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गुरुवार, 21 मई 2020

गीत

गीत 
*
मात्र मेला मत कहो
जनगण हुआ साकार है।
*
'लोक' का है 'तंत्र' अद्भुत
पर्व, तिथि कब कौन सी है?
कब-कहाँ, किस तरह जाना-नहाना है?
बताता कोई नहीं पर
सूचना सब तक पहुँचती।
बुलाता कोई नहीं पर
कामना मन में पुलकती
चलें, डुबकी लगा लें
यह मुक्ति का त्यौहार है।
*
'प्रजा' का है 'पर्व' पावन
सियासत को लगे भावन
कहीं पण्डे, कहीं झंडे- दुकाने हैं
टिकाता कोई नहीं पर
आस्था कब है अटकती?
बुझाता कोई नहीं पर
भावना मन में सुलगती
करें अर्पित, पुण्य पा लें
भक्ति का व्यापार है।
*
'देश' का है 'चित्र' अनुपम
दृष्ट केवल एकता है।
भिन्नताएँ भुला, पग मिल साथ बढ़ते
भुनाता कोई नहीं पर
स्नेह के सिक्के खनकते।
स्नान क्षिप्रा-नर्मदा में
करे, मानें पाप धुलते
पान अमृत का करे
मन आस्था-आगार है।
*
२१-५-२०१६ 

मुक्तिका

मुक्तिका
संजीव
*
मखमली-मखमली
संदली-संदली
.
भोर- ऊषा-किरण
मनचली-मनचली
.
दोपहर है जवाँ
खिल गयी नव कली
.
साँझ सुन्दर सजी
साँवली-साँवली
.
चाँद-तारें चले
चन्द्रिका की गली
.
रात रानी न हो
बावली-बावली
.
राह रोके खड़ा
दुष्ट बादल छली
***

२१-५-२०१६
(दस मात्रिक दैशिक छन्द
रुक्न- फाइलुन फाइलुन)

अभियान : १८ वां पर्व : कवि-कविता स्मरण पर्व

समाचार:
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
१८ वाँ दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : राष्ट्र भक्ति पर्व
*
जबलपुर २१-५-२०२०। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के तत्वावधान में १८ वाँ दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : कवि और कविता स्मरण पर्व का आयोजन सनातन सलिला नर्मदा, वाग्देवी शारदा, भारत माता था जगवाणी हिंदी के पूजन, दीप प्रज्वलन तथा इंजी. उदयभानु तिवारी द्वारा स्वरचित तथा दिल्ली से पधारी डॉ. नेहा त्रिपाठी 'इलाहाबादी' द्वारा महाप्राण निराला रचित सरस्वती वंदना के सुमधुर गायन के साथ आरम्भ हुआ। इंजी गोपालकृष्ण चौरसिया 'मधुर' ने जगद्गुरु कृपालु जी महाराज रचित परमभक्ति ोड का सस्वर गायन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

शारद नर्मद हिंदी भारत, वंदन कर कविता के संग
मधुकर-मधुर गागरी रस की, नेहा अगिन बिखेरे रंग
प्रियतम पास पहुँच विद्यापति , पा कृपालु की कृपा अनंत
कहें निराला रसानंद है, पीकर झूमे दिशा दिगंत

मैथिल कोकिल वद्यापति के पदों का सरस गायन किया मीनाक्षी शर्मा 'तारिका ने। ग्वालियर से सहभागी डॉ. संतोष शुक्ला से.नि.प्राचार्य ने एक भारतीय आत्मा माखन लाल चतुर्वेदी की कालजयी रचना पुष्प का अभिलाषा प्रस्तुत कर स्मरणांजलि अर्पित की। बबिता चौबे शिक्षिका दमोह ने सुभद्रा कुमारी चौहान जी की बाल कविता 'कदंब का पेड़' प्रस्तुत कर सरिताओं को बचपन की याद दिला दी। दिल्ली से पधारी कविता राय ने सामान्यत: समालोचक और नाट्यकार के रूप में ख्यात डॉ. राम कुमार वर्मा की कविता ''मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ'' विस्मृत पृष्ठ से सक्षात कराया।

