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शनिवार, 18 मई 2024

मई १८, छंद रसाल, छंद सुमित्र, आँख, दोहा, यमक, जान, मुक्तक, मुक्तिका, अलंकरण

सलिल सृजन मई १८
*
- : विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर : -
- : अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण २०२३-२४ : -
*
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर द्वारा अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण २०२३-२४ हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित की जा रही हैं।

वर्ष २०२३-२४ में अलंकरणों हेतु निम्नानुसार प्रविष्टियाँ (गत ५ वर्षों में प्रकाशित पुस्तक की २ प्रतियाँ, पुस्तक तथा लेखक संबंधी संक्षिप्त विवरण, संस्थान का निर्णय मान्य होने का सहमति पत्र प्रथक कागज पर तथा सहभागिता निधि ३०० रु., संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सभापति, विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान, ४०१, विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, वाट्सऐप ९४२५१ ८३२४४ पर आमंत्रित हैं। अचयनित प्रविष्टिकारों को सम्मान पत्र वाट्स एप से भेजें जाएँगे।

प्रविष्टि प्राप्ति हेतु अंतिम तिथि ३० जून २०२४ है। सहभागिता निधि वाट्सऐप ९४२५१८३२४४ पर भेज कर अपने नाम व वाट्स एप क्रमांक सहित स्नैपशॉट भेजिए।

अलंकरण

०१. शांतिराज हिन्दी रत्न अलंकरण, ११,००१ रु.समग्र साहित्यिक अवदान, पद्य। सौजन्य : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', जबलपुर।
०२. परम ज्योति देवी हिन्दी रत्न अलंकरण, ११,००१ रु. समग्र साहित्यिक अवदान, गद्य। सौजन्य : इं. ओम प्रकाश यती, नोएडा।

०३. शकुंतला अग्रवाल नवांकुर अलंकरण, ५५०१ रु. प्रथम कृति (प्रकाशन वर्ष २०२२ से २०२४)। सौजन्य : श्री अमरनाथ अग्रवाल जी, लखनऊ।
०४. राजधर जैन 'मानस हंस' अलंकरण, ५००१ रु., समीक्षा, मीमांसा । सौजन्य : डाॅ. अनिल जैन जी, दमोह।
०५. जवाहर लाल चौरसिया 'तरुण' हिंदी भूषण अलंकरण,५१०० रु., निबंध / संस्मरण / रेखाचित्र / यात्रावृत्त / पत्र, / । सौजन्य : सुश्री अस्मिता शैली जी, जबलपुर।
०६. धीरेन्द्र खरे स्मृति हिंदी भूषण अलंकरण, ५१०० रु., उपन्यास। सौजन्य : श्रीमती वसुधा वर्मा, श्री रचित खरे, श्री विभोर खरे।
०७. डॉ. दिनेश खरे स्मृति हिंदी भूषण अलंकरण, ५१००/-, महाकाव्य, सौजन्य श्रीमती निशा खरे।

