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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

फरवरी १३, सिद्धि छंद, हास्य, लालू, हाइकु नवगीत, लघुकथा, सॉनेट, सोरठा, पूर्णिका, कुण्डलिया, नवगीत

सलिल सृजन फरवरी १३

*
१३ फरवरी विश्व रेडियो दिवस
पूर्णिका
.
हुई भोर मुस्काइए
सूर्य कहे उठ जाइए

गौरैया मुंडेर पर आई भोग लगाइए फुदक गिलहरी नच रही करतल ध्वनि गुंजाइए तितली के पर निकलेंगे कैंची नहीं चलाइए कली-भ्रमर मत दूर हों सहजीवन समझाइए कड़वी बातें बहुत हुईं खुश हो कुछ फरमाइए स्नेह साधना कर सलिल संजीवित हो जाइए १३.२.२०२५
०००
सोरठा सलिला
कृष्ण कांत का दास, बन तर जा भव से सलिल।
मन रख दृढ़ विश्वास, चंद्रा तारणहार हैं।।
धवल कृष्ण सा अन्य, सकल सृष्टि में है कहाँ?
श्यामल श्यामल अनन्य, जहाँ देखो पाओ वहाँ।।
राम श्याम हैं एक, धनुष-चक्र ले दनु वधें।
सिय-राधा के कांत, कांता-कांति अनन्य है।।
वनवासी-गोपाल, त्याग-राग वैराग्य वर।
होते भक्त निहाल, भवसागर को पार कर।।
सरयू-जमुना धार, सलिल राह देखे अथक।
कब हो प्रभु अवतार, दर्शन कर पाए पुलक।।
१३-२-२०२३
•••
सॉनेट
चुनाव
लबरों झूठों के दिन आए।
छोटे कद, वादे हैं ऊँचे।
बातें कड़वी, जहर उलीचे।।
प्रभु ये दिन फिर मत दिखलाए।।
फूटी आँख न सुहा रहे हैं।
कीचड़ औरों पर उछालते।
स्वार्थ हेतु करते बगावतें।।
निज औकातें बता रहे हैं।।
केर-बेर का संग हो रहा।
सुधरो, जन धैर्य खो रहा।
भाग्य देश का हाय सो रहा।।
नाग-साँप हैं, किसको चुन लें?
सोच-सोच अपना सिर धुन लें।
जन जागे, नव सपने बुन ले।।
१३-२-२०२२
•••
भोपाल १२-२-२०१७. स्वराज भवन भोपाल में अखिल भारतीय गीतिका काव्योत्सव् एवं सम्मान समारोह के प्रथम सत्र में संक्षिप्त वक्तव्य के साथ तुरंत रची मुक्तिका तथा मुक्तक का पाठ किया-
गीतिका उतारती है भारती की आरती
नर्मदा है नेह की जो विश्व को है तारती
वास है 'कैलाश' पे 'उमेंश' को नमन करें
'दीपक' दें बाल 'कांति' शांति-दीप धारती
'शुक्ल विश्वम्भर' 'अरुण' के तरुण शब्द
'दृगों में समंदर' है गीतिका पुकारती
'गीतिका मनोरम है' शोभा 'मुख पुस्तक' की
घनश्याम अभिराम हो अखंड भारती
गीतिका है मापनी से युक्त-मुक्त दोनों ही
छवि है बसंत की अनंत जो सँवारती
*
मुक्तक
अपनी जड़ों से टूटकर, मत अधर में लटकें कभी
गोद माँ की छोड़कर, परिवेश में भटकें नहीं
रच कल्पना में अल्पना, रस-भाव-लय का संतुलन
जो हित सहित है सर्व के, साहित्य है केवल वही
*
मुख पुस्तक पर पढ़ रहे, मन के अंतर्भाव
रच-पढ़-बढ़ते जो सतत, रखकर मन में चाव
वे कण-कण को जोड़ते, सन्नाटे को तोड़
क्षर हो अक्षर का करे, पूजन 'सलिल' सुभाव
***
टीप- श्री कैलाश चंद्र पंत मंत्री राष्ट्र भाषा प्रचार समिति विशेष अतिथि, डॉ. उमेश सिंह अध्यक्ष साहित्य अकादमी म. प्र. मुख्य अतिथि, डॉ. देवेन्द्र दीपक निदेशक निराला सर्जन पीठ अध्यक्ष , डॉ. कांति शुक्ल प्रदेश अध्यक्ष मुक्तिका लोक, डॉ. विश्वम्भर शुक्ल संयोजक मुक्तक लोक, अरुण अर्णव खरे संयोजक, घनश्याम मैथिल 'अमृत', अखंड भारती संचालक, बसंत शर्मा अतिथि कवि, दृगों में समंदर तथा गीतिका मनोरम है विमोचित कृतियाँ.
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गीतिका है मनोरम सभी के लिये
दृग में है रस समुंदर सभी के लिए
सत्य, शिव और सुंदर सृजन नित करें
नव सृजन मंत्र है यह सभी के लिए
छंद की गंधवाही मलय हिन्दवी
भाव-रस-लय सुवासित सभी के लिए
बिम्ब-प्रतिबिम्ब हों हम सुनयने सदा
साध्य है, साधना है, सभी के लिए
भाव ना भावना, काम ना कामना
तालियाँ अनगिनत गीतिका के लिए
गीत गा गीतिका मुक्तिका से कहे
तेवरी, नव गजल 'सलिल' सब के लिए
***
दोहा
इस युग में भी हो सके, जो इंसान अशोक
उसे नमन 'संजीव' का, उससे भूषित लोक
*
अमृत शब्दों में भरे, देता जो आनंद
जग उसका वन्दन करे, सुना-सुनकर छंद
*
छंद गूँजते धरा पर, जब हो तभी बसंत
बरस-बरस रस मंजरी, देती हर्ष अनंत
*
कुण्डलिया
तरु-तल हों घनश्याम तो, हो बसंत चहुँ ओर
बाल अरुण संजीव-छवि, कहती निकला भोर
कहती निकला भोर, उषा का रंग गुलाबी
खोज रही चितचोर, प्रभाती सुना शराबी
हो अशोक गौरैया चहके, जंगल-मंगल
सत्य सुनाये छंद, चलो बैठें सब तरु-तल
***
अशोक चंद्र डूबे 'अशोक', संपादक विप्रवाणी भोपाल
पतझर को जब तक नहीं, मिले सलिल का साथ!
शोर मचाते पेड़ बस, लेकर पीले हाथ!!
*
साथ सलिल का पा गये, अंकुर मुखर अनंत!
वृद्ध वृक्ष नर्तन करें, सुरभित हुआ बसंत!!
*
बरसें बस 'घनश्याम ' करें हम तरुतल में वन्दन!
पुण्य 'सलिल' से महक उठे हो जाये धरती चन्दन!!
रवि को भी कुछ मिले चुनौती, लुकता छिपता भागे-
दादुर भी 'अशोक' हो बोलें वन्दन शत शत अभिनन्दन!!
***
मुक्तक
आशा की कंदील झूलती
मिली समय की शाख पर
जलकर भी देती उजियारा
खुश हो खुद को राख कर
***
लघुकथा-
निरुत्तर
*
मेरा जूता है जापानी, और पतलून इंग्लिस्तानी
सर पर लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी
पीढ़ियाँ गुजर गयीं जापान, इंग्लॅण्ड और रूस की प्रशंसा करते इस गीत को गाते सुनते, आज भी उपयोग की वस्तुओं पर जापान, ब्रिटेन, इंग्लैण्ड, चीन आदि देशों के ध्वज बने रहते हैं उनके प्रयोग पर किसी प्रकार की आपत्ति किसी को नहीं होती। ये देश हमसे पूरी तरह भिन्न हैं, इंग्लैण्ड ने तो हमको गुलाम भी बना लिया था। लेकिन अपने आसपास के ऐसे देश जो कल तक हमारा ही हिस्सा थे, उनका झंडा फहराने या उनकी जय बोलने पर आपत्ति क्यों उठाई जाती है? पूछा एक शिष्य ने, गुरु जी थे निरुत्तर।
***
आशा की कंदील झूलती, मिली समय की शाख पर
जलकर भी देती उजियारा, खुश हो खुद को राख कर
***
हाइकु नवगीत :
.
टूटा विश्वास
शेष रह गया है
विष का वास
.
कलरव है
कलकल से दूर
टूटा सन्तूर
जीवन हुआ
किलकिल-पर्याय
मात्र संत्रास
.
जनता मौन
संसद दिशाहीन
नियंता कौन?
प्रशासन ने
कस लिया शिकंजा
थाम ली रास
.
अनुशासन
एकमात्र है राह
लोक सत्ता की.
जनांदोलन
शांत रह कीजिए
बढ़े उजास
.
***
कुण्डलिया:
आभा की देहरी हुआ, जब से देहरादून
चमक अर्थ पर यूं रहा, जैसे नभ में मून
जैसे नभ में मून, दून आनंद दे रहा
कितने ही यू-टर्न, मसूरी घुमा ले रहा
सलिल धार से दूरी रख, वर्ना हो व्याधा
देख हिमालय शिखर, अनूठी जिसकी आभा.
.
हुए अवस्था प्राप्त जो, मिला अवस्थी नाम
राम नाम निश-दिन जपें, नहीं काम से काम
नहीं काम से काम, हुए बेकाम देखकर
शास्त्राइन ने बेलन थामा, लक्ष्य बेधकर
भागे जान बचाकर, घर से भंग बिन पिए
बेदर बेघर-द्वार आज देवेश भी हुए
१३-२-२०१५
***
छंद सलिला:
सिद्धि छंद
*
दो पदी, चार चरणीय, ४४ वर्णों, ६९ मात्राओं के मात्रिक सिद्धि छंद में प्रथम चरण इन्द्रवज्रा (तगण तगण जगण २ गुरु) तथा द्वितीय, तृतीय व् चतुर्थ चरण उपेन्द्रवज्रा (जगण तगण जगण २ गुरु) छंद के होते हैं.
उदाहरण:
१. आना, न जाना मन में समाना, बना बहाना नज़रें मिलाना
सुना तराना नज़दीक आना, बना बहाना नयना चुराना
२. ऊषा लजाये खुद को भुलाये, उठा करों में रवि चूम भागा
हुए गुलाबी कह गाल ?, करे ठिठोली रतनार मेघा
३. आकाशचारी उड़ता अकेला, भरे उड़ानें नभ में हमेशा
न पिंजरे में रहना सुहाता, हरा चना भी उसको न भाता
***
हास्य सलिला:
लाल गुलाब
*
लालू घर में घुसे जब लेकर लाल गुलाब
लाली जी का हो गया पल में मूड ख़राब
'झाड़ू बर्तन किये बिन नाहक लाये फूल
सोचा, पाकर फूल मैं जाऊंगी सच भूल
लेकिन मुझको याद है ए लाली के बाप!
फूल शूल के हाथ में देख हुआ संताप
चलो रसोई सम्हालो, मैं जाऊं बाज़ार
चलकर पहले पोंछ दो मैली मेरी चार.'
१३-२-२०१४
***
नवगीत:
कम लिखता हूँ...
*
क्या?, कैसा है??
कम लिखता हूँ,
बहुत समझना...
*
पोखर सूखे,
पानी प्यासा.
देती पुलिस
चोर को झाँसा.
खेतों संग
रोती अमराई.
अन्न सड़ रहा,
फिके उदासा.
किस्मत केवल
है गरीब की
भूखा मरना...
*
चूहा खोजे,
मिला न दाना.
चमड़ी ही है
तन पर बाना.
कहता भूख,
नहीं बीमारी,
जिला प्रशासन
बना बहाना.
न्यायालय से
छल करता है
नेता अपना...
*
शेष न जंगल,
यही मंगल.
पर्वत खोदे-
हमने तिल-तिल.
नदियों में
लहरें ना पानी.
न्योता मरुथल
हाथ रहे मल.
जो जैसा है
जब लिखता हूँ
बहुत समझना...
***
मुक्तिका
साथ बुजुर्गों का...
*
साथ बुजुर्गों का बरगद की छाया जैसा.
जब हटता तब अनुभव होता था वह कैसा?
मिले विकलता, हो मायूस मौन सहता मन.
मिले सफलता, नशा मूंड़ पर चढ़ता मै सा..
कम हो तो दुःख, अधिक मिले होता विनाश है.
अमृत और गरल दोनों बन जाता पैसा..
हटे शीश से छाँव, धूप-पानी सिर झेले.
फिर जाने बिजली, अंधड़, तूफां हो ऐसा..
जो बोया है वह काटोगे 'सलिल' न भूलो.
नियति-नियम है अटल, मिले जैसा को तैसा..
***
मुक्तिका:
जमीं बिस्तर है
*
जमीं बिस्तर है, दुल्हन ज़िंदगी है.
न कुछ भी शेष धर तो बंदगी है..
नहीं कुदरत करे अपना-पराया.
दिमागे-आदमी की गंदगी है..
बिना कोशिश जो मंजिल चाहता है
इरादों-हौसलों की मंदगी है..
जबरिया बात मनवाना किसी से
नहीं इंसानियत, दरिन्दगी है.
बात कहने से पहले तौल ले गर
'सलिल' कविताई असली छंदगी है..
१३-२-२०११
***

बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

फरवरी 12, उल्लाला गीत, मुक्तिका, सवैया, तलाक, सॉनेट, गणतंत्र, हिंग्लिश ग़ज़ल, वेलेंटाइन, कुंभ

सलिल सृजन १२ फरवरी
*
मुक्तक महाकुंभ ० नहा रहे जितने जन उतने, पौधे रोपें महाकुंभ में। स्वच्छ करें सब सब नदियों को, तट कर ऊँचे महाकुंभ में।। वन कुंजों में कलकल-कलरव सुनने सभी देवता आएँ- भक्ति करें निष्काम भाव से, आँखें मीचे महाकुंभ में।। 0 पूज नर्मदा कृष्णा गंगा कावेरी झेलम क्षिप्रा नित। ब्रह्मपुत्र सरयू साबरमती अरपा यमुना चंबल प्रमुदित।। महाकुंभ हो गाँव-गाँव में, जलस्रोतों की करें सफाई- तीर्थराज हो देश समूचा, पर्यावरण प्रकृति कर रक्षित।।
0
जिसने किए पाप जा धोए, मुक्त न फिर भी हो पाता है।
लौट कुंभ से माया-ममता लीन न निर्मल मति पाता है।।
भोगी-रोगी मुक्ति चाहते, छले गए श्रद्धा के मारे-
अटल कर्मफल जो जाने नित, घर में कुंभ नहा पाता है।।
0
चित्र गुप्त है परम ब्रह्म का, जैसा बोया काटो वैसा।
नहीं बदलती नियति, कमाकर रुपया दान करो यदि पैसा।।
परंपराएँ सत्य बतातीं, सब समान हैं भेद न कोई-
सुविधा भोग कैसे जाने, तप में मिलता है सुख कैसा?
0
कुम्भ-स्नान कर पुण्य कमाने, चले तोड़ कानून।
मिटा रहे संपत्ति देश की, कर नियमों का खून।।
पुण्य गँवाकर पाप कमाया, चित्र गुप्त का न्याय-
निश्चय दंड भोग रोएँगे, सारे अफलातून।। १२.२.२०२५ ०००
हिंग्लिश ग़ज़ल
वेलेंटाइन
*
आओ! मनाएँ Velentine.
Being fine paying fine.
रोज Rose day हो तज फाइट।
जब propose day पी ले wine.
Chocolate Day Chalk late दे।
Teachar पर भी 'मारो लाइन'।
Teddy day भालू बन मिलना।
प्रीत बेल से निकले bine.
वादा कर जुमला बतला दो।
Promis day कह मत दो Dine.
मत हग भर, जी भरकर Hug कर।
जहाँ वहीं हो love का shrine.
खुल्लमखुल्ला चिपको चूमो।
एक गिनो तुम kiss कर Nine.
bine = अंकुर, लाइन मारना (मुहावरा) = निकट जाने की कोशिश करना, dine = भोज, shrine = तीर्थ ।
१२.२.२०२४
***
सॉनेट
विडंबना
*
अपना दीपक आप बनो रे!
बुद्ध कह गए हमने माना।
दीप जलाना मन में ठाना।।
भूले अँखिया खोल रखो रे।।
घर झुलसा घर के दीपक से।
बैठे हैं हम आग तापते।
भोग लगा वरदान माँगते।।
केवल इतना नाता प्रभु से।।
जपें राम पर काम न करते।
तजें न सत्ता, काम सुमिरते।
भवबंधन में खुद को कसते।।
आँख न खोलें नाम नयनसुख।
निज करनी से पाते हैं दुख।
रब को कैसे दिखलाएँ मुख?
१२-२-२०२२
•••
गीत
अगिन नमन गणतंत्र महान
जनगण गाए मंगलगान
*
दसों दिशाएँ लिए आरती
नजर उतारे मातु भारती
धरणि पल्लवित-पुष्पित करती
नेह नर्मदा पुलक तारती
नीलगगन विस्तीर्ण वितान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
ध्वजा तिरंगी फहरा फरफर
जनगण की जय बोले फिर फिर
रवि बन जग को दें प्रकाश मिल
तम घिर विकल न हो मन्वन्तर
सत्-शिव-सुंदर मूल्य महान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
नीव सुदृढ़ मजदूर-किसान
रक्षक हैं सैनिक बलवान
अभियंता निर्माण करें नव
मूल्य सनातन बन इंसान
सुख-दुख सह समभाव सकें हँस
श्वास-श्वास हो रस की खान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
केसरिया बलिदान-क्रांति है
श्वेत स्नेह सद्भाव शांति है
हरी जनाकांक्षा नव सपने-
नील चक्र निर्मूल भ्रांति है
रज्जु बंध, निर्बंध उड़ान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
कंकर हैं शंकर बन पाएँ
मानवता की जय जय गाएँ
अडिग अथक निष्काम काम कर
बिंदु सिंधु बनकर लहराएँ
करे समय अपना जयगान
२६-१-२०२१
***
मुक्तिका
*
आज खत का जवाब आया है
धूल में फूल मुस्कुराया है
*
याद की है किताब हाथों में
छंद था मौन; खिलखिलाया है
*
नैन नत बोलते बिना बोले
रोज डे रोज ही मनाया है
*
कौन किसको प्रपोज कब करता
चाह ने चाहकर बुलाया है
*
हाथ बढ़ हाथ थामकर सिहरा
पैर ने पैर झट मिलाया है
*
देख मुखड़ा बना लिया मुखड़ा
अंतरिम अंतरा बनाया है
*
दे दिया दिल न दिलरुबा छोड़ा
दिलवरी की न दिल दुखाया है
१२-२२०२१
***
तीन तलाक - दोहे
*
तीन तलाक दीजिए, हर दिन जगकर आप
नफरत, गुस्सा, लोभ को, सुख न सकेंगे नाप
जुमलों धौंस प्रचार को, देकर तीन तलाक
दिल्ली ने कर दिया है, थोथा गर्व हलाक
भाव छंद रस बिंब लय, रहे हमेशा साथ
तीन तलाक न दें कभी, उन्नत हो कवि-माथ
आँसू का दरिया कहें, पर्वत सा दर्द
तीन तलाक न दे कभी, कोई सच्चा मर्द
आँखों को सपने दिए, लब को दी मुस्कान
छीन न तीन तलाक ले, रखिए पल-पल ध्यान
दिल से दिल का जोड़कर, नाता हुए अभिन्न
तीन तलाक न पाक है, बोल न होइए भिन्न
अल्ला की मर्जी नहीं, बोलें तीन तलाक
दिल दिलवर दिलरुबा का, हो न कभी भी चाक
जो जोड़ा मत तोड़ना, नाता बेहद पाक
मान इबादत निभाएँ बिसरा तीन तलाक
जो दे तीन तलाक वह, आदम है शैतान
आखिर दम तक निभाए, नाता गर इंसान
***
सवैया
२७ वर्णिक
यति १४-१३
*
ये सवेरा तीर की मानिंद चुभता है, चलो आशा का नया सूरज उगाएँ
घेर लें बादल निराशा के अगर तो, हौसलों की हवा से उनको उड़ाएँ
मेहनत है धर्म अपना स्वेद गंगा, भोर से संझा नहा नवगीत गाएँ
रात में बारात तारों की सजाकर, चाँदनी घर चाँद को दूल्हा बनाएँ
१२-२-२०२०
***
रसानंद दे छंद नर्मदा १५ उल्लाला
*
उल्लाला हिंदी छंद शास्त्र का पुरातन छंद है। वीर गाथा काल में उल्लाला तथा रोला को मिलकर छप्पय छंद की रचना की जाने से इसकी प्राचीनता प्रमाणित है। उल्लाला छंद को स्वतंत्र रूप से कम ही रचा गया है। अधिकांशतः छप्पय में रोला के ४ चरणों के पश्चात् उल्लाला के २ दल (पंक्ति) रचे जाते हैं। प्राकृत पैन्गलम तथा अन्य ग्रंथों में उल्लाला का उल्लेख छप्पय के अंतर्गत ही है।
जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' रचित छंद प्रभाकर तथा ॐप्रकाश 'ॐकार' रचित छंद क्षीरधि के अनुसार उल्लाल तथा उल्लाला दो अलग-अलग छंद हैं। नारायण दास लिखित हिंदी छन्दोलक्षण में इन्हें उल्लाला के २ रूप कहा गया है। उल्लाला १३-१३ मात्राओं के २ सम चरणों का छंद है। उल्लाल १५-१३ मात्राओं का विषम चरणी छंद है जिसे हेमचंद्राचार्य ने 'कर्पूर' नाम से वर्णित किया है। डॉ. पुत्तूलाल शुक्ल इन्हें एक छंद के दो भेद मानते हैं। हम इनका अध्ययन अलग-अलग ही करेंगे।
'भानु' के अनुसार:
उल्लाला तेरा कला, दश्नंतर इक लघु भला।
सेवहु नित हरि हर चरण, गुण गण गावहु हो शरण।।
अर्थात उल्लाला में १३ कलाएं (मात्राएँ) होती हैं दस मात्राओं के अंतर पर ( अर्थात ११ वीं मात्रा) एक लघु होना अच्छा है।