संस्कृत साहित्य की विशेषज्ञ डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने गीतों के राजकुमार गोपाल सक्सेना 'नीरज' के की अमर रचना 'सूनी सूनी सांस के सितार पर' प्रस्तुत कर सदन को मुग्ध कर दिया। युवा कवयित्री सपना सराफ ने छायावाद की स्तंभ महीयसी महादेवी जी ''जो तुम आ जाते एक बार '' की करुणा को साकार कर सराहना पाई। इंजी. अरुण भटनागर ने मधुशाला के गायक हरिवंश राय 'बच्चन' की रचना 'मिट्टी का तन, मस्तीं का मन, पल भर जीवन मेरा परिचय' का वाचन किया। वीरभूमि के महाकवि श्यामनारायण जी पांडे की मुर्दे में प्राण फूंकने में सक्षम रचनाओं 'चेतक तथा राणा की तलवार का ओजस्वी स्वर में वाचन अर्पणा तिवारी इंदौर ने किया।

कालिदास अकादमी उज्जैन के पूर्व अध्यक्ष संस्कृत -पाली-ब्राह्मी साहित्य के सागर आचार्य श्रीकांत चतुर्वेदी ने संस्कृत काव्य का सस्वर पाठ कर सकल सदन को धन्यता की प्रतीति कराई। चर्चित समीक्षक इंजी. सुरेंद्र सिंह पवार ने गीतों का राजकुमार चन्द्रसेन 'विराट' द्वारा रचित गीत 'प्यार किया तुमसे तो हमने क्या होगा परिणाम न सोचा' प्रस्तुत करते हुए विश्ववाणी हिंदी संतान के इस सारस्वत अनुष्ठान को अप्रतिम बताया। प्रसिद्ध पादप रोग विशेषज्ञ , निष्णात कवयित्री, सरस् गायिका डॉ. अनामिका तिवारी ने संस्कारधानी के महापौर और सांसद रहे स्वातंत्र्य सत्याग्रही भवानी प्रसाद तिवारी जी की रचना 'अभागे जीवन की जय बोल' सुनाते हुए निराशा में आशा तथा श्रम की प्रतिष्ठा के मनोभावों को कुशलता पूर्वक व्यक्त किया। महाकवि आचार्य भगवत दुबे ने संस्कारधानी के मधुर गीतकार कृष्ण कुमार चौरसिया 'पथिक' के दो गीत खजुराहो तथा पनिहारिन को याद करते हुए 'एक भूली सी कहानी याद कर, प्राण मेरे आज फिर आकुल हुए' सुनाकर काव्य रसिकों को आनंदित किया।

विश्ववाणी हिंदी संस्थान के संयोजक-संचालक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने हिंदी-अंग्रेजी-फ़ारसी-अरबी-उर्दू के विद्वान पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर' की ग़ज़लों, गीतों तथा खाइयां और हाफ़िज़ के अंगरेजी-हिंदी अनुवाद को प्रस्तुत किया। सलिल जी ने नूर जी के गीत 'तुम पर ही अभिशाप ढलेगा', ग़ज़ल 'पूछिए हमसे हमें क्या इश्क़ में हासिल हुआ' तथा खाइयां व् हाफ़िज़ की रुबाइयों के अंग्रेज-हिंदी अनुवाद के अनुवाद सुनकर सदन से सराहना पाई। डॉ. मुकुल तिवारी ने वैदिक साहित्य विशेषज्ञा डॉ. इला घोष रचित कृति 'हुए अवतरित क्यों राम' का अंश सुनाया। गीत-नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर पंकज श्रीवास्तव के सशक्त नवगीत 'मैंने अपने लिए नहीं भरपेट जुटा पाई है रोटी' का सस्वर गायन कर युगीन विसंगतियों को उद्घाटित किया। दिल्ली से सहभागिता कर रही डॉ. भावना शुक्ल ने डॉ. राजकुमार तिवारी सुमित्र के समयसाक्षी दोहे प्रस्तुत किये। डॉ. कामना तिवारी श्रीवास्तव ने डॉ. गायत्री तिवारी 'सुमित्र' की कविता 'जीवन कविता है / सम्पूर्ण कविता या महाकाव्य / जिसमें है सम्भाव्य या असंभाव्य' प्रभाव पूर्ण ढंग से सुनाई। रायपुर से रजनी शर्मा ने कवि विजय सिंह की कविता 'बोड़ा' तथा 'बंद टाकीज' का वाचन कर कविता की आधुनिक भावमुद्रा से परिचित कराया।