०८. कमला शर्मा स्मृति हिंदी गौरव अलंकरण, २१०० रु., हिंदी गजल (मुक्तिका, गीतिका, तेवरी, सजल, पूर्णिका आदि)। सौजन्य : श्री बसंत कुमार शर्मा जी, बिलासपुर।
०९. सिद्धार्थ भट्ट स्मृति हिन्दी गौरव अलंकरण, २१०० रु., लघु कथा, बोध कथा, बाल कथा, दृष्टांत कथा आदि। सौजन्य : श्रीमती मीना भट्ट जी, जबलपुर।
१०. डाॅ. शिवकुमार मिश्र स्मृति हिन्दी गौरव अलंकरण, २१०० रु., छंद (भारतीय/अभारतीय)। सौजन्य : डाॅ. अनिल वाजपेयी जी, जबलपुर।
११. सुरेन्द्रनाथ सक्सेना स्मृति हिन्दी गौरव अलंकरण, २१०० रु., गीत, नवगीत। सौजन्य : श्रीमती मनीषा सहाय जी, जबलपुर।
१२. डॉ. अरविन्द गुरु स्मृति हिंदी गौरव अलंकरण, २१०० रु., कविता। सौजन्य : डॉ. मंजरी गुरु जी, रायगढ़।
१३. विजय कृष्ण शुक्ल स्मृति हिंदी गौरव अलंकरण, २१०० रु., व्यंग्य लेख। सौजन्य : डॉ. संतोष शुक्ला।
१४. शिवप्यारी देवी- बेनी प्रसाद स्मृति हिंदी गौरव अलंकरण, २१०० रु.। बाल साहित्य (गद्य,पद्य, एकांकी), सौजन्य : डॉ. मुकुल तिवारी,जबलपुर।
१५. डॉ. सोम भूषण लाल स्मृति हिंदी गौरव अलंकरण, २१०० रु., सौजन्य श्रीमती माया श्रीवास्तव, भोपाल।
१६. ....... स्मृति हिदी गौरव अलंकरण, २१००/-, आत्म कथा, जीवनी, कार्यवृत्त आदि सौजन्य डॉ. इला घोष,जबलपुर।


१७. सत्याशा साहित्य श्री अलंकरण, ११०० रु., लोक भाषा साहित्य। सौजन्य : डा. साधना वर्मा जी, जबलपुर।
१८. रायबहादुर माताप्रसाद सिन्हा साहित्य श्री अलंकरण, ११०० रु., राष्ट्रीय देशभक्ति साहित्य। सौजन्य : सुश्री आशा वर्मा जी, जबलपुर।
१९. कवि राजीव वर्मा स्मृति कला श्री अलंकरण, ११०० रु., गायन-वादन -चित्रकारी आदि। सौजन्य : आर्किटेक्ट मयंक वर्मा, जबलपुर।
२०. सुशील वर्मा स्मृति समाज श्री अलंकरण, ११०० रु., वानिकी, पर्यावरण व समाज सेवा। सौजन्य : श्रीमती सरला वर्मा भोपाल।
२१. अतुल श्रीवास्तव स्मृति साहित्य श्री अलंकरण, ११०० रु., धर्म, योग, आध्यात्म, दर्शन। सौजन्य : श्रीमती तनुजा श्रीवास्तव, रायगढ़।
२२.

साक्षात्कार, व्याकरण, पुरातत्व, पर्यटन, आत्मकथा, तकनीकी लेखन, विधि, चिकित्सा, कृषि आदि क्षेत्रों की श्रेष्ठ कृतियों पर सम्मान तथा पुस्तकोपहार प्रदान किए जाएँगे।
•••
अलंकरण स्थापना
अनुवाद, तकनीकी लेखन, विधि, चिकित्सा, आध्यात्म, हाइकु (जापानी छंद), सोनेट, रुबाई, कृषि, ग्राम विकास, जन जागरण तथा अन्य विधाओं में अपने पूज्यजन /प्रियजन की स्मृति में अलंकरण स्थापना हेतु प्रस्ताव आमंत्रित हैं। अलंकरणदाता अलंकरण निधि के साथ ११००/- (सहभागिता निधि) अपना नाम व वाट्स एप क्रमांक ९४२५१८३२४४ पर स्नैप शाॅट सहित भेजें।

टीप : उक्त अनुसार किसी अलंकरण हेतु प्रविष्टि न आने अथवा प्रविष्टि स्तरीय न होने पर वह अलंकरण अन्य विधा में दिया अथवा स्थगित किया जा सकेगा। अंतिम तिथि के पूर्व तक नए अलंकरण जोड़े जा सकेंगे।

पुस्तक प्रकाशन
कृति प्रकाशित कराने, भूमिका/समीक्षा लेखन हेतु पांडुलिपि सहित संपर्क करें। संस्था की संरक्षक सदस्यता (सहयोग निधि १ लाख रु.) ग्रहण करने पर एक १५० पृष्ठ तक की एक पांडुलिपि का तथा आजीवन सदस्यता (सहयोग निधि २५ हजार रु.) ग्रहण करने पर ६० पृष्ठ तक की एक पांडुलिपि का प्रकाशन समन्वय प्रकाशन, जबलपुर द्वारा किया जाएगा। संरक्षकों का वार्षिकोत्सव में सम्मान किया जाएगा।

