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बुधवार, 17 जुलाई 2013

astonomy: nakshatron kee khoj -dr. madhusudan


विश्व को भारत की भेंट :नक्षत्रों की खोज और नामकरण
डॉ. मधुसूदन
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गुजराती विश्वकोश कहता है
, कि,”नक्षत्रों की अवधारणा भारत छोडकर किसी अन्य देश में नहीं थी। यह, अवधारणा हमारे पुरखों की अंतरिक्षी वैचारिक उडान की परिचायक है, नक्षत्रों का नामकरण भी पुरखों की कवि कल्पना का और सौंदर्य-दृष्टि का प्रमाण है।महीनों के नामकरण में, उनकी अंतरिक्ष-लक्ष्यी मानसिकता का आभास मिलता है।
(दो)अंतरिक्षी दृष्टि, या वैचारिक उडान?
तनिक अनुमान कीजिए; कि, समस्या क्या थी? आप क्या करते यदि उनकी जगह होते ?भारी अचरज है मुझे, कि पुरखों को, कहाँ, तो बोले इस धरती पर काल गणना के लिए, महीनों का नाम-करण करना था। तो उन्हों ने क्या किया? कोई सुझाव देता; कि, इस में कौनसी बडी समस्या थी ?रख देते ऐसे महीनों के नाम, किसी देवी देवता के नामपर, या किसी नेता के नामपर,जैसे आजकल गलियों के नाम दिए जाते हैं।
https://mail-attachment.googleusercontent.com/attachment/u/0/?ui=2&ik=dad2fa7c6e&view=att&th=13fe46e7da5e266e&attid=0.2&disp=inline&safe=1&zw&saduie=AG9B_P8iolpeP3f4iPAHowfQMMHF&sadet=1374063556215&sads=LjNjK3g-kX5e4zJV1eGZdwnbNQA(तीन)विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता।
पर जिस, विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता का परिचय हमारे पुरखों ने बार बार दिया, उस पर जब, सोचता हूँ, तो विभोर हो उठता हूँ। ऐसी सर्वग्राही विशाल दृष्टि किस दिव्य प्रेरणा से ऊर्जा प्राप्त करती होगी?
जब भोर, सबेरे जग ही रहा था, तो मस्तिष्क में ऐसे ही विचार मँडरा रहे थे। और जैसे जैसे सोचता था, पँखुडियाँ खुल रही थी, सौंदर्य की छटाएँ बिखेर रही थी, जैसे किसी फूल की सुरभी मँडराती है, फैलती है। हमारे पुरखों ने इस सूर्योदय के पूर्व के समय (दो दण्ड) को ब्राह्म-मुहूर्त क्यों कहा होगा, यह भी समझ में आ रहा था।
पर एक वैज्ञानिक समस्या को सुलझाने में हमारे पुरखों ने जो विशाल अंतरिक्षी उडान का परिचय दिया, उसे जानने पर मैं दंग रह गया। और फिर ऐसे, वैज्ञानिक विषय में भी कैसा काव्यमय शब्द गुञ्जन? यह करने की क्षमता केवल देववाणी संस्कृत में ही हो सकती है। आलेख को ध्यान से पढें, आप मुझसे सहमत होंगे, ऐसी आशा करता हूँ। ऐसे आलेख को क्या नाम दिया जाए?
(चार)  काव्यमय शब्द-गुंजन?
क्या नाम दूँ, इस आलेख को। शब्द गुंजन, पुरखों की ब्रह्माण्डीय चिंतन वृत्ति, उनकी आकाशी छल्लांग, या उनकी अंतरिक्षी दृष्टि? वास्तव में इस आलेख को, इसमें से कोई भी नाम दिया जा सकता है। पर मुझे शब्द गुञ्जन ही जचता है। चित्रा, विशाखा, फल्गुनी जैसे नाम देनेवालों की काव्यप्रतिभा के विषय में मुझे कोई संदेह नहीं है।
(पाँच) नक्षत्रों के काव्यमय मनोरंजक नाम
तनिक सारे नक्षत्रों के नाम भी यदि देख लें, तो आपको इसी बात की पुष्टि मिल जाएगी।कैसे कैसे काव्य मय नाम रखे गए हैं?
(१) अश्विनी,(२) भरणी, (३) कृत्तिका, (४) रोहिणी, (५) मृगशीर्ष (६) आर्द्रा, (७) पुनर्वसु (८) पुष्य, (९) अश्लेषा (१०) मघा, (११)पूर्वाफल्गुनी, (१२) उत्तराफल्गुनी, (१३)हस्त, (१४) चित्रा,(१५) स्वाति, (१६) विशाखा, (१७)अनुराधा, (१८) ज्येष्ठा,(१९) मूल, (२०) पूर्वाषाढा,(२१)उत्तराषाढा, (२२) श्रवण, (२३) घनिष्ठा, (२४) शततारा, (२५) पूर्वाभाद्रपदा,(२६) उत्तराभाद्रपदा, (२७) रेवती, और वास्तव में (२८) अभिजित नामक एक नक्षत्र और भी होता है।
इन नक्षत्रों के सुन्दर नामों का उपयोग भारतीय बाल बालिकाओं के नामकरण के लिए होना भी, इसी सच्चाई का प्रमाण ही है।
विशेषतः अश्विनी, कृत्तिका, रोहिणी, वसु, फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, घनिष्ठा, रेवती ऐसे बालाओं के नाम आपने सुने होंगे।और अश्विन, कार्तिक, श्रवण, अभिजित इत्यादि बालकों के नाम भी जानते होंगे।
ऐसे शुद्ध संस्कृत नक्षत्रों के नामों को और उनपर आधारित महीनों के नामों को पढता हूँ, तो, निम्नांकित द्रष्टा योगी अरविंद का कथन शत प्रतिशत सटीक लगता है।
(छः) योगी अरविंद :
संस्कृत अकेली ही, उज्ज्वलाति-उज्ज्वल है, पूर्णाति-पूर्ण है, आश्चर्यकारक है, पर्याप्त है, अनुपम है, साहित्यिक है, मानव का अद्भुत आविष्कार है; साथ साथ गौरवदायिनी है, माधुर्य से छलकती भाषा है, लचिली है, बलवती है, असंदिग्ध रचना क्षमता वाली है,पूर्ण गुंजन युक्त उच्चारण वाली है, और सूक्ष्म भाव व्यक्त करने की क्षमता रखती है।