पलामू के आचार्य रामदीन पांडेय की रचना ' का वाचन डॉ. आलोकरंजन ने किया। चंबल की घाटी भिंड से पधारी मनोरमा जैन 'पाखी' ने आचार्य संजीव वर्मा सलिल की रचना 'भोर भई' का पाठ किया। सुकवि अभय तिवारी ने महाकवि गोविन्द प्रसाद तिवारी की कविता';बड़े वृक्ष से ये लिपटती लताएँ' तथा गीत 'याद किसी की आती' की प्रभावी प्रस्तुति की। मीना भट्ट जी ने नवगीतकार बसंत शर्मा अध्यक्ष अभियान का गीत' महलों से कब बाहर निकले' का गायन किया। मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' रचित छत्तीसगढ़ी गीत 'भोर भई दूँ बुहार देहरी अंगना' का मनोहर गायन किया। सारांश गौतम ने विदिशा की युवा कवयित्री श्रद्धा जैन की ग़ज़ल 'मुश्किलें आएंगी जब ये फैसला हो जायेगा / कितने पानी में हैं सब इसका पता हो जाएगा' का सस्वर पाठ किया। इंजीनियरिंग कॉलेज में इलेक्ट्रॉनिक प्रोफ़ेसर शोभित वर्मा ने प्रभावी स्वर में गाँधी जी के मंतर तथा अज्ञेय जी की रचना हिरोशिमा का पाठ कर आज के सारस्वत अनुष्ठान की पूर्णाहुति की। अध्यक्ष डॉ. नीना उपाध्याय ने विश्ववाणी हिंदी संस्थान द्वारा हर दिन किये जा रहे इस सारस्वत अनुष्ठान को सराहते हुए इसे अभूतपूर्व बताया।
***

अभियान १७ वां राष्ट्र भक्ति पर्व

 समाचार:
ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
१७ वाँ दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : राष्ट्र भक्ति पर्व 
*
जबलपुर २०-५-२०२०। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के तत्वावधान में १७ वाँ दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : राष्ट्र भक्ति पर्व का आयोजन प्रसिद्ध पादप रोग विशेषज्ञ, बच्चन जी के काव्य गुरु रामानुजलाल श्रीवास्तव "ऊँट बिलहरीवी'' की पुत्री, गीतांजलि के अनुगायक स्वातंत्र्य सत्याग्रही भवानी प्रसाद तिवारी की पुत्रवधु, ख्यात कवयित्री डॉ. अनामिका तिवारी की मुखियाई तथा सिरोही राजस्थान के वरिष्ठ साहित्यकार छगनलाल गर्ग 'विज्ञ' के  पाहुनत्व में हुआ। उद्घोषक प्रो. आलोकरंजन ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' रचित "हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अब विमल मति दे" सरस्वती वंदना तथा कोकिलकंठी गायिका मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने तैथिक जातीय गोपी छंद में संजीव  'सलिल' द्वारा लिखित हिंदी की आरती ''भारती भाषा प्यारी की, आरती हिंदी न्यारी की'' प्रस्तुत कर वाहवाही पाई। कृपालुजी महाराज के समर्पित शिष्य कृष्णभक्त इंजी. गोपालकृष्ण चौरसिया 'मधुर' ने ''दो पल भी जी तू प्यार से इंसान बन के जी, न हिन्दू सिख मुसलमान ईसाई बन के जी'' गाकर राष्ट्रीय एकता का आह्वान किया। एशिया पैसिफिक टेलीकम्युनिकेशन सोसाइटी के पूर्व महामंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ से पुरस्कृत अभियंता अमरेंद्र नारायण ने दांडी यात्रा पर रचित कालजयी रचना ''तुम रत्नाकर से अंजुली भर रत्न माँगने नहीं आये थे ओ पिता! / तुमने तो सागर की तलहटी से अपने देश का स्वाभिमान उबारने आये थे''  प्रस्तुत का श्रोताओं का मन जीत लिया। चर्चित समीक्षा इंजी  सुरंदे सिंह पवार ने  रासो-आल्हा गायन लोक परंपरा पर शोधपरक आलेख प्रस्तुत करते हुए राष्ट्र की आवश्यकता पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने की परंपरा को जीवंत करने का अनुरोध किया। बृज भूमि की सांगीत परंपरा पर प्रकाश डालते हुए नरेंद्र कुमार शर्मा 'गोपाल' आगरा ने अमरसिंह राठौर  का उल्लेख किया।  डाल्टनगंज झारखंड के वरष्ठ छंद शास्त्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ने कारगिल के शहीद जुगम्बर दीक्षित पर काव्य पुष्प अर्पित किया। " मधुमय देश हमारा" गीत पंक्तियों के साथ राजमाता अहल्याबाई होल्कर की नगरी इंदौर से पधारी अर्पणा तिवारी ने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भाव का निर्वहन करना परमावश्यक बताया। मी नाक्षी शर्मा 'तारिका' ने वीर रस का तात्विक विवेचन करते हुए, उसके उत्साह और आवेग को राष्ट्र हितार्थ आवश्यक बताया। 

