सलिल सृजन जून २
०
सॉनेट
०
आदम की औलाद क्यों
बन जाती हैवान है
शर्माता शैतान है
उगें फूल संग फूल क्यों?
माटी बन फौलाद क्यों
हो जाती बेजान है
लेती हँसकर जान है
शीश चढ़ रही धूल क्यों?
नहीं विरोधी परस्पर
पूरक एक दूसरे के
हैं गतिमान, नहीं ठहरे।
हो नीचे या हो ऊपर
ठूँठ हुए जो हरे थे
फिर-फिर ये होंगे हरे।।
२.५.२०२५
०0०
पूर्णिका
०
आँख खुली तो गूँजे सोहर
आँख मुँदी रोया घर-बाहर
.
आँख मिली सौ सपने देखे
आँख झुकी था दिलकश मंजर
.
आँख दिखा धमकाया चुप रह
आँख उठा फुसलाया फिर फिर
.
आँख फेर लीं जब आँखों ने
आँख हुईं नम, दिल था बेघर
.
आँख फूल बन महकाएँ जग
आँख शूल बन चुभतीं खंजर
.
आँख तरेरें आँखें सहमें
आँख चुराएँ हेरें बाहर
.
आँख कमसिनी के सौ किस्से
आँख केसरी करती जौहर
.
आँख कैदखाने में कैदी
आँख मिली बैठी पहरे पर
.
आँख बन गई नज़र आँख की
आँख रख रही नज़र आँख पर
.
आँख बुने सन्नाटा इस पल
आँख बने उस पल जलसा घर
.
आँख पवन नभ भू पाखी पर
आँख सलिल सरिता सर निर्झर
०००
क्षणिका
.
क्या सोचेंगे लोग?,
न सोचो
सोच रहे हैं,
वे भी यह।।
०
बीबी को
खुश रखना आसां
बेहद मुश्किल
चुप रखना।।
०
झाड़ू पोंछा बर्तन कपड़े
शौहर कर खो धैर्य रहा है।
भजन गा रही बीबी
"तेरी कृपा से मेरा सब काम हो रहा है।"
०
कभी न खोलो मुँह बीबी के सामने
मुँह सिल देतीं पका करेला बैंगन वे।।
०००
बस यात्रा है प्रेम,
हवाई यात्रा है शादी
उतरे इससे जब जी चाहा
उसमें कैदी जन्मों तक।
०
२.६.२०२५
०0०
मुहावरे पर कविता
*
कविवर एक निढाल थे
कैसे होगा काज?
जुमलेबाजों का हुआ
सकल देश पर राज।
बिटिया स्यानी हो गई
करना जल्दी ब्याह।
मिले कहीं से धन मिटे
चिंता तभी अथाह।
अवधपुरी में गए तो
झिड़कें पहरेदार।
सबसे मिल सकते नहीं,
जब-तब श्री सरकार।
भीख माँगने आ गए
आई तनिक न लाज।
मिले हाथ दो ईश से
करो कहीं कुछ काज।
हो निराश वन में गया
आश्रम देखा एक।
सोचा कुछ उपदेश सुन
पाऊँ बुद्धि विवेक।
दो बालक थे खेलते
कुटिया देखी एक।
राह निहारें संत की
आई महिला नेक।
अन्न मिठाई फल मिले
सोचा जागे भाग।
घर जा बिटिया को दिया
जो पाया सामान।
चकित हुई बिटिया निरख
किसकी कृपा महान।
विप्र कहे- 'जननी मिलीं
दी बिन बोले सीख।
बिन माँगे मोती मिले
माँगे मिले न भीख।
२.६.२०२३
***
भाषा नीति, मानक हिंदी
०१. स्वर-व्यंजन निम्न अनुसार होंगें-
(अ) स्वर - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वार- अं विसर्ग: अ:।
(आ ) व्यंजन - क, ख, ग, घ, ङ (क़, ख़, ग़), च, छ, ज, झ, ञ (ज़, झ़), ट, ठ, ड, ढ, ण (ड़, ढ़), त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, (फ़), य, र, ल, व, श, ष, स, ह।
(इ) संयुक्त वर्ण- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र, क्र, प्र, ब्र, स्र, ह्र, ख्र आदि।
(ई)संयुक्त वर्ण
(अ) खड़ी पाईवाले व्यंजन - ख्यात, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा, नगण्य, कुत्ता, पथ्य, ध्वनि, न्यास, प्यास, अब्बा, सभ्य, रम्य, अय्याश, उल्लेख, व्यास, श्लोक, राष्ट्रीय, स्वीकृति, यक्ष्मा, त्र्यंबक।
(आ) अन्य व्यंजन - संयुक्त, पक्का, दफ्तर, वाङ्मय, लट्टू, बुड्ढा, विद्या, ब्रह्मा,प्रकार, धर्म, श्री, श्रृंगार, विद्वान, चिट्ठी, बुद्धि, विद्या, चंचल, अंक, वृद्ध; द्वैत आदि।
(उ) संस्कृत भाषा के मूल श्लोकों को उद्धृत करते समय मूल अंश में प्रयुक्त वर्ण, संयुक्ताक्षर तथा हिंदी वर्णमाला में जो वर्ण शामिल नहीं हैं, वे यथावत लिखे जाएँ। पाली, ब्राह्मी, प्रकृत, कैथी, शारदा आदि लिपियों के उद्धरण मूल उच्चारण के अनुसार देवनागरी में लिखे जाएँ।
(ऊ) शिरोरेखा (मुड्ढा) का प्रयोग अनिवार्य है।
(ए) विरामचिह्न-
पूर्णविराम - । इसका प्रयोग -
वाक्य के अंत में करें। कृष्णप्रज्ञा उत्तम पत्रिका है।
अल्पविराम , इसका प्रयोग -
(१) तीन या अधिक शब्दों को अलग करने के लिए - गीत, ग़ज़ल, सॉनेट, माहिया आदि काव्य रूप हैं।
(२) एक वाक्य में प्रयुक्त एक प्रकार के पदबंधों, उपवाक्यों को अलग करने के लिए - नर्मदा का शीतल जल, हरीतिमा और सौंदर्य मन मोह लेता है।
(३) वाक्य के बीच में किसी अंश को अलग दिखाने के लिए - पाठ्यक्रम बदल जाने से, पुस्तकें बदलेंगी, परीक्षा फल भी प्रभावित होंगा।
(४) सकारात्मक और नकारात्मक अभिव्यक्ति के बाद - हाँ, चले जाओ। / नहीं, मत जाओ।
(५) बस, सचमुच, अच्छा, वास्तव में, खैर आदि शब्दों से आरंभ होने वाले वाक्यों में इनके बाद - बस, और आगे मत जाओ।
(६) संबोधन के बाद - संपादक जी, रचना चयनित होने की सूचना दें।
अर्धविराम ; इसका प्रयोग
