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बुधवार, 11 जून 2014

chhand salila: anugeet chhand -sanjiv

छंद सलिला:
अनुगीतRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति१६-१०, पदांत लघु 

लक्षण छंद:

    अनुगीत सोलह-दस कलाएँ , अंत लघु स्वीकार
    बिम्ब रस लय भाव गति-यतिमय , नित रचें साभार     
    
उदाहरण:

१. आओ! मैं-तुम नीर-क्षीरवत , एक बनें मिलकर
   देश-राह से शूल हटाकर , फूल रखें चुनकर     
   आतंकी दुश्मन भारत के , जा न सकें बचकर      
   गढ़ पायें समरस समाज हम , रीति नयी रचकर    

२. धर्म-अधर्म जान लें पहलें , कर्तव्य करें तब            
    वर्तमान को हँस स्वीकारें , ध्यान धरें कल कल
    किलकिल की धारा मोड़ें हम , धार बहे कलकल 
    कलरव गूँजे दसों दिशा में , हरा रहे जंगल    

३. यातायात देखकर चलिए , हो न कहीं टक्कर          
    जान बचायें औरों की , खुद आप रहें बचकर  
    दुर्घटना त्रासद होती है , सहें धीर धरकर  
    पीर-दर्द-दुःख मुक्त रहें सब , जीवन हो सुखकर
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

रविवार, 8 जून 2014

छंद सलिला:
झूलनाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति ७-७-७-५, पदांत गुरु लघु 

लक्षण छंद:

    हरि! झूलना , मत भूलना , राधा कहें , हँस झूम
    घन श्याम को , झट दामिनी , ने लिया कर , भर चूम    
    वेणु सुर ऋषि , वचन सुनने , लास-रास क/रें मौन 
    कौन किसका , कब हुआ है? , बोल सकता / रे! कौन?   
      
उदाहरण:

१. मैं-तुम मिले , खो, गुम हुए , फिर हम बने , इकजान
   पद-पथ मिले , मंज़िल हुए , हमदम हुए , अनजान   
   गेसू खुले , टेसू खिले , सपने हुए , साकार     
   पलकें खुलीं , अँखियाँ मिलीं , अपने हुए , दिलदार   

२. पथ पर चलें , गिर-उठ बढ़ें , नभ को छुएँ , मिल साथ           
    प्रभु! प्रार्थना , आशीष दें , ऊँचा उठा , हो माथ
    खुद से न आँ/खें चुराने , की घड़ी आ/ये तात!
    हौसलों की , फैसलों से , मत हो सके , रे मात   

३. देश-गौरव , से नहीं है , अधिक गौरव , सच मान          
    देश हित मर-मर अमर हों , नित्य शहीद, हठ ठान  
    है भला या , है बुरा- है , देश अपना , मजबूत 
    संभावना , सच करेंगे , संकल्प है , शुभ-पूत

                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
rashtreey kayasth mahaparishad sammelan cuttack 6-7-2014
sasneh amantran

राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद
(मानव कल्याण हेतु समर्पित संस्थाओं/सज्जनों का परिसंघ, पंजीयन क्रमांक: ०८७४/२०१३)
अध्यक्ष: त्रिलोकीप्रसाद वर्मा रामसखी निवास, पड़ाव पोखरलेन, आमगोला, मुजफ्फरपुर-८४२००१ बिहार ०९४३१२३८६२३, ०६२१-२२४३९९९, trilokee.verma@gmail.com
महामंत्री : इंजी. संजीव वर्मा'सलिल', २०४ , विजय अपार्टमेन्ट, नेपियर टाउन, जबलपुर, ४८२००१ मध्य प्रदेश ९४२५१ ८३२४४ , ०७६१ २४१११३१, salil.sanjiv@gmail.com
कोषाध्यक्ष सह प्रशासनिक सचिव: अरबिंद कुमार सिन्हा जे. ऍफ़. १/७१, ब्लोक ६, मार्ग १० राजेन्द्र नगर पटना ८०००१६ ०९४३१० ७७५५५, ०६१२ २६८४४४४, arbindsinha@yahoo.com
।  कायास्थित ईश का, अंश हुआ कायस्थ ।
।। सब सबके सहयोग से, हों उन्नत आत्मस्थ ।।
================
पत्र क्रमांक: ४८५ महा/राकाम/२०१४                   जबलपुर, दिनाँक:​ ७-६-२०१४
            राष्ट्रीय कायस्थ महासभा अर्धवार्षिक सम्मेलन : २०१३-१४ : अधिसूचना
. दिनांक: ५-६ जुलाई २०१४,   स्थान:श्री रामचन्द्र भवन, म्युनिसिपैल्टी कॉम्प्लेक्स,कटक।
संयोजक:प्रो. डॉ. नीलमणि दास, उपाध्यक्ष रा.का.म., चलभाष:०९४३७३१३६६७, ई मेल: Nilamani Das
कार्यक्रम विवरण : दिनांक : ५ - ७- २०१४
(अ)  कार्यकारिणी/संगठन समिति समिति बैठक  : अपरान्ह ४.०० बजे से संध्या ६.०० बजे ।
[संविधान कंडिका १२  के अनुसार उपस्थिति प्रार्थनीय : अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री, सचिव, संयुक्त सचिव, कोषाध्यक्ष, संगठन सचिव, संयुक्त संगठन सचिव, मुख्य समन्वयक, संयोजक, प्रकोष्ठ प्रभारी आदि समस्त पदाधिकारी तथा सम्बद्ध संस्था प्रतिनिधि।]
कार्यवाही : सञ्चालन महामंत्री द्वारा, सहायक : संगठन सचिव, कोषाध्यक्ष
कार्यावलि: १. देवाधिदेव श्री चित्रगुप्त अर्चना।
२. गत सञ्चालन समिति/संगठन समिति/सामान्य समिति बैठकों के प्रतिवेदनों तथा पदाधिकारियों के लिखित प्रतिवेदनों पर विचार।
३. आय-व्यय विवरण पारित किया जाना।
४. बजट प्रस्तावों पर विचार  / अनुशंसा।
५. सञ्चालन समिति बैठक हेतु प्राप्त लिखित प्रतिवेदनों प्रस्तावों/सुझावों/कार्यक्रमों/आमंत्रणों/आवेदनों/सम्मान प्रस्तावों पर विचार व अनुशंसा। आगामी त्रिमास हेतु लक्ष्य निर्धारण।  
६. अन्य विषय अध्यक्ष की अनुमति से।
७. महामंत्री/अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन व समापन।
संध्या ६ बजे: स्वल्पाहार-चाय।
(आ)  सञ्चालन समिति बैठक  : अपरान्ह ६.३० बजे से रात्रि ८.०० बजे ।
[संविधान कंडिका ९-११ के अनुसार उपस्थिति प्रार्थनीय : अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री, सचिव, संयुक्त सचिव, कोषाध्यक्ष, संगठन सचिव, संयुक्त संगठन सचिव, समन्वयक, कार्यकारी सदस्य]
 कार्यवाही सञ्चालन महामंत्री द्वारा, सहायक: मुख्यालय सचिव, कार्यालय सचिव, कोषाध्यक्ष    
: कार्यावलि :
१. देवाधिदेव श्री चित्रगुप्त वंदना ।
२. गत सञ्चालन समिति बैठक के कार्यवाही प्रतिवेदन, सञ्चालन समिति सदस्यों / पदाधिकारियों (संगठन सचिव, कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष,  कार्यालय सचिव, मुख्यालय सचिव आदि) के प्रतिवेदनों, कार्यकारिणी समिति की लिखित अनुशंसाओं, प्राप्त लिखित अवदानों पर विचार व निर्णय ।
३. सामान्य सम्मेलन में पारित कराने हेतु वार्षिक बजट को अन्तिम रूप देना।
४. पंजीयक को प्रेषित करने हेतु संचालन समिति का अनुमोदन।
५. आगामी सम्मेलनों, बैठकों व प्रतिभा-सम्मान हेतु प्राप्त लिखित प्रस्तावों पर निर्णय।
६.  सामान्य सभा हेतु प्रतिवेदनों, प्रस्तावों, कार्यक्रमों, प्रमाणपत्रों आदि का अनुमोदन।
७. महामंत्री / अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन व समापन।
रात्रि ८ बजे: साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम।       रात्रि ९.३० बजे: अतिथि भोज।
दिनांक : ६ - ७- २०१४
(अ)  प्रातः ८ बजे: स्वल्पाहार, चाय ।
(आ) सामान्य सम्मेलन: प्रातः ९ बजे से ४ बजे
संविधान कंडिका १२ के अनुसार उपस्थिति प्रार्थनीय : संस्था के समस्त पदाधिकारी व सदस्य, सम्बद्ध संस्थापदाधिकारी/सदस्य, समाज के सभी सदस्य व अन्य समाजों के कायस्थ मित्र.
(क) स्वागत / परिचय सत्र: सञ्चालन सचिव स्वागत समिति द्वारा
१. ध्वजारोहण तथा देवाधिदेव श्री चित्रगुप्त पूजन, आरती ।
२. संयोजक द्वारा अतिथि/ पदाधिकारी स्वागत व स्वागत भाषण, आयोजन पर प्रकाश।
३. अतिथि / राष्ट्रीय पदाधिकारी परिचय ।
४. सम्बद्ध तथा स्थानीय संस्था प्रतिनिधि परिचय।
५. उपस्थितों द्वारा आत्म परिचय ।
६.  महामंत्री / अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन।
७. अतिथियों का सम्बोधन तथा संयोजक द्वारा आभार।
(ख) कार्यवाही सत्र: सञ्चालन महामंत्री द्वारा
१. महामंत्री द्वारा सत्र प्रक्रिया की जानकारी।
२. महापरिषद का लेखा-जोखा, वार्षिक बजट, नियुक्तियाँ, बैठक प्रतिवेदनों को पारित करना।
३. उपस्थित सदस्यों से प्राप्त लिखित प्रतिवेदनों / सुझावों आदि पर विचार व निर्णय।
३.  स्थानीय संस्थाओं, आयोजनों, समस्याओं पर चर्चा व निर्णय।
४.  परिचर्चा: '२१ वीं सदी में जातिगत आरक्षण और कायस्थ समाज।
५.  महामंत्री / अध्यक्ष द्वारा सम्बोधन ।
अपरान्ह १.०० बजे: बिरादरी भोज।
(ग) समापन सत्र: अपरान्ह २.०० बजे: सञ्चालन संयोजक द्वारा
१. अतिथि आमंत्रण।                        २. प्रतिभा पुरस्कार / सम्मान।
३. अतिथियों का सम्बोधन।                ४. अतिथियों द्वारा आयोजकों के प्रति आभार।
५. संयोजक द्वारा अतिथियों के प्रति आभार व समापन।
​salil.sanjiv@gmail.com                                                                                  ​
​http://divyanarmada.blogspot.in                                               संजीव वर्मा 'सलिल'
​facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'                                       महामंत्री 

शनिवार, 7 जून 2014

chhand salila: kamroop chhand -sanjiv

छंद सलिला:
कामरूपRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद मात्रा २६, यति ९-७-१०, पदांत गुरु लघु 

लक्षण छंद:

    कामरूप छंद , दे आनंद , सँग खुशियां अनंत
    मुँहदेखा नहीं , सच हमेशा , खरा कहे ज्यों संत   
    नौ निधि सात सुर , दस दिशाएँ , करें सुकीर्ति गान 
    अंत में अंतर , भुला लघु-गुरु , लगे सदा समान    
      