पुस्तक विमोचन
कृति विमोचन हेतु कृति की ५ प्रतियाँ, सहयोग राशि २१०० रु. रचनाकार तथा किताब संबंधी जानकारी ३० जुलाई तक आमंत्रित है। विमोचित कृति की संक्षिप्त चर्चा कर, कृतिकार का सम्मान किया जाएगा।

वार्षिकोत्सव, ईकाई स्थापना दिवस, किसी साहित्यकार की षष्ठि पूर्ति, साहित्यिक कार्यशाला, संगोष्ठी अथवा अन्य सारस्वत अनुष्ठान करने हेतु इच्छुक ईकाइयाँ / सहयोगी सभापति से संपर्क करें।

नई ईकाई
संस्था की नई ईकाई आरंभ करने हेतु प्रस्ताव आमंत्रित हैं। नई ईकाई हेतु कम से कम ११ सदस्य होना अनिवार्य है। वार्षिक सदस्यता सहयोग निधि ११००/-, हर ईकाई १००/- प्रति वर्ष प्रति सदस्य केंद्र को भेजेगी। केंद्र ईकाई द्वारा वार्षिकोत्सव या अन्य कार्यक्रमों में सहभागिता हेतु केन्द्रीय पदाधिकारी भेजेगा। केन्द्रीय समिति के कार्यक्रमों में सहभागिता हेतु ईकाई से प्रतिनिधि आमंत्रित किए जाएँगे।