(१) एक वाक्य पर आश्रित दो या अधिक वाक्यों की श्रृंखला में हो। विद्या विनय से आती है; विनय से पात्रता; पात्रता से धन; धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।
(२) समुच्चयबोधकों से बने उपवाक्यों को अलग करने के लिए - आपने उसकी निंदा की; इसलिए वह आपका शत्रु बनेगा।
(३) समानाधिकरण उपवाक्यों के बीच में - गाँधी जी ने सत्याग्रह किए; अहिंसा का शस्त्र दिया।
(४) अंकों का विवरण देने में - पेन - १२ ; पेन्सिल ६; रबर ६
उपविराम : आगेआनेवाली सूची के पूर्व, जैसे मनुष्य के ३ शत्रु हैं : १आलस्य, हीनता, पराश्रय।
योजक/निर्देशक चिह्न - योजक चिह्न की आड़ी रेखा छोटी होती है जबकि निर्देशक चिह्न की आड़ी रेखा अपेक्षाकृत लंबी होती है।
योजक चिह्न का प्रयोग -
(१) द्वंद्व समास के बीच में। जैसे - राम और श्याम के स्थान पर राम-श्याम
(२) शब्द की आवृत्ति होने पर। यथा :- मुख्य-मुख्य बिंदुओं पर विचार करें।
(३) विलोम शब्दों के बीच में। जैसे :- रात-दिन।
निर्देशक चिह्न का प्रयोग
(१) उद्धरण के बाद और लेखक के पहले - स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है - तिलक
(२) निम्न व निम्नलिखित के बाद - पानी के समानार्थी निम्न/निम्नलिखित हैं - नीर, जल, सलिल, वारि आदि।
विवरण चिह्न :- यह उपविराम तथा निर्देशक चिन्ह का मिश्रित रूप है। इसका प्रयोग दोनों के विकल्प रूप में किया जाता है।
प्रश्न चिह्न ? इसका प्रयोग प्रश्न पूछने के बाद किया जाता है - तुम्हारा नाम क्या है ? क्या, क्यों, कब, कैसे, कितने, किसने, किससे, किस लिए जैसे प्रश्न सूचक शब्द इस चिह्न के प्रयोग के पूर्व प्रयुक्त होते हैं।
विस्मयसूचक चिह्न ! यह विस्मय, हर्ष, आह्लाद, आदि के अभिव्यक्ति के बाद प्रयुक्त होता है। जैसे :- हे राम! यह कैसे हुआ?
ऊर्ध्व अल्प विराम ' इसका प्रयोग - अंक लोपन हेतु, सन '४७ से सन '५२ तक।
शब्द चिह्न ' ' इसका प्रयोग पुस्तक, व्यक्ति, स्थान आदि के नाम के साथ किया जाता है। 'गीता' में निष्काम कर्म को ही धर्म बताया गया है।
उद्धरण चिह्न " " इसका प्रयोग किसी का कथन ज्यों का त्यों उद्धृत करते समय, नाटकों-कहानियों में संवाद के साथ, किसी सिद्धांत / लोकोक्ति के साथ करें। नेता जी ने कहा - ''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।"
छोटा कोष्ठक () - इसके अंदर वह सामग्री रखी जाती है जो मुख्य वाक्य का अंग होते हुए भी पृथक की जा सकती है। काल के तीन प्रकारों (भूत, वर्तमान, भविष्य) के उदाहरण दो। क्रमांक, अक्षरों तथा अंकों में लिखी संख्या को अक्षरों में लिखने के लिए भी छोटा कोष्ठक प्रयोग करें।
मध्यम कोष्ठक {} - एक से अधिक प्रकार की टिप्पणी हेतु माध्यम कोष्ठक का प्रयोग करें।
बड़ा कोष्ठक [] - दो से अधिक प्रकार की टिप्पणी हेतु बड़े कोष्ठक का प्रयोग करें।
लोप चिह्न ... किसी लेखांश को न लिखना हो तो इस चिह्न का प्रयोग करें। जैसे :- तेरी ........... ।
हंसपद ^ - दो शब्दों के मध्य कुछ लिखना हो तो यह चिन्ह बनाकर पंक्ति के ऊपर लिखें।
सार/ संक्षेप चिह्न . इसका प्रयोग संक्षेपाक्षर के बाद करें। एम.ए., से.मी. आदि।
(ऐ) विसर्ग और उपविराम (कोलन) चिन्ह : समान है। इनके प्रयोग में अन्तर है।
(१) विसर्ग वर्ण से चिपकाकर (भारत:) तथा कोलन कुछ दूरी पर (सरकार के ३ अंग : विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका हैं।) रखें। (२) संख्याओं में अनुपात प्रदर्शित करने के लिए - २ : ४।
(३) नाटक/एकांकी में उद्धरण चिह्न के बिना केवल उपविराम चिह्न का प्रयोग किया जाता है। राम : सीते! अग्नि देव ने यह प्रमाणित किया है कि तुम निर्दोष, निष्कलंक हो।
(४) सूचनाओं के लिए - स्थान : सभागार , समय अपराह्न ५ बजे
०२. कृष्ण प्रज्ञा की मुख्य भाषा आधुनिक (खड़ी) हिंदी तथा लिपि देवनागरी है। संस्कृत, भारतीय भाषाओँ-बोलिओं, आंचलिक बोलिओं तथा विदेशी भाषा-बोलिओं के उद्धरण यथास्थान दिए जा सकते हैं। अहिन्दी भाषाओँ के उद्धरण देते समय मूल उच्चारण देवनागरी लिपि में तथा हिंदी अर्थ दिया जाना चाहिए।
०३. लेखक उद्धरणों की शुद्धता तथा प्रामाणिकता हेतु जिम्मेदार होंगे। प्रयुक्त उद्धरणों के संदर्भ आरोही (बढ़ते हुए) क्रम में लेख के अंत में देंगे। पृष्ठ डिजाइनर हर पृष्ठ पर मुद्रित सामग्री संबंधी उद्धरणों के संदर्भ उसी पृष्ठ पर पाद टिप्पणी के रूप में देंगे।
०४. रचनाओं में तत्सम-तद्भव शब्दों का प्रयोग स्वीकार्य है।
०५. रचनाओं में केवल यूनिकोड या यूनिकोड समर्थित फॉण्ट का उपयोग करें जिसे कोकिला फॉण्ट में परिवर्तित कर मुद्रित किया जायेगा।
