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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

सोरठा, सॉनेट, बसंत, नवगीत, विकास, लेख, दोहा, राम, लघुकथा, मुक्तक, फाग, बुंदेली, ऋद्धि छंद,

हास्य 
चाकलेट डे
*
रेल लेट होती रई अब लौं
चाक लेट अब आई।
टीचरनी एक 
पाँच क्लास 
कैसे हो पाए पढ़ाई।
ओन लैन का नाटक कर खें
सबको पास करो रे!
पीढ़ी बने निकम्मी-अनपढ़
मुफ्त राहतें दो रे!
नेता का जयकारा गूँजे
वे बनाएँ सरकार।
उनके बच्चे सेठ अफसर हों
अपने बेरोजगार।
सोरठा सलिला
होकर संत बसंत, बँधा मंजरी-पाश में।
ले आमोद अनंत, शरत चंद्र सँग हँस निशि।।
*
हाथ शब्द-तलवार, ले शांडिल्य नरेश हो।
दे खुद को भी वार, जनगण-मन पर राज्य कर।।
*
ठाकुर नम्र प्रणाम, ठाकुर जी को कर रहा।
आज पड़ा फिर काम, ठकुराइन मुस्कुरा रहीं।
*
कैसे मिले बसंत, कुसुम न हो तो धरा को।
अनथक दिशा-दिगंत, अजय सुरभि से झूमते।।
१०-२-२०२३
***
सॉनेट
बसंत
*
पत्ता पत्ता झूम नाचता।
कूक सारिका लुकती छिपती।
प्रणय ऋचाएँ सुआ बाँचता।।
राह भ्रमर की कलिका तकती।।
धार किनारों से भुज भेंटे।
लहर लहर को गले लगाती।
तितली रूप छटा पर ऐंठे।।
फूल फूल जा गेह भुलाती।।
मन कुलाँच भरता हिरनों सम।
हिरन हुआ होश महुआ का।
हेर राह प्रिय की अँखियाँ नम।।
भेद भूल पुरवा-पछुआ का।।
जप-तप बिसरा, तकें संत जी।
कहाँ अप्सरा है बसंत जी।।
१०-२-२०२२
*
कार्यशाला
इंग्लिश में g अक्षर ग या ज के ध्वनि के लिए प्रयोग कब किया जाता है?
A. G शब्द के अंत में आता है तो उसका उच्चारण ग ही होगा जैसे bag, cog, dog, fog, frog, gong, hog, jog, leg, log, peg, rag, sag, tug.
B. G के बाद अलग अलग अक्षर आने से उच्चारण क्या होगा देखते हैं।
1. Ga ग जैसे game, gal
2. Ge ग जैसे get
3. Ge ज जैसे gem, gel, Germany
4. Gg ग जैसे bigger, nagging, egg
5. Gg ज जैसे exaggerate
6. Gh घ जैसे ghost, aghast
7. Gh फ जैसे laugh
8. Gi ग जैसे give, girl
9. Gi ज जैसे gin, engine
10. Gl ग जैसे glad, glue, English
11. Gn Silent जैसे gnu नू
12. Go ग जैसे go, goal, god
13. Gr ग जैसे gram, grade, group
14. Gu ग जैसे gum, gut, guard, vague
C. G के पहले d आने से dg/dj का उच्चारण ज होगा जैसे judge, adjust
D. D भी कुछ शब्दों में ज का उच्चारण लेता है, जैसे education, graduate, soldier
E. X भी कुछ शब्दों में ग का उच्चारण लेता है, जैसे example.
१०-२-२०२२
***
***
नवगीत
छंद लुगाई है गरीब की
*
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
जिसका जब मन चाहे छेड़े
ताने मारे, आँख तरेरे
लय; गति-यति की समझ न लेकिन
कहे सात ले ले अब फेरे
कैसे अपनी जान बचाए?
जान पडी सांसत में भाई
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
कलम पकड़ कल लिखना सीखा
मठाधीश बन आज अकड़ते
ताल ठोंकते मुख पोथी पर
जो दिख जाए; उससे भिड़ते
छंद बिलखते हैं अनाथ से
कैसे अपनी जान बचाये
इधर कूप उस ओर है खाई
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
यह नवगीती पत्थर मारे
वह तेवरिया लट्ठ भाँजता
सजल अजल बन चीर हर रही
तुक्कड़ निज मरजाद लाँघता
जाँघ दिखाता कुटिल समीक्षक
बचना चाहे मति बौराई
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
***
लेख:
सतत स्थाई विकास : मानव सभ्यता की प्राथमिक आवश्यकता
*
स्थायी-निरंतर विकास : हमारी विरासत
मानव सभ्यता का विकास सतत स्थाई विकास की कहानी है। निस्संदेह इस अंतराल में बहुत सा अस्थायी विकास भी हुआ है किन्तु अंतत: वह सब भी स्थाई विकास की पृष्ठ भूमि या नींव ही सिद्ध हुआ। विकास एक दिन में नहीं होता, एक व्यक्ति द्वारा भी नहीं हो सकता, किसी एक के लिए भी नहीं किया जाता। 'सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामय:, सर्वे भद्राणु पश्यन्ति, माँ कश्चिद दुःखभाग्भवेद" अर्थात ''सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ्य हों, शुभ देखें सब, दुःख न कहीं हो"का वैदिक आदर्श तभी प्राप्त हो सकता है जब विकास, निरंतर विकास, सबकी आवश्यकता पूर्ति हित विकास, स्थाई विकास होता रहे। ऐसा सतत और स्थाई विकास जो मानव की भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं और उनके समक्ष उपस्थित होने वाले संकटों और अभावों का पूर्वानुमान कर किया जाए, ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। सनातन वैदिक चिंतन धारा द्वारा प्रदत्त वसुधैव कुटुम्बकम" तथा 'विश्वैक नीडं' के मन्त्र ही वर्तमान में 'ग्लोबलाइज विलेज' की अवधारणा का आधार हैं।
'सस्टेनेबल डेवलपमेंट अर्थ स्थायी या टिकाऊ विकास से हमारा अभिप्राय विकास ऐसे कार्यों की निरन्तरता से है जो मानव ही नहीं, सकल जीव जंतुओं की भावी पीढ़ियों का आकलन कर, उनकी प्राप्ति सुनिश्चित करते हुए, वर्तमान समय की आवश्यकताएँ पूरी करे। दुर्गा सप्तशतीकार कहता है 'या देवी सर्व भूतेषु प्रकृतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'। पौर्वात्य चिन्तन प्रकृति को 'माँ' और सभी प्राणियों को उसकी संतान मानता है। इसका आशय यही है कि जैसे शिशु माँ का स्तन पान इस तरह करता है की माँ को कोई नहीं होती, अपितु उसका जीवन पूर्णता पता है, वैसे ही मनुष्य प्रकृति संसाधनों का उपयोग इस कि प्रकृति अधिक समृद्ध हो। भारतीय परंपरा में प्रकृति के अनुकूल विकास की मानता है, प्रकृति के प्रतिकूल विकास की नहीं।'सस्टेनेबल डवलेपमेन्ट कैन ओनली बी इन एकॉर्डेंस विथ नेचर एन्ड नॉट, अगेंस्ट और एक्सप्लोयटिंग द नेचर।'
प्रकृति माता - मनुष्य पुत्र
स्वयं को प्रकृति पुत्र मानने की अवधारणा ही पृथ्वी, नदी, गौ और भाषा को माता मानने की परंपरा बनकर भारत के जान-जन के मन में बसी है। गाँवों में गरीब से गरीब परिवार भी गाय और कुत्ते के लिए रोटी बनाकर उन्हें खिलाते हैं। देहरी से भिक्षुक को खाली हाथ नहीं लौटाते। आंवला, नीम, पीपल, बेल, तुलसी, कमल, दूब, महुआ, धान, जौ, लाई, आदि पूज्यनीय हैं। नर्मदा ,गंगा, यमुना, क्षिप्रा आदि नदियाँ पूज्य हैं। नर्मदा कुम्भ, गंगा दशहरा, यमुना जयंती आदि पर्व मनाये जाते हैं। पोला लोक पर्व पोला पर पशुधन का पूजन किया जाता है। आँवला नवमी, तुलसी जयंती आदि लोक पर्व मनाये जाते हैं। नीम व जासौन को देवी, बेल व धतूरा को शिव, कदंब व करील को कृष्ण, कमल व धान को लक्ष्मी, हरसिंगार को विष्णु से जोड़कर पूज्यनीय कहा गया है। यही नहीं पशुओं और पक्षियों को भी देवी-देवताओं से संयुक्त किया गया ताकि उनका शोषण न कर, उनका ध्यान रखा जाए। बैल, सर्प व नीलकंठ को शिव, शेर व बाघ को देवी, राजहंस व मोर को सरस्वती, हाथी को लक्ष्मी, मोर को कृष्ण आदि देवताओं के साथ संबद्ध बताया गया ताकि उनका संरक्षण किया जाता रहे। यही नहीं हनुमान जी को वायु, लक्ष्मी जी को जल, पार्वती जी को पर्वत, सीता जी भूमि की संतान कहा गया ताकि जन सामान्य इन प्राकृतिक तत्वों तत्वों की शुद्धता और सीमित सदुपयोग के प्रति सचेष्ट हो।
विश्व रूपांतरण : युग की महती आवश्यकता
हम पृथ्वी को माता मानते है और सतत विकास सदैव हमारे दर्शन और विचारधारा का मूल सिद्धांत रहा है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेक मोर्चों पर कार्य करते हुए हमें महात्मा गांधी की याद आती है, जिन्होंने हमें चेतावनी दी थी कि धरती प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकती है, पर प्रत्येक व्यक्ति के लालच को नहीं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित 'ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड : द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प कोभारत सहित १९३ देशों ने सितंबर, २०१५ में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में स्वीकार और इसे एक जनवरी, २०१६ से लागू किया। इसे सतत विकास लक्ष्यों के घोषणापत्र के नाम से भी जाना जाता है। सतत विकास का उद्देश्य सबके लिए समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण हेतु विकास में सामाजिक परिवेश, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है। २००० से २०१५ तक के लिए निर्धारित नए लक्ष्यों का उद्देश्य विकास के अधूरे कार्य को पूरा करना और ऐसे विश्व की संकल्पना को मूर्त रूप देना है, जिसमें चुनौतियाँ कम और आशाएँ अधिक हों। भारत विश्व कल्याणपरक विकास के मूलभूत सिद्धांतों को अपनी विभिन्न विकास नीतियों में आराम से ही सम्मिलित करता रहा है। वर्तमान विश्वव्यापी अर्थ संकट के संक्रमण काल में भी विकास की अच्छी दर बनाए रखने में भारत सफल है। गाँधी जी ने 'आखिरी आदमी के भले', विनोबा जी ने सर्वोदय और दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय के माध्यम से निर्धनों को को गरीबी रेखा से ऊपर लाने और निर्बल को सबल बनाने की संकल्पना का विकास किया। वर्ष २०३० तक निर्धनता को समाप्त करने का लक्ष्य हमारा नैतिक दायित्व ही नहीं, शांतिपूर्ण, न्यायप्रिय और चिरस्थायी भारत और विश्व को सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य प्राथमिकता भी है।
