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शनिवार, 23 मई 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
*
धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर
साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर
.
मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर
तारे साथी धमाचौकड़ी मच रहे हैं हुलस-पुलककर
.
बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो
पता नहीं कब भोर हो गयी?, टेरे मौसी उषा लपककर
.
बहकी-महकी मंद पवन सँग, क्लो मोगरे की श्वेतभित
गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर
.
सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर
छोड़न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर
***
हरदोई
८-५-२०१६

मुहावरेदार दोहे

मुहावरेदार दोहे
*
पाँव जमकर बढ़ 'सलिल', तभी रहेगी खैर
पाँव फिसलते ही हँसे, वे जो पाले बैर
*
बहुत बड़ा सौभाग्य है, होना भारी पाँव
बहुत बड़ा दुर्भाग्य है होना भारी पाँव
*
पाँव पूजना भूलकर, फिकरे कसते लोग
पाँव तोड़ने से मिटे, मन की कालिख रोग
*
पाँव गए जब शहर में, सर पर रही न छाँव
सूनी अमराई हुई, अश्रु बहाता गाँव
*
जो पैरों पर खड़ा है, मन रहा है खैर
धरा न पैरों तले तो, अपने करते बैर
*
सम्हल न पैरों-तले से, खिसके 'सलिल' जमीन
तीसमार खाँ हबी हुए, जमीं गँवाकर दीन
*
टाँग अड़ाते ये रहे, दिया सियासत नाम
टाँग मारते वे रहे, दोनों है बदनाम
*
टाँग फँसा हर काम में, पछताते हैं लोग
एक पूर्ण करते अगर, व्यर्थ न होता सोग
*
बिन कारण लातें न सह, सर चढ़ती है धूल
लात मार पाषाण पर, आप कर रहे भूल
*
चरण कमल कब रखे सके, हैं धरती पर पैर?
पैर पड़े जिसके वही, लतियाते कह गैर
*
धूल बिमाई पैर का, नाता पक्का जान
चरण कमल की कब हुई, इनसे कह पहचान?
***
१९-५-२०१६

मुक्तिका/हिंदी ग़ज़ल

मुक्तिका/हिंदी ग़ज़ल
.
किस सा किस्सा?, कहे कहानी
गल्प- गप्प हँस कर मनमानी
.
कथ्य कथा है जी भर बाँचो
सुन, कह, समझे बुद्धि सयानी
.
बोध करा दे सत्य-असत का
बोध-कथा जो कहती नानी
.
देते पर उपदेश, न करते
आप आचरण पंडित-ज्ञानी
.
लाल बुझक्कड़ बूझ, न बूझें
कभी पहेली, पर ज़िद ठानी
***
[ सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय, अरिल्ल छन्द]
२३-५-२०१६
तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नालॉजी
जबलपुर, ११.३० ए एम

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
कर अव्यक्त को व्यक्त हम, रचते नव 'साहित्य'
भगवद-मूल्यों का भजन, बने भाव-आदित्य
.
मन से मन सेतु बन, 'भाषा' गहती भाव
कहे कहानी ज़िंदगी, रचकर नये रचाव
.
भाव-सुमन शत गूँथते, पात्र शब्द कर डोर
पाठक पढ़-सुन रो-हँसे, मन में भाव अँजोर
.
किस सा कौन कहाँ-कहाँ, 'किस्सा'-किस्सागोई
कहती-सुनती पीढ़ियाँ, फसल मूल्य की बोई
.
कहने-सुनने योग्य ही, कहे 'कहानी' बात
गुनने लायक कुछ कहीं, कह होती विख्यात
.
कथ्य प्रधान 'कथा' कहें, ज्ञानी-पंडित नित्य
किन्तु आचरण में नहीं, दीखते हैं सदकृत्य
.
व्यथा-कथाओं ने किया, निश-दिन ही आगाह
सावधान रहना 'सलिल', मत हो लापरवाह
.
'गल्प' गप्प मन को रुचे, प्रचुर कल्पना रम्य
मन-रंजन कर सफल हो, मन से मन तक गम्य
.
जब हो देना-पावना, नातों की सौगात
ताने-बाने तब बनें, मानव के ज़ज़्बात
.