०६. कृष्णप्रज्ञा में हिंदी संस्करण में देवनागरी अंकों तथा अंग्रेजी संस्करण में अंग्रेजी अंकों का प्रयोग किया जाए।
०७. हिंदी में पारंपरिक रूप से नुक्ता का प्रयोग नहीं किया जाता है। लेखक अपनी भाषा-शैली में चाहे तो नुक्ता का प्रयोग यथास्थान कर सकता है।
०८. कारक चिह्न (परसर्ग) -
(अ) हिंदी के कारक : कर्ता - ने, कर्म - को, करण - से; द्वारा, संप्रदान - को; के लिए, अपादान - से (पृथक होना), संबंध - का; के; की; ना, नी ने, रा, री, रे, अधिकरण - में; पर, संबोधन - हे; अहो, अरे, अजी आदि हैं।
(आ) संज्ञा शब्दों में कारक प्रतिपादक से अलग लिखें।
(इ) सर्वनाम शब्दों में करक को प्रतिपादक के साथ मिलाकर लिखें।
(ई) सर्वनाम के साथ दो कारक एक साथ हों तो पहला कारक मिलाकर तथा दूसरा अलग लिखा जाए। सर्वनाम और कारक के बीच निपात हों तो कारक को पृथक लिखें।
०९. संयुक्त क्रिया पद -
सभी अंगीभूत क्रियाएँ अलग-अलग लिखें।
१०. योजक चिह्न (हाइफ़न -) - इसका प्रयोग स्पष्टता के लिए किया जाता है।
(अ) द्वंद्व समास में पदों के बीच में योजक चिह्न हो। उदाहरण :- शिव-पार्वती, लिखना-पढ़ना आदि।
(आ) सा, से, सी के पूर्व योजक चिह्न हो। जैसे :- तुम-सा, उस-सी, कलम से आदि।
(इ) तत्पुरुष समास में योजक चिह्न का प्रयोग केवल वहीं हो जहाँ उसके बिना भ्रम की संभावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे भू-तत्व = पृथ्वी तत्व, भूतत्व = भूत होने का भाव या लक्षण आदि।
(ई) कठिन संधियों से बचने के लिए भी योजक प्रयोग किया जा सकता है। द्वयक्षर के स्थान पर द्वि-अक्षर, त्र्यंबक के स्थान पर त्रि-अंबक। इससे अहिन्दीभाषियों के लिए समझना आसान होगा।
११. अव्यय -
(अ) 'तक', 'साथ' आदि अव्यय हमेशा अलग लिखें। जैसे :-वहाँ तक, उसके साथ।
(आ) जब अव्यय के आगे परसर्ग (कारक) आए तब भी अव्यय अलग ही लिखा जाए। अब से, सदा के लिए, मुझे जाने तो दो, बीघा भर जमीन, बात भी नहीं बनी आदि।
(इ) सब पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि समास होने पर सकल पद एक माना जाता है। यथा :- 'दस रूपए मात्र , मात्र कुछ रुपए आदि।
१२. सम्मानसूचक अव्यय
(अ) सम्मानात्मक अव्यय पृथक लिखें। यथा :- श्री चित्रगुप्त जी, पूज्य स्वामी विवेकानंद आदि।
(आ) श्री संज्ञा का भाग हो तो अलग नहीं लिखें। जैसे :- श्रीगोपाल श्रीवास्तव।
(इ) सभी पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि अव्यय जोड़कर लिखें। उदाहरण :- प्रतिदिन, प्रतिशत, नित्यप्रति, मानवमात्र, निमित्तमात्र, यथासमय, यथोचित, यथाशक्ति आदि।
१३. अनुस्वार (शिरोबिंदु/बिंदी)
(अ) अनुस्वार व्यंजन है।
(आ) संस्कृत शब्दों में अनुस्वार का प्रयोग अन्य वर्णीय वर्णों (य से ह तक) से पहले रहेगा। यथा :- यंत्र, रंचमात्र, लंब, वंश, शंका, संयोग, संरक्षण, संलग्न, संवाद, संक्षेप, संतोष, हंपी, अंश, कंस, सिंह आदि।
(इ) संयुक्त वर्ण में पाँचवे अक्षर ('ङ्', ञ्, ण, न, म) के बाद सवर्णीय वर्ण हो तो अनुस्वार का प्रयोग करें। यथा :- कंगाल, खंगार, गंगा, घंटा, चंचु, छंद, जंजाल, झंझट, टंकर, ठंडा, डंडी, तंदूर, थंब, दंश, धंधा, नंद, पंच, फंदा, बंधु, भंते, मंदिर आदि।
(ई) पाँचवे अक्षर के बाद अन्य वर्ग का वर्ण आए तो पांचवा अक्षर अनुस्वार के रूप में नहीं बदलेगा। जैसे :- वाङ्मय, अन्य, उन्मुख, चिन्मय, जन्मेजय, तन्मय आदि।
(उ) पाँचवा वर्ण साथ-साथ आए तो अनुस्वार में नहीं बदलेगा। जैसे :- अन्न, सम्मेलन, सम्मति आदि।
(ऊ) अन्य भाषाओँ (उर्दू, अंग्रेजी आदि) से लिए गए शब्दों में आधे वर्ण या अनुस्वार के भ्रम को दूर करने के लिए नासिक्य (न, म) व्यंजन पूरा लिखें। जैसे :- लिमका, तनखाह, तिनका, तमगा, कमसिन आदि।
१४. अनुनासिक (चंद्रबिंदु)
(अ) अनुनासिक स्वर का नासिक्य विकार है। यह, व्यंजन नहीं,स्वरों का ध्वनि गुण है। अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह और नाक से वायु प्रवाह होता है। जैसे :- अँ, आँ, ऊँ, एँ, माँ, हूँ, आएँ आदि।
(आ) अनुस्वार और अनुनासिक के गलत प्रयोग से अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जैसे :- हंस = पक्षी, हँस - क्रिया, आंगन
(इ) जहाँ चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु का प्रयोग भ्रम न उत्पन्न करे वहाँ निषेध नहीं है। जैसे :- में, मैं, नहीं, आदि में अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग।
१५. विसर्ग
(अ) तत्सम रूप में प्रयुक्त संस्कृत शब्दों में विसर्ग का प्रयोग यथास्थान किया जाए। जैसे :- दु:खानुभूति।
