है
पककर तैयार।" ......... गर्म आँच पर तपता तवा और गोल गोल बेलती रोटियों के मध्य मन लिख रहा है अनकहा , कहाँ कोई जान पाता है . पर शब्दों के परथन लगते जाते हैं , टेढ़ी मेढ़ी होती रोटी गोल हो जाती है और चिमटे से छूकर पक जाती है - तभी तो कौर कौर शब्द गले से नीचे उतरते हैं - मानना पड़ता है - खाना एक पर स्वाद अलग अलग होता है - कोई कविता पढ़ लेता है , कोई पूरी कहानी जान लेता है , कोई बस पेट भरकर चल देता है .... 
यदि माधवी के ब्लॉग से मैं उनकी माँ कीर्ति निधि शर्मा गुलेरी जी के एहसास अपनी कलम में न लूँ तो कलम की गति कम हो जाएगी . 
http://guleri.blogspot.com/2011/09/blog-post_12.html इस रचना में पाठकों को एक और नया आयाम मिलेगा द्रौपदी को लेकर ! 
माधवी की कलम में गजब की ऊर्जा है .... समर्थ , सार्थक पड़ाव हैं इनकी लेखनी के . -

मैं सन्‌ ३६ की दिल्ली में - राजेन्द्र उपाध्याय

मैं सन्‌ ३६ की दिल्ली में- राजेन्द्र उपाध्याय
 
ऐसे समय जब सब क्रांतिकारी कवि
विदूषकों के हाथों पुरस्कृत हो रहे हैं
मैं सन्‌ ३६ की दिल्ली में जाना चाहता हूँ
जब पहली बार प्रेमचन्द जैनेन्द्र से मिलने दिल्ली आए थे
और दरियागंज के एक पुराने मकान में ठहरे थे।
मैं वहीं तंग सीढ़ियाँ चढ कर उपन्यास सम्राट के पांव छूना चाहता हूँ।
 
मैं जैनेन्द्र और प्रेमचन्द के साथ तांगे में बैठकर
कुतुबमीनार जाना चाहता हूँ।
मैं इन दोनों थके हुए बूढ़ों को कुतुबमीनार की सबसे ऊंची मंजिल पर
ले जाकर दुनिया दिखाना चाहता हूँ।
मैं इनसे कहूँगा तुम्हारे चढ़ने से ये मीनार छोटी नहीं होगी
चढ़ों तुम चढ़ों इस पर
गर्व को इसके चूर करो
बताओ कि तुम्हारा लिखा इससे भी बड़ा है
तुम्हारे लिखे पर कभी जंग नहीं लगेगी
जबकि विदूषक के हाथों पुरस्कृत होने वाले क्रांतिकारी कवि की सारी रचनाएं
एक दिन कबाड़ी भी ले जाने से इंकार देगा।
 
मैं कैप्टन वात्स्यायन के साथ पूर्वोत्तर की पहाड़ियाँ
रौंदना चाहता हूँ ट्रक में उनकी बगल में बैठकर
मैं उनके साथ चिरगांव जाना चाहता हूँ
देखना चाहता हूँ राष्ट्रकवि कैसे पैर छूते हैं अपने से काफी छोटे युवा कवि के।
मैं शमशेर के 'जस्टफिट'  में काली चाय पीना चाहता हूँ
केदार को अदालत में वकालत करते देखना चाहता हूँ
मैं सुभद्रा के हाथ के दालचावल खाना चाहता हूँ
मैं नागार्जुन के साथ बैलगाड़ी में बिहार के एक पिछड़े गांव में
कानी कुतिया के पास जाना चाहता हूँ।
मैं बच्चन की साईकिल पर पीछे बैठकर इलाहाबाद के अमरूद खाना चाहता हूँ।
 
मैं सुनना चाहता हूँ टेलिफोन पर नवीन की वो आवाज
जिसमें उन्होंने इंदिरा से कहा था
मुझे तुमसे नहीं तुम्हारे बाप से बात करनी है।
 
===================

कालजयी रचना: विप्लव गायन --बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'

कालजयी रचना:
 विप्लव गायन
बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
 
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ,
जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए,
एक हिलोर उधर से आए,
 
प्राणों के लाले पड़ जाएँ,
त्राहि-त्राहि रव नभ में छाए,
नाश और सत्यानाशों का -
धुँआधार जग में छा जाए,
 
बरसे आग, जलद जल जाएँ,
भस्मसात भूधर हो जाएँ,
पाप-पुण्य सद्सद भावों की,
धूल उड़ उठे दायें-बायें,
 
नभ का वक्षस्थल फट जाए-
तारे टूक-टूक हो जाएँ
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ,
जिससे उथल-पुथल मच जाए।
 
माता की छाती का अमृत-
मय पय काल-कूट हो जाए,
आँखों का पानी सूखे,
वे शोणित की घूँटें हो जाएँ,
 