उदाहरण:

१. गले लग जाओ , प्रिये! आओ , करो पूरी चाह
   गीत मिल गाओ , प्रिये! आओ , मिटे सारी दाह  
   दूरियाँ कम कर , मुस्कुराओ , छिप भरो मत आह    
   मन मिले मन से , खिलखिलाओ , करें मिलकर वाह  

२. चलें विद्यालय , पढ़ें-लिख-सुन , गुनें रहकर साथ          
    करें जुटकर श्रम , रखें ऊँचा , हमेशा निज माथ
    रोप पौधे कुछ , सींच हर दिन , दें धरा को हास
    प्रदूषण हो कम , हँसे जीवन / कर सदैव प्रयास 

३. ईमान की हो , फिर प्रतिष्ठा , प्रयासों की जीत
    दुश्मनों की हो , पराजय ही / विजय पायें मीत
    आतंक हो अब , खत्म नारी , पा सके सम्मान
    मुनाफाखोरी ,  न रिश्वत हो , जी सके इंसान

४. है क्षितिज के उस ओर भी , सम्भावना-विस्तार
    है ह्रदय के इस ओर भी , मृदु प्यार लिये बहार
    है मलयजी मलय में भी , बारूद की दुर्गंध
    है प्रलय की पदचाप सी , उठ रोक- बाँट सुगंध   
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand salila: geeta chhand -sanjiv

   ​​​

      ​
छंद सलिला:

गीता Roseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद - मात्रा २६ मात्रा, यति १४ - १२, पदांत गुरु लघु.

लक्षण छंद:

    चौदह भुवन विख्यात है , कुरु क्षेत्र गीता-ज्ञान
    आदित्य बारह मास नित , निष्काम करे विहान  
    अर्जुन सदृश जो करेगा , हरी पर अटल विश्वास  
    गुरु-लघु न व्यापे अंत हो , हरि-हस्त का आभास    
     संकेत: आदित्य = बारह 
उदाहरण:

१. जीवन भवन की नीव है , विश्वास- श्रम दीवार
   दृढ़ छत लगन की डालिये , रख हौसलों का द्वार   
   ख्वाबों की रखें खिड़कियाँ , नव कोशिशों का फर्श   
   सहयोग की हो छपाई , चिर उमंगों का अर्श 

२. अपने वतन में हो रहा , परदेश का आभास         
    अपनी विरासत खो रहे , किंचित नहीं अहसास
    होटल अधिक क्यों भा रहा? , घर से हुई क्यों ऊब?
    सोचिए! बदलाव करिए , सुहाये घर फिर खूब 

३. है क्या नियति के गर्भ में , यह कौन सकता बोल?
    काल पृष्ठों पर लिखा क्या , कब कौन सकता तौल?
    भाग्य में किसके बदा क्या , पढ़ कौन पाया खोल?
    कर नियति की अवमानना , चुप झेल अब भूडोल।

४. है क्षितिज के उस ओर भी , सम्भावना-विस्तार
    है ह्रदय के इस ओर भी , मृदु प्यार लिये बहार
    है मलयजी मलय में भी , बारूद की दुर्गंध
    है प्रलय की पदचाप सी , उठ रोक- बाँट सुगंध   
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

शुक्रवार, 6 जून 2014

chhand salila: geetika chhand -sanjiv

छंदRose सलिला: 

गीतिका छंद 

संजीव 
*
छंद लक्षण: प्रति पद २६ मात्रा, यति १४-१२, पदांत लघु गुरु 

लक्षण छंद: 

    लोक-राशि गति-यति भू-नभ , साथ-साथ ही रहते 
    लघु-गुरु गहकर हाथ- अंत , गीतिका छंद कहते 

उदाहरण:

​​१. चौपालों में सूनापन , खेत-मेड में झगड़े 
    उनकी जय-जय होती जो , धन-बल में हैं तगड़े 
    खोट न अपनी देखें वे, अपनी-अपनी हाँकें
    कोई फर्क नहीं पड़ता , अगड़े हों या पिछड़े

२. आइए, फरमाइए भी , ह्रदय में जो बात है       
   
​ ​
क्या पता कल जीत किसकी , और किसकी मात है  
   
​ ​
झेलिये धीरज धरे रह , मौन जो हालात है  
   
​ ​
एक सा रहता समय कब
​?​
 , रात लाती प्रात है

​३. ​सियासत ने कर दिया है , विरासत से दूर क्यों?
    हिमाकत ने कर दिया है , अजाने मजबूर यों
    विपक्षी परदेशियों से , अधिक लगते दूर हैं 
    दलों की दलदल न दल दे, आँख रहते सूर हैं 
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

गुरुवार, 5 जून 2014

chhand salila: shankar chhand -sanjiv



छंद सलिला:   ​​​

शंकर छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद - मात्रा २६ मात्रा, यति १६ - १०, पदांत गुरु लघु.

