सलिल सृजन जून ६
०
मुक्तिका:
मुहब्बतनामा
*
'सलिल' सद्गुणों की पुजारी मुहब्बत.
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत.१.
गंगा सी पावन दुलारी मुहब्बत.
रही रूह की रहगुजारी मुहब्बत.२.
अजर है, अमर है हमारी मुहब्बत.
सितारों ने हँसकर निहारी मुहब्बत.३.
महुआ है तू महमहा री मुहब्बत.
लगा जोर से कहकहा री मुहब्बत.४.
पिया बिन मलिन है दुखारी मुहब्बत.
पिया संग सलोनी सुखारी मुहब्बत.५.
सजा माँग सोहे भ'तारी मुहब्बत.
पिला दूध मोहे म'तारी मुहब्बत.६.
नगद है, नहीं है उधारी मुहब्बत.
है शबनम औ' शोला दुधारी मुहब्बत.७.
माने न मन मनचला री मुहब्बत.
नयन-ताल में झिलमिला री मुहब्बत.८.
नहीं ब्याहता या कुमारी मुहब्बत.
है पूजा सदा सिर नवा री, मुहब्बत.९.
जवां है हमारी-तुम्हारी मुहब्बत..
सबल है, नहीं है बिचारी मुहब्बत.१०.
उजड़ती है दुनिया, बसा री मुहब्बत.
अमन-चैन थोड़ा तो ब्या री मुहब्बत.११.
सम्हल चल, उमरिया है बारी मुहब्बत.
हो शालीन, मत तमतमा री मुहब्बत.१२.
दीवाली का दीपक जला री मुहब्बत.
न बम कोई लेकिन चला री मुहब्बत.१३.
न जिस-तिस को तू सिर झुका री मुहब्बत.
जो नादां है कर दे क्षमा री मुहब्बत.१४.
जहाँ सपना कोई पला री मुहब्बत.
वहीं मन ने मन को छला री मुहब्बत.१५.
न आये कहीं जलजला री मुहब्बत.
लजा मत तनिक खिलखिला री मुहब्बत.१६.
अगर राज कोई खुला री मुहब्बत.
तो करना न कोई गिला री मुहब्बत.१७.
बनी बात काहे बिगारी मुहब्बत?
जो बिगड़ी तो क्यों ना सुधारी मुहब्बत?१८.
कभी चाँदनी में नहा री मुहब्बत.
कभी सूर्य-किरणें तहा री मुहब्बत.१९.
पहले तो कर अनसुना री मुहब्बत.
मानी को फिर ले मना री मुहब्बत.२०.
चला तीर दिल पर शिकारी मुहब्बत.
दिल माँग ले न भिखारी मुहब्बत.२१.
सजा माँग में दिल पियारी मुहब्बत.
पिया प्रेम-अमृत पिया री मुहब्बत.२२.
रचा रास बृज में रचा री मुहब्बत.
हरि न कहें कुछ बचा री मुहब्बत.२३.
लिया दिल, लिया रे लिया री मुहब्बत.
दिया दिल, दिया रे दिया, री मुहब्बत.२४.
कुर्बान तुझ पर हुआ री मुहब्बत.
काहे सारिका से सुआ री मुहब्बत.२५.
दिया दिल लुटा तो क्या बाकी बचा है?
खाते में दिल कर जमा री मुहब्बत.२६.
दुनिया है मंडी खरीदे औ' बेचे.
कहीं तेरी भी हो न बारी मुहब्बत?२७.
सभी चाहते हैं कि दर से टरे पर
किसी से गयी है न टारी मुहब्बत.२८.
बँटे पंथ, दल, देश बोली में इंसां.
बँटने न पायी है यारी-मुहब्बत.२९.
तौलो अगर रिश्तों-नातों को लोगों
तो पाओगे सबसे है भारी मुहब्बत.३०.
नफरत के काँटे करें दिल को ज़ख़्मी.
मिलें रहतें कर दुआ री मुहब्बत.३१.
कभी माँगने से भी मिलती नहीं है.
बिना माँगे मिलती उदारी मुहब्बत.३२.
अफजल को फाँसी हो, टलने न पाये.
दिखा मत तनिक भी दया री मुहब्बत.३३.
शहादत है, बलिदान है, त्याग भी है.
जो सच्ची नहीं दुनियादारी मुहब्बत.३४.
धारण किया धर्म, पद, वस्त्र, पगड़ी.
कहो कब किसी ने है धारी मुहब्बत.३५.
