- मुक्तिकाक्या हुआ??संजीव 'सलिल'*आई होली भाँग ही गटकी नहीं तो क्या हुआ?छान कर ठंडाई जी भर पी नहीं तो क्या हुआ??
हो चुकी होगी हमेशा, मौसमी होली नहीं..हर किसी से मिल गले, टोली नहीं तो क्या हुआ??माँगकर गुझिया गटक, घर दोस्त के जा मत हिचक.चौंक मत चौके में मेवा, घी नहीं तो क्या हुआ??जो समाई आँख में उससे गले मिल खिलखिला.दिल हुआ बागी मुनादी की नहीं तो क्या हुआ??छूरियाँ भी हैं बगल में, राम भी मुँह में 'सलिल'दूर रह नेता लिये गोली नहीं तो क्या हुआ??
बाग़ है दिल दाद सुनकर, हो रहा दिल बाग यूँ.
फूल-कलियाँ झूमतीं तितली नहीं तो क्या हुआ??सौरभी मस्ती नशीली, ले प्रभाकर पहनताकेसरी बाना, हवा बागी नहीं तो क्या हुआ??खूबसूरत कह रहे सीरत मगर परखी नहीं.ब्याज प्यारा मूल गर बाकी नहीं तो क्या हुआ..सँग हबीबों का मिले तो कौन चाहेगा नहींख़ास खाते आम गो फसली नहीं तो क्या हुआ??धूप-छाँवी ज़िंदगी में, शोक को सुख मान ले.हो चुकी जो आज वह होली नहीं तो क्या हुआ??केसरी बालम कहाँ है? खोजतीं पिचकारियाँ.आँख में सपना धनी धानी नहीं तो क्या हुआ??दुश्मनों से दोस्ती कर, दोस्त को दुश्मन न कर.यार से की यार ने यारी नहीं तो क्या हुआ??नाज़नीनें चेहरे पर प्यार से मलतीं गुलालअबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?श्री लुटाये वास्तव में, जब बरसता अम्बरीश.'सलिल' पाता बूँद भर पानी नहीं तो क्या हुआ??***बह्र: बहरे रमल मुसम्मन महजूफअब(२)/के(१)/किस्(२)/मत(२) आ(२)/प(१)/की(२)/चम(२) की(२)/न्(१)/ही(२)/तो(२) क्या(२)/हू(१)/आ(२)
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुनरदीफ: नहीं तो क्या हुआकाफिया: ई की मात्रा (चमकी, आई, बिजली, बाकी, तेरी, मेरी, थी आदि)
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 2 मार्च 2012
मुक्तिका क्या हुआ?? --संजीव 'सलिल'
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गुरुवार, 1 मार्च 2012
दोहा सलिला: होली हो अबकी बरस --संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
होली हो अबकी बरस
संजीव 'सलिल'
*
होली होली हो रही, होगी बारम्बार.
होली हो अबकी बरस, जीवन का श्रृंगार.१.
होली में हुरिया रहे, खीसें रहे निपोर.
गौरी-गौरा एक रंग, थामे जीवन डोर.२.
होली अवध किशोर की, बिना सिया है सून.
जन प्रतिनिधि की चूक से, आशाओं का खून.३.
होली में बृजराज को, राधा आयीं याद.
कहें रुक्मिणी से -'नहीं, अब गुझियों में स्वाद'.४.
होली में कैसे डले, गुप्त चित्र पर रंग.
चित्रगुप्त की चतुरता, देख रहे सबरंग.५.
होली पर हर रंग का, 'उतर गया है रंग'.
जामवंत पर पड़ हुए, सभी रंग बदरंग.६.
होली में हनुमान को, कहें रंगेगा कौन.
लाल-लाल मुँह देखकर, सभी रह गए मौन.७.
होली में गणपति हुए, भाँग चढ़ाकर मस्त.
डाल रहे रंग सूंढ़ से, रिद्धि-सिद्धि हैं त्रस्त.८.
होली में श्री हरि धरे, दिव्य मोहिनी रूप.
ठंडाई का कलश ले, भागे दूर अनूप.९.
होली में निर्द्वंद हैं, काली जी सब दूर.
जिससे होली मिलें हो, वह चेहरा बेनूर.१०.