एक दोहा
करें आरती सत्य की, पूजें श्रम को नित्य
हों सहाय सब देवता, तजिए स्वार्थ अनित्य
*
१७-५-२०१५

२३-५-२०१६
कहानी गोष्ठी, २२-५-२०१७
कान्हा रेस्टॉरेंट, जबलपुर, १९.३०

अभियान २० लघुकथा पर्व

समाचार 
ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
२०  वां दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : गज़लकार स्मरण पर्व   
*
जबलपुर, २३-५-२०२०। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के  २० वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान लघुकथा पर्व में देश के विविध राज्यों के २५ लघुकथाकारों ने सहभागिता की। इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान की मुखिया समर्पित समाजसेवी, से.नि. प्राध्यापक आशा रिछारिया तथा पाहुना लघुकथा आंदोलन की शिखर हस्ताक्षर काँटा रॉय भोपाल के स्वागतोपरान्त इंजी. उदयभानु तिवारी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कोकिलकंठी गायिका मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा रचित हिंदी महिमा के दोहों की प्रभावी प्रस्तुति की। विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजल आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने मनुष्य के जन्म के पूर्व ही कथा के उद्भव का संकेत देते हुए महाभारत के अभिमन्यु प्रसंग को उठाया। उन्होंने शिशु कथा, बाल कथा, किशोर कथा, पर्व कथा, बोध कथा, लोक कथा, आदि को लघु कथा के विविध प्रकार निरूपित करते हुए मानकों के पिंजरे में रचनाधर्मिता को कैद कर कृत्रिम साहित्य सृजन को दिशाहीन बताया।

 वरिष्ठ लघुकथाकार लक्ष्मी शर्मा ने 'स्टोर रूम' शीर्षक लघुकथा में वृद्धों को घरों से बहार किये जाने की समस्या को उठाया। अर्चना मलैया की लघुकथा 'बोलते पौधे' में हरीतिमा के प्रति संवेदशीलता प्रदर्शित हुई। छाया त्रिवेदी की लघुकथा 'पत्तल दोना और कोरोना' में परिस्थितिजनित व्यवहारिकता को प्रस्तुत किया। संस्कृत, हिंदी और बुंदेली की विदुषी लेखिका डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने 'कचौट' लघुकथा में सामाजिक मर्यादा के नाम पर असंवेदनशील व्यवहार से जीवन भर टीसती कचौट को सामने लाती है और बदलती सामाजिक परिस्थितियों को स्वीकारने का संदेश देती है। 'प्रश्नचिन्ह' शीर्षक लघुकथा में डॉ. भावना मिश्र ने व्यक्तिगत हित को वरीयता देने और सामाजिक संबंधों की उपेक्षा से उपजी त्रासदी को शब्दित किया। प्रीती मिश्र  की लघुकथा 'स्वच्छता' शीर्षकानुरूप सन्देशवाही लघुकथा है। टीकमगढ़ के लघुकथाकार राजीव् नामदेव 'राना लिघौरी' ने 'बिजनेस' शीर्षक लघुकथा में भिखारी द्वारा चल करने और उसे उचित ठहरने की मानसिकता को उद्घाटित किया।

डॉ. मुकुल तिवारी ने 'प्यासे पशु' शीर्षक लघुकथा में व्यावहारिक बुद्धि के अभावऔर मीना भट्ट की लघुकथा ने जेबकतरी से  उत्पन्न त्रासदी को शब्द दिए। दतिया के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' ने लघुकथा 'सोच' में माँ के प्रति लापरवाह बेटे और बेटे के प्रति मोहान्ध माँ को चित्रित किया। इंजी . सुरेंद्र सिंह पवार की लघुकथा 'नर्मदा मैया की जय विकास कार्यों के प्रति ग्रामीणों के अंध विरोध तथा उनसे लाभ मिलने पर स्वीकारने की मानसिकता को सामने लाती है। विश्वासघाती पति को दो पत्नियों द्वारा दंडित करने पर केंद्रित लघुकथा प्रस्तुत की भारती  नरेश पाराशर ने। 'स्पेसवासी' लघुकथा में छाया सक्सेना 'प्रभु' ने लघुकथा 'स्पेसवासी' में पारिस्थितिक जटिलता को परिहास में लेकर जिंदादिली से जीने  एक संदेश देती है। इंजी अरुण भटनागर ने कोरोना त्रासदी की नीरसता को पौधों की प्रेम वार्ता के माध्यम से तोड़ते हुए जीवन को पूर्णता से जीन एक संदेश दिया। सपना सराफ की लघुकथा 'प्रेमकथा' चित्रपटीय नाटकीयता पूर्ण है। पानीपत से सम्मिलित हुई मंजरी शुक्ल ने 'सोच' शीर्षक लघुकथा  में औरों की खुशी में सम्मिलित होकर खुश होने का सुन्दर संदेश दिया। भिंड से आई लघुकथाकार मनोरमा जैन ;पाखी' ने छद्म शौक के पाखंड पर प्रहार करती लघुकथा प्रस्तुत की।