(आ) तत्सम शब्दों के अंत में विसर्ग का प्रयोग अवश्य हो। यथा :- अत:. पुन:, स्वत:, प्राय:, मूलत:, अंतत:, क्रमश: आदि।
(इ) विसर्ग के स्थान पर उसके उच्चरित रूप 'ह' का प्रयोग कतई न किया जाए।
(ई) दुस्साहस, निस्स्वार्थ तथा निश्शब्द का नहीं, दु:साहस, नि:स्वार्थ तथा नि:शब्द का प्रयोग करें।
(उ) निस्तेज, निर्वाचन, निश्छल लिखें। नि:तेज, नि:वचन,नि:चल न लिखें।
(ऊ) अंत:करण, अंत:पुर, दु:स्वप्न, नि:संतान, प्रात:काल विसर्ग सहित ही लिखें।
(ए) तद्भव / देशी शब्दों में विसर्ग का प्रयोग न करें। छः नहीं छह लिखें।
(ऐ) प्रायद्वीप, समाप्तप्राय आदि में विसर्ग नहीं है।
(ओ) विसर्ग को वर्ण के साथ चिपकाकर लिखा जाए जबकि उपविराम (कोलन) चिन्ह शब्द से कुछ दूरी पर हो। अत:, जैसे :- आदि।
१६. हल् चिह्न ( ् )
(अ) व्यंजन के नीचे लगा हल् चिह्न बताता है कि वह व्यंजन स्वर रहित है। हल् चिह्न लगा शब्द 'हलंत' शब्द है। जैसे :- जगत्।
(आ) संयुक्ताक्षर बनाने में हल् चिह्न का प्रयोग आवश्यक है। यथा :- बुड्ढा, विद्वान आदि।
(इ) तत्सम शब्दों का प्रयोग हलन्त रूपों के साथ हो। प्राक्, वाक्, सत्, भगवन्, साक्षात्, जगत्, तेजस्, विद्युत्, राजन् आदि। महान, विद्वान आदि में हल् चिह्न न लगाएँ।
१७. स्वन परिवर्तन
संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी ज्यों की त्यों रखें। 'ब्रह्मा' को ब्रम्हा, चिह्न को चिन्ह न लिखें। अर्ध, तत्त्व आदि स्वीकार्य हैं।
१८. 'ऐ' तथा 'औ' का प्रयोग
(अ) 'ै' तथा ' ौ' का प्रयोग दो तरह से (अ) मूल स्वरों की तरह - 'है', 'और' आदि में तथा सन्ध्यक्षरों के रूप में 'गवैया', कौवा' आदि में किया जा सकता है। इन्हें 'गवय्या', 'कव्वा' आदि न लिखें।
(आ) अहिन्दी शब्दों 'अय्यर', 'नय्यर', 'रामय्या' को 'ऐयर', 'नैयर', 'रामैया' न लिखें। 'अव्वल', 'कव्वाली' आदि प्रचलित शब्द यथावत प्रयोग किए जा सकते हैं।
(अ) संस्कृत शब्द 'शय्या' को 'शैया' या 'शइया' न लिखें।
१९. पूर्वकालिक कृदंत
(अ) पूर्वकालिक कृदंत क्रिया से मिलाकर लिखें। जैसे :- आकर, सुलाकर, दिखलाकर आदि।
(आ) कर + कर = 'करके', करा + कर = 'कराके' होगा।
२०. 'वाला' प्रत्यय
(अ) क्रिया रूप में अलग लिखें। जैसे :- करने वाला, बोलने वाला आदि।
(आ) योजक प्रत्यय के रूप में एक साथ लिखें। यथा :- दिलवाला, टोपीवाला, दूधवाला आदि।
(इ) निर्देशक शब्द के रूप में 'वाला' अलग से लिखें। जैसे :- अच्छी वाली बात, कल वाली कहानी, यह वाला गीत आदि।
२१. श्रुतिमूलक 'य', 'व्'
(अ) विकल्प रूप में प्रयोग न किया जाए। जैसे :- 'किए', 'नई', 'हुआ' आदि के स्थान पर 'किये', 'नयी', 'हुवा' आदि का प्रयोग न करें।
(आ) जहाँ 'य' शब्द का मूल तत्व हो वहाँ उसे न बदलें। जैसे :- 'स्थायी', 'अव्ययीभाव', 'दायित्व' आदि को 'स्थाई', 'अव्यईभाव', 'दाइत्व' आदि न लिखें।
२२. अहिन्दी-विदेशी ध्वनियाँ
(अ) अरबी-फ़ारसी (उर्दू) शब्द -
(क) हिंदी का अभिन्न अंग बन चुके अरबी-फ़ारसी शब्द बिना नुक्ते के लिखें। जैसे :- 'कलम', 'किला', 'दाग' लिखें, 'क़लम', 'क़िला', 'दाग़' न लिखें।
(ख) जहाँ शब्द को मूल भाषा के अनुसार लिखना आवश्यक हो वहाँ हिंदी रूप में यथास्थान नुक्ता (बिंदु) लगाएँ। जैसे- 'खाना', 'राज', 'फन' के स्थान पर 'ख़ाना', 'राज़', 'फ़न' आदि लिखें।
(आ) अंग्रेजी शब्द
(क) जिन अंग्रेजी शब्दों में अर्ध विवृत 'ओ' ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध हिंदी रूप के लिए 'ा ' (आ की मात्रा) के ऊपर अर्धचंद्र लगाएँ। जैसे :- हॉल, मॉल, चॉल, डॉल, टॉकीज, मॉम आदि।
(ख) अंग्रेजी शब्दों का देवनागरी लिप्यंतरण मूल उच्चारण के अधिक से अधिक निकट हो।
(इ) अन्य विदेशी भाषाओँ के शब्द
चीनी, जापानी, जर्मन आदि भाषाओँ के शब्दों को देवनागरी में लिखते समय उनके उच्चारण साम्य पर ध्यान दें। 'बीजिंग' को 'पीकिंग' न लिखें।
२३. दो रूपी शब्द -
कुछ शब्दों के शब्दों के रूप चिरकाल से लोक में प्रचलित तथा साहित्य में उपयोग किये जाते रहे हैं। ऐसे शब्दों के दोनों रूपों का उपयोग किया जा सकता है। जैसे :- गरदन-गर्दन, गरम-गर्म, गरमी-गर्मी, बरफ़-बर्फ़, बिलकुल-बिल्कुल, सरदी-सर्दी, कुरसी-कुर्सी, भरती-भर्ती, फुरसत-फुर्सत, बरदाश्त-बर्दाश्त, बरतन-बर्तन, दुबारा-दोबारा आदि।
२४. आगत शब्दों की वर्तनी -