होली मिलने चल पड़े, जब नरसिंह भगवान्.
ठाले बैठे मुसीबत गले पड़े श्रीमान.११.
************
होली हो अबकी बरस
संजीव 'सलिल'
*
होली होली हो रही, होगी बारम्बार.
होली हो अबकी बरस, जीवन का श्रृंगार.१.
होली में हुरिया रहे, खीसें रहे निपोर.
गौरी-गौरा एक रंग, थामे जीवन डोर.२.
होली अवध किशोर की, बिना सिया है सून.
जन प्रतिनिधि की चूक से, आशाओं का खून.३.
होली में बृजराज को, राधा आयीं याद.
कहें रुक्मिणी से -'नहीं, अब गुझियों में स्वाद'.४.
होली में कैसे डले, गुप्त चित्र पर रंग.
चित्रगुप्त की चतुरता, देख रहे सबरंग.५.
होली पर हर रंग का, 'उतर गया है रंग'.
जामवंत पर पड़ हुए, सभी रंग बदरंग.६.
होली में हनुमान को, कहें रंगेगा कौन.
लाल-लाल मुँह देखकर, सभी रह गए मौन.७.
होली में गणपति हुए, भाँग चढ़ाकर मस्त.
डाल रहे रंग सूंढ़ से, रिद्धि-सिद्धि हैं त्रस्त.८.
होली में श्री हरि धरे, दिव्य मोहिनी रूप.
ठंडाई का कलश ले, भागे दूर अनूप.९.
होली में निर्द्वंद हैं, काली जी सब दूर.
जिससे होली मिलें हो, वह चेहरा बेनूर.१०.
होली मिलने चल पड़े, जब नरसिंह भगवान्.
ठाले बैठे मुसीबत गले पड़े श्रीमान.११.
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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012
बासंती दोहा ग़ज़ल: -- संजीव 'सलिल'
बासंती दोहा ग़ज़ल: संजीव 'सलिल'
बासंती दोहा ग़ज़ल (मुक्तिका)
संजीव 'सलिल'
*
किंशुक कुसुम विहँस रहे, या दहके अंगार..
पर्ण-पर्ण पर छा गया, मादक रूप निखार.
पवन खो रहा होश निज, लख वनश्री श्रृंगार..
महुआ महका देखकर, चहका-बहका प्यार.
मधुशाला में बिन पिए, सिर पर नशा सवार..
नहीं निशाना चूकती, पंचशरों की मार.
पनघट-पनघट हो रहा, इंगित का व्यापार..
नैन मिले लड़ मिल झुके, करने को इंकार.
देख नैन में बिम्ब निज, कर बैठे इकरार..
मैं तुम यह वह ही नहीं, बौराया संसार.
फागुन में सब पर चढ़ा, मिलने गले खुमार..
ढोलक, टिमकी, मँजीरा, करें ठुमक इसरार.
फगुनौटी चिंता भुला. नाचो-गाओ यार..
घर-आँगन, तन धो लिया, अनुपम रूप निखार.
अपने मन का मैल भी, किंचित 'सलिल' बुहार..
बासंती दोहा ग़ज़ल, मन्मथ की मनुहार.
सीरत-सूरत रख 'सलिल', निर्मल सहज सँवार..
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रविवार, 26 फ़रवरी 2012
पुस्तकें दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले के अवसर पर ...
पुस्तकें , दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले के अवसर पर ...