नक्सलवाद से प्रभावित बस्तर से  सुपरिचित लघुकथाकार रजनी शर्मा ने आदिवासी बोली हल्बी मिश्रित हिंदी में जीवन परिदृश्य प्रस्तुत करते हुए अणुदा लघुकथा  आदिवासियों और वनों के संबंध में बाधक बनते शासन-प्रशासन और विकास कार्यों से उपजी त्रासदी को उद्घाटित करती है ।मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने प्रथम लघुकथा प्रस्तुत करते हुए कल की चिंता छोड़कर आज का स्वागत करने का संदेश दिया। सिद्धेश्वरी सराफ 'शीलू' ने 'सहोदर' शीर्षक लघुकथा में घटनाओं के तानेबाने में छिपे संबंधों के कुहासे में सच को तलाशते किशोर की मानसिक समस्या, सवालों को उठाती है। कार्यक्रम की मुखिया से. नि. प्राध्यापिका आशा रिछारिया की लघुकथा 'असल धर्म' में कोरोना त्रासदी से भूखे मजदूरों मजदूरों की मदद देने का प्रेरक संदेश देती है। विश्ववाणी हिंदी संसथान के संयोजक-संचालक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने लघुकथा मोहन भोग में रोजगार गंवा चुके मजदूरों के पलायन और भुखमरी की समस्या को उठाते हुए उन्हें भोजन करने को भगवन को चढ़ाये मोहन भोग की तरह बताया। दमोह की लघुकथाकार बबीता चौबे 'शक्ति' ने अपनी लघुकथा 'तुम्हारी साथी'लघुकथा में पंचेन्द्रियों से संवाद के माध्यम से नारी विश्वास का संकेतन किया गया। दिल्ली की सफल लघुकथाकार सुषमा शैली की लघुकथा 'बाल मन' में आर्थिक अभाव के बावजूद एक बच्चे के मन में दूसरे बच्चे के प्रति उपजी संवेदना उभर कर सामने आई।

अध्यक्षीय संबोधन में  श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता आशा रिछारिया जी  ने विविध भाषा-बोलिओं के समन्वय को श्रेयस्कर बताते हुए लघुकथा में विविध प्रांतों के लघुकथाकारों के सम्मिलित होने पर हर्ष व्यक्त करते हुए कार्यक्रम को सफल निरूपित किया। मुख्य अतिथि कांता राय ने विषय प्रवर्तन में प्रस्तुत किये गए लघुकथा के विकास को सराहते हुए प्रत्येक लघुकथा पर अपनी राय व्यक्त की। अंत में इंजी अरुण भटनागर ने आभार प्रदर्शन किया।
***

शुक्रवार, 22 मई 2020

हाइकु सलिला

हाइकु सलिला:
संजीव
.
सागर माथा
नत हुआ आज फिर
देख विनाश.
.
झुक गया है
गर्वित एवरेस्ट
खोखली नीव
.
मनमानी से
मानव पराजित
मिटे निर्माण
.
अब भी चेतो
न करो छेड़छाड़
प्रकृति संग
.
न काटो वृक्ष
मत खोदो पहाड़
कम हो नाश
.
न हो हताश
करें नव निर्माण
हाथ मिलाएं.
.
पोंछने अश्रु
पीड़ितों के चलिए
न छोड़ें कमी
.

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
वसुधा मैया भईं कुपित
डोल गईं चट्टानें.
किसमें बूता
धरती कब
काँपेगी अनुमाने?
देख-देख भूडोल
चकित क्यों?
सीखें रहना साथ.
अनसमझा भूकम्प न हो अब
मानवता का काल.
पृथ्वी पर भूचाल
हुए, हो रहे, सदा होएंगे.
हम जीना सीखेंगे या
हो नष्ट बिलख रोएँगे?
जीवन शैली गलत हमारी
करे प्रकृति से बैर.
रहें सुरक्षित पशु-पक्षी, तरु
नहीं हमारी खैर.
जैसी करनी
वैसी भरनी
फूट रहा है माथ.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
टैक्टानिक हलचल को समझें
हटें-मिलें भू-प्लेटें.
ऊर्जा विपुल
मुक्त हो फैले
भवन तोड़, भू मेटें.
रहे लचीला
तरु ना टूटे
अड़ियल भवन चटकता.
नींव न जो
मजबूत रखे
वह जीवन-शैली खोती.
उठी अकेली जो
ऊँची मीनार
भग्न हो रोती.
वन हरिया दें, रुके भूस्खलन
कम हो तभी विनाश।
बंधन हो मजबूत, न ढीले
रहें हमारे पाश.
छूट न पायें
कसकर थामें
'सलिल' हाथ में हाथ
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.