लक्षण छंद:

बम बम भोले जय शिव शंकर , गौरीपति उमेश 
सोलह गुण-दस इन्द्रियपति जय , सदय हों सर्वेश  
गुरु-लघु सबका अंत तुम्हीं में , तुम्हीं सबके नाथ
सुर नर असुर झुकाते प्रभु! तव , पद पद्म में माथ  

उदाहरण:

१. जय-जय भारत भूमि सुपावन , मनुज को वरदान
   तरसें लेने जन्म देव भी , कवि करें गुणगान
   पुरवैया पछुआ मलयज हँस, करें जीवन दान
   हिमगिरि सागर रक्षक अद्भुत , हर छंद रस-खान 

२. पैर जमीं पर जमा आसमां , करों में लें थाम
    कोई निरक्षर रहे न शेष , सब पा सकें नाम  
    ख्वाब पाल जो अँखिया सोये , करे कर साकार
    हर दिल दिल से जुड़े मिटाकर , आपसी तकरार

३.दिल की दुनिया का दौलत से , जोड़ मत संबंध
   आस-प्यास का कभी हास से , हो नहीं अनुबंध
   जो पाया नाकाफी कहकर , और अधिक न जोड़
   तुझसे कम हो जहाँ उसीसे , करें तुलना-होड़
                   
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

बुधवार, 4 जून 2014

chhand salila: mdnag chhand -sanjiv



छंद सलिला:   ​​​

मदनाग छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति पद - मात्रा २५ मात्रा, यति १७ - ८

लक्षण छंद:

कलाएँ सत्रह-आठ दिखाये, नटवर अपनी   
उगल विष नाग कालिया कोसे, किस्मत अपनी 
छंद मदनाग निराशाएं कर दूर, मगन हो
मुदित मन मथुरावासी हर्षित, मोद मगन हों 

उदाहरण:

१. देश की जयकार करते रहें, विहँस हम सभी
   आत्म का उद्धार करते रहें, विहँस हम सभी
   बुरे का प्रतिकार करते रहें, विहँस हम सभी
   भले का सहकार करते रहें, विहँस हम सभी 

२. काम कुछ अच्छा करना होगा, संकल्प करें
    नाम कुछ अच्छा वरना होगा, सुविकल्प करें 
    दाम हर चीज का होता नहीं, ये सच कह दें
    जान निज देश पर निसार 'सलिल' हर कल्प करें
 
३.जीत वही पाता जो फिसलकर, उठ भी सकता
   मंज़िल मिले उसे जो सम्हलकर, शुभ कर सकता
   होता घना अँधेरा धरा पर, जब-जब बेहद
   एक नन्हा दीप खुद जलकर सब, तम हर सकता
                     
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand shastr men ankik upmaan: sanjiv

छंद शास्त्र में आंकिक उपमान:

संजीव  
*
छंद शास्त्र में मात्राओं या वर्णों  संकेत करते समय ग्रन्थों में आंकिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। ऐसे कुछ शब्द नीचे सूचीबद्ध किये गये हैं।  इनके अतिरिक्त आपकी जानकारी में अन्य शब्द हों तो कृपया, जोड़िये। 

*
एक - ॐ, परब्रम्ह 'एकोsहं द्वितीयोनास्ति', क्षिति, चंद्र, भूमि, नाथ, पति, गुरु।  

पहला - वेद ऋग्वेद, युग सतयुग, देव ब्रम्हा, वर्ण ब्राम्हण, आश्रम: ब्रम्हचर्य, पुरुषार्थ अर्थ,  
इक्का, एकाक्षी काना, एकांगी इकतरफा, अद्वैत एकत्व, 
दो - देव: अश्विनी-कुमार। पक्ष: कृष्ण-शुक्ल। युग्म/युगल: प्रकृति-पुरुष, नर-नारी, जड़-चेतन विद्या: परा-अपरा इन्द्रियाँ: नयन/आँख, कर्ण/कान, कर/हाथ, पग/पैर। लिंग: स्त्रीलिंग, पुल्लिंग  
दूसरा- वेद: सामवेद, युग त्रेता, देव: विष्णु, वर्ण: क्षत्रिय, आश्रम: गृहस्थ, पुरुषार्थ: धर्म,  
महर्षि: द्वैपायन/व्यास।  द्वैत विभाजन,  
तीन/त्रि - देव / त्रिदेव/त्रिमूर्ति: ब्रम्हा-विष्णु-महेश ऋण: देव ऋण, पितृ-मातृ ऋण, ऋषि ऋण। अग्नि: पापाग्नि, जठराग्नि, कालाग्नि। काल: वर्तमान, भूत, भविष्य। गुण:   दोष: वात, पित्त, कफ (आयुर्वेद) लोक: स्वर्ग, भू, पाताल / स्वर्ग भूलोक, नर्क त्रिवेणी / त्रिधारा: सरस्वती, गंगा, यमुना ताप: दैहिक, दैविक, भौतिक। राम: श्री राम, बलराम, परशुराम। ऋतु: पावस/वर्षा शीत/ठंड ग्रीष्म।मामा:कंस, शकुनि, माहुल।  
तीसरा- वेद: यजुर्वेदयुग द्वापर, देव: महेश, वर्ण: वैश्य, आश्रम: वानप्रस्थ, पुरुषार्थ: काम,              
त्रिकोण, त्रिनेत्र = शिव, त्रिदल बेल पत्र, त्रिशूल, त्रिभुवन, तीज, तिराहा, त्रिमुख ब्रम्हा। त्रिभुज तीन रेखाओं से घिरा क्षेत्र  
चार - युग: सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग। धाम: द्वारिका, बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम धाम। पीठ: शारदा पीठ द्वारिका, ज्योतिष पीठ जोशीमठ बद्रीधाम, गोवर्धन पीठ जगन्नाथपुरी, श्रृंगेरी पीठ। वेद: ऋग्वेद, अथर्वेद, यजुर्वेद, सामवेद।आश्रम: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास। अंतःकरण: मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार। वर्ण: ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र पुरुषार्थ: अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष। दिशा: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण फल:  अवस्था: शैशव/बचपन, कैशोर्य/तारुण्य, प्रौढ़ता, वार्धक्य।धाम: बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, द्वारिका विकार/रिपु: काम, क्रोध, मद, लोभ      
अर्णव, अंबुधि, श्रुति, 
चौथा - वेद: अथर्वर्वेदयुग कलियुग, वर्ण: शूद्र, आश्रम: सन्यास, पुरुषार्थ: मोक्ष,  
चौराहा, चौगान, चौबारा, चबूतरा, चौपाल, चौथ, चतुरानन गणेश, चतुर्भुज विष्णु, चार भुजाओं से घिरा क्षेत्र।, चतुष्पद चार पंक्ति की काव्य रचना, चार पैरोंवाले पशु, चौका रसोईघर, क्रिकेट के खेल में जमीन छूकर सीमाँ रेखा पार गेंद जाना, चार रन   
पाँच/पंच - गव्य: गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर। देव: गणेश, विष्णु, शिव, देवी, सूर्य। तत्त्व: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश। अमृत: दुग्ध, दही, घृत, मधु, नर्मदा/गंगा जल। अंग/पंचांग:   पंचनद:   ज्ञानेन्द्रियाँ: आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा  कर्मेन्द्रियाँ: हाथ,  पैर,आँख, कान, नाक। कन्या: ।, प्राण , शर: ।, प्राण: , भूत: , यक्ष: ,       
इशु:  पवन:  पांडव पाण्डु के ५ पुत्र युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल सहदेव शर/बाण: । पंचम वेद: आयुर्वेद
पंजा, पंच, पंचायत, पंचमी, पंचक, पंचम: पांचवा सुर, पंजाब/पंचनद: पाँच नदियों का क्षेत्र, पंचानन = शिव, पंचभुज पाँच भुजाओं से घिरा क्षेत्र, 
छह/षट - दर्शन: वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मीसांसा, दक्षिण मीसांसा। अंग: ।, अरि: ।, कर्म/कर्तव्य: ।, चक्र: , तंत्र: ।, रस: ।, शास्त्र: ।, राग:।, ऋतु: वर्षा, शीत, ग्रीष्म, हेमंत, वसंत, शिशिर।, वेदांग: ।,  इति:।, अलिपद:   