एक ओर कायरता काँपे,
गतानुगति विगलित हो जाए,
अंधे मूढ़ विचारों की वह
अचल शिला विचलित हो जाए,
 
और दूसरी ओर कंपा देने
वाला गर्जन उठ धाए,
अंतरिक्ष में एक उसी नाशक
तर्जन की ध्वनि मंडराए,
 
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ,
जिससे उथल-पुथल मच जाए,
 
नियम और उपनियमों के ये
बंधक टूक-टूक हो जाएँ,
विश्वंभर की पोषक वीणा
के सब तार मूक हो जाएँ
 
शांति-दंड टूटे उस महा-
रुद्र का सिंहासन थर्राए
उसकी श्वासोच्छ्वास-दाहिका,
विश्व के प्रांगण में घहराए,
 
नाश! नाश!! हा महानाश!!! की
प्रलयंकारी आँख खुल जाए,
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ
जिससे उथल-पुथल मच जाए।
 
सावधान! मेरी वीणा में,
चिनगारियाँ आन बैठी हैं,
टूटी हैं मिजराबें, अंगुलियाँ
दोनों मेरी ऐंठी हैं
 
कंठ रुका है महानाश का
मारक गीत रुद्ध होता है,
आग लगेगी क्षण में, हृत्तल
में अब क्षुब्ध युद्ध होता है,
 
झाड़ और झंखाड़ दग्ध हैं -
इस ज्वलंत गायन के स्वर से
रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है
निकली मेरे अंतरतर से!
 
कण-कण में है व्याप्त वही स्वर
रोम-रोम गाता है वह ध्वनि,
वही तान गाती रहती है,
कालकूट फणि की चिंतामणि,
 
जीवन-ज्योति लुप्त है - अहा!
सुप्त है संरक्षण की घड़ियाँ,
लटक रही हैं प्रतिपल में इस
नाशक संभक्षण की लड़ियाँ।
 
चकनाचूर करो जग को, गूँजे
ब्रह्मांड नाश के स्वर से,
रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है
निकली मेरे अंतरतर से!
 
दिल को मसल-मसल मैं मेंहदी
रचता आया हूँ यह देखो,
एक-एक अंगुल परिचालन
में नाशक तांडव को देखो!
 
विश्वमूर्ति! हट जाओ!! मेरा
भीम प्रहार सहे न सहेगा,
टुकड़े-टुकड़े हो जाओगी,
नाशमात्र अवशेष रहेगा,
 
आज देख आया हूँ - जीवन
के सब राज़ समझ आया हूँ,
भ्रू-विलास में महानाश के
पोषक सूत्र परख आया हूँ,
 
जीवन गीत भूला दो - कंठ,
मिला दो मृत्यु गीत के स्वर से
रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है,
निकली मेरे अंतरतर से!
 
****************

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

मुक्तिका : पूछ रहे तुम --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :
पूछ रहे तुम
संजीव 'सलिल'
*
पूछ रहे तुम हाल हमारा क्या बतलायें कैसे हैं हम?
झूठ कहें तो व्यर्थ दुखी हों, सत्य कहें तो खुद को हो गम..

कैसे क्या? हम नश्वर तन हैं, पल में गायब हो जायेंगे.
जब भी हमको याद करोगे आँख तुम्हारी होंगी कुछ नम..

राम-राम कह विहँस विदा हों, या गुडबाई-टाटा करलें.
कहें अलविदा या न कहें कुछ, निकल जाएगी यथासमय दम..

शब्द-साधना विधवा होगी, कविता-रचना थम जाएगी.
पाठक सोचें पीछा छूटा, खुश हो करें दिखावा-मातम..

ऊपरवाला सिर पीटेगा, कौन मुसीबत लेकर आया?
पछतायेगा कविता सुन-सुन किन्तु न लौटा पायेगा यम..

हूँ जाने को उद्यत लेकिन दोहा गीत गजल कह जाऊँ.
दुःख देनेवाले को अँजुरी भर खुशियाँ दे दूँ कम से कम..

बुढ़ा रहा तन लेकिन मन तो अब तक निश्छल बच्चा ही है.
जवां हौसले चाह रहे हैं 'सलिल' दिखा दें अपना दम-खम..

