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शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

rasanand de chhand narmada

रसानंद दे छंद नर्मदा ८ 

दोहा का रचना विधान, २३ प्रकार तथा विविध रसों के दोहों का आन्नद लेने के बाद अब देखिये विविध भाषा रूपों के दोहे। 
  

बुन्देली दोहा-




मन्दिर-मन्दिर कूल्ह रै, चिल्ला रै सब गाँव.




फिर से जंगल खों उठे, रामचंद के पाँव..- प्रो. शरद मिश्र. 




छत्तीसगढी दोहा-




चिखला मती सीट अऊ, घाम जौन डर्राय.




ऐसे कायर पूत पे, लछमी कभू न आय.. - स्व. हरि ठाकुर 




बृज दोहा-




कदम कुञ्ज व्है हौं कबै, श्री वृन्दावन मांह.




'ललितकिसोरी' लाडलै, बिहरेंगे तिहि छाँह.. -ललितकिसोरी




उर्दू दोहा-




सबकी पूजा एक सी, अलग-अलग हर रीत.




मस्जिद जाए मौलवी, कोयल गाये गीत.. - निदा फाज़ली 




मराठी द्विपदी- (अभंग)




या भजनात या गाऊ, ज्ञानाचा अभंग.




गाव-गाव साक्षरतेत, नांदण्डयाचा चंग.. -- भारत सातपुते




हाड़ौती दोहा-




शादी-ब्याऊँ बारांता , तम्बू-कनाता देख.




'रामू' ब्याऊ के पाछै, करज चुकाता देख.. -रामेश्वर शर्मा 'रामू भैय्या' 




भोजपुरी दोहा-




दम नइखे दम के भरम, बिटवा भयल जवान.




एक कमा दू खर्च के, ऊँची भरत उदान.. -- सलिल 




निमाड़ी दोहा-




जिनी वाट मं$ झाड़ नी, उनी वाट की छाँव.




नेह, मोह, ममता, लगन, को नारी छे छाँव.. -- सलिल 




हरयाणवी दोहा-




सच्चाई कड़वी घणी, मिट्ठा लागे झूठ.




सच्चाई कै कारणे, रिश्ते जावें टूट.. --रामकुमार आत्रेय. 




राजस्थानी दोहा-




करी तपस्या आकरी, सरगां मिस सगरोत. 




भागीरथ भागीरथी, ल्याया धरा बहोत.. - भूपतिराम जी.



गोष्ठी के अंत में कहा जाने वाला -



कथा विसर्जन होत है, सुनहुं वीर हनुमान. 


जो जन जहाँ से आयें हैं, सो तहँ करहु पयान..



दोहा और सोरठा:


दोहा की तरह सोरठा भी अर्ध सम मात्रिक छंद है. इसमें भी चार चरण होते हैं. प्रथम व तृतीय चरण विषम 


तथा द्वितीय व  चतुर्थ चरण सम कहे जाते हैं. सोरठा में दोहा की तरह दो पद (पंक्तियाँ) होती हैं. प्रत्येक पद 

में २४ मात्राएँ होती हैं. 



दोहा और सोरठा में मुख्य अंतर गति तथा यति में है. दोहा में १३-११ पर यति होती है जबकि सोरठा में ११ - 



१३ पर यति होती है. यति में अंतर के कारण गति में भिन्नता होगी ही.


दोहा के सम चरणों में गुरु-लघु पदांत होता है, सोरठा में यह पदांत बंधन विषम चरण में होता है. दोहा में 



विषम चरण के आरम्भ में 'जगण' वर्जित होता है जबकि सोरठा में सम चरणों में. इसलिए कहा जाता है-


दोहा उल्टे सोरठा, बन जाता - रच मीत.


दोनों मिलकर बनाते, काव्य-सृजन की रीत.