दोहा के ४ विषम चरणों से उल्लाला छंद बनता है। यह १३-१३ मात्राओं का सम पाद मात्रिक छन्द है जिसके चरणान्त में यति है। सम चरणान्त में सम तुकांतता आवश्यक है। विषम चरण के अंत में ऐसा बंधन नहीं है। शेष नियम दोहा के समान हैं। इसका मात्रा विभाजन ८+३+२ है अंत में १ गुरु या २ लघु का विधान है।
सारतः उल्लाला के लक्षण निम्न हैं-
१. २ पदों में तेरह-तेरह मात्राओं के ४ चरण
२. सभी चरणों में ग्यारहवीं मात्रा लघु
३. चरण के अंत में यति (विराम) अर्थात सम तथा विषम चरण को एक शब्द से न जोड़ा जाए।
४. चरणान्त में एक गुरु या २ लघु हों।
५. सम चरणों (२, ४) के अंत में समान तुक हो।
६. सामान्यतः सम चरणों के अंत एक जैसी मात्रा तथा विषम चरणों के अंत में एक सी मात्रा हो। अपवाद स्वरूप प्रथम पद के दोनों चरणों में एक जैसी तथा दूसरे पद के दोनों चरणों में
उदाहरण :
१.नारायण दास वैष्णव
रे मन हरि भज विषय तजि, सजि सत संगति रैन दिनु।
काटत भव के फन्द को, और न कोऊ राम बिनु।।
२. घनानंद
प्रेम नेम हित चतुरई, जे न बिचारतु नेकु मन।
सपनेहू न विलम्बियै, छिन तिन ढिग आनंदघन।
३. ॐ प्रकाश बरसैंया 'ॐकार'
राष्ट्र हितैषी धन्य हैं, निर्वाहा औचित्य को।
नमन करूँ उनको सदा, उनके शुचि साहित्य को।।
***
उल्लाला मुक्तिका:
दिल पर दिल बलिहार है
*
दिल पर दिल बलिहार है,
हर सूं नवल निखार है..
प्यार चुकाया है नगद,
नफरत रखी उधार है..
कहीं हार में जीत है,
कहीं जीत में हार है..
आसों ने पल-पल किया
साँसों का सिंगार है..
सपना जीवन-ज्योत है,
अपनापन अंगार है..
कलशों से जाकर कहो,
जीवन गर्द-गुबार है..
स्नेह-'सलिल' कब थम सका,
बना नर्मदा धार है..
******
अभिनव प्रयोग-
उल्लाला गीत:
जीवन सुख का धाम है
*
जीवन सुख का धाम है,
ऊषा-साँझ ललाम है.
कभी छाँह शीतल रहा-
कभी धूप अविराम है...*
दर्पण निर्मल नीर सा,
वारिद, गगन, समीर सा,
प्रेमी युवा अधीर सा-
हर्ष, उदासी, पीर सा.
हरी का नाम अनाम है
जीवन सुख का धाम है...
*
बाँका राँझा-हीर सा,
बुद्ध-सुजाता-खीर सा,
हर उर-वेधी तीर सा-
बृज के चपल अहीर सा.
अनुरागी निष्काम है
जीवन सुख का धाम है...
*
वागी आलमगीर सा,
तुलसी की मंजीर सा,
संयम की प्राचीर सा-
राई, फाग, कबीर सा.
स्नेह-'सलिल' गुमनाम है
जीवन सुख का धाम है...
***
उल्लाला मुक्तिका:
दिल पर दिल बलिहार है
*
दिल पर दिल बलिहार है,
हर सूं नवल निखार है..
प्यार चुकाया है नगद,
नफरत रखी उधार है..
कहीं हार में जीत है,
कहीं जीत में हार है..
आसों ने पल-पल किया
साँसों का सिंगार है..
सपना जीवन-ज्योत है,
अपनापन अंगार है..
कलशों से जाकर कहो,
जीवन गर्द-गुबार है..
स्नेह-'सलिल' कब थम सका,
बना नर्मदा धार है..
***
उल्लाला मुक्तक:
*
उल्लाला है लहर सा,
किसी उनींदे शहर सा.
खुद को खुद दोहरा रहा-
दोपहरी के प्रहर सा.
*
झरते पीपल पात सा,
श्वेत कुमुदनी गात सा.
उल्लाला मन मोहता-
शरतचंद्र मय रात सा..
*
दीप तले अँधियार है,
ज्यों असार संसार है.
कोशिश प्रबल प्रहार है-
दीपशिखा उजियार है..
*
मौसम करवट बदलता,
ज्यों गुमसुम दिल मचलता.
प्रेमी की आहट सुने -
चुप प्रेयसी की विकलता..
*
दिल ने करी गुहार है,
दिल ने सुनी पुकार है.
दिल पर दिलकश वार या-
दिलवर की मनुहार है..
*
शीत सिसकती जा रही,
ग्रीष्म ठिठकती आ रही.
मन ही मन में नवोढ़ा-
संक्रांति कुछ गा रही..
*
श्वास-आस रसधार है,
हर प्रयास गुंजार है.
भ्रमरों की गुन्जार पर-
तितली हुई निसार है..
*
रचा पाँव में आलता,
कर-मेंहदी पूछे पता.
नाम लिखा छलिया हुआ-
कहो कहाँ-क्यों लापता?
*
वह प्रभु तारणहार है,
उस पर जग बलिहार है.
वह थामे पतवार है.
करता भव से पार है..
१२-२-२०१६
***
नवगीत:
.
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नवगीतों ने व्यथा-कथाएँ
कही अंतरों में गा-गाकर
छंदों ने अमृत बरसाया
अविरल दुःख सह
सुख बरसाकर
दोहा आल्हा कजरी पंथी
कर्म-कुंडली बाँच-बाँचकर
थके-चुके जनगण के मन में
नव आशा
फसलें बो पाये
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नव प्रयास के मुखड़े उज्जवल
नव गति-नव यति, ताल-छंद नव
बिंदासी टटकापन देकर
पार कर रहे
भव-बाधा हर
राजनीति की कुलटा-रथ्या
घर के भेदी भक्त विभीषण
क्रय-विक्रयकर सिद्धांतों का
छद्म-कहानी
कब कह पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
हास्य-व्यंग्य जमकर विरोध में
प्रगतिशीलता दर्शा हारे
विडंबना छोटी कहानियाँ
थकीं, न लेकिन
नक्श निखारे
चलीं सँग, थक, बैठ छाँव में
कलमकार से कहे लोक-मन
नवगीतों को नवाचार दो
नयी भंगिमा
दर्शा पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
१२-२-२०१५
.
नवगीत:
.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
मेहनतकश हाथों ने बढ़
मतदान किया.
झुकाते माथों ने
गौरव का भान किया.
पंजे ने बढ़
बटन दबाया
स्वप्न बुने.
आशाओं के
कमल खिले
जयकार हुआ.
अवसर की जय
रात हटी तो प्रात हुई.
आसमान में आयी ऊषा.
पौध जगे,
पत्तियाँ हँसी,
कुछ कुसुम खिले.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
आम आदमी ने
खुद को
पहचान लिया.
एक साथ मिल
फिर कोइ अरमान जिया.
अपने जैसा,
अपनों जैसा
नेता हो,
गड़बड़ियों से लड़कर
जयी विजेता हो.
अलग-अलग पगडंडी
मिलकर राह बनें
केंद्र-राज्य हों सँग
सृजन का छत्र तने
जग सिरमौर पुनः जग
भारत बना सकें
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
११.२.२०१५
.
मुक्तिका
*
यहीं कहीं था, कहाँ खो गया पटवारी जी?
जगते-जगते भाग्य सो गया पटवारी जी..
गैल-कुआँ घीसूका, कब्जा ठाकुर का है.
फसल बैर की, लोभ बो गया पटवारी जी..
मुखिया की मोंड़ी के भारी पाँव हुए तो.
बोझा किसका?, कौन ढो गया पटवारी जी..
कलम तुम्हारी जादू करती मान गये हम.
हरा चरोखर, खेत हो गया पटवारी जी..
नक्शा-खसरा-नकल न पायी पैर घिस गये.
कुल-कलंक सब टका धो गया पटवारी जी..
मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो.
स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी..
कोशिश के धागे में आशाओं का मोती.
'सलिल' सिफारिश-हाथ पो गया पटवारी जी..
***
मुक्तिका
*
आँखों जैसी गहरी झील.
सकी नहीं लहरों को लील..
पर्यावरण प्रदूषण की
ठुके नहीं छाती में कील..
समय-डाकिया महलों को
कुर्की-नोटिस कर तामील..
मिष्ठानों का लोभ तजो.
खाओ बताशे के संग खील..
जनहित-चुहिया भोज्य बनी.
भोग लगायें नेता-चील..
लोकतंत्र की उड़ी पतंग.
थोड़े ठुमके, थोड़ी ढील..
पोशाकों की फ़िक्र न कर.
हो न इरादा गर तब्दील..
छोटा मान न कदमों को
नाप गये हैं अनगिन मील..
सूरज जाये महलों में.
'सलिल' कुटी में हो कंदील..
१२-२-२०११