जला दिलजले का भले दिल न लेकिन
कभी क्या किसी ने पजारी मुहब्बत?३६.
कबीरा-शकीरा सभी तुझ पे शैदा.
हर सूं गई तू पुकारी मुहब्बत.३७.
मुहब्बत की बातें करते सभी पर
कहता न कोई है नारी मुहब्बत?३८.
तमाशा मुहब्बत का दुनिया ने देखा
मगर ना कहा है 'अ-नारी मुहब्बत.३९.
चतुरों की कब थी कमी जग में बोलो?
मगर है सदा से अनारी मुहब्बत.४०.
बहुत हो गया, वस्ल बिन ज़िंदगी क्या?
लगा दे रे काँधा दे, उठा री मुहब्बत.४१.
निभाये वफ़ा तो सभी को हो प्यारी
दगा दे तो कहिये छिनारी मुहब्बत.४२.
भरे आँख-आँसू, करे हाथ सजदा.
सुकूं दे उसे ला बिठा री मुहब्बत.४३.
नहीं आयी करके वादा कभी तू.
सच्ची है या तू लबारी मुहब्बत?४४.
महज़ खुद को देखे औ' औरों को भूले.
कभी भी न करना विकारी मुहब्बत.४५.
हुआ सो हुआ अब कभी हो न पाये.
दुनिया में फिर से निठारी मुहब्बत.४६..
कभी मान का पान तो बन न पायी.
बनी जां की गाहक सुपारी मुहब्बत.४७.
उठाते हैं आशिक हमेशा ही घाटा.
कभी दे उन्हें भी नफा री मुहब्बत.४८.
न कौरव रहे कोई कुर्सी पे बाकी.
जो सारी किसी की हो फारी मुहब्बत.४९.
कलाई की राखी, कजलियों की मिलनी.
ईदी-सिवँइया, न खारी मुहब्बत.५०.
नथ, बिंदी, बिछिया, कंगन औ' चूड़ी.
पायल औ मेंहदी, है न्यारी मुहब्बत.५१.
करे पार दरिया, पहाड़ों को खोदा.
न तू कर रही क्यों कृपा री मुहब्बत?५२.
लगे अटपटी खटपटी चटपटी जो
कहें क्या उसे हम अचारी मुहब्बत?५३.
अमन-चैन लूटा, हुई जां की दुश्मन.
हुई या खुदा! अब बला री मुहब्बत.५४.
तू है बदगुमां, बेईमां जानते हम
कभी धोखे से कर वफा री मुहब्बत.५५.
कभी ख़त-किताबत, कभी मौन आँसू.
कभी लब लरजते, पुकारी मुहब्बत.५६.
न टमटम, न इक्का, नहीं बैलगाड़ी.
बसी है शहर, चढ़के लारी मुहब्बत.५७.
मिला हाथ, मिल ले गले मुझसे अब तो
करूँ दुश्मनों को सफा री मुहब्बत.५८.
तनिक अस्मिता पर अगर आँच आये.
बनती है पल में कटारी मुहब्बत.५९.
है जिद आज की रात सैयां के हाथों.
मुझे बीड़ा दे तू खिला री मुहब्बत.६०.
न चौका, न छक्का लगाती शतक तू.
गुले-दिल खिलाती खिला री मुहब्बत.६१.
न तारे, न चंदा, नहीं चाँदनी में
ये मनुआ प्रिया में रमा री मुहब्बत.६२.
समझ -सोच कर कब किसी ने करी है?
हुई है सदा बिन विचारी मुहब्बत.६३.
खा-खा के धोखे अफ़र हम गये हैं.
कहें सब तुझे अब अफारी मुहब्बत.६४.
तुझे दिल में अपने हमेशा है पाया.
कभी मुझको दिल में तू पा री मुहब्बत.65.
अमन-चैन हो, दंगा-संकट हो चाहे
न रोके से रुकती है जारी मुहब्बत.६६.
सफर ज़िंदगी का रहा सिर्फ सफरिंग
तेरा नाम धर दूँ सफारी मुहब्बत.६७.
जिसे जो न भाता उसे वह भगाता
नहीं कोई कहता है: 'जा री मुहब्बत'.६८.
तरसती हैं आँखें झलक मिल न पाती.
पिया को प्रिया से मिला री मुहब्बत.६९.
भुलाया है खुद को, भुलाया है जग को.
नहीं रबको पल भर बिसारी मुहब्बत.७०.