कहे सोरठा दुःख कथा:


सौरठ (सौराष्ट्र गुजरात) की सती सोनल (राणक) का कालजयी आख्यान को पूरी मार्मिकता के साथ गाकर 


दोहा लोक मानस में अम्र हो गया। कथा यह कि कालरी के देवरा राजपूत की अपूर्व सुन्दरी कन्या सोनल 

अणहिल्ल्पुर पाटण नरेश जयसिंह (संवत ११४२-११९९) की वाग्दत्ता थी। जयसिंह को मालवा पर आक्रमण में 

उलझा पाकर उसके प्रतिद्वंदी गिरनार नरेश रानवघण खंगार ने पाटण पर हमला कर सोनल का अपहरण कर 

उससे बलपूर्वक विवाह कर लिया. मर्माहत जयसिंह ने बार-बार खंगार पर हमले किए पर उसे हरा नहीं सका। 

अंततः खंगार के भांजों के विश्वासघात के कारन वह अपने दो लड़कों सहित पकड़ा गया। जयसिंह ने तीनों को 

मरवा दिया। यह जानकर जयसिंह के प्रलोभनों को ठुकराकर सोनल वधवाण के निकट भोगावा नदी के 

किनारे सती हो गयी। अनेक लोक गायक विगत ९०० वर्षों से सती सोनल की कथा सोरठों (दोहा का जुड़वाँ 

छंद) में गाते आ रहे हैं-


वढी तऊं वदवाण, वीसारतां न वीसारईं.


सोनल केरा प्राण, भोगा विहिसऊँ भोग्या. 


दोहा की दुनिया से जुड़ने के लिए उत्सुक रचनाकारों को दोहा की विकास यात्रा की झलक दिखने का उद्देश्य 


यह है कि वे इस सच को जान और मान लें कि हर काल की अपनी भाषा होती है और आज के दोहाकार को 

आज की भाषा और शब्द उपयोग में लाना चाहिए। अब निम्न दोहों को पढ़कर आनंद लें- 


कबिरा मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर.

पाछो लागे हरि फिरे, कहत कबीर-कबीर.


असन-बसन सुत नारि सुख, पापिह के घर होय.

संत समागम राम धन, तुलसी दुर्लभ होय. 


बांह छुड़ाकर जात हो, निबल जान के मोहि.

हिरदै से जब जाइगो, मर्द बदौंगो तोहि. - सूरदास 


पिय सांचो सिंगार तिय, सब झूठे सिंगार.

सब सिंगार रतनावली, इक पियु बिन निस्सार.


अब रहीम मुस्किल पडी, गाढे दोऊ काम.


सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिले न राम.


रोला और सोरठा 



सोरठा में दो पद, चार चरण, प्रत्येक पद-भार २४ मात्रा तथा ११ - १३ पर यति रोला की ही तरह होती है 


किन्तु रोला में विषम चरणों में गुरु-लघु चरणान्त बंधन नहीं होता जबकि सोरठा में होता है.


सोरठा तथा रोला में दूसरा अंतर पदान्त का है. रोला के पदांत या सम चरणान्त में दो गुरु होते हैं जबकि 

सोरठा में ऐसा होना अनिवार्य नहीं है.


सोरठा विषमान्त्य छंद है, रोला नहीं अर्थात सोरठा में पहले - तीसरे चरण के अंत में तुक साम्य अनिवार्य है, 

रोला में नहीं.


इन तीनों छंदों के साथ गीति काव्य सलिला में अवगाहन का सुख अपूर्व है.



दोहा के पहले-दूसरे और तीसरे-चौथे चरणों का स्थान परस्पर बदल दें अर्थात दूसरे को पहले की जगह तथा 


पहले को दूसरे की जगह रखें. इसी तरह चौथे को तीसरे की जाह तथा तीसरे को चौथे की जगह रखें तो 

रोला बन जायेगा. सोरठा में इसके विपरीत करें तो दोहा बन जायेगा. दोहा और सोरठा के रूप परिवर्तन से 

अर्थ बाधित न हो यह अवश्य ध्यान रखें 


दोहा: काल ग्रन्थ का पृष्ठ नव, दे सुख-यश-उत्कर्ष.

करनी के हस्ताक्षर, अंकित करें सहर्ष.


सोरठा- दे सुख-यश-उत्कर्ष, काल-ग्रन्थ का पृष्ठ नव.


अंकित करे सहर्ष, करनी के हस्ताक्षर.


सोरठा- जो काबिल फनकार, जो अच्छे इन्सान.


है उनकी दरकार, ऊपरवाले तुझे क्यों?


दोहा- जो अच्छे इन्सान है, जो काबिल फनकार.

ऊपरवाले तुझे क्यों, है उनकी दरकार?


दोहा तथा रोला के योग से कुण्डलिनी या कुण्डली छंद बनता है.