*** 

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

फरवरी ११, नर्मदा, लहसुन, हिंग्लिश ग़ज़ल, कृष्णदास, सॉनेट, सर्वोदय, विराट,

सलिल सृजन फरवरी ११
पूर्णिका
नर्मदा
कल-कल कल-कल बहो नर्मदा।
निर्मल-निश्छल रहो नर्मदा।।
.
कल्प-कल्प नव संरचना कर
युग-परिवर्तन गहो नर्मदा।।
.
लहर-लहर ओंकार सुनाओ
हहर-हहर सच कहो नर्मदा।।
.
शोण-जोहिला, विंध्य त्रिपुर को
मिटते देख न ढहो नर्मदा।।
.
इस तट गौरा, उस तट बौरा
प्रणय-कथाएँ तहो नर्मदा।।
.
 जीवन दाता गुफा-सघन वन
असत-अनीति न सहो नर्मदा।।
.
मन मंदिर आ संजीवित कर
प्राण अग्नि बन दहो नर्मदा।।
०००
मुक्तक
मुक्त मन मंथन करे मुक्तक बने।
कथ्य-रस-लय-तुक मिले मुक्तक बने।।
बिंब, मिथक, प्रतीक सह निहितार्थ से-
झूम जब पाठक उठे मुक्तक बने।।
राम प्रताप दशानन जाने या जाने हनुमान।
एक करे निंदा; दूजा करता है महिमा गान।।
जिसकी रही भवन जैसी; वैसा ही परिणाम-
मारा गया एक; दूजा है जनपूजित भगवान।।
११.२.२०२५
०००
स्वास्थ्य विमर्श / आयुर्वेद
लहसुन के चमत्कारी फायदे
*
लहसुन सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी होते हैं। किसी भी तरह लहसुन का सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है। लहसुन का सेवन निम्न रोगों में लाभदायक है-
१. १०० ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कली डालकर धीमी-धीमी आँच पर पकाएँ। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से बदन का दर्द दूर होता है।
२. लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।
३. लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करता है।
४. खाँसी और यक्ष्मा (तपेदिक/टीबी) में लहसुन बेहद फायदेमंद है।
५. लहसुन के रस की कुछ बूँदें रुई पर डालकर सूँघने से सर्दी दूर होती है।
६. ३० मिलीलीटर दूध में लहसुन की पाँच कलियाँ उबालकर इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियाँ मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।
७. लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बनाकार लगाएँ, मुहाँसे साफ हो जाएँगे ।
८. लहसुन की दो कलियाँ पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा कर सुबह-शाम पिएँ, दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है। रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाएँ, हृदय संबंधी रोग की संभावना घटती है।
९. लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।
१०. नियमित लहसुन खाने से (रक्तचाप) ब्लडप्रेशर नियमित रहता है।
११. एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में लहसुन का प्रयोग फायदेमंद होता है।
१२. लहसुन की ५ कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें १० ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें, सफेद बाल काले होते हैं।
१३. इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।
१४. जुकाम और सर्दी में लहसुन रामबाण की तरह काम करता है।
१५. पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में लहसुन बहुत फायदा करता है।
१६. लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
१७. लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ कम होती है।
१८. लहसुन का सेवन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में बहुत ही लाभदायक है।
१९. लहसुन की बदबू से बचने के लिए लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाइए या लहसुन खाने के बाद जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर चूसें तो आपके मुँह से बदबू नहीं आएगी।
११.२.२०१४
***
हिंग्लिश ग़ज़ल
Sunday Monday any day.
Please do not forget to pray.
यार-दोस्त होते किसके?
मतलब साधा औ' खिसके।।
Honesty is policy best.
Never lie it never pay.
डंडे झंडे कोलाहल
अफसर नेता मुस्टंडे।।
One day every one to Go.
No one can always stay.
'सलिल' न गर्मी रहे सदा
नहीं सदा बादल बरसे।।
११.२.२०२४
•••
कृष्ण भक्त कृष्णदास जी
*
कृष्णदास के सत्य ने, किया कृष्ण का दास।
भाव सागर से दूर हो, हुए कृष्ण के पास।।
*
श्री वल्लभ आचार्य से, मिली कृपा-विश्वास।
अधिकारी बन बही की, लेखन विधि की खास।।
*
पर उपकारी वृत्ति का, किया अनुकरण नित्य।
पिता तजे हरि पिता की, पाई भक्ति अनित्य ।।
*
हो अधिकारी हो गए, सेवक खासुलखास।
सेवा में हो कमी न कुछ, प्रभु से थी यह आस।।
*
कृष्ण युगल की भक्ति की, भाषा मंजुल भाव।
की उपासना अन्यतम, कीर्तन रचना चाव।।
*
रच कवित्त निर्दोष नित, प्रभु-अर्पण कर मस्त।
कृष्णदास-सिर पर रहा, राधा-माधव हस्त।।
*
तेजस्वी थे भक्ति-पथ, पथिक कृष्ण के भक्त।
कृष्ण-कार्य में लीन थे, पद-सेवा अनुरक्त।।
*
राम-कृष्ण हरि ही रहे, दो न रहे वे एक।
दृष्टि द्वैत-अद्वैत की, करी समन्वित नेक।।
*
भक्ति-जगत व्यवहार का, किया समन्वय खूब।
कार्य व्यवस्था श्रेष्ठ की, भाव-भक्ति में डूब।।
*
रतिमय राधा-कृष्ण का, मर्यादित शृंगार।
वर्णित कर कीर्तन किया, कृष्ण भक्ति आगार।।
*
कृष्ण-भक्ति कर्तव्य का, हो अभिन्न पर्याय।
काम किया निष्काम हो, था हरि-हित स्वीकार्य।।
*
प्रेम तत्व में डूबकर, रस लीला साक्षात।
किया कीर्तन में लिखा, दस दिश हो विख्यात।।
*
माया-मोहित थे न वे, विषय मुक्त थे आप।
पंकज सम थे पंक में, दूर रहा हर पाप।।
*
विविध रूप श्री कृष्ण के, थे अनेक में एक।
कृष्णदास ने सत्य को, साधा सहित विवेक।।
११.२.२०२४
***
सॉनेट 
रस
*
रस गागर रीते फिर फिर भर।
तरस न बरस सरस होकर मन।
नीरस मत हो, हरष हुलस कर।।
कलकल कर निर्झर सम हर जन।।
दरस परस कर, उमग-उमगकर।
रूपराशि लख, मादक चितवन।
रसनिधि अक्षर नटवर-पथ पर।।
हो रस लीन श्वास कर मधुबन।।
जग रसखान मान, अँजुरी भर।
नेह नर्मदा जल पी आत्मन!
कर रस पान, पुलक जय-जयकर।।
सुबह शाम हर फागुन-सावन।।
लगे हाथ रस गर न बना रस।
लूट लुटा रे धँस-हँस बतरस ।।
११-२-२०२२
•••
एक दोहा
अपनी अपनी रोटियां सेंकें नेता लोग
मँहगाई से मर रही जनता इन्हें न सोग
***
सर्वोदय गीत
सर्वोदय भारत का सपना।
हो साकार स्वप्न हर अपना।।
*
हम सब करें प्रयास निरंतर।
रखें न मनुज मनुज में अंतर।।
एक साथ हम कदम बढ़ाएँ।
हाथ मिला श्रम की जय गाएँ।।
युग अनुकूल गढ़ों नव नपना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*
हर जन हरिजन हुआ जन्म से।
ले-देकर है वणिक कर्म से।।
रक्षा कर क्षत्रिय हैं हम सब।
हो मतिमान ब्राह्मण हैं सब।।
कर्म साध्य नहिं माला जपना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*
श्रम सीकर में विहँस नहाएँ।
भूमिहीन को भू दे गाएँ।।
ऊँच-नीच दुर्भाव मिटाएँ।
स्नेह सलिल में सतत नहाएँ।।
अंधभक्ति तज, सच है वरना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
***
कृति चर्चा :
दोहा गाथा : छंदराज पर शोधपरक कृति
*
[कृति विवरण : दोहा गाथा, शोध कृति, अमरनाथ, प्रथम संस्करण २०२०, २१ से.मी. x १४ से.मी., आवरण पेपरबैक बहुरंगी, पृष्ठ ९६, मूल्य १५०/-, समन्वय प्रकाशन अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१]