क्या क्या विशेषणों का, प्रयोग, किया है महर्षि नें?माधुर्य से छलकती, और पूर्ण गुंजन युक्त? कह लेने दीजिए मुझे, कोई माने या न माने, पर मैं मानता हूँ, कि सारे विश्व में आज तक ऐसी कोई और भाषा मुझे नहीं मिली।
दंभी उदारता, ओढकर अपने मस्तिष्क को खुला छोडना नहीं चाहता कि संसार फिर उसमें कचरा कूडा फेंक कर दूषित कर दे। हमारे मस्तिष्कों को बहुत दूषित और भ्रमित करके चला गया है, अंग्रेज़।
मूढः पर प्रत्ययनेय बुद्धिः, सारे, भारत में भरे पडे हैं। एक ढूंढो हज़ार मिलेंगे।
(सात) नक्षत्रशब्द की व्युत्पत्ति।
नक्षत्रशब्द को तोड कर देखिए ।यह ”+”क्षत्र” = “नक्षत्रऐसा जुडा हुआ संयुक्त शब्द है। का अर्थ (नहीं) + क्षत्र का अर्थ “(नाश हो ऐसा) तो, नक्षत्र शब्द का, अर्थ हुआ जिसका नाश न होऐसा। वाह! वाह ! क्या बात है? अब सोचिए (१) हमारे पुरखों को पता था, कि, इन तारकपुंजों का जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है, नाश नहीं होता। वास्तव में यह विधान (Relative) सापेक्ष है, फिर भी सत्य है।
(आँठ)भगवान कृष्ण
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ।।१०-३५।(गीता)
भगवान कृष्ण -गीता में कहते हैं, कि, महीनों में मैं मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसन्त हूँ।
तो मार्गशीर्ष यह शब्द शुद्ध संस्कृत है। इसका संबंध कहीं लातिनी या ग्रीक से नहीं है। न तब लातिनी थी, न ग्रीक। कृष्ण जन्म ईसापूर्व कम से कम, ३२२८ में १८ जुलाई को ३२२८ खगोल गणित से प्रमाणित हुआ है। इन ग्रह-तारों की गति भी घडी की भाँति ही होती है। बार बार ग्रह उसी प्रकार की स्थिति पुनः पुनः आती रहती है। अंग्रेज़ी में इसे सायक्लिक कहते हैं, हिंदी में पुनरावर्ती या चक्रीय गति कहा जा सकता है।भगवद्गीता में इस शब्द का होना बतलाता है, कि महाभारत के पहले भी मार्गशीर्ष शब्द का प्रयोग रहा होगा। कहा जा सकता है, कि,महीनों के नाम उस के पहले भी, चलन में होने चाहिए।
अब मार्गशीर्ष शब्द मृग-शीर्ष से निकला हुआ है। मृग-शीर्ष का अर्थ होता है, मृग का शिर या हिरन का सिर।
तो मृग-शीर्ष: एक नक्षत्र है। पर वह, मृग की बडी आकृति का एक भाग है।
(नौ) मृग नक्षत्र
एक मृग (हिरन) नक्षत्र है, और इस नक्षत्र में कुल १३ ताराओं का पुंज है।मृग नक्षत्र में चार ताराओं का चतुष्कोण बनता है, जो मृग (हिरन)के चार पैर समझे जाते हैं। इन चार ताराओं के उत्तर में तीन धुंधले तारे हैं, जो (हिरन) मृग का सिर है। दक्षिण की ओर के दो पैरों के बीच, तीन ताराओं की पूंछ है।पेट में, व्याध(शिकारी) ने सरल रेखा में, मारा हुआ एक तीर है। इस तीर के पीछे प्रायः सीधी रेखामें एक चमकिला व्याध (शिकारी) का तारा है।इस नक्षत्र का सिर हिरन के सिर जैसा होने के कारण इसे मृग शीर्ष कहा गया।
(दस)मार्गशीर्ष
पूनम का चंद्र इस नक्षत्र से युक्त होने के कारण उस महीने का नाम मार्गशीर्ष हुआ।
बालकों को चित्र बनाते आपने देखा होगा। वें क्रमानुसार बिंदुओं को रेखा ओं से, जोड जोडकर देखते देखते चित्र उभर आता है, यह आपने अवश्य देखा होगा। हाथी, घोडा, हिरन, इत्यादि चित्र बालक ऐसे क्रमानुसार बिंदुओं को जोडकर बना लेते हैं। कुछ उसी प्रकार से तारा बिन्दुओं को जोडकर जो आकृतियाँ बनती हैं, उनके नामसे नक्षत्रों की पहचान होती है।
(ग्यारह) महीनों के नाम
पूनम की रात को चंद्र जिस नक्षत्र से युक्त हो, उस नक्षत्र के नाम से उस महीने का नाम रखा गया है।
चित्रा में चंद्र हो तो चैत्र, विशाखामें चंद्र हो तो वैशाख, ज्येष्ठा में चंद्र हो तो ज्येष्ठ, पूर्वाषाढा में चंद्र हो तो अषाढ, श्रवण में चंद्र हो तो श्रावण, पूर्वाभाद्रपद में चंद्र हो तो भाद्रपद, अश्विनी में चंद्र हो तो अश्विन ऐसे नाम दिए गए। कृत्तिका में चंद्र हो तो कार्तिक, मृगशीर्ष में चंद्र हो तो मार्गशीर्ष, पुष्य में चंद्र हो तो पौष,मघा में चंद्र हो तो माघ, पूर्वा फाल्गुनी में चंद्र हो तो फाल्गुन ऐसे बारह महीनों के नाम रखे गए हैं।
प्रत्येक माह में विशेष नक्षत्र संध्या के समय ऊगते हैं। और भोर में अस्त हुआ करते हैं।
(बारह) महीनों के नक्षत्र और आकृतियाँ:
चित्रा मोती के समान, विशाखा तोरण के समान, ज्येष्ठा -कुंडल के समान, पूर्वाषाढा – -हाथी के दाँत के समान, श्रवण वामन के ३ चरण के समान, पूर्वाभाद्रपद -मंच के समान, अश्वनी अश्वमुख के समान, कृत्तिका छुरे के समान, मृगशिराहिरन सिर , पुष्य वन के समान , मघा भवन, पूर्व-फाल्गुनी -चारपाई के समान 
—-ऐसे पुरखों का ऋण हम परम्परा टिका कर ही चुका सकते हैं।