सतत विकास कार्यक्रम : लक्ष्य
वित्तीय लक्ष्य:
विकसित देश सरकारी विकास सहायत का अपना लक्ष्य प्राप्त कर, अपनी सकल राष्ट्रीय आय का ०.७%० विकासशील देशों को तथा ०.१५% से ०.२०% सबसे कम विकसित राष्ट्रों को दें। विकासशील देश एकाधिक स्रोत से साधन जुटाएँ तथा समन्वित नीतियों द्वारा दीर्घिकालिक ऋण संवहनीयता प्राप्त कर अत्यधिक ऋणग्रस्त निर्धन देशों पर ऋण बोझ कम कर निवेश संवर्धन को करें।
तकनीकी लक्ष्य:
विकसित, विकासशील व् अविकसित देशों के मध्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनालोजी व नवाचार सुलभ कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। वैश्विक तकनॉलॉजी तंत्र का विकास करना। परस्पर सहमति पर रियायती और वरीयता देते हुए हितकारी शर्तों पर पर्यावरण अनुकूल तकनोलॉजी का विकास, हस्तांतरण, प्रसार व् समन्वय करना। तकनोलॉजी बैंक बनाकर सामर्थ्यवान तकनोलॉजी का प्रयोग बढ़ाना।
क्षमता निर्माण तथा व्यापार :
विकाशील देशों में लक्ष्य क्षमता निर्माण कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। राष्ट्रीय योजनाओं को समर्थन दिलाना। विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सार्वभौम, नियमाधारित, भेदभावहीन, खुली और समान बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को प्रोत्साहित करना। विकासशील देशों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि कर, सबसे कम देशों की भागीदारी दोगुनी करना। सबसे कम विकसित देशों को शुल्क और कोटा मुक्त बाजार प्रवेश सुविधा देना, पारदर्शी व् सरल व्यापार नियम बनाकर बाजार में प्रवेश सरल बनाना।
नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य:
सतत विकास हेतु वैश्विक वृहद आर्थिक स्थिरता वृद्धि हेतु नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य बनाना। गरीबी मिटाने हेतु पारस्परिक नीतिगय क्षमता और नेतृत्व का सम्मान करना। सभी देशों के साथ सतत विकास लक्ष्य पाने में सहायक बहुहितकारी भागीदारियाँ कर विशेषज्ञता, तकनोलॉजी, तहा संसाधन जुटाना। प्रभावी सार्वजनिक व् निजी संसाधन जुटाना। सबसे कम विकसित, द्वीपीय व विकासशील देशों के लिए क्षमता निर्माण समर्थन बढ़ाना। २०३० तक सकल घेरलू उत्पाद के पूरक प्रगति के पैमाने विकसित करना।
स्थायी विकास लक्ष्य : केंद्र के प्रयास
सतत् विकास लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए खरबों डॉलर के निजी संसाधनों की काया पलट ताकत जुटाने, पुनःनिर्देशित करने और बंधन मुक्‍त करने हेतु तत्‍काल कार्रवाई करने, विकासशील देशों में संवहनीय ऊर्जा, बुनियादी सुविधाओं, परिवहन - सूचना - संचार प्रौद्योगिकी आदि महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश सहित दीर्घकालिक निवेश जुटाने के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लिए एक स्‍पष्‍ट दिशा निर्धारित करनी है। इस हेतु सहायक समीक्षा व निगरानी तंत्रों के विनियमन और प्रोत्‍साहक संरचनाओं हेतु नए साधन जुटाकर निवेश आकर्षित कर सतत विकास को पुष्‍ट करना प्राथमिक आवश्यकता है। सर्वोच्‍च ऑडिट संस्‍थाओं, राष्‍ट्रीय निगरानी तंत्र और विधायिका द्वारा निगरानी के कामकाज को अविलंब पुष्‍ट किया जाना है। हमारे मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री ग्रामीण और शहरी आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल हैं। इसके अलावा अधिक बजट आवंटनों से बुनियादी सुविधाओं के विकास और गरीबी समाप्त करने से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इसके समन्वय की जिम्मेदारी नीति आयोग को, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा प्रस्तावित संकेतकों की वैश्विक सूची से उपयोगी संकेतकों की पहचान कर राष्ट्रीय संकेतक तैयार करने का कार्य सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को सौंपा है।न्यूयार्क में जुलाई, २०१७ में आयोजित होने वाले उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ) पर अपनी पहली स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (वीएनआर) प्रस्तुत कर भारत सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के सफल कार्यान्वयन को सर्वोच्च महत्व दिया है।
राज्यों की भूमिका :
भारत के संविधान केंद्रों और राज्यों के मध्य राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक शक्ति संतुलन के अनुरूप राज्यों में विभिन्न राज्य स्तरीय विकास योजनायें कार्यान्वित की जा रही हैं। इन योजनाओं का सतत विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल है। केंद्र और राज्य सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन में आनेवाली विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला मिलकर करना है। भारतीय संसद विभिन्न हितधारकों के साथ सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए सक्रिय है। अध्यक्षीय शोध कदम (एसआरआई) सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सांसदों और विशेषज्ञों के मध्य विमर्श हेतु है। नीति आयोग सतत विकास लक्ष्यों पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर परामर्श शृंखलाएं आयोजित कर विशेषज्ञों, विद्वानों, संस्थाओं, सिविल सोसाइटियों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और केंद्रीय मंत्रालयों राज्य सरकारों व हितधारकों के साथ गहन विचार-विमर्श कर रहा है। पर्यावरण संरक्षण व संपूर्ण विकास हेतु जन आकांक्षा पूर्ण करने हेतु राष्ट्रीय, राज्यीय, स्थानीय प्रशासन तथा जन सामान्य द्वारा सतत समन्वयकर कार्य किये जा रहे हैं।
जन सामान्य की भूमिका :
भारत के संदर्भ में दृष्टव्य है कि सतत स्थाई कार्यक्रमों की प्रगति में जान सामान्य की भूमिका नगण्य है। इसका कारण उनका समन्वयहीन धार्मिक-राजनैतिक संगठनों से जुड़ाव, प्रशासन तंत्र में जनमत और जनहित के प्रति उपेक्षा, व्यापारी वर्ग में येन-केन-प्रकारेण अधिकतम लाभार्जन की प्रवृत्ति तथा संपन्न वर्ग में विपन्न वर्ग के शोषण की प्रवृत्ति का होना है। किसी लोकतंत्र में सब कुछ तंत्र के हाथों में केंद्रित हो तो लोक निराशा होना स्वाभाविक है। सतत विकास नीतियाँ गाँधी के 'आखिरी आदमी' अर्थात सबसे कमजोर को उसकी योग्यता और सामर्थ्य के अनुरूप आजीविका साधन उपलब्ध करा सकें तभी उनकी सार्थकता है। सरकारी अनुदान आश्रित जनगण कमजोर और तंत्र द्वारा शोषित होता है। भारत के राजनीतिक नेतृत्व को दलीय हितों पर राष्ट्रीय हितों को वरीयता देकर राष्ट्रोन्नयनपरक सतत विकास कार्यों में परस्पर सहायक होना होगा तभी संविधान की मंशा के अनुरूप लोकहितकारी नीतियों का क्रियान्वय कर मानव ही नहीं, समस्त प्राणियों और प्रकृति की सुरक्षा और विकास का पथ प्रशस्त सकेगा।
===
दोहा सलिला
आओ यदि रघुवीर
*
गले न मिलना भरत से, आओ यदि रघुवीर
धर लेगी योगी पुलिस, मिले जेल में पीर
कोरोना कलिकाल में, प्रबल- करें वनवास
कुटिया में सिय सँग रहें, ले अधरों पर हास
शूर्पणखा की काटकर, नाक धोइए हाथ
सोशल डिस्टेंसिंग रखें, तीर मारकर नाथ
भरत न आएँ अवध में, रहिए नंदीग्राम
सेनेटाइज शत्रुघन, करें- न विधि हो वाम
कैकई क्वारंटाइनी, कितने करतीं लेख
रातों जगें सुमंत्र खुद, रहे व्यवस्था देख
कोसल्या चाहें कुसल, पूज सुमित्रा साथ
मना रहीं कुलदेव को, कर जोड़े नत माथ
देवि उर्मिला मांडवी, पढ़ा रहीं हैं पाठ
साफ-सफाई सब रखें, खास उम्र यदि साठ
श्रुतिकीरति जी देखतीं, परिचर्या हो ठीक
अवधपुरी में सुदृढ़ हो, अनुशासन की लीक
तट के वट नीचे डटे, केवट देखें राह
हर तब्लीगी पुलिस को, सौंप पा रहे वाह
मिला घूमता जो पिटा, सुनी नहीं फरियाद
सख्ती से आदेश निज, मनवा रहे निषाद
निकट न आते, दूर रह वानर तोड़ें फ्रूट
राजाज्ञा सुग्रीव की, मिलकर करो न लूट
रात-रात भर जागकर, करें सुषेण इलाज
कोरोना से विभीषण, ग्रस्त विपद में ताज
भक्त न प्रभु के निकट हों, रोकें खुद हनुमान
मास्क लगाए नाक पर, बैठे दयानिधान
कौन जानकी जान की, कहो करे परवाह?
लव-कुश विश्वामित्र ऋषि, करते फ़िक्र अथाह
वध न अवध में हो सके, कोरोना यह मान
घुसा मगर आदित्य ने, सुखा निकली जान
१०-२-२०२१
***
लघुकथा :
सवाल
शेरसिंह ने दुनिया का सर्वाधिक प्रभावी नेता तथा सबसे अधिक सुरक्षित जंगल बनाने का दावा कर चुनाव जीत लिया। जिन जगहों से उसका दल हारा। वहीं भीषण दंगा हो गया। अनेक छोटे-छोटे पशु-पक्षी मारे गए। बाद में हाथी ने बल प्रयोग कर शांति स्थापित की। बगुला भगत टी वी पर परिचर्चा में शासन - प्रशासन का गुणगान करने लगा तो पत्रकार उलूक ने पूछा 'दुनिया का सर्वाधिक असरदार सरदार दंगों के समय सामने क्यों नहीं आया? सबसे अधिक चुस्त-दुरुस्त पुलिस के ख़ुफ़िया तंत्र को हजारों दंगाइयों, सैकड़ों हथियारों तथा दंगे की योजना बनाने की खबर क्यों नहीं मिली? बिना प्रभावी योजना, पर्याप्त अस्त्र-शस्त्र और तैयारी के भेजे गए पुलिस जवानों और अफसरों को हुई क्षति की जिम्मेदारी किसकी है?