* सभापति- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' *
* अध्यक्ष- बसंत शर्मा *
* उपाध्यक्ष- जय प्रकाश श्रीवास्तव, मीना भट्ट *
* सचिव - छाया सक्सेना, अनिल बाजपेई, मुकुल तिवारी *
* कोषाध्यक्ष - डॉ. अरुणा पांडे *
* प्रकोष्ठ प्रभारी - अस्मिता शैली, मनीषा सहाय।
जबलपुर, १८.५.२०२४
***
मुक्तिका
हाशिए पर सफे रह रहे
क्या कहानी?; सुनें कह रहे
अश्क जंगल के गुमनाम हो
पीर पर्वत की चुप तह रहे
रास्ते राहगीरों बिना
मरुथलों की तरह दह रहे
मुंसिफ़ों की इनायत हुई
टूटता है कहर, सह रहे
आदमी- आदमी है नहीं
धर्म के सब किले ढह रहे
सिय गँवा क्षुब्ध हो राम जी
डूब सरयू में खुद बह रहे
एक चेहरा जहाँ दिख रहा
कई चेहरे वहाँ रह रहे
१८-५-२०२२
•••
मुक्तिका
गीत गाते मीत जब दिल वार के
जीत जाते प्रीत हँस हम हार के
बीत जाते यार जब पल प्यार के
याद आते फूल हरसिंगार के
बोलती है बोल बिन तोले जुबां
कोकिला दे घोल रस मनुहार के
नैन में झाँकें नयन करते गिले
नाव को ताकें सजन पतवार के
बैर से हो बैर तब सुख-शांति हो
द्वारिका जाते कदम हरिद्वार के
१८-५-२०२२
•••
सत्रह मई बहुभाषाविद धीरेन्द्र वर्मा जयंती
*
*संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा,अंग्रेज़ी और फ़्रेंच के विद्वान डॉ धीरेंद्र वर्मा की जयंती पर सादर नमन*
धीरेन्द्र वर्मा का जन्म १७ मई, १८९७ को बरेली (उत्तर प्रदेश) के भूड़ मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम खानचंद था। खानचंद एक जमींदार पिता के पुत्र होते हुए भी भारतीय संस्कृति से प्रेम रखते थे।
प्रारम्भ में धीरेन्द्र वर्मा का नामांकन वर्ष १९०८ में डी.ए.वी. कॉलेज, देहरादून में हुआ, किंतु कुछ ही दिनों बाद वे अपने पिता के पास चले आये और क्वींस कॉलेज, लखनऊ में दाखिला लिया। इसी स्कूल से सन १९१४ ई. में प्रथम श्रेणी में 'स्कूल लीविंग सर्टीफिकेट परीक्षा' उत्तिर्ण की और हिन्दी में विशेष योग्यता प्राप्त की। तदन्तर इन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद में प्रवेश किया। सन १९२१ ई. में इसी कॉलेज से इन्होंने संस्कृत से एम॰ए॰ किया। उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय से डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की थी।
धीरेंद्र वर्मा हिन्दी तथा ब्रजभाषा के कवि एवं इतिहासकार थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रथम हिन्दी विभागाध्यक्ष थे। धर्मवीर भारती ने उनके ही मार्गदर्शन में अपना शोधकार्य किया। जो कार्य हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किया, वही कार्य हिन्दी शोध के क्षेत्र में डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा ने किया था। धीरेन्द्र वर्मा जहाँ एक तरफ़ हिन्दी विभाग के उत्कृष्ट व्यवस्थापक रहे, वहीं दूसरी ओर एक आदर्श प्राध्यापक भी थे। भारतीय भाषाओं से सम्बद्ध समस्त शोध कार्य के आधार पर उन्होंने १९३३ ई. में हिन्दी भाषा का प्रथम वैज्ञानिक इतिहास लिखा था। फ्रेंच भाषा में उनका ब्रजभाषा पर शोध प्रबन्ध है, जिसका अब हिन्दी अनुवाद हो चुका है। मार्च, सन् १९६९ में डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा हिंदी विश्वकोश के प्रधान संपादक नियुक्त हुए। विश्वकोश का प्रथम खंड लगभग डेढ़ वर्षों की अल्पावधि में ही सन् १९६० में प्रकाशित हुआ।