प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , जबलपुर
युग से संचित ज्ञान का भंडार हैं ये पुस्तकें
सोच और विचार का संसार हैं ये पुस्तकें
देखने औ" समझने को खोलती नई खिड़कियां
ज्ञानियो से जोड़ने को तार हैं ये पुस्तकें
इनमें रक्षित धर्म संस्कृति आध्यात्मिक मूल्य है
जग में अब सब प्रगति का आधार हैं ये पुस्तकें
घर में बैठे व्यक्ति को ये जोड़ती हैं विश्व से
दिखाने नई राह नित तैयार हैं ये पुस्तकें
देती हैं हल संकटो में और हर मन को खुशी
संकलित सुमनो का सुरभित हार हैं ये पुस्तकें
कलेवर में अपने ये हैं समेटे इतिहास सब
आने वाले कल को एक उपहार हैं ये पुस्तकें
हर किसी की पथ प्रदर्शक और सच्ची मित्र हैं
मनोरंजन सीख सुख आगार हैं ये पुस्तकें
किसी से लेती न कुछ भी सिर्फ देती हैं ये स्वयं
सिखाती जीना औ" शुभ संस्कार हैं ये पुस्तकें
पुस्तको बिन पल न सकता कहीं सभ्य समाज कोई
फलक अमर प्रकाश जीवन सार हैं ये पुस्तकें
प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , जबलपुर
युग से संचित ज्ञान का भंडार हैं ये पुस्तकें
सोच और विचार का संसार हैं ये पुस्तकें
देखने औ" समझने को खोलती नई खिड़कियां
ज्ञानियो से जोड़ने को तार हैं ये पुस्तकें
इनमें रक्षित धर्म संस्कृति आध्यात्मिक मूल्य है
जग में अब सब प्रगति का आधार हैं ये पुस्तकें
घर में बैठे व्यक्ति को ये जोड़ती हैं विश्व से
दिखाने नई राह नित तैयार हैं ये पुस्तकें
देती हैं हल संकटो में और हर मन को खुशी
संकलित सुमनो का सुरभित हार हैं ये पुस्तकें
कलेवर में अपने ये हैं समेटे इतिहास सब
आने वाले कल को एक उपहार हैं ये पुस्तकें
हर किसी की पथ प्रदर्शक और सच्ची मित्र हैं
मनोरंजन सीख सुख आगार हैं ये पुस्तकें
किसी से लेती न कुछ भी सिर्फ देती हैं ये स्वयं
सिखाती जीना औ" शुभ संस्कार हैं ये पुस्तकें
पुस्तको बिन पल न सकता कहीं सभ्य समाज कोई
फलक अमर प्रकाश जीवन सार हैं ये पुस्तकें
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
मुक्तिका:: क्या हुआ?? -- संजीव 'सलिल'
मुक्तिका::
संजीव 'सलिल'
*
अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?
सुबह से बीबी अगर तमकी नहीं तो क्या हुआ??
कीमतें ईमान की लुढ़की हुई हैं आजकल.
भाँग ने कीमत तनिक कम की नहीं तो क्या हुआ??
बात समता की मगर ममता महज अपने लिये.
भूमि माया ने अगर सम की नहीं तो क्या हुआ??
आबे जमजम से युवाओं का नहीं कुछ वास्ता.
गम-खुशी में बोतलें रम की नहीं तो क्या हुआ??
आज हँस लो, भाव आटे-दाल का कल पूछना.
चूड़ियों ने आँख गर नम की नहीं तो क्या हुआ??
कौन लगता कंठ गा फागें, कबीरा गाँव में?
पर्व में तलवार ही दमकी नहीं तो क्या हुआ??
ससुर जी के माल पर नज़रें गड़ाना मत 'सलिल'.
सास ने दी सुबह से धमकी नहीं तो क्या हुआ??
******
बह्र: बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
अब(२)/के(१)/किस्(२)/मत(२) आ(२)/प(१)/की(२)/चम(२) की(२)/न्(१)/ही(२)/तो(२) क्या(२)/हू(१)/आ(२)
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
रदीफ: नहीं तो क्या हुआ
काफिया: ई की मात्रा
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मुक्तिका:: क्या हुआ?? संजीव 'सलिल'
होली के रंग : नवीन चतुर्वेदी के संग
होली के रंग : नवीन चतुर्वेदी के संग |
| * नायक:- |
गोरे गोरे गालन पे मलिहों गुलाल लाल,
कोरन में सजनी अबीर भर डारिहों|
सारी रँग दैहों सारी, मार पिचकारी, प्यारी,
अंग-अंग रँग जाय, ऐसें पिचकारिहों|
अँगिया, चुनर, नीबी, सुपरि भिगोय डारों,
जो तू रूठ जैहै, हौलें-हौलें पुचकारिहों|
अब कें फगुनवा में कहें दैहों छाती ठोक,
राज़ी सों नहीं तौ जोरदारी कर डारिहों||
[कवित्त]
[कवित्त]
नायिका:-
दुहुँ गालन लाल गुलाल भर्यौ, अँगिया में दबी है अबीर की झोरी|
अधरामृत रंग तरंग भरे, पिचकारी बनी यै निगाह निगोरी|
ढप-ढोल-मृदंग उमंगन के, रति के रस गीत करें चित चोरी|
तुम फाग की बाट निहारौ व्रुथा, तुम्हैं बारहों मास खिलावहुँ होरी||
[सुन्दरी सवैया]
*
[सुन्दरी सवैया]
*

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रचना - प्रति रचना: भजन: कौन कहता है?... मृदुल कीर्ति-संजीव 'सलिल'
रचना - प्रति रचना:
भजन:
कौन कहता है?...