२२-५-२०१७ 

जबलपुर भूकंप की बरसी पर दोहा गीत

जबलपुर भूकंप की बरसी पर
दोहा गीत :
करो सामना
संजीव
*
जब-जब कंपित भू हुई
हिली आस्था-नीव
आर्तनाद सुनते रहे
बेबस करुणासींव
न हारो करो सामना
पूर्ण हो तभी कामना
*
ध्वस्त हुए वे ही भवन
जो अशक्त-कमजोर
तोड़-बनायें फिर उन्हें
करें परिश्रम घोर
सुरक्षित रहे जिंदगी
प्रेम से करो बन्दगी
*
संरचना भूगर्भ की
प्लेट दानवाकार
ऊपर-नीचे चढ़-उतर
पैदा करें दरार
रगड़-टक्कर होती है
धरा धीरज खोती है
*
वर्तुल ऊर्जा के प्रबल
करें सतत आघात
तरु झुक बचते, पर भवन
अकड़ पा रहे मात
करें गिर घायल सबको
याद कर सको न रब को
*
बस्ती उजड़ मसान बन
हुईं प्रेत का वास
बसती पीड़ा श्वास में
त्रास ग्रस्त है आस
न लेकिन हारेंगे हम
मिटा देंगे सारे गम
*
कुर्सी, सिल, दीवार पर
बैंड बनायें तीन
ईंट-जोड़ मजबूत हो
कोने रहें न क्षीण
लचीली छड़ें लगाओ
बीम-कोलम बनवाओ
*
दीवारों में फंसायें
चौखट काफी दूर
ईंट-जुड़ाई तब टिके
जब सींचें भरपूर
रैक-अलमारी लायें
न पल्ले बिना लगायें
*
शीश किनारों से लगा
नहीं सोइए आप
दीवारें गिर दबा दें
आप न पायें भाँप
न घबरा भीड़ लगायें
सजग हो जान बचायें
*
मेज-पलंग नीचे छिपें
प्रथम बचाएं शीश
बच्चों को लें ढांक ज्यों
हुए सहायक ईश
वृद्ध को साथ लाइए
ईश-आशीष पाइए
***
१३-५-२०१५

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
जो हुआ सो हुआ
.
बाँध लो मुट्ठियाँ
चल पड़ो रख कदम
जो गये, वे गये
किन्तु बाकी हैं हम
है शपथ ईश की
आँख करना न नम
नीलकण्ठित बनो
पी सको सकल गम
वृक्ष कोशिश बने
हो सफलता सुआ
.
हो चुका पूर्व में
यह नहीं है प्रथम
राह कष्टों भरी
कोशिशें हों न कम
शेष साहस अभी
है बहुत हममें दम
सूर्य हैं सच कहें
हम मिटायेंगे तम
उठ बढ़ें, जय वरें
छोड़कर हर खुआ
.
चाहते क्यों रहें
देव का हम करम?
पालते क्यों रहें
व्यर्थ मन में भरम?
श्रम करें तज शरम
साथ रहना धरम
लोक अपना बनाएंगे
फिर श्रेष्ठ हम
गन्स जल स्वेद है
माथ से जो चुआ
**
मंगलवार, 28 अप्रैल 2015​​

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
विलग हुए भूखंड तपिश साँसों की
सही न जाती
भुज भेंटे कंपित हो भूतल
भू की फटती छाती
कहाँ भू-सुता मातृ-गोद में
जा जो पीर मिटा दे
नहीं रहे नृप जो निज पीड़ा
सहकर धीर धरा दें
योगिनियाँ बनकर
इमारतें करें
चेतना-कर्तन
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
पवन व्यथित नभ आर्तनाद कर
आँसू धार बहायें
देख मौत का तांडव चुप
पशु-पक्षी धैर्य धरायें
ध्वंस पीठिका निर्माणों की,
बना जयी होना है
ममता, संता, सक्षमता के
बीज अगिन बोना है
श्वास-आस-विश्वास ले बढ़े
हास, न बचे विखंडन
**
सोमवार, 27 अप्रैल 2015