वरिष्ठ साहित्यकार छगनलाल गर्ग ने राष्ट्रवाद को मानसिक अवधारणा निरूपित करते हुए राजस्थान के रासो काव्य की विवेचना की।  डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव ''असीम'' ने रासो परंपरा पर विद्वतापरक आलेख का वाचन किया।  भारतीय वायुसेना में ग्रुपकैप्टन रह चुके श्यामल सिन्हा, गुड़गांव ने फ़ौजी की मनस्थिति का जीवंत शब्द चित्र उपस्थित किया "फौजी एक भी एक दिल होता है"। से.नि. अभियंता रमन श्रीवास्तव ने वीर रास को सैन्य अभियानों के समय प्रेरणास्रोत बताया जो मानव ह्रदय के करुणा-श्रृंगार आदि भावों को दबाकर शौर्य और आज को उभारता है। चम्बल घाटी के भिंड से सम्मिलित हुई मनोरमा जैन 'पाखी' ने रीति कालीन वीर काव्य को तत्कालीन देशभक्ति भाव से परिपूर्ण बाटे हुए भूषण, लालकवि, पद्माकर, बिहारी आदि द्वारा राजाओं के मार्गदर्शन का उल्लेख किया। खाय विवेचक डॉ. हरिकृष्ण त्रिपाठी के तनया डॉ. मुकुल तिवारी ने राष्ट्रभक्ति और वीर रस के अंतर्संबंध पर प्रकाश डाला। बुंदेली तथा संस्कृत साहित्य की उद्भट विदुषी  डॉ. सुमन लता श्रीवास्तव ने अंग्रेजी काव्य विधा बैलेड जिसमें वीरगाथा कही जाते है, की संरचना पर गवेषणापूर्ण शोधलेख प्रस्तुत किया। मनोरमा रतले दमोह ने शहीदों के प्रति आभार व्यक्त करता काव्य पाठ किया। भारती नरेश पाराशर ने शहीदों के प्रति भावपूर्ण काव्यांजलि प्रस्तुत की गयी।  संतोष शुक्ला ग्वालियर आदि ने भी राष्ट्र भक्ति विषयक  रचनाओं का पाठ कर आयोजन को समृद्ध किया। पलामू के प्रो. आलोकरंजन ने समयानुशासित, सरस सञ्चालन करने के साथ-साथ राष्ट्रीय भावधारा परक गीत का सरस गायन किया।  विनीता श्रीवास्तव ने स्वातंत्र्य सत्यग्रह और राष्ट्रीय एकता के कारकों पर प्रकाश डाला। बबीता चौबे दमोह ने 'ओ वीर भारती के, तुमको नमन है मेरा' गाकर सैन्य बलों का अभिनन्दन किया। से.नि. इंजी अरुण भटनागर ने वीर रस को राष्ट्रीय शौर्य और गर्व का वाहक निरूपित किया। धन का कटोरा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की कवयित्री रजनी शर्मा ने पारंपरिक ओजपरक नृत्य-गीत शैली पंथी की रचना प्रस्तुत कर प्रशंसा पाई। ''जागो वीर जवानों जागो, जागो मेरे हिंदुस्तान'' स्वरचित, स्वलयबद्ध गीत की मनोहर प्रस्तुति कर से.नि. अभियंता उदयभानु तिवारी 'मधुकर' ने अनुष्ठान की गरिमा वृद्धि की।  