सजन की, सनम की, बलम की चहेती.
करे ढाई आखर-मुखारी मुहब्बत.७१.
न लाना विरह-पल जो युग से लगेंगे.
मिलन शायिका पर सुला री मुहब्बत.७२.
उषा के कपोलों की लाली कभी है.
कभी लट निशा की है कारी मुहब्बत.७३.
मुखर, मौन, हँस, रो, चपल, शांत है अब
गयी है विरह से उबारी मुहब्बत..
न तनकी, न मनकी, न सुध है बदनकी.
कहाँ हैं प्रिया?, अब बुला री मुहब्बत.७४.
नफरत को, हिंसा, घृणा, द्वेष को भी
प्रचारा, न क्योंकर प्रचारी मुहब्बत?७५.
सातों जनम तक है नाता निभाना.
हो कुछ भी न डर, कर तयारी मुहब्बत.७६.
बसे नैन में दिल, बसे दिल में नैना.
सिखा दे उन्हें भी कला री मुहब्बत.७७.
कभी देवता की, कभी देश-भू की
अमानत है जां से भी प्यारी मुहब्बत.७८.
पिए बिन नशा क्यों मुझे हो रहा है?
है साक़ी, पियाला, कलारी मुहब्बत.७९.
हो गोकुल की बाला मही बेचती है.
करे रास लीलाविहारी मुहब्बत.८०.
हवन का धुआँ, श्लोक, कीर्तन, भजन है.
है भक्तों की नग्मानिगारी मुहब्बत.८१.
ज़माने ने इसको कभी ना सराहा.
ज़माने पे पड़ती है भारी मुहब्बत.८२.
मुहब्बत के दुश्मन सम्हल अब भी जाओ.
नहीं फूल केवल, है आरी मुहब्बत.८३.
फटेगा कलेजा न हो बदगुमां तू.
सिमट दिल में छिप जा, समा री मुहब्बत.८४.
गली है, दरीचा है, बगिया है पनघट
कुटिया-महल है अटारी मुहब्बत.८५.
पिलाया है करवा से पानी पिया ने.
तनिक सूर्य सी दमदमा री मुहब्बत.८६.
मुहब्बत मुहब्बत है, इसको न बाँटो.
तमिल न मराठी-बिहारी मुहब्बत.८७.
न खापों का डर है न बापों की चिंता.
मिटकर निभा दे तू यारी मुहब्बत.८८.
कोई कर रहा है, कोई बच रहा है.
गयी है किसी से न टारी मुहब्बत.८९.
कली फूल कांटा है तितली- भ्रमर भी
कभी घास-पत्ती है डारी मुहब्बत.९०.
महल में मरे, झोपड़ी में हो जिंदा.
हथेली पे जां, जां पे वारी मुहब्बत.९१.
लगा दाँव पर दे ये खुद को, खुदा को.
नहीं बाज आये, जुआरी मुहब्बत.९२.
मुबारक है हमको, मुबारक है तुमको.
मुबारक है सबको, पिआरी मुहब्बत.९३.
रहे भाजपाई या हो कांगरेसी
न लेकिन कभी हो सपा री मुहब्बत.९४.
पिघल दिल गया जब कभी मृगनयन ने
बहा अश्क जीभर के ढारी मुहब्बत.९५.
जो आया गया वो न कोई रहा है.
अगर हो सके तो न जा री मुहब्बत.९६.
समय लीलता जा रहा है सभी को.
समय को ही क्यों न खा री मुहब्बत?९७.
काटे अनेकों लगाया न कोई.
कर फिर धरा को हरा री मुहब्बत.९८.
नंदन न अब देवकी के रहे हैं.
न पढ़ने को मिलती अयारी मुहब्बत.९९.
शतक पर अटक मत कटक पार कर ले.
शुरू कर नयी तू ये पारी मुहब्बत.१००.
न चौके, न छक्के 'सलिल' ने लगाये.
कभी हो सचिन सी भी पारी मुहब्बत.१०१.
'सलिल' तर गया, खुद को खो बेखुदी में
हुई जब से उसपे है तारी मुहब्बत.१०२.
'सलिल' शुबह-संदेह को झाड़ फेंके.
ज़माने की खातिर बुहारी मुहब्बत.१०३.
नए मायने जिंदगी को 'सलिल' दे.
न बासी है, ताज़ा-करारी मुहब्बत.१०४.
जलाती, गलाती, मिटाती है फिर भी
लुभाती 'सलिल' को वकारी मुहब्बत.१०५.