विश्ववाणी हिंदी के छंद कोष का कालजयी रत्न छंदराज दोहा, कवियों हो सर्वाधिक प्रिय रहा है और रहेगा भी। छन्दाचार्य अभियंता अमरनाथ जी द्वारा रचित 'दोहागाथा' गागर में सागर की तरह लघ्वाकारी किन्तु गहन शोध परक कृति है। खंड काव्य जटायु व कालजयी, कहानी संग्रह जीवन के रंग तथा आस पास बिखरी हुई जिंदगी, नव विधा क्षणिका संग्रह चुटकी, भजन संग्रह चरणों में, व्यंग्य संग्रह खरी-खोटी तथा सूक्ष्म समीक्षा कृति काव्य रत्न के सृजन के पश्चात् दोहागाथा अमरनाथ साहित्य का नौवा रत्न है। कहावत है 'लीक तोड़ तीनों चलें शायर सिंह सपूत' अमर नाथ जी इन तीनों गुणों से संपन्न हैं। शायर अर्थात कवि तो वे हैं ही, अभियंता संघों में आंदोलन-काल में सिंह की तरह दहाड़ते अमरनाथ को जिन्होंने सुना है, वे भूल नहीं सकते। अमरनाथ जी जैसा सपूत हर माता-पिता चाहता है। अमरनाथ जी के व्यक्तित्व के अन्य अनेक पक्ष पर्यावरण कार्यकर्ता, समाज सुधारक, बाल शिक्षाविद, समीक्षक तथा संपादक भी हैं।
दोहा गाथा में दोहे का इतिहास, उत्पत्ति, परिभाषा एवं विकास क्रम, दोने का विधान एवं संरचना तथा दोहे के भेद, दोहे के उर्दू औजान शीर्षकों के अन्तर्गत नव दोहाकारों ही नहीं वरिष्ठ दोहाकारों के लिए भी बहुमूल्य सामग्री संकलित की गई है। विषय सामग्री का तर्कसम्मत प्रस्तुतीकरण करते समय सम्यक उदाहरण 'सोने में सुहागा' की तरह हैं। दोय, होय जैसे क्रिया रूप शोध कृति में उचित नहीं प्रतीत होते। लेखन का नाम मुखपृष्ठ पर 'अमरनाथ', पृष्ठ ८-९ पर 'अमर नाथ' होना खीर में कंकर की तरह खटकता है। दोहा-विधान पर प्रकाश डालते समय कुछ नए-पुराने दोहाकारों के दोहे प्रस्तुत किये जाने से कृति की उपयोगिता में वृद्धि हुई है। हिंदी छंद संबंधी शोध में फ़ारसी बह्रों और छंद दोषों का उल्लेख क्यों आवश्यक क्यों समझा गया? क्या उर्दू छंद शास्त्र की शोध कृति में हिंदी या अन्य भाषा के छंदों का विवेचन किया जाता है? विविध भाषाओँ के छंदों का तुलनात्मक अध्ययन उद्देश्य हो तो भारत की अन्य भाषाओँ-बोलिओं से भी सामग्री ली जानी चाहिए। हिंदी छंद की चर्चा में उर्दू की घुसपैठ खीर और रायते के मिश्रण की तरह असंगत प्रतीत होता है।
दोहा रचना संबंधी विधान विविध पिङगल ग्रंथों से संकलित किये जाना स्वाभाविक है, वैशिष्ट्य यह है कि विषम-चरणों की कल-बाँट सोदाहरण समझाई गई है। विविध भाषाओँ/बोलिओं तथा रसों के दोहे कृति को समृद्ध करते हैं किंतु इसे और अधिक समृद्ध किया जा सकता है। दोहे के विविध रूप संबंधी सामग्री रोचक तथा ज्ञानवर्धक है।
दोहा के चरणों की अन्य छंदों के चरणों से तुलना श्रमसाध्य है। यह कार्य अपूर्ण रहना ही है, यह छंद प्रभाकर में जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' द्वारा दी गई छंद संख्या (मात्रिक छंद ९२,२७,७६३, वर्णिक छंद १३, ४२,१७, ६२६, उदाहरण ७०० से कुछ अधिक) से ही समझा जा सकता है। दोहा रचना में इस तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता नहीं है तथापि शोध की दृष्टी से इसकी उपादेयता असंदिग्ध है।
दोहे के विषम या सैम चरणों में संशोधन से निर्मित छंद संबंधी सामग्री के संबंध में यह कैसे निर्धारित किया जाए की उन छड़ों में परिवर्तन से दोहा बना या दोहे में परिवर्तन से वे छंद बने। विविध छंदों के निर्माण की तिथि ज्ञात न होने से यह निर्धारित नहीं किया जा सकता की किस छंद में परिवर्तन से कौन सा छंद बना या वे स्वतंत्र रूप से बने। दोहे के उलटे रूप शीर्षक से प्रस्तुत सामग्री रोचक है। चौबीस मात्रिक अन्य ७५,०२५ छंदों में से केवल २० छंदों का उल्लेख ऊँट के मुंह में जीरे की तरह है।
दोहे का अन्य छंदों के साथ प्रयोग शीर्षक अध्याय प्रबंध काव्य रचना की दृष्टि से बहुत उपयोगी है।
दोहे में परिवर्तन कर बनाये गए नए छंदों का औचित्य भविषा निर्धारित करेगा की इन्हें अपनाया जाता है या नहीं?
संख्यावाचक शब्दावली का उल्लेख अपर्याप्त है।
कृति के अंत में आभार प्रदर्शन लेखक की ईमानदारी की मिसाल है।
मुखपृष्ठ पर कबीर, रहीम, तुलसी तथा बिहारी के चित्रों से कृति की शोभा वृद्धि हुई है किंतु प्रकाशन की चूक से बिहारी के नाम के साथ विद्यापति का चित्र लग गया है। इस गंभीर त्रुटि का निवारण बिहारी के वास्तविक चित्र के स्टिकर यथस्थान चिपकाकर किया जा सकता है।
यह निर्विवाद है कि इस कृति की अधिकांश सामग्री पूर्व प्राप्य नहीं है। अमरनाथ जी ने वर्षों तक सैंकड़ों पुस्तकों और पत्रिकाओं का अध्ययन कर उदाहरण संकलित किये हैं। किसी भी नई सामग्री के विवेचन और विश्लेषण में मतभेद स्वाभाविक है किंतु विषय के विकास की दृष्टि से ऐसे गूढ़ अध्ययन की प्रासंगिकता, उपादेयता और मौलिकता प्रशंसनीय ही नहीं पठनीय एवं मननीय भी है। इस सारस्वत शोधपरक प्रस्तुति हेतु अमरनाथ जी साधुवाद के पात्र हैं। दोहाकारों ही नहीं अन्य छंदों के अध्येताओं और रचनाकारों को भी इस कृति का अध्ययन करना चाहिए।
११.२.२०२१
***
दिल्ली बोली
*
बड़बोलों ने खाई पटकनी
दिल्ली बोली
पैदल ने वजीर को मारा
औंधे मुँह वह जो हुंकारा
जो गरजे वे मेघ न बरसे
जनहितकारी की पौबारा
अब जुबान पर लगा चटकनी
बड़बोलों ने खाई पटकनी
दिल्ली बोली
कथनी करनी का जो अंतर
लोग समझते; चला न मंतर
भानुमती का कुनबा आया
रोगी भोगी सब छूमंतर
शुरू हो गई पैर तले से दरी सरकनी
बड़बोलों ने खाई पटकनी
दिल्ली बोली
बंदर बाँट कर रहे लड़वा
सेठों के हित विधि से सधवा
पूज गोडसे; गाँधी ठुकरा
बेकारी मँहगाई बढ़वा
कड़वी गोली पड़ी गटकनी
बड़बोलों ने खाई पटकनी
दिल्ली बोली
११.२.२०२०
***
नवगीत :
.
दुनिया
बहुत सयानी लिख दे
.
कोई किसी की पीर न जाने
केवल अपना सच, सच माने
घिरा तिमिर में
जैसे ही तू
छाया भी
बेगानी लिख दे
.
अरसा तरसा जमकर बरसा
जनमत इन्द्रप्रस्थ में सरसा
शाही सूट
गया ठुकराया
आयी नयी
रवानी लिख दे
.
अनुरूपा फागुन ऋतु हर्षित
कुसुम कली नित प्रति संघर्षित
प्रणव-नाद कर
जनगण जागा
याद आ गयी
नानी लिख दे
.
भूख गरीबी चूल्हा चक्की
इनकी यारी सचमुच पक्की
सूखा बाढ़
ठंड या गर्मी
ड्योढ़ी बाखर
छानी लिख दे
.
सिहरन खलिश ख़ुशी गम जीवन
उजली चादर, उधड़ी सीवन
गौरा वर
धर कंठ हलाहल
नेह नरमदा
पानी लिख दे
...
नवगीत:
.
आम आदमी
हर्ष हुलास
हक्का-बक्का
खासमखास
रपटे
धारों-धार गये
.
चित-पट, पट चित, ठेलमठेल
जोड़-घटाकर हार गये
लेना- देना, खेलमखेल
खुद को खुद ही मार गये
आश्वासन या
जुमला खास
हाय! कर गया
आज उदास
नगदी?
नहीं, उधार गये
.
छोडो-पकड़ो, देकर-माँग
इक-दूजे की खींचो टाँग
छत पानी शौचालय भूल
फाग सुनाओ पीकर भाँग
जितना देना
पाना त्रास
बिखर गया क्यों
मोद उजास?
लोटा ले
हरि द्वार गये
११.२.२०१५
...
हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल
...
कृति चर्चा:
बोल मेरी ज़िंदगी: हिंदी ग़ज़ल का उजला रूप
चर्चाकार: संजीव वर्मा 'सलिल'
*
(कृति विवरण: बोल मेरी ज़िंदगी, हिंदी गज़ल संग्रह, चंद्रसेन 'विराट', आकर डिमाई, आवरण सजिल्द बहुरंगी, पृष्ठ १८४, मूल्य ३००ऋ, समान्तर पब्लिकेशन तराना, उज्जैन)
*
हिंदी गीतिकाव्य की मुक्तिका परंपरा के शिखर हस्ताक्षरों में प्रमुख, हिंदी की भाषिक शुद्धता के सजग पहरुए, छांदस काव्य के ध्वजवाहक चंद्रसेन विराट का नया हिंदी गज़ल संग्रह 'बोल मेरो ज़िंदगी' हिंदी ग़ज़ल के उज्जवल रूप को प्रस्तुत करता है. संग्रह का शीर्षक ही ग़ज़लकार के सृजन-प्रवाह की लहरियों के नर्तन में परिवन का संकेत करता है. पूर्व के ११ हिंदी गज़ल संग्रहों से भिन्न इस संग्रह में भाषिक शुद्धता के प्रति आग्रह में किंचित कमी और भाषिक औदार्य के साथ उर्दू के शब्दों के प्रति पूर्वपेक्षा अधिक सहृदयता परिलक्षित होती है. सम्भवतः सतत परिवर्तित होते परिवेश, नयी पीढ़ी की भाषिक संवेदनाएं और आवश्यकताएं तथा समीक्षकीय मतों ने विराट जी को अधिक औदार्यता की और उन्मुख किया है.