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने लोक तंत्र में जनगण द्वारा, भारत माता का वंदन' रचना प्रस्तुत कर नवाशा और नवोत्साह का संचार करती रचना प्रस्तुत की। पाहुने के सम्बोधन में छगन लाल 'विज्ञ' जी ने विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के सारस्वत अनुष्ठानों को इस संक्रांति काल में बहुत उपयोगी और जन जागरण हेतु आवश्यक बताया। मुखिया डॉ. अनामिका तिवारी ने स्वातन्त्रय संग्राम काल से लेकर अब तक साहित्यकारों द्वारा प्रेरक और उत्प्रेरक साहित्य की सोदाहरण चर्चा करते हुए आज प्रस्तुत हर रचना का सम्यक विश्लेषण किया। अनामिका जी ने आज मानवीय मूल्य परक साहित्य का सृजन कर समाज को एक सूत्र में गूँथने का आह्वान साहित्यकारों से किया। इस सारस्वत समयानुकूल कार्यक्रम की पूर्णाहुति अभियंता अरुण भटनागर द्वारा अध्यक्ष डॉ. अनामिका तिवारी, मुख्य अतिथि छगनलाल गर्ग विज्ञ और सभी सहभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया। 
*** 
नमन शारदे-गजानन, वंदन भारत मात 
जगवानी हिंदी सके, त्रिभुवन में विख्यात 
ध्वजा तिरंगी को करें, मिलकर सभी प्रणाम 
राष्ट्र एकता सुदृढ़ हो, अनुपम दिव्य ललाम 
अनामिका जी विज्ञ जी, स्वागत हम हैं धन्य
शुभ उपस्थिति आपकी, चिंतन होगा नव्य   
मीनाक्षी-आलोक की, कोकिलकंठी तान 
सुनने खुद अमरेंद्र आ, बढ़ा रहे हैं मान 
सुमधुर स्वर छेड़ें मधुर, कहें बनो इंसान 
सुन सुरेंद्र तज स्वर्ग को, आये हिंदुस्तान 
कालजयी रचना पढ़ी, दांडी आया याद 
काश आज हों एक हम, हो पाएं आज़ाद  

