दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 24 अप्रैल 2018
doha salila
सोमवार, 23 अप्रैल 2018
doha salila
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लीक पकड़कर चलाचल, सब ठोंकेंगे पीठ
लीक छुटी कोड़े पड़े, सभी दिखाएँ दीठ
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पट्टा बाँधे आँख पर, घोड़ा माफिक भाग
हरी घास मत देखना, मालिक देगा त्याग
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क्या लाया? ले जाए क्या?, कौन कभी यह सोच.
जोड़-तोड़ किसके लिए?, कुछ तो कर संकोच.
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तू दो दूनी पाँच कह, मैं बोलूँगा तीन.
चार कहे जो वह गलत, नचा बजाकर बीन.
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आरक्षित ने मिल दिया, सीता को वनवास.
राम न रक्षा कर सके, साक्षी है इतिहास.
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पुजती रहीं गणेश सँग, लछमी हरि को छोड़.
'लिव इन' होते देखकर, शीश न अपना फोड़.
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'अच्छे दिन अब आ रहे', सुनिए उनकी बात.
नीरव के सँग उड़ गए, हाथ मल रहे तात.
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अविश्वास प्रस्ताव की, दिखा रहे थे धौंस.
औंधे मुँह गिर पड़े हैं, लड़ें न बाकी हौंस.
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घर में ही दुश्मन पले, जब-तब लेते काट.
खोज-खोज पप्पू थका, खोज न पाया काट.
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एक-दूसरे को कहें, हम दोनों मिल चोर.
वेतन-भत्ते मिल बढ़ा, चहकें भाव-विभोर.
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लोक नहीं है लोभ का, तंत्र करे षड्यंत्र.
'गण' पर नित 'गन' तानता, फूँक शोक का मंत्र.
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जिस सीढ़ी से तू चढ़ा, उसको देना तोड़.
दूजा चढ़कर ले सके, 'सलिल' न तुझसे होड़.
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geet
doha doha virasat
संत कबीर दास
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ऐसा कोई दासु होइ, ताहि मिलै भगवानु. विषम चरण पदांत जगण
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कबीर पालि समूह सरवरु भरा, पी न सकै कोइ नीर.
भाग बड़े तो पाइ यो तू, भरि-भरि पीउ कबीर. विषम चरण पदांत यगण
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कबीर मुद्धा मुनारे किया, चढ़हि साईं न बहिरा होइ.
जा कारण तू बाग़ देहि, दिल्ही भीतर जोइ. विषम चरण पदांत जगण
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कबीर मनु जानै सब बात, जानत ही अवगुन करै.विषम चरण पदांत जगण
काहे की कुसलात, हाथ दीप कूए परै. विषम चरण पदांत जगण
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कबीर ऐसा बीज बोइ, बारह मास फलंत. विषम चरण पदांत जगण
सीतल छाया गहिर फल, पंखी कल करंत.
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हरि हैं खांडु रेत महि बिखरी, हाथी चुनी न जाइ.
कह कबीर गुरु भली बुझाई, चीटी होइ के खाइ. विषम चरण पदांत यगण
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संत तुलसीदास
गिरत अंड संपुट अरुण, जमत पक्ष अन्यास.
आल सुबान उपदेस केहि, जात सु उलटि अकास.विषम चरण पदांत जगण
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रावण रावण को हन्यो, दोष राम कह नाहिं. विषम चरण पदांत मगण
निज हित अनहित देखू किन, तुलसी आपहिं माहिं.
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रोम-रोम ब्रम्हांड बहु, देखत तुलसी दास.
बिन देखे कैसे कोऊ, सुनी माने विश्वास. विषम चरण पदांत मगण
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मात-पिता निज बालकहि करहिं इष्ट उपदेश.
सुनी माने विधि आप जेहि, निज सिर सहे कलेश.विषम चरण पदांत जगण
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बिहारी
पत्रा ही तिथि पाइये वा, घर कैं चहुँ पास. विषम चरण पदांत यगण
नित प्रति पून्याईं रहै, आनन ओप-उजास.
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रहति न रन जयसाहि-सुख, लखि लाखनु की फ़ौज.
जाँचि निराखरऊ चलै लै, लाखन की मौज. विषम चरण पदांत यगण
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सीस-मुकुट कटि-काछनी, कर-मुरली उर-माल.
इहिं बानक मो मम सिद्धा, बसौ, बिहारी लाल. विषम चरण पदांत यगण
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कहै यहै श्रुति सुमृत्यौ, यहै सयाने लोग. विषम चरण पदांत यगण
तीन दबवात निस कही, पातक रजा रोग.
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रविवार, 22 अप्रैल 2018
श्री श्री चिंतन: दोहा मंथन 2
इंद्रियाग्नि:
24.7.1995, माँट्रियल आश्रम, कनाडा
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जीवन-इंद्रिय अग्नि हैं, जो डालें हो दग्ध।
दूषित करती शुद्ध भी, अग्नि मुक्ति-निर्बंध।।
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अग्नि जले; उत्सव मने, अग्नि जले हो शोक।
अग्नि तुम्हीं जल-जलाते, या देते आलोक।।
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खुद जल; जग रौशन करें, होते संत कपूर।
प्रेमिल ऊष्मा बिखेरें, जीव-मित्र भरपूर।।
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निम्न अग्नि तम-धूम्र दे, मध्यम धुआँ-उजास।
उच्च अग्नि में ऊष्णता, सह प्रकाश का वास।।
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करें इंद्रियाँ बुराई, तिमिर-धुआँ हो खूब।
संयम दे प्रकृति बदल, जा सुख में तू डूब।।
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करें इंद्रियाँ भलाई, फैला कीर्ति-सुवास।
जहाँ रहें सत्-जन वहाँ, सब दिश रहे उजास।।
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12.4.2018
शनिवार, 21 अप्रैल 2018
doha salila
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पूरी हो या अधूरी, ख्वाहिश हर अनमोल
श्वास न ले सकते कभी, मोल चुका या तोल
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अनुशासन बंधन बिना, भीड़ भोगती दैन्य
अनुशासित हो जीतती, रण हर हरदम सैन्य.