गीतिका, उदयिका, प्रारम्भिक, अंतिका, पदांत, तुकांत जैसी सारगर्भित शब्दावली के प्रति आग्रही रही कलम का यह परिवर्तन नए पाठक को भले ही अनुभव न हो किन्तु विराट जी के सम्पूर्ण साहित्य से लगातार परिचित होते रहे पाठक की दृष्टि से नहीं चूकता। पूर्व संग्रहों निर्वासन चाँदनी में रूप-सौंदर्य, आस्था के अमलतास में विषयगत व्यापकता, कचनार कि टहनी में अलंकारिक प्रणयाभिव्यक्ति, धर के विपरीत में वैषम्य विरोध, परिवर्तन की आहट में सामयिक चेतनता, लड़ाई लम्बी में मानसिक परिष्कार का आव्हान, मयय कर मेरे समय में व्यंग्यात्मकता, इस सदी का आदमी में आधुनिकताजन्य विसंगतियों पर चिंता, हमने कठिन समय देखा है में विद्रूपताओं की श्लेषात्मक अभिव्यञ्जना, खुले तीसरी आँख में उज्जवल भविष्य के प्रति आस्था के स्वरों के बाद बोल मेरी ज़िंदगी में आम आदमी की सामर्थ्य पर विश्वास की अभिव्यक्ति का स्वर मुखर हुआ है. विराट जी का प्रबुद्ध और परिपक्व गज़लकार सांस्कारिक प्रतिबद्धता, वैश्विक चेतना, मानवीय गरिमा, राष्ट्रीय सामाजिकता और स्थानीय आक्रोश को तटस्थ दृष्टि से देख-परख कर सत्य की प्रतीति करता-कराता है.
विश्व भाषा हिंदी के समृद्धतम छंद भंडार की सुरभि, संस्कार, परंपरा, लोक ग्राह्यता और शालीनता के मानकों के अनुरूप रचित श्रेष्ठ रचनाओं को प्रयासपूर्वक खारिज़ करने की पूर्वाग्रहग्रसित आलोचकीय मनोवृत्ति की अनदेखी कर बह्र-पिंगल के छन्दानुशासन को समान महत्त्व देते हुए अंगीकार कर कथ्य को लोकग्राह्य और प्रभावी बनाकर प्रस्तुत कर विराट जी ने अपनी बात अपने ही अंदाज़ में कही है;
'कैसी हो ये सवाल ज़रा बाद में हल हो
पहली यह शर्त है कि गज़ल है तो गज़ल हो
भाषा में लक्षणा हो कि संकेत भरे हों
हो गूढ़ अर्थवान मगर फिर भी सरल हो'
अरबी-फ़ारसी के अप्रचलित और अनावश्यक शब्दों का प्रयोग किये बिना और मात्राएँ गिराए बिना छोटी, मझोली और बड़ी बहरों की ग़ज़लों में शिद्दत और संजीदगी के साथ समर्पण का अद्भुत मिश्रण है. विराट जी आलोचकीय दृष्टि की परवाह न कर अपने मानक आप बनाते हैं-
तृप्त हो जाए सुधीजन यह बहुत / फिर समीक्षक से विवेचन हो न हो
जी सकूं मैं गीत को कृतकृत्य हो / अब निरंतर गीत लेखन हो न हो
*
ग़ालिब ने अपने अंदाज़े बयां को 'और' अर्थात अनूठा बताया था, विराट जी की कहाँ अपनी मिसाल आप है :
देह की दूज तो मन गयी / प्रेम की पंचमी रह गयी
*
मूढ़ है मौज में आज भी / और ज्ञानी परेशान है
*
मादा सिर्फ न माँ भी तू / नत होकर औरत से कह
*
लूं न जमीं के बदले में / यह जुमला जन्नत से कह
*
आते कल के महामहिम बच्चे / उनको उठकर गुलाब दो पहले
*
गुम्बद का जो मखौल उड़ाती रही सदा / मीनार जलजले में वो अबके ढही तो है
*
विराट मूलतः गीतकार हैं. उनका गीतकार मुक्तिकाकर का विरोधी नहीं पूरक है. वे गज़ल में भी गीत की दुहाई न सिर्फ देते है बल्कि पूरी दमदारी से देते हैं:
गीत की सर्जना / ज्यों प्रसव-वेदना
*
जी सकूँ मैं गीत को कृतकृत्य हो / अब निरंतर गीत लेखन हो न हो
*
क्षमा हरगिज़ न माँगूँगा / ये गर्दन गंग कवि की है
*
मैं कवि ब्रम्ह रचना में रत हूँ हे देवों!
*
उनका दवा था रचना मौलिक है / वह मेरे गीत की नकल निकली
*
तू रख मेरे गीत नकद / यश की आय मुझे दे दे
*
मुक्त कविता के घर में गीतों का / छोड़कर क्यों शिविर गया कोई?
*
हम भावों को गीत बनाने / शब्दों छंदों लय तक पहुँचे
*
ह्रदय तो गीत से भरता / उदर भरता न पर जिससे
*
मेरे गीत! कुशलता से / मर्मव्यथा मार्दव से कह
*
गीत! इस मरुस्थल में तू कहाँ चला आया
*
बेच हमने भी दिए गीत नहीं रोयेंगे / पेट भर खायेंगे हम आज बहुत सोयेंगे
*
विराट जी हिंदी के वार्णिक-मात्रिक छंदों की नींव पर हिंदी ग़ज़ल के कथ्य की इमारत खड़ी कर उर्दू के बहरो-अमल से उसकी साज-सज्जा करते हैं. हिंदी ग़ज़लों की इस केसरिया स्वादिष्ट खीर में बराए नाम कुछ कंकर भी हैं जो चाँद में दाग की तरह हैं:
ये मीठी हँसी की अधर की मिठाई / हमें कुछ चखाओ गज़ल कह रहा हूँ
यहाँ प्रेमी अपनी प्रेमिका से अधरों की मधुरता चखने का निवेदन कर रहा है. कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से अनेकों को अधर-रस-पान करने का अनुरोध नहीं कर सकता। अतः, कर्ता एकवचन 'हैम' के स्थान पर 'मैं' होगा। यहाँ वचन दोष है.
दिल को चट्टान मान बैठे थे / किस कदर अश्रु से सजल निकली
यहाँ 'चट्टान' पुल्लिंग तथा 'निकली' स्त्रीलिंग होने से लिंग दोष है.
पत्नी को क्यों लगाया युधिष्ठिर बताइये / क्यों दांव पर स्वयं को लगाया नहीं गया?
महाभारत में वर्णित अनुसार युधिष्ठिर पहले राज्य फिर भाइयों को, फिर स्वयं को तथा अंत में द्रौपदी को हारे थे. अतः, यहाँ तथ्य दोष है.
'मौन क्यों रहती है तू' शीर्षक ग़ज़ल में 'रहती है तू, कहती है तू, महती है तू, दहति है तू, ढहती है तू, बहती है तू तथा सहती है तू' के साथ 'वरती है तू' का प्रयोग खटकता है.
'वचनों से फिर गया कोइ' शीर्षक गज़ल की अंतिम द्विपदी 'यह तो मौसन था उसके खिलने का / हाय, इसमें ही खिर गया कोई' में प्रयुक्त 'खिर' शब्द हिंदी-उर्दू शब्द कोष में नहीं मिला। यहाँ 'ही' को 'हि' की तरह पढ़ना पड़ रहा है जो हिंदी ग़ज़ल में दोष कहा जायेगा। यदि 'हाय, इसमें बिखर गया कोई' कर दिया जाए तो लय और अर्थ दोनों सध जाते हैं.
विराट जी की रचनाओं में पौराणिक मिथकों और दृष्टान्तों का पिरोया जाना स्वाभाविक और सहज है. इस संग्रह का वैशिष्ट्य गीता-महाभारत-कृष्ण सम्बन्धी प्रसंगों का अनेक स्थलों पर विविध सन्दर्भों में मुखर होना है. यथा: हो चूका अन्याय तब भी जातियों के नाम पर / मान्य अर्जुन को किया पर कर्ण ठुकराया गया, बढ़ोगे तुम भी लक्ष्य वो चिड़िया की आँख का / अर्जुन की भाँति खुद को निष्णात तो करो, उठा दे दखल ज़िंदगी / यक्ष के ताल से चुन कमल ज़िंदगी, प्राप्त माखन नहीं / छाछ को क्यों मथा, सब कोष तो खुले हैं कुबेरों के वास्ते / लेकिन किसी सुदामा को अवसर तो नहीं है, फेन काढ़ता है दंश को उसका अहम् सदा / तक्षक का खानदान है / है तो हुआ करे, समर में कृष्ण ने जो भी युधिष्ठिर से कहलवाया / 'नरो वा कुंजरो वा' में सचाई है- नहीं भी है, हम अपनी डाल पर हैं सुरक्षित तो न चिंता / उन पर बहेलिये का है संधान हमें क्या? मोर का पंख / यश है मुकुट का बना, तुम बिना कृष्ण के अर्जुन हो उठो भीलों से / गोपियाँ उनकी बचा लो कि यही अवसर है, भीष्म से पार्थ बचे और न टूटे प्रण भी / कृष्ण! रथ-चाक उठा लो कि यही अवसर है, भोले से एकलव्य से अंगुष्ठ माँगकर / अर्जुन था द्रोण-शिष्य विरल कर दिया गया, एक सपना तो अर्जुन बने / द्रोण सी शिक्षा-दीक्षा करें आदि. उल्लेखनीय है कि एक ही प्रसंग को दो स्थानों पर दो भिन्नार्थों में प्रयोग किया गया है. यह गज़लकार की असाधारण क्षमता का परिचायक है.
सारतः, अनुप्रास, उपमा और दृष्टान्त विराट जी को सर्वाधिक प्रिय अलंकार हैं जिनका प्रयोग प्रचुरता से हुआ है. विराट जी की शब्द सामर्थ्य स्पृहणीय है. हिंदी शब्दों के साथ संस्कृत, उर्दू तथा देशज शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है जबकि अंगरेजी शब्द (सेंसेक्स, डॉक्टर आदि) अपरिहार्य होने पर अपवाद रूप ही हैं. संग्रह में प्रयुक्त भाषा प्रसाद गुण संपन्न है. व्यंग्यात्मक, अलंकारिक तथा उद्बोधनात्मक शैली में विराट जी पाठक के मन को बाँध पाये हैं. सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भों की कसौटी पर चतुर्दिक घट रही राजनैतिक घटनाओं और सामाजिक परिवर्त्तनों पर सजग कवि की सतर्क प्रतिक्रिया गज़लों को पठनीय ही नहीं ग्रहणीय भी बनाती हैं. सामयिक संकलनों की भीड़ में विराट जी का यह संग्रह अपनी परिपक्व चिनतंपूर्ण ग़ज़लों के कारण पाठकों को न केवल भायेगा अपितु बार-बार उद्धृत भी किया जायेगा।
११.२.२०१४
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सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

