केवल व्यक्ति नहीं, संगठनात्मक शक्ति का नाम
है – मधु धवन
(अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि)
मधु धवन
आज प्रातः 4 बजे अग्रज बशीर जी से वाट्सैप
संदेश में मधु धवन का फोटो मिला, थोड़ी देर बाद उनका फोन कॉल था, इस बात की पुष्टि
के लिए कि मधु धवन न रही, क्या यह बात सच है ।
मित्रों को कॉल करने पर उन्हें कोई सूचना नहीं मिली थी, अतः बशीर जी मुझसे
इसकी पुष्टि चाहते थे । मैंने तुरंत
दो-चार नाम सुझाया, जिनसे पता कर मुझे भी सूचित करने के लिए । थोड़ी ही देर बाद बशीर जी ने पुनः कॉल करने
इसकी पुष्टि की । इसके बावजूद मैं मानने
के लिए तैयार नहीं था । लगातार कुछ
मित्रों एस.एम.एस., फोन कॉल आने से मुझे उनकी बातों पर यकीन करना पड़ा । मधु धवन नहीं रही, इस बात को मैं अभी हजम नहीं
कर पा रहा हूँ । उनका लेखना जितना विराट
है, व्यक्तित्व उतना ही आत्मीय ।
सचमुच केवल व्यक्ति नहीं, संगठनात्मक शक्ति
का नाम है – मधु धवन । आत्मीयता की
प्रतिमूर्ति मधु धवन जी के साथ मेरा परिचय का दायरा लगभग तीन दशकों का है । लेखक, हिंदी प्रेमिका के रूप में उनकी
गतिविधियों से लाखों लोग सुपरिचित हैं ।
तमिलनाडु में हिंदी लेखन के संबंध में लिखते
हुए मैंने उनके कृतित्व के संबंध में भी लिखा था । 2007-08 में जब अल्ताफ़ हुसैन जी ने मुझे
चेन्नई में व्य़ाख्यान के लिए आमंत्रित किया, मेरे आगमन की सूचना पाकर चेन्नई के
वरिष्ठ लेखक जो पधारे थे, उनमें मधु धवन जी भी थी । मेरा वक्तव्य कंप्यूटर-इंटरनेट के विकास के युग
में लेखकों की भूमिका पर केंद्रित था ।
मेरे वक्तव्य के बाद कई लेखकों ने कहा कि हम अब कंप्यूटर-इंटरनेट से जुड़
जाएंगे । उनमें मधु धवन जी भी एक थी
। उन्होंने मुझे कंप्यूटर पर कार्य करना
सिखाना अनुरोध किया, दो-चार बार सिखाते ही वे स्वयं कंप्यूटर पर ई-मेल भेजने लगी ।
एक दूसरे संदर्भ में उन्होंने अपने लिए एक ब्लॉग तैयार करने का अग्रह किया और
आश्वसन दिया कि उसे लगातार वे अपडेट करती रहेंगी, उन्होंने ब्लॉग नाम सुझाया तपस्या । मैंने उसी दिन (21 मई, 2013 को ही) www.tapashya.blogspot.com उनके
लिए ब्लॉग सृजित कर उनकी कहानी बैखौफ का उसमें प्रकाशित कर दिया था । शायद व्यस्ततावश वे ब्लॉग को अपडेट नहीं कर
पायीं । पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में
मेरे आगमन के बाद उन्होंने आग्रह किया कि तमिल नाडु हिंदी साहित्य अकादमी की ओर एक
कार्यक्रम का आयोजन करें । तदनुसार 2-3
दिसंबर, 2011 को पांडिच्चेरी विश्ववविद्याल एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया,
जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों के 150 से अधिक विद्वान शामिल हो गए थे । (http://yugmanas.blogspot.in/2011/12/blog-post.html )
मधु धवन जी की आत्मीयता के असंख्य संस्मरण
मेरे दिलों, दिमागों में सुरक्षित हैं ।
वे पांडिच्चेरी आने पर मेरे आवास पर अवश्य आ जाती थी, रास्त में कही जाते
समय भी वे जरूर मुझसे मिलकर ही जाती थी ।
उनकी संगठनात्मक शक्ति का परिणाम है – तमिल नाडु हिंदी साहित्य अकादमी
। अकादमी की पत्रिका बुलिटेन को लेकर भी
वे हमेशा व्यस्त रहती थी । जनवरी 10 के
एकाध आयोजनों में ही मैं जा पाया था ।
लगातार हर वर्ष कार्य करते हुए हज़ारों हिंदी प्रेमियों को एक मंच पर लाने
की कोशिश उन्होंने की है । विगत दिनों में
जब उन्होंने मुझे कॉल किया और इच्छा जतायी कि बहुभाषी लेखिका संघ की ओर से
पांडिच्चेरी में हिंदी शिक्षण की गतिविधियाँ चलाना चाहते हैं और उसमें राधिका भी
अपनी भूमिका निभा सकती हैं । मैंने फोन
राधिका के हाथ में पकड़ा दिया था कि वे दोनों आपस सीधी बातचीत कर लें । इसके बाद उनका कॉल मेरे आलेख को लेकर था, जो
तेलुगु साहित्य में राष्ट्रीयता की भावना पर था । भवानी गंगाधर जी के प्रेस में
बैठकर उन्होंने मुझे कॉल किया था । सदा
हिंदी भाषा एवं साहित्य की सेवा में वे सक्रिय रही हैं ।
वे भौतिक रूप से इस संसार से दूर
होने पर भी असंख्य आत्मीय मित्रों के दिलों में उनकी आत्मीय स्मृतियाँ सुरक्षित व
अमर रहेंगी । उनकी शताधिक कृतियों के माध्यम से, विचारों के माध्यम से पाठकों के
बीच भी वे अमर रहेंगी ।
‘युग मानस’ के साथ भी वे
सक्रिय जुड़ी रहीं ।
उनके असामयिक निधन पर शोक के इन
क्षणों में उनके स्वर्गस्थ आत्म की चिर शांति के लिए अश्रु नयनों से प्रार्थना से
बढ़कर अधिक संस्मरण कह पाने में मैं अपने को असमर्थ महसूस कर रहा हूँ ।
उनका पार्थिव शरीर उनके मित्रों, आत्मीयजनों
के दर्शनार्थ चेन्नई स्थित उनका आवास के-3, अन्ना नगर पूर्व में रखा गया है । आज दुपहर 3 बजे के बाद उनकी अंत्योष्टि होगी ।
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि सहित...
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डॉ. सी. जय शंकर बाबु
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