बुधवार, 20 मई 2020

समीक्षा काल है संक्रांति का - भगवत दुबे

पुस्तक चर्चा-
संक्रांतिकाल की साक्षी कवितायें
आचार्य भगवत दुबे
*
[पुस्तक विवरण- काल है संक्रांति का, गीत-नवगीत संग्रह, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', प्रथम संस्करण २०१६, आकार २२ से.मी. x १३.५ से.मी., आवरण बहुरंगी, पेपरबैक जैकेट सहित, पृष्ठ १२८, मूल्य जन संस्करण २००/-, पुस्तकालय संस्करण ३००/-, समन्वय प्रकाशन, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१]
कविता को परखने की कोई सर्वमान्य कसौटी तो है नहीं जिस पर कविता को परखा जा सके। कविता के सही मूल्याङ्कन की सबसे बड़ी बाधा यह है कि लोग अपने पूर्वाग्रहों और तैयार पैमानों को लेकर किसी कृति में प्रवेश करते हैं और अपने पूर्वाग्रही झुकाव के अनुरूप अपना निर्णय दे देते हैं। अतः, ऐसे भ्रामक नतीजे हमें कृतिकार की भावना से सामंजस्य स्थापित नहीं करने देते। कविता को कविता की तरह ही पढ़ना अभी अधिकांश पाठकों को नहीं आता है। इसलिए श्री दिनकर सोनवलकर ने कहा था कि 'कविता निश्चय ही किसी कवि के सम्पूर्ण व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। किसी व्यक्ति का चेहरा किसी दूसरे व्यक्ति से नहीं मिलता, इसलिए प्रत्येक कवी की कविता से हमें कवी की आत्मा को तलाशने का यथासम्भव यत्न करना चाहिए, तभी हम कृति के साथ न्याय कर सकेंगे।' शायद इसीलिए हिंदी के उद्भट विद्वान डॉ. रामप्रसाद मिश्र जब अपनी पुस्तक किसी को समीक्षार्थ भेंट करते थे तो वे 'समीक्षार्थ' न लिखकर 'न्यायार्थ' लिखा करते थे।
रचनाकार का मस्तिष्क और ह्रदय, अपने आसपास फैले सृष्टि-विस्तार और उसके क्रिया-व्यापारों को अपने सोच एवं दृष्टिकोण से ग्रहण करता है। बाह्य वातावरण का मन पर सुखात्मक अथवा पीड़ात्मक प्रभाव पड़ता है। उससे कभी संवेद नात्मक शिराएँ पुलकित हो उठती हैं अथवा तड़प उठती हैं। स्थूल सृष्टि और मानवीय भाव-जगत तथा उसकी अनुभूति एक नये चेतन संसार की सृष्टि कर उसके साथ संलाप का सेतु निर्मित कर, कल्पना लोक में विचरण करते हुए कभी लयबद्ध निनाद करता है तो कभी शुष्क, नीरस खुरदुरेपन की प्रतीति से तिलमिला उठता है।
गीत-नवगीत संग्रह 'काल है संक्रांति का' के रचनाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका 'दिव्य नर्मदा' के यशस्वी संपादक रहे हैं जिसमें वे समय के साथ चलते हुए १९९४ से अंतरजाल पर अपने चिट्ठे (ब्लॉग) के रूप में निरन्तर प्रकाशित करते हुए अब तक ४००० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित कर चुके हैं। अन्य अंतर्जालीय मंचों (वेब साइटों) पर भी उनकी लगभग इतनी ही रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। वे देश के विविध प्रांतों में भव्य कार्यक्रम आयोजित कर 'अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण' के माध्यम से हिंदी के श्रेष्ठ रचनाकारों के उत्तम कृतित्व को वर्षों तक विविध अलंकरणों से अलंकृत करने, सत्साहित्य प्रकाशित करने तथा पर्यावरण सुधर, आपदा निवारण व् शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने का श्रेय प्राप्त अभियान संस्था के संस्थापक-अध्यक्ष हैं। इंजीनियर्स फॉर्म (भारत) के महामंत्री के अभियंता वर्ग को राष्ट्रीय-सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत कर उनकी पीड़ा को समाज के सम्मुख उद्घाटित कर सलिल जी ने सथक संवाद-सेतु बनाया है। वे विश्व हिंदी परिषद जबलपुर के संयोजक भी हैं। अभिव्यक्ति विश्वम दुबई द्वारा आपके प्रथम नवगीत संग्रह 'सड़क पर...' की पाण्डुलिपि को 'नवांकुर अलंकरण २०१६' (१२०००/- नगद) से अलङ्कृत किया गया है। अब तक आपकी चार कृतियाँ कलम के देव (भक्तिगीत), लोकतंत्र का मक़बरा तथा मीत मेरे (काव्य संग्रह) तथा भूकम्प ले साथ जीना सीखें (लोकोपयोगी) प्रकाशित हो चुकी हैं।
