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सोमवार, 25 मई 2020

नवगीत

नवगीत:
संजीव
*
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
*
जिंदगी नवगीत बनकर
सर उठाने जब लगी
भाव रंगित कथ्य की
मुद्रा लुभाने तब लगी
गुनगुनाकर छंद ने लय
कहा: 'बन जा संत रे!'
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
*
बिम्ब ने प्रतिबिम्ब को
हँसकर लगाया जब गले
अलंकारों ने कहा:
रस सँग ललित सपने पले
खिलखिलाकर लहर ने उठ
कहा: 'जग में तंत रे!'
*
बन्दगी इंसान की
भगवान ने जब-जब करी
स्वेद-सलिला में नहाकर
सृष्टि खुद तब-तब तरी
झिलमिलाकर रौशनी ने
अंधेरों को कस कहा:
भास्कर है कंत रे!
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
*
२५-५-२०१५

दोहा सलिला

दोहा सलिला :
*
अक्षर अजर अमर असित, अजित अतुल अमिताभ
अकत अकल अकलक अकथ, अकृत अगम अजिताभ
*
आप आब आनंदमय, आकाशी आल्हाद
आक़ा आक़िल अजगबी, आज्ञापक आबाद
*
इक्षवाकु इच्छुक इरा, इर्दब इलय इमाम
इड़ा इदंतन इदंता, इन इब्दिता इल्हाम
*
ईक्षा ईक्षित ईक्षिता, ई ईड़ा ईजान
ईशा ईशी ईश्वरी, ईश ईष्म ईशान
*
उत्तम उत्तर उँजेरा, उँजियारी उँजियार
उच्छ्वासित उज्जवल उतरु, उजला उत्थ उकार
*
ऊजन ऊँचा ऊजरा, ऊ ऊतर ऊदाभ
ऊष्मा ऊर्जा ऊर्मिदा, ऊर्जस्वी ऊ-आभ
*
एकाकी एकाकिनी, एकादश एतबार
एषा एषी एषणा, एषित एकाकार
*
ऐश्वर्यी ऐरावती, ऐकार्थ्यी ऐकात्म्य
ऐतरेय ऐतिह्यदा, ऐणिक ऐंद्राध्यात्म
*
ओजस्वी ओजुतरहित, ओंकारित ओंकार
ओल ओलदा ओबरी, ओर ओट ओसार
*
औगत औघड़ औजसिक, औत्सर्गिक औचिंत्य
औंगा औंगी औघड़ी, औषधीश औचित्य
*
अंक अंकिकी आंकिकी, अंबरीश अंबंश
अंहि अंशु अंगाधिपी, अंशुल अंशी अंश
*

एक दोहा
*
हवा आग धरती गगन, रोटी वस्त्र किताब
'सलिल' कलम जिसको मिले, वह हो मनुज जनाब
*

हाइकु चर्चा

हाइकु चर्चा : १.
संजीव
*
हाइकु (Haiku 俳句 high-koo) ऐसी लघु कवितायेँ हैं जो एक अनुभूति या छवि को व्यक्त करने के लिए संवेदी भाषा प्रयोग करती है. हाइकु बहुधा प्रकृति के तत्व, सौंदर्य के पल या मार्मिक अनुभव से प्रेरित होते हैं. मूलतः जापानी कवियों द्वारा विकसित हाइकु काव्यविधा अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ द्वारा ग्रहण की गयी.
पाश्चात्य काव्य से भिन्न हाइकु में सामान्यतः तुकसाम्य, छंद बद्धता या काफ़िया नहीं होता।
हाइकु को असमाप्त काव्य चूँकि हर हाइकु में पाठक / श्रोता के मनोभावों के अनुसार पूर्ण किये जाने की अपेक्षा होती है.
हाइकु का उद्भव 'रेंगा नहीं हाइकाइ haikai no renga सहयोगी काव्य समूह' जिसमें शताधिक छंद होते हैं से हुआ है. 'रेंगा' समूह का प्रारंभिक छंद 'होक्कु' मौसम तथा अंतिम शब्द का संकेत करता है. हाइकु अपने काव्य-शिल्प से परंपरा के नैरन्तर्य बनाये रखता है.
समकालिक हाइकुकार कम शब्दों से लघु काव्य रचनाएँ करते हैं. ३-५-३ सिलेबल के लघु हाइकु भी रचे जाते हैं.
हाइकु का वैशिष्ट्य
१. ध्वन्यात्मक संरचना:
Write a Haiku Poem Step 2.jpgपारम्परिक जापानी हाइकु १७ ध्वनियों का समुच्चय है जो ५-७-५ ध्वनियों की ३ पदावलियों में विभक्त होते हैं. अंग्रेजी के कवि इन्हें सिलेबल (लघुतम उच्चरित ध्वनि) कहते हैं. समय के साथ विकसित हाइकु काव्य के अधिकांश हाइकुकार अब इस संरचना का अनुसरण नहीं करते। जापानी या अंग्रेजी के आधुनिक हाइकु न्यूनतम एक से लेकर सत्रह से अधिक ध्वनियों तक के होते हैं. अंग्रेजी सिलेबल लम्बाई में बहुत परिवर्तनशील होते है जबकि जापानी सिलेबल एकरूपेण लघु होते हैं. इसलिए 'हाइकु चंद ध्वनियों का उपयोग कर एक छवि निखारना है' की पारम्परिक धारणा से हटकर १७ सिलेबल का अंग्रेजी हाइकु १७ सिलेबल के जापानी हाइकु की तुलना में बहुत लंबा होता है. ५-७-५ सिलेबल का बंधन बच्चों को विद्यालयों में पढाये जाने के बावजूद अंग्रेजी हाइकू लेखन में प्रभावशील नहीं है. हाइकु लेखन में सिलेबल निर्धारण के लिये जापानी अवधारणा "हाइकु एक श्वास में अभिव्यक्त कर सके" उपयुक्त है. अंग्रेजी में सामान्यतः इसका आशय १० से १४ सिलेबल लंबी पद्य रचना से है. अमेरिकन उपन्यासकार जैक कैरोक का एक हाइकू देखें:
Snow in my shoe मेरे जूते में बर्फ
Abandoned परित्यक्त
२५-५-२०१४
Sparrow's nest गौरैया-नीड़