http://www.pravakta.com/chitra-vishakha-falguni-words-hum-stars

nari lata- woman shaped flower

विचित्र किन्तु सत्य:
नारी लता पौधे पर नारी आकारी पुष्प
दीप्ति गुप्ता
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अविश्वसनीय  किन्तु  सच
भारत में हिमालय, श्री लंका तथा थाईलैंड में २० वर्ष के अन्तराल पर खिलनेवाला नारीलता का दुर्लभ पुष्प किसी  नारी के आकार का होता है। विश्वास न हो तो देखिए यह चित्र:


नारीलता फूल पौधा भारत में हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है. और वे 20 साल के अंतराल पर खिलते हैं। यह फूल एक औरत के आकार का होता है यह एक दुर्लभ फूल है...आश्चर्यजनक..!! प्रकृति कुछ भी कहिये ग़ज़ब गज़ब के रंग दिखाती है जरा इस अनोखे फूल को देखिये इसका
 अकार देखिये
 इसकी बनावट को देखिये शायद आपको पेड़ो पर यह लटकी हुई गुडिया सी नज़र आ रह...ी किसी इंसान की इंसानी हरकत लगे लेकिन है ऐसा नहीं यह हिमालय श्रीलंका और थाईलेंड में एक पेड में लगने वाला फूल है जिसे उपरी हिमालय में ...नारीलता फूल .... 





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samyik charcha chunaav sudhar aur ummeeswar -rajiv thepra

                                         

सामयिक चर्चा:
चुनाव  सुधार और उम्मीदवार
राजीव ठेपरा *
अभी दो दिनों पूर्व ही भारत में चुनाव सुधार के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आया है कि किसी जन-प्रतिनिधि को दो साल की सजा होते ही उसकी सदस्यता उसी दिन से रद्द कर दी जाए,यह आदेश स्वागत-योग्य है साथ ही चुनाव सुधार की दिशा में वर्षों से मेरे मन में भी एक विचार आता रहा है, मैं चाहता हूँ कि यह विचार मैं इस मंच पर रखूं ताकि इस पर विमर्श हो सके और मैं चाहूँगा कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस विचार की कमी-बेशी पर अपनी राय अवश्य प्रकट करें .
 
          जब से होश संभाला है तब से देख रहा हूँ कि भारत में होनेवाले चुनावों में भारत की आधी से ज्यादा आबादी हिस्सा ही नहीं लेती और इसमें रोचक किन्तु चिंतनीय पक्ष यह है कि चुनाव न करने वाले लोग हमारे जैसे व्यवस्था पर सदा चीखते-चिल्लाने वाले लोग हैं, जो राग तो हमेशा कोढ़ का अलापते हैं मगर ईलाज वाले दिन (इस सन्दर्भ में चुनाव वाले दिन) अस्पताल जाते ही नहीं और फिर परिणाम आते ही दुबारा चीखने-चिल्लाने लग जाते हैं कि हाय इलाज नहीं हुआ.... इलाज नहीं हुआ या फिर गलत इलाज हो गया !!  

इसमें सुधार हेतु मेरे मन में यह विचार हमेशा आता रहा है कि अब जब तकनीक में हम इतना आगे आ चुके हैं और तकनीक का इतना आनंद भी लेते हैं कि करोड़ों लोग ऐसे भी हैं जो भले ही भूखे मरते हों मगर मोबाइल का उपयोग अवश्य करते हैं !
 
            तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हर नागरिक चुनाव-पूर्व मतदाता सूची में अपना एक फिक्स नंबर जुड़वा ले, यह एक नंबर परिवार के सभी सदयों के लिए भी हो सकता है या फिर हर-एक सदस्य अलग-अलग नंबर भी रजिस्टर्ड करवा सकता है और तब उस व्यक्ति या परिवार का वही नंबर एक तरह का यूनिक आई डी होगा और चुनाव होने पर उसी नंबर से आने वाले मैसेज को सही माना जायेगा,इस प्रक्रिया में चुनाव आयोग रजिस्टर्ड नंबरों पर क्षेत्र-विशेष की भाषानुसार चुनने के लिए दलों का विकल्प भेजेगा,जिसमें से मनचाहे दल को हम चुन कर मैसेज का रिप्लाई दे देंगे और चूँकि यह रिप्लाई हमारे रजिस्टर्ड नंबर से होगी तो इसमें घपले की कोई गुंजाईश नहीं दिखाई देती अगर एक परिवार में कई लोगों का रजिस्टर्ड नंबर एक ही है तो जितने लोगों का वह नंबर घोषित है उतनी बार रिप्लाई मान्य मानी जायेगी !
 
            अब रही बात करोड़ों अनपढ़ लोगों के इस प्रक्रिया में हिस्सा ना ले पाने की,तो इसके लिए परंपरागत चुनाव करवाए जा सकते हैं इससे होगा यह कि एक ही दिन में एक क्षेत्र में होने वाले चुनाव के कारण जो आधे लोग समय की कमी और लम्बी लाईनों की वजह से मतदान करने से छूट जाते हैं वो घर बैठे ही इस चुनाव-प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे और इस तरह एक पढ़े-लिखे प्रमुख वर्ग के करोड़ों लोगों की (समूचे लोगों की)सहभागिता इस लोकतंत्र में हो जायेगी तथा परंपरागत चुनाव में भी तब बाकी के बचे सारे लोग मतदान कर पाएंगे ! 

           जिन लोगों ने मोबाइल द्वारा वोट कर दिया होगा वो परंपरागत चुनाव में स्वतः रद्द घोषित हो जायेंगे,इस प्रकार हम देखेंगे कि चुनाव का प्रतिशत नब्बे-फीसदी से ऊपर भी जा सकता है और तब सही मायनों में हमारे जन-प्रतिनिधि हमारे जन-प्रतिनिधि माने जा सकते हैं और तो और इस प्रकार के चुनाव में हिस्सा न लेने पर मतदाता को सो कॉल्ड का नोटिस का मैसेग भी भेज जा सकता है कि आपने इस मामूली सी प्रक्रिया में भी हिस्सा नहीं लिया है तो क्यों ना आपकी भारत की नागरिकता छीन ली जाए !!चुनाव की इस प्रक्रिया में वो लाखों-लाख लोग भी शामिल हो सकते हैं जो सफ़र में हों और अपने क्षेत्र से बाहर हों साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण सुधार मेरे मन में है कि पार्टियों की संख्या सीमित करना और चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों को शामिल नहीं करना क्योंकि इसके चलते सैकड़ों उम्मीदवारों के कारण वोट का एक बहुत बड़ा प्रतिशत व्यर्थ सिद्ध हो जाता है और इसी के कारण मात्र दस फीसदी वोट पाकर जितने वाले हमारे जन-प्रतिनिधि मान लिए जाते हैं।
 
क्या यह राय आप सबों को उचित जान पड़ती है ??हाँ या नहीं अलग बात है मगर अगर भारत को सच में ही हम आगे बढ़ता देखना चाहते हैं तो कुछेक जलते सवालों पर हमें अपनी सहभागिता दर्शानी ही होगी और अपने देश की एक दिशा तय करनी होगी मगर चलते-चलते एक आखिरी बात यह है कि नेताओं-अफसरों की जवाबदेही तय करने वाले हम सब कर्तव्यहीन और करप्ट भारत के हित के लिए अपनी कौन-सी जवाबदेही तय करने जा रहे हैं या अपनी किस किस्म की सहभागिता हमने भारत-निर्माण के लिए तय की है !!??
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dharohar: gazal - dushyant kumar


                      http://static.yoindia.com/misc/Dushyant-Kumar_postal-stamp_27-09-2009.jpg

धरोहर :
गज़ल
दुष्यंत कुमार
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दुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७५) एक हिंदी कवि और ग़ज़लकार थे । इन्होंने 'एक कंठ विषपायी', 'सूर्य का स्वागत', 'आवाज़ों के घेरे', 'जलते हुए वन का बसंत', 'छोटे-छोटे सवाल' और दूसरी गद्य तथा कविता की किताबों का सृजन किया। दुष्यंत कुमार उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले थे । जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील (तरक्कीपसंद) शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था । हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था । उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे । इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की । निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं
"दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है. यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है "
 
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारों,
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो।
दर्दे दिल वक्त को पैगाम भी पहुँचाएगा,
इस कबूतर को जरा प्यार से पालो यारो।
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे,
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो।
आज सीवन को उधेड़ों तो जरा देखेंगे,
आज संदूक से वे खत तो निकालो यारो।
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो।
कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की,
तुमने कह दी है तो कहने की सजा लो यारो।
-
 दुष्यंत कुमार (त्यागी)
प्रस्तुति : दीप्ति

शनिवार, 13 जुलाई 2013

doha salila: 8 --shyamal suman

pratinidhi doha kosh 8  - 

Soahn Paroha 'Salil', jabalpur  


प्रतिनिधि दोहा कोष ८ : 

 इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती  नवीन सी. चतुर्वेदी, पूर्णिमा बर्मन तथा प्रणव भारती,  डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', अर्चना मलैया,सोहन परोहा 'सलिल' तथा साज़ जबलपुरी के दोहे। आज अवगाहन कीजिए श्यामल 'सुमन' रचित दोहा सलिला में :

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https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9CTEtLXJcX-tvRbzDt6fomNIHAb8fIquIYXv78wJr3jiM992P-XtfmaAOmzIKKn28HG8b2J5EHbwOV9OAVgWt2srtexgIEpyI5k3bab8uxKmYjiVDmnYXLh9Q-kh9tEUQSLhiIrTxRoY/s220/shyamal%5B1%5D.jpg


संकलन - संजीव
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मूल नाम: 
जन्म:
आत्मज:
शिक्षा:
कृतियाँ:
संपर्क:
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श्यामल सुमन

यूँ रोया पर्वत सुमन

चमत्कार विज्ञान का, सुविधा मिली जरूर।
भौतिक दूरी कम हुई, अपनेपन से दूर।।

होती थी कुछ देर पर, चिट्ठी से सम्वाद।
मोबाइल में है कहाँ, उतना मीठा स्वाद।।

साक्षर थी भाभी नहीं, भैया थे परदेश।
बातें दिल की सुमन से, लिखवाती संदेश।।

विश्व-ग्राम ने अब सुमन, लाया है दुर्योग।
गाँवों में मिलते नहीं, सीधे साधे लोग।।

यूँ रोया पर्वत सुमन, शायद पहली बार।
रोते हैं सब देखकर, मानव का संहार।।

प्राकृतिक सौन्दर्य का, इक अपना है गीत।
कोशिश है विज्ञान की, दर्ज करें हम जीत।।

नियति-नियम के संग में, चले सदा विज्ञान।
फिर क्यों देखेंगे सुमन, यह भीषण नुकसान।।

जहरीला इन्सान

जैसे जैसे लोग के, बदले अभी स्वभाव।
मौसम पर भी देखिए, उसके अलग प्रभाव।।

जाड़े में बारिश हुई, औ बारिश में धूप।
गरमी में पानी नहीं, बारिश हुई अनूप।।

कौन सफाई अब करे, जब मरते हैं जीव।
बर्बर मानवता सुमन, गिद्ध हुए निर्जीव।।

नीलकंठ पक्षी अभी, कहाँ देखते लोग।
सदियों से जो कर रहे, दूर फसल के रोग।।

चूहे नित करते सुमन, दाने का नुकसान।
डरे हुए हैं साँप भी, जहरीला इन्सान।।

घास कहाँ मिलते सुमन, हिरण,गाय लाचार।
शेर सहित हैं घात में, बैठे हुए सियार।।

गंगा जीवनदायिनी, आज हुई बीमार।
नदियाँ सारी सूखतीं, कारण सुमन विचार।

सोना हो चाहत अगर

सोना हो चाहत अगर, सोना हुआ मुहाल।
दोनो सोना कब मिले, पूछे सुमन सवाल।।

खर्च करोगे कुछ सुमन, घटे सदा परिमाण।
ज्ञान, प्रेम बढ़ते सदा, बाँटो, देख प्रमाण।।

अलग प्रेम से कुछ नहीं, प्रेम जगत आधार।
देख सुमन ये क्या हुआ, बना प्रेम बाजार।

प्रेम त्याग अपनत्व से, जीवन हो अभिराम।
बनने से पहले लगे, अब रिश्तों के दाम।।

जीवन के संघर्ष में, नहीं किसी से आस।
भीतर जितने प्रश्न हैं, उत्तर अपने पास।।

देखो नित मिलता सुमन, जीवन से सन्देश।
भला हुआ तो ठीक पर, नहीं किसी को क्लेश।।

दोनों कल के बीच में, फँसा हुआ है आज।
कारण बिल्कुल ये सुमन, रोता आज समाज।।

राजनीति में अब सुमन, नैतिकता है रोग।
लाखों में बिकते अभी, दो कौड़ी के लोग।।

चीजें मँहगीं सब हुईं, लोग हुए हलकान।
केवल सस्ती है सुमन, इन्सानों की जान।।

संसाधन विकसित हुए, मगर बुझी ना प्यास।
वादा करते हैं सभी, टूटा है विश्वास।।

होते हैं अब हल कहाँ, आम लोग के प्रश्न।
चिन्ता दिल्ली को नहीं, रोज मनाते जश्न।।