सलिल जी छन्द शास्त्र के ज्ञाता हैं। दोहा छन्द, अलंकार, लघुकथा, नवगीत तथा अन्य साहित्यिक विषयों के साथ अभियांत्रिकी-तकनीकी विषयों पर आपने अनेक शोधपूर्ण आलेख लिखे हैं। आपको अनेक सहयोगी संकलनों, स्मारिकाओं तथा पत्रिकाओं के संपादन हेतु साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा ने 'संपादक रत्न' अलंकरण से सम्मानित किया है। हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग ने संस्कृत स्त्रोतों के सारगर्भित हिंदी काव्यानुवाद पर 'वाग्विदाम्बर सम्मान' से सलिल जी को सम्मानित किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि सलिल जी साहित्य के सुचर्चित हस्ताक्षर हैं। 'काल है संक्रांति का' आपकी पाँचवी प्रकाशित कृति है जिसमें आपने दोहा, सोरठा, मुक्तक, चौकड़िया, हरिगीतिका, आल्हा अदि छन्दों का आश्रय लेकर गीति रचनाओं का सृजन किया है।
भगवन चित्रगुप्त, वाग्देवी माँ सरस्वती तथा पुरखों के स्तवन एवं अपनी बहनों (रक्त संबंधी व् मुँहबोली) के रपति गीतात्मक समर्पण से प्रारम्भ इस कृति में संक्रांतिकाल जनित अराजकताओं से सजग करते हुए चेतावनी व् सावधानियों के सन्देश अन्तर्निहित है।
'सूरज को ढाँके बादल
सीमा पर सैनिक घायल
नाग-सांप फिर साथ हुए
गुँजा रहे वंशी मादल
लूट-छिप माल दो
जगो, उठो।'
उठो सूरज, जागो सूर्य आता है, उगना नित, आओ भी सूरज, उग रहे या ढल रहे?, छुएँ सूरज, हे साल नये आदि शीर्षक नवगीतों में जागरण का सन्देश मुखर है। 'सूरज बबुआ' नामक बाल-नवगीत में प्रकृति उपादानों से तादात्म्य स्थापित करते हुए गीतकार सलिल जी ने पारिवारिक रिश्तों के अच्छे रूपक बाँधे हैं-
'सूरज बबुआ!
चल स्कूल।
धरती माँ की मीठी लोरी
सुनकर मस्ती खूब करी।
बहिम उषा को गिर दिया
तो पिता गगन से डाँट पड़ीं।
धूप बुआ ने लपक उठाया
पछुआ लायी
बस्ते फूल।'
गत वर्ष के अनुभवों के आधार पर 'में हिचक' नामक नवगीत में देश की सियासी गतिविधियों को देखते हुए कवी ने आशा-प्रत्याशा, शंका-कुशंका को भी रेखांकित किया है।
'नये साल
मत हिचक
बता दे क्या होगा?
सियासती गुटबाजी
क्या रंग लाएगी?
'देश एक' की नीति
कभी फल पाएगी?
धारा तीन सौ सत्तर
बनी रहेगी क्या?
गयी हटाई
तो क्या
घटनाक्रम होगा?'
पाठक-मन को रिझाते ये गीत-नवगीत देश में व्याप्त गंभीर समस्याओं, बेईमानी, दोगलापन, गरीबी, भुखमरी, शोषण, भ्रष्टाचार, उग्रवाद एवं आतंक जैसी विकराल विद्रूपताओं को बहुत शिद्दत के साथ उजागर करते हुए गम्भीरता की ओर अग्रसर होते हैं।
बुंदेली लोकशैली का पुट देते हुए कवि ने देश में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक, विषमताओं एवं अन्याय को व्यंग्यात्मक शैली में उजागर किया है।
मिलती काय ने ऊँचीबारी
कुर्सी हमखों गुईंया
पैला लेऊँ कमिसन भारी
बेंच खदानें सारी
पाँछू घपले-घोटालों सों
रकम बिदेस भिजा री
समीक्ष्य कृति में 'अच्छे दिन आने वाले' नारे एवं स्वच्छता अभियान को सटीक काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी गयी है। 'दरक न पायेन दीवारें नामक नवगीत में सत्ता एवं विपक्ष के साथ-साथ आम नागरिकों को भी अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति सचेष्ट करते हुए कवि ने मनुष्यता को बचाये रखने की आशावादी अपील की है।
कवी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने वर्तमान के युगबोधी यथार्थ को ही उजागर नहीं किया है अपितु अपनी सांस्कृतिक अस्मिता के प्रति सुदृढ़ आस्था का परिचय भी दिया है। अतः, यह विश्वास किया जा सकता है कि कविवर सलिल जी की यह कृति 'काल है संक्रांति का' सारस्वत सराहना प्राप्त करेगी।
आचार्य भगवत दुबे
महामंत्री कादंबरी
पिसनहारी मढ़िया के निकट
जबलपुर ४८२००३, चलभाष ९३००६१३९७५