नवगीत

नवगीत:
लौटना मत मन...
संजीव 'सलिल'
*
लौटना मत मन,
अमरकंटक पुनः
बहना नर्मदा बन...
*
पढ़ा, सुना जो वही गुना
हर काम करो निष्काम.
सधे एक सब सधता वरना
माया मिले न राम.
फल न चाह,
बस कर्म किये जा
लगा आत्मवंचन...
*
कर्म योग कहता:
'जो बोया निश्चय काटेगा'.
सगा न कोई आपद-
विपदा तेरी बाँटेगा.
आँख मूँद फिर भी
जग सारा
जोड़ रहा कंचन...
*
क्यों सोचूँ 'क्या पाया-खोया'?
होना है सो हो.
अंतर क्या हों एक या कि
माया-विरंची हों दो?
सहज पके सो मीठा
मान 'सलिल'
पावस-सावन...
*
२५-५-२०१४ 

अभियान २२ मात्रिक छंद पर्व - २५-५-२०२०


समाचार
*
जबलपुर २५-४ २०२०।  विश्ववाणी हिंदी संसथान अभियान जबलपुर का २२ वाँ दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान "मात्रिक छंद पर्व'' में पहने की आसंदी पर पलामू झारखण्ड से पधारे छंद शास्त्री श्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी तथा  आसंदी पर संस्कारधानी जबलपुर के चर्चित समीक्षक इंजी सुरेंद्र सिंह पवार सुशोभित हुए। सरस्वती वंदना  प्रस्तुति इंजी. उदयभानु तिवारी कटनी ने की। 
हे हंसवाहिनी सरस्वती!
हम करते माँ तेरा वंदन 
कर ज्योति प्रज्वलित सुमन लिए 
कर रहे तुम्हारा अभिनन्दन 

तदोपरांत हिंदी महिमा के सोरठे मीनाक्षी शर्मा 'तारिका'  ने प्रस्तुत कर  सिक्त कर दिया। 
हिंदी मोतीचूर, मुँह में लड्डू सी घुले 
जो पहले था दूर, मन से मन खुश हो मिले 
हिंदी कोयल कूक, कानों को लगती भली 
जी में उठती हूक कानों में मिसरी घुले 
मात्रिक-वर्णिक छंद हिंदी की है खासियत 
ज्योतित सूरज-चंद, बिसराकर, खो मान मत   


विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक-संचालक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने छंदों का उद्भव प्रकृति से बताते हुए वाचिक छंदों के जन्म पर प्रकाश डाला। विद्वान वक्त ने छंदों को वेदों का चरण कहे जाने  और छंदों के वर्गीकरण की चर्चा की। टीकमगढ़ से सहभागी हो रहे साहित्यकार राजीव नामदेव राना लिघौरी ने छत्रसाल जयन्ती पर बुंदेली में दोहांजलि अर्पित की-
महाराज छत्रसाल की, चली ऐन तलवार 
बिजुरी सी चके मनो, बहे खून की धार 


सर्वाधिक लोकप्रिय छंद दोहा प्रस्तुत किया सपना सराफ, डॉ. भावना दीक्षित, इंजी अरुण तिवारी, डॉ. संतोष शुक्ल तथा इंजी  अवधेश सक्सेना शिवपुरी ने। सपना सराफ ने वर्षा काल में साजन की बात जोहती विरहिन की पीर उद्घाटित की -
बारिश छाई श्याम मुख, विरहिन छोड़े श्वास
राह तके नैना थके, पिया मिलन की आस

मीना  भट्ट जी ने सरसी छंद में सरस गीत प्रस्तुत किया- 
करती मोहित मुझको प्रीतम, पायल की झनकार 
घुँघरू की झमझम में डूबा, देख सकल संसार 

जबलपुर के सशक्त कवि अभय तिवारी ने सुंदर सरस् दोहे प्रस्तुत कर कानों में अमृत घोल दिया-
नैंनों में तुम तिर रहीं, जैसे जल में नाव 
प्राणों को तुमसे मिले, मीरा जैसे भाव 

भिंड से पधारी मनोरमा जैन 'पाखी' ने प्रधान मंत्री की अपील के बाद भी मजदूरों को मजदूरी न देकर पलायन हेतु विवशकरने, और घाटे का झूठा रोना रोकर रियायत मान रहे उद्योगपतियों पर सार छंद में करारा व्यंग्य किया-
छन्न पकैया छंद पकैया, छन्न बजता पैसा 
तेरी गुल्लक खूब भरी है, फिर रोना ये कैसा? 