नहीं जीतकर भी 'सलिल' जीत पायी.
नहीं हारकर भी है हारी मुहब्बत.१०६.
नहीं देह की चाह मंजिल है इसकी.
'सलिल' चाहता निर्विकारी मुहब्बत.१०७.
'सलिल'-प्रेरणा, कामना, चाहना हो.
होना न पर वंचना री मुहब्बत.१०८.
बने विश्व-वाणी ये हिन्दी हमारी.
'सलिल' की यही कामना री मुहब्बत.१०९.
ये घपले-घुटाले घटा दे, मिटा दे.
'सलिल' धूल इनको चटा री मुहब्बत.११०.
'सलिल' घेरता चीन चारों तरफ से.
बहुत सोये अब तो जगा री मुहब्बत.१११.
अगारी पिछारी से होती है भारी.
सच यह 'सलिल' को सिखा री मुहब्बत.११२.
'सलिल' कौन किसका हुआ इस जगत में?
न रह मौन, सच-सच बता री मुहब्बत.११३.
'सलिल' को न देना तू गारी मुहब्बत.
सुना गारी पंगत खिला री मुहब्बत.११४.
'सलिल' तू न हो अहंकारी मुहब्बत.
जो होना हो, हो निराकारी मुहब्बत.११५.
'सलिल' साधना वन्दना री मुहबत.
विनत प्रार्थना अर्चना री मुहब्बत.११६.
चला, चलने दे सिलसिला री मुहब्बत.
'सलिल' से गले मिल मिल-मिला री मुहब्बत.११७.
कभी मान का पान लारी मुहब्बत.
'सलिल'-हाथ छट पर खिला री मुहब्बत.११८.
छत पर कमल क्यों खिला री मुहब्बत?
'सलिल'-प्रेम का फल फला री मुहब्बत.११९.
उगा सूर्य जब तो ढला री मुहब्बत.
'सलिल' तम सघन भी टला री मुहब्बत.१२०.
'सलिल' से न कह, हो दफा री मुहब्बत.
है सबका अलग फलसफा री मुहब्बत.१२१.
लड़ाती ही रहती किला री मुहब्बत.
'सलिल' से न लेना सिला री मुहब्बत.१२२.
तनिक नैन से दे पिला री मुहब्बत.
मरते 'सलिल' को जिला री मुहब्बत.१२३.
रहे शेष धर, मत लुटा री मुहब्बत.
कल को 'सलिल' कुछ जुटा री मुहब्बत.१२४.
प्रभाकर की रौशन अटारी मुहब्बत.
कुटिया 'सलिल' की सटा री मुहब्बत.१२५.
५.६.२०२२
***
बेल -
बेल का वृक्ष बहुत प्राचीन है |यह लगभग २०-३० फुट ऊंचा होता है | इसके पत्ते जुड़े हुए त्रिफाक और गंधयुक्त होते हैं | इसका फल ३-४ इंच व्यास का गोलाकार और पीले रंग का होता है | बीज कड़े और छोटे होते हैं | बेल के फल का गूदा और बीज एक उत्तम विरेचक (पेट साफ़ करने वाले ) माने जाते हैं | बेल शर्करा को कम करने वाला,कफ व वात को शांत करने वाला,अतिसार, मधुमेह,रक्तार्श,श्वेत प्रदर व अति रज : स्राव को नष्ट करने वाला होता है | आइए जानते हैं बेल के औषधीय गुण -
१- पके हुए बेल का शर्बत पुराने आंव की महाऔषधि है | इसके सेवन से संग्रहणी रोग बहुत जल्दी ही दूर हो जाता है |
२- बेल का मुरब्बा खाने से पित्त व अतिसार में लाभ होता है | पेट के रोगों में बेल का मुरब्बा खाने से लाभ मिलता है |
३- दस ग्राम बेल के पत्तों को ४-५ कालीमिर्च के साथ पीसकर उसमे १० ग्राम मिश्री मिलकर शरबत बना लें | इसका दिन में तीन बार सेवन करने से पेट दर्द ठीक हो जाता है |
४- बेल के गूदे को गुड़ मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) का रोग दूर हो जाता है |
५- मिश्री मिले हुए दूध के साथ बेल की गिरी के चूर्ण का सेवन करने से, खून की कमी व शारीरिक दुर्बलता दूर होती है |
६- बेल के पत्तों को पीसकर छान लें, इस १० मिलीलीटर रस के प्रतिदिन सेवन से मधुमेह में शर्करा आना कम हो जाती हैं |
***
नवगीत
*
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
*
तू-तू, मैं-मैं कर हम हारे
हम न मगर हो सके बेचारे
तारणहार कह रहे उनको
मत दे जिनके भाग्य सँवारे
ठगित देवयानी
भ्रम कच है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
*
काश आँख से चश्मा उतरे
रट्टू तोता यादें बिसरे
खुली आँख देखे क्या-कैसा?