****************

laghukatha

लघुकथा 
बर्दाश्तगी  
*
एक शायर मित्र ने आग्रह किया कि मैं उनके द्वारा संपादित किये जा रहे हम्द (उर्दू काव्य-विधा जिसमें परमेश्वर की प्रशंसा में की गयी कवितायेँ) संकलन के लिये कुछ रचनाएँ लिख दूँ, साथ ही जिज्ञासा भी की कि  इसमें मुझे, मेरे धर्म या मेरे धर्मगुरु को आपत्ति तो न होगी? मैंने तत्काल सहमति देते हुए कहा कि यह तो मेरे लिए ख़ुशी का वायस (कारण) है 

कुछ दिन बाद मित्र आये तो मैंने लिखे हुए हम्द सुनाये, उन्होंने प्रशंसा की और ले गये 

कई दिन यूँ ही बीत गये, कोई सूचना न मिली तो मैंने समाचार पूछा, उत्तर मिला वे सकुशल हैं पर किताब के बारे में मिलने पर बताएँगे। एक दिन वे आये कुछ सँकुचाते हुए। मैंने कारण पूछा तो बताया कि उन्हें मना कर दिया गया है कि अल्लाह के अलावा किसी और की तारीफ में हम्द नहीं कहा जा सकता जबकि मैंने अल्लाह के साथ- साथ चित्रगुप्त जी, शिव जी, विष्णु जी, ईसा मसीह, गुरु नानक, दुर्गा जी, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी, गणेश जी व भारत माता पर भी हम्द लिख दिये थे। कोई बात नहीं, आप केवल अल्लाह पर लिख हम्द ले लें। उन्होंने बताया कि किसी गैरमुस्लिम द्वारा अल्लाह पर लिख गया हम्द भी क़ुबूल नहीं किया गया

किताब तो आप अपने पैसों से छपा रहे हैं फिर औरों का मश्वरा मानें या न मानें यह तो आपके इख़्तियार में है -मैंने पूछा

नहीं, अगर उनकी बात नहीं मानूँगा तो मेरे खिलाफ फतवा जारी कर  हुक्का-पानी बंद दिया जाएगा। कोई मेरे बच्चों से शादी नहीं करेगा -वे चिंताग्रस्त थे। 

अरे भाई! फ़िक्र मत करें, मेरे लिखे हुए हम्द लौटा दें, मैं कहीं और उपयोग कर लूँगा। मैंने उन्हें राहत देने के लिए कहा

उन्हें तो कुफ्र कहते हुए ज़ब्त कर लिया गया। आपकी वज़ह से मैं भी मुश्किल में पड़ गया -वे बोले

कैसी बात करते हैं? मैं आप के घर तो गया नहीं था, आपकी गुजारिश पर ही मैंने लिखे, आपको ठीक न लगते तो तुरंत वापिस कर देते। आपके यहां के अंदरूनी हालात से मुझे क्या लेना-देना? मुझे थोड़ा गरम होते देख वे जाते-जाते फिकरा कस गये 'आप लोगों के साथ यही मुश्किल है, बर्दाश्तगी का माद्दा ही नहीं है।' 

***

दिव्य नर्मदा हिंदी पत्रिका divyanarmada Hindi patrika : sahishnuta

दिव्य नर्मदा हिंदी पत्रिका divyanarmada Hindi patrika : sahishnuta: अब तो मानेंगे कि देश में घट रही है सहिष्णुता -  * सहिष्णुता के प्रश्न पर आक्रामकता अख्तियार करनेवाले और अभद्र भाषा बोलनेवाले अब बगल...