मृदुल कीर्ति
*
***
भजन:
कौन कहता है?...
संजीव 'सलिल'
*
पीर को धर धीर सहता जो वही मंजिल वरे.
पीर सहकर पीर बनते, हैं सुहृद जन बाँकुरे.
पीर का आभार खोटे भी हुए सिक्के खरे.
पीर प्रभु की कृपा बन प्राचीर देती है
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
पीर तन का रोग हर, मन को विमल करती रही.
पीर बन नयनों का आँसू, सांत्वना धरती रही.
पीर खुशियाँ लुटाने को, दर्द-दुःख वरती रही.
पीर पल में तोड़ हर हर ज़ंजीर देती है..
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
पीर अपनों की परख कर मौन रहती है.
पीर सपनों को सुरख कर कुछ न कहती है.
पीर नपनों को निरख कर अथक बहती है.
पीर लेकर पीर कर बेपीर देती है...
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
**
भजन:
कौन कहता है?...
मृदुल कीर्ति
*
कौन कहता है कि पीड़ा, पीर देती है?
ऊर्जा इसकी मिला रघुवीर देती है...
*
जग उठा था दास काली, शब्द के ही दंश से,
जग उठा था, दास तुलसी, कटु वचन के अंश से.
जग उठा संकल्प ध्रुव का, जा मिला सर्वांश से.
चुभन इसकी ज्ञान भी गंभीर देती है.
ऊर्जा इसकी मिला रघुवीर देती है...
*
चेतना सोती नहीं, यदि पीर का हो जागरण,
चेतना खोती नहीं, यदि पीर का हो संवरण.
चेतना बोती वहीं, पर दिव्यता का अंकुरण .
तपन इसकी दीप्ति , तम को चीर देती है.
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...***
भजन:
कौन कहता है?...
संजीव 'सलिल'
*
पीर को धर धीर सहता जो वही मंजिल वरे.
पीर सहकर पीर बनते, हैं सुहृद जन बाँकुरे.
पीर का आभार खोटे भी हुए सिक्के खरे.
पीर प्रभु की कृपा बन प्राचीर देती है
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
पीर तन का रोग हर, मन को विमल करती रही.
पीर बन नयनों का आँसू, सांत्वना धरती रही.
पीर खुशियाँ लुटाने को, दर्द-दुःख वरती रही.
पीर पल में तोड़ हर हर ज़ंजीर देती है..
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
पीर अपनों की परख कर मौन रहती है.
पीर सपनों को सुरख कर कुछ न कहती है.
पीर नपनों को निरख कर अथक बहती है.
पीर लेकर पीर कर बेपीर देती है...
ऊर्जा इसकी मिला, रघुवीर देती है...
*
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दोहा सलिला: दोहा कहे मुहावरा - २... संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
दोहा कहे मुहावरा - २...
संजीव 'सलिल'
*
किसके 'घायल पाँव' हैं'?, किसके 'भारी पाँव'?
'पाँव पूजना' सार्थक, व्यर्थ 'अडाना पाँव'.३१.
*
'अपने मुंह मिट्ठू मियाँ, बने' हकीकत भूल.
खुद को कोमल कहे ज्यों, पैना शूल बबूल.३२.
*
'रट्टू तोता बन' करें, देश-भक्ति का जाप.
देश लूटकर कर रहे, नेताजी नित पाप.३३.
*
'सलिल' न देखी महकती, कभी फूल की धूल.
किन्तु महक खिलता मिला, सदा 'धूल का फूल'.३४.
*
'जो जागे सो पा रहा', कोशिश कर-कर लक्ष्य.
'जो सोता खोता वही', बनता भक्षक भक्ष्य.३५.