******************

नवगीत: शीत से कँपती धरा --संजीव 'सलिल'


नवगीत:
शीत से कँपती धरा
संजीव 'सलिल'
*
शीत से कँपती धरा की
ओढ़नी है धूप.
कोहरे में छिप न पाये
सूर्य का शुभ रूप...
*
सियासत की आँधियों में उड़ायें सच की पतंग.
बाँध जोता और मांझा, हवाओं से छेड़ जंग..
उत्तरायण की अंगीठी में बढ़े फिर ताप-
आस आँगन का बदल रवि-रश्मियाँ दें रंग..
स्वार्थ-कचरा फटक-फेंके
कोशिशों का सूप...
*
मुंडेरे श्रम-काग बैठे सफलता को टेर.
न्याय-गृह में देर कर पाये न अब अंधेर..
लोक पर हावी नहीं हो सेवकों का तंत्र-
रजक-लांछित सिया वन जाए न अबकी बेर..
झोपड़ी में तम न हो
ना रौशनी में भूप...
*
पड़ोसी दिखला न पाए अब कभी भी आँख.
शौर्य बाली- स्वार्थ रावण दबाले निज काँख..
क्रौच को कोई न शर अब कभी पाये वेध-
आसमां को नाप ले नव हौसलों का पांख.
समेटे बाधाएँ अपनी
कोख में अब कूप...
*
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मंगलवार, 17 जनवरी 2012

दोहा सलिला: यथा नाम गुण हों तथा -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
यथा नाम गुण हों तथा
संजीव 'सलिल'
*
यथा नाम गुण हों तथा, अनायास-सायास.
तभी करे तारीफ जग, हो न 'सलिल' उपहास..
*
वह बेनाम-अनाम है, जिसका है हर नाम.
नाम मिले उनको सभी, जिनका कोई न नाम..
*
नाम रख रहे हर्ष से, है दिल में उल्लास.
नाम रख रहे द्वेष से, प्रभु कर विफल प्रयास..
*
नाम बड़ा दर्शन- रहे छोटे उनसे दूर.
जो न रहे- वह है 'सलिल' आँखें रहते सूर..
*
रखो काम से काम मन, मत होना बेकाम.
शेष दैव का नाम हो, मैं अशेष बेनाम..
*
नहीं सार निज नाम में, रख प्रभु मुझे अनाम.
नाम तुम्हारा ही जपूँ, जब ले श्वास विराम..
*
दैव न हम बदनाम हों, भले रहें गुमनाम.
शीश उठाये रह सकें, जब हो जीवन-शाम..
*
नाम हो रहा कहें क्या, इससे बड़ा इनाम?
बेशकीमती नाम का, तनिक न मिलता दाम..
*
पर्वत पर हरियायेंगे, यदि संबल हों राम.
मिलें आम के आम सँग, गुठली के भी दाम..
*
काम सदा निष्काम कर, यथासमय विश्राम.
नाम राम का याद कर, मन बन विनत प्रणाम..
*
बड़ा राम से भी अधिक, हुआ राम का नाम.
नाम शेष होगा सदा, शेष न लेकिन राम..
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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दोहा सलिला: समय संग दोहा कहे... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला
समय संग दोहा कहे...

संजीव 'सलिल'
*
समय संग दोहा कहे, सतत सनातन सत्य.
सच न कह सको मौन हो, पर मत कहो असत्य..
*
समय न बिके बाजार में, कौन लगाये मोल.
नहीं तराजू बन सकी, सके समय को तोल..
*

समय न कुछ असमय करे, रहे सदा निरपेक्ष.
मनुज समय के साथ चल, हो घटना-सापेक्ष..
*
समय-समय का फेर है, पतन और उत्थान.
सुख-दुःख में गुणिजन जिएँ,  हर पल एक समान..
*
समय परखता सभी को, हुए बिना भयभीत.
पक्ष न लेता किसी का, यही समय की रीत..
*
साथ समय के जंग में, धैर्य न जाए हार.  
शील सौख्य सहकार सच, करता बेडा पार..
*
सतत करे सह-वास मन, तन सीमित सहवास.
मिलन तृप्ति दे, विरह का समय अधूरी प्यास..
*
समय साथ दे तो झुको, 'सलिल' मान आभार.
हो विपरीत अगर समय, धारो धैर्य अपार..
*
'सलिल' समय की धार में, बहना होकर मुक्त.
पत्थर जड़ हो थम गया, हो तट से संयुक्त..
*
समय मीन चंचल-चपल, थिर न रहे पल एक.
निरख रहे ज्ञानी-गुनी, अविचल सहित विवेक..
*
साथ समय के जो चले, छले न उसको काल.
आदि अंत में देखता, उन्नत रखकर भाल ..
*

 

एक कविता: समय सलिला के किनारे ---संजीव 'सलिल'

एक कविता:
संजीव 'सलिल'
*
समय सलिला के किनारे
श्वास-पाखी ताक में है.
आस मछली मोहती मन.
कभे इजती फिसल
ज्यों संध्या गयी ढल.
कभी मछली पकड़
लगता सार्थक पल.
केंकड़ा संकट लगाये घात.
फेंकता है जाल
मछुआरा अबोले.
फन उठाये सर्प
डंसना चाहता है.
किटकिटाते  दाँत
दौड़ा नेवला.

यह जगत-व्यापार
या व्यवहार
क्यों लगता अबूझा?
हर कोई शंकाओं से
हो ग्रस्त जूझा.
लय मिली तो कर लिया
अभिमान खुद पर.
और हारे तो कहा
'दोषी विधाता'..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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