*कृतियाँ*
१. बृजभाषा व्याकरण
२. 'अष्टछाप' प्रकाशन रामनारायण लाल, इलाहाबाद, सन १९३८
३. 'सूरसागर-सार' सूर के ८१७ उत्कृष्ट पदों का चयन एवं संपादन, प्रकाशन साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद, १९५४
४. 'मेरी कालिज डायरी' १९१७ के १९२३ तक के विद्यार्थी जीवन में लिखी गयी डायरी का पुस्तक रूप है, प्रकाशन साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद, १९५४
५. 'मध्यदेश' भारतीय संस्कृति संबंधी ग्रंथ है। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के तत्त्वाधान में दिये गये भाषणों का यह संशोधित रूप है। प्रकाशन बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, १९५५
६. 'ब्रजभाषा' थीसिस का हिन्दी रूपान्तर है। प्रकाशन हिन्दुस्तानी अकादमी, १९५७
७. 'हिन्दी साहित्य कोश' संपादन, प्रकाशन ज्ञानमंडल लिमिटेड, बनारस, १९५८
८. 'हिन्दी साहित्य' संपादन, प्रकाशन भारतीय हिन्दी परिषद, १९५९
९. 'कम्पनी के पत्र' संपादन, प्रकाशन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, १९५९
१०. 'ग्रामीण हिन्दी' प्रकाशन, साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद
११. 'हिन्दी राष्ट्र' प्रकाशन, भारती भण्डार, लीडर प्रेस, इलाहाबाद
१२. 'विचार धारा' निबन्ध संग्रह है, प्रकाशन साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद
१३. 'यूरोप के पत्र' यूरोप जाने के बाद लिखे गये पत्रों का महत्त्वपूर्ण संचयन है। प्रकाशन साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबा
डॉ धीरेंद्र वर्मा व्यक्ति नहीं, एक युग थे, एक संस्था थे। हिन्दी के शिक्षण और प्रशिक्षण की संभावनाएं उन्होंने उजागर की थीं। शोध और साहित्य निर्माण के नए से नए आयाम उन्होंने स्थापित किए थे।
डॉ. वर्मा ज्ञानमार्गी थे। अज्ञात सत्य का शोध करना ही उनके जीवन का चरम लक्ष्य था। ऋषियों की भांति उन्होंने लिखा है- ''खोज से संबंध रखने वाला विद्यार्थी ज्ञानमार्ग का पथिक होता है। भक्तिमार्ग तथा कर्ममार्ग से उसे दूर रहना चाहिए। संभव है आगे चलकर सत्य के अन्वेषण की तीन धाराएं आपस में मिल जाती हों, कदाचित्‌ मिल जाती हैं, किंतु इसकी ज्ञानमार्गी पथिक को चिंता नहीं होनी चाहिए।''
ऋषियों जैसा पवित्र और यशस्वी जीवन जी कर वह २३ अप्रैल, १९७३ को प्रयाग में स्वर्गवासी हो गए।
***
कविता क्या है?
नेह नर्मदा सी है कविता, हहर-हहरकर बहती रहती
गेह वर्मदा सी है कविता घहर-घहर सच तहती रहती
कविता साक्षी देश-काल की, कविता मानव की जय गाथा
लोकमंगला जन हितैषिणी कविता दहती - सहती रहती
*
कविता क्यों हो?
भाप न असंतोष की मन में
हो एकत्र और फिर फूटे
अमन-चैन मानव के मन का
मौन - अबोला पैन मत लूटे
कविता वाल्व सेफ्टी का है
विप्लव को रोका करती है
अनाचार टोंका करती है
वक्त पड़े भौंका करती है
इसीलिये कविता करना ही
योद्धा बन बिन लड़, लड़ना है
बिन कुम्हार भावी गढ़ना है
कदम दर कदम हँस बढ़ना है
*
कविता किस तरह?
कविता करना बहुत सरल है
भाव नर्मदा डूब-नहाओ
रस-गंगा से प्रीत बढ़ाओ
शब्द सुमन चुन शारद माँ के
चरणों में बिन देर चढ़ाओ
अलंकार की अगरु-धूप ले
मिथक अग्नि का दीप जलाओ
छंद आरती-श्लोक-मंत्र पढ़
भाषा माँ की जय-जय गाओ
कविता करो नहीं, होने दो
तुकबंदी के कुछ दोने लो
भरो कथ्य-सच-लय पंजीरी
खाकर प्राण अमर होने दो।