अगले दिन सत्ता के टुकड़ों पर पल रहे सियारों ने उस चैनल तथा संबंधित अख़बार के कार्यालयों पर पथराव किया, उनके विज्ञापन बंद कर दिये गए पर जंगल की हवा में अब भी तैर रहे थे सवाल।
१.३.२०२०
*
दोहा मुक्तक
बीत गईँ कितनी ऋतुएँ, बीते कितने साल
कोयल तजे न कूकना, हिरन न बदले चाल
पर्व बसंती हो गया, वैलेंटाइन आज
प्रेम फूल सा झट झरे, सात जन्म कंगाल
***
मुक्तक
४ x यगण
हमारा न होता, तुम्हारा न होता
कभी भी किसी का गुजारा न होता
सुनो बाँह में बाँह थामे दिलों ने
समय जिंदगी का गुजारा न होता
***
ग्यारह मात्रिक छंद
१. पदादि यगण
यही चाहा हमने
नहीं टूटें सपने
शहीदी विरासतें
न भूलें खुद अपने
*
२. पदादि मगण
आओ! लें गले मिल
भाओ तो मिले दिल
सीचेंगे चमन मिल
फूलों सम खिलें दिल
*
३. पदादि तगण
सच्चा बतायें जो
झूठा मिटायें जो
चाहें मिलें नेता
वादे निभायें जो
*
४. पदादि रगण
आपकी चाहों में
आपकी बाँहों में
जिंदगी है पूजा
आपकी राहों में
*
५. पदादि जगण
कहीं नहीं हैवान
कहीं नहीं भगवान
दिखा ह्रदय में झाँक
वहीँ बसा इंसान
*
६. पदादि भगण
आपस में बात हो
रोज मुलाकात हो
संसद में दूरियाँ
व्यर्थ न बेबात हों
*
७. पदादि नगण
सब अधरों पर हास
अब न हँसेंगे ख़ास
हर जन होगा आम
विनत रचें इतिहास
*
८. पदादि सगण
करना मत बहाना
तजना मत ठिकाना
जब तक वयस्क न हो
बिटिया मत बिहाना
*
९. पदांत यगण
हरदम हम बुलाएँ
या आप खुद आयें
कोई न फर्क मानें
१०. पदांत मगण
आस जय बोलेगी
रास रस घोलेगी
प्यास बुझ जाएगी
श्वास चुप हो लेगी
.
मीत! आ जाओ ना
प्रीत! भा जाओ ना
चैन मिल जायेगा
गीत गा जाओ ना
*
११. पदांत तगण
रंगपंचमी पर्व
धूम मचाते सर्व
दीन न कोई जान
भूल, भुला दें गर्व
.
हो मस्ती में लीन
नाच बज रही बीन
वेणी-नागिन झूम
नयन हो रहे मीन
.
बाँके भुज तलवार
करते नहीं प्रहार
सविनय माँगें दान
सुमुखी-भुजा का हार
.
मिले हार हो जीत
मिले प्रीत को प्रीत
द्वैत बने अद्वैत
बजे श्वास संगीत
*
१२. पदांत रगण
गीत प्रीत के सुना
गीत मीत के सुना
हार में न हार हो
जीत में न जीत हो
शुभ अतीत के सुना
गीत रीत के सुना
यार हो, जुहार हो
प्यार हो, विहार हो
नव प्रतीति के सुना
गीत नीति के सुना
हाथ नहीं जोड़ना
साथ नहीं छोड़ना
बातचीत के सुना
गीत जीत के सुना
*
१३. पदांत जगण
जनगण की सरकार
जन संसद दरबार
रीती-नीति-सहयोग
जनसेवा दरकार
देशभक्ति कर आप
रखें स्वच्छ घर-द्वार
पर्यावरण न भूल
पौधारोपण प्यार
धुआँ-शोर अभिशाप
बहे विमल जल-धार
इस पल में इनकार
उस पल में इकरार
नकली है तकरार
कर असली इज़हार
*
१४. पदांत भगण
जिंदगी जलसा घर
बन्दगी जल सा घर
प्रार्थना कर, ना कर
साधना कर ही कर
अर्चना नित प्रति कर
वन्दना हो सस्वर
भावना यदि पवन
कामना से मत डर
कल्पना नवल अगर
मान ले अजरामर
*
१५. पदांत नगण
नटनागर हों सदय
कर दें पल में अभय
शंका हर जग-जनक
कर दें मन को अजय
.
पान कर सकें गरल
हो स्वभाव निज सरल
दान कर सकें अमिय
जग-जीवन हो विमल
.
नेह नर्मदा अमर
जय कट जीवन समर
करे द्वेष अहरण
भरे प्रीत चिर अमर
*
१६. पदांत सगण
पत्थर को फोड़ लें
ईंटों को जोड़ लें
छोड़ें मत राह को
कदमों को मोड़ लें
नाहक क्यों होड़ लें?
मंजिल क्यों छोड़ दें?
डरकर संघर्ष से
मन को क्यों तोड़ लें?
.
सत्य जो हो कहिए
झूठ को मत तहिए
घाट पर रुकिए मत
नर्मदा बन बहिए
रीत नित नव गढ़िए
नीत-पथ पर बढ़िए
सीढ़ियाँ मिल चढ़िए
प्रणय-पोथी पढ़िए
*
१७. पदादि-पदांत यगण
उसे गीत सुनाना
उसे मीत बनाना
तुझे चाह रहा जो
उसे प्रीत जताना
.
सुनें गीत सुनाएँ
नयी नीत बनायें
नहीं दर्द जरा हो
लुटा दें सुख पायें
*
१८. पदादि यगण, पदांत मगण
हमें ही है आना
हमें ही है छाना
बताता है नेता
सताता है नेता
*
१९. पदादि मगण पदांत यगण
चाहेंगे तुम्हें ही
वादा है हमारा
भाए हैं तुम्हें भी
स्वप्नों में पुकारा
*
२०. पदादि मगण पदांत तगण
सारे-नारे याद
नेता-प्यादे याद
वोटों का है खेल
वोटर-वादे याद
***
कुंडली
कितने मौसम बिताये, रीते कितने वर्ष
जन-मन ने जाना नहीं, कैसा होता हर्ष?
कैसा होता हर्ष, न्याय अन्यायपरक है
जनगण सहता दर्द, न किंचित पड़ा फरक है
दिल पर चोटें लगीं, घाव खाए हैं इतने
सुमुखि-शीश पर शेष केश हैं श्यामल जितने
१०-२-२०१७
***
गीत
संभावना की फसल
*
सम्भावना की फसल
बंजर में उगायें।
*
देव को दे दोष
नाहक भाग्य को कोसा।
हाथ पर धर हाथ
जब-जब ख्वाब को पोसा।
बिना कोशिश, किस तरह
मंज़िल करे बोसा?
बाँधकर मुट्ठी कदम
पथ पर बढ़ायें।
सम्भावना की फसल
बंजर में उगायें।
*
दर्द तेरा बने
मेरी आँख का आँसू।
श्वास का हो, आस से
रिश्ता तभी धाँसू।
सोचता मन व्यर्थ ही
कैसे-किसे फाँसू?
सर्वार्थ सलिला छोड़
मछली फड़फड़फड़ायें।
सम्भावना की फसल
बंजर में उगायें।
*
झोपड़ी में, राज-
महलों में न अंतर।
परिश्रम का फूँक दो
कानों में मंतर।
इत्र समता का करे
मन-प्राण को तर-
मीत! ममता-गीत
मन-मन गुनगुनायें।
सम्भावना की फसल
बंजर में उगायें।
१०-२-२०१६
***
प्रयोगात्मक नवगीत:
कौन चला वनवास रे जोगी?
*
कौन चला
वनवास रे जोगी?
अपना ही
विश्वास रे जोगी.
*
बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो
मिट न सकेगी
प्यास रे जोगी.
*
भू -मंगल तज, मंगल-भू की
खोज हुई
उपहास रे जोगी.
*
फिक्र करे हैं सदियों की, क्या
पल का है
आभास रे जोगी?
*
गीता वह कहता हो जिसकी
श्वास-श्वास में
रास रे जोगी.
*
अंतर से अंतर मिटने का
मंतर है
चिर हास रे जोगी.
*
माली बाग़ तितलियाँ भँवरे
माया है
मधुमास रे जोगी.
*
जो आया है वह जायेगा
तू क्यों हुआ
उदास रे जोगी.
*
जग नाकारा समझे तो क्या
भज जो
खासमखास रे जोगी.
*
राग-तेल, बैराग-हाथ ले
रब का 'सलिल'
खवास रे जोगी.
*
नेह नर्मदा नहा 'सलिल' सँग
तब ही मिले
उजास रे जोगी.
***
दिल्ली दंगल एक विश्लेषण:
.
- सत्य: आप व्यस्त, बीजेपी त्रस्त, कोंग्रेस अस्त.
= सबक: सब दिन जात न एक समान, जमीनी काम करो मत हो संत्रस्त.
- सत्य: आम चुनाव के समय किये वायदों को राजनैतिक जुमला कहना.
= सबक: ये पब्लिक है, ये सब जानती है. इसे नासमझ समझने के मुगालते में मत रहना.
- सत्य: गाँधी की दुहाई, दस लखटकिया विदेशी सूट पहनकर सादगी का मजाक.
= सबक: जनप्रतिनिधि की पहचान जन मत का मान, न शान न धाक.
- सत्य: प्रवक्ताओं का दंभपूर्ण आचरण और दबंगपन.
= सबक: दूरदर्शनी बहस नहीं जमीनी संपर्क से जीता जाता है अपनापन.
- सत्य: कार्यकर्ताओं द्वारा अधिकारियों पर दवाब और वसूली.
= सबक: जनता रोज नहीं टकराती, समय पर दे ही देती है सूली.
- सत्य: संसदीय बहसों के स्थान पर अध्यादेशी शासन.
= सबक: बंद न किया तो जनमत कर देगा निष्कासन.
- सत्य: विपक्षियों पर लगातार आघात.
= सबक: विपक्षी शत्रु नहीं होता, सौजन्यता न निबाहें तो जनता देगी मात.
- सत्य: आधाररहित व्यक्तित्व को थोपना, जमीनी कार्यकर्ता की पीठ में छुरा घोंपना.
= सबक: नेता उसे घोषित करें जिसका काम जनता के सामने हो, केवल नाम नहीं. जो अपने साथियों के साथ न रहे उसपर मतदाता क्यों भरोसा करे?
- सत्य: संसद ही नहीं टी.व्ही. पर भी बहस से भागना.
= सबक: अध्यादेशों में तानाशाही की आहात होती है. संसद में बहस न करना और दूरदर्शन पर उमीदवार का बहस से बचना, प्रवक्ताओं की अहंकारी और खुद को अंतिम मानने की प्रवृत्ति होती है बचकाना.
- सत्य: प्रवक्ताओं का दंभपूर्ण आचरण और दबंगपन.
= सबक: दूरदर्शनी बहस नहीं जमीनी संपर्क से जीता जाता है अपनापन.
- सत्य: आर एस एस की बैसाखी नहीं आई काम.
= सबक: जनसेवा का न मोल न दाम, करें निष्काम.
- सत्य: पूरा मंत्रीमंडल, संसद, मुख्यमंत्री तथा प्रधान मंत्री को उताराकर अत्यधिक ताकत झोंकना.
= सबक: नासमझी है बटन टाँकने के लिये वस्त्र में सुई के स्थान पर तलवार भोंकना.
- सत्य: प्रधानमंत्री द्वारा दलीय हितों को वरीयता देना, विकास के लिए अपने दल की सरकार जरूरी बताना.
= सबक: राज्य में सरकार किसी भी दल की हो, जरूरी है केंद्र का सबसे समानता जताना. अपना खून औरों का खून पानी मानना सही नहीं.
- सत्य: पूरा मंत्रीमंडल, संसद, मुख्यमंत्री तथा प्रधान मंत्री को उताराकर अत्यधिक ताकत झोंकना.
= सबक: नासमझी है बटन टाँकने के लिये वस्त्र में सुई के स्थान पर तलवार भोंकना.
- सत्य: हर प्रवक्ता, नेता तथा प्रधान मंत्री का केजरीवाल पर लगातार आरोप लगाना.
= सबक: खुद को खलनायक, विपक्षी को नायक बनाना या कंकर को शंकर बनाकर खुद बौना हो जाना.
- सत्य: चुनावी नतीजों का आकलन-अनुमान सत्य न होना.
= सबक: प्रत्यक्ष की जमीन पर अतीत के बीज बोना अर्थात आँख देमने के स्थान पर पूर्व में घटे को अधर बनाकर सोचना सही नहीं, जो देखिये कहिए वही.
- सत्य: आप का एकाधिकार-विपक्ष बंटाढार.
= सबक: अब नहीं कोई बहाना, जैसे भी हो परिणाम है दिखाना. केजरीवाल ने ठीक कहा इतने अधिक बहुमत से डरना चाहिए, अपेक्षा पर खरे न उतरे तो इतना ही विरोध झेलना होगा.

