विषय एक पहलू अनेक :
दीवार ही दीवार
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एक विषय पर विविध रचनाकारों की काव्य पंक्तियों को प्रस्तुत करने का उद्देश्य उस विषय के विविध पहलुओं को जानने के साथ-साथ बात को कहने के तरीके और सलीके को समझना भी है. आप भी इस विषय पर अपनी बात कहें और इसे अधिक समृद्ध बनायें। सामान्यतः उर्दू में दो पंक्तियों में बात कहने की सशक्त परंपरा है।क्या हिंदी कवि खुद को इस कसौटी पर कसेंगे? (आभार नवीन चतुर्वेदी, साहित्यं)
हवा आयेगी आग पहने हुए
समा जायेगी घर की दीवार में – स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’
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पता तो चले कम से कम दिन तो है
झरोखा ये रहने दो दीवार में – याक़ूब आज़म
*न परदा ही सरका, न खिड़की खुली
ठनी थी गली और दीवार में – गौतम राजरिशी
*पहाड़ों में खोजूँगा झरना कोई
मैं खिड़की तलाशूँगा दीवार में – सौरभ शेखर
*पसे-दर मकां में सभी अंधे हैं
दरीचे हज़ारों हैं दीवार में – खुर्शीद खैराड़ी
पसेदर – दरवाज़े के पीछे, दरीचा – खिड़की
*हवा, रौशनी, धूप आने लगें
खुले इक दरीचा जो दीवार में – अदील जाफ़री
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हरिक संग शीशे सा है इन दिनों
नज़र आता है मुँह भी दीवार में – मयंक अवस्थी
संग – पत्थर
*फिर इक रोज़ दिल का खँडर ढह गया
नमी थी लगातार दीवार में – नवनीत शर्मा
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नदी सर पटकती रही बाँध पर
नहीं राह मिल पाई दीवार में – दिनेश नायडू
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खुला भेद पहली ही बौछार में
कई दर निकल आये दीवार में – इरशाद ख़ान सिकन्दर
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उदासी भी उसने वहीं पर रखी
ख़ुशी का जो आला था दीवार में – शबाब मेरठी
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ये छत को सहारा न दे पायेगी
अगर इतने दर होंगे दीवार में – आदिक भारती
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फ़क़त एक दस्तक ही बारिश ने दी
दरारें उभर आईं दीवार में – विकास शर्मा ‘राज़’
*कोई मौज बेचैन है उस तरफ़
लगाये कोई नक़्ब दीवार में – पवन कुमार
मौज – लहर, नक़्ब – सेंध
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मुहब्बत को चुनवा के दीवार में
कहां ख़ुश था अकबर भी दरबार में – शफ़ीक़ रायपुरी
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फिराती रही वहशते-दिल मुझे
न दर में रहा और न दीवार में – असलम इलाहाबादी
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दबाया था आहों को मैंने बहुत
दरार आ गयी दिल की दीवार में – तुफ़ैल चतुर्वेदी
दरीचों से बोली गुज़रती हवा
कोई दर भी होता था दीवार में – आदिल रज़ा मंसूरी
*मिरे इश्क़ का घर बना जब, जुड़ी
तिरे नाम की ईंट दीवार में – प्रकाश सिंह अर्श
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दरो-दीवार पर हसरत की नज़र करते हैं
खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं. -संकलित
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सारे शहर में दिख रहीं दीवार ही दीवार
बंद खिड़कियां हुईं हैं, बंद है हर द्वार
कैसे रहेगा खुश कोई यह तो बताइये
दीवार से कैसे करे इसरार या तकरार -संजीव
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