छोड़ झुनझुना रोटी कस रे!
राग न त्याज्य
विराग न शुभ है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
*
'खुला' न खुला बंद है तब तक
तीन तलाक मिल रहे जब तक
एसिड डालो तो प्रचार हो
दूध मिले नागों को कब तक?
पत्थरबाज
न अपना कुछ है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
५-६-२०१७
***
नवगीत-
*
एसिड की
शीशी पर क्यों हो
नाम किसी का?
*
अल्हड, कमसिन, सपनों को
आकार मिल रहा।
अरमानों का कमल
यत्न-तालाब खिल रहा।
दिल को भायी कली
भ्रमर गुंजार करे पर-
मौसम को खिलना-हँसना
क्यों व्यर्थ खल रहा?
तेज़ाबी बारिश की जिसने
पात्र मौत का-
एसिड की
शीशी पर क्यों हो
नाम किसी का?
*
व्यक्त असहमति करना
क्या अधिकार नहीं है?
जबरन मनमानी क्या
पापाचार नहीं है?
एसिड-अपराधी को
एसिड से नहला दो-
निरपराध की पीर
तनिक स्वीकार नहीं है।
क्यों न किया अहसास-
पीड़ितों की पीड़ा का?
एसिड की
शीशी पर क्यों हो
नाम किसी का?
*
अपराधों से नहीं,
आयु का लेना-देना।
नहीं साधना स्वार्थ,
सियासत-नाव न खेना।
दया नहीं सहयोग
सतत हो, सबल बनाकर-
दण्ड करे निर्धारित
पीड़ित जन की सेना।
बंद कीजिए नाटक
खबरों की क्रीड़ा का
एसिड की
शीशी पर क्यों हो
नाम किसी का?
७-४-२०१४
***
हाइकु सलिला
*
वंदना करें
अंतरात्मा से मिलें
दैवत्व वरें
*
प्रार्थना उसकी
जो न खुद प्रार्थी हो
सुन ले सबकी
*
साधना फले
यदि हो लगातार
सुफल मिले
*
गीत गाइए
पर्यावरण संग
मुस्कुराइए
*
तूफानी झौंका
सहमा कुत्ता भौंका
उड़ी झोपड़ी
५-६-२०१६
***
ॐ
छंद सलिला:
शंकर छंद
*
छंद-लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद - मात्रा २६ मात्रा, यति १६ - १०, पदांत गुरु लघु.
लक्षण छंद:
बम बम भोले जय शिव शंकर , गौरीपति उमेश
सोलह गुण-दस इन्द्रियपति जय , सदय हों सर्वेश
गुरु-लघु सबका अंत तुम्हीं में , तुम्हीं सबके नाथ
सुर नर असुर झुकाते प्रभु! तव , पद पद्म में माथ
उदाहरण:
१. जय-जय भारत भूमि सुपावन , मनुज को वरदान
तरसें लेने जन्म देव भी , कवि करें गुणगान
पुरवैया पछुआ मलयज , करें जीवन दान
हिमगिरि सागर रक्षक अद्भुत , हर छंद रस-खान
२. पैर जमीं पर जमा आसमां , पर कर हस्ताक्षर
कोई निरक्षर रहे न शेष , हर जन हो साक्षर
ख्वाब पाल जो अँखिया सोये , करे कर साकार
हर दिल दिल से जुड़े मिटाकर , आपसी तकरार
३.दिल की दुनिया का दौलत से , जोड़ मत संबंध
आस-प्यास का कभी हास से , हो नहीं अनुबंध
जो पाया नाकाफी कहकर , और अधिक न जोड़
तुझसे कम हो जहाँ उसीसे , करें तुलना-होड़
५-६-२०१४
*********
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
***
दोहा सलिला
हिंदी का उपहास कर, अंग्रेजी के गीत.
जो गाते वे जान लें, स्वस्थ्य नहीं यह रीत..