***
गीत
नयन में कजरा
आँज रही है
उतर सड़क पर
नयन में
कजरा साँझ
नीलगगन के
राजमार्ग पर
बगुले दौड़े
तेज
तारे
फैलाते प्रकाश
तब चाँद
सजाता सेज
भोज चाँदनी के
संग करता
बना मेघ
को मेज
सौतन ऊषा
रूठ गुलाबी
पी रजनी
संग पेज
निठुर न रीझा-
चौथ-तीज के
सारे व्रत
भये बाँझ
निष्ठा हुई
न हरजाई
है खबर
सनसनीखेज
संग दीनता के
सहबाला
दर्द दिया
है भेज
विधना बाबुल
चुप, क्या बोलें?
किस्मत
रही सहेज
पिया पिया ने
प्रीत चषक
तन-मन
रंग दे रंगरेज
आस सारिका
गीत गये
शुक झूम
बजाये झाँझ
साँस पतंगों
को थामे
आसें
हंगामाखेज
प्यास-त्रास
की रास
हुलासों को
परिहास- दहेज़
सत को
शिव-सुंदर से
जाने क्यों है
आज गुरेज?
मस्ती, मौज_
मजा सब चाहें
श्रम से
है परहेज
बिना काँच
लुगदी के मंझा
कौन रहा
है माँझ?
***
दोहा सलिला:
योगी राज न चाहते, करें घोषणा रोज
हुई चाहना वर्जना, क्यों कुछ तो हो खोज?
.
मंजुल मूरत देखकर, हुए पुजारी मुग्ध
हाथ आरती पर पड़ा, ह्रदय हो गया दग्ध
.
आप आप को कोसकर, किरण हुई बदनाम
सत्तर लखिया सूट से, बिगड़ गया सब काम
.
निधि पाए किस विधि सकल, दुनिया सोचे आज?
सिंह गर्जना सुन भगे, क्षमा करें वनराज
.
पंद्रह लाख मिला नहीं, थके देखते राह
जनमत होली मनाता, आश्वासन को दाह
.
***
नवगीत:
लोकतंत्र का
एक तकाजा
सकल प्रजा मिल
चुनती राजा
.
लाख रहें मत-भेद मगर
मन-भेद न किंचित होने देना
दुश्मन नहीं विपक्षी होता
मत विश्वास टूटने देना
लटके-झटके जो चुनाव के
बरखा जल सम उन्हें बहाओ
सद्भावों की धुप सुनहरी
सहयोगी चन्द्रिका उगाओ
कोई जीते
कोई हारे
जनमत जयी
बजाये बाजा
.
जन-प्रतिनिधि सेवक जनता का
दे परिचय अपनी क्षमता का
सबके साथ समान नीति हो
गैर न कोई स्वस्थ रीति हो
सुविधा-अधिकारों को तजकर
देश बनायें सब हिल-मिलकर
कोई भी विचार या दल हो
लक्ष्य एक: निर्बल का बल हो
मिलकर साथ
लड़ें दुश्मन से
ललकारें मिल:
आ जा, आ जा
.
राष्ट्र-देवता! सभी अभय हों
राष्ट्र-लक्ष्मी! सदा सदय हों
शक्ति-शारदा हो हर बिटिया
निर्मल नीर भरी हर नदिया
पर्वत हो आच्छादित तम से
नभ गुंजित हो ‘जन गण मन’ से
दसों दिशाओं ने उच्चारा
‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’
राजा बने
प्रजा का सेवक
आम आदमी
हो अब राजा
९.२.२०१५
***
मुक्तिका:
जब जग मुझ पर झूम हँसा
मैं दुनिया पर ठठा हँसा
जिसको दूध पिला पाला
उसने मौक़ा खोज डंसा
दौड़ लगी जब सत्ता की
जिसको मौक़ा मिला ठंसा
जब तक मिली न चाह रही
मिली, यूं लगा व्यर्थ फँसा
जीत महाभारत लेता
चका भूमि में मगर धँसा
***
फाग-नवगीत
.
राधे! आओ, कान्हा टेरें
लगा रहे पग-फेरे,
राधे! आओ कान्हा टेरें
.
मंद-मंद मुस्कायें सखियाँ
मंद-मंद मुस्कायें
मंद-मंद मुस्कायें,
राधे बाँकें नैन तरेरें
.
गूझा खांय, दिखायें ठेंगा,
गूझा खांय दिखायें
गूझा खांय दिखायें,
सब मिल रास रचायें घेरें
.
विजया घोल पिलायें छिप-छिप
विजया घोल पिलायें
विजय घोल पिलायें,
छिप-छिप खिला भंग के पेड़े
.
मलें अबीर कन्हैया चाहें
मलें अबीर कन्हैया
मलें अबीर कन्हैया चाहें
राधे रंग बिखेरें
***
बुंदेली गीत
संसद बैठ बजावैं बंसी
*
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.
कपरा पहिरे फिर भी नंगो, राजनीति को छोरो….
*
कुरसी निरख लार चुचुआवै, है लालच खों मारो.
खाद कोयला सक्कर चैनल, खेल बनाओ चारो.
आँख दिखायें परोसी, झूलै अम्बुआ डार हिंडोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
सिस्ताचार बिसारो, भ्रिस्ताचार करै मतवारो.
कौआ-कज्जल भी सरमावै, मन खों ऐसो कारो.
परम प्रबीन स्वार्थ-साधन में, देसभक्ति से कोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
बनो भिखारी बोट माँग खें, जनता खों बिसरा दओ.
फांस-फांस अफसर-सेठन खों, लूट-लूट गर्रा रओ.
भस्मासुर है भूख न मिटती, कूकुर सदृश चटोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
चोर-चोर मौसेरे भैया, मठा-महेरी सांझी.
संगामित्ती कर चुनाव में, तरवारें हैं भांजी.
नूरा कुस्ती कर भरमावै, छलिया भौत छिछोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
बोट काय दौं मैं कौनौ खों, सबके सब दल लुच्चे।
टिकस न दैबें सज्जन खों, लड़ते चुनाव बस लुच्चे.
ख़तम करो दल, रास्ट्रीय सरकार चुनो, मिल टेरो
संसद बैठ बजावैं बंसी नेता महानिगोरो.....
१०-२-२०१५
***
छंद सलिला:
ऋद्धि छंद
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि,
जाया,
तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
दो पदी, चार चरणीय, ४४ वर्ण, ६९ मात्राओं के मात्रिक ऋद्धि छंद में प्रथम- तृतीय-चतुर्थ चरण उपेन्द्र वज्रा छंद के तथा द्वितीय चरण इंद्र वज्रा छंद के होते हैं.
उदाहरण:
१. करो न बातें कुछ काम भी हो, यों ही नहीं नाम मिला किसी को
चलो करें काम न सिर्फ बातें, बढ़ो न भूलो निज लक्ष्य साथी
२. चुनाव कैसे करेगी जनता, गुंडे मवाली ही हों खड़े तो?
न दो किसी को मत आप भाई, भगा उन्हें दो दर से- न रोको
३. बना खिलोने खुश हो विधाता, देखे करे क्या कब कौन कैसा?
उठो लिखेंगे खुद किस्मतें भी, पुजे हमारा श्रम देवता सा
१०-२-२०१४
***
नव गीत
*
जीवन की
जय बोल,
धरा का दर्द
तनिक सुन...
तपता सूरज
आँख दिखाता,
जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी
अधिक हुई है,
नेह गल रहा.
हिम्मत
तनिक न हार-
नए सपने
फिर से बुन...
निशा उषा
संध्या को छलता
सुख का चंदा.
हँसता है पर
काम किसी के
आये न बन्दा...
सब अपने
में लीन,
तुझे प्यारी
अपनी धुन...
महाकाल के
हाथ जिंदगी
यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही
साँसों का
मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर,
रहे न हावी
कर कुछ
सुन-गुन...
१०-२-२०१०
***