*
'जाको राखे साइयाँ', बाको मारे कौन?
'नजर उतारे' व्यर्थ तू, लेकर राई-नोंन.३६.
*
'अगर-मगर कर' कर रहे, पाया अवसर व्यर्थ.
'बना बतंगड़ बात का, 'करते अर्थ-अनर्थ'.३७.
*
'चमड़ी जाए पर नहीं दमड़ी जाए' सोच.
'सूंघ अंगुरिया' जो रहे, उनमें व्यापी लोच.३८.
*
कुछ से 'राम-रहीम कर', कुछ से 'कर जय राम'.
'राम-राम' दिल दे मिला, जय-जय सीताराम.३९.
'सर कर' सरल, न कठिन तज, कर अनवरत प्रयास.
'तिल-तिल जलकर' दीप दे, तम हर धवल उजास.४०.
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
दोहा सलिला: दोहा कहे मुहावरा - १ ... -- संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
दोहा कहे मुहावरा - १ ...
संजीव 'सलिल'
*
'पानी-पानी हो गये', साहस बल मति धीर.*
दोहा कहे मुहावरा, सुन-गुन समझो मीत.
कम कहिये समझें अधिक, जन-जीवन की रीत.१.
*
दोहा संग मुहावरा, दे अभिनव आनंद.
'गूंगे का गुड़' जानिए, पढ़िये-गुनिये छंद.२.
*
हैं वाक्यांश मुहावरे, जिनका अमित प्रभाव.
'सिर धुनते' हैं नासमझ, समझ न पाते भाव.३.
*
'पत्थर पड़ना अकल पर', आज हुआ चरितार्थ.
प्रतिनिधि जन को छल रहे, भुला रहे फलितार्थ.४.
*
'अंधे की लाठी' सलिल, हैं मजदूर-किसान.
जिनके श्रम से हो सका भारत देश महान.५.
*
कवि-कविता ही बन सके, 'अंधियारे में ज्योत'
आपद बेला में सकें, साहस-हिम्मत न्योत.६.
*
राजनीति में 'अकल का, चकराना' है आम.
दक्षिण के सुर में 'सलिल', बोल रहा है वाम.७.
*
'अलग-अलग खिचडी पका', हारे दिग्गज वीर.
बतलाता इतिहास सच, समझ सकें मतिधीर.८.
*
जो संसद में बैठकर, 'उगल रहा अंगार'
वह बीबी से कह रहा, माफ़ करो सरकार.९.
*
लोकपाल के नाम पर, 'अगर-मगर कर मौन'.
सारे नेता हो गए, आगे आए कौन?१०?
*
'अंग-अंग ढीला हुआ', तनिक न फिर भी चैन.
प्रिय-दर्शन पाये बिना आकुल-व्याकुल नैन.११.
*
'अपना उल्लू कर रहे, सीधा' नेता आज.
दें आश्वासन झूठ नित, तनिक न आती लाज.१२.
*
*
हैं वाक्यांश मुहावरे, जिनका अमित प्रभाव.
'सिर धुनते' हैं नासमझ, समझ न पाते भाव.३.
*
'पत्थर पड़ना अकल पर', आज हुआ चरितार्थ.
प्रतिनिधि जन को छल रहे, भुला रहे फलितार्थ.४.
*
'अंधे की लाठी' सलिल, हैं मजदूर-किसान.
जिनके श्रम से हो सका भारत देश महान.५.
*
कवि-कविता ही बन सके, 'अंधियारे में ज्योत'
आपद बेला में सकें, साहस-हिम्मत न्योत.६.
*
राजनीति में 'अकल का, चकराना' है आम.
दक्षिण के सुर में 'सलिल', बोल रहा है वाम.७.
*
'अलग-अलग खिचडी पका', हारे दिग्गज वीर.
बतलाता इतिहास सच, समझ सकें मतिधीर.८.
*
जो संसद में बैठकर, 'उगल रहा अंगार'
वह बीबी से कह रहा, माफ़ करो सरकार.९.
*
लोकपाल के नाम पर, 'अगर-मगर कर मौन'.
सारे नेता हो गए, आगे आए कौन?१०?
*
'अंग-अंग ढीला हुआ', तनिक न फिर भी चैन.