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नेह नर्मदा नित्य नव, स्नेह सलिल से स्नान
कर के कर में कर कमल, खिलखिल खिल अम्लान
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दोहा सलिला प्रवाहित, लहरें करें किलोल
छप-छपाक कर भूल जा, कहाँ ढोल में पोल
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रस का आलिंगन करें, जब-जब मन के भाव
'सलिल' तभी कविता कहे, तुझसे मुझे लगाव
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रूचि का छंद लिखें सदा, रुचिका करे कमाल
पहले सीख विधान लें, फिर दें मचा धमाल.
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गति-यति लय में बँध बने, छंद-छंद रस-खान
छंदहीन कविता 'सलिल', मानव बिन ईमान
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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018
निमाड़ी लघु कथाएँ
विचार तथा आचार दोनों सगे भाई थे, दोनों एक ही दिन पैदा हुए, विचार पहले आचार उसके बाद में। उम्र में बड़ा होने पर भी विचार चंचल स्वभाव का था। वह कभी एक जगह टिकता नहीं था, हमेशा दूर-दूर की सोचता रहता था। आयु में छोटा होने पर भी आचार गंभीर स्वभाव का था। उसके मुखमण्डल पर सदा शालीनता उभरती थी, वह हमेशा कुछ न कुछ करता रहता था। शरीर से भारी-भरकम और सदा काम-धंधे से लदे होने के कारण वह मन होने के बाद भी विचार के साथ खेल-कूद नहीं पाता था।
रात के १० बजे ठेकेदार के चंगुल से छूटकर घर की ओर लौटते हुए दिहाड़ी मजदूर रास्ते में खड़े एक सब्जी वाले से सब्जी के भाव कम करने की मिन्नतें कर रहे थे: "भैया! थोड़ा कम दाम लगा लो न, हम सबको मिल कर ज्यादा भी तो लेना है।"नगर सेठ से पूछा कि भोजन कैसा बना है तो उसने कहा: 'दाल में नमक अधिक है।'
gangou
खरगोन शहर, तपती दुपहरी, आती-जाती भीड़ पर कोई असर नहीं, न जाने कहाँ से आते इतने लोग और न जाने कहाँ जाते, डाकघर चौराहे पर दो चौड़े रास्ते एक दूसरे को काटकर सँकरी राह में बदल जाते हैं। दिन भर लगा रहता जाम, आठ-आठ घंटे खड़े यातायात पुलिसवालों की कड़ी परीक्षा होती हर समय, जब लोग यातायात नियमों की धज्जियाँ उड़ाते। चौराहे के बीच में लगी छतरी की छाया कभी पुलिसकर्मी को नहीं मिलती। धूप असह्य होने पर पुलिसकर्मी किनारे पर पान की दूकान पर जा खड़ा हुआ।
माँ-बाप ने शहर में पढ़ रही बेटी के पास जाने का सोचा। बेटी को शहर में ढंग का खाना नहीं मिलता होगा सोचकर माँ ने जल्दी-जल्दी रोटी-सब्जी बनाकर, बाप ने जरूरी सामान समेटा और सुबह ६ बजे वाली बस से लंबा सफर तयकर बेटी के पास पहुँचे। सफर की थकान मिटाकर माँ-बाप, बेचारा साथ खाना खाने बैठे। थाली पर नजर पड़ते ही बेटी गुस्सा कर माँ से बोली "यह क्या ले आई? ठंडी रोटियाँ और बेस्वाद सब्जी, कौन खाएगा?"
पति-पत्नी के बीच घरेलू काम-काज को लेकर आए दिन झगड़े होते रहते थे। पत्नी चूल्हा-चौका कर जताती कि वह पूरे परिवार पर अहसान कर रही है। वह अकसर कहती- "मैं यदि घर छोड़कर चली जाऊँ तो सबको मालूम पड़ जाए, सुबह से उठकर चाय भी नहीं मिल पाएगी।"
एक गाँव में भारुड नाम का एक व्यक्ति रहता था। एकदम सीधा-सादा, अँगूठा छाप, स्वभाव से भोला। काम के नाम पर रोज बकरी चराने जाना और शाम को आकर रूखा-सूखा खाकर सो जाना। --------------------------------
एक मित्र अपने मित्र को उदास देखकर पूछा: 'तू दुखी क्यों बैठा है यार? तुझे तो खुश होना चाहिए। तेरे चचा आए हैं जो तुझे सौ-सौ के कोरे नोट देते हैं। कुछ वे देते हैं, कुछ तू उनकी जेब से चुपचाप निकल लिया करता है। अब तो तेरे मजे ही मजे हैं।'