(अ) निम्न में संयुक्ताक्षर का प्रयोग न हो - नुकसान, इनसान, इनकार, परवाह, बरबाद, मजदूर, सरकार, फरमान, तनखाह, करवट, कुदरत, शिरकत, मरकज़, अकबर, मुजरिम, परवाना, मुगदर, मसखरा, इलजाम, फिलहाल, फुरसत, मनज़र, इनकलाब, आसमान, तकलीफ, मरहम, दरकार, किरदार, शबनम, इजलास, इकबाल, इनतहा, तनहा, तनहाई, असल, असली, असलियत, फसली, गलत, गलती, नकल, नकली, नकलची, वरना, शरबत, दफतर, सरकस, अकसर, रफतार, शरम, शरमाना आदि। अल्प प्रचलित शब्दों के साथ कोष्ठक में उनके हिंदी अर्थ दें। जैसे निस्बत (के लिए), मुख़ालफ़त (विरोध), ज़ाहिर (स्पष्ट), हैरत (आश्चर्य) आदि।
(आ) निम्न में संयुक्ताक्षर का प्रयोग हो - फुर्ती, फुर्तीला, शिकस्त, दुरुस्त, बुजुर्ग, गिरफ्त, गिरफ्तार, रुख्सत, ज़िंदा, क़र्ज़, खर्च, ज़िंदगी, इंतकाम, इंतज़ार, इल्तिजा, अशर्फी, इम्तहान, तिलिस्म, पुख्ता,दरख्त, तर्रार, तश्तरी, लश्कर, जींस, मुंशी, नक्शा, कब्ज़, लफ्ज़, शुक्र,शुक्रिया, खटियर, इत्तेफाक, इश्तहार, बख्शीश, अक्ल, शक्ल, सख्त, सख्ती, गश्त, क़िस्त, किस्म, मुश्क, इश्क, जश्न, कश्मीर, पश्मीना, जिलम, जुर्म, जिस्म, रस्म, रस्मी, हश्र, फिक्र, मुल्क, इल्म, फर्ज, फ़र्ज़ी, इर्द-गिर्द, गोश्त, रास्ता, नाश्ता, शख्स, दर्ज़, दर्ज़ी, सुर्ख, सुर्खी, गुर्दा, जल्द, जल्दी, चश्मा, भिश्ती, उम्र,कुश्ती, चुस्त, चुस्ती, चसकी, फर्क, शर्म, शर्मीली आदि।
(इ) कुछ और मानक शब्द - दुहरा, दुहराना, दुगुना, दूना, दुपहर, दुमंज़िला, दुधारी, दुकान, दुशाला, कुहनी, कुहरा, कुहराम, मुहब्बत, कुहासा, सुहाग, सुहागन, मोहताज, शोहरत, बोहनी, मोहसिन, पहनावा, पहचान, दहलीज, मेहमान, एहसान, एहसास, एहतियात, महँगा, लहँगा, तहज़ीब, गहरा, मुहल्ला, धुआँ, कुआँ, कुँवर, कुँआरा, गेहुँआ आदि।
(ई) आगत शब्दों के बहुवचन तथा लिंग - आगत शब्दों के बहुवचन तथा लिंग हिंदी व्याकरण के अनुसार रखें, उस भाषा के व्याकरण के अनुसार नहीं। जैसे - क़ौम - क़ौमें (अक़्वाम नहीं), किताब - किताबें (किताबात नहीं), किस्म - किस्में (अक्साम नहीं), पिन - पिनें (पिंस नहीं), बोतल - बोतलें (बॉटल - बॉटल्स नहीं) आदि। उद्धरण में वर्जित शब्द यथावत दिए जा सकेंगे।
(उ) विश्व की विविध भाषाओं के हिंदी में प्रचलित शब्दों का प्रयोग हिंदी शब्दों की तरह ही किया जाए।
अंग्रेजी शब्द - बटन, फीस, पिन, पेट्रोल, पुलिस, पेंट, पैंट, पेंसिल, पेन, निब, कैमरा, फोटो, रेडिओ, सिनेमा, साइकिल, रिक्शा, कैलेंडर, फ्रेम, लेंस, नाइट्रोजन, टॉफी, पॉलिश, फुटबाल, हॉकी, मनीऑर्डर, टी. बी., हॉस्पिटल, डॉक्टर, बुक, रेडियो, पेन, पेंसिल, स्टेशन, कार, स्कूल, कंप्यूटर, ट्रेन, सर्कस, ट्रक, टेलीफोन, टिकट, टेबल आदि।
अरबी शब्द - अदा, अजब, अमीर, अजीब, अजायब, अदावत, अक्ल, असर, अहमक, अल्ला, आसार, आखिर, आदमी, आदत, इनाम, इजलास, इज्जत, इमारत, इस्तीफा, इलाज, ईमान, उम्र, एहसान, औरत, औसत, औलाद, कसूर, कदम, कब्र, कसर, कमाल, कर्ज, क़िस्त, किस्मत, किस्सा, किला, कसम, कीमत, कसरत, कुर्सी, किताब, कायदा, कातिल, खबर, खत्म, खत, खिदमत, खराब, खयाल, गरीब, गैर, जिस्म, जलसा, जनाब, जवाब, जहाज, जालिम, जिक्र, तमाम, तकदीर, तारीफ, तकिया, तमाशा, तरफ, तै, तादाद, तरक्की, तजुरबा, दाखिल, दिमाग, दवा, दाबा, दावत, दफ्तर, दगा, दुआ, दफा, दल्लाल, दुकान, दिक, दुनिया, दौलत, दान, दीन, नतीजा, नशा, नाल, नकद, नकल, नहर, फकीर, फायदा, फैसला, बाज, बहस, बाकी, मुहावरा, मदद, मरजी, माल, मिसाल, मजबूर, मालूम, मामूली, मुकदमा, मुल्क, मल्लाह, मौसम, मौका, मौलवी, मुसाफिर, मशहूर, मजमून, मतलब, मानी, मान, राय, लिहाज, लफ्ज, लहजा, लिफाफा, लायक, वारिस, वहम, वकील, शराब, हिम्मत, हैजा, हिसाब, हरामी, हद, हज्जाम, हक, हुक्म, हाजिर, हाल, हाशिया, हाकिम, हमला, हवालात, हौसला आदि।
इटालियन शब्द - कार्टून, गजट, पिआनो, मलेरिआ, लॉटरी, वायलिन, रॉकेट, सॉनेट, स्टूडियो आदि।
चीनी (मैंडेरिन) शब्द - कारतूस, चाय, पटाखा, लीची, साबुन आदि।
जर्मन शब्द - ट्रेन, नात्सी (नाज़ी), सेमिनार।
जापानी शब्द - कतौता, चोका, ताँका, रेंगा, जूडो, सदोका, सायोनारा, हाइकु, हाइगा आदि।
डच शब्द - तुरूप, बम, चिडिया, ड्रिल।
तुर्की शब्द - आगा, आका, उजबक, उर्दू, कातिल, दुकान, बदनाम, कालीन, काबू, कैंची, कुली, कुर्की, चिक, चेचक, चमचा, चुगुल, चकमक, जाजिम, तमगा, तोप, तलाश, बेगम, बहादुर, मुगल, लफंगा, लाश, सौगात, सुराग, चाकू, बारूद, कलंगी, चम्मच, कालीन, खंजर, चुगली, चोगा, तमजा, तमाशा, बावर्ची, उर्दू, हवा, हफ़्ता इत्यादि।
पर्शियन शब्द - ताज़ा।
पुर्तगाली शब्द - अगस्त, अचार, अलमारी, आया, आलपिन, आलू, इस्पात, कनस्तर, कमीज, कार्बन, गमला, गोदाम, गोभी, चाबी, तंबाकू, तौलिया, नीलाम, पतलून, पपीता, पादरी, पीपा, पिस्तौल, प्याज, फालतू, फीता, बटन, बस्ता, बाल्टी, मेज, संतरा, साबुन आदि।