प्रिय-दर्शन पाये बिना आकुल-व्याकुल नैन.११.
*
'अपना उल्लू कर रहे, सीधा' नेता आज.
दें आश्वासन झूठ नित, तनिक न आती लाज.१२.
*
जब संयम के पल हुए, पानी की प्राचीर.१३.
*
चीन्ह-चीन्ह कर दे रहे, नित अपनों को लाभ.
धृतराष्ट्री नेता हुए, इसीलिये निर-आभ.१४.
*
पंथ वाद दल भूलकर, साध रहे निज स्वार्थ.
संसद में बगुला भगत, तज जनहित-परमार्थ.१५.
*
छुरा पीठ में भौंकना, नेता जी का शौक.
लोकतंत्र का श्वान क्यों, काट न लेता भौंक?१६.
*
राजनीति में संत भी, बदल रहे हैं रंग.
मैली नाले सँग हुई, जैसे पावन गंग.१७.
*
दरिया दिल हैं बात के, लेकिन दिल के तंग.
पशोपेश उनको कहें, हम अनंग या नंग?१८.
*
मिला हाथ से हाथ वे, चला रहे सरकार.
भुला-भुना आदर्श को, पाल रहे सहकार.१९.
*
लिये हाथ में हाथ हैं, खरहा शेर सियार.
मिलते गले चुनाव में, कल झगड़ेंगे यार.२०.
*
गाल बजाते फिर रहे, गली-गली सरकार.
गाल फुलाये जो उन्हें, करें नमन सौ बार.२१.
*
राम नाप जपते रहे,गैरों का खा माल.
राम नाम सत राम बिन, करते राम कमाल.२२.
*'राम भरोसे' हो रहे, पूज्य निरक्षर संत.
'मुँह में राम बगल लिये, छुरियाँ' मिले महंत.२३.
*
'नाच न जानें' कह रहे, 'आंगन टेढ़ा' लोग.
'सच से आँखें मूंदकर', 'सलिल' न मिटता रोग.२४.
*
'दिन दूना'और 'रात को, चौगुन' कर व्यापार.
कंगाली दिखला रहे, स्याने साहूकार.२५.
*
'साढ़े साती लग गये', चल शिंगनापुर धाम.
'पैरों का चक्कर' मिटे, दुःख हो दूर तमाम.२६.
*
'तार-तार कर' रहे हैं, लोकतंत्र का चीर.
लोभतंत्र ने रच दिया, शोकतंत्र दे पीर.२७.
*
'बात बनाना' ही रहा, नेताओं का काम.
'बात करें बेबात' ही, संसद सत्र तमाम.२८.
*
'गोल-मोल बातें करें', 'करते टालमटोल'.
असफलता को सफलता, कहकर 'पीटें ढोल'.२९.
*
'नौ दिन' चलकर भी नहीं, 'चले अढ़ाई कोस'.
किया परिश्रम स्वल्प पर, रहे 'भाग्य को कोस'.३०.
*
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सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
गोपी गीत दोहानुवाद -- संजीव 'सलिल'
गोपी गीत दोहानुवाद
संजीव 'सलिल'
*
श्रीमदभागवत दशम स्कंध के
इक्तीसवें अध्याय में वर्णित पावन
गोपी गीत का भावानुवाद प्रस्तुत
है.
धन्य-धन्य है बृज धरा, हुए अवतरित श्याम.
बसीं इंदिरा, खोजते नयन, बसो अभिराम..
जय प्रियतम घनश्याम की, काटें कटें न रात.
खोज-खोज हारे तुम्हें, कहाँ खो गये तात??
हम भक्तन तुम बिन नहीं, रातें सकें गुजार.
खोज रहीं सर्वत्र हम, दर्शन दो बलिहार..
कमल सरोवर पराजित, मनहर चितवन देख.
शरद लहर शतदलमयी, लज्जित आभा लेख..
बिना मोल तुम पर नयन, न्यौछावर हैं तात.
घायल कर क्यों वध करें?, वरदाता अवदात..
मय अघ तृण विष सूत जल, असुरों से हर बार.
साधिकार रक्षा करी, बहु-प्रकार करतार!.
जो हो जसुदा-पुत्र तो, करो सहज व्यवहार.