कोरोना कालीन प्रतिबंदों के कारण जन सामान्य की परेशनियों का उल्लेख करते हुए अवदेश सक्सेना ने दोहे पढ़े -
शादी अब कैसे करें, वर कन्या से दूर 
परमिशन मिलती नहीं, दोनों हैं मजबूर 

डॉ. मुकुल तिवारी ने मानस में प्रयुक्त छंद प्रस्तुत किये। पलामू झारखण्ड के प्रो. आलोकरंजन ने कबीर के दोहे प्रस्तुत किये। प्रसिद्ध कवयित्री व संपादक छाया सक्सेना ने भी सरसी छंद में पर्यावरण चेतना जगाते  गीत की प्रस्तुति दी- 
उदित सूर्य आकाश लाल है, हुआ सवेरा जान 
एक सुखद संदेश लिए मन गढ्ता नव प्रतिमान 
बाग़ बगीचे सुरभित सुरभित फूलों सी मुस्कान 
हर कलियाँ गुंजित हो कहतीं पेड़ धरा की शान  

मीनाक्षी शर्मा तारिका ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा सुमेरु छंद का प्रयोग कर  रचा गया गीत भरी करतल ध्वनि के बीच सस्वर प्रस्तुत किया- 
'आदमी को देवता, मत मानिए 
आँख पर अपनी न पट्टी बाँधिए 
स्वच्छ मन-दर्पण हमेश यदि न हो-
बदन की दीवार पर मत टाँगिए 
लक्ष्य वरना आप है 

भीलवाड़ा राजस्थान की पुनीता भारद्वाज ने मदिरा सवैया सस्वर प्रस्तुत कर सराहना पाई-
भाव भरा घाट हाथ लिए टीवी द्वार चले अब आय रही 
थाल सजे उर फूल सुगंधित, श्रद्धहि दीप जलाय रही 
भक्ति भरे उर में तव शारद, ज्ञान गुहार लगा य रही 
मातु दया कर पूरहु आस, व्यथा निज आज सुनाय रही 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने उल्लाला छंद में गीत प्रस्तुत कर अभिनव प्रयोग प्रस्तुतकिया 
बाँका राँझा-हीर सा,
बुद्ध-सुजाता-खीर सा,
हर उर-वेधी तीर सा-
बृज के चपल अहीर सा.
अनुरागी निष्काम है
जीवन सुख का धाम है
ओजयुक्त टंडाव छंद की प्रस्तुति कर सलिल जी ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया -
।। जय-जय-जय शिव शंकर । भव हरिए अभ्यंकर ।।
।। जगत्पिता श्वासा सम । जगननी आशा मम ।।
।। विघ्नेश्वर हरें कष्ट । कार्तिकेय करें पुष्ट ।।
।। अनथक अनहद निनाद । सुना प्रभो करो शाद।।
।। नंदी भव-बाधा हर। करो अभय डमरूधर।।
।। पल में हर तीन शूल। क्षमा करें देव भूल।।
।। अरि नाशें प्रलयंकर। दूर करें शंका हर।।
।। लख ताण्डव दशकंधर। विनत वदन चकितातुर।।

ग्वालियर से पधारी संतोष शुक्ल ने किसानों की व्यथा-कथा दोहे में कही- 
बिना सलिल सूखी धरा, लगा गगन से आस 
बादल तो बरसे नहीं, कौन बुझाये प्यास 

इंजी. अरुण भटनागर ने वैराग्यपरक दोहे प्रस्तुत करते हुए आपके काव्य गुरु सलिल जी को प्रणति निवेदन किया- 
प्रेम भक्ति अरु ध्यान फल, ईश मिलन सुख मूल 
तृष्णा ईर्ष्या वासना, क्लेश-कष्ट के मूल 

डॉ. भावना दीक्षित ने दोहा छंद संबंधित जानकारी साझा कर दोहे सुनाये -
ठंडी पुरवा चल रही, सूर्य न झाँका भोर 
बरसा रानी अलसुबह, बरसी चारों ओर

कार्यक्रम की उद्घोषक, दमोह की प्रसिद्ध लघुकथाकार बबीता चौबे 'शक्ति' ने हरितालिका छन्द की मनोहर प्रस्तुति दी -
जय जय हितकारी अवधबिहारी चंद्र रूप भगवंता 
दुःख-दारिदहारी हे  अवधबिहारी गुण गावहिं श्रुति संता 
संग सीतामाता  लछमन भ्राता भक्त परम हनुमंता 
हे कर धनुधारी मंगलकारी आदि-अनादि अनंता 

राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक सुश्री चन्द्रा स्वर्णकार जी ने छंद रचना प्रक्रिया पर अपने विचार व्यक्त किये।  मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने सुमेरु छंद में अपने काव्य गुरु सलिल जी रचित सरस गीत प्रस्तुत किया -
आदमी को देवता मत मानिए 
आँख पर अपनी न पट्टी बाँधिए 
स्वच्छ मन दर्पण हमेशा यदि न हो 
बदन की दीवार पर मत टाँगिए 

पलामू से पधारे छन्दाचार्य श्रीधर प्रसाद द्विवेदी जी ने छप्पय छंद में कोरोना से उपजी त्रासदी का वर्णन किया। कुण्डलिया छंद का विधान श्रीधर जी ने कुण्डलिया में ही बताया।  लावणी छंद में आपने ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की दुर्दशा का चित्रण किया गया। आल्हा (वीर) छंद में भी श्रीधर जी ने कोरोना त्रासदी का जीवंत शब्द चित्र प्रस्तुत किया-  
छूट रहा है धैर्य श्रमिक का, जो मजदूर गए प्रदेश 
कोरोना के विषम काल में, सह सह काटे विषम कलेश 

पाहुना की आसंदी से श्रीधर जी ने प्रत्येक प्रस्तुति की सम्यक समीक्षा की। विश्ववाणी हिंदी संस्थान द्वारा प्रस्तुत इस अनुष्ठान की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह पवार ने संयोजक सलिल जी की कर्मठता को सराहते हुए इसकी निरन्तरता की कामना की।  पवार जी ने स्वरचित दोहे सुनाये - 
मंडप में बैठी रही, रेवा जोड़े हाथ 
छली सोन लौटा नहीं, गया जोहिला साथ 
संगमरमरी सुगढ़ता नहीं विश्व में और 
युवा नर्मदा नाचती, पाकर सुदृढ़ ठौर 
अनुजा बंजर से मिली रेवा भुजा पसार 
झुकी लगी मिलने गले रोक न पाया प्यार 