sahishnuta

अब तो मानेंगे कि देश में घट रही है सहिष्णुता - 
*

सहिष्णुता के प्रश्न पर आक्रामकता अख्तियार करनेवाले और अभद्र भाषा बोलनेवाले अब बगलें झाँकते नजर आयेंगे। पिछले दिनों विश्वख्यात संगीतकार ए. आर. रहमान ने उनके खिलाफ फतवा जरी होने की घटना का ज़िक्र कर सहिष्णुता कम होने की शिकायत की। लोगों को नज़रें आमिर की बात पर दिए गए समर्थन पर टिक गयीं किन्तु फतवे की बात भूल गये। क्या बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद् इस फतवे के समर्थन में है? यदि नहीं हैं तो खुलकर बोलते क्यों नहीं? इतना ही डर लगता है तो चुप रहें वातावरण ख़राब न करें।
केरल की एक महिला पत्रकार वीपी राजीना जमात-ए-इस्लामी के मलयाली दैनिक मध्यमम में उप-संपादक हैं। उन्होंने 21 नवंबर २०१५ को फेसबुक पर कोझीकोड के सुन्नी मदरसा में लड़कों के साथ उस्ताद (टीचर) द्वारा यौन शोषण का मामला उठाया तथा जिसमें उन्होंने मदरसे में अपनी दो दशक पहले की जिंदगी का हवाला देते हुए लिखा था कि कैसे मदरसों में टीचर छात्रों का यौन उत्पीड़न करते थे? उन्होंने लिखा, ‘जब मैं पहली क्लास में पहली बार मदरसे गई तो वहाँ मौजूद अधेड़ शिक्षक ने पहले तो सभी लड़कों को खड़ा किया और बाद में उन्हें पैंट खोलकर बैठने को कहा। इसके बाद वह हर सीट पर गये और और गलत इरादे से उनके प्राइवेट पार्ट को छुआ। राजीना ने दावा किया, ‘उन्होंने यह काम आखिरी छात्र को छेड़ने के बाद ही बंद किया। राजीना ने यह भी कहा था कि खुद उन्होंने मदरसा में 6 साल तक पढ़ाई की और वे जानती थीं कि उस्ताद लड़कियों को भी नहीं बख्शते थे। उन्होंने इस मामले में एक घटना का जिक्र भी किया, जिसमें बताया कि किस तरह से एक उम्रदराज उस्ताद (टीचर) ने बिजली गुल होने के दौरान क्लास में नाबालिग लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार किया था। ज्या‍दातर छात्राएं डर की वजह से कुछ नहीं बोलती थीं। कोई छात्र या छात्रा आवाज उठाने की कोशिश करता भी था तो उसे धमकी दे कर डराया धमकाया जाता था।

इस पोस्ट के बाद राजीना मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गई हैं, न केवल उनके फेसबुक अकाउंट को ब्लॉक करा दिया गया बल्कि मुस्लिम कट्टरपंथियों से लगातार जान से मारने की धमकियाँ भी मिल रही हैं। क्या इस बहादुर महिला पत्रकार और रहमान के साथ खड़े होने की हिम्मत दिखा सकेंगे हम भारतीय??
इस जज्बे और हौसले को सलाम।

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

tulyayogita alankar

अलंकार सलिला: ३२ 

तुल्ययोगिता अलंकार


तुल्ययोगिता में क्रिया, या गुण मिले समान 
*


*


जब उपमेयुपमान में, क्रिया साम्य हो मित्र.

तुल्ययोगिता का वहाँ, अंकित हो तब चित्र.

तुल्ययोगिता में क्रिया, या गुण मिले समान.

एक धर्म के हों 'सलिल', उपमेयो- उपमान..

जिन अलंकारों में क्रिया की समानता का चमत्कारपूर्ण वर्णन होता है, वे क्रिया साम्यमूलक अलंकार कहे जाते हैं 
ये पदार्थगत या गम्यौपम्याश्रित अलंकार भी कहे जाते हैं. इस वर्ग का प्रमुख अलंकार तुल्ययोगिता अलंकार है

जहाँ प्रस्तुतों और अप्रस्तुतों या उपमेयों और उपमानों में गुण या क्रिया के आधार पर एक धर्मत्व की स्थापना  

की जाए वहाँ तुल्ययोगिता अलंकार होता है 

जब अनेक प्रस्तुतों या अनेक अप्रस्तुतों को एक ही (सामान्य / कॉमन) धर्म से अन्वित किया जाए तो वहाँ तुल्य 

योगिता अलंकार होता है


उदाहरण:

१. गुरु रघुपति सब मुनि मन माहीं। मुदित भये पुनि-पुनि पुलकाहीं

यहाँ विश्वामित्र जी, राम जी, और मुनियों इस सभी प्रस्तुतों का एक समान धर्म मुदित और पुलकित होना है 

२. सब कर संसय अरु अज्ञानू । मंद महीपन्ह कर अभिमानू

    भृगुपति केरि गरब-गरुआई। सुर-मुनिबरन्ह केरि कदराई 

    सिय कर सोच जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुःख-दावा

    संभु-चाप बड़ बोहित पाई। चढ़े जाइ सब संग बनाई

यहाँ अनेक अप्रस्तुतों (राजाओं, परशुराम, देवतनों, मुनियों, सीता, जनक, रानियों) का एक समान धर्म शिव धनुष रूपी 