*
क्षणिका
और अंत में
कविता मुझे पसंद, न कहना
वरना सजा मिलेगी मिस्टर
नहीं समझते क्यों
समझो है
कविता जज साहब की सिस्टर
***
द्विपदी
*
बिन संतोष न चैन है, बिन अर्चना न शांति
बिन छाया मुकुलित नहीं, जीवन मिले न कांति
*
बुला थका आ राम पर, अब तक मिले न राम
चाह रहा मिलता नहीं, क्यों मन को आराम
गीत
*
गीत कुंज में सलिल प्रवहता,
पता न गजल गली का जाने
मीत साधना करें कुंज में
प्रीत निलय है सृजन पुंज में
रीत पुनीत प्रणीत बन रही
नव फैशन कैसे पहचाने?
नेह नर्मदा कलकल लहरें
गजल शिला पर तनिक न ठहरें
माटी से मिल पंकज सिरजें
मिटतीं जग की तृषा बुझाने
तितली-भँवरे रुकें न ठहरें
गीत ध्वजाएँ नभ पर फहरें
छप्पय दोहे संग सवैये
आल्हा बम्बुलिया की ताने
***
मुक्तक
भावना की भावना है शुद्ध शुभ सद्भाव है
भाव ना कुछ, अमोली बहुमूल्य है बेभाव है
साथ हैं अभियान संगम ज्योति हिंदी की जले
प्रकाशित सब जग करे बस यही मन में चाव है
गीत
*
नेह नरमदा घाट नहाते
दो पंछी रच नई कहानी
*
लहर लहर लहराती आती
घुल-मिल कथा नवल कह जाती
चट्टानों पर शीश पटककर
मछली के संग राई गाती
राई- नोंन उतारे झटपट
सास मेंढकी चतुर सयानी
*
रेला आता हहर-हहरकर
मन सिहराता घहर-घहरकर
नहीं रेत पर पाँव ठहरते
नाव निहारे सिहर-सिहरकर
छूट हाथ से दूर बह चली
हो पतवार 'सलिल' अनजानी
***
नवगीत:
.
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
विलग हुए भूखंड तपिश साँसों की
सही न जाती
भुज भेंटे कंपित हो भूतल
भू की फटती छाती
कहाँ भू-सुता मातृ-गोद में
जा जो पीर मिटा दे
नहीं रहे नृप जो निज पीड़ा
सहकर धीर धरा दें
योगिनियाँ बनकर
इमारतें करें
चेतना-कर्तन
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
पवन व्यथित नभ आर्तनाद कर
आँसू धार बहायें
देख मौत का तांडव चुप
पशु-पक्षी धैर्य धरायें
ध्वंस पीठिका निर्माणों की,
बना जयी होना है
ममता, संता, सक्षमता के
बीज अगिन बोना है
श्वास-आस-विश्वास ले बढ़े
हास, न बचे विखंडन
१८.५.२०२०
***
कोरोना- बेमौत मरते मजूरों के नाम
*
द्रौपदी के चीर जैसे रास्ते कटते नहीं
कट रहे उम्मीद के सिर कुर्सियाँ मदहोश हैं
*
पाँव पहँचे लिये भूखे पेट की जब अर्थियाँ
कर दिया मरघट ने तालाबंद अब जाएँ कहाँ
*
वाकई दीदार अच्छे दिनों का अब हो रहा
कुर्सियों की जय बची अखबारबाजी आज कल
*
छातियाँ छत्तीस इंची और भी चौड़ी करो
मरेंगे मजदूर पूँजीपति नवाजे जाएँगे
*
कर्ज बाँटो भीख दो जिंदा नहीं गैरत रहे
काम छीनो हाथ से मौका मिला चूको नहीं
*
निकम्मी सरकार है मरकर यही हम कह गए
चीखती है असलियत टी वी पटे जयकार से
***
संजीव
१५-५-२०२०
***
हास्य कुण्डलिया
नई बहुरिया आ गई, नई नई हर बात
परफ्यूमे भगवान को, प्रेयर कर नित प्रात
प्रेयर कर नित प्रात, फास्ट भी ब्रेक कराती
ब्रेक फास्ट दे लंच न दे, फिरती इठलाती
न्यून वसन लख, आँख शर्म से हरि की झुक गई
मटक रही बेचीर, द्रौपदी फैशन कर नई
बाल पृष्ठ पर आ गए, हम सफेद ले बाल
बच्चों के सिर सोहते, देखो काले बाल
देखो काले बाल, कहीं हैं श्वेत-श्याम संग
दिखे कहीं बेबाल, न गंजा कह उतरे रंग
कहे सलिल बेनूर, परेशां अपनी विगें सम्हाल
घूमें रँगे सियार, डाई कर अपने असली बाल
पाक कला के दिवस पर, हर हरकत नापाक
करे पाक चटनी बना, काम कीजिए पाक
काम कीजिए पाक, नहीं होती है सीधी
कुत्ते की दुम रहे, काट दो फिर भी टेढ़ी