फारसी शब्द - कम, कमर, ख़ाक, गम, वापस, खुदा, अफसोस, आबदार, आबरू, आतिशबाजी, अदा, आराम, आमदनी, आवारा, आफत, आवाज, आइना, उम्मीद, कबूतर, कमीना, कुश्ती, कुश्ता, किशमिश, कमरबन्द, किनारा, कूचा, खाल, खुद, खामोश, खरगोश, खुश, खुराक, खूब, गर्द, गज, गुम, गल्ला, गवाह, गिरफ्तार, गरम, गिरह, गुलूबन्द, गुलाब, गुल, गोश्त, चाबुक, चादर, चिराग, चश्मा, चरखा, चूँकि, चेहरा, चाशनी, जंग, जहर, जीन, जोर, जबर, जिन्दगी, जादू, जागीर, जान, जुरमाना, जिगर, जोश, तरकश, तमाशा, तेज, तीर, ताक, तबाह, तनख्वाह, ताजा, दीवार, देहात, दस्तूर, दुकान, दरबार, दंगल, दिलेर, दिल, दवा, नामर्द, नाव, नापसन्द, पलंग, पैदावार, पलक, पुल, पारा, पेशा, पैमाना, बेवा, बहरा, बेहूदा, बीमार, बेरहम, मादा, माशा, मलाई, मुर्दा, मजा, मुफ्त, मोर्चा, मीना, मुर्गा, मरहम, याद, यार, रंग, रोगन, राह, लश्कर, लगाम, लेकिन, वर्ना, वापिस, शादी, शोर, सितारा, सितार, सरासर, सुर्ख, सरदार, सरकार, सूद, सौदागर, हफ्ता, हजार आदि।
फ्रेंच (फ़्रांसिसी) शब्द - अंग्रेज, एडवोकेट, काजू, कारतूस, कूपन, मीनू, मेयर, रेस्तरां, लैंप, वारंट, सूप आदि।
यूनानी शब्द - एकेडमी, एटलस, बाइबिल, टेलिफोन, एटम।
रूसी शब्द - जार, बुजुर्ग, लूना, वोद्का, वोल्गा, स्पुत्निक।
स्पेनिश शब्द - कारक, प्यून, देस्पासीतो (क्रमश:, धीरे-धीरे). सिगरेट, सिगार,
(ऊ) कोई अन्य भाषायी शब्द आवश्यक हो तो उसे शब्द चिन्ह (' ') एकल इन्वर्टेड कोमा में लिखें। जैसे :- यह जटिल 'प्रॉब्लम' है।
(ए) अंग्रेजी शब्दों का लिप्यंतरण करते समय केवल 'ई'तथा 'ऊ' का प्रयोग करें। जैसे :- key की, city सिटी, blue ब्लू , shoe शू आदि।
(ऐ) अन्य भाषाओँ की व्यक्तिवाचक संज्ञाओं (नामों) उच्चारण यथासंभव मूल रखें। जैसे :- जापानी : तोक्यो (tokyo), फ्रांसीसी : दूप्ले (duplex), रूसी : तोलसतोय (टॉलस्टॉय), स्पेनी : दान किहोते (डॉनक्विज़ोट), अन्य : पोल्स्की (पोलिश नहीं), सोल (सियोल नहीं), म्याँमा (म्याँमार/मियांमार नहीं) आदि।
२५. तत्सम शब्द -
पर्वत, दर्पण जैसे तत्सम शब्दों के देशज रूप परबत, दरपन आदि कॉल उद्धरणों या स्थानीय बोली में उपयोग करें।
२६.तद्भव शब्द -
२७. देशज शब्द - देश + ज अर्थात देश में जन्मा, जो शब्द देश के विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित आम बोल-चाल की भाषा से हिंदी में आ गए हैं, वे देशज शब्द कहलाते हैं। इनकी व्युत्पत्ति का पता नही चलता।प्रचलित हेमचन्द्र ने उन शब्दों को 'देशी' कहा है, जिनकी व्युत्पत्ति किसी संस्कृत धातु या व्याकरण के नियमों से नहीं हुई। विदेशी विद्वान जॉन बीम्स ने देशज शब्दों को मुख्यरूप से अनार्यस्त्रोत से सम्बद्ध माना हैं। जैसे :- चिरैया, पन्हैया, डिबिया, टेंटुआ, कटरा, चिड़िया, कटरा, कटोरा, खिरकी, जूता, खिचड़ी, पगड़ी, लोटा, तेंदुआ, कटरा, अण्टा, ठेठ, ठुमरी, खखरा, चसक, फुनगी, डोंगा आदि।
हिंदी में प्रचलित भारतीय भाषाओँ के शब्द -
ओड़िया शब्द - अटका, अपकर्ष, हँसी-ठट्टा आदि।
गुजराती शब्द - गरबा, बा, बापू, हड़ताल आदि।
पंजाबी शब्द - कुड़माई, गिद्धा, जट्ट, खालसा, बेबे, भाँगड़ा, माहिया, वीर, सिक्ख आदि।
बांगला शब्द - आपत्ति, उपन्यास, गल्प, चमचम, रसगुल्ला, आदि।
मराठी शब्द - चालू, बाजू, लागू, वापरना आदि।
७-५-२०२२
***
गीत
*
निर्मल शुक्ल
न रही चाँदनी
श्याम गुप्त है चाँद
*
रोजगार बिन
लौट रहे हैं मेघ
विवश निज गाँव
पवन वेग से
आकर कुचले
देह, छीन ले ठाँव
संध्या सिंह
लॉकडाउन में
भूखा, सिसके माँद
*
छप्पन इंची
छाती ठोंके सूरज
मन की बात
करे - घरों-घर
राशन-रुपया
बँटवाया गत रात
अरथी निकली
सत्य व्रतों की
श्वास वनों को फाँद
*
फिर नीरव को
कर्ज दिलाने
राज कुँवर बेचैन
चारण पत्रकार
हैं नत शिर
भाट वाक् अरु नैन
हुआ असहमत
जो सूरज से
वही भरेगा डाँड
२-६-२०२०
***
शोध परक लेख :
अग्र सदा रहता सुखी
*
अग्र सदा रहता सुखी, अगड़ा कहते लोग
पृष्ठ रहे पिछड़ा 'सलिल', सदा मनाता सोग
सब दिन जात न एक समान
मानव संस्कृति का इतिहास अगड़ों और पिछड़ों की संघर्ष कथा है. बाधा और संकट हर मनुष्य के जीवन में आते हैं, जो जूझकर आगे बढ़ गया वह 'अगड़ा' हुआ. इसके विपरीत जो हिम्मत हारकर पीछे रह गया 'पिछड़ा' हुआ. अवर्तमान राजनीति में अगड़ों और पिछड़ों को एक दूसरे का विरोधी बताया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. वास्तव में वे एक दूसरे के पूरक हैं. आज का 'अगड़ा' कल 'पिछड़ा' और आज का 'पिछड़ा' कल 'अगड़ा' हो सकता है. इसीलिए कहते हैं- 'सब दिन जात न एक समान'.