षडानन कार्तिकेय, षट्कोण छह भुजाओं से घिरा क्षेत्र, 
सात/सप्त - ऋषि - विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ एवं कश्यप। पुरी- अयोध्या, मथुरा, मायापुरी हरिद्वार, काशी वाराणसी  , कांची (शिन कांची - विष्णु कांची), अवंतिका उज्जैन और द्वारिका। पर्वत: ।, अंध: ।, लोक: ।, धातु: ।, सागर: ।, स्वर: सा रे गा मा पा धा नी।, रंग: सफ़ेद, हरा, नीला, पीला, लाल, काला।, द्वीप: ।, नग/रत्न: हीरा, मोती, पन्ना, पुखराज, माणिक, गोमेद, मूँगा।, अश्व: ऐरावत, 

सप्त जिव्ह अग्नि, 
सप्ताह = सात दिन, सप्तमी सातवीं तिथि, सप्तपदी सात फेरे, 
आठ/अष्ट - वसु-  धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष। योग- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। लक्ष्मी - आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य , भोग एवं योग लक्ष्मी ! सिद्धियाँ: ।, गज/नाग: । दिशा: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य।, याम: ।,  
अष्टमी आठवीं तिथि, अष्टक आठ ग्रहों का योग, अष्टांग: ।, 
अठमासा  आठ माह में उत्पन्न शिशु,  
नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री। गृह: सूर्य/रवि , चन्द्र/सोम, गुरु/बृहस्पति, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु।,  कुंद: ।, गौ: ।, नन्द: ।, निधि: ।, विविर: ।, भक्ति: ।, नग: ।, मास:  ।, रत्न ।, रंग ।, द्रव्य ।,
नौगजा नौ गज का वस्त्र/साड़ी।, नौरात्रि शक्ति  ९ दिवसीय पर्व।,  नौलखा नौ लाख का (हार)।, 
नवमी ९ वीं तिथि।,  
दस - दिशाएं: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, पृथ्वी, आकाश।, इन्द्रियाँ: ५ ज्ञानेन्द्रियाँ, ५ कर्मेन्द्रियाँ।, अवतार - मत्स्य, कच्छप, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, श्री राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दशमुख/दशानन/दशकंधर/दशबाहु रावण, दष्ठौन शिशु जन्म के दसवें दिन का उत्सव, दशमी १० वीं तिथि।, दीप: ।, दोष: ।, दिगपाल: ।  
ग्यारह रुद्र- हर, बहुरुप, त्र्यंबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभु, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा और कपाली।
एकादशी ११ वीं तिथि, 
बारह - आदित्य: धाता, मित, आर्यमा, शक्र, वरुण, अँश, भाग, विवस्वान, पूष, सविता, तवास्था और विष्णु।, ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ राजकोट, मल्लिकार्जुन, महाकाल उज्जैन, ॐकारेश्वर खंडवा, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ वाराणसी, त्र्यंबकेश्वर नासिक, केदारनाथ, घृष्णेश्वर, भीमाशंकर, नागेश्वर। मास: चैत्र/चैत,  वैशाख/बैसाख, ज्येष्ठ/जेठ, आषाढ/असाढ़  श्रावण/सावन, भाद्रपद/भादो, अश्विन/क्वांर, कार्तिक/कातिक, अग्रहायण/अगहन, पौष/पूस, मार्गशीर्ष/माघ, फाल्गुन/फागुन। राशि: मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, कन्यामेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या।, आभूषण: बेंदा, वेणी, नथ,लौंग, कुण्डल, हार, भुजबंद, कंगन, अँगूठी, करधन, अर्ध करधन, पायल. बिछिया।,
द्वादशी १२ वीं तिथि।, बारादरी ।, बारह आने। 
तेरह - भागवत: ।, नदी: ।,विश्व 
त्रयोदशी १३ वीं तिथि 
चौदह - इंद्र: ।, भुवन: ।, यम: ।, लोक: ।, मनु: ।, विद्या ।, रत्न: 
घतुर्दशी १४ वीं तिथि

पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा/परमा, द्वितीय/दूज, तृतीय/तीज, चतुर्थी/चौथ, पंचमी, षष्ठी/छठ, सप्तमी/सातें, अष्टमी/आठें, नवमी/नौमी, दशमी, एकादशी/ग्यारस, द्वादशी/बारस, त्रयोदशी/तेरस, चतुर्दशी/चौदस, पूर्णिमा/पूनो, अमावस्या/अमावस।
सोलह - षोडश मातृका: गौरी, पद्मा, शची, मेधा, सावित्री, विजय, जाया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, शांति, पुष्टि, धृति, तुष्टि, मातर, आत्म देवता। ब्रम्ह की सोलह कला: प्राण, श्रद्धा, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी, इन्द्रिय, मन अन्न, वीर्य, तप, मंत्र, कर्म, लोक, नाम।, चन्द्र कलाएं:  अमृता, मंदा, पूषा, तुष्टि, पुष्टि, रति, धृति, ससिचिनी,  चन्द्रिका, कांता, ज्योत्सना, श्री, प्रीती, अंगदा, पूर्ण, पूर्णामृता। १६ कलाओंवाले पुरुष के १६ गुण सुश्रुत शारीरिक से:  सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्राण, अपान, उन्मेष, निमेष, बुद्धि, मन, संकल्प, विचारणा, स्मृति, विज्ञान, अध्यवसाय, विषय  की उपलब्धि। विकारी तत्व: ५ ज्ञानेंद्रिय, ५ कर्मेंद्रिय तथा मन।  संस्कार: गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण, कर्णवेध, विद्यारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशांत, समावर्तन, विवाह, अंत्येष्टि। श्रृंगार: ।  
षोडशी सोलह वर्ष की, सोलह आने पूरी तरह, शत-प्रतिशत।, अष्टि: ।, 
सत्रह 
अठारह - 
उन्नीस -
बीस - कौड़ी, नख, बिसात, कृति 
चौबीस स्मृतियाँ - मनु, विष्णु, अत्रि, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगिरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, बृहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ।
पच्चीस - रजत, प्रकृति 
पचीसी = २५, गदहा पचीसी, वैताल पचीसी।, 
तीस - मास, 
तीसी तीस पंक्तियों की काव्य रचना, 
बत्तीस - बत्तीसी = ३२ दाँत ।, 
तैंतीस - सुर: ।, 
छत्तीस - छत्तीसा ३६ गुणों से युक्त, नाई। 
चालीस - चालीसा ४० पंक्तियों की काव्य रचना
पचास - स्वर्णिम, हिरण्यमय, अर्ध शती
साठ - षष्ठी
सत्तर - 
पचहत्तर - 
सौ - 
एक सौ आठ - मंत्र जाप 
सात सौ - सतसई।,  
सहस्त्र - 
सहस्राक्ष इंद्र
एक लाख - लक्ष।,
करोड़ - कोटि।, 
दस करोड़ - दश कोटि, अर्बुद।,  
अरब - महार्बुद, महांबुज, अब्ज।, 
ख़रब - खर्व ।, 
दस ख़रब - निखर्व, न्यर्बुद ।, 
३३  कोटि देवता 

*
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है, कोटि = प्रकार, एक अर्थ करोड़ भी होता। हिन्दू धर्म की खिल्ली उड़ने के लिये अन्य धर्मावलम्बियों ने यह अफवाह उडा दी कि हिन्दुओं के ३३ करोड़ देवी-देवता हैं। वास्तव में सनातन धर्म में ३३ प्रकार के देवी-देवता हैं:
० १ - १२ : बारह आदित्य- धाता, मित, आर्यमा, शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवस्वान, पूष, सविता, तवास्था और विष्णु।
१३ - २० : आठ वसु-  धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
२१ - ३१ : ग्यारह रुद्र- हर, बहुरुप, त्र्यंबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभु, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा और कपाली।


३२ - ३३: दो देव-  अश्विनी और कुमार।

रविवार, 1 जून 2014

ashta maatrik chhand : sanjiv


हिंदी के मात्रिक छंद : १
८ मात्रा के वासव जातीय छंद : अखंड, छवि/मधुभार
संजीव
*
विश्व वाणी हिंदी का छांदस कोश अप्रतिम, अनन्य और असीम है। संस्कृत से विरासत में मिले छंदों  के साथ-साथ अंग्रेजी, जापानी आदि विदेशी भाषाओँ तथा पंजाबी, मराठी, बृज, अवधी आदि आंचलिक भाषाओं/ बोलिओं के छंदों को अपनाकर तथा उन्हें अपने अनुसार संस्कारित कर हिंदी ने यह समृद्धता अर्जित की है। हिंदी छंद शास्त्र के विकास में  ध्वनि विज्ञान तथा गणित ने आधारशिला की भूमिका निभायी है।

विविध अंचलों में लंबे समय तक विविध पृष्ठभूमि के रचनाकारों द्वारा व्यवहृत होने से हिंदी में शब्द विशेष को एक अर्थ में प्रयोग करने के स्थान पर एक ही शब्द को विविधार्थों में प्रयोग करने का चलन है। इससे अभिव्यक्ति में आसानी तथा विविधता तो होती है किंतु शुद्घता नहीँ रहती। विज्ञान विषयक विषयों के अध्येताओं तथा हिंदी सीख रहे विद्यार्थियों के लिये यह स्थिति भ्रमोत्पादक तथा असुविधाकारक है। रचनाकार के आशय को पाठक ज्यों  का त्यो ग्रहण कर सके इस हेतु हम छंद-रचना में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों के साथ प्रयोग किया जा रहा अर्थ विशेष यथा स्थान देते रहेंगे।