कहता कवि संजीव, जाएँ सरहद पर महिला
कविता बम फेंके, भागे दुश्मन दिल दहला
***
छंद कार्यशाला
दोहा - कुंडलिया
दोहा - आशा शैली
रोला - संजीव
*
जीव जन्तु को दे रहा, जो जीवन की आस।
कण-कण व्यापक राम है, रख मनवा विश्वास। ।
रख मनवा विश्वास, मारता वही श्रमिक को
धनपति बना रहा है, वह ही कुटिल भ्रमित को
आशा पर आकाश टँगा, देखे बेबस जीव
हैं दुधमुँहे अनाथ, नाथ मूक संजीव
१८-५-२०२०
***
मुक्तिका
*
धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर
साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर
.
मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर
तारे साथी धमाचौकड़ी मचा रहे हैं हुलस-पुलककर
.
बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो
पता नहीं कब भोर हो गई?, टेरे मौसी उषा लपककर
.
बहकी-महकी मंद पवन सँग, कली मोगरे की श्वेताभित
गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर
.
सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर
छोड़ न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर
हरदोई
८-५-२०१६
***
यमकीय मुक्तक :
जान में जान है जान यह जानकर, जान की जान सांसत में पड़ गयी
जानकी जान जाए न सच जानकर, जानकी झूठ बोली न, चुप रह गयी
जान कर भी सके जान सच को नहीं, जान ने जान कर भी बताया नहीं
जान का मान हो, मान दे जान को, जान ले जान तो जान खुश हो गयी
***
दोहा सलिला:
दोहे के रंग आँख के संग
*
आँख न दिल का खोल दे, कहीं अजाने राज
काला चश्मा आँख पर, रखता जग इस व्याज
*
नाम नयनसुख- आँख का, अँधा मगर समाज
आँख न खुलती इसलिए, है अनीति का राज
*
आँख सुहाती आँख को, फूटी आँख न- सत्य
आना सच है आँख का, जाना मगर असत्य
*
खोल रही ऑंखें उषा, दुपहर तरेरे आँख
संध्या झपके मूँदती, निशा समेटे पाँख
*
श्याम-श्वेत में समन्वय, आँख बिठाती खूब
जीव-जगत सम संग रह, हँसते ज्यों भू-धूप
*
आँखों का काजल चुरा, आँखें कहें: 'जनाब!
दिल के बदले दिल लिया,पूरा हुआ हिसाब'
*
आँख मार आँखें करें, दिल पर सबल प्रहार
आँख न मिल झुक बच गयी, चेहरा लाल अनार
*
आँख मिलाकर आँख ने, किया प्रेम संवाद
आँख दिखाकर आँख ने, वर्ज किया परिवाद
*
आँखों में ऑंखें गड़ीं, मन में जगी उमंग
आँखें इठला कर कहें, 'करिए मुझे न तंग'
*
दो-दो आँखें चार लख, हुए गुलाबी गाल
पलक लपककर गिर बनी, अंतर्मन की ढाल
*
आँख मुँदी तो मच गया, पल में हाहाकार
आँख खुली होने लगा, जीवन का सत्कार
*
कहे अनकहा बिन कहे, आँख नहीं लाचार
आँख न नफरत चाहती, आँख लुटाती प्यार
*
सरहद पर आँखें गड़ा, बैठे वीर जवान
अरि की आँखों में चुभें, पल-पल सीना तान
*
आँख पुतलिया है सुता, सुत है पलक समान
क्यों आँखों को खटकता, दोनों का सम मान
*
आँख फोड़कर भी नहीं, कर पाया लाचार
मन की आँखों ने किया, पल में तीक्ष्ण प्रहार
*
अपनों-सपनों का हुईं, आँखें जब आवास
कौन किराया माँगता, किससे कब सायास
*
अधर सुनें आँखें कहें, कान देखते दृश्य
दसों दिशा में है बसा, लेकिन प्रेम अदृश्य
*
आँख बोलती आँख से, 'री! मत आँख नटेर'
आँख सिखाती है सबक, 'देर बने अंधेर'
*
ताक-झाँककर आँक ली, आँखों ने तस्वीर
आँख फेर ली आँख ने, फूट गई तकदीर
*
आँख मिचौली खेलती, मूँद आँख को आँख
आँख मूँद मत देवता, कहे सुहागन आँख
१८.५.२०१५
***
छंद सलिला:
रसाल / सुमित्र छंद