*
'मीन' संकुचित है 'सलिल', 'मीन' मायने अर्थ.
अदल-बदल से अर्थ का, होता बहुत अनर्थ..
*
कहते हैं 'गुड रेस्ट' को, 'बैड रेस्ट' क्यों आप?
यह लगता वरदान- वह, लगता है अभिशाप..
*
'लैंड' करें फिर 'लैंड' का, नाप लीजिए मीत.
'बैंड' बजाकर 'बैंड' हो, 'बैंड' बाँधना रीत..
*
'सैड' कहा सुन 'सैड' हो, आप हो गये मौन.
दुःख का कारण क्या रहा, बतलायेगा कौन??
*
'सैंड' कर दिया 'सैंड' को, जा मोटर स्टैंड.
खड़े न नीचे पूछते, 'यू अंडरस्टैंड?',
*
'पेंट' कर रहे 'पेंट' को, 'सेंट' न करते' सेंट'.
'डेंट' कर रहे दाँत वे, कर खरोच को 'डेंट'..
*
'मातृ' हुआ 'मातर' पुनः. 'मादर' 'मदर' विकास.
भारत से इंग्लॅण्ड जा, शब्द कर रहे हास..
*
'पितृ' 'पितर' से 'फिदर' हो, 'फादर' दिखता आज.
पिता-पादरी अर्थ पा, साध रहा बहु काज..
*
'भ्रातृ' 'बिरादर' 'ब्रदर' है, गले मिलें मिल झूम.
भाईचारा अमित सुख किसे नहीं मालूम..
*
'पंथ' विहँस 'पथ' 'पाथ' हो, पहुँचा दूर विदेश.
हो 'दीवार' 'द वाल' क्या, दे सुन लें संदेश..
५-६-२०१२
***
तसलीस गीतिका :
सूरज
*
बिना नागा निकलता है सूरज.
कभी आलस नहीं करते देखा..
तभी पाता सफलता है सूरज...
*
सुबह खिड़की से झाँकता सूरज.
कह रहा तंम को जीत लूँगा मैं..
कम नहीं ख़ुद को आँकता सूरज...
*
उजाला सबको दे रहा सूरज.
कोई अपना न पराया कोई..
दुआएँ सबकी ले रहा सूरज...
*
आँख रजनी से चुराता सूरज.
बाँह में एक चाह में दूजी..
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज...
*
जाल किरणों का बिछाता सूरज.
कोई अपना न पराया कोई..
सभी सोयों को जगाता सूरज..
*
भोर पूरब में सुहाता सूरज.
दोपहर देखना भी मुश्किल हो..
शाम पश्चिम को सजाता सूरज...
*
काम निष्काम हर करता सूरज.
मंजिलें नित नई वरता सूरज..
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज...
***
मुक्तिका:
अक्षर उपासक हैं....
*
अक्षर उपासक हैं हम गर्व हमको, शब्दों को जीकर सँवर जाएँगे हम
गीतों में, मुक्तक में, ग़ज़लों में, लेखों में, मरकर भी जिंदा रहे आएँगे हम
*
बुजुर्गों से पाया खज़ाना अदब का, न इसको घटाएँ, बढ़ा जाएँगे हम
चादर अगर ज्यों की त्यों ही हो रखना, आगे सभी से नज़र आएँगे हम
*
लिखना तो हक है, लिखेंगे हमेशा, न आलोचनाओं से डर जायेंगे हम.
कमियाँ रहेंगी ये हम जानते हैं, दाना बतायें सुधर पायेंगे हम..
*
गम हो, खुशी हो, मुहब्बत-शहादत, न हो इसमें नफ़रत, न गुस्सा-अदावत.
महाकाल के हम उपासक हैं सच्चे, समय की चुनौती को शरमायेंगे हम..
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'खलिश' हो तो रचना में आती है खूबी, नादां 'सलिल' में खूबी ही डूबी.
फिर भी है वादा, न हम मौन होंगे, कल-कल में धुन औ' बहर गायेंगे हम..
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लड़ा आँख से आँख, आँखों में बसकर, सपनों में अपनों के हँस आएँगे हम
आखर न ढाई बिसारे हैं हमने, ऐ महबूब! मर तुझपे जी जाएँगे हम
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कहो ना कहो पर तुम्हें याद आकर, छेड़ेंगे तुमको ही तरसाएँगे हम
बादल हैं हम जब धरा तुम बनोगी, बाँहों में भरकर बरस जाएँगे हम
५-६-२०१०
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