डॉ. अलोकरंजन द्वारा आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। 








कार्य शाला : प्रीति मिश्रा

कार्य शाला : प्रीति मिश्रा
*
आंखों में अंगार भरो, कर कटार धरो।
बढ़े चलो वीर तुम, करोना को मारने।
धरती भी कहती है अंबर भी कहता है,
शाकाहारी को  कमजोरी बुझते
है,
चलो चीनी सामान का नशा उतारने।
वायरस के भेष में, दानवों के वंशज हैं,
अति सुंदर है साथ रहे विश्व करे सहाराने।।
🙏🏻🙏🏻
वीणा वाली से वरदान

वीणा वाली  तू है, गुणों से परिपूर्ण,
मां मेरी तुझ बिन मैं हूं अपूर्ण।
सीख दे  मुझे, अपने गुणों की,
कहे मुझे जग सारा ,
आप की बेटी।
श्रद्धा, प्रेरणादाई, प्रेम की तू है मूर्ति,
सांचे से अपनी ढाल मुझे, कर मेरी पूर्ति।
जीवन में चल आगे, बनू अगर मां,
कहे जग सारा , श्रद्धा से परिपूर्ण मां
मां मेरी तू है, गुणों से परिपूर्ण,
मां मेरी  तेरे बिन ,मैं हूं अपूर्ण


*

कार्यशाला : दोहे - सपना सराफ

कार्यशाला : दोहे - सपना सराफ
 वारिद छाये कृष्ण वर्ण विरहणी छोड़े निःश्वास,
आ जाओ अब तो बालम पिया मिलन की आस।

राह तकत प्रहर बीते आ जाओ मैं हारी,
तुम ही तो हो मेरे कान्हा मैं राधा हूँ तिहारी।  x

प्रतिक्षण मेरे नयन बहें अश्रु भी हो गये शुष्क,
साजन तिहारा नाम ले ले के अधर हो गये रुक्ष।

बरखा की लग गई झड़ी दमक रही है चपला,
प्रिय तुमरी मैं बाट निहारूँ आँखें हो गईं सजला।  x

हर आहट पर भागी आऊँ खोलूँ जब-जब द्वार,
तुम्हें ना पाऊँ चपल दामिनी से होवें आँखें चार।
*
वारिद छाए श्याम लख, विरहिन छोड़े श्वास
राह ताकें नैना थकें, पिया मिलन की आस

राह निरख बीते प्रहर,  टेर रही मैं हार
कान्हा मेरे हो तुम्हीं, नाव लगाओ पार

अश्रु बहे पल पल हुए, मेरे नैना शुष्क
साजन तुझको टेरकर, अधर हो गए खुश्क

झड़ी लग गई गगन से, चपला करती भीत
बाट हेरती मैं विकल, कहीं न हो अनरीत

हर आहट पर भागकर, आऊँ खोलूँ द्वार
तुम गायब हों तड़ित से, व्याकुल नैना चार

कार्यशाला : दोहे अरुण भटनागर

दोहे
इंजी. अरुण भटनागर
*
बृह्म सत्य मिथ्या जगत ज्ञानी कहहिं सुजान
सत्य नाम सत्संग सुख सुमति सुबुद्धि समान

प्रेम भगति अरु ध्यान फल ईश मिलन सुखमूल
इरषा तृसना वासना समझिए बंध के मूल

कलजुग भगति सहज दुरह सहज सुमरि हरि नाम
राम नाम रटि अहरनिशि राम सुधारिहिं काम

आपन करु कछु होत नहिं दूजी आस न‌ कोय
गुरू की किरपा जब मिले अलखनिरंजन होय
*
बृह्म सत्य मिथ्या जगत, कहते संत सुजान
सत्य नाम सत्संग सुख,  सुमति सुबुद्धि समान

प्रेम भगति अरु ध्यान फल, ईश मिलन सुख-मूल
तृष्णा ईर्ष्या वासना, क्लेश-कष्ट के मूल

त्याग कठिन कलिकाल में, सहज सुमिर हरि नाम
राम नाम रट अहर्निश, राम सुधारें काम

आप किये कुछ हो नहीं,  आप किये हो काम
मिले कृपा गुरु की अरुण,  सीधी हो विधि वाम
*

गीत: अंधश्रद्धा महापौरणिक जातीय, सुमेरु छंद

गीत:
अंधश्रद्धा
महापौरणिक जातीय, सुमेरु छंद
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदमी को देवता, मत मानिए
आँख पर अपनी न पट्टी बाँधिए
स्वच्छ मन-दर्पण हमेश यदि न हो-
बदन की दीवार पर मत टाँगिए
लक्ष्य वरना आप है
*
कौन गुरुघंटाल हो, किसको पता?
बुद्धि को तजकर नहीं, करिए खता
गुरु बनाएँ तो परख भी लें उसे-
बता पाए गुरु नहीं तुझको धता
बुद्धि तजना पाप है
*
नीति-मर्यादा सुपावन धर्म है
आदमी का भाग्य लिखता कर्म है
शर्म आये कुछ न ऐसा कीजिए-
जागरण ही जिंदगी का मर्म  है 
देव-प्रिय निष्पाप है
***