बसे विदेही देह में, जग के तारणहार..
विधि ने वंदनकर किया, आमंत्रित जग-नूर.
हुए बचाने अवतरित, रहो न हमसे दूर..
कमल-करों से थामते, कमला-कर रस-खान.
वृष्णिधुर्य! दो अभय रख, सिर पर कर गुणवान..
बृजपुरियों के कष्ट हर, कर दो भव से पार.
हे माधव! हे मुरारी!, मुरलीधर सरकार..
तव कोमल मुस्कान ले, हर मिथ्या अभिमान.
मुख-दर्शन को तरसतीं, हम भक्तन भगवान..
गौ-संवर्धन हित उठे, रमा-धाम-पग नाथ.
पाप-मुक्त देहज सभी, हों पग पर रख माथ..
सर्प कालिया का दमन, किया शीश-धर पैर.
हरें वासना काम की, उर पग धर, हो खैर..
कमलनयन! मृदु वाक् से, करते तुम आकृष्ट.
अधर अमृत-वाणी पिला, दें जीवन उत्कृष्ट..
जग-लीला जो आपकी, कहिये समझे कौन?
कष्ट नष्ट कर मूल से, जीवन देते मौन..
सचमुच वही महान जो, करते तव गुणगान.
जय करते जीवन-समर, पाते-देते ज्ञान..
गूढ़ वचन, चितवन मधुर, हर पल आती याद.
विरह वियोगी, क्षुब्ध उर, सुन छलिया! फ़रियाद..
गाय चराने प्रभु! गये, सोच भरे मम नैन.
कोमल पग
तृण-चोटसे, आहत- मिली न चैन..
धूल धूसरित केश-मुख, दिवस ढले नीलाभ.
दर्शन की मन-कामना, जगा रहे अमिताभ..
ब्रम्हापूजित पगकमल, भूषण भू के भव्य.
असंतोष-आसक्ति हर, मनचाहा दें दिव्य..
मृदु-पग रखिए वक्ष पर, मिटे शोक-संताप.
अधर माधुरी हर्ष-रस, हमें पिलायें आप..
क्या हम हीन सुवेणु से?, हम पर दिया न ध्यान.
बिन अघाए धर अधर पर, उसे सुनाते गान..
वन जाते प्रियतम! लगे, हर पल कल्प समान.
कुंतल शोभित श्याम मुख, सुंदरता की खान..
सृष्टा ने क्यों सृष्टि में, रची मूर्ति मति-मंद.
देखें आनंदकंद को, कैसे नैना बंद..
अर्ध रात्रि दीदार को, आयी तज घर-द्वार.
'मन अर्पण कर' टेरता, वेणु गीत छलकार..
स्निग्ध दृष्टि, स्नेहिल हँसी, प्रेमिल चितवन शांत.
करूँ वरण की कामना, हर पल लक्ष्मीकांत..
रमानिवासित वक्ष तव, सुंदर और विशाल.
आये न क्यों?, कब आओगे??, ओ जसुदा के लाल!.
गहन लालसा मिलन की, प्रगटो हर लो कष्ट.
विरह रोग, सँग औषधी, पीड़ा कर दो नष्ट..
हम विरहिन चिंतित बहुत, कंकड़ चुभें न पाँव.
पग कोमल रख वक्ष पर, दूँ आँचल की छाँव..
विवेचन
गो इन्द्रिय, पी पान कर, गोपी इन्द्रियजीत.
कृष्ण परम आनंद हैं, जगसृष्टा सुपुनीत..
इन्द्रिय निग्रह प्रभु मिलन, पथ है गोपी गीत.
मोह-वासना त्यागकर, प्रभु पाओ मनमीत..
तजकर माया-मोह के, सब नश्वर सम्बन्ध.
मन कर लो एकाग्र हो, वंशी से अनुबंध..
प्रभु से चिर अनुराग बिन, व्यर्थ जन्म यह मान.
मनमोहन को मन बसा, हैं अमोल यह जान..
अमल भक्ति से मिट सकें, मन के सभी विकार.
विषधर कल्मष नष्ट कर, प्रभु करते उपकार..
लोभ मोह मद दूर कर, तज दें माया-द्वेष.
हरि पग-रज पाकर तरो, तारें हरि देवेश..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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