जहाज पर चढ़ना है राम ने शिव धनुष भंग किया तो सब यात्री अर्थात भय के कारण (सबका संशय और अज्ञान, 

दुष्ट राजाओं का अहंकार, परशुराम का अहं, देवों  व मुनियों का डर, सीता की चिंता, जनक का पश्चाताप, रानियों 

की दुखाग्नि) नष्ट हो गये

३. चन्दन, चंद, कपूर नव, सित अम्भोज तुषार 
    
    तेरे यश के सामने, लागें मलिन अपार

यहाँ चन्दन, चन्द्रमा, कपूर तथा श्वेत कमल व तुषार इन अप्रस्तुतों (उपमानों) का एक ही धर्म 'मलिन लगना' है

४. विलोक तेरी नव रूप-माधुरी, नहीं किसी को लगती लुभावनी
   
    मयंक-आभा, अरविंद मालिका, हंसावली, हास-प्ररोचना उषा

यहाँ कई अप्रस्तुतों का एक ही धर्म 'लुभवना न लगना' है 

५. कलिंदजा के सुप्रवाह की छटा, विहंग-क्रीड़ा, कलनाद माधुरी

    नहीं बनाती उनको विमुग्ध थीं, अनूपता कुञ्ज-लता-वितान की

६. सरोवरों की सुषमा, सुकंजता सुमेरु की, निर्झर की सुरम्यता

    न थी यथातथ्य उन्हें विमोहती, अनंत-सौंदर्यमयी वनस्थली

७. नाग, साँप, बिच्छू खड़े, जिसे करें मतदान

   वह कुर्सी पा दंश दे, लूटे कर अभिमान

तुल्ययोगिता अलंकार के चार प्रमुख  प्रकार हैं-

अ. प्रस्तुतों या उपमेयों की एकधर्मता:

१. मुख-शशि निरखि चकोर अरु, तनु पानिप लखु मीन

    पद-पंकज देखत भ्रमर, होत नयन रस-लीन

२. रस पी कै सरोजन ऊपर बैठि दुरेफ़ रचैं बहु सौंरन कों

    निज काम की सिद्धि बिचारि बटोही चलै उठि कै चहुं ओरन को

    सब होत सुखी रघुनाथ कहै जग बीच जहाँ तक जोरन को

    यक सूर उदै के भए दुःख होत चोरन और चकोरन को

आ. अप्रस्तुतों या उपमानों में एकधर्मता:

१. जी के चंचल चोर सुनि, पीके मीठे बैन

    फीके शुक-पिक वचन ये, जी के लागत हैं न

२. बलि गई लाल चलि हूजिये निहाल आई हौं लेवाइ कै यतन बहुबंक सों

    बनि आवत देखत ही बानक विशाल बाल जाइ न सराही नेक मेरी मति रंक सों

    अपने करन करतार गुणभरी कहैं रघुनाथ करी ऐसी दूषण के संक सों

    जाकी मुख सुषमा की उपमा से न्यारे भए जड़ता सो कमल कलानिध कलंक सों

इ. गुणों की उत्कृष्टता में प्रस्तुत की एकधर्मिता:

१. शिवि दधीचि के सम सुयस इसी भूर्ज तरु ने लिया

    जड़ भी हो कर के अहो त्वचा दान इसने दिया

यहाँ भूर्ज तरु को शिवि तथा दधीचि जैसे महान व्यक्तियों के समान उत्कृष्ट गुणोंवाला बताया गया है

ई. हितू और अहितू दोनों के साथ व्यवहार में एकधर्मता:

१. राम भाव अभिषेक समै जैसा रहा,

   वन जाते भी समय सौम्य वैसा रहा

   वर्षा हो या ग्रीष्म सिन्धु रहता वही,

   मर्यादा की सदा साक्षिणी है मही

२. कोऊ काटो क्रोध करि, कै सींचो करि नेह

    बढ़त वृक्ष बबूल को, तऊ दुहुन की देह
                                                                             ..... निरंतर 

