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बुधवार, 13 मई 2020

मुक्तक

मुक्तक सलिला:
दिल ही दिल
संजीव
*
तुम्हें देखा, तुम्हें चाहा, दिया दिल हो गया बेदिल
कहो चाहूँगा अब कैसे, न होगा पास में जब दिल??
तुम्हें दिलवर कहूँ, तुम दिलरुबा, तुम दिलनशीं भी हो
सनम इंकार मत करना, मिले परचेज का जब बिल
*
न देना दिल, न लेना दिल, न दिलकी डील ही करना
न तोड़ोगे, न टूटेगा, नहीँ कुछ फ़ील ही करना
अभी फर्स्टहैंड है प्यारे, तुम सैकेंडहैंड मत करना
न दरवाज़ा खुल रख्नना, न कोई दे सके धऱना
*
न दिल बैठा, न दिल टूटा, न दहला दिल, कहूँ सच सुन
न पूछो कैसे दिल बहला?, न बोलूँ सच , न झूठा सुन,
रहे दिलमें अगर दिलकी, तो दर्दे-दिल नहीं होगा
कहो संगदिल भले ही तुम, ये दिल कातिल नहीँ होगा
*
लगाना दिल न चाहा, दिल लगा कब? कौन बतलाये??
सुनी दिल की, कही दिल से, न दिल तक बात जा पाये।
ये दिल भाया है जिसको, उसपे क्यों ये दिल नहीं आया?
ये दिल आया है जिस पे, हाय! उसको दिल नहीं भाया।
१३-५-२०१४ 
***

मंगलवार, 12 मई 2020

अभियान लोक पर्व १२-५-२०१०

अभियान लोक पर्व १२-५-२०१०  . 
अध्यक्ष -  सुरेश तन्मय जी , मुख्य अतिथि - मीना भट्ट  जी 
संचालन : छाया सक्सेना जी, सरस्वती वंदना - राजेश तिवारी, मैहर  
तन्मय तन्मय जी हुए, मीनाकारी देख
छाया खींचे सूर्य के, उजियारे की रेख

प्रभु को भू पर देखकर, कोरोना हैरान 
काये को रोना भगूं, निकर न जाए जान

वे हिंदी के फूल हैं, हम हिंदी के फूल
शिखर ताज के हैं सनम, हम सड़कों की धूल 

राजलक्ष्मी पुनीता विज्ञ, सुस्वागत आज 
राना इंद्र विनोद कर, साध रहे शुभ काज   

राजेश तिवारी, मैहर ने सरस्वती वंदना की 'जय जय माता शारदे जय गणपति महाराज / कवि कुल की रक्षा करो, सदा निभाओ साथ'। अध्यक्ष श्री सुरेश तन्मय, मुख्य अतिथि मीना भट्ट तथा संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के  पुष्प स्वागत पश्चात् विजय बागरी ने 'काहे राम करैया' प्रस्तुत की। जयप्रकाश जी ने मांर्मिक बिदा गीत 'काहे कर दओ मोहे नैनों से दूर बाबुल तुमरे बिरछ की छाँव भली' प्रस्तुत कर सबकी आँखें गीले कर दीं। अर्चना गोस्वामी ने सुमधुर सोहर गीत ''मांगें ननद रानी कँगना, लालन के भये में'' प्रस्तुत कर करतल ध्वनि पाई। 

कोकिलकंठी कंठ की है जयकार पुनीत 
गायें सस्वर अर्चना, सुमधुर सोहर गीत

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी की स्मृतिशेष मातु शांति देवी वर्मा जी रचित दो लोक गीत धन धन भाग हमारे राम द्वारे आए तथा जनक अँगना में होती ज्योनार पटल पर विशेष रूप से प्रस्तुत किये गए। 

मीना भट्ट जी ने मनोरंजक लोकगीत 'छेड़ रहे मोहे भाभी के भैया' सुनाया। इंजी. उदयभान तिवारी 'मधुकर' ने लोकरंग आधारित 'बृज की गली-गली में शोर, नाचें राधा-नंद किशोर' प्रस्तुत कर फ़िज़ा में रस घोल दिया। पलामू झारखंड के श्रेष्ठ ज्येष्ठ कवि श्रीधर द्विवेदी ने बरवै छंद में बारहमासा सुनकर वाहवाही पाई। 

मधुकर की गुंजार सुन, हँसते नंद किशोर
श्रीधर आये दौड़ ले, बारहमासी भोर।

'दुनिया उलटी सीधी चालै जी कौ अर्थ समझ नई आवै' सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करता राजस्थानी लोकगीत सपरी लोकधुन में प्रस्तुत कर सराहना पाई भीलवाड़ा की प्राचार्य कवयित्री पुनीता भारदवाज ने। 

लोक की नवछटा, सुना पुनीता झूम
कितनी ताली ले गयीं, कहें किसे मालूम?   