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति दस-चौदह, पदारंभ-पदांत लघु-गुरु-लघु.
लक्षण छंद:
रसाल चौदह--दस/ यति, रख जगण पद आद्यंत
बने सुमि/त्र ही स/दा, 'सलिल' बने कवि सुसंत
उदाहरण:
१. सुदेश बने देश / ख़ुशी आम को हो अशेष
सभी समान हों न / चंद आदमी हों विशेष
जिन्हें चुना 'सलिल' व/ही देश बनायें महान
निहाल हो सके स/मय, देश का सुयश बखान
२. बबूल का शूल न/हीं, मनुज हो सके गुलाब
गुनाह छिप सके न/हीं, पुलिस करे बेनकाब
सियासत न मलिन र/हे, मतदाता दें जवाब
भला-बुरा कौन-क/हाँ, जीत-हार हो हिसाब
३. सुछंद लय प्रवाह / हो, कथ्य अलंकार भाव
नये प्रतीक-बिम्ब / से, श्रोता में जगे चाव
बहे ,रसधार अमि/त, कल्पना मौलिक प्रगाढ़
'सलिल' शब्द ललित र/हें, कालजयी हो प्रभाव
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मुक्तक सलिला
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मेरे मन में कौन बताये कितना दिव्य प्रकाश है?
नयन मूँदकर जब-जब देखा, ज्योति भरा आकाश है.
चित्र गुप्त साकार दिखे शत, कण-कण ज्योतित दीप दिखा-
गत-आगत के गहन तिमिरमें, सत-शिव-सुंदर आज दिपा।
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हार गया तो क्या गम? मन को शांत रखूँ
जीत चख चुका, अब थोड़ी सी हार चखूँ
फूल-शूल जो जब पाऊँ, स्वीकार सकूँ
प्यास बुझाकर भावी 'सलिल' निहार सकूँ
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भटका दिन भर थक गया, अब न भा रही भीड़
साँझ कहे अब लौट चल, राह हेरता नीड़
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समय की बहती नदी पर, रक्त के हस्ताक्षर
किये जिसने कह रहा है, हाय खुद को साक्षर
ढाई आखर पढ़ न पाया, स्याह कर दी प्रकृति ही-
नभ धरा तरु नेह से, रहते न कहना निरक्षर
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खों रहे क्या कुछ भविष्य में, जो चाहेंगे पा जायेंगे
नेह नर्मदा नयन तुम्हारे, जीवन -जय गायेंगे
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दीखता है साफ़-साफ़, समय नहीं करे माफ़
जो जैसा स्वीकारूँ, धूप-छाँव हाफ़-हाफ़
गिर-उठ-चल मुस्काऊँ, कुछ नवीन रच जाऊँ-
समय हँसे देख-देख, अधरों पर मधुर लाफ.
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लाख आवरण ओढ़ रहे हो, मैं नज़रों से देख पा रहा
क्या-क्या मन में भाव छिपाये?, कितना तुमको कौन भा रहा?
पतझर काँटे धूल साथ ले, सावन-फागुन की अगवानी-
करता रहा मौन रहकर नित, गीत बाँटकर प्रीत पा रहा.
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मौन भले दिखता पर मौन नहीं होता मन.
तन सीमित मन असीम, नित सपने बोता मन.
बेमन स्वीकार या नकार नहीं भाता पर-
सच है खुद अपना ही सदा नहीं होता मन.
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वोट चोट करता 'सलिल', देख-देखकर खोट
जो कल थे इतरा रहे, आज रहे हैं लोट
जिस कर ने पायी ध्वजा, सम्हल बढ़ाये पैर
नहीं किसी का सगा हो, समय न करता बैर
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तेरे नयनों की रामायण, बाँच रही मैं रहकर मौन
मेरे नयनों की गीता को, पढ़ पायेगा बोलो कौन?
नियति न खुलकर सम्मुख आती, नहीं सदा अज्ञात रहे-
हो सामर्थ्य नयन में झाँके बिना नयन कुछ बात कहे.
१८.५.२०१४
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