हास्य, चाकलेट डे, वेलेंटाइन,

 हास्य

चाकलेट डे
*
रेल लेट होती रई अब लौं
चाक लेट अब आई।
टीचरनी एक
पाँच क्लास
कैसे हो पाए पढ़ाई।
ओन लैन का नाटक कर खें
सबको पास करो रे!
पीढ़ी बने निकम्मी-अनपढ़
मुफ्त राहतें दो रे!
नेता का जयकारा गूँजे
वे बनाएँ सरकार।
उनके बच्चे सेठ अफसर हों
जनता के बेकार।

स्वास्थ्य, आयुर्वेद, कलौंजी,

स्वास्थ्य सलिला
कई मर्जों की दवाई कलौंजी
*
कलियुग की संजीवनी, मिल कलौंजी नाम।
चुटकी में पीड़ा हरे, मिटा रोग बिन दाम।।
★ सेवन विधि
कलौंजी के बीजों को खाया अथवा एक छोटा चम्मच कलौंजी को शहद में मिश्रित कर या पानी में कलौंजी उबाल-छानकर पिया जा सकता है। एक अन्य तरीका दूध में कलौंजी उबाल-ठंडा कार पीना भी है। कलौंजी को पीस (ग्राइंड) कर पानी तथा दूध के साथ इसका सेवन किया जा सकता है। कलौंजी को ब्रैड, पनीर तथा पेस्ट्रियों पर छिड़ककर भी खा सकते हैं।
◆ कलौंजी चिकित्सा निम्न रोगों को मिटाती है-
१. टाइप-२ मधुमेह (डायबिटीज):
प्रतिदिन २ ग्राम कलौंजी के सेवन से बढ़ा हुआ ग्लूकोज कम होता है। इंसुलिन रैजिस्टैंस घटती है, बीटा सैल की कार्यप्रणाली में वृद्धि होती है तथा ग्लाइकोसिलेटिड हीमोग्लोबिन में कमी आती है।
२. मिर्गी:
मिर्गी से पीड़ित बच्चों में कलौंजी के सत्व का सेवन दौरे को कम करता है।
३. उच्च रक्तचाप:
एक सौ मि.ग्रा. कलौंजी का सत्व दिन में दो बार सेवन करने से हाइपरटैंशन के मरीजों में ब्लड प्रैशर कम होता है। उच्च
रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) में एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में २ बार पीने से रक्तचाप सामान्य बना रहता है। २८ मि.ली. जैतून का तेल और एक चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर पूर शरीर पर मालिश आधे घंटे तक धूप में रहने से रक्तचाप में लाभ मिलता है। यह क्रिया हर तीसरे दिन एक महीने तक करना चाहिए।
४. गंजापन:
जली हुई कलौंजी को हेयर ऑइल में मिलाकर सिर पर रोज मालिश करने से गंजापन दूर होकर बाल उग आते हैं।
५. त्वचा के विकार:
कलौंजी के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर त्वचा पर मालिश करने से त्वचा के विकार नष्ट होते हैं।
६. लकवा:
कलौंजी का तेल एक चौथाई चम्मच की मात्रा में एक कप दूध के साथ कुछ महीने तक प्रतिदिन पीने और रोगग्रस्त अंगों पर कलौंजी के तेल से मालिश करने से लकवा रोग ठीक होता है।
७. कान की सूजन, बहरापन:
कलौंजी का तेल कान में डालने से कान की सूजन दूर होती है। इससे बहरापन में भी लाभ होता है।
८. सर्दी-जुकाम:
कलौंजी के बीजों को सेंककर और कपड़े में लपेटकर सूंघने तथा कलौंजी का तेल और जैतून का तेल बराबर मात्रा में नाक में टपकाने से सर्दी-जुकाम समाप्त होता है। आधा कप पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल व चौथाई चम्मच जैतून का तेल मिलाकर इतना उबालें कि पानी खत्म हो जाए और केवल तेल ही रह जाए। इसके बाद इसे छानकर २ बूँद तेल नाक में डालने से सर्दी-जुकाम ठीक होता है।
९. कलौंजी को पानी में उबालकर इसका सत्व पीने से अस्थमा में काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है।
१०. छींके:
कलौंजी और सूखे चने को एक साथ अच्छी तरह मसलकर किसी कपड़े में बाँधकर सूँघने से छींके आनी बंद हो जाती है।
११. पेट के कीडे़:
दस ग्राम कलौंजी पीसकर ३ चम्मच शहद के साथ रात सोते समय सेवन करने से पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
१२. प्रसव की पीड़ा:
कलौंजी का काढ़ा बनाकर सेवन करने से प्रसव-पीड़ा दूर होती है।
१३. पोलियो का रोग:
आधे कप गर्म पानी में एक चम्मच शहद व आधे चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय लेने से पोलियो ठीक होता है।
१४. मुँहासे:
सिरके में कलौंजी पीसकर रात को सोते समय पूरे चेहरे पर लगाएं और सुबह पानी से चेहरे को साफ करने से मुँहासे मिटते हैं।
१५. स्फूर्ति:
स्फूर्ति (रिवायटल) के लिए नांरगी के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर लेनेसे आलस्य और थकान मिटती है।
१६.. गठिया:
कलौंजी को रीठा के पत्तों के साथ काढ़ा बनाकर पीने से गठिया रोग समाप्त होता है।
१७. जोड़ों का दर्द:
एक चम्मच सिरका, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय पीने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है।
१८. नेत्ररोग:
आँखों की लाली, मोतियाबिन्द, आँखों से पानी का आना, आँखों की रोशनी कम होना आदि रोगों में एक कप गाजर का रस, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में २ बार सेवन करने से सभी नेत्र रोग ठीक होते हैं। आँखों के चारों ओर तथा पलकों पर कलौंजी का तेल रात को सोते समय लगाने से आँखों के रोग समाप्त होते हैं। नेत्र-रोगी को अचार, बैंगन, अंडा व मछली नहीं खाना चाहिए।
१९. स्नायुविक व मानसिक तनाव:
एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल डालकर रात को सोते समय पीने से स्नायुविक व मानसिक तनाव दूर होता है।
२०. गांठ:
कलौंजी का तेल गाँठों पर लगाने और एक चम्मच कलौंजी का तेल गर्म दूध में डालकर पीने से गाँठ नष्ट होती है।
२१. मलेरिया :
पिसी हुई कलौंजी आधा चम्मच और एक चम्मच शहद मिलाकर चाटने से मलेरिया का बुखार ठीक होता है।
२२. स्वप्नदोष:
यदि रात को नींद में अपने आप वीर्य निकले तो एक कप सेब के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में २ बार सेवन करें, स्वप्नदोष दूर होगा। प्रतिदिन कलौंजी के तेल की चार बूँद एक चम्मच नारियल तेल में मिलाकर सोते समय सिर में लगाने से भी स्वप्न दोष का रोग ठीक होता है। उपचार अवधि में नींबू का सेवन न करें।
२३. कब्ज:
चीनी ५ ग्राम, सोनामुखी ४ ग्राम, १ गिलास हल्का गर्म दूध और आधा चम्मच कलौंजी का तेल एक साथ मिलाकर रात को सोते समय पीने से कब्ज नष्ट होती है।
२४. खून की कमी:
एक कप पानी में ५० ग्राम हरा पुदीना उबाल लें और इस पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय सेवन करें। इससे २१ दिनों में खून की कमी दूर होती है। खट्टी वस्तुओं का उपयोग न करें।
२५. पेट दर्द:
पेट दर्द हो तो एक गिलास नींबू पानी में २ चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में २ बार पीएं। उपचार करते समय रोगी को बेसन की चीजे नहीं खानी चाहिए। या चुटकी भर नमक और आधे चम्मच कलौंजी के तेल को आधा गिलास हल्का गर्म