मन के हारे हार है
जो मनुष्य भाग्य भरोसे बैठा रहता है उसे वह नहीं मिलता जिसका वह पात्र है. संस्कृत का एक श्लोक है-
उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथै:
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:
.
उद्यम से ही कार्य सिद्ध हो, नहीं मनोरथ है पर्याप्त
सोते सिंह के मुख न घुसे मृग, सत्य वचन यह मानें आप्त
लोक में दोहा प्रचलित है-
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
अग्रधारा लक्ष्य पाती
जो मन से नहीं हारते और निरंतर प्रयास रात होकर आगे आते हैं या नेतृत्व करते हैं वे ही समाज की अग्रधारा में कहे जाते हैं. हममें से हर एक को अग्रधारा में सम्मिलित होने का प्रयास करते रहना चाहिए. किसी धारा में असंख्य लहरें, लहर में असंख्य बिंदु और बिंदु में असंख्य परमाणु होते हैं. यहाँ सब अपने-अपने प्रयास और पुरुषार्थ से अपना स्थान बनाते हैं, कोइ किसी का स्थान नहीं छीनता न किसी को अपना स्थान देता है. इसलिए न तो किसी से द्वेष करें न किसी के अहसान के तले दबकर स्वाभिमान गँवायें.
अग्रधारा लक्ष्य पाती, पराजित होती नहीं
कौन आगे कौन पीछे, देख पथ खोती नहीं
बहुउपयोगी अग्र है
जो आगे रहेगा वह पीछे वालों का पाठ-प्रदर्शक या मार्गदर्शक अपने आप बन जाता है. उसके संघर्ष, पराक्रम, उपलब्धि, जीवट, और अनुकरण अन्यों के लिए प्रेरक बन जाते हैं. इस तरह वह चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने अन्यों के साथ और अन्य उसके साथ जुड़ जाते हैं.
बहुउपयोगी अग्र है, अन्य सदा दें साथ
बढ़ा उसे खुद भी बढ़ें, रखकर ऊँचा माथ
अग्र साथ दे सभी का
आगे जाने के लिए आवश्यक यह है कि पीछे वालों को साथ लिया जाय तथा उनका साथ दिया जाय. कुशल नायक 'काम करो' नहीं कहता, वह 'आइये, काम करें' कहकर सबको साथ लेकर चलता और मंजिल वार्ता है.
अग्र साथ दे सभी का, रखे सभी को संग
वरण सफलता का करें, सभी जमे तब रंग
अन्य स्थानों की तरह शब्दकोष में भी अग्रधारा आगरा-स्थान ग्रहण करती है. आइये आगरा और अग्र के साथियों से मिलें-
अग्र- वि. सं. अगला, पहला, मुख्य, अधिक. अ. आगे. पु. अगला भाग, नोक, शिखर, अपने वर्ग का सबसे अच्छा पदार्थ, बढ़-चढ़कर होना, उत्कर्ष, लक्ष्य आरंभ, एक तौल, आहार की के मात्रा, समूह, नायक.
अग्रकर-पु. हाथ का अगला हिस्सा, उँगली, पहली किरण.
अग्रग- पु. नेता, नायक, मुखिया.
अग्रगण्य-वि. गिनते समय प्रथम, मुख्य, पहला.
अग्रगामी/मिन-वि. आगे चलनेवाला. पु. नायक, अगुआ, स्त्री. अग्रगामिनी.
अग्रदल-पु. फॉरवर्ड ब्लोक भारत का एक राजनैतिक दल जिसकी स्थापना नेताजी सुभाषचन्द्र बोसने की थी, सेना की अगली टुकड़ी.
अग्रज-वि. पहले जन्मा हुआ, श्रेष्ठ. पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण, अगुआ.
अग्रजन्मा/जन्मन-पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण.
अग्रजा-स्त्री. बड़ी बहिन.
अग्रजात/ जातक -पु. पहले जन्मा, पूर्व जन्म का.
अग्रजाति-स्त्री. ब्राम्हण.
अग्रजिव्हा-स्त्री. जीभ का अगला हिस्सा.
अग्रणी-वि. आगे चलनेवाला, प्रथम, श्रेष्ठ, उत्तम. पु. नेता, अगुआ, एक अग्नि.
अग्रतर-वि. और आगे का, कहे हुए के बाद का, फरदर इ.
अग्रदाय-अग्रिम देय, पहले दिया जानेवाला, बयाना, एडवांस, इम्प्रेस्ट मनी.-दानी/निन- पु. मृतकके निमित्त दिया पदार्थ/शूद्रका दान ग्रहण करनेवाला निम्न/पतित ब्राम्हण,-दूत- पु. पहले से पहुँचकर किसी के आने की सूचना देनेवाला.-निरूपण- पु. भविष्य-कथन, भविष्यवाणी, भावी. -सुनहु भरत भावी प्रबल. राम.,
अग्रपर्णी/परनी-स्त्री. अजलोमा का वृक्ष.
अग्रपा- सबसे पहले पाने/पीनेवाला.-पाद- पाँव का अगला भाग, अँगूठा.
अग्रपूजा- स्त्री. सबसे पहले/सर्वाधिक पूजा/सम्मान.
अग्रपूज्य- वि. सबसे पहले/सर्वाधिक सम्मान.
अग्रप्रेषण-पु. देखें अग्रसारण.
अग्रप्रेषित-वि. पहले से भेजना, उच्चाधिकारी की ओर आगे भेजना, फॉरवर्डेड इ.-बीज- पु. वह वृक्ष जिसकी कलम/डाल काटकर लगाई जाए. वि. इस प्रकार जमनेवाला पौधा.
अग्रभाग-पु. प्रथम/श्रेष्ठ/सर्वाधिक/अगला भाग -अग्र भाग कौसल्याहि दीन्हा. राम., सिरा, नोक, श्राद्ध में पहले दी जानेवाली वस्तु.
अग्रभागी/गिन-वि. प्रथम भाग/सर्व प्रथम पाने का अधिकारी.
अग्रभुक/ज-वि. पहले खानेवाला, देव-पिटर आदि को खिलाये बिना खानेवाला, पेटू.
अग्रभू/भूमि-स्त्री. लक्ष्य, माकन का सबसे ऊपर का भाग, छत.
अग्रमहिषी-स्त्री. पटरानी, सबसे बड़ी पत्नि/महिला.-मांस-पु. हृदय/यकृत का रक रोग.
