एक रचना: 
*
तुमने बुलाया 
और 
हम चले आये रे 
*
लीक छोड़ तीनों चलें 
शायर सिंह सपूत 
लीक-लीक तीनों चलें 
कायर स्यार कपूत 
बहुत लड़े, आओ बने 
आज शांति के दूत 
दिल से लगाया 
और 
अंतर भुलाये रे 
तुमने बुलाया 
और 
हम चले आये रे 
*
राह दोस्ती की चलें 
चलो शत्रुता भूल 
हाथ मिलायें आज फिर 
दें न भेद को तूल 
मिल बिखराएँ फूल कुछ 
दूर करें कुछ शूल 
जग चकराया 
और 
हम मुस्काये रे 
तुमने बुलाया 
और 
हम चले आये रे 
*
जिन लोगों के वक्ष पर 
सर्प रहे हैं लोट 
उनकी नजरों में रही 
सदा-सदा से खोट 
अब मैं-तुम हम बन करें 
आतंकों पर चोट 
समय न बोले 
मौके 
हमने गँवाये रे!तुमने बुलाया 
और 
हम चले आये रे 
*
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