पानी मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक होता है। या फिर 1 गिलास मौसमी के रस में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पेट का दर्द समाप्त होता है।
२६. सिर दर्द:
कलौंजी के तेल को ललाट से कानों तक अच्छी तरह मलनें और आधा चम्मच कलौंजी का तेल १ चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से सिर दर्द ठीक होता है।
कलौंजी खाने के साथ सिर पर कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर मालिश करें। इससे सिर दर्द में आराम मिलता है और सिर से सम्बंधित अन्य रोगों भी दूर होते हैं।
कलौंजी के बीजों को गर्म कर पीस लें, चूर्ण कपड़े में बाँधकर सूंघने से सिर का दर्द दूर होता है।
कलौंजी और काला जीरा बराबर मात्रा में लेकर पानी में पीस कर माथे पर लेप करें। सर्दी जनित सिर दर्द दूर होता है।
२७. उल्टी:
आधा चम्मच कलौंजी का तेल और आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से उल्टी बंद होती है।
२८. हार्निया:
तीन चम्मच करेले का रस और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय पीने से हार्निया रोग ठीक होता है।
२९. मिर्गी के दौरे:
एक कप गर्म पानी में २ चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से मिर्गी के दौरे ठीक होते हैं। मिर्गी के रोगी को ठंडी तासीर की चीजें अमरूद, केला, सीताफल आदि नहीं खाना चाहिए।
३०. पीलिया:
एक कप दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर प्रतिदिन २ बार सुबह खाली पेट और रात को सोते समय १ सप्ताह तक लेने से पीलिया ठीक होता है। पीलिया के रोगी को मसालेदार व खट्टा आहार वर्जित है।
३१. कैंसर:
एक गिलास अंगूर के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में ३ बार पीने से कैंसर का रोग ठीक होता है। इससे आँतों का कैंसर, ब्लड कैंसर व गले का कैंसर आदि में भी लाभ मिलता है। इस रोग में रोगी को औषधि देने के साथ ही एक किलो जौ के आटे में २ किलो गेहूँ का आटा मिलाकर रोटी-दलिया रोगी को देन। आलू, अरबी, बैंगन का सेवन न करें। कैंसर के रोगी को कलौंजी डालकर हलवा बनाकर खाना चाहिए।
३२. दाँत:
कलौंजी का तेल और लौंग का तेल १-१ बूंद मिलाकर दाँत व मसूढ़ों पर लगाने से दर्द ठीक होता है। आग में सेंधा नमक जलाकर बारीक पीस लें और इसमें २-४ बूंदे कलौंजी का तेल डालकर दाँत साफ करने से दाँत से साफ-स्वस्थ रहते हैं।
दाँतों में कीड़े लगना व खोखलापन: रात को सोते समय कलौंजी के तेल में रुई को भिगोकर खोखले दाँतोंमें रखने से कीड़े नष्ट होते हैं।
३३. नींद:
रात में सोने से पहले आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से नींद अच्छी आती है।
३४. मासिकधर्म:
कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से मासिकधर्म शुरू होता है। इससे गर्भपात होने की संभावना नहीं रहती है। मासिकधर्म कष्ट से आता हो तो कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मासिकस्राव का कष्ट दूर होता है और बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है।
कलौंजी का चूर्ण ३ ग्राम शहद मिलाकर चाटने से ऋतुस्राव की पीड़ा नष्ट होती है।
मासिकधर्म की अनियमितता में लगभग आधा से डेढ़ ग्राम की मात्रा में कलौंजी के चूर्ण का सेवन करने से मासिकधर्म नियमित समय पर आने लगता है।
यदि मासिकस्राव बंद हो गया हो और पेट में दर्द रहता हो तो एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पीना चाहिए। इससे बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है।
कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन २-३ बार सेवन करने से मासिकस्राव शुरू होता है।
३५. गर्भवती महिलाओं को वर्जित:
गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं कराना चाहिए क्योंकि इससे गर्भपात हो सकता है।
३६. स्तनों का आकार:
कलौंजी आधे से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से स्तनों का आकार बढ़ता है और स्तन सुडौल बनते है।
३७. स्तनों में दूध:
कलौंजी की आधे से १ ग्राम की मात्रा प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से स्तनों में दूध बढ़ता है।
३८. चेहरे व हाथ-पैरों की सूजन:
कलौंजी पीसकर लेप करने से हाथ पैरों की सूजन दूर होती है।
३९. बाल लम्बे व घने:
५० ग्राम कलौंजी १ लीटर पानी में उबाल कर बाल धोने से लम्बे व घने होते हैं।
४०. बेरी-बेरी:
बेरी-बेरी रोग में कलौंजी को पीसकर हाथ-पैरों की सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है।
४१. भूख का अधिक लगना:
५० ग्राम कलौंजी को सिरके में रात को भिगो दें, सवेरे पीसकर शहद में मिलाकर ४-५ ग्राम की मात्रा सेवन करें। इससे भूख कम होति है।
४२. नपुंसकता:
कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर पीने से नपुंसकता दूर होती है।
४३. खाज-खुजली:
५० ग्राम कलौंजी के बीजों के पीसकार १० ग्राम बिल्व के पत्तों का रस व १० ग्राम हल्दी मिलाकर लेप बना लें। यह लेप खाज-खुजली में प्रतिदिन लगाने से रोग ठीक होता है।
४४. नाड़ी का छूटना:
नाड़ी छूटने के लिए आधे से १ ग्राम कलौंजी पीसकर रोगी को देने से शरीर का ठंडापन दूर होकर नाड़ी की गति तेज होती है। इस रोग में आधे से १ ग्राम कलौंजी हर ६ घंटे पर लें और ठीक होने पर इसका प्रयोग बंद कर दें। कलौंजी को पीसकर लेप करने से नाड़ी की जलन व सूजन दूर होती है।
४५. हिचकी:
एक ग्राम पिसी कलौंजी शहद में मिलाकर चाटने से हिचकी बंद होती है। कलौंजी आधा से एक ग्राम की मठ्ठे के साथ प्रतिदिन ३-४बार सेवन से हिचकी दूर होती है। कलौंजी का चूर्ण ३ ग्राम मक्खन के साथ खाने या ३ ग्राम कलौंजी पीसकर दही के पानी में मिलाकर खाने से हिचकी ठीक होती है।
४६. स्मरण शक्ति:
लगभग २ ग्राम की मात्रा में कलौंजी को पीसकर २ ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
४७. पेट की गैस:
कलौंजी, जीरा और अजवाइन बराबर मात्रा में पीसकर एक चम्मच खाना खाने के बाद लेने से पेट की गैस नष्ट होती है।
४८. पेशाब की जलन:
२५० मिलीलीटर दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर होती है।
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