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

सॉनेट, मुक्तक, दस मात्रिक छंद, वैलेंटाइन, हास्य, नवगीत,

सॉनेट
क्यों?
*
अघटित क्यों नित घटता हे प्रभु?
कैसे हो तुम पर विश्वास?
सज्जन क्यों पाते हैं त्रास?
अनाचार क्यों बढ़ता हे विभु?
कालजयी क्यों असत्-तिमिर है?
क्यों क्षणभंगुर सत्य प्रकाश?
क्यों बाँधे मोहों के पाश?
क्यों स्वार्थों हित श्वास-समर है?
क्यों माया की छाया भाती?
क्यों काया सज सजा लुभाती?
क्यों भाती है ठकुरसुहाती?
क्यों करते नित मन की बातें?
क्यों न सुन रहे जन की बातें?
क्यों पाते-दे मातें-घातें?
९-२-२०२२
***
***
मुक्तक
मुक्त मन से लिखें मुक्तक
सुप्त को दें जगा मुक्तक
तप्त को शीतल करेंगे
लुप्त को लें बुला मुक्तक
*
हमें ही है आना
हमें ही है छाना
बताता है नेता
सताता है नेता
***
दस मात्रिक छंद
१० लघु मात्रा
*
२५. हर दम छल मत कर
शुभ तज, अशुभ न वर
पथ पर बढ़, मत रुक
नित नव करतब कर
.
'सलिल' प्रवह कलकल
सुख गहकर पल-पल
रुक मत कल रख चल
मनुज न बन अब कल
*
२६. ८ लघु, १ गुरु
नित नर्तित नटवर
गुरु गर्वित गिरिधर
चिर चर्चित चंचल
मन हरकर मनहर
*
२७. ६ लघु, २ गुरु
नित महकती कली
खिल चहकती भली
ललच भँवरे मिले
हँस, बहकती कली
राह फिसलन भरी
झट सँभलती कली
प्रीत कर मत अभी
बहुत सँकरी गली
संयमित रह सदा
सुरभि देकर ढली
*
२८. ४ लघु, ३ गुरु
धन्य-धन्य शंकर
वन्दन संकर्षण
भोले प्रलयंकर
दृढ़ हो आकर्षण
आओ! डमरूधर
शाश्वत संघर्षण
प्रगटे गुप्तेश्वर
करें कृपा-वर्षण
.
हमें साथ रहना
मिला हाथ रहना
सुख-दुःख हैं सांझा
उठा माथ कहना
*
२९. २ लघु, ४ गुरु
बोलो, सच बोलो
पोल नहीं खोलो
सँग तुम्हारे जो
तुम भी तो हो लो
.
तू क्यों है बेबस?
जागो-भागो हँस
कोई देगा न साथ
सोते-रोते नाथ?
*
३०. ५ गुरु
जो चाहो बोलो
बातों को तोलो
झूठों को छोड़ा
सच्चे तो हो लो
.
जो होना है हो
रोकोगे? रोको
पाया खो दोगे
खोया पा लोगे
*
***
द्विपदियाँ (अश'आर)
*
बना-बना बाहर हुआ, घर बेघर इंसान
मस्जिद-मंदिर में किये, कब्जा रब-भगवान
*
मुझे इंग्लिश नहीं आती, मुझे उर्दू नहीं आती
महज इंसान हूँ, मुझको रुलाई या हँसी आती
*
खुदा ने खूब सूरत दी, दिया सौंदर्य ईश्वर ने
बनें हम खूबसूरत, क्या अधिक चाहा है इश्वर ने?
*
न नातों से रखा नाता, न बोले बोल ही कड़वे
किया निज काम हो निष्काम, हूँ बेकाम युग-युग से
९-२-२०१६
*
दोहा सलिला:
वैलेंटाइन
*
उषा न संध्या-वंदना, करें खाप-चौपाल
मौसम का विक्षेप ही, बजा रहा करताल
*
लेन-देन ही प्रेम का मानक मानें आप
किसको कितना प्रेम है?, रहे गिफ्ट से नाप
*
बेलन टाइम आगया, हेलमेट धर शीश
घर में घुसिए मित्रवर, रहें सहायक ईश
*
पर्व स्वदेशी बिसरकर, मना विदेशी पर्व
नकद संस्कृति त्याग दी, है उधार पर गर्व
*
उषा गुलाबी गाल पर, लेकर आई गुलाब
प्रेमी सूरज कह रहा, प्रोमिस कर तत्काल
*
धूप गिफ्ट दे धरा को, दिनकर करे प्रपोज
देख रहा नभ मन रहा, वैलेंटाइन रोज
*
रवि-शशि से उपहार ले, संध्या दोनों हाथ
मिले गगन से चाहती, बादल का भी साथ
*
चंदा रजनी-चाँदनी, को भेजे पैगाम
मैंने दिल कर दिया है, दिलवर तेरे नाम
*
पुरवैया-पछुआ कहें, चखो प्रेम का डोज
मौसम करवट बदलता, जब-जब करे प्रपोज
*
***
हास्य सलिला:
वैलेंटाइन पर्व:
*
भेंट पुष्प टॉफी वादा आलिंगन भालू फिर प्रस्ताव
लला-लली को हुआ पालना घर से 'प्रेम करें' शुभ चाव
कोई बाँह में, कोई चाह में और राह में कोई और
वे लें टाई न, ये लें फ्राईम, सुबह-शाम बदलें का दौर
***
मुक्तक :
.
जो हुआ अनमोल है बहुमूल्य, कैसे मोल दूँ मैं ?
प्रेम नद में वासना-विषज्वाल कैसे घोल दूँ मैं?
तान सकता हूँ नहीं मैं तार, संयम भंग होगा-
बजाना वीणा मुझे है कहो कैसे झोल दूँ मैं ??
.
मानकर पूजा कलम उठायी है
मंत्र गायन की तरह चलायी है
कुछ न बोले मौन हैं गोपाल मगर
जानता हूँ कविता उन्हें भायी है
.
बेरुखी ज्यों-ज्यों बढ़ी ज़माने की
करी हिम्मत मैंने आजमाने की
मिटेंगे वे सब मुझे भरोसा है-
करें जो कोशिश मुझे मिटाने की
.
सर्द रातें भी कहीं सोती हैं?
हार वो जान नहीं खोती हैं
गर्म जो जेब उसे क्या मालुम
जाग ऊसर में बीज बोती हैं
.
बताओ तो कौन है वह, कहो मैं किस सा नहीं हूँ?
खोजता हूँ मैं उसे, मैं तनिक भी जिस सा नहीं हूँ
हर किसी से कुछ न कुछ मिल साम्यता जाती है मुझको-
इसलिए हूँ सत्य, माने झूठ मैं उस सा नहीं हूँ
.
राह कितनी भी कठिन हो, पग न रुकना अग्रसर हो
लाख ठोकर लगें, काँटें चुभें, ना तुझ पर असर हो
स्वेद से श्लथ गात होगा तर-ब-तर लेकिन न रुकना
सफल-असफल छोड़ चिंता श्वास से जब भी समर हो
...
***
नवगीत:
.
'नेकी कर
दरिया में डालो'
कह गये पुरखे
.
याद न जिसको
रही नीति यह
खुद से खाता रहा
भीती वह
देकर चाहा
वापिस ले ले
हारा बाजी
गँवा प्रीति वह
कुछ भी कर
आफत को टालो
कह गये पुरखे
.
जीत-हार
जो हो, होने दो
भाईचारा
मत खोने दो
कुर्सी आएगी
जाएगी
जनहित की
फसलें बोने दो
लोकतंत्र की
नींव बनो रे!
कह गए पुरखे
***
गीत:
जब जग मुझ पर झूम हँसा
मैं दुनिया पर खूब हँसा
.
रंग न बदला, ढंग न बदला
अहं वहं का जंग न बदला
दिल उदार पर हाथ हमेशा
ज्यों का त्यों है तंग न बदला
दिल आबाद कर रही यादें
शूल विरह का खूब धँसा
.
मैंने उसको, उसने मुझको
ताँका-झाँका किसने-किसको
कौन कहेगा दिल का किस्सा?
पूछा तो दिल बोला खिसको
जब देखे दिलवर के तेवर
हिम्मत टूटी कहाँ फँसा?
***
नवगीत:
.
मन की
मत ढीली लगाम कर
.
मन मछली है फिसल जायेगा
मन घोड़ा है मचल जायेगा
मन नादां है भटक जाएगा
मन नाज़ुक है चटक जायेगा
मन के
संयम को सलाम कर
.
तन माटी है लोहा भी है
तन ने तन को मोहा भी है
तन ने पाया - खोया भी है
तन विराग का दोहा भी है
तन की
सीमा को गुलाम कर
.
धन है मैल हाथ का कहते
धन को फिर क्यों गहते रहते?
धनाभाव में जीवन दहते
धनाधिक्य में भी तो ढहते
धन को
जीते जी अनाम कर
.
जीवन तन-मन-धन का स्वामी
रखे समन्वय तो हो नामी
जो साधारण वह ही दामी
का करे पर मत हो कामी
जीवन
जी ले, सुबह-शाम कर
९-२-२०१५
***
विमर्श :
पर्ण छोड़ पागल हुए, लहराते तरु केश ।
आदिवासी रूप धरे, जंगल का परिवेश ।। - संदीप सृजन