******

गीत

एक रचना:
*
चढ़ा, बैठ फिर उतर रहा है 
ये पहचाना, 
वो अनजाना 
दुनिया एक मुसाफिर खाना 
*
साँसों का कर सफर मौन रह
औरों की सुन फिर अपनी कह
हाथ आस का छोड़ नहीं, गह
मत बन गैरों का दीवाना
दुनिया एक मुसाफिर खाना
*
जो न काम का उसे बाँट दे
कोई रोके डपट-डाँट दे
कंटक पथ से बीन-छाँट दे
बन मधुकर कुछ गीत सुनाना
दुनिया एक मुसाफिर खाना
*
कौन न माँगे? सब फकीर हैं
केवल वे ही कुछ अमीर हैं
जिनके मन रमते कबीर हैं
ज्यों की त्यों चादर धर जाना
दुनिया एक मुसाफिर खाना
*
गैर आज, कल वही सगा है
रिश्ता वह जो नेह पगा है
साये से ही पायी दगा है
नाता मन से 'सलिल' निभाना
दुनिया एक मुसाफिर खाना
*

एक रचना

एक रचना:
*
आत्म मोह से
रहे ग्रस्त जो
उनकी कलम उगलती विष है
करें अनर्थ
अर्थ का पल-पल
पर निन्दाकर
हँस सोते हैं
*
खुद को
कहते रहे मसीहा
औरों का
अवदान न मानें
जिसने गले लगाया उस पर
कीच डालने का हठ ठानें
खुद को नहीं
तोलते हैं जो
हल्कापन ही
जिनकी फितरत
खोल न पाते
मन की गाँठें
जो पाया आदर खोते हैं
*
मनमानी
व्याख्याएँ  करते
लिखें उद्धरण
नकली-झूठे
पढ़ पाठक, सच समझ
नहीं क्यों
ऐसे लेखक ऊपर थूके?
सबसे अधिक
बोलते हैं वे
फिर भी शिकवा
बोल न पाए
ऐसे वक्ता
अपनी गरिमा खो
जब भी मिलते रोते हैं
*

बुधवार, 25 नवंबर 2015

लघु कथा

लघु कथा-
दोषी कौन?
*
कहते हैं अफवाहें पर लगाकर उगती हैं और उनसे फ़ैली गलतफहमी को दहशत बनते देर नहीं लगती। ऐसी ही कुछ दहशत मेरी पत्नी के मन में समा गयी। यह जानते हुए भी कि मैं उसकी बात से सहमत नहीं होऊँगा उसे मुझसे बात कहनी हो पड़ी क्योंकि उसके मत में वह बच्चों की सुरक्षा से जुडी थी। माँ बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं कर गुजरती, यहाँ तो बात सिर्फ मेरी नाराजी की थी।  

पिछले कुछ दिनों से सांप्रदायिक तनाव के चर्चे सुनकर उसने सलाह दी कि हमें स्थान परिवर्तन करने पर विचार करना चाहिए। हम दो भिन्न धर्मों के हैं, प्रेम विवाह करने के कारण हमारे रिश्तेदार संबंध तोड़ बैठे हैं। दोनों की नौकरी के कारण बच्चों को घर पर अकेला भी रहना होता है और पडोसी हमसे भिन्न धर्म के हैं। मैंने उसे विश्वास में लेकर मना लिया कि वह पड़ोसियों पर भरोसा रखे और बच्चों से यह बात न करे। 

दफ्तर में मैने अपने सहयोगी से अन्य बातों की तरह इस बात की चर्चा की। दुर्भाग्य से वहाँ एक पत्रकार बैठा था, उसने मोबाइल पर मेरी बात का ध्वन्यांकन कर लिया और भयादोहन करने का प्रयास किया। मेरे न डरने पर उसने नमक-मिर्च लगाकर अधिकारी और नेता से चुगली कर मेरा स्थानांतरण करा दिया। स्थानीय अखबार और खबर चैनल पर मेरे विरुद्ध प्रचार होने लगा। मेरे घर के बाहर लोग एकत्र होकर नारेबाजी करने लगे तो बहसों ने घबराकर मुझे और पत्नी को फोन किया। हमारे घर पहुँचने के पहले ही एक पडोसी पीछे की गली से अपने घर ले गये वे बच्चों को भी ले आये थे। 

बहार कुछ लोग मेरे पक्ष में कुछ विपक्ष में बहस और नारेबाजी करने लगे। मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि दोषी कौन है? 

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