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भोजपुरी भाषा और बोली पर्व
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परिचर्चा के मुख्य बिंदु ःः
(1)- भोजपुरी बोली का भौगोलिक क्षेत्र - 1-आ.रंजना सिंह जी
2-मगही बोली का भौगोलिक क्षेत्र एवं साहित्य - आ.पूनम कतरियार जी
(3)- उद्भव एवं विकास - आ.संगीत सुभाष पांडे जी
(4) भोजपुरी/मगही बोली का इतिहास- आ. भगवती प्रसाद द्विवेदी
(बोलियां, उप बोलियाँ
(5)- भोजपुरी /मगही बोली के शब्दकोश- आ. प्रियंका श्रीवास्तव जी
6)- भोजपुरी /मगही
*- खान-पान- आ.डा.श्वेता सिन्हा
*-पहनावा- आ.सुधा पांडे जी
(7)- धार्मिकता..आ.ऊषा पाण्डेय जी
(8) लोकसाहित्य-- आ. सुधा पांडे जी
(9)- लोकोक्तियां और मुहावरे,(उखान) - 1- आ.प्रियंका श्रीवास्तव
(10)- लघुकथा- आदरणीयां पूनम आनंद जी
(11)- व्रत-पर्व-त्योहारों एवं सामाजिक कार्यों में गाये जाने वाले गीत, -
1- छठ पर्व गीत.. आ. प्रियंका श्रीवास्तव और आ. कुमकुम प्रसाद
आ. श्वेता श्रीवास्तव
2-- श्याम कूंवर भारती, बोकारो
विषय -व्रत पर्व त्योहारो एवं सामाजिक कार्यों में जाए जाने वाले गीत
(12)- लिखित साहित्य आ. संजय मिश्रा जी
[20/01, 14:42] वीना सिंह: 🌹*भोजपुरी भाषा और बोली पर्व* 🌹
🙏*कार्यक्रम विवरण*🙏
दिनांक --२०/०१/२०२०
दिन- बुधवार।
*समय*
दोपहर ३:०० - ४.३० बजे
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*सरस्वतीवंदना*
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*स्वागत*
श्रीमती वीणा सिंह
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*मुख्य अतिथि*
आ० श्री संगीत सुभाष पांडे जी
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*विशिष अतिथि*
आ० संजय मिश्र "संजय" जी
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*अध्यक्ष*
आ० आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी
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*मार्ग दर्शक मंडल*
आ.भगवती प्रसाद द्विवेदी
पटना (बिहार)
आ. प्रियंका श्रीवास्तव
पटना (बिहार)
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*कार्यक्रम संचालन*
आ० श्याकुँवर भारती जी
बोकारो (झारखंड )
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*विषेष सहयोग*
आ.रमा सरावगी जी
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*कार्यक्रम संयोजक*
आ. वीणा सिंह
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*आभार प्रदर्शन*
आ. सुधा दुबे जी
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सरस्वती वंदना
भोजपुरी
संजीव
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पल-पल सुमिरत माई सुरसती, अउर न पूजी केहू
कलम-काव्य में मन केंद्रित कर, अउर न लेखी केहू
रउआ जनम-जनम के नाता, कइसे ई छुटि जाई
नेह नरमदा नहा-नहा माटी कंचन बन जाई
अलंकार बिन खुश न रहेलू, काव्य-कामिनी मैया
काव्य कलश भर छंद क्षीर से, दे आँचल के छैंया
आखर-आखर साँच कहेलू, झूठ न कबहूँ बोले
हमरा के नव रसधार पिलाइल, बिम्ब-प्रतीक समो ले
किरपा करि सिखवावलु कविता, शब्द ब्रह्म रस खानी
बरनौं तोकर कीर्ति कहाँ तक, चकराइल मति-बानी
जिनगी भइल व्यर्थ आसिस बिन, दस दिस भयल अन्हरिया
धूप-दीप स्वीकार करेलु, अर्पित दोऊ बिरिया
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कहावत सलिला:
भोजपुरी कहावतें:
*
कहावतें किसी भाषा की जान होती हैं. कहावतें कम शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करती हैं. कहावतों के गूढार्थ तथा निहितार्थ भी होते हैं. भोजपुरी कहावतें दी जा रही हैं. पाठकों से अनुरोध है कि अपने-अपने अंचल में प्रचलित लोक भाषाओँ, बोलियों की कहावतें भावार्थ सहित यहाँ दें ताकि अन्य जन उनसे परिचित हो सकें. .
१. अबरा के मेहर गाँव के भौजी.
२. अबरा के भईंस बिआले कs टोला.
३. अपने मुँह मियाँ मीठू बा.
४. अपने दिल से जानी पराया दिल के हाल.
५. मुर्गा न बोली त बिहाने न होई.
६. पोखरा खनाचे जिन मगर के डेरा.
७. कोढ़िया डरावे थूक से.
८. ढेर जोगी मठ के इजार होले.
९. गरीब के मेहरारू सभ के भौजाई.
१०. अँखिया पथरा गइल.
*
भोजपुरी हाइकु:
संजीव
*
आपन बोली
आ ओकर सुभाव
मैया क लोरी.
*
खूबी-खामी के
कवनो लोकभासा
पहचानल.
*
तिरिया जन्म
दमन आ शोषण
चक्की पिसात.
*
बामनवाद
कुक्कुरन के राज
खोखलापन.
*
छटपटात
अउरत-दलित
सदियन से.
*
राग अलापे
हरियल दूब प
मन-माफिक.
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गहरी जड़
देहात के जीवन
मोह-ममता.
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1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया..
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