- सलिल सर! आपने मेरे दोहे पर टीप दी। धन्यवाद ....
= मुझे पता है तीसरे चरण में जगण ऽ।ऽ हो रहा है। इसे आप सुधार कर भेजने का कष्ट करे।
= यहाँ एक बात और विचारणीय है। वृक्ष पत्ते अर्थात वस्त्र छोड़ पागल की तरह केश या डालियाँ लहरा रहे हैं। इसे आदिवासी रूप कैसे कहा जा सकता है? आदिवासी होने और पागल होने में क्या समानता है?
- क्या नग्न शब्द का उपयोग किया जाए?
= नंगेपन और अदिवासियों में भी कोई सम्बन्ध नहीं है। आदिवासियों से कम वस्त्र पहने, अधिक नग्न नायिकाएँ दूरदर्शन पर निकट दर्शन कराती रहती हैं।
- आदिवासी शब्द प्रतीक है .... जैसे अंधे को सूरदास कहा जाता है।
= लेकिन यह एक समूचा विशाल संवर्ग भी है। क्या वह आहत न होगा? यदि आप एक आदिवासी होते तो क्या इस शब्द का प्रयोग इस संदर्भ में करते? साहित्य में बात इस तरह कही जाती है की कोइ आहत न हो। सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
पर्ण छोड़ पागल हुए, तरु लहराते केश।
शहर लीलता जा रहा, जंगल का परिवेश।। -यह कैसा रहेगा?
-बिंब के प्रयोग में क्या आपत्ति? ... कई लोगों ने ये प्रयोग किया है।
= मुझे कोई आपत्ति नहीं। यदि आप वही कहना चाहते हैं जो व्यक्त हो रहा है तो अवश्य कहें। यदि अनजाने में वह व्यक्त हो रहा है जो मंतव्य नहीं है तो परिवर्तन करें। दोहा आपका है,जैसा चाहें कहें।
- शहरी परवेश का पत्ते त्यागने से कोई संबध नहीं होता ..... पेड़ कहीं भी हो स्वाभाविक प्रक्रिया में वसंत में पत्ते त्याग देते हैं. सर! कोई असुविधा या खेद की बात नही .... मैं जानता हूँ आप छंद के विद्वान है... मेरे प्रश्न पर आप मुझे संतुष्ट करें तो कृपा होगी .. मैं तो लिखना सीख रहा हूँ। मुझे समाधान नही संतुष्टि चाहिए ... जो आप दे सकते हैं।
= साहित्य सबके हितार्थ रचा जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रचनाकार को होती ही है। मुझे ऐसा लगता है कि अनावश्यक किसी को मानसिक चोट क्यों पहुँचे ? उक्ति है: 'सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयात मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम' अर्थात जब सच बोलो तो प्रिय सच बोलो / अप्रिय सच को मत ही बोलो'। आपकी संतुष्टि के लिए गलत को गलत न कहना भी तो गलत होगा क्योंकि तब आप गलत को सही मान कर वही करते रहेंगे फिर परामर्श या मार्गदर्शन निरर्थक हो जाएगा।
- नीलू मेघ जी का एक दोहा देखें
महुआ भी गदरा गया , बौराया है आम
मौसम ने है काम किया, मदन हुआ बदनाम...
= यहाँ 'मौसम ने है काम किया' १३ के स्थान पर १४ मात्राएँ हैं। कुछ परिवर्तन ' मौसम ने गुल खिलाया' करने से मात्रिक संतुलन स्थापित हो जाता है, 'गुल खिलाना' मुहावरे का प्रयोग दोहे के चारुत्व में वृद्धि करता है।
९-२-२०१५
***
नवगीत:
.
गयी भैंस
पानी में भाई!
गयी भैंस पानी में
.
पद-मद छोड़ त्याग दी कुर्सी
महादलित ने की मनमर्जी
दाँव मुलायम समझा-मारा
लालू खुश चार पायें चारा
शरद-नितिश जब पीछे पलटे
पाँसे पलट हो गये उलटे
माँझी ने ही
नाव डुबोई
लगी सेंध सानी में
.
गाँधी की दी खूब दुहाई
कहा: 'सादगी है अपनाई'
सत्तर लाखी सूट हँस रहा
फेंक लँगोटी तंज कस रहा
'सब का नेता' बदले पाला
कहे: 'चुनो दल मेरा वाला'
जनगण ने
जब भौंहें तानीं
गया तेल घानी में
.
८-२-२०१५
***
सामयिक कविता:
*
हर चेहरे की अलग कहानी, अलग रंग है.
अलग तरीका, अलग सलीका, अलग ढंग है...
*
भगवा कमल चढ़ा सत्ता पर जिसको लेकर.
गया पाक बस में, आया हो बेबस होकर.
भाषण लच्छेदार सुनाए, सबको भए.
धोती कुरता गमछा धारे सबको भाए.
बरस-बरस उसकी छवि हमने विहँस निहारी.
ताली पीटो, नाम बताओ- ......................
*
गोरी परदेसिन की महिमा कही न जाए.
सास और पति के पथ पर चल सत्ता पाए.
बिखर गया परिवार मगर क्या खूब सम्हाला?
देवरानी से मन न मिला यह गड़बड़ झाला.
इटली में जन्मी, भारत का ढंग ले लिया.
बहुत दुलारी भारत माँ की नाम? .........
*
यह नेता भैंसों को ब्लैक बोर्ड बनवाता.
कुर्सी पड़े छोड़ना, बीबी को बैठाता.
घर में रबड़ी रखे मगर खाता था चारा.
जनता ने ठुकराया अब तड़पे बेचारा.
मोटा-ताज़ा लगे, अँधेरे में वह भालू.
जल्द पहेली बूझो नाम बताओ........?
*
माया की माया न छोड़ती है माया को.
बना रही निज मूर्ति, तको बेढब काया को.
सत्ता प्रेमी, कांसी-चेली, दलित नायिका.
नचा रही है एक इशारे पर विधायिका.
गुर्राना-गरियाना ही इसके मन भाया.
चलो पहेली बूझो, नाम बताओ........
*
छोटी दाढ़ीवाला यह नेता तेजस्वी.
कम बोले करता ज्यादा है श्रमी-मनस्वी.
नष्ट प्रांत को पुनः बनाया, जन-मन जीता.
मरु-गुर्जर प्रदेश सिंचित कर दिया सुभीता.
गोली को गोली दे, हिंसा की जड़ खोदी.
कर्मवीर नेता है भैया ..............
*
बंगालिन बिल्ली जाने क्या सोच रही है?
भय से हँसिया पार्टी खंबा नोच रही है.
हाथ लिए तृण-मूल, करारी दी है टक्कर.
दिल्ली-सत्ताधारी काटें इसके चक्कर.
दूर-दूर तक देखो इसका हुआ असर जी.
पहचानो तो कौन? नाम .....................
*
तेजस्वी वाचाल साध्वी पथ भटकी है.
कौन बताए किस मरीचिका में अटकी है?
ढाँचा गिरा अवध में उसने नाम कमाया.
बनी मुख्य मंत्री, सत्ता सुख अधिक न भाया.
बड़बोलापन ले डूबा, अब है गुहारती.
शिव-संगिनी का नाम मिला, है ...............
*
मध्य प्रदेशी जनता के मन को जो भाया.
दोबारा सत्ता पाकर भी ना इतराया.
जिसे लाड़ली बेटी पर आता दुलार है.
करता नव निर्माण, कर रहा नित सुधार है.
दुपहर भोजन बाँट, बना जन-मन का तारा.
जल्दी नाम बताओ वह ............. हमारा.
*
डर से डरकर बैठना सही न लगती राह.
हिम्मत गजब जवान की, मुँह से निकले वाह.
घूम रहा है प्रांत-प्रांत में नाम कमाता.
गाँधी कुल का दीपक, नव पीढ़ी को भाता.
जन मत परिवर्तन करने की लाता आँधी.
बूझो-बूझो नाम बताओ ......................
*
बूढ़ा शेर बैठ मुंबई में चीख रहा है.
देश बाँटता, हाय! भतीजा दीख रहा है.
जिसको धमकाए वह बोले- बचा बाप रे!
बचना है तो नाम बताओ ......................
पहलवान ताकत आजमाता राजनीति में
एक नहीं दो शादी कर फँस गया प्रीति में
पुत्रमोह ने भ्रातृमोह को हाय! किया कम
यदुवंशी का नाम न भूलो कहो ......................
*
जे पी का शागिर्द न क्रांति राह चल पाया
जिस करवट सत्ता उस करवट बैठे भाया
उठापटक में माहिर ब्याहा पर कुमार है
साथ शरद के रहा नाम ......................
धनपति नेता डूबा सूरज, कटी डोर है
जीवनसंध्या को भी बोले नई भोर है
शुगर किंग रोगी मीठे हैं बोल, अजब है
बूझो उसका नाम वही पवार ......................
*
रंग-बिरंगे नेता करते बात चटपटी.
ठगते सबके सब जनता को बात अटपटी.
लोकतंत्र को लोभतंत्र में बदल हँस रहे.
कभी फाँसते हैं औरों को कभी फँस रहे.
ढंग कहो, बेढंग कहो चल रही जंग है.
हर चेहरे की अलग कहानी, अलग रंग है.
९-२-२०१०
***

बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

भोजपुरी दोहा, मुक्तिका, मुक्तक, नवगीत, जाया छंद, बुंदेली गीत, क्रिकेट, विद्या छंद, सॉनेट, सेठ रामदास

सॉनेट 
प्रस्ताव दिवस
मना रहा प्रस्ताव दिवस जग
हमें रहे नेता मिलकर ठग
राहत देते जब चुनाव हो
चार बरस देते अभाव वो

संसद में नित नूराकुश्ती 
जब देखो तब करते मस्ती
ताव दिखाने का क्यों चाव?
क्यों न पेश करते प्रस्ताव?

मिलकर नीचे लाएँ भाव
खे पाए घरवाली नाव
आधे कर निज वेतन-भत्ते
घूमें नित्य लगाकर लत्ते 

जनगण कहे न जनहित भूल
तज गुलाब ला गोभी फूल
८-२-२०२३
•••
विमर्श
प्रश्न- कैसे मालूम हो कि वेन्टीलेटर पर रह रहा मरीज जीवित है या नहीं?
उत्तर- शरीर की ३ मुख्य प्रक्रियाएँ फेफड़ों द्वारा सांस लेना, हृदय द्वारा शरीर के सभी अंगों तक रक्त पहुँचाना और मस्तिष्क का काम करना हैं। इन तीनों मैं से एक भी रुक जाए तो एक तरह की मृत्यु ही है। वेंटिलेटर पर तभी रखा जाता है जब मरीज का हृदय और दिमाग का कर रहा हो। वेंटिलेटर से कार्डियक मॉनिटर जुड़ा रहता है। वेंटिलेटर फेफड़ों मैं हवा या ऑक्सिजन भरने का काम करता है। किसी रोगी की मृत्यु हो गई हो और उसका दिल भी रुक गया हो तो फेफड़ों मैं हवा या ऑक्सीजन भरना निरर्थक होगा क्योंकि खून तो जम चुका होगा, दिमाग भी ऑक्सिजन न मिलने से मृत हो चुका होगा। ऐसे मैं आप कितनी ऑक्सिजन देते रहो, शरीर सड़ने लगेगा। जब ब्रेन डेड हो और दिल चल रहा हो तब वेंटिलेटर शरीर के आंतरिक अंगों को प्रत्यारोपण के लिए जीवित रखने हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर मरीज वेंटिलेटर पर है तो मॉनिटर में दिल की धड़कनें और खून का ऑक्सिजन स्तर देखें। अगर यह दिख रहा है तो इसका मतलब दिल चल रहा है, अगर आँखों की पुतलियां फैली नहीं है तो इसका मतलब उसका ब्रेन काम कर रहा है।
***
अमर शहीद सेठ रामदास गुड़वाले

सेठ रामदास जी गुड़वाले - 1857 के महान क्रांतिकारी, दानवीर जिन्हें फांसी पर चढ़ाने से पहले अंग्रेजों ने उनपर शिकारी कुत्ते छोड़े जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया

सेठ रामदास जी गुड़वाला (दिल्ली के अरबपति सेठ और बैंकर) अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के गहरे दोस्त थे। इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था। इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी। उनकी अमीरी की एक कहावत थी “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना, चाँदी जवाहरात है कि उनकी दीवारों से गंगा जी का पानी भी रोक सकते हैं”।

सन १८५७ में मेरठ से आरंभ क्रांति की चिंगारी दिल्ली पहुँची तो मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को क्रांति का नायक घोषित कर दिया गया। दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन और वेतन की समस्या पैदा हो गई। बादशाह का खजाना खाली था। फिर एक दिन बादशाह ने अपनी रानियों के गहने, मंत्रियों के सामने रख दिए। रामजीदास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे |

रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी कि "मातृभूमि की रक्षा होगी तो धन फिर कमा लिया जाएगा। रामजीदास ने केवल धन ही नहीं दिया, सैनिकों को सत्तू, आटा, अनाज, और बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था भी की। उन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था, सेना व खुफिया विभाग के संघठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया उनकी संगठन शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए। सारे उत्तर भारत में सेठ जी ने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया। उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संघठन का निर्माण किया। देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार और राजाओं से प्रार्थना की। इस संकट काल में बहादुर शाह जफर की मदद कर, देश को स्वतंत्र करवाने का बेमिसाल प्रयास किया।