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
संजीव
.
रूठे थे केदार अब, रूठे पशुपतिनाथ
वसुधा को चूनर हरी, उढ़ा नवाओ माथ
.
कामाख्या मंदिर गिरा, है प्रकृति का कोप
शांत करें अनगिन तरु, हम मिलकर दें रोप
.
भूगर्भीय असंतुलन, करता सदा विनाश
हट संवेदी क्षेत्र से, काटें यम का पाश
.
तोड़ पुरानी इमारतें, जर्जर भवन अनेक
करे नये निर्माण दृढ़, जाग्रत रखें विवेक
.
गिरि-घाटी में सघन वन, जीवन रक्षक जान
नगर बसायें हम विपुल, जिनमें हों मैदान
.
नष्ट न हों भूकम्प में, अपने नव निर्माण
सीखें वह तकनीक सब, भवन रहें संप्राण
.
किस शक्ति के कहाँ पर, आ सकते भूडोल
ज्ञात, न फिर भी सजग हम, रहे किताबें खोल
.
भार वहन क्षमता कहाँ-कितनी लें हम जाँच
तदनसार निर्माण कर, प्रकृति पुस्तिका बाँच
.

२२-५-२०१७ 

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
भूगर्भी चट्टानें सरकेँ,
कांपे धरती.
ऊर्जा निकले, पड़ें दरारें
उखड़े पपड़ी
हिलें इमारत, छोड़ दीवारें
ईंटें गिरतीं
कोने फटते, हिल मीनारें
भू से मिलतीं
आफत बिना बुलाये आये
आँख दिखाये
सावधान हो हर उपाय कर
जान बचायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
द्वार, पलंग तले छिप जाएँ
शीश बचायें
तकिया से सर ढाँकें
घर से बाहर जाएँ
दीवारों से दूर रहें
मैदां अपनाएँ
वाहन में हों तुरत रोक
बाहर हो जाएँ
बिजली बंद करें, मत कोई
यंत्र चलायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
बाद बड़े झटकों के कुछ
छोटे आते हैं
दिवस पाँच से सात
धरा को थर्राते हैं
कम क्षतिग्रस्त भाग जो उनकी
करें मरम्मत
जर्जर हिस्सों को तोड़ें यह
अतिआवश्यक
जो त्रुटिपूर्ण भवन उनको
फिर गिरा बनायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
है अभिशाप इसे वरदान
बना सकते हैं
हटा पुरा निर्माण, नव नगर
गढ़ सकते हैं.
जलस्तर ऊपर उठता है
खनिज निकलते
भू संरचना नवल देख
अरमान मचलते
आँसू पीकर मुस्कानों की
फसल उगायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.

२२-५-२०१७ 

मुक्तिका

मुक्तिका
*
घुलें-मिल, बनें हम
न मैं-तुम, रहें अब
.
कहो तुम, सुनें हम
मिटें दूरियाँ सब
.
सभी सच, सुनें हम
न कोई नबी-रब
.
बढ़ो तुम, बढ़ें हम
मिलें मंज़िलें तब
.
लिखो तुम, पढ़ें हम
रहें चुप, सुनें जब
.
सिया-सत वरें हम
सियासत अजब ढब
.
बराबर हुए हम
छिना मत, नहीं दब
.
[दस मात्रिक दैशिक छन्द,
मापनी- १२ ११ १२११,
रुक्न- फऊलुन फऊलुन]
१०-५-२०१६, हरदोई

गीत

गीत 
*
पूजन से
पापों का क्षय
हो पाता तो
सारे पापी
देव पूजकर तर जाते।
गुप्त न रहता चित्र
मनुज के कर्मों का
गीतकार
नित हत्यारों के गुण गाते ।
*
कर्मयोग की सीख, न अर्जुन को मिलती
सूर्य न करता मेहनत, साँझ नहीं ढलती।
बाँझ न होती नींव, न दबकर चुप रहती-
महक बिखेर न कली, भ्रमर खातिर खिलती।
सृजन अगर
तापों का भय
हर पाता तो,
सारे सर्जक
निहित सर्जना
घर लाते।
*
स्वेद न गंगा-जल सम, पूजा गया अगर
दौलत देख प्रेम भी, भूला गया अगर।
वादों को 'जुमला' कह, जन विश्वास-छला
लोकतंत्र की मीन निगल, जन-द्रोह-मगर
पूछेगा
जनप्रतिनिधि
आम जनों जैसा
रहन-सहन, आचरण
नहीं क्यों अपनाते?
*
संसद आकर स्नान, कुम्भ में क्यों न करे?
मतभेदों को सलिल-धार में क्यों न तजे?
पेशवाई में 'कल' की 'कल' को 'आज' वरे-
ख़ास न क्यों वह जो जनगण की पीर हरे?
प्रश्नों के उत्तर
विधायिका
खोजे तो
विनत प्रशासक
नागरिकों के दर जाते
*
२२.५.२०१६