अग्रयान-पु. सेना की अगली टुकड़ी, शत्रु से लड़ने हेतु पहले जानेवाला सैन्यदल. वि. अग्रगामी. अग्रयायी/यिन वि. आगे बढ़नेवाला, नेतृत्व करनेवाला.
अग्रयोधी/धिन-पु. सबसे आगे बढ़कर लड़नेवाला, प्रमुख योद्धा.
अग्रलेख- सबसे पहले/प्रमुखता से छपा लेख, सम्पादकीय, लीडिंग आर्टिकल इ.
अग्रलोहिता-स्त्री. चिल्ली शाक.
अग्रवक्त्र-पु. चीर-फाड़ का एक औज़ार.
अग्रवर्ती/तिन-वि. आगे रहनेवाला.
अग्रशाला-स्त्री. ओसारा, सामने की परछी/बरामदा, फ्रंट वरांडा इं.
अग्रसंधानी-स्त्री. कर्मलेखा, यम की वह पोथी/पुस्तक जिसमें जीवों के कर्मों का लिखे जाते हैं.
अग्रसंध्या-स्त्री. प्रातःकाल/भोर.
अग्रसर-वि. पु. आगेजानेवाला, अग्रगामी, अगुआ, प्रमुख, स्त्री. अग्रसरी.
अग्रसारण-पु. आगे बढ़ाना, अपनेसे उच्च अधिकारी की ओर भेजना, अग्रप्रेषण.
अग्रसारा-स्त्री. पौधे का फलरहित सिरा.
अग्रसारित-वि. देखें अग्रप्रेषित.
अग्रसूची-स्त्री. सुई की नोक, प्रारंभ में लगी सूची, अनुक्रमाणिका.
अग्रसोची-वि. समय से पहले/पूर्व सोचनेवाला, दूरदर्शी. अग्रसोची सदा सुखी मुहा.
अग्रस्थान-पहला/प्रथम स्थान.
अग्रहर-वि. प्रथम दीजानेवाली/देय वस्तु.
अग्रहस्त-पु. हाथ का अगला भाग, उँगली, हाथी की सूंड़ की नोक.
अग्रहायण-पु. अगहन माह,
अग्रहार-पु. राजा/राज्य की प्र से ब्राम्हण/विद्वान को निर्वाहनार्थ मिलनेवाला भूमिदान, विप्रदान हेतु खेत की उपज से निकाला हुआ अन्न.
अग्रजाधिकार- पु. देखें ज्येष्ठाधिकार.
अग्रतः/तस- अ. सं. आगे, पहले, आगेसे.
अग्रवाल- पु. वैश्यों का एक वर्गजाति, अगरवाल.
अग्रश/अग्रशस/अग्रशः-अ. सं. आरम्भ से ही.
अग्रह- पु.संस्कृत ग्रहण न करना, गृहहीन, वानप्रस्थ.
२-६-२०१७
***
मुक्तिका
*
तुम आओ तो सावन-सावन
तुम जाओ मत फागुन-फागुन
.
लट झूमें लब चूम-चुमाकर
नचती हैं ज्यों चंचल नागिन
.
नयनों में शत स्वप्न बसे नव
लहराता अपनापन पावन
.
मत रोको पीने दो मादक
जीवन रस जी भर तज लंघन
.
पहले गाओ कजरी भावन
सुन धुन सोहर की नाचो तब
***
(संस्कारी जातीय, डिल्ला छंद
बहर मुतफाईलुन फेलुन फेलुन
प्रतिपद सोलह मात्रा,पंक्तयांत भगण)
***
मुक्तक
*
वीणा की तरह गुनगुना के गीत गाइए
चम्पा की तरह ज़िंदगी में मुस्कुराइए
आगम-निगम, पुराण पढ़ें या नहीं पढ़ें
इंसान की तरह से पसीना बहाइये
२-६-२०१६
***
यमकीय दो पदी :
रोटियाँ दो जून की दे, खुश हुआ दो जून जब
टैक्स दो दोगुना बोला, आयकर कानून तब
***
मुक्तिका :
*
ये पूजता वो लगाता है ठोकर
पत्थर कहे आदमी है या जोकर?
वही काट पाते फसल खेत से जो
गये थे जमीं में कभी आप बोकर
हकीकत है ये आप मानें, न मानें
अधूरे रहेंगे मुझे ख्वाब खोकर
कोशिश हूँ मैं हाथ मेरा न छोड़ें
चलें मंजिलों तक मुझे मौन ढोकर
मेहनत ही सबसे बड़ी है नियामत
कहता है इंसान रिक्शे में सोकर
केवल कमाया न किंचित लुटाया
निश्चित वही जाएगा आप रोकर
हूँ संजीव शब्दों से सच्ची सखावत
करी, पूर्णता पा मगर शून्य होकर
२-६-२०१५
***
दोहा सलिला:
*
भँवरे की अनुगूँज को, सुनता है उद्यान
शर्त न थककर मौन हो, लाती रात विहान
*
धूप जलाती है बदन, धूल रही हैं ढांक
सलिल-चाँदनी साथ मिल, करते निर्मल-पाक
*
जाकर आना मोद दे, आकर जाना शोक
होनी होकर ही रहे, पूरक तम-आलोक
*
अब नालंदा अभय हो, ज्ञान-रश्मि हो खूब
'सलिल' मिटा अज्ञान निज, सके सत्य में डूब
३०-५-२०१५
नवगीत:
.
लेटा हूँ
मखमल गादी पर
लेकिन
नींद नहीं आती है
.
इस करवट में पड़े दिखाई
कमसिन बर्तनवाली बाई
देह सांवरी नयन कटीले
अभी न हो पाई कुड़माई
मलते-मलते बर्तन
खनके चूड़ी
जाने क्या गाती है
मुझ जैसे
लक्ष्मी पुत्र को
बना भिखारी वह जाती है
.
उस करवट ने साफ़-सफाई
करनेवाली छवि दिखलाई
आहा! उलझी लट नागिन सी
नर्तित कटि ने नींद उड़ाई
कर ने झाड़ू जरा उठाई
धक-धक धड़कन
बढ़ जाती है
मुझ अफसर को
भुला अफसरी
अपना दास बना जाती है
.
चित सोया क्यों नींद उड़ाई?
ओ पाकीज़ा! तू क्यों आई?
राधे-राधे रास रचाने
प्रवचन में लीला करवाई
करदे अर्पित
सब कुछ
गुरु को
जो
वह शिष्या
मन भाती है
.
हुआ परेशां नींद गँवाई
जहँ बैठूं तहँ थी मुस्काई
मलिन भिखारिन, युवा, किशोरी
कवयित्री, नेत्री तरुणाई
संसद में
चलभाष देखकर
आत्मा तृप्त न हो पाती है
मुझ नेता को
भुला सियासत
गले लगाना सिखलाती है
०००