रामदास जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधयिओं से अंग्रेज़ शासन व अधिकारी बहुत परेशान होने लगे। कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा। दुखी होकर, एक दिन सेठ जी ने, चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह ज़हर मिश्रित, शराब की बोतलों की पेटियाँ रखवा दीं, अंग्रेज सेना उनसे प्यास बुझाती और वही लेट जाती। अंग्रेजों को समझ आ गया कि भारत पर शासन करना है तो रामदास जी का अंत बहुत ज़रूरी है। सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ लिया गया और जिस तरह से मारा गया, वो तो क्रूरता की जीती जागती मिसाल है।

सेठ रामदास जी को पहले रस्सियों से खम्बे के साथ बाँधा गया, फिर उन पर शिकारी कुत्ते छोड़कर कटवाया गया। उसके बाद उन्हें अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनीचाँदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया। सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट' में लिखा है - "सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे।अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात व अकूत संपत्ति थी। वह मुग़ल बादशाहों से भी अधिक धनी थे। यूरोप के बाजारों में भी उनकी अमीरी की चर्चा होती थी"।

भारत के इतिहास में उनका जो नाम है, वो उनकी अतुलनीय संपत्ति की वजह से नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने की वजह से है। क्या हम सेठ रामदास जी को याद कर श्रद्धा से सर नवाते हैं, यदि नहीं तो?
८-२-२०२३ 
***
सॉनेट
ज्ञान
*
सुमति-कुमति हर हृदय बसी हैं।
सुमति ज्ञान की राह दिखाती।
कुमति सत्य-पथ से भटकाती।।
अपरा-परा न दूर रही हैं।।

परा मूल है, छाया अपरा।
पुरुष-प्रकृति सम हैं यह मानो।
अपरा नश्वर है सच मानो।।
अविनाशी अक्षरा है परा।।