स्वास्थ्य दोहा

स्वास्थ्य दोहा 
*
रोज संतरा खाइए, किडनी रहे निरोग.
पथरी घुलकर निकलती, करें आप सुख-भोग..
*
सेवन से तरबूज के, मिले शक्ति-भंडार.
परा बैंगनी किरण का, करे यही प्रतिकार.
*
कब्ज़ दूरकर, विटामिन सी देते भरपूर.
रोज़ पपैया-गुआवा, जी भर खांय जरूर.
*
पौरुष ग्रंथिज रोग को, रखता तन से दूर.
रोज टमाटर खाइए, स्वाद रुचे भरपूर..
*
अजवाइन-जैतून का, तेल बढ़ाये आब.
बढ़ा हुआ घट जायेगा, 'सलिल' रक्त का दाब..
*
खा ब्रोकोली (गोभी) मूंगफली, बनिए सेहत मंद.
रक्त-शर्करा नियंत्रित , इंसुलीन हो बंद..

एवाकाडो = नाशपाती की तरह का ऊष्णकटिबंधीय फल.
*
बड़ी आँत का कैंसर, उराघात से जूझ.
सेब और किवी खाइए, खनिज विटामिन बूझ.
*
खा हिसाल-शहतूत फल, रोग भगाएं आप.
प्रतिरोधक ताकत बढे, सके न कोई नाप
*
अगर फेंफडे में हुआ, हो कैंसर का कष्ट.
नारंगी गहरी हरी, सब्जी होती इष्ट.
*
बंधा गोभी से मिले, अल्सर में आराम.
ज़ख्म ठीक हो शीघ्र ही, यदि न विधाता वाम..
*
अगर दस्त-अतिसार से, आप हो रहे त्रस्त.
खाएं केला-सेब भी, पस्त न हों, हों मस्त..
*
नाशपातियाँ खाइए, कम हो कोलेस्ट्रोल.
धमनी में अवरोध का, है इलाज अनमोल.. 
*
अनन्नास खा-रस पियें, हड्डी हो मजबूत.
टूटी हड्डी शीघ्र जुड़, दे आराम अकूत..
*
याददाश्त गर दे दगा, बातें रहें न याद.
सेवन करिए शुक्ति का, समय न कर बर्बाद .. 
शुक्ति = सीप
*
सर्दी-कोलेस्ट्रोल जब बढे, न हों हैरान.
लहसुन का सेवन करे, सस्ता-सुलभ निदान..
*
मिर्च खाइए तो रहे, बढ़ा हुआ कफ शांत.
ध्यान पेट का भी रखें, हो ना क्रुद्ध-अशांत..
*
गेहूँ चोकर खाइए, पत्ता गोभी संग.
वक्ष कैंसर में मिले, लाभ- आप हों दंग
*
नाक में दम कर दे दमा,'सलिल' न हो आराम.
खा-छाती पर लगा लें, प्याज़ करें विश्राम..
*
संधिवात-गठिया करे, अगर आपको तंग.
मछली का सेवन करें, मन में जगे उमंग..
*
उदर कष्ट से मुक्ति हो, केला खाएं आप.
अदरक उबकाई मिटा, हरती है संताप..
*
मूत्राशय संक्रमण में, हों न आप हैरान.
क्रेनबैरी का रस पियें, आए जां में जान.. 
क्रेनबैरी = करौंदा
*
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
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हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
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नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
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२२-५-२०१०
divyanarmada.blogspot.com

मुक्तिका वह एक है

मुक्तिका 
वह एक है

वह एक है, हम एक हों रस-छंद की तरह
करिए विमर्श नित्य परमानंद की तरह
जात क्या? औकात क्या? सच गुप्त चित्त में
आत्म में परमात्म ब्रह्मानंद की़ तरह
व्योम में राकेश औ' दिनेश साथ-साथ
बिखेरते उजास काव्यानंद की तरह
काया नहीं कायस्थ है निज आत्म तत्व ही
वह एक है, हम एक हैं आनंद की तरह
जो मातृशक्ति है उसे भी पूजिए हुजूर
बिन शक्ति शक्तिवान निरानंद की तरह
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मुक्तिका जय बोल रहे