प्रायः पूजित हैं अभी, नेता औ भगवान।
काम न आए वक्त पर, तब रोता इन्सान।।

सुनता किसकी कौन अब, प्रायः सब मुँहजोर।
टूट रहे हैं नित सुमन, सम्बन्धों की डोर।।

रोने से केवल सुमन, क्या सुधरेगा हाल।
हाथ मिले जब लोग के, सुलझे तभी सवाल।।

मंदिर जाता भेड़िया

शेर पूछता आजकल, दिया कौन यह घाव।
लगता है वन में सुमन, होगा पुनः चुनाव।।

गलबाँही अब देखिये, साँप नेवले बीच।
गद्दी पाने को सुमन, कौन ऊँच औ नीच।।

मंदिर जाता भेड़िया, देख हिरण में जोश।
साधु चीता अब सुमन, फुदक रहा खरगोश।।

पीता है श्रृंगाल अब, देख सुराही नीर।
थाली में खाये सुमन, कैसे बगुला खीर।।

हुआ जहाँ मतदान तो, बिगड़ गए हालात।
फिर से निकलेगी सुमन, गिद्धों की बारात।।

प्रायः सभी कुदाल

छोटी दुनिया हो गयी, जैसे हो इक टोल।
दूरी आपस की घटी, पर रिश्ते बेमोल।।

क्रांति हुई विज्ञान की, बढ़ा खूब संचार।
आतुर सब एकल बने, टूट रहा परिवार।।

हाथ मिलाते जब सुमन, जतलाते हैं प्यार।
क्या पड़ोस में कल हुआ, बतलाते अखबार।।

कौन आज खुरपी बने, पूछे सुमन सवाल।
जो दिखता है सामने, प्रायः सभी कुदाल।।

तारे सा टिमटिम करे, बनते हैं महताब।
ऐसे भी ज्ञानी सुमन, पढ़ते नहीं किताब।।

नारी है माता कभी


मैं सबसे अच्छा सुमन, खतरनाक है रोग।
हैं सुर्खी में आजकल, दो कौड़ी के लोग।।

लाज बिना जो बोलते, हो करके बेबाक।
समझे जाते हैं वही, आज सुमन चालाक।।

चर्चा पूरे देश में, जागा है इन्सान।
पूजित नारी का सुमन, लौट सके सम्मान।।

घटनाओं पर बोलते, परम्परा के दूत।
कारण बतलाते सुमन, है पश्चिम का भूत।।

नारी है माता कभी, कभी बहन का प्यार।
और प्रेयसी भी सुमन, मगर उचित व्यवहार।।

कैसा हुआ समाज

ताकत जीने की मिले, वैसा दुख स्वीकार।
जीवन ऐसे में सुमन, खुद पाता विस्तार।।

दुख ही बतलाता हमें, सुख के पल अनमोल।
मुँह सुमन जब आँवला, पानी, मिश्री-घोल।।

जामुन-सा तन रंग पर, हृदय चाँद का वास।
आकर्षक चेहरा सुमन, पसरे स्वयं सुवास।।

जीवन परिभाषित नहीं, अलग सुमन के रंग।
करते परिभाषित सभी, सबके अपने ढंग।।

मातम जहाँ पड़ोस में, सुन शहनाई आज।
हृदय सुमन का रो पड़ा, कैसा हुआ समाज।।

चाहत सारे सुख मिले, मिहनत से परहेज।
शायद ऐसे लोग ही, माँगे सुमन दहेज।।

लेखन में अक्सर सुमन, अनुभव का गुणगान।
गम-खुशियों की चासनी, साहित्यिक मिष्ठान।।

शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार

आँगन सूना घर हुआ, बच्चे घर से दूर।
मजदूरी करने गया, छोड़ यहाँ मजबूर।।

जल्दी से जल्दी बनें, कैसे हम धनवान।
हम कुदाल बनते गए, दूर हुई संतान।।

ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश।।

कहाँ मिला कुछ आसरा, वृद्ध हुए माँ बाप।
कहीं सँग ले जाय तो, मातु पिता अभिशाप।।

जैसी भी है जिन्दगी, करो सुमन स्वीकार।
शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार।।

रीति बहुत विपरीत

जीवन में नित सीखते, नव-जीवन की बात।
प्रेम कलह के द्वंद में, समय कटे दिन रात।।

चूल्हा-चौका सँग में, और हजारो काम।
डरते हैं पतिदेव भी, शायद उम्र तमाम।।

झाड़ू, कलछू, बेलना, आलू और कटार।
सहयोगी नित काज में, और कभी हथियार।।

जो ज्ञानी व्यवहार में, करते बाहर प्रीत।
घर में अभिनय प्रीत के, रीति बहुत विपरीत।।