हिंदी के सोरठे

हिंदी के सोरठे
*
हिंदी की जय बोल,
हिंदी मोतीचूर, मुँह में लड्डू सी घुले
जो पहले था दूर, मन से मन खुश हो मिले

हिंदी कोयल कूक, कानों को लगती भली
जी में उठती हूक, शब्द-शब्द मिसरी डली

हिंदी बाँधे सेतु, मन से मन के बीच में 
साधे सबका हेतु, स्नेह पौध को सींच के

मात्रिक-वर्णिक छंद, हिंदी की हैं खासियत
ज्योतित सूरज-चंद, बिसरा कर खो मान मत

अलंकार है शान, कविता की यह भूल मत
छंद हीन अज्ञान, चुभा पेअर में शूल मत
हिंदी रोटी-दाल, कभी न कोई ऊबता
ऐसा सूरज जान, जो न कभी भी डूबता

हिंदी निश-दिन बोल, खुश होगी भारत मही
नहीं स्वार्थ से तोल, कर केवल वह जो सही
***
२२-५-२०२०
 

रविवार, 24 मई 2020

एक रचना

एक रचना
*
अधर पर मुस्कान १०
नयनों में निमंत्रण, ११
हाथ में हैं पुष्प, १०
मन में शूल चुभते, ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
*
ओ अमित शाही इरादों! १४
ओ जुमलिया जूठ-वादों! १४
लूटते हो चैन जन का १४
नीरवों के छिपे प्यादों! १४
जिस तरह भी हो न सत्ता १४
हाथ से जाए। ९
कुर्सियों में जान १०
संसाधन स्व-अर्पण, ११
बात में टकराव, १०
धमकी खुली देते, ११
धर्म का ले नाम, कर अलगाव, १७
खुद को थोप ऊपर। ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
*
रक्तरंजित सरहदें क्यों? १४
खोलते हो मैकदे क्यों? १४
जीविका अवसर न बढ़ते १४
हौसलों को रोकते क्यों? १४
बात मन की, ध्वज न दल का १४
उतर-छिन जाए। ९
लिया मन में ठान १०
तोड़े आप दर्पण, ११
दे रहे हो घाव, १०
नफरत रोज सेते, ११
और की गलती गिनाकर मुक्त, १७
ज्यों संतुष्ट शूकर। ११
बढ़ गए पेट्रोल के फिर भाव, १७
जीवन हुआ दूभर। ११
*
२३-५-२०१८

मुक्तिका

मुक्तिका ​:
*
अंधे देख रहे हैं, गूंगे बोल रहे
पोल​ उजालों की अँधियारे खोल रहे
*
लोभतंत्र की जय-जयकार करेगा जो
निष्ठाओं का उसके निकट न मोल रहे
*
बाँध बनाती है संसद संयम के जो
नहीं देखती छिपे नींव में होल रहे ​
​*
हैं विपक्ष जो धरती को चौकोर कहें
सत्ता दल कह रहा अगर भू गोल रहे
*
कौन सियासत में नियमों की बात करे?
कुछ भी कहिए, पर बातों में झोल रहे
*

गीत:

गीत:
संजीव 'सलिल'
*
*
तन-मन, जग-जीवन झुलसाता काला कूट धुआँ.
सच का शंकर हँस पी जाता, सारा झूट धुआँ....
आशा तरसी, आँखें बरसीं,
श्वासा करती जंग.
गायन कर गीतों का, पाती
हर पल नवल उमंग.
रागी अंतस ओढ़े चोला भगवा-जूट धुआँ.....
पंडित हुए प्रवीण, ढाई
आखर से अनजाने.
अर्थ-अनर्थ कर रहे
श्रोता सुनें- नहीं माने.
धर्म-मर्म पर रहा भरोसा, जाता छूट धुआँ.....
आस्था-निष्ठां की नीलामी
खुले आम होती.
बेगैरत हँसते हैं, गैरत
सुबह-शाम रोती.
अनजाने-अनचाहे जाता धीरज टूट धुआँ...
************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

मुक्तिका

मुक्तिका
*
बँधी नीलाकाश में
मुक्तता भी पाश में
.
प्रस्फुटित संभावना
अगिन केवल 'काश' में
.
समय का अवमूल्यन
हो रहा है ताश में
.
अचेतन है ज़िंदगी
शेष जीवन लाश में
.
दिख रहे निर्माण के
चिन्ह व्यापक नाश में
.
मुखौटों की कुंडली
मिली पर्दाफाश में
.
कला का अस्तित्व है
निहित संगतराश में
***
[बारह मात्रिक आदित्य जातीय छन्द}
११.५.२०१६, ६.४५
सी २५६ आवास-विकास, हरदोई

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
लहर-लहर लहर रहे, नागिन जैसे केश।
कटि-नितम्ब से होड़ ले, थकित न होते लेश।।
*
वक्र भृकुटि ने कर दिए, खड़े भीत के केश।
नयन मिलाये रह सके, साहस रहा न शेष।।
*
मनुज-भाल पर स्वेद सम, केश सजाये फूल।
लट षोडशी कुमारिका, रूप निहारे फूल।।
*
मदिर मोगरा गंध पा, केश हुए मगरूर।
जुड़े ने मर्याद में, बाँधा झपट हुज़ूर।।
*
केश-प्रभा ने जब किया, अनुपम रूप-सिंगार।
कैद केश-कारा हुए, विनत सजन बलिहार।।
*
पलक झपक अलसा रही, बिखर गये हैं केश।
रजनी-गाथा अनकही, कहतीं लटें हमेश।।
*
केश-पाश में जो बँधा, उसे न भाती मुक्ति।
केशवती को पा सकें, अधर खोजते युक्ति।।
*
'सलिल' बाल बाँका न हो, रोज गूँथिये बाल।
किन्तु निकालें मत कभी, आप बाल की खाल।।
*
बाल खड़े हो जाएँ तो, झुका लीजिए शीश।
रुष्ट रूप से भीत ही, रहते भूप-मनीष।।
***
२४-५-२०१६