मुक्तिका 
जय बोल रहे
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हिंदीप्रेमी कलमकार मिल कविता की जय बोल रहे
दिल से दिल के बीच बनाकर पुल नित नव रस घोल रहे
सुख-दुख धूप-छाँव सम आते-जाते, पूछ सवाल रहे
शब्द-पुजारी क्या तुम खुद को कर्म तुला में तोल रहे?
को विद? है विद्वान कौन? यह कोविद उन्निस पूछ रहा
काहे को रोना?, कोरोना कहे न बाकी झोल रहे
खुद ही खुद का कर खयाल, घर में रह अमन-चैन से तू
सुरा हेतु मत दौड़ लगा तू, नहीं ढोल में पोल रहे
अनुशासित परउपकारी बन, कर सहायता निर्बल की
सज नहीं जो रहा 'सलिल' उसका तो बिस्तर गोल रहे

अभियान १९ वां अनुष्ठान - गज़लकार स्मरण पर्व

समाचार 
ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
१९ वां दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : गज़लकार स्मरण पर्व :  
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जबलपुर, २२-५-२०२०। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के  १९ वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान  गज़लकार स्मरण पर्व  का श्री गणेश मुखिया इंजी सलीम अंसारी  व्  शायर अनिल अनवर, जोधपुर द्वारा माँ सरस्वती पूजन से हुआ। कोकिलकंठी गायिका-शिक्षिका मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा ग़ज़ल विधा में कही गयी सरस्वती  वंदना " शारदे माँ! आ गये हम द्वार तेरे कर कृपा / शब्द सुमनों का लिए गलहार मैया कर कृपा'' गाकर करतल ध्वनि पाई। विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने ग़ज़ल के संक्षिप्त इतिहास पर प्रकाश डालते हुए नई पीढ़ी को ग़ज़ल के विकास में नींव का पत्थर रहे ग़ज़लकारों के काम से नयी पीढ़ी को अवगत कराने की जरूरत बताई। मीना भट्ट ने मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रसिद्ध ग़ज़ल 'दिले नादां तुझे हुआ क्या है' का गायन किया। डॉ. मुकुल तिवारी ने दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल 'हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए'  प्रस्तुत की। 

डॉ अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' ने शिवकुमार अर्चन की ग़ज़ल 'हर होंठ पर लिखूंगा मैं एक प्यार की ग़ज़ल ' प्रस्तुतकर वाहवाही पाई।  जोधपुर की मशहूर शास्त्रीय गायिका मृदुला श्रीवास्तव ने शायर गुलरेज़ इलाहाबादीकी ग़ज़ल  'दर परदा चाहतों का कोई सिलसिला तो है / पत्थर समझ के कोइ मुझे पूजता तो है' पेश की तो श्रोताओं ने करतल ध्वनि की झड़ी लगा दी। से.नि. ग्रुप कैप्टेन श्यामल सिन्हा गुड़गांव ने डॉ. विष्णु सक्सेना अलीगढ की ग़ज़ल 'रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा / एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं' गाकर वाहवाही पाई। संस्कृत साहित्य की पुरोधा डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने अभिराज राजेंद्र मिश्रा की गलज्जलिकाओं  (संस्कृत ग़ज़ल) का पठन करते हुए उन्हें अन्तर्निहित छंद और बहर का उल्लेख किया। से. नि. अरुण भटनागर ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' रचित बुंदेली ग़ज़ल "बखत बदल गओ आँख चुरा रए / सगे पीठ मा भौंक छुरा रए " सुनाकर सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार किया। 

प्रख्यात भाषाविद डॉ. सुरेश कुमार ने राज नारायण राज की ग़ज़ल ''क्या बात थी कि जो भी सुना अनसुना हुआ / दिल के नगर में शोर में था कैसा मचा हुआ'' का वाचन कर श्रोताओ को मंत्र मुग्ध कर दिया। डॉ भावना दीक्षित ने आदिल राजा मंसूरी की ग़ज़ल 'दिन के सीने पर शाम का पत्थर / एक पत्थर पे दूसरा पत्थर'  सुनाई। आज के मुखिया इंजी सलीम अंसारी ने १६ दीवानों के रचयिता अन्तर्राष्ट्रीय शायर खुशबीर सिंह ''शाद'' जालंधर की ग़ज़ल ''आईने में पहले एक चेहरा हुआ करता था मैं / ये मुझे क्या हो गया है,  क्या हुआ करता था मैं'' पेश करते हुए इसे ग़ज़ल का आधुनिक चेहरा बताया। आज के पाहुने मरू गुलशन पत्रिका के संपादक अनिल अनवर जोधपुर ने मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल ''रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो / हमसफ़र कोई न हो और हमजुबां कोई न हो'' पेश कर एक-एक शेर को ख़ूबसूरती से पेश किया। 

लखनऊ के शायरे आजम कृष्ण बिहारी नूर के शागिर्दे ख़ास इंजी। देवकीनंदन 'शांत' ने   ''ज़िन्दगी से बड़ी सजा ही नहीं / और क्या जुर्म है पता ही नहीं' सुनाकर महफ़िल लूट ली। सपना सराफ ने गुलज़ार जी की लिखी नज़्म 'मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है'' पेश की। डॉ. आलोक रंजन पलामू ने अंगद किशोर की ग़ज़ल प्रस्तुत की। युवा सारांश गौतम ने रामराज फ़ौज़दार 'फ़ौजी' की ग़ज़ल 'मेरा दिल मुझसे वो गुजरे हुए मौसम चाहे / गुम हुए दोस्त और बिछुड़े हुए हमदम चाहे'' प्रस्तुत कर शाबाशी पाई।  दिल्ली से तशरीफ़ लाई सुषमा शैली ने खलील धनतेरवी जी की ग़ज़ल 'अब मैं राशन की कतारों में नज़र आता हूँ / अपने खेतों से बिछुड़ने की सजा पाता हूँ'' पेश कर ग़ज़ल का यथार्थवादी चेहरा उजागर किया। जबलपुर के हर दिल अज़ीज़ शायर यूनुस अदीब ने अपने उस्ताद  ''तुम आज सुन रहे हो की इंसान मर गया / इस हादसे को एक जमाना गुजर गया'' साबिर जबलपुरी का कलाम पढ़कर महफ़िल से शाबाशी पाई। चबल की वादी में भिंड से आई मनोरमा जैन 'पाखी' ने शकील बदायूँनी  की ग़ज़ल 'मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्कुरा, मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं' प्रस्तुत की।  पाहुने अनिल अनवर जी ने आयोजन की गुणवत्ता और स्तर की सराहना करते हुए लोकडाउन समापन की कामना करते हुआ सामान्य और सुरक्षित जीवन की कामना की। मुखिया की आसंदी से शायर इंजी सलीम अंसारी ने आज के आयोजन में हिंदी-उर्दू के साथ संस्कृत, अंग्रेजी और बुंदेली में ग़ज़ल प्रस्तुति को ऐतिहासिक निरूपित करते हुए ऐसे प्रयासों की निरंतरता प्रतिपादित की। प्रो. आलोकरंजन द्वारा आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।  

गुरुवार, 21 मई 2020

मुक्तिका: जिंदगी की इमारत

मुक्तिका: 
जिंदगी की इमारत

जिंदगी की इमारत में, नींव हो विश्वास की।
प्रयासों की दिवालें हों, छत्र हों नव आस की।
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बीम संयम की सुदृढ़, मजबूत कॉलम नियम के।
करें प्रबलीकरण रिश्ते, खिड़कियाँ हों हास की।।
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कर तराई प्रेम से नित, छपाई कर नीति से।
ध्यान धरना दरारें बिलकुल न हों संत्रास की।।
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रेत कसरत, गिट्टियाँ शिक्षा, कला सीमेंट हो।
फर्श श्रम का, मोगरा सी गंध हो वातास की।।
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उजाला शुभकामना का, द्वार हो सद्भाव का।
हौसला विद्युतिकरण हो, रौशनी सुमिठास की।।
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फेंसिंग व्यायाम, लिंटल मित्रता के हों 'सलिल'।
बालकनियाँ पड़ोसी अपनत्व के अहसास की।।
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वरांडे हो मित्र, स्नानागार सलिला सरोवर।
पाकशाला तृप्ति, पूजास्थली हो सन्यास की।।
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7999559618, 9425183244
salil.sanjiv@gmail.com
मुक्तिका
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शब्द पानी हो गए
हो कहानी खो गए
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आपसे जिस पल मिले
रातरानी हो गए
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अश्रु आ रूमाल में
प्रिय निशानी हो गए
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लाल चूनर ओढ़कर
क्या भवानी हो गए?
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नाम के नाते सभी
अब जबानी हो गए
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गाँव खुद बेमौत मर
राजधानी हो गए
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हुए जुमले, वायदे
पानी पानी हो गए
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२१-५-२०१७