मेहनत बाहर में पति, देख थके घर-काज।
क्या करते, कैसे कहें, सुमन आँख में लाज।।

नेता और कुदाल

चली सियासत की हवा, नेताओं में जोश।
झूठे वादे में फँसे, लोग बहुत मदहोश।।

दल सारे दलदल हुए, नेता करे बबाल।
किस दल में अब कौन है, पूछे लोग सवाल।।

मुझ पे गर इल्जाम तो, पत्नी को दे चांस।
हार गए तो कुछ नहीं, जीते तो रोमांस।।

जनसेवक राजा हुए, रोया सकल समाज।
हुई कैद अब चाँदनी, कोयल की आवाज।।

नेता और कुदाल की, नीति-रीति है एक।
समता खुरपी सी नहीं, वैसा कहाँ विवेक।।

कलतक जो थी झोपड़ी, देखो महल विशाल।
जाती घर तक रेल अब, नेता करे कमाल।।

धवल वस्त्र हैं देह पर, है मुख पे मुस्कान।
नेता कहीं न बेच दे, सारा हिन्दुस्तान।।

सच मानें या जाँच लें, नेता के गुण चार।
बड़बोला, झूठा, निडर, पतितों के सरदार।।

पाँच बरस के बाद ही, नेता आये गाँव।
नहीं मिलेंगे वोट अब, लौटो उल्टे पाँव।।

जगी चेतना लोग में, है इनकी पहचान।
गले सुमन का हार था, हार गए श्रीमान।।

मच्छड़ का फिर क्या करें

मैंने पूछा साँप से दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।।

कुत्ता रोया फूटकर यह कैसा जंजाल।
सेवा नमकहराम की करता नमकहलाल।।

जीव मारना पाप है कहते हैं सब लोग।
मच्छड़ का फिर क्या करें फैलाता जो रोग।।

दुखित गधे ने एक दिन छोड़ दिया सब काम।
गलती करता आदमी लेता मेरा नाम।।

बीन बजाये नेवला साँप भला क्यों आय।
जगी न अब तक चेतना भैंस लगी पगुराय।।

नहीं मिलेगी चाकरी नहीं मिलेगा काम।
न पंछी बन पाओगे होगा अजगर नाम।।

गया रेल में बैठकर शौचालय के पास।
जनसाधारण के लिये यही व्यवस्था खास।।

रचना छपने के लिये भेजे पत्र अनेक।
सम्पादक ने फाड़कर दिखला दिया विवेक।।

सुमन आग भीतर लिए

हार जीत के बीच में, जीवन एक संगीत।
मिलन जहाँ मनमीत से, हार बने तब जीत।।

डोर बढ़े जब प्रीत की, बनते हैं तब मीत।
वही मीत जब संग हो, जीवन बने अजीत।।

रोज परिन्दों की तरह, सपने भरे उड़ान।
सपने गर जिन्दा रहे, लौटेगी मुस्कान।।

रौशन सूरज चाँद से. सबका घर संसार।
पानी भी सबके लिए, क्यों होता व्यापार।।

रोना भी मुश्किल हुआ, आँखें हैं मजबूर।
पानी आँखों में नहीं, जड़ से पानी दूर।।

निर्णय शीतल कक्ष से, अब शासन का मूल।
व्याकुल जनता हो चुकी, मत कर ऐसी भूल।।

सुमन आग भीतर लिए, खोजे कुछ परिणाम।
मगर पेट की आग ने, बदल दिया आयाम।।

बस माँगे अधिकार

कैसे कैसे लोग से भरा हुआ संसार।
बोध नहीं कर्त्तव्य का बस माँगे अधिकार।।

कहने को आतुर सभी पर सुनता है कौन।
जो कहने के योग्य हैं हो जाते क्यों मौन।।

आँखों से बातें हुईं बहुत सुखद संयोग।
मिलते कम संयोग यह जीवन का दुर्योग।।

मैं अचरज से देखता बातें कई नवीन।
मूरख मंत्री के लिऐ अफसर बहुत प्रवीण।।

जनता बेबस देखती जन-नायक है दूर।
हैं बिकते अब वोट भी सुमन हुआ मजबूर।।

नारी बिन सूना जगत

मँहगाई की क्या कहें, है प्रत्यक्ष प्रमाण।
दीन सभी मर जायेंगे, जारी है अभियान।।

नारी बिन सूना जगत, वह जीवन आधार।
भाव-सृजन, ममता लिए, नारी से संसार।।

भाव-हृदय जैसा रहे, वैसा लिखना फर्ज।
और आचरण हो वही, इसमें है क्या हर्ज।।

कट जायेंगे पेड़ जब, क्या तब होगा हाल।
अभी प्रदूषण इस कदर, जगत बहुत बेहाल।।

नदी कहें नाला कहें, पर यमुना को आस।
मुझे बचा ले देश में, बनने से इतिहास।।

सबकी चाहत है यही, पास रहे कुछ शेष।
जो पाते संघर्ष से, उसके अर्थ विशेष।।

जीवन तो बस प्यार है, प्यार भरा संसार।
सांसारिक इस प्यार में, करे लोग व्यापार।।

सतरंगी दुनिया सदा, अपना रंग पहचान।
और सादगी के बिना, नहीं सुमन इन्सान।।

आशा की किरणें जगी


तन की सीमा से भली, मन की सीमा जान।
मन को वश में कर सके, वही असल इन्सान।।

आशा की किरणें जगीं, भले अंधेरी राह।
नीरवता सुख दे जिसे, सुन्दर उसकी चाह।।

अभिनय करने में यहाँ, नेता बहुत प्रवीण।
भाषण, आश्वासन सहित, खींचे चित्र नवीन।।

खट्टा तब मीठा लगे, जब हो प्रियतम पास।
घड़ी मिलन की याद में, होते नहीं उदास।।

व्यंग्य-बाण के साथ में, हो रचना में धार।
बदलेंगे तब नीति ये, जनता के अनुसार।।

किया बहुत मैंने यहाँ, गम दुनिया की बात।
प्रथम मिलन को याद कर, सचमुच इक सौगात।।

हर विकास के नाम पर, क्या होता है आज?
सबकी कोशिश से बचे, दीनों की आवाज।।

श्लील और अश्लील में, कौन बताये भेद?
आदम युग हम जा रहे, प्रकट करें बस खेद।।

रचना भी है आपकी, भाव आपके खास।
सुमन सजाया बस इसे, कैसा रहा प्रयास?

प्रश्न अनूठा सामने

प्रश्न अनूठा सामने, क्या अपनी पहचान?
छुपे हुए संघर्ष में, सारे प्रश्न-निदान।।

कई समस्या सामने, कारण जाने कौन?
मिला न कारण आजतक, समाधान है मौन।।

बीज बनाये पेड़ को, पेड़ बनाये बीज।
परिवर्तन होता सतत, बदलेगी हर चीज।।

बारिश चाहे लाख हों, याद नहीं धुल पाय।
याद करें जब याद को, दर्द बढ़ाती जाय।।

सुख दुख दोनों में मजा, जो लेते हैं स्वाद।
डरना नहीं विवाद से, जीवन एक विवाद।।

आये कितने रूप में, भारत में भगवान।
नेता जो इन्सान है, रहते ईश समान।।

प्यार बसा संसार में, सांसारिक है प्यार।
बदल गया कुछ प्यार यूँ, सुमन करे व्यापार।।