अभियान २१ : पर्व और कला

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
सूचना -
२१ वाँ सारस्वत अनुष्ठान : पर्व कला - कला पर्व
समय : सायं ४ बजे से, प्रस्तुति समय लगभग ४ मिनिट
*
मुखिया : डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव, संस्कृत-बुंदेली साहित्य विशेषज्ञ 
पाहुना : सुश्री गीतिका वेदिका, भारतीय रंगमंच की प्रतिष्ठित कलाकार
विषय प्रवर्तन : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
शारद वंदना : इंजी. उदयभानु तिवारी
हिंदी महिमा :  मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' 
आभार - इंजी अरुण भटनागर 
पर्व प्रधान भारतीय संस्कृति में हर पर्व विविध कलाओं का समन्वय कर मनाया जाता है। विविध शिल्प कलाओं का समन्वय कथा-वार्ता, भजन-आरती (वाक कला), प्रसाद (पाक कला), गायन-वादन-नर्तन, गृह सज्जा, चौक-रांगोली-अल्पना-मांडना (चित्रकला), प्रतिमा (मूर्ति कला) आदि, हर पर्व को महोत्सव बनाती हैं।
आज हर सहभागी किसी एक पर्व का चयन कर उससे जुड़ी कलाओं को प्रकाशित करे।
नई पीढ़ी ही नहीं हम सबको भी रोचक जानकारी मिलेगी।
कृपया, अपने पर्व की सूचना तुरंत दें तथा वाक्-दृश्य (ऑडियो-वीडियो) प्रस्तुति २ बजे तक संयोजक को ९४२५ १८३२४४ पर भेजें।
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हिंदी महिमा 
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हिंदी बिंदी हिन्द की, अद्भुत इसकी शान 
जो जान हिंदी बोलता, बढ़ता उसका मान 
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हिंदी में कहिए कथा, विहँस मनाएँ पर्व 
मुदित हुए सुन ईश्वर, गॉड खुदा गुरु सर्व 
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हिंदी हिन्दुस्तान के, जनगण की आवाज 
सकल विश्व में गूँजती, कर जन-मन पर राज 
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नेह नर्मदा सम सरम, अमल विमल अम्लान 
हिंदी पढ़ते-बोलते, समझदार विद्वान् 
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हिंदी राखी दिवाली, हिंदी फाग अबीर 
घाघ भड्डरी ईसुरी, जगनिक संत कबीर 
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पनघट नुक्क्ड़ झोपड़ी, पगडंडी खलिहान 
गेहूँ चाँवल दाल है, हिंदी खेत मचान   
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हिंदी पूजा आरती, घंटी शंख प्रसाद 
मन मानस में पूजिए, रहें सदा आबाद। 
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समाचार 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
२१ वाँ सारस्वत अनुष्ठान : पर्व कला - कला पर्व
जबलपुर २४-५-२०२०। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के २१ वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान  "पर्व कला - कला पर्व का श्री गणेश इंजी. उदय भान तिवारी द्वारा प्रस्तुत "हे शारद माँ! धुन में मेरी, अपनी कला निखार दो / बैठ आकंठ में आकर मैया, कर के कार सँवार दो" से हुआ।  मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' रचित हिंदी महिमा के दोहे  मधुर स्वर में  सुनकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। ईशोपासना के पश्चात् कार्यक्रम की मुखिया संस्कृत-बुंदेली साहित्यकार शोधकर्त्री डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव तथा पाहुना भारतीय रंगमंच की शिखर कलाकार साहित्यकार गीतिका वेदिका टीकमगढ़ का स्वागत शब्द गुच्छ और पुष्पगुच्छ से किया गया। विषय प्रवर्तन करते हुए आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने भारतीय संस्कृति में पर्व परंपरा को लोकमंगल से जोड़ते हुए उसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता प्रतिपादित की। सिरोही राजस्थान से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार छगनलाल गर्ग 'विज्ञ' ने गणगौर पर्व संबंधी जानकारी दी। डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने वट सावित्री व्रत कथा की सांगोपांग जानकारी प्रस्तुत की। सिहोरा महाविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापक डॉ. अरुणा पांडे ने नागपंचमी पर्व के पर्यावरण से संबंध तथा कन्याओं को विवाहोपरांत मायके से जोड़े रखने की प्रथा बताया। चंद्रा स्वर्णकार ने अक्षय तीज पर्व से संबंधित कथाओं का वर्णन किया। दमोह से सम्मिलित हुईं बबीता चौबे ने दुर्गा पूजन माहात्म्य के साथ भगतें (देवी महिमा गीत) सुनाया। ग्वालियर निवासी डॉ. संतोष शुक्ला ने यम द्वितीया पर्व की कथा तथा महत्त्व बताया। 

हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार महाकवि भगवत दुबे ने रंगोत्सव होली को आनन्दोत्सव, मदनोत्सव और वसंतोत्सव का संयुक्त पर्व बताते हुए सामाजिक विसंगति पर रचित फाग "मची हुड़दंग सड़क पे दारुओं की अरे हाँ, करवा दई लेट बरात'' प्रस्तुत की। डॉ. मुकुल तिवारी ने देवउठनी एकादशी (गन्ना ग्यारस) व्रत संबंधी कथा सुनाते हुए जानकारी दी।  गुलाम गौस ने मुसलामानों के त्योहार ईद के रस्मो रिवाजों की जानकारी देतु हुए सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश की। भारत सरकार की हिंदी सलाहकार समिति की सदस्य डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे ने पर्व माहात्म्य और भजन सुनाया। बुंदेली साहित्यकार परिषद् की अध्यक्ष लक्ष्मी शर्मा ने शिवरात्रि पर्व की कथा और माहात्म्य का वर्णन किया। इंजी अरुण भटनागर ने दक्षिण भारतीयों के प्रमुखपर्व ओणम से जुड़ी जानकारियां साझा कर राष्ट्रीय ऐक्य भाव को मजबूत किया।  भारती नरेश पाराशर ने क्रमश: लुप्त हो रही नर्मदे ब्राह्मणों में प्रचलित भाई दूज पर्व की जानकारी दी। बस्तर के विश्व विख्यात लोकपर्व कौंचा पर प्रकाश डाला रायपुर से सहभागी हो रही रजनी शर्मा ने। पानीपत से पधारी मंजरी शुक्ल ने नवरात्रि पर्व की राम-रावण युद्ध और पराशक्ति से संबंध की जीवंत व्याख्या की। 

जबलपुर के नामवर शायर यूनुस अदीब ने ईदुल रमजान के माह, नमाज़, रोजा, जकात के साथ ईदुल्फित्र को सहनशक्ति बढ़ाने वाला त्यौहार निरूपित किया। श्रावण माह में मनाया जानेवाले त्यौहार 'कजलिया' की कथा और प्रक्रिया बताई सिद्धेश्वरी सराफ 'शीलू' ने। डॉ. भावना दीक्षित  ने श्रावण माह की शुक्ल पंचमी को मनाई जा रही नाग पंचमी का धार्मिक और पर्यावरणीय महत्त्व बताया। साहित्यकार छाया सक्सेना ने दीवाली भाई दूज पर्व के अनुष्ठान पर प्रकाश डाला। पलामू झारखण्ड के डॉ. आलोकरंजन ने आदिवासियों के पर्व करमा की प्रथाओं और प्रकारों पर प्रकाश डाला। दमोह की मनोरमा रतले ने रामभक्ति परक भजन का सस्वर पाठ किया। भीलवाड़ा राजस्थान से तशरीफ़ लाई पुनीता भारद्वाज ने मांडना कला पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कई मांडने प्रस्तुत किये। प्रीति मिश्रा ने जेठ माह में मनाये जाने वाले गंगा दशहरा  के महत्व, कारण और कथा पर प्रकाश डाला। ऋतुराज बसंत से जुड़े बसंत पंचमी के पर्व पर महती रोचक जानकारी दी इंजी रमन श्रीवास्तव ने। मधुर स्वर की स्वामिनी मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने  भारत  नेपाल में मनाये जाते छठ पर्व संबंधी कथा, लोकाचार व  स्तुति की प्रामाणिक जानकारी दी। 

प्रसिद्ध साहित्यकार-संपादक छाया सक्सेना 'प्रभु' ने भाई दूज का त्यौहार मनाये जाने के मूल में वर्णित कथा, लोक परम्पराओं अलप ज्ञात अतूत गड़रिया की कथा, गोबर से बनाये जानेवाले गाँव, ७ भाई-बहिन के पुतले, भटकटैया के काँटे मुसल से कुचले जाने आदि की जानकारी दी। ख्यात आकाशवाणी कलाकार प्रभा विश्वकर्मा 'शील' ने अक्षय नवमी (आँवला नवमी) की जानकारी सरस बुंदेली बोली में दी। पर्वान्त में संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने होली के पश्चात् बृज और बुन्देलखंड की फागों की झलक प्रस्तुत की। पर्व की पाहुन गीतिका वेदिका ने आयोजन की सार्थक बताते हुए कोरोना काल में इसकी सृजनात्मक भूमिका हेतु आयोजकों को आभार दिया। उन्होंने किन्नर विमर्श की चर्चा करते हुए अपनी एक कविता प्रस्तुत की। पर्व की मुखिया डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने विविध विधाओं  के समायोजन को रचनाधर्मिता का पर्व निरूपित किया जिसमें ब्रह्मानंद सहोदर रसानंद प्रवाहित हो रहा है।  अनुष्ठान का समापन करते हुए आभार व्यक्त किया इंजी अरुण भटनागर ने। 
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शनिवार, 23 मई 2020