सिरोही से श्री छगनलाल गर्ग 'विज्ञ' ने लोक कथा और लोक नाट्य के वेगड़ (बेघर) होने पर चिंता व्यक्त की। 

लोक कथा में लोक ने, कही हमेशा बात
लोक नाट्य ने प्रात ला, खत्म किया तम-रात

पलामू झारखण्ड से प्रो. आलोक रंजन ने विद्वतापूर्ण वक्तव्य में झारखंडी सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता से उद्गमित बताया। सागवाड़ा राजस्थान के विनोद जैन 'वाग्वर' ने सरस् गीत 'रिमझिम रिमझिम मेहा बरसे' प्रस्तुत किया। 

मनुज सभ्यता-संस्कृति, तम हर दे आलोक 
मन विनोद साहित्य कर, हरता मन का शोक 

डॉ. मुकुल तिवारी ने जनकथा के माध्यम से कच्चे आम की गुठली (गुही) का उपयोग कर घमोरियों की चिकित्सा करने की जानकारी दी। गुही का उपयोग कर मुंह से बजाने वाला वाद्य भी बनाया जाता है। उमा मिश्रा 'प्रीति' ने लोक आस्था के केंद्र, उस्ताद अलाउदीन खान, पंडित रविशंकर आदि की साधनास्थली  शारदा माता मंदिर मैहर की स्थापना संबंधी लोक कथा प्रस्तुत की।  अभियान के अध्यक्ष श्री बसंत शर्मा ने विवाह गीत परम्परा पर प्रकाश डाला। श्रीमती मंजरी शर्मा ने एक गारी गीत प्रस्तुत किया। 

लगी आम में मंजरी, महका झूम बसंत 
गारी के मिस हो रहा, है आनंद अनंत 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने लोक साहित्य, लोक गीत का लोक में व्याप्त होना अपरिहार्य बताया। उनहोंने लोक साहित्य की तर्ज पर रचे जा रहे लोक भाषिक नव साहित्य को लोक तक पहुँचाना आवश्यक बताया। आचार्य सलिल ने बुंदेली लोककवि ईसुरी की फाग पर आधारित नवगीत, पारंपरिक फाग तथा बुंदेली लोकगीत की लय पर रचित कोरोना गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं से सराहना पाई।  संचालिका छाया सक्सेना ने बुंदेली पारंपरिक सुहाग गीत 'सखियों को देना सुहाग, सुहाग महारानी / जैसा सुहाग रिद्धि-सिद्धि को दीना, बरपाये गणनाथ '  प्रस्तुत कर कार्यक्रम को शिखर पर पहुंचा दिया। अध्यक्ष सुरेश 'तन्मय' जी ने प्रेरक संबोधन देते हुए निमाड़ी लोकगीत सुनाया।  डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे, भारती नरेश सराफ आदि ने भी अपनी प्रस्तुति से कार्यक्रम को सफल बनाया। आभार प्रदर्शन प्रो. आलोक रंजन ने किया। लोक साहित्य पर केंद्रित यह लोक पर्व अपनी मिसाल आप है। विश्ववाणी हिंदी संसथान जबलपुर ने लगातार ९ वे दिन अंतरजाल पर वाट्स ऐप समूह में लोकोपयोगी कार्यक्रम प्रस्तुत किया इसके पूर्व छंद पर्व, लघुकथा पर्व, गीत पर्व, गद्य पर्व, हिंदी ग़ज़ल पर्व, कोरोना ; अभिशाप में वरदान, कला पर्व तथा बाल पर्व प्रस्तुत किये जा चुके हैं। आगामी पुस्तक पर्व के अंतर्गत सदस्यों से उनकी मनपसंद पुस्तक की वाचिक समीक्षा आमंत्रित है। अभियान देश की एक मात्र संस्था है जो कला-साहित्य के हर आयाम में कार्य कर समाज  में सकारात्मक ऊर्जा के प्रसार हेतु संकल्पित-समर्पित-सक्रिय है। 
***    

नवगीत

नवगीत
कब होंगे आज़ाद???...
संजीव 'सलिल'
*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
गए विदेशी पर देशी
अंग्रेज कर रहे शासन
भाषण देतीं सरकारें पर दे
न सकीं हैं राशन
मंत्री से संतरी तक कुटिल
कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
नेता-अफसर दुर्योधन हैं,
जज-वकील धृतराष्ट्र
धमकी देता सकल राष्ट्र
को खुले आम महाराष्ट्र
आँख दिखाते सभी
पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होगे आजाद?
खाप और फतवे हैं अपने
मेल-जोल में रोड़ा
भष्टाचारी चौराहे पर खाए
न जब तक कोड़ा
तब तक वीर शहीदों के
हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
पनघट फिर आबाद हो
सकें, चौपालें जीवंत
अमराई में कोयल कूके,
काग न हो श्रीमंत
बौरा-गौरा साथ कर सकें
नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
रीति-नीति, आचार-विचारों
भाषा का हो ज्ञान
समझ बढ़े तो सीखें
रुचिकर धर्म प्रीति
विज्ञान
सुर न असुर, हम आदम
यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
****************
१२-५-२०११

मातृ-वन्दना

मातृ-वन्दना:
संजीव
.
भारती के गीत गाना चाहिए
देश हित मस्तक कटाना चाहिए
.
मातृ भू भाषा जननि को कर नमन
गौ नदी हैं मातृ सम बिसरा न मन
प्रकृति मैया को न मैला कर कभी
शारदा माँ के चरण पर धर सुमन
लक्ष्मी माँ उसे ही मनुहारती
शक्ति माँ की जो उतारे आरती
स्वर्ग इस भू पर बसाना चाहिए
भारती के गीत गाना चाहिए
देश हित मस्तक कटाना चाहिए
.
प्यार माँ करती है हर संतान से
शीश उठता हर्ष सुख सम्मान से
अश्रु बरबस नयन में आते झलक
सुत शहीदों के अमर बलिदान से
शहादत है प्राण पूजा जो करें
वे अमरता का सनातन पथ वरें
शहीदों-प्रति सर झुकाना चाहिए
भारती के गीत गाना चाहिए
देश हित मस्तक कटाना चाहिए
.
देश-रक्षा हर मनुज का धर्म है
देश सेवा से न बढ़कर कर्म है
कहा गीता, बाइबिल, कुरआन ने
देश सेवा जिन्दगी का मर्म है
जब जहाँ जितना बने उतना करें
देश-रक्षा हित मरण भी हँस वरें
जियें जब तक मुस्कुराना चाहिए
भारती के गीत गाना चाहिए
देश हित मस्तक कटाना चाहिए
.
१२-५-२०१५

मुक्तिका

मुक्तिका:
संजीव
*
चाह के चलन तो भ्रमर से हैं
श्वास औ' आस के समर से हैं
आपको समय की खबर ही नहीं
हमको पल भी हुए पहर से हैं
आपके रूप पे फ़िदा दुनिया
हम तो मन में बसे, नजर से हैं
मौन हैं आप, बोलते हैं नयन
मन्दिरों में बजे गजर से हैं
प्यार में हार हमें जीत हुई
आपके धार में लहर से हैं
भाते नाते नहीं हमें किंचित
प्यार के शत्रु हैं, कहर से हैं
गाँव सा दिल हमारा ले भी लो
क्या हुआ आप गर शहर से हैं.
***
१२-५-२०१५

मुक्तक

मुक्तक:
संजीव
.
कलकल बहते निर्झर गाते
पंछी कलरव गान सुनाते गान
मेरा भारत अनुपम अतुलित
लेने जन्म देवता आते
.
ऊषा-सूरज भोर उगाते
दिन सपने साकार कराते
सतरंगी संध्या मन मोहे
चंदा-तारे स्वप्न सजाते
.
एक साथ मिल बढ़ते जाते
गिरि-शिखरों पर चढ़ते जाते
सागर की गहराई नापें
आसमान पर उड़ मुस्काते
.
द्वार-द्वार अल्पना सजाते
रांगोली के रंग मन भाते
चौक पूरते करते पूजा
हर को हर दिन भजन सुनाते
.
शब्द-ब्रम्ह को शीश झुकाते
राष्ट्रदेव पर बलि-बलि जाते
धरती माँ की गोदी खेले
रेवा माँ में डूब नहाते
***
१२-५-२०१५

दोहा

एक दोहा
*
जब चाहा संवाद हो, तब हो गया विवाद
निर्विवाद में भी मिला, हमको छिपा विवाद.
सलिल बर्बाद हुए हम 
नहीं आबाद सखे हम 
१२-५-२०१५

निश्चल छंद


छंद सलिला:
निश्चल छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १६-७, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण)
लक्षण छंद:
कर सोलह सिंगार, केकसी / पाने जीत
सात सुरों को साध, सुनाये / मोहक गीत
निश्चल ऋषि तप छोड़, ऱूप पर / रीझे आप
संत आसुरी मिलन, पुण्य कम / ज्यादा पाप
उदाहरण:
१. अक्षर-अक्षर जोड़ शब्द हो / लय मिल छंद
अलंकार रस बिम्ब भाव मिल / दें आनंद
काव्य सारगर्भित पाठक को / मोहे खूब
वक्ता-श्रोता कह-सुन पाते / सुख में डूब
२. माँ को करिए नमन, रही माँ / पूज्य सदैव
मरुथल में आँचल की छैंया / बगिया दैव
पाने माँ की गोद तरसते / खुद भगवान
एक दिवस क्या, कर जीवन भर / माँ का गान
३. मलिन हवा-पानी, धरती पर / नाचे मौत
शोर प्रदूषण अमन-चैन हर / जीवन-सौत
सर्वाधिक घातक चारित्रिक / पतन न भूल
स्वार्थ-द्वेष जीवन-बगिया में / चुभते शूल
*********
१२-५-२०१४ 
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

सोमवार, 11 मई 2020

अभियान : बाल पर्व ११-५-२०२०

अभियान : बाल पर्व ११-५-२०२०
माँ शारद का अमर यश, छाया है चहुँ ओर
जड़ को कर संजीव माँ, थामो जीवन डोर

चंदा मामा को रहीं, विकल बबीता टेर
आ भी जाओ धरा पर, करो नहीं अंधेर

हैं हैरान पढ़ाई से, बाल बसंत पुकार
चाँद-सितारे खोजते, कहाँ पतंग अरु यार

देश भक्ति का रोपतीं, बीज मुकुल गा गीत
नाती से लव समझते, अरुण नई है रीत

रूद्र प्रशिक्षा नवाशा, भारत की संतान
सीख-सिखाते सीख नव, करें देश पर मान 

भजिया पोहा गरम जलेबी, लाई छाया साथ
बाँट खिलाएँ तभी बजाने, ताली जुड़ते हाथ

तन्मय हो तन्मय करें, कंप्यूटर से खेल
चूहा-बिल्ली कार में, मछली-भैंसा मेल

राजलक्ष्मी सीख दें, सुना कहानी मान
पीड़ित की करना मदद, होंगे खुश भगवान

व्यथा कथा क्या भूख की, सुनिए देकर ध्यान
मनोरमा की लघुकथा, कहे मिटा इंसान

यादें बचपन की मधुर, कभी न रीते कोष
कविता कहकर सुमधुर, कहें शुक्ल संतोष

श्यामल सिन्हा बन रहे, बच्चा फिर से आज
यार बहारों के हुए, शीश चढ़ाएँ ताज

बानी छत्तीसगढ़ी सुना, मन मोहें कर गान
रजनी जी  सम सब करें, माटी पर अभिमान

राम नाम जप रहे हैं, होकर लीन विधान
मीना जी बचपन जिएँ, कर मूल्यों का गान

सरल सहज शिशु गीत हैं, शैशव की पहचान
लिए भारती कह रहीं, इनका नया वितान 

सूर्य! मिटाओ कोरोना, श्रीधर विनय विशेष
दिया नृत्य कर बताती, प्रतिभा छिपी अशेष

हैं दमोह की शान जो,आन बान पहचान
काव्य बबीता जी पढ़ें, कलरव स्वर रस खान

बचपन ढूँढें बबीता, चौबे जी हैरान
कौन करेगा गृहस्थी, मत ढूँढो मतिमान

जैसा सुन्दर सृजन है, वैसे मनहर बोल
नमन बबिता जी तुम्हें, शब्द शब्द अनमोल

'पढ़ लो बच्चों' दे रहे, सीख उचित आलोक
लिख-पढ़कर बढ़ सकोगे, सके न कोई रोक  

बिन आभार बढ़ाइए, आप न अपना भार
लार भले टपकाइए, फतवे से बेज़ार  

बहुत खूब है अमर का, रचना कर्म विधान
छुओ गगन आगे बढ़ो, है बुंदेली आन


 



रविवार, 10 मई 2020

अभियान कला पर्व १०-५-२०२०

अभियान कला पर्व १०-५-२०२० 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान के सप्तम सारस्वत अनुष्ठान कला पर्व में आप सबका सस्नेह स्वागत है।
माँ शारदा - माँ भारती को नमन।
ले बसंत के पुष्प माँ, आए तेरे द्वार।
मुकुलित मन सुत सलिल का, नमन करो स्वीकार।।
आज मातृ दिवस पर सभी माताओं को नमन।
लिए मंजरी माल हम, विनत कर रहे भेंट।
अपनी बाँहों में हमें, मैया विहँस समेट।।
माता की छाया तले, बैठे बन मिथिलेश।
बुद्धि विनीता हो सदा, चाह नहीं अवधेश।।
मुख्य अतिथि डॉ. मुकुल तिवारी जी का वंदन।
छाया सक्सेना जी ने कोकिलकंठी स्वर में दीप प्रज्वलन पश्चात् सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।
आत्मदीप जलता रहे, ज्योतित रहे हमेश।
शब्दब्रह्म आराध हम, मिलें तुम्हें परमेश।।
संस्कारधानी को अपनी स्वर लहरी से मोह चुकी अर्चना गोस्वामी जी ने "मेघा रे जल भर लाए" प्रस्तुत कर सब को मंत्र मुग्ध कर दिया। 

करे अर्चना मधुर स्वर, भाव पुनीता दिव्य 
राम सुन रहे लीन हो, भक्ति भाव है भव्य
माननीय मंजरी शर्मा जी ने पाककला का अध्याय खोलते हुए लच्छेदार रबड़ी,  मिथिलेश बड़गैया जी ने गुलाब जामुन,  आशा नारायण जी ने आइसक्रीम तथा छाया सक्सेना जी ने बिना अंडे का केक बनाने की विधि व चित्र प्रस्तुत कर सबके मुँह में पानी ला दिया।  
नृत्य गुरु बिटिया उपासना के निर्देशन में कालजयी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर कविता "ये मेरी गोदी की शोभा" पर मौसमी नंदी जी तथा बालिका आराध्या तिवारी ने उत्तम नृत्य प्रस्तुत किया।
आराध्या जिनको कला, गुरु उपासना श्रेष्ठ ।
अभिनंदन मौसमी का, कलाकार है ज्येष्ठ।।

अरुण लिए आलोक आ, जला रहा मणि दीप।  
मणि मुक्ता है कला हर, कलाकार हैं सीप।। 
तालाबंदी पर संदेशपरक फिलम मुकुल जी के माध्यम से प्रस्तुत की गयी। केरल की नृत्य कला 'कथकळि' की मनोहर नृत्य मुद्राओं और हस्त संचालन की रोचक प्रस्तुति बसंत शर्मा जी के माध्यम से हुई।
नन्हीं प्रशिक्षा रंजन राज पलामू झारखण्ड ने मनोहर नृत्य प्रस्तुति दी।  
प्रतिभा बहुत प्रशिक्षा में, मिल हम सकें तराश 
धरती पर पग जमाकर, छू पाए आकाश
अभियंता अरुण भटनागर ने वास्तु व् अभियांत्रिकी की समृद्ध विरासत पर जानकारीपूर्ण आलेख प्रस्तुत किया। 
वास्तु कला की विरासत, अद्वितीय लें मान 
नव यांत्रिकी के क्षेत्र में, नहीं देश का सान 
तान्या श्रीवास्तव द्वारा कत्थक नृत्य प्रस्तुति को सबने सराहा। 
तान्या कत्थक नृत्य में, है प्रवीण लें मान 
फूँक सके पाषाण में, नृत्य दिखाकर जान 
लौह तरंग पर अमर चित्रपटीय गीत 'मेरा जूता है जापानी' सुनकर श्रोता झूम उठे। 
बोनसाई कला पर सारगर्भित संबोधन बसंत शर्मा जी ने प्रस्तुत किया। 
बौने पौधों की कला, बोनसाई लें जान 
मनहर छटा बसंत की, देख झूमिए जान!  
बारह मास  बसंत की, छटा मंजरी भव्य।
बोनसाई ने  दिखा दी, प्रकृति सुंदरी नव्य।।
"यादों के बेतरतीब बिखरे पन्ने" विनीता श्रीवास्तव की कविता की चित्रांकन सहित प्रस्तुति की हेमंत मोहन ने -
यादों के पन्ने लिए, श्री वास्तव में देख 
खींच रहे हेमंत स्वर, चित्रांकन से रेख 
बुशरा मिर्ज़ा ने पेंटिंग के माध्यम से वृक्ष संरक्षण का संदेश दिया। अध्यक्ष आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ने साहित्य और समाज के अनन्य संबध को इंगित करते हुए विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान के माध्यम से विविध रचनात्मक विधाओं में समन्वित से समाज निर्माण का संदेश और प्रेरणा दी।

श्री श्री चिंतन दोहा

श्री श्री चिंतन दोहा गुंजन: ७
विषय: विष्णु के अवतार
*
श्री-श्री का प्रवचन सुना, अंतरजाल कमाल।
प्रगटे दोहे समर्पित, स्वीकारें मन-पाल।।
*
दानी में हो अहं तो, वामन बनें विराट।
गुरु होता मोहांध; खो, नैन खड़ी हो खाट।।
*
पितृ कहे से मातृ-वध, कर चाहा वरदान।
फिर जीवित हो माँ, न हो सपने में अपमान।।
*
क्षत्रिय में विप्रत्व के, भार्गव बोते बीज।
अहं-नाश क्षत्रियों का, हुआ गर्व-घट छीज।।
*
राम-श्याम दो छोर हैं, रख दोनों को थाम।
तजा एक को भी अगर, लगे विधाता वाम।।
*
ये जन्मे दोपहर में, वे जन्मे अध रात।
सखा-सखी प्रिय उन्हें हैं, इनको प्रिय पितु -मात।।
*
कल्कि न कल अब में जिए, रखें ज्ञान तलवार।
काटेंगे अज्ञान सर, कर मानव उद्धार।।
*
'श्व' कल बीता-आ रहा, अ-श्व अ-कल 'अब' जान।
कल्कि करें 'अब' नियंत्रित, 'कल' का काट वितान।।
*
सार तत्व गुरु मुख-वचन, त्रुटियाँ मेरा दोष।
लोभ बाँट लूँ सगों से, गुरु वचनामृत-कोष।।
*
१०.५.२०१८, ८.२५,
विश्ववाणी हिंदी संस्थान कार्यालय जबलपुर

दोहा

एक दोहा
'भली करेंगे राम जू!', कह मनमाना काम.
किया; दंड दे राम ने, कहा: 'भला यह काम.
१०-५-२०१८ 

लघुकथा आग


लघुकथा
आग
अफसर पिता की लाडली बिटिया को किसी प्रकार की कमी नहीं थी. जब जो चाह तुरंत मिला गया. बढ़ती उम्र के साथ उसकी जिद भी बढ़ती गयी. माँ टोंकती तो पिता उन्हें चुप करा देते 'बाप के राज में मौज-मस्ती नहीं करेगी तो कब करेगी?
माँ ससुराल और शादी की फ़िक्र करतीं तो पिता कह देते जिसकी सौ बार गरज होगी, नाक रगड़ता हुआ आएगा देहलीज पर और मैं अपनी शर्तों पर बिटिया को रानी बनाकर भेजूँगा.
समय पर किसका वश? अनियमित खान-पान ने पिता को काल का ग्रास बना दिया. अफसरी का रौब-दाब समाप्त होते दो दिन न लगे. जो दिन-रात सलाम बजाते नहीं थकते थे, वही उपहास की दृष्टि से देखने लगे. शोक की अवधि समाप्त होते ही माँ-बेटी अपने पैतृक घर में आ गयीं. सगे-संबंधी जमीन-जायदाद में हिस्सा देने में आनाकानी करने लगे. साहब ने अपने रहते कभी ध्यान ही नहीं दिया, न कोई जानकारी दी पत्नि या बेटी को.
बाबूराज की महिमा अपरम्पार... पेंशन की नस्ती जिस मेज पर जाती उस बाबू को याद आता कि कब-कब उसे डपटा गया था और वह नस्ती को दबा कर बैठ जाता. साल-दर-साल बीतने लगे... किसी प्रकार ले-देकर पेंशन आरम्भ हो सकी.
बिटिया जिद्दी और फिजूलखर्च और पार्टी करने की शौक़ीन थी. माँ के समझाने का असर कुछ दिन रहता फिर वही ढाक के तीन पात.
मुसीबत अकेले नहीं आती. माँ को सदमे और चिंताओं ने तो घेर ही लिया था. कोढ़ में खाज यह कि डोक्टर ने असाध्य बीमारी का रोगी बता दिया. अत्यंत मँहगी चिकित्सा. मरता क्या न करता ? जमा -पूँजी खर्च कर माँ को बचाने में जुट गयी वह. मौज-मस्ती के साथी उससे जो चाहते थे वह करने से बेहतर उसे मर जाना लगता. बस चलता तो ऐसे मतलबपरस्तों को ठिकाने लगा देती वह पर समय की नजाकत को देखते हुए उसे हर कदम फूँक-फूँक कर रखना था.
देर रात अस्पताल से घर आयी और आग जलाकर ठण्ड भगाने बैठी तो उसे लगा वह खुद भी सुलग रही है. समय ने भले ही उससे पिता का साया और माँ की गोद से वंचित कर दिया है पर वह हार नहीं मानेगी. अपने दोनों गुतनों में पिता और हाथों में माँ का सम्बल है उसके पास. अपने पैरों को जमीन पर टिका कर वह न केवल मुसीबतों से जूझेगी बल्कि सफलता के आसमान को भी छुएगी. आत्मविश्वास ने उसमें ऊर्जा का संचार किया और वह आग के सामने जा बैठी पिता-माँ के आशीष की अनुभूति करने घुटनों पर हाथ और सर रखकर. कल के संघर्ष के लिए उसके तन को करना था विश्राम और मन को जलाए रखनी आग.
***

१०-५-२०१७ 

दोहा मुक्तिका

दोहा मुक्तिका
*
असत जीत गौतम हुए ब्रम्ह जीत जिस प्रात
पैर जमाने की हुई भर उड़ान शुरुआत
*

मोह-माधुरी लुटाकर गिरिधारी थे मस्त
चैन गँवाकर कंस ने तत्क्षण पाई मात
*
सुन बृजेंद्र की वंदना, था सुरेंद्र बेचैन
पार न लेकिन पा सका, जी भर कर ली घात
*
वास्तव में श्री मनोरमा, चेतन सदा प्रकाश
मीठी वाणी बोल तू, सूरज करे प्रभात
*
चंद्र किरण लख कुमुद को, उतर धरा पर मौन
पूनम बैठी शैल पर, करे रात में प्रात
***
१०-५-२०१७ 

माँ की सुधियाँ

माँ की सुधियाँ पुरवाई सी....
संजीव 'सलिल'
*
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
दूर रहा जो उसे खलिश है तुमको देख नहीं वह पाया.
निकट रहा मैं लेकिन बेबस रस्ता छेक नहीं मैं पाया..
तुम जाकर भी गयी नहीं हो, बस यह है इस बेटे का सच.
साँस-साँस में बसी तुम्हीं हो, आस-आस में तुमको पाया..
चिंतन में लेखन में तुम हो, शब्द-शब्द सुन हर्षाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
तुम्हें देख तुतलाकर बोला, 'माँ' तुमने हँस गले लगाया.
दौड़ा गिरा बिसूरा मुँह तो, उठा गुदगुदा विहँस हँसाया..
खुशी न तुमने खुद तक रक्खी, मुझसे कहलाया 'पापा' भी-
खुशी लुटाने का अनजाने, सबक तभी माँ मुझे सिखाया..
लोरी भजन आरती कीर्तन, सुन-गुन धुन में छवि पाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
भोर-साँझ, त्यौहार-पर्व पर, हुलस-पुलकना तुमसे पाया.
दुःख चुप सह, सुख सब संग जीना, पंथ तुम्हारा ही अपनाया..
आँसू देख न पाए दुनिया, पीर चीर में छिपा हास दे-
संकट-कंटक को जय करना, मन्त्र-मार्ग माँ का सरमाया.
बन्ना-बन्नी, होरी-गारी, कजरी, चैती, चौपाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
गुदड़ी, कथरी, दोहर खो, अपनों-सपनों का साथ गँवाया..
चूल्हा-चक्की, कंडा-लकड़ी, फुंकनी सिल-लोढ़ा बिसराया.
नथ, बेन्दा, लंहगा, पायल, कंगन-सज करवाचौथ मनातीं-
निर्जल व्रत, पूजन-अर्चन कर, तुमने सबका क्षेम मनाया..
खुद के लिए न माँगा कुछ भी, विपदा सहने बौराई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
घूँघट में घुँट रहें न बिटियाँ, 'बेटा' कहकर खूब पढाया.
सिर-आँखों पर जामाता, बहुओं को बिटियों सा दुलराया.
नाती-पोते थे आँखों के तारे, उनमें बसी जान थी-
'उनका संकट मुझको दे', विधना से तुमने सदा मनाया.
तुम्हें गँवा जी सके न पापा, तुम थीं उनकी परछाईं सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*

मुक्तिका

मुक्तिका
*
कुछ हवा दो अधजली चिंगारियाँ फिर बुझ न जाएँ.
दहकते शोले वतन के वास्ते जल, बुझ न जाएँ.
खुद परस्ती की सियासत बहुत कर ली, रोक दो अब.
लहकती चिंगारियों को फूँक दो वे बुझ न जाएँ.
प्यार की, मनुहार की,इकरार की,अभिसार की
ले मशालें फूँक दो वहशत, कहीं फिर बुझ न जाएँ.
ज़हर से उतरे ज़हर, काँटे से काँटा हम निकालें
लपट से ऊँची लपट करना 'सलिल' युग कीर्ति गाएँ.
सब्र की हद हो गयी है, ज़ब्र की भी हद 'सलिल'
चिताएँ उनकी जलाओ इस तरह फिर बुझ न जाएँ
१०-५-२०१०
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मुक्तिका

मुक्तिका:
तुम क्या जानो
संजीव 'सलिल'
*
तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.
नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..
उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.
कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अँगड़ाई में..
चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.
कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..
सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.
चैन रूह को मिलते देखा गीतों में, रूबाई में..
'सलिल' उजाला सभी चाहते, लेकिन वह खलता भी है.
तृषित पथिक को राहत मिलती अमराई - परछाँई में
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१०-५-२०११

चित्रगुप्त, नंदिनी, इरावती, आरती

चित्रगुप्त जयंती पर विशेष रचना:
मातृ वंदना
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
ममतामयी माँ नंदिनी, करुणामयी माँ इरावती.
सन्तान तेरी मिल उतारें, भाव-भक्ति से आरती...
*
लीला तुम्हारी हम न जानें, भ्रमित होकर हैं दुखी.
सत्पथ दिखाओ माँ, बनें सन्तान सब तेरी सुखी..
निर्मल ह्रदय के भाव हों, किंचित न कहीं आभाव हों-
सात्विक रहें आचार, पायें अंत में हम सद्गति...
*
कुछ काम जग के आ सकें, महिमा तुम्हारी गा सकें.
सत्कर्म कर आशीष मैया!, पुत्र तेरे पा सकें..
निष्काम रह, निस्वार्थ रह, सब मोक्ष पायें अंत में-
निर्मल रहें मन-प्राण, रखना माँ! सदा निश्छल मति...
*
चित्रेश प्रभु की कृपा मैया!, आप ही दिलवाइए.
जैसी भी है सन्तान तेरी है, न अब ठुकराइए..
आशीष दो माता! 'सलिल', कंकर से शंकर बन सकें-
साधन कर सफल माँ!, पद-पद्म में होवे रति...
***
१०-५-२०११

गीत

गीत
*
कनक पात्र का सत्य अनावृत्त हो न जाए ढाँका करता हूँ 
*
अटल सत्य गत-आगत फिसलन-मोड़ मिलाएंगे फ़िर हमको
किसके नयनों में छवि किसकी कौन बताये रही समाई
वहीं सृजन की रची पटकथा विधना ने चुपचाप हुलसकर
संचय अगणित गणित हुआ ज्यों ध्वनि ने प्रतिध्वनि थी लौटाई
मौन मगन हो सतनारायण के प्रसाद में मिली पँजीरी
अँजुरी में ले बुक्का भर हो आनंदित फाँका करता हूँ
*
खुदको तुममें गया खोजने जब तब पाया खुदमेँ तुमको
किसे ज्ञात कब तुम-मैं हम हो सिहर रहे थे अँखियाँ मीचे
बने सहारा जब चाहा तब अहम सहारा पा नतमस्तक
हुआ और भर लिया बाँह में खुदको खुदने उठ-झुक नीचे
हो अवाक मन देख रहा था कैसे शून्य सृष्टि रचता है
हार स्वयं से, जीत स्वयं को नव सपने आँका करता हूँ
*
चमका शुक्र हथेली पर हल्दी आकर चुप हुई विराजित
पुरवैया-पछुआ ने बन्ना-बन्नी गीत सुनाये भावन
गुण छत्तीस मिले थे उस पल, जिस पल पलभर नयन मिले थे
नेह नर्मदा छोड़ मिली थी, नेह नर्मदा मन के आँगन
पाकर खोना, खोकर पाना निमिष मात्र में जान मनीषा
मौन हुई, विश्वास सितारे मन नभ पर टाँका करता हूँ
*
आस साधना की उपासना करते उषा हुई है संध्या
रजनी में दोपहरी देखे चाहत, राहत हुई पराई
मृगमरीचिका को अनुरागा, दौड़ थका तो भुला विकलता
मन देहरी संतोष अल्पना की कर दी हँसकर कुड़माई
सुधियों के दर्पण में तुझको, निरखा थकन हुई छूमंतर
कलकल करती 'सलिल'-लहर में, छवि तेरी झाँका करता हूँ
*
१०-५-२०१४ 

मुक्तिका

मुक्तिका 
*
कुछ हवा दो अधजली चिंगारियाँ फिर बुझ न जाएँ.
शोले जो दहके वतन के वास्ते फिर बुझ न जाएँ.
*
खुद परस्ती की सियासत बहुत कर ली, रोक दो.
लहकी हैं चिंगारियाँ फूँको कि वे फिर बुझ न जाएँ.
*
प्यार की, मनुहार की,इकरार की,अभिसार की
मशालें ले फूँक दो दहशत,कहीं फिर बुझ न जाएँ.
*
ज़हर से उतरे ज़हर, काँटे से काँटा दो निकाल.
लपट से ऊँची लपट करना सलिल फिर बुझ न जाएँ.
*
सब्र की हद हो गयी है, ज़ब्र की भी हद 'सलिल'
चिताएँ उनकी जलाओ इस तरह फिर बुझ न जाएँ
***

१०-५-२०१०
७९९९५५९६१८