उपज परा से मिले परा में।
जीव न जाने जा अपरा में।
मिले परात्पर आप परा में।।

अपरा राह साध्य यह जानो।
परा लक्ष्य अक्षर पहचानो।
भूलो भेद, ऐक्य अनुमानो।।
८-२-२०२२
***
कार्यशाला
अंग्रेजी- हिंदी में समान उच्चारण, भिन्नार्थ वाले कुछ शब्द
१. गम / Gum = दुःख / adhesive, paste , fleshy tissue enveloping neck of teeth ( मसूड़ा)
२. दंग/Dung = हैरान/ Animal waste (गोबर)
३. सन /Son , Sun = पौधा जिसके रेशे से बोरे आदि बनते हैं/ Male offspring , Sol (सूरज )
४. हट /Hut = हटाना के अर्थ में / small house (झोपड़ी)
५. शोर/Shore = हल्ला / Beach (किनारा )
५. पट/ Putt = पेट के बल लेटना, तुरंत /Type of shot in golf
६. पेट/Pet= अंग / tamed animal for company (पालतू जानवर)
७. मिल / mill = भेंट होना / machine for crushing solid grains (आटा मिल )
८. हिल / hill हिलना के अर्थ में / elevation smaller than mountain (पहाड़ी )
९. मेल/Mail मैत्री / Postal mail or E mail
१०. रट/Rut : रटना के अर्थ में / furrow or track made on the ground especially by passing of vehicle (रेलवे को शुरू में रट वे भी कहा जाता था )
***
स्वास्थ्य चर्चा
नमकीन पानी से स्नान के लाभ
*
बाथ सॉल्ट यानी एप्सम या सी साल्ट में २१ अलग-अलग तरह के मिनरल्स होते हैं जिनमें मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम, सल्फर, जिंक, कैल्शियम, क्लोराइड, आयोडाइड और ब्रोमाइड शामिल हैं जो शरीर को पोषण प्रदान करते हैं।
इसलिए थोड़ा सा नमक पानी में मिलाकर उसमें नहाने से शरीर को कई फायदे हो सकते हैं।खारे पानी से नहाने के अपने स्वास्थ्य लाभ हैं जो सामान्य पानी आपको प्रदान नहीं करते हैं।
नमक के पानी से स्नान करने के लाभ-।
उपचार और आराम:
हिमालयन बाथ सॉल्ट का उपयोग परिसंचरण को प्रोत्साहित करने, त्वचा को हाइड्रेट करने, नमी बनाए रखने को बढ़ाने और सेलुलर पुनर्जनन को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, वे त्वचा को डिटॉक्सीफाई और हीलिंग करने में भी सहायक होते हैं। नमक-पानी से नहाने से मांसपेशियों और जोड़ों की सूजन कम होती है, मांसपेशियों को आराम मिलता है और दर्द और खराश से राहत मिलती है।
त्वचा के लिए अच्छा:
नमक-पानी के स्नान अपने प्राकृतिक रूप में कई खनिज और पोषक तत्व होते हैं जो त्वचा को फिर से जीवंत करने में मदद करते हैं।
मैग्नीशियम, कैल्शियम, ब्रोमाइड, सोडियम और पोटेशियम जैसे खनिज त्वचा के छिद्रों में अवशोषित हो जाते हैं, त्वचा की सतह को साफ और शुद्ध करते हैं, जिससे त्वचा स्वस्थ और चमकती रहती है।
डिटॉक्सिफिकेशन:
बाथ सॉल्ट त्वचा को डिटॉक्सीफाई करने में भी मदद करते हैं।गर्म पानी त्वचा के छिद्रों को खोलता है जिससे नमक के खनिज त्वचा में गहराई से अवशोषित हो जाते हैं, जिससे पूरी सफाई सुनिश्चित हो जाती है।
ये लवण दिन भर त्वचा द्वारा अवशोषित हानिकारक विषाक्त पदार्थों और बैक्टीरिया को बाहर निकालने में मदद करते हैं, जिससे आपकी त्वचा स्वस्थ और साफ दिखती है।
युवा चमक:
जवान दिखना और महसूस करना कौन नहीं चाहता। चेहरे पर झुर्रियों और महीन रेखाओं की उपस्थिति को कम करने के लिए नियमित रूप से नहाने के नमक का प्रयोग करें। ये आपकी त्वचा को कोमल और कोमल बनाते हैं। स्नान नमक त्वचा को मोटा करके और त्वचा की नमी को संतुलित करके इसे प्राप्त करते हैं। वे त्वचा को वह प्राकृतिक चमक भी देते हैं जो नियमित जीवन में खो जाती है।
विभिन्न समस्याओं का उपचार:
स्नान नमक न केवल आपकी त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं बल्कि ऑस्टियोआर्थराइटिस और टेंडिनाइटिस जैसी कुछ गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, नहाने के नमक खुजली और अनिद्रा को कम करने में भी प्रभावी होते हैं।
८-२-२०२२
***
दोहा सलिला 
संग सलिल के तैरतीं, शशि किरणें चिद्रूप
जैसे ही होतीं बिदा, बाँह जकड़ती धूप
बाँह जकड़ती धूप, छाँह भी रहे न पीछे
अवसर पाकर स्नेह, उड़ेले भुज भर भींचे
रवि हेरे हो तप्त, ईर्ष्या लपट घेरतीं
शशि किरणें चिद्रूप, संग सलिल के तैरतीं
८२-२०२०
***
गीतः
सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
सन्जीव
*
सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
*
काने कौए कुर्सी को
पकड़ सयाने बन बैठे
भूल गये रुकना-झुकना
देख आईना हँस एँठे
खिसकी पाँव तले धरती
नाम हुआ बेहद बदनाम...
*
मोहन ने फिर व्यूह रचा
किया पार्थ ने शर-सन्धान
कौरव हुए धराशायी
जनगण सिद्‍ध हुआ मतिमान
खुश मत हो, सच याद रखो
जन-हित बिन होगे गुमनाम...
*
हर चूल्हे में आग जले
गौ-भिक्षुक रोटी पाये
सांझ-सकारे गली-गली
दाता की जय-जय गाये
मौका पाये काबलियत
मेहनत पाये अपना दाम...
*
१३-७-२०१४
दोहा 
बरगद पीपल कहें आ, आँख मिचौली खेल.
इमली नीम न मानतीं, हो न सका है मेल.
८-२-२०१८
एक मुक्तिका
छंद- यौगिक जातीय विद्या छंद
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
बहर- फाइलातुन x ४
*
फूलने दो बाग़ में गुंचे मिलेगी खूब खुश्बू
गीत गायेंगे ख़ुशी से झूम भौंरे देख जादू
कौन बोलेगा न झूमो? कौन चाहेगा न गाओ?
राह में राही मिलेंगे, थाम लेना हाथ ही तू
उम्र का ही है तकाजा लोग मानें या न मानें
जोश में होता कहाँ है होश?, होता है न काबू
आप नेता हैं, नहीं तो आपका कोई न चर्चा
आपकी पीड़ा न पीड़ा, फेंक एसिड, मार चाकू
सांसदों को खूब भत्ते और भूखों को न दाना
वाह रे आजाद लोगो! है न आज़ादी गुड़ाखू
***
क्रिकेट के दोहे
*
चहल-पहल कर चहल ने, खड़ी करी है खाट
कम गेंदें ज्यादा विकेट, मारा धोबीपाट
*
धोनी ने धो ही दिया, सब अंग्रजी ठाठ
बल्ले-बल्ले कर रहा, बल्ला पढ़ लो पाठ
*
रैना चैना छीनकर, नैना रहा तरेर
ढेर हो गए सर झुका, सब अंग्रेजी शेर
*
है विराट के नाम की, है विराट ही धाक
कुक ने स्तीफा दिया, हाय कट गयी नाक
*
अंग्रेजों से छिन गया, ट्वंटी का भी ताज
गोरी बाला वर जयी, हुए विहँस युवराज
*
नेहरा गहरा वार कर, पहरा देता खूब
विकट नहीं या रन नहीं, गए विपक्षी डूब
***
दस मात्रिक छंद
९. पदांत यगण
मनुआ! जग गा रे!
प्राची रवि लाई
ऊषा मुसकाई
रहा टेर कागा
पहुना सुधि आई
विधना झट ला रे!
कुण्डी खटकाई
गोरी झट आई
अँखियाँ टकराईं
झुक-उठ शरमाईं
मुड़कर मात जारे!
हुई मन मिलाई
सुध-बुध बिसराई
गयी खनक चूड़ी
ननदी झट आई
चट-पट छिप जा रे!
*
१०. पदांत मगण
मन क्यों आवारा?
जैसे बंजारा
हर दम चाहे हो
केवल पौबारा
*
११. पदांत तगण
ख्वाब में हैं आप
साथ में हैं आप
हम जहाँ मौजूद
न हों पर हैं आप
*
१२. पदांत रगण
बात जब कीजिए
साथ चल दीजिए
सच नहीं भी रुचे
तो नहीं खीजिए
कर मिलें, ना मिलें
मन मिला लीजिए
आँख से भी कभी
कुछ लगा पीजिए
नेह के नीर में
सँग नहा भीजिए
*
१३. पदांत जगण ६+१२१
किसे कहें अनाथ?
सभी मनुज सनाथ
सबका ईश एक
झुकाएँ नित माथ
*
१४. पदांत भगण
लाया है सावन
त्यौहार सुपावन
मिल इसे मनायें
राखी मन भावन
.
सीमा पर दुर्जन
दें मार सैन्य जन
अरि के घर मातम
बोयेगा सावन
*
१५, पदांत नगण
जब से गए सजन
बेसुध सा तन-मन
दस दिश चहल-पहल
सूना मन-मधुवन
किया सतत सुमिरन
हर दिन, हर पल-छिन
पौधारोपण कर
जी पायें फिर वन
वह दिखता रहबर
हो न कहीं रहजन
*
१६. पदांत सगण
हमको है कहना
दूर नहीं रहना
चुप, कब तक पहनें
सुधियों का गहना?
मजबूरी अपनी
विरह व्यथा तहना
सलिला कब कहती
मुझे नहीं बहना?
मंगल मन रही
क्यों केवल बहना?
*
१७. २ यगण
निहारो-निहारो
सितारों निहारो
सदा भारती की
करो आरती ही
हसीं चाँदनी को
धरा पर उतारो
सँवारो-सँवारो
धरा को सँवारो
१८. २ तगण
सीता वरें राम
सीता तजें राम
छोड़ें नहीं राग
सीता भजें राम
१९. २ रगण
आपसे काम ना
हो, यही कामना
गर्व का वास ना
हो, नहीं वासना
स्वार्थ को साध ना
छंद को साधना
माप की नाप ना
नाप ही नापना
उच्च हो भाव ना
शुद्ध हो भावना
*
२०. यगण तगण
कहीं है नीलाभ
कहीं है पीताभ
कपासी भी मेघ
कहीं क्यों रक्ताभ?
कड़े हो या नर्म
रहो जैसे डाभ
सहेगा जो हानि
कमाएगा लाभ
२१. तगण यगण
वादा न निभाया
कर्जा न चुकाया
जोड़ा धन थोड़ा
मोहे मत माया
जो पुन्य कमाया
आ अंत भुनाया
ठानो न करोगे
जो काम न भाया
२१. यगण रगण
किये जाओ मजा
चली आती क़ज़ा
किया तो भोग भी
यही दैवी रजा
कहो तो स्वार्थ को
कभी क्या है तजा?
रही है सत्य की
सदा ऊँची ध्वजा
न बोले प्रेयसी
'मुझे क्या जा-न जा'
*
२२. रगण यगण
आपका सहारा
दे रहा इशारा
हैं यही मुरादें
साथ हो हमारा
दूर जा पुकारा
पास आ निहारा
याद है न वादा?
प्यार हो न कारा?
आँख में बसा है
रूप ये तुम्हारा
*
२३. तगण रगण २२१ २१२
आओ! कहीं चलें
बोलो कहाँ मिलें?
माँगें यही दुआ
कोई नहीं छले
*
२४. रगण तगण
आज का पैगाम
जीत पाए लाम
आपका सौभाग्य
आप आये काम
सोचते हैं लोग
है विधाता वाम
चाहिए क्यों पुण्य
कर्म है निष्काम
खूब पाया नाम
बात है ये ख़ास
प्रेरणा लें आम
*
दोहा
दिनकर प्रिय सुधि रश्मि से, करे प्रणय शुरुआत।
विरह तिमिर का अंत कर, जगा रहा जज्बात।।
*
रोज, प्रप्रोज पठा रहा, नाती कैसा काल।
पोता हो लव बर्ड तो, आ जाए भूचाल।।
***
मैथिली हाइकु
*
स्नेह करब
हमर मंत्र अछि
गरा लागब.
८-२-२०१७
***
बुंदेली गीत -
भुन्सारे चिरैया
*
नई आई,
बब्बा! नई आई
भुन्सारे चरैया नई आई
*
पीपर पै बैठत थी, काट दओ कैंने?
काट दओ कैंने? रे काट दओ कैंने?
डारी नें पाई तो भरमाई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
सैयां! नई आई
*
टला में पीयत ती, घूँट-घूँट पानी
घूँट-घूँट पानी रे घूँट-घूँट पानी
टला खों पूरो तो रिरयाई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
गुइयाँ! नई आई
*
फटकन सें टूंगत ती बेर-बेर दाना
बेर-बेर दाना रे बेर-बेर दाना
सूपा खों फेंका तो पछताई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
लल्ला! नई आई
*
८-२-२०१६
***
नवगीत-
महाकुम्भ
*
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
आशाओं की
वल्लरियों पर
सुमन खिले हैं।
बिन श्रम, सीकर
बिंदु, वदन पर
आप सजे हैं।
पलक उठाने में
भारी श्रम
किया न जाए-
रूपगर्विता
सम्मुख अवनत
प्रणय-दंभ है।
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
रति से रति कर
बौराई हैं
केश लताएँ।
अलक-पलक पर
अंकित मादक
मिलन घटाएँ।
आती-जाती
श्वास और प्रश्वास
कहें चुप-
अनहोनी होनी
होते लख
जग अचंभ है।
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
एच ए ७ अमरकंटक एक्सप्रेस
३. ४२, ६-२-२०१६
***
श्रृंगार गीत -
ओ मेरी तुम
*
ओ मृगनयनी!
ओ पिकबयनी!
ओ मेरी तुम!!
*
भोर भयी
बाँके सूरज ने
अँखियाँ खोलीं।
बैठ मुँडेरे
चहक-चहक
गौरैया बोली।
बाहुबंध में
बँधी हुई श्लथ-
अलस देह पर-
शत-शत इंद्र-
धनुष अंकित
दमिनियाँ डोलीं।
सदा सुहागन
दृष्टि कह रही
कुछ अनकहनी।
ओ मृगनयनी!
ओ पिकबयनी!
ओ मेरी तुम!!
*
चिबुक निशानी
लिये, नेह की
इठलाया है।
बिखरी लट,
फैला काजल भी
इतराया है।
टूटा बाजूबंद
प्राण-पल
जोड़ गया रे!
कँगना खनका
प्रणय राग गा
मुस्काया है।
बुझी पिपासा
तनिक, देह भई
कुसुमित टहनी
ओ मृगनयनी!
ओ पिकबयनी!
ओ मेरी तुम!!
*
कुण्डी बैरन
ननदी सी खटके
कुछ मत कह।
पवैया सासू सी
बहके बहके
चुप रह।
दूध गिराकर
भगा बिलौटा
नटखट देवरा
सूरज ससुरा
दे आसीसें
दामन में गह
पटक न दे
बचना जेठानी
भैंस मरखनी
ओ मृगनयनी!
ओ पिकबयनी!
ओ मेरी तुम!!
*
५-२-२०१६
HA ७ अमरकंटक एक्सप्रेस
२१. १२
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बुंदेली नवगीत -
*
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
हमरो स्याह सुफेद सरीखो
तुमरो धौला कारो दीखो
पंडज्जी ने नोंचो-खाओ
हेर सनिस्चर भी सरमाओ
घना बाज रओ थोथा दाना
ठोस पका
हिल-मिल खा जाओ
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
हमरो पाप पुन्न सें बेहतर
तुमरो पुन्न पाप सें बदतर
होते दिख रओ जा जादातर
ऊपर जा रो जो बो कमतर
रोन न दे मारे भी जबरा
खूं कहें आँसू
चुप पी जाओ
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
८-२-२०१६
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नवगीत:
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तह करके
रख दिये ख्वाब सब
धूप दिखाकर
मर्तबान में
.
कोशिश-फाँकें
बाधा-राई-नोन
समय ने रखा अथाना
धूप सफलता
मिल न सकी तो
कैसा गलना, किसे गलाना?
कल ही
कल को कल गिरवी रख
मोल पा रहा वर्तमान में
.
सत्ता सूप
उठाये घूमे
कह जनगण से 'करो सफाई'
पंजा-झाड़ू
संग नहीं तो
किसने बाती कहो मिलायी?
सबने चुना
हो गया दल का
पान गया ज्यों पीकदान में.
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८-२-२०१५
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छंद सलिला:
जाया छंद
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
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दो पदी, चार चरणीय, ४ वर्ण, ६९ मात्राओं के मात्रिक जाया छंद में प्रथम- द्वितीय-तृतीय चरण उपेन्द्र वज्रा छंद के तथा चतुर्थ चरण इंद्र वज्रा छंद के होते हैं.
उदाहरण:
१. अनाम नाता न निभा सकोगी, प्रणाम माता न डिगा सकोगी
दिया सहारा जिसने मुझे था, बोलो उसे भी अपना सकोगी?
२. कभी न कोई उपकार भूले, कहीं न कोई प्रतिकार यूँ ले
नदी तरंगोंवत झूल झूले, तौलो न बोलो कडुआ कभी भी
३. हमें लुभातीं छवियाँ तुम्हारी, प्रिये! न जाओ नज़दीक आओ
यही तुम्हारी मनकामना है, जानूं! हमीं से सच ना छिपाओ
८-२-२०१४
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भोजपुरी दोहा सलिला :
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रउआ आपन देस में, हँसल छाँव सँग धूप।
किस्सा आपन देस का, इत खाई उत कूप।।
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रखि दिहली झकझोर के, नेता भाषण बाँच।
चमचे बदे बधाई बा, 'सलिल' न देखल साँच।।
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चिउड़ा-लिट्टी ना रुचे, बिरयानी की चाह।
चली बहुरिया मेम बन, घर फूंकन की राह।।
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रोटी की खातिर 'सलिल', जिनगी भयल रखैल।
कुर्सी के खातिर भइल, हाय! सियासत गैल।।
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आजु-काल्हि के रीत बा, कर औसर से प्यार।
कौनौ आपन देस में, नहीं किसी का यार।।
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खाली चउका देखि के, दिहले मूषक भागि।
चौंकि परा चूल्हा निरख, आपन मुँह में आगि।।
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रउआ रख संसार में, सबकी खातिर प्रेम।
हर पियास हर किसी की, हर से चाहल छेम।।
८-२-२०१३
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दोहा

उषा दुपहरी सांझ से, पाल रहा जो प्रीत.

छलिया सूरज को कहे, जग क्यों 'सलिल' पुनीत?.

मुक्तक

साहित्य की आराधना आनंद ही आनंद है.

काव्य-रस की साधना आनंद ही आनंद है.

'सलिल' सा बहते रहो, सच की शिला को फोड़कर.

रहे सुन्दर भावना आनंद ही आनंद है.

८-२-२०१०