चिंतन

चिंतन
प्रिय नागरिकों।
खुश रहो कहूँ या प्रसन्न रहो?
- बहुत उलझन है, यह कहूँ तो फिरकापरस्ती का आरोप, वह कहूँ तो सांप्रदायिकता का। बचने की एक ही राह है 'कुछ न कहो, कुछ भी न कहो'।
क्या एक संवेदनशील समाज में कुछ न कहना उचित हो सकता है?
- कुछ न कहें तो क्या सकल साहित्य, संगीत और अन्य कलाएँ मूक रहें? चित्र न बनाया जाए, नृत्य न किया जाए, गीत न गाया जाए, लेख न लिखा जाए, वसन न पहने जाएँ, भोजन न पकाया जाए, सिर्फ इसलिए कि इससे कुछ व्यक्त होता है और अर्थ का अनर्थ न कर लिया जाए।
- राजनीति ने सत्ता को साध्य समझकर समाज नीति की हत्या कर स्वहित साधन को सर्वोच्च मान लिया है।
- देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन महानुभाव दलीय हितों को लिए आक्रामक मुद्राओं में पूर्ववर्तियों पर अप्रमाणित आरोपों का संकेत करते समय यह भूल जाते हैं कि जब इतिहास खुद को दोहराएगा तब उनके मुखमंडल का शोभा कैसी होगी?
- सत्तासीनों से सत्य, संयम सहित सर्वहित की अपेक्षा न की जाए तो किससे की जाए?
- दलीय स्पर्धा में दलीय हितों को संरक्षण हेतु दलीय पदाधिकारी आरोप-प्रत्यारोप करें किंतु राष्ट्र प्रमुख अपनी निर्लिप्तता प्रदर्शित करें या क्या वातावरण स्वस्थ्य न होगा?
- मुझे बनाते व अंगीकार करते समय जो सद्भाव तुम सबमें था, वह आज कहाँ है? स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र या निशस्त्र दोनों तरह के प्रयास करनेवालों की लक्ष्य और विदेशी संप्रभुओं की उन पर अत्याचार समान नहीं था क्या?
- स्वतंत्र होने पर सकल भारत को एक देखने की दृष्टि खो क्यों रही है? अपने कुछ संबंधियों के बचाने के लिए आतंकवादियों को छोड़ने का माँग करनेवाले नागरिक, उन्हें समर्थन देनेवाला समाचार माध्यम और उन्हें छोड़नेवाली सरकार सबने मेरी संप्रभुता के साथ खिलवाड़ ही किया।
- आरक्षण का आड़ में अपनी राजनैतिक रोटी सेंकनेवाले देश की संपत्ति को क्षति पहुँचानेवाले अपराधी ही तो हैं।
- चंद कोसों पर बदलनेवाली बोली के स्थानीय रूप को राजभाषा का स्पर्धी बनाने की चाहत क्यों? इस संकीर्ण सोच को बल देती दिशा-हीन राजनीति कभी भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन करती है, कभी प्रांतों को नाम पर प्रांत भाषा (छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी, राजस्थान में राजस्थानी आदि) की घोषणा कर देती है, भले ही उस नाम की भाषा पहले कभी नहीं रही हो।
- साहित्यकारों के चित्रों स् सुसज्जित विश्व हिंदी सम्मेलन के मंच से यह घोषित किया जाना कि 'यह भाषा सम्मेलन है, साहित्य सम्मेलन नहीं' राजनीति के 'बाँटो और राज्य करो' सिद्धांत का जयघोष था जिसे समझकर भी नहीं समझा गया।
- संशोधनों को नाम पर बार-बार अंग-भंग करने के स्थान पर एक ही बार में समाप्त क्यों न कर दो? मेरी शपथ लेकर पग-पग पर मेरी ही अवहेलना करना कितना उचित है?
- मुझे पल-पल पीड़ा पहुँचाकर मेरी अंतरात्मा को दुखी करने के स्थान पर तुम मुझे हटा ही क्यों नहीं देते?
-आम चुनाव लोकतंत्र का महोत्सव होना चाहिए किंतु तुमने इसे दलतंत्र का कुरुक्षेत्र बना दिया है। मैंने आम आदमी को मनोनुकूल प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया था पर पूँजीपतियों से चंदा बटोरकर उनके प्रति वफादार दलों ने नाग, साँप, बिच्छू, मगरमच्छ आदि को प्रत्याशी बनाकर जनाधिकार का परोक्षत: हरण कर लिया।
- विडंबना ही है कि जनतात्र को जनप्रतिनिधि जनमत और जनहित नहीं दलित और दल-हित साधते रहते हैं।
- 'समर शेष नहीं हुआ है, उठो, जागो, आगे बढ़ो। लोक का, लोक के लिए, लोक के द्वारा शासन-प्रशासन तंत्र बनाओ अन्यथा समय और मैं दोनों तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे।
- ईश्वर तुम्हें सुमति दें।
शुभेच्छु
तुम्हारा संविधान

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
मन में अब भी रह रहे, पल-पल मैया-तात।
जाने क्यों जग कह रहा, नहीं रहे बेबात।।
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रचूँ कौन विधि छंद मैं,मन रहता बेचैन।
प्रीतम की छवि देखकर, निशि दिन बरसें नैन।।
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कल की फिर-फिर कल्पना, कर न कलपना व्यर्थ।
मन में छवि साकार कर, अर्पित कर कुछ अर्ध्य।।
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जब तक जीवन-श्वास है, तब तक कर्म सुवास।
आस धर्म का मर्म है, करें; न तजें प्रयास।।
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मोह दुखों का हेतु है, काम करें निष्काम।
रहें नहीं बेकाम हम, चाहें रहें अ-काम।।
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खुद न करें निज कद्र गर, कद्र करेगा कौन?
खुद को कभी सराहिए, व्यर्थ न रहिए मौन.
*
प्रभु ने जैसा भी गढ़ा, वही श्रेष्ठ लें मान।
जो न सराहे; वही है, खुद अपूर्ण-नादान।।
*
लता कल्पना की बढ़े, खिलें सुमन अनमोल।
तूफां आ झकझोर दे, समझ न पाए मोल।।
*
क्रोध न छूटे अंत तक, रखें काम से काम।
गीता में कहते किशन, मत होना बेकाम।।
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जिस पर बीते जानता, वही; बात है सत्य।
देख समझ लेता मनुज, यह भी नहीं असत्य।।
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भिन्न न सत्य-असत्य हैं, कॉइन के दो फेस।
घोडा और सवार हो, अलग न जीतें रेस।।
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७.५.२०१८
salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८

दोहा सलिला

भोजन हरता रोग भी
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
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दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
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हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
*
नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
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२२-५-२०१०

मुक्तक

मुक्तक
तुझको अपना पता लगाना है?
खुद से खुद को अगर मिलाना है
मूँद कर आँख बैठ जाओ भी
दूर जाना करीब आना है
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१६-५-२०१५