अक्षर / वर्ण = ध्वनि की बोली या लिखी जा सकनेवाली लघुतम स्वतंत्र इकाई।
शब्द = अक्षरों का सार्थक समुच्चय।
मात्रा / कला / कल = अक्षर के उच्चारण में लगे समय पर आधारित इकाई।
लघु या छोटी  मात्रा = जिसके उच्चारण में इकाई समय लगे।  भार १, यथा अ, इ, उ, ऋ अथवा इनसे जुड़े अक्षर, चंद्रबिंदी वाले अक्षर
दीर्घ, हृस्व या बड़ी मात्रा = जिसके उच्चारण में अधिक समय लगे। भार २, उक्त लघु अक्षरों को छड़कर शेष सभी अक्षर, संयुक्त अक्षर अथवा उनसे जुड़े अक्षर, अनुस्वार (बिंदी वाले अक्षर)।
पद = पंक्ति, चरण समूह।
चरण = पद का भाग, पाद।
छंद = पद समूह।
यति = पंक्ति पढ़ते समय विराम या ठहराव के स्थान।
छंद लक्षण = छंद की विशेषता जो उसे अन्यों से अलग करतीं है।
गण = तीन अक्षरों का समूह विशेष (गण कुल ८ हैं, सूत्र: यमाताराजभानसलगा के पहले ८ अक्षरों में से प्रत्येक अगले २ अक्षरों को मिलाकर गण विशेष का मात्राभार  / वज़्न तथा मात्राक्रम इंगित करता है. गण का नाम इसी वर्ण पर होता है। यगण = यमाता = लघु गुरु गुरु = ४, मगण = मातारा = गुरु गुरु गुरु = ६, तगण = ता रा ज = गुरु गुरु लघु = ५, रगण = राजभा = गुरु लघु गुरु = ५, जगण = जभान = लघु गुरु लघु = ४, भगण = भानस = गुरु लघु लघु = ४, नगण = न स ल = लघु लघु लघु = ३, सगण = सलगा = लघु लघु गुरु = ४)।
तुक = पंक्ति / चरण के अन्त में  शब्द/अक्षर/मात्रा या ध्वनि की समानता ।
गति = छंद में गुरु-लघु मात्रिक क्रम।
सम छंद = जिसके चारों चरण समान मात्रा भार के हों।
अर्द्धसम छंद = जिसके सम चरणोँ का मात्रा भार समान तथा विषम  चरणों का मात्रा भार एक सा  हो किन्तु सम तथा विषम चरणोँ क़ा मात्रा भार समान न हों।
विषम छंद = जिसके चरण असमान हों।
लय = छंद  पढ़ने या गाने की धुन या तर्ज़।
छंद भेद =  छंद के प्रकार।
वृत्त = पद्य, छंद, वर्स, काव्य रचना । ४ प्रकार- क. स्वर वृत्त, ख. वर्ण वृत्त, ग. मात्रा वृत्त, घ. ताल वृत्त।
जाति = समान मात्रा भार के छंदों का  समूहनाम।
प्रत्यय = वह रीति जिससे छंदों के भेद तथा उनकी संख्या जानी जाए। ९ प्रत्यय: प्रस्तार, सूची, पाताल, नष्ट, उद्दिष्ट, मेरु, खंडमेरु, पताका तथा मर्कटी।
दशाक्षर = आठ गणों  तथा लघु - गुरु मात्राओं के प्रथमाक्षर य म त र ज भ न स ल ग ।
दग्धाक्षर = छंदारंभ में वर्जित लघु अक्षर - झ ह  र भ ष। देवस्तुति में प्रयोग वर्जित नहीं।
गुरु या संयुक्त दग्धाक्षर छन्दारंभ में प्रयोग किया जा सकता है।                                                                                  
अष्ट मात्रिक छंद / वासव छंद

जाति नाम वासव (अष्ट वसुओं के आधार पर), भेद ३४,  संकेत: वसु, सिद्धि, विनायक, मातृका, मुख्य छंद: अखंड, छवि, मधुभार आदि।

वासव छंदों के ३४ भेदों की मात्रा बाँट लघु-गुरु मात्रा संयोजन के आधार पर ५ वर्गों में निम्न अनुसार होगी:

अ वर्ग. ८ लघु: (१) १. ११११११११,
आ वर्ग. ६ लघु १ गुरु: (७) २. ११११११२ ३. १११११२१, ४. ११११२११, ५. १११२१११, ६. ११२११११, ७. १२१११११, ८. २११११११,
इ वर्ग. ४ लघु २ गुरु: (१५) ९. ११११२२, १०. १११२१२, ११. १११२२१, १२, ११२१२१, १३. ११२२११, १४, १२१२११, १५. १२२१११,  १६. २१२१११, १७. २२११११, १८. ११२११२,, १९. १२११२१, २०. २११२११, २२. १२१११२, २३. २१११२१,
ई वर्ग. २ लघु ३ गुरु: (१०) २४. ११२२२, २५. १२१२२, २६. १२२१२, २७. १२२२१, २८. २१२२१, २९. २२१२१, ३०. २२२११, ३१. २११२२, ३२. २२११२, ३३. २१२१२
उ वर्ग. ४ गुरु: (१) २२२२

छंद की ४ या ६ पंक्तियों में विविध तुकान्तों प्रयोग कर और भी अनेक उप प्रकार रचे जा सकते हैं।

छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ८ मात्रा
लक्षण छंद:
अष्ट कला चुन
वासव रचिए।
सम तुकांत रख
रस भी चखिए।
उदाहरण:
कलकल बहती
नदिया कहती
पतवार थाम
हिम्मत न हार
***
अ वर्ग. मलयज छंद: ८ लघु (११११११११)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ८ लघु मात्राएँ, प्रकार एक।
लक्षण छंद:
सुरभित मलयज
लघु अठ कल सज
रुक मत हरि भज
भव शव रव तज
उदाहरण:
१. अनवरत सतत
   बढ़, न तनिक रुक
   सजग रह न थक
   'सलिल' न चुक-झुक
--------
आ वर्ग. अष्टक छंद: ६ लघु १ गुरु (११११११२)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ६ लघु तथा १ गुरु मात्राएँ, प्रकार ७।
लक्षण छंद:
शुभ अष्टक रच
छै लघु गुरु वर
छंद निहित सच
मधुर वाद्य सुर
उदाहरण:
१. कर नित वंदन
   शुभ अभिनन्दन
   मत कर क्रंदन
   तज पर वंचन
--------
इ वर्ग. अष्टांग छंद: ४ लघु २ गुरु (११११२२)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ४ लघु तथा २ गुरु मात्राएँ, प्रकार १५।
लक्षण छंद:
चौ-द्वै लघु-गुरु
अष्टांग सृजित    
सत्काव्य मधुर
सत्कार्य अजित  
उदाहरण:
१. संभाव्य न सच
   सर्वदा घटित।
   दुर्भाग्य न पर
   हो सदा विजित।
--------
ई वर्ग. पर्यावरणी छंद: २ लघु ३ गुरु (११२२२)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति २ लघु तथा ३ गुरु मात्राएँ, प्रकार १०।
लक्षण छंद:
मात्रा द्वै लघु
पूजें त्रै गुरु
पर्यावरणी    
लगा रोपणी    
उदाहरण:
१. नहीं फैलने
   दें बीमारी।
   रहे न बाकी
   अब लाचारी।
--------
उ. ४ गुरु: धारावाही छंद (२२२२)
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ४ लघु तथा २ गुरु मात्राएँ, प्रकार १।
लक्षण छंद:
धारावाही
चौपालों से      
शिक्षा फ़ैली
ग्रामीणों में
उदाहरण:
१. टेसू फूला
   झूले झूला
   गौरा-बौरा
   गाये भौंरा।
--------
अखण्ड छंद
*
छंद-लक्षण: वासव जाति, प्रति पंक्ति ८ मात्रा, सामान्यतः ४ पंक्तियाँ, ३२ मात्राएँ।
लक्षण छंद:
चार चरण से, दो पद रचिए
छंद अखंड न, बंधन रखिए।
अष्ट मात्रिक पंक्ति-पंक्ति हो-
बिम्ब भाव रस, गति लय लखिए।
उदाहरण:
१.  सुनो प्रणेता!
    बनो विजेता।
    कहो कहानी,
    नित्य सुहानी।
    तजो बहाना,
    वचन निभाना।
    सजन सजा ना!
    साज बजा ना!
    लगा डिठौना,
    नाचे छौना
    चाँद चाँदनी,
    पूत पावनी।
    है अखंड जग,
    आठ दिशा मग
    पग-पग चलना,
    मंज़िल वरना।
२. कवि जी! युग की
    करुणा लिख दो.
    कविता अरुणा-
    वरुणा लिख दो.
    सरदी-गरमी-
    बरखा लिख दो.
    बुझना-जलना-
    चलना लिख दो
    रुकना-झुकना-
    तनना लिख दो
    गिरना-उठना-
    बढ़ना लिख दो
    पग-पग सीढ़ी
    चढ़ना लिख दो
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मधुभार / छवि छंद
*
छंद-लक्षण: जाति वासव, प्रति पंक्ति ८ मात्रा,  चरणान्त पयोधर, जगण (लघु गुरु लघु)।
लक्षण छंद:
रचें मधुभार,
कला अठ धार
जगण छवि अंत,
रखें कवि कंत
उदाहरण:
१. करुणानिधान!
    सुनिए पुकार
    रख दास-मान,
    भव से उबार
२. कर ले सितार,
    दें छेड़ तार
    नित तानसेन,
    सुध-बुध बिसार
३. जब लोकतंत्र,
    हो लोभतंत्र
    बन कोकतंत्र,
    हो शोकतंत्र
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jabalpur darshan :

जबलपुर दर्शन :
फ़ोटो: Balancing rock...
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कौआ डोल चट्टान: बैलेंस्ड रॉक
तस्वीर
मदनमहल : गोंडकालीन सुरक्षा चौकी
फ़ोटो: Share and Like if u have been here....
घंटाघर


सदर बाजार:  अंग्रेज काल में

रेलवे स्टेशन
फ़ोटो: Near Bargi
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नर्मदा तट पर मेघदूत
फ़ोटो: WOW :D
संगमरमरीव्दियों में नर्मदा प्रवाह
























Jabalpur my Hometown.
भैड़ाघाट की संगमरमरी शिलाएं
फ़ोटो: guess d name of the place??
रोप वे भेड़ाघाट
तस्वीर
ट्राली से धुआंधार दर्शन
तस्वीर
धुआंधार जलप्रपात
फ़ोटो: pariyat
परियट नदी
तस्वीर
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नर्मदा पर प्रथम बाँध: बरगी बांध

तस्वीर
शिव प्रतिमा कचनार
फ़ोटो: lets see who can recognize this place....

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भंवरताल उद्यान: ओशो की ध्यानस्थली
फ़ोटो: HATS OFF !
विनोबा जी के शब्दों में संस्कारधानी
फ़ोटो: Madan Mahal underbridge
मदन महल स्टेशन अंडर ब्रिज
तस्वीर
बरसात आनंद या विभीषिका?
फ़ोटो: its Jbp meri jaan......
विद्यत्प्रदाय केंद्र
फ़ोटो: koi toh pehchano?
आकाशवाणी केंद्र
फ़ोटो: Near 4th bridge at 6:30am.

 Photo Courtesy: Sukhdeep Rathore
मौसम है आशिक़ाना?
फ़ोटो: Records made!
जांबाज़ जवान: डेयर डेविल्स
फ़ोटो: Photo Shared By :- @Ramanuj Nanhoriya....!! :)(: