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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

bal geet

बाल गीत:

"कितने अच्छे लगते हो तुम "

संजीव वर्मा 'सलिल'

*

कितने अच्छे लगते हो तुम |

बिना जगाये जगते हो तुम ||

नहीं किसी को ठगते हो तुम |

सदा प्रेम में पगते हो तुम ||

दाना-चुग्गा मँगते हो तुम |

चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम ||

आलस कैसे तजते हो तुम?

क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?

चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |

बिल्ली से डर बचते हो तुम ||

क्या माला भी जपते हो तुम?

शीत लगे तो कँपते हो तुम?

सुना न मैंने हँसते हो तुम |

चूजे भाई! रुचते हो तुम |

*************************

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

बसंत

बसंतागमन
द्रुमाः सपुष्पाः सलिलः सपद्मम् स्त्रियः सकामाः पवनः सुगन्धिः
सुखाः प्रदोषाः दिवसाश्च रम्याः सर्वं प्रियं चारुतरम् वसन्ते||

पुष्पित तरु कमलित सलिल कामा वामा पवन सुगंध। 
सुखी प्रदोष सुरम्य दिन, सबको भाता चारु बसंत।।
*** 

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

विवाह और नाड़ी

ज्योतिष:                                                                                                                               विवाह और नाड़ी                                                                                                                          मानव जीवन के  सबसे महत्वपूर्ण संस्कार विवाह में बँधने से पूर्व वर एवं कन्या के जन्म नामानुसार गुण मिलाने की परिपाटी है। गुण मिलान न होने पर सर्वगुण संपन्न कन्या भी अच्छी जीवनसाथी सिद्ध नहीं होती।गुण मिलाने हेतु अष्टकूटों वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रहमैत्री,गण, राशि व नाड़ी का मिलान किया जाता है।  गुण मिलान                                                                                                                                  अष्ट कूट के अंतर्गत नदी  ८, भकूट ७, गण मैत्री ६ गृह मैत्री ५, योनि ४, तारा ३, वषय २ तथा वर्ण १ कुल ३६ गुण मान्य हैं। ३२ से अधिक गुण मिलान श्रेष्ठ, २४ से ३१ अच्छा, १८ से २४ माध्यम तथा १८ से कम निषिद्ध माना जाता है।                                                                                                                          नाड़ी                                                                                                                                  अष्टकूटों में नाड़ी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। नाड़ी व्यक्ति के मन एवं मानसिक ऊर्जा की सूचक होती है। व्यक्ति के निजी संबंध उसके मन एवं भावना से नियंत्रित होते हैं।भावनात्मक समानता या प्रतिद्वंदिता के स्थिति में संबंधों में टकराव होता है। आदि, मध्य तथा अंत्य नाड़ियाँ क्रमश: वात / आवेग, पित्त / उद्वेग एवं कफ / संवेग की सूचक हैं, जिनसे कि संकल्प, विकल्प एवं प्रतिक्रिया जन्म लेती है। नाड़ी के माध्यम से भावी दंपति की मानसिकता, मनोदशा का मूल्यांकन किया जाता है। समान नाड़ी होने पर उस तत्व अधिकता के कारन सामंजस्य तथा संतान की संभावना नगण्य हो जाती है। वर-वधु की समान नाड़ी हो तो विवाह वर्जित तथा विषम नाड़ी हो तो शुभ माना जाता है।  । 
आदि नाड़ी- अश्विनी, आर्द्रा पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्ता, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र।        मध्य नाड़ी- भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पुर्वाफाल्गुनी,चित्रा, अनुराधा, पुर्वाषाढा, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र।अन्त्य नाड़ी- कृतिका, रोहिणी, अश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढा, श्रवण, रेवती नक्षत्र।       चर्तुनाड़ी एवं पंचनाड़ी चक्र सामान्यत: प्रचलित नहीं हैं।                                                                   नाड़ी दोष परिहार-                                                                                                                   क. वर कन्या की समान राशि, भिन्न जन्म नक्षत्र हों या जन्म नक्षत्र समान हों किंतु राशियाँ भिन्न हों।     जन्म नक्षत्र समान होने पर चरण भेद हो तो आवश्यक होने पर विवाह किया जा सकता है।                          ख. विशाखा, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवति, हस्त, स्वाति, आर्द्रा, पूर्वाभद्रपद इन ८ नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र में वर कन्या का जन्म हो तो नाड़ी दोष नहीं रहता। उत्तराभाद्रपद, रेवती, रोहिणी, विषाख, आद्र्रा, श्रवण, पुष्य, मघा, इन नक्षत्र में भी वर कन्या का जन्म नक्षत्र पड़े तो नाड़ी दोष न मानें। यह मत कालिदास का है।     घ. वर एवं कन्या के राशिपति बुध, गुरू या शुक्र में से कोई एक अथवा दोनों के राशिपति एक ही हों तो नाड़ी दोष नहीं रहता है।                                                                                                            ङ. ज्योतिष के अनुसार-नाड़ी दोष विप्र वर्ण पर प्रभावी माना जाता है। वर-कन्या दोनों जन्म से विप्र हों तो उनमें नाड़ी दोष प्रबल माना जाता है। अन्य वर्णो पर नाड़ी दोष पूर्ण प्रभावी नहीं रहता।                          च. सप्तमेश स्वगृही होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो एवं वर-कन्या के जन्म नक्षत्र चरण में भिन्नता हो तो नाड़ी दोष नहीं रहता।                                                                                                                विवाह वर्जित-                                                                                                                           यदि वर-कन्या की नाड़ी एक हो एवं निम्न में से कोई युग्म वर कन्या का जन्म नक्षत्र हो तो विवाह न करें।अ. आदि नाड़ी- अश्विनी-ज्येष्ठा, हस्त-शतभिषा, उ.फा.-पू.भा. अर्थात् यदि वर का नक्षत्र अश्विनी हो तो कन्या नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर प्रबल नाड़ी दोष होगा। इसी प्रकार कन्या नक्षत्र अश्विनी हो तो वर का नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर भी प्रबल नाड़ी दोष होगा। इसी प्रकार आगे के युग्मों से भी अभिप्राय समझें।                    आ. मध्य नाड़ी- भरणी-अनुराधा, पूर्वाफाल्गुनी-उतराफाल्गुनी, पुष्य-पूर्वाषाढा, मृगशिरा-चित्रा,चित्रा-धनिष्ठा, मृगशिरा-धनिष्ठा।                                                                                                              इ. अन्त्य नाड़ी - कृतिका-विशाखा, रोहिणी-स्वाति, मघा-रेवती।                                                       नाड़ी दोष उपाय                                                                                                                          १. वर-कन्या दोनों मध्य नाड़ी में हों  तो पुरुष को प्राण भय रहता है। पुरुष महामृत्यंजय जाप करे। वर-कन्या दोनों की नाड़ी आदि या अन्त्य हो तो स्त्री प्राण रक्षा हेतु महामृत्युजय जाप करे।                                  ३. नाड़ी दोष होने पर संकल्प लेकर किसी ब्राह्यण को गोदान या स्वर्णदान करें                                        ४. अपनी सालगिरह पर अपने वजन के बराबर अन्न दान कर ब्राह्मण भोजन कराकर वस्त्र दान करें।          ५. अनुकूल आहार (आयुर्वेद के मतानुसार जो दोष हो उसे दोष को दूर करनेवाले आहार) का सेवन व दान करें।  ६. वर एवं कन्या में से जिसे मारकेश की दशा हो उसका उपाय दशाकाल तक अवश्य करें।

ताण्डव छंद

छंद सलिला :
ताण्डव छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, ताण्डव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार,माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
तांडव रौद्र कुल का बारह मात्रीय छंद है जिसके हर चरण के आदि-अंत में लघु वर्ण अनिवार्य है.
उदाहरण:
१. भर जाता भव में रव, शिव करते जब ताण्डव
शिवा रहित शिव हों शव, आदि -अंत लघु अभिनव
बारह आदित्य मॉस राशि वर्ण 'सलिल' खास
अधरों पर रखें हास, अनथक करिए प्रयास
२. नाश करें प्रलयंकर, भय हरते अभ्यंकर
बसते कंकर शंकर, जगत्पिता बाधा हर
महादेव हर हर हर, नाश-सृजन अविनश्वर
त्रिपुरारी उमानाथ, 'सलिल' सके अब भव तर
३. जग चाहे रहे वाम, कठिनाई सह तमाम
कभी नहीं करें डाह, कभी नहीं भरें आह
मन न तजे कभी चाह, तन न तजे तनिक राह
जी भरकर करें काम, तभी भला करें राम
३०.१.२०१४  ---------------------------
salil.sanjiv@gmail.com / divyanarmada.blogspot.in

अष्ट मात्रिक छंद

वासव जातीय अष्ट मात्रिक छंद
१. पदांत यगण
सजन! सजाना
सजनी! सजा? ना
काम न आना
बात बनाना
रूठ न जाना
मत फुसलाना
तुम्हें मनाना
लगे सुहाना
*
२. पदांत मगण
कब आओगे?
कब जाओगे?
कब सोओगे?
कब जागोगे?
कब रुठोगे?
कब मानोगे?
*
बोला कान्हा:
'मैया मोरी
तू है भोरी
फुसलाती है
गोपी गोरी
चपला राधा
बनती बाधा
आँखें मूँदे
देखे आधा
बंसी छीने
दौड़े-आगे
कहती ले लो
जाऊँ, भागे
*
३. पदांत तगण
सृजन की राह
चले जो चाह
न रुकना मीत
तभी हो वाह
न भय से भीत
नहीं हो डाह
मिले जो कष्ट
न भरना आह
*
४. पदांत रगण
रहीं बच्चियाँ
नहीं छोरियाँ
न मानो इन्हें
महज गोरियाँ
लगाओ नहीं
कभी बोलियाँ
न ठेलो कहीं
उठा डोलियाँ
*
५. पदांत रगण
जब हो दिनांत
रवि हो प्रशांत
पंछी किलोल
होते न भ्रांत
संझा ललाम
सूराज सुशांत
जाते सदैव
पश्चिम दिशांत
(छवि / मधुभार छंद)
*
६. पदांत भगण
बजता मादल
खनके पायल
बेकल है दिल
पड़े नहीं कल
कल तक क्यों हम
विलग रहें कह?
विरह व्यथा सह
और नहीं जल
*
७. पदांत नगण
बलम की कसम
न पालें भरम
चलें साथ हम
कदम दर कदम
न संकोच कुछ
नहीं है शरम
सुने सच समय
न रूठो सनम
*
८. पदांत सगण
जब तक न कहा
तब तक न सुना
सच ही कहना
झूठ न सहना
नेह नरमदा
बनकर बहना
करम चदरिया
निरमल तहना
सेवा जन की
करते रहना
शुचि संयम का
गहना गहना
*

सवैया मत्तगयंद

छंद सलिला
मत्त गयंद सवैया
*
आज कहें कल भूल रहे जुमला बतला छलते जनता को 
बाप-चचा चित चुप्प पड़े नित कोस रहे अपनी ममता को 
केर व बेर हुए सँग-साथ तपाक मिले तजते समता को
चाह मिले कुरसी फिर से ठगते जनको भज स्वाराथता को
*

लेख: उर्दू साहित्य की भारतीय आत्मा, राही मासूम रज़ा

विमर्श 
(प्रस्तुत है विख्यात साहित्यकार राही मासूम रज़ा का लेख. पढ़िये, समझिए और अपने विचार सांझाकरने के साथ अपने सृजन की भाषा तय करें, अपने विचारों के लिए शब्द चुनें। -संजीव)

उर्दू साहित्य की भारतीय आत्मा 
राही मासूम रज़ा 
*
यह ग्यारहवीं या बारहवीं सदी की बात है कि अमीर खुसरू ने लाहौरी से मिलती-जुलती एक भाषा को दिल्ली में पहचाना और उसे 'हिंदवी' का नाम दिया। उन्नीसवीं सदी के आरंभ तक यही हिंदवी देहलवी, हिंदी, उर्दू-ए-मु्अल्ला और उर्दू कहीं गई । तब लिपि का झगड़ा खड़ा नहीं हुआ था, क्योंकि यह तो वह ज़माना था कि जायसी अपनी अवधी फ़ारसी लिपि में लिखते थे और तुलसी अपनी अवधी नागरी लिपि में । लिपि का झगड़ा तो अँग्रेज़ी की देन है ।

मैं चूँकि लिपि को भाषा का अंग नहीं मानता हूँ, इसलिए कि ऐसी बातें, जो आले अहमद सुरूर और उन्हीं की तरह के दूसरे पेशेवर उर्दूवालों को बुरी लगती हैं, मुझे बिल्कुल बुरी नहीं लगतीं। भाषा का नाम तो हिंदी ही है, चाहे वह किसी लिपि में लिखी जाए। इसलिए मेरा जी चाहता है कि कोई सिरफिरा उठे और सारे हिन्दी साहित्य को पढ़कर कोई राय कायम करे। मुसहफी (उनकी किताब का नाम तजकरए-हिंदी) उर्दू के तमाम कवियों को हिंदी का कवि कहते हैं। मैं उर्दू लिपि का प्रयोग करता हूँ, परंतु मैं हिन्दी कवि हूँ और यदि मैं हिंदी का कवि हूँ तो मेरे काव्य की आत्मा सूर, तुलसी, जायसी के काव्य की आत्मा से अलग कैसे हो सकती है? यह वह जगह है, जहाँ न मेर साथ उर्दूवाले हैं और न शायद हिंदीवाले और इसीलिए मैं अपने बहुत अकेला-अकेला पाता हूँ ? परंतु क्या मैं केवल इस डर से अपने दिल की बात न कहूँ कि मैं अकेला हूँ । ऐसे ही मौक़ों पर मज़रूह सुलतानपुरी का एक शेर याद आता है :
मैं अकेला ही चला था जानिवे-मंज़िल मगर। 
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया ।।

और इसीलिए मैं हिम्मत नहीं हारता ! और इसीलिए बीच बज़ार में खड़ा आवाज़ दे रहा हूँ कि मेरे पुरखों में ग़ालिब और मीर के साथ सूर, तुलसी और कबीर के नाम भी आते हैं।
लिपि के झगड़े में मैं अपनी विरासत और अपनी आत्मा को कैसे भूल जाऊँ? न मैं एक लिपि की तलवार से अपने पुरखों का गला काटने को तैयार हूँ और न मैं किसी को यह हक देता हूँ कि वह दूसरी लिपि की तलवार से मीर, ग़ालिब और अनीस के गर्दन काटे । आप खुद ही देख सकते हैं कि दोनों तलवारों के नीचे गले हैं मेरे ही बुजुर्गों के।
हमारे देश का आलम तो यह है कि कनिष्क की शेरवानी को मुसलमानों के सर मार के हम हिंदू और मुसलमान पहनावों की बातें करने लगते हैं। घाघरे में कलियाँ लग जाती हैं तो हम घाघरों को पहचानने से इंकार कर देते हैं और मुगलों-वुगलों की बातें करने लगते हैं, परंतु कलमी आम खाते वक़्त हम कुछ नहीं सोचते ।ऐसे वातावरण में दिल की बात कहने से जी अवश्य डरता है, परंतु किसी-न-किसी को तो ये बातें कहनी ही पड़ेगी। बात यह है कि हम लोग हर चीज़ को मज़हब की ऐनक लगाकर देखते हैं। किसी प्रयोगशाला का उद्घाटन करना होता है, तब भी हम या मिलाद करते हैं या नारियल फोड़ते हैं तो भाषा इस ठप्पे से कैसे बचती और साहित्य पर यह रंग चढ़ाने की कोशिश क्यों न की जाती? चुनांचे उन्नीसवीं सदी के आखिर में या बीसवीं सदी के आरंभ में हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान का नारा लगाया गया। इस नारे में जिन तीन शब्दों का प्रयोग हुआ है, वे तीनों ही फ़ारसी के हैं हिंदी कहते हैं, हिंदुस्तानी को, हिंदू काले को और हिंदुस्तान हिंदुओ के देश को। यानी हिंदू शब्द किसी धर्म से ताल्लुक नहीं रखता। ईरान और अरब के लोग हिंदुस्तानी मुसलमानों को भी हिंदू कहते हैं यानी हिंदू नाम है हिंदुस्तानी कौम का।
मैंने अपने थीसिस में यही बात लिखी थी तो उर्दू के एक मशहूर विद्वान् ने यह बात काट दी थी परंतु मैं यह बात फिर भी कहना चाता हूँ कि हिंदुस्तान के तमाम लोग धार्मिक मतभेद के बावजूद हिंदू है। हमारे देश का नाम हिंदुस्तान है। हमारे क़ौम का नाम हिंदू और इसलिए हमारी भाषा का नाम हिन्दी । हिंदुस्तान की सीमा हिन्दी की सीमा है। यानी मैं भी हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान का नारा लगाता हूँ, परंतु मैं यह नारा उस तरह नहीं लगाता, जिस तरह वह लगाया जा रहा है। मैं एक मुसलमान हिंदू हूँ । कोई विक्टर ईसाई हिंदू होगा और मातादीन वैष्णव या आर्यसमाजी हिंदू । इस देश में कई धर्म समा सकते हैं, परंतु एक देश में कई क़ौमें नहीं समाया करतीं परंतु यह सीधी-सी बात भी अब तक बहुत से हिंदुओं (हिंदुस्तानियों) की समझ में नहीं आ सकी है।
हमें धर्म की यह ऐनक उतारनी पड़ेगी। इस ऐनक का नंबर गलत हो गया है् और अपना देश हमें धुँधला-धुँधला दिखाई दे रहा है। हम हर चीज़ को शक की निगाह से देखन लगे हैं। ग़ालिब गुलोहुलुल का प्रयोग करता है और कोयल की कूक नहीं सुनता, इसलिए वह ईरान या पाकिस्तान का जासूस है? हम आत्मा को नहीं देखते । वस्त्र में उलझकर रह जाते हैं। वे तमाम शब्द जो हमारी जबानों पर चढ़े हुए हैं, हमारे हैं। एक मिसाल लीजिए। ‘डाक’ अँग्रेज़ी का शब्द है। ‘खाना’ फारसी का। परंतु हम ‘डाकखाना’ बोलते हैं। यह ‘डाकखाना’ हिंदी का शब्द है। इसे ‘डाकघर’ या कुछ और कहने की क्या ज़रूरत ? अरब की लैला काली थी परंतु उर्दू गज़ल की लैला का रंग अच्छा-खासा साफ़ है। तो इस गोरी लैला को हम अरबी क्यों मानें ? लैला और मजनू या शीरीं और फरहाद का कोई महत्त्व नहीं है। महत्त्व है उस कहानी का, जो इन प्रतीकों के जरिए हमें सुनाई जा रही है परंतु हम तो शब्दों में उलझ कर रह गए हैं। हमने कहानियों पर विचार करने का कष्ट ही नहीं उठाया है। मैं आपको वही कहानियाँ सुनाना चाहता हूँ । मैं आपको और मौलाना नदवी आले अहमद सुरूर और डॉक्टर फ़रीदी को यह दिखालाना चाहता हूँ कि मीर, सौदा, ग़ालिब और अनीस, सुर, तुलसी और कबीर ही के सिलसिले की कड़ियाँ हैं। फ़ारसी के उन शब्दों को कैसे देश निकाला दे दिया जाय, जिनका प्रयोग मीरा, तुलसी और सूर ने किया है? ये शब्द हमारे साहित्य में छपे हुए हैं। एक ईंट सरकाई गई, तो साहित्य की पूरी इमारत गिर पड़ेगी। मैं शब्दों की बात नहीं कर रहा हूँ। साहित्य की बात कर रहा हूँ। यह देखने का कष्ट उठाइए कि कबीर ने जब मीर बनकर जन्म लिया तो वे क्या बोल और जब तुलसी ने अनीस के रूप मे जन्म लिया तो उस रूप में उन्होंने कैसा रामचरित लिखा।
***

जनगण का गीत

जनतंत्र की सोच को समर्पित कविता           

-संजीव सलिल
*
जनगण के मन में जल पाया,
नहीं आस का दीपक
कैसे हम स्वाधीन देश जब
लगता हमको क्षेपक?

हम में से
हर एक मानता
निज हित सबसे पहले। 
नहीं देश-हित कभी साधता
कोई कुछ भी कह ले। 

कुछ घंटों 'मेरे देश की धरती'
फिर हो 'छैंया-छैंया', 
वन काटे, पर्वत खोदे,
भारत माँ घायल भैया। 

किसको चिंता? यहाँ देश की?
सबको है निज हित की,
सत्ता पा- निज मूर्ति लगाकर,
भारत की दुर्गति की। 

श्रद्धा, आस्था, निष्ठा बेचो
स्वार्थ साध लो अपना,
जाये भाड़ में किसको चिंता
नेताजी का सपना। 

कौन हुआ आजाद?
भगत है कौन देश का बोलो?
झंडा फहराने के पहले
निज मन जरा टटोलो। 

तंत्र न जन का
तो कैसा जनतंत्र तनिक समझाओ?
प्रजा उपेक्षित प्रजातंत्र में
क्यों कारण बतलाओ?

लोक तंत्र में लोक मौन क्यों?
नेता क्यों वाचाल?
गण की चिंता तंत्र न करता
जनमत है लाचार। 

गए विदेशी, आये स्वदेशी,
शासक मद में चूर। 
सिर्फ मुनाफाखोरी करता
व्यापारी भरपूर। 

न्याय बेचते जज-वकील मिल
शोषित- अब भी शोषित। 
दुर्योधनी प्रशासन में हो
सत्य किस तरह पोषित?

आज विचारें
कैसे देश हमारा साध्य बनेगा?
स्वार्थ नहीं सर्वार्थ
हमें हरदम आराध्य रहेगा?
***  
२४ जनवरी २०११

अष्टक मात्रिक छंद

अभिनव प्रयोग:
पदांत बंधन मुक्त अष्ट मात्रिक वासव 
जातीय छंद 
संजीव 
पदादि यगण
विधाता नमन
न हारे कभी
हमारा वतन
सदा हो जयी
सजीला चमन
करें वंदना
दिशाएँ-गगन
*
२. पदादि मगण
जो बोओगे
वो काटोगे
जो बाँटोगे
वो पाओगे
*
चूं-चूं आई
दाना लाई
खाओ खाना
चूजे भाई
चूहों ने भी
रोटी पाई
बिल्ली मौसी
है गुस्साई
*
३. पदादि तगण
जज्बात नए
हैं घाट नए
सौगात नई
आघात नए
ऊगे फिर से
हैं पात नए
चाहें बेटे
हों तात नए
गायें हम भी
नग्मात नए
*
४. पदादि रगण
मीत आइए
गीत गाइए
प्रीत बाँटिए
प्रीत पाइए
नेह नर्मदा
जा नहाइए
जिंदगी कहे
मुस्कुराइए
बन्दगी करें
जीत जाइए
*
५. पदादि जगण
कहें कहानी
सदा सुहानी
बिना रुके ही
कमाल नानी
करें करिश्मा
कहें जुबानी
बुजुर्गियत भी
उम्र लुभानी
हुई किसी की
न राजधानी
*
६. पदादि भगण
हुस्न जहाँ है
इश्क वहाँ है
बोल-बताएँ
आप कहाँ हैं?
*
७. पदादि नगण
सुमन खिला है
गगन हँसा है
प्रभु धरती पर
उतर फँसा है
श्रम करता जो
सुफल मिला है
फतह किया क्या
व्यसन-किला है
८. पदादि सगण
हम हैं जीते
तुम हो बीते
जल क्या देंगे
घट हैं रीते?
सिसके जनता
गम ही पीते
कहता राजा
वन जा सीते
नभ में बादल
रिसते-सीते
***

doha dosh

गौ भाषा को दूहकर, 
दोहा कर पय-पान।
छंद राज बन सच कहे,
समझ बनो गुणवान।।
*
दोहा लिखते समय निम्न दोषों से बचें- 
१. कथ्य दोष, 
२. तथ्य दोष, 
३. क्रम दोष, 
४. वचन दोष, 
५. लिंग दोष, 
६. काल दोष, 
७. कारक दोष,
८. उपमा दोष, 
९. बिंब दोष,
१०. मात्रा दोष,
११. यति दोष,
१२. तुकांत दोष। 
*

geet

एक रचना
*
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
टीचर-प्रीचर के क्या फीचर?
ऐसे मत हों जैसे क्रीचर
रोजी-रोटी साध्य न केवल
अंतर्मन है बाध्य व बेकल
कहता-सुनता
बात अधूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
शिक्षक अगर न खुद सीखा तो
समझहीन सब सा दीखा तो
कुछ मौलिकता, कुछ अन्वेषण
करे ग्रहण नित, नित कुछ प्रेषण
पढ़े-पढ़ाये
बिन मजबूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
कौन बताये आदि कहाँ है?
कोई न जाने अंत कहाँ है?
झुक जाते हैं वहीं अगिन सर
पड़ जाते गुरु-चरण जहाँ हैं
सत्य बात
समझाये पूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
४-१२-२०१६
प्रीमिअर टेक्निकल इंस्टीटयूट जबलपु

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

तकनीक: पॉलीमर इंजीनियरिंग

हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग होनेवाले रबर टायर,  प्लास्टिक कंटेनर,  नायलॉन, रेक्सिन आदि सामग्री का निर्माण और उत्पादन बहुलकों (पॉलीमर्स) के बिना संभव नहीं है। बहुलक से पालीइथिलीन के विविध प्रकार, कम घनत्व, मध्यम घनत्व और उच्च घनत्व पॉलीथीन (एलडीपीई, एमपीडीई, एचपीडीई) का निर्माण किया जाता है। पॉलीमर पदार्थों की निरंतर बढ़ती माँग ने उद्योगों और रोजगार अवसरों की संभावना बढ़ाई है। पॉलीमर इंजीनियरिंग के द्वारा पॉलीमर यौगिक, पॉलीमर मिश्रित सामग्री, कार्बन ब्लैक,  कैल्शियम कार्बोनेट, टाइटेनियम ऑक्साइड, नैनो क्ले, ग्लास फाइबर,  ऑर्गेनिक फिलर्स,  नैनोफिलर्स,  प्रोसेसिंग एड्स, फ्लेम रिटार्डेंट्स आदि पदार्थों व रसायनों का निर्माण / उत्पादन संभव होता है।
पॉलीमर इंजीनियरिंग (बहुलक अभियांत्रिकी) रसायन शास्त्र संबंधी उच्च शोध में रुचि रखनेवाले युवाओं का भविष्य है।असीमित रोजगार अवसरों तथा शोध संभावनाओं से समृद्ध इस क्षेत्र में जेएपीएल, एनसीएल, सीपीआरआई,  एनएमएल आदि अनेक प्रयोग शालाएँ तथा डॉव, ड्यूपॉन्ट, एसएबीआईसी, क्लायंट आदि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ  निरंतर अनुसंधानरत हैं। आईआईटी तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की में कई शोधकार्य चल रहे हैं।
महत्व
मानव निर्मित बहुलक सामान्यतः प्लास्टिक के रूप में पहचाने जाते हैं। इन्हें अनेक रूपाकारों में ढाला जा सकता है। पेट्रोलियम तेल से प्राप्त होनेवाले सिंथेटिक बहुलकों नायलॉन, पॉलीथीन,  पालिएस्टर, रेयान, टेफ्लॉन, एपॉक्सी आदि के उत्पादन में सम्मिलित होते हैं। आधुनिक पॉलीमर इंजीनियरिंग कच्चे पॉलीमर पदार्थों का उत्पादन करने के साथ-साथ नैनोटैक्नॉलॉजी व बायो मेडिकल तकनीक का भी विकास करती है। विविध प्रक्रियाओं से नए पॉलीमर पदार्थों, नए पदार्थों व तकनीकों का अनुसंधान किया जाता है। भौतिकी तथा रसायन शास्त्र के सहयोग से पॉलीमर इंजीनियरिंग श्रेष्ठ संचार कौशल, लागत ह्रास व उत्पादन वृद्धि  को संभव बनाती है।
क्या है पॉलीमर
जो अणु न्यूनतम दो अन्य अणुओं के साथ संयुक्त होने की सामर्थ्य रखते हैं, उन्हें सरल अणु (मोनोमर) कहा जाता है। दो या दो से अधिक सरल अणुओं का सम्मिलन होने से पॉलीमर बनाए जा सकते हैं। मोनोमर की कार्यक्षमता पॉलीमर की गुणवत्ता का निर्धारण करती है। सरल अणु द्वारा बनाई गई बांड संख्या बहुलक की रासायनिक संरचना निर्धारित करती है। एक सरल अणु दो अन्य सरल अणुओं के साथ मोनोबांड करे तो एक चैन जैसी संरचना बनती है। तीन या अधिक सरल अणुओं के साथ बांड हो तो त्रिआयामी क्रॉस लिंक्ड संरचना बनती है। अणुओं के जुड़ने की प्रक्रिया (बांडिंग) पॉलीमराइजेशन कहलाती है। इस प्रक्रिया में समान या भिन्न प्रकार के अणु इलैक्ट्रॉन के युग्म (जोड़े) को साझा करते हैं। बहुलक बहुत अधिक अणुवाला कार्बनिक यौगिक होता है। मोनोमर की स्वरूप बंधन (बांड) की संख्या के आधार पर एकल (मोनो), द्वि (डाइ), त्रि (ट्राइ), चतुष् (टैट्रा), पंचम (पैंटा), षष्ठम् (हैक्सा) या बहु (पॉली) होता है। असंतृप्त हाइड्रोकार्बन को लाखों लघु अणुओं के जुड़ने से बहुलक का निर्माण होता है। पॉलीथीन एथिलीन, प्लास्टिक आदि के निर्माण में पॉलिस्टरीन स्टाइरीन, अंडे के कार्टन, गर्म खाद्य पात्र आदि के निर्माण में पॉलिविनाइल मोनोविनाइल क्लोराइड, पीवीसी पाइप, हैंड बैग क्लोराइड आदि में पॉलीटैट्रा-टैट्राफ्लारोएथिलीन, नॉनस्टिक बर्तन में फ्लूरो  एथिलीन या टेफ्लॉन नोवोलक फिनॉइल फार्मल्डिहाइड रेडियो कैबिनेट तथा कैमरों को आवरण, रोजिन निर्माण में पहली विनाइल,  विनाइल एसीटेट, लेटेक्स पेंट तथा एस्टेट आसंजक के निर्माण में पॉलीकार्बोनेट बुलेटप्रूफ जैकेट आदि को निर्माण में होता है। पॉलीमर को सामान्यत: निम्नानुसार वर्गीकृत किया जाता है-
१. भौतिक-रासायनिक संरचना
२. पॉलीमर निर्माण विधि
३. भौतिक गुण
४. अनुप्रयोग
पॉलीमर को भौतिक गुणों के आधार पर निम्न अनुसार बाँट गया है-
१. थर्मोप्लास्टिक
२. थर्मोसेटिंग
३. इलास्टोमर
४. फाइबर / रेशे
***                                                    पॉलीमर इंजीनियरिंग- संभावनाएँ ही संभावनाएँ
वर्तमान में रासायनिक अभियांत्रिकी की एक शाखा के रूप में जाने जा रही  पॉलीमर अभियांत्रिकी बहुलक (पॉलीमर) पदार्थों को विविध प्रक्रियाओं द्वारा आवश्यक पदार्थों में परिवर्तित करने के साथ-साथ नए पदार्थों व प्रविधियों की खोज, बहुलक पदार्थों का रूपांकन संधारण व उत्पादन भी किया जाता है।

शिक्षा व रोजगार-
पॉलीमर विग्यान में स्नातक (बी.एससी.) के बाद
कैमिस्ट, इंडस्ट्रियल रिसर्च साइंटिस्ट, मैटीरियल टैक्नॉलॉजिस्ट,  क्वालिटी कंट्रोलर, प्रॉडक्शन ऑफिसर,  सेफ्टी हैल्प एंड एंवरॉन्मेंट स्पेशलिस्ट आदि पदों पर कार्य-अवसर मिल सकता है। फार्मास्यूटिकल,  कृषिरसायन (एग्रोकैमिकल), पैट्रोरसायन,  प्लास्टिक उत्पादन, रसायन उत्पादन, फुड प्रोसेसिंग, पेंट उत्पादन, वस्त्रोद्योग (टैक्सटाइल), फॉरेंसिक,  सिरेमिक्स आदि उद्योगों में पॉलीमर टैक्नॉलॉजिस्ट की माँग लगातार बढ़ रही है।
मेसाचुसेस्ट्स, टेक्सास, डेलावेयर, मिनियोस्टा, केयूलियूवन,  आक्रॉन जैसे विश्व विख्यात विश्वविद्यालयों में पॉलीमर इंजीनियरिंग में शोधोपाधि (पीएच.डी.) पाठ्यक्रम हैं।

शब्दकोष निमाड़ी

https://books.google.co.in/books/about/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80.html?id=cokqQwAACAAJ&redir_esc=y

फरवरी कब क्या

फरवरी
कब-क्या
*
०६- कवि प्रदीप जयंती।
०७- रोज डे।
०८- प्रपोज डे।
०९- चॉकलेट डे।
१०- वसंत पंचमी, टैडी डे।
११- दीनदयाल उपाध्याय पुण्य तिथि, प्रॉमिस डे।
१२-नर्मदा जयंती, हर डे।
१३- सरोजिनी नायडू जयंती, किस डे।
१४-वैलेंटाइन डे।
१५- सुभद्रा कुमारी चौहान पुण्य तिथि।
१७- विश्वकर्मा जयंती।
१९- संत रनिवास,  शिवाजी, गुरु गोलवलकर जयंती।
२६-सावरकर पुण्य तिथि।
२७- चंद्रशेखर आजाद शहीद दिवस।
२८- राष्ट्रीय विग्यान दिवस।
***

अंग्रेज़ी-निमाड़ी

मालवा की भाषा सीखने के लिए प्राचीन Dictionary से लिए गए कुछ चुनिंदा शब्द
अनिल खंडेलवाल, इंदौर
Excuse me - सुन तो सई
What happened - कयी हुयो?
What - कंई
Really - कयी वात करीरो?
Oh no- अरे नी रे
Hey dude- कयी भीया
Hey girl- कयी धापूड़ी
What's up- कयी हुई रो
Done -हुई ग्यो
Not done - नी हुयो
my-म्हारो
your-थारो
own -आपणो
Let him go - जावा दे परो
Don't know- म्हके नी मालम
Hurry - फटाफट
Smooth -चिकणो
I'm -हु
Lady - लुगाई
Man - आदमी
Mother-बई/जी
father-दायजी
boy/girl-छोरा /छोरी
Sleeping - हुतो सुईरियो
Run away -  भागी जा
Stay here - याज रूक
study-भन्डने 
Now - अबार
.Not now- अबार कोनी
Never- कदी भी नी.
Come here- आई आ
Go There- वई जा
Same 2same-असो को असो
Sunlight - तडको
Very- गंज
Gate- कमाड़
Neck- घेंटो
mouth -मुंडो
Knee- गोड़ो
Finger -आंगली
Ox- बेल
Rat-ऊंदरो
Monkey-बांदरो
Dog- टेगड़ो
Pig- सुअड़्लो
Mad- वेंडो
stupid-गैलिओ
ILL- मांदो
Head - माथो
Dust- धूळो
Onion-कॉंदो
Bathing- हॉंपड़ी रो
Stone- भाटो
Good- हाऊ
Shirt- बुसट
Shoes- बूट
There- वायडी
Here- अयाडी
धन्य हो म्हारा मालवा
मालवा माटी गहन गम्भीर,..डग डग रोटी पग पग नीर ! जय मध्यप्रदेश