उलझन जीवन की सखा

उलझन जीवन की सखा, कभी न छूटे साथ।
सुलझेंगे उलझन तभी, मिले हाथ से हाथ।।

शब्द ब्रह्म बनते वहीं, जब हो भाव सुयोग।
शब्दों से ही कष्ट है, शब्द भगाये रोग।।

आशा हो जब संगिनी, जीना है आसान।
जीवन में खुशियाँ मिले, हटे दुखों से ध्यान।।

प्रहरी था जनतंत्र का, आज बना बाजार।
पैसे खातिर मीडिया, करता आज प्रचार।।

सृजन भाव के संग में, कर्मशील इन्सान।
कटते हैं जीवन सहज, मिलते कई प्रमाण।।

बचपन की यादें भली, बेहतर है एहसास।
खोजे दुख में आदमी, अपना ही इतिहास।।

ताले नफरत के जड़े, लोग आज हैं तंग।
हँसना, रोना, प्यार का, बदल गया है ढ़ंग।।

विज्ञापन पढ़ के लगा, बड़े काम की चीज।
सेवन करने पर बना, परमानेन्ट मरीज।।

खींचो कश सिगरेट के, भागे नहीं तनाव।
सार्थक चिन्तन हो अगर, बढ़ता नित्य प्रभाव।।

बातें बिल्कुल आपकी, और सुमन एहसास।
शब्द सजाया सोचकर, जहाँ लगा जो खास।।

एक अनोखी बात

पाँच बरस के बाद ही, क्यों होती है भेंट?
मेरे घर की चाँदनी, जिसने लिया समेट।।

ऐसे वैसे लोग को, मत करना मतदान।
जो मतवाला बन करे, लोगों का अपमान।।

प्रत्याशी गर ना मिले, मत होना तुम वार्म।
माँग तुरत भर दे वहीं, सतरह नम्बर फार्म।।

सत्ता के सिद्धान्त की, एक अनोखी बात।
अपना कहते हैं जिसे, उससे ही प्रतिघात।।

जनता के उत्थान की, फिक्र जिन्हें दिन रात।
मालदार बन बाँटते, भाषण की सौगात।।

घोटाले के जाँच हित, बनते हैं आयोग।
आए सच कब सामने, वैसा कहाँ सुयोग।।

रोऊँ किसके पास मैं, जननायक हैं दूर।
छुटभैयों के हाथ में, शासन है मजबूर।।

व्यथित सुमन हो देखता, है गुलशन बेहाल।
लोग सही चुन आ सकें, छूटेगा जंजाल।।
*************
 

muktika: --sanjiv

मुक्तिका :
संजीव
*
खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.
झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..
*
सडक पर ले पादुका अभिषेक करतीं बेटियां
शोहदों की सुधरती ही नहीं फिर भी हरकतें
*
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
* ​
बदनीयत होकर ज़माना खुश न अब तक हो सका
नेक नीयत से 'सलिल' ने पाई हरदम बरकतें.
*
नींव में पड़ता नहीं चुपचाप रहकर यदि 'सलिल'
कहें तो किस तरह  मिलतीं सर छिपाने को छतें.
*

adhyatm:

अध्यात्म: 
Photo: माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं, जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें........
=============== =============== =========
क्या आप जानते हैं पूजा में मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला में कितने मोती होतेहैं?
पूजन में मंत्र जप के लिए जो माला उपयोग की जाती है उसमें 108 मोती होते हैं। माला में 108 ही मोती क्यों होते हैं इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।
यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
यहां जानिए मंत्र जप की माला में 108 मोती होने के पीछे क्या रहस्य है...
भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्रजप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह साक्षात् महादेवका प्रतीक ही है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।
शास्त्रों में लिखा है कि-
बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फलं भवेत्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। इनके साथ ही माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है उसकी मनोकामनएं बहुत जल्द पूर्ण होती है। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
आगे जानिए कुछ अलग-अलग कारण जिनके आधार पर माला में 108 मोती रखे जाते हैं...
माला में 108 मोती रहते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि...
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा।।
इस श्लोक के अनुसार एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है उसी से माला के मोतियों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है।
इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माला के 108 मोती और सूर्य की कलाओं का संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता हैए छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकरमाला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मोती सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं।
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाएराशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 2चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो किसुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्याप्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप काएक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं, जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें........
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क्या आप जानते हैं पूजा में मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला में कितने मोती होतेहैं?
पूजन में मंत्र जप के लिए जो माला उपयोग की जाती है उसमें 108 मोती होते हैं। माला में 108 ही मोती क्यों होते हैं इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।
यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
यहां जानिए मंत्र जप की माला में 108 मोती होने के पीछे क्या रहस्य है...
भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्रजप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह साक्षात् महादेवका प्रतीक ही है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।
शास्त्रों में लिखा है कि-
बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फलं भवेत्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। इनके साथ ही माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है उसकी मनोकामनएं बहुत जल्द पूर्ण होती है। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
आगे जानिए कुछ अलग-अलग कारण जिनके आधार पर माला में 108 मोती रखे जाते हैं...
माला में 108 मोती रहते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि...
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा।।
इस श्लोक के अनुसार एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है उसी से माला के मोतियों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है।
इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माला के 108 मोती और सूर्य की कलाओं का संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता हैए छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकरमाला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मोती सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं।
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाएराशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 2चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो किसुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्याप्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप काएक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।