नवगीत

नवगीत:
संजीव
*
जिंदगी के गणित में
कुछ इस तरह
उलझे हैं हम.
बंदगी के गणित
कर लें हल
रही बाकी न दम.
*
इंद्र है युग लीन सुख में
तपस्याओं से डरे.
अहल्याओं को तलाशे
लाख मारो न मरे.
जन दधीची अस्थियाँ दे
बनाता विजयी रहा-
हुई हर आशा दुराशा
कभी कुछ संयम वरे.
कामनाओं से ग्रसित
होकर भ्रमित
बिखरे हैं हम.
वासनाओं से जड़ित
होते दमित
अँखियाँ न नम.
जिंदगी के गणित में
कुछ इस तरह
उलझे हैं हम.
बंदगी के गणित
कर लें हल
चलो मिलकर सनम.
*
पडोसी के द्वार पर जा
रोज छिप कचरा धरें.
चाह आकर विधाता-
नित व्याधियाँ-मुश्किल हरें .
सुधारों का शंख जिसने
बजाया विनयी रहा-
सिया को वन भेजता जो
देह तज कैसे तरे?
भूल को स्वीकार
संशोधन किये
निखरे हैं हम.
शूल से कर प्यार
वरते कूल
लहरें हैं न कम.
जिंदगी के गणित में
कुछ इस तरह
उलझे हैं हम.
बंदगी के गणित
कर लें हल
बढ़ें संग रख कदम.
*

२०-५-२०१५ 

रूपमाला छंद


छंद सलिला:
रूपमाला छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति चौदह-दस, पदांत गुरु-लघु (जगण)
लक्षण छंद:
रूपमाला रत्न चौदह, दस दिशा सम ख्यात
कला गुरु-लघु रख चरण के, अंत उग प्रभात
नाग पिंगल को नमनकर, छंद रचिए आप्त
नव रसों का पान करिए, ख़ुशी हो मन-व्याप्त
उदाहरण:
१. देश ही सर्वोच्च है- दें / देश-हित में प्राण
जो- उन्हीं के योग से है / देश यह संप्राण
करें श्रद्धा-सुमन अर्पित / यादकर बलिदान
पीढ़ियों तक वीरता का / 'सलिल'होगा गान
२. वीर राणा अश्व पर थे, हाथ में तलवार
मुगल सैनिक घेर करते, अथक घातक वार
दिया राणा ने कई को, मौत-घाट उतार
पा न पाये हाय! फिर भी, दुश्मनों से पार
ऐंड़ चेटक को लगायी, अश्व में थी आग
प्राण-प्राण से उड़ हवा में, चला शर सम भाग
पैर में था घाव फिर भी, गिरा जाकर दूर
प्राण त्यागे, प्राण-रक्षा की- रुदन भरपूर
किया राणा ने, कहा: 'हे अश्व! तुम हो धन्य
अमर होगा नाम तुम हो तात! सत्य अनन्य।
*********
२०-५-२०१४
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

मंगलवार, 19 मई 2020

बृजांचल का लोक काव्य भजन जिकड़ी

अभिनव प्रयोग:
प्रस्तुत है पहली बार खड़ी हिंदी में बृजांचल का लोक काव्य भजन जिकड़ी
जय हिंद लगा जयकारा
(इस छंद का रचना विधान बताइए)
*
भारत माँ की ध्वजा, तिरंगी कर ले तानी।
ब्रिटिश राज झुक गया, नियति अपनी पहचानी।। ​​​​​​​​​​​​​​
​अधरों पर मुस्कान।
गाँधी बैठे दूर पोंछते, जनता के आँसू हर प्रात।
गायब वीर सुभाष हो गए, कोई न माने नहीं रहे।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
रास बिहारी; चरण भगवती; अमर रहें दुर्गा भाभी।
बिन आजाद न पूर्ण लग रही, थी जनता को आज़ादी।।
नहरू, राजिंदर, पटेल को, जनगण हुआ सहारा
जय हिंद लगा जयकारा।।
हुआ विभाजन मातृभूमि का।
मार-काट होती थी भारी, लूट-पाट को कौन गिने।
पंजाबी, सिंधी, बंगाली, मर-मिट सपने नए बुने।।
संविधान ने नव आशा दी, सूरज नया निहारा।
जय हिंद लगा जयकारा।।
बनी योजना पाँच साल की।
हुई हिंद की भाषा हिंदी, बाँध बन रहे थे भारी।
उद्योगों की फसल उग रही, पञ्चशील की तैयारी।।
पाकी-चीनी छुरा पीठ में, भोंकें; सोचें: मारा।
जय हिंद लगा जयकारा।।
पल-पल जगती रहती सेना।
बना बांग्ला देश, कारगिल, कहता शौर्य-कहानी।
है न शेष बासठ का भारत, उलझ न कर नादानी।।
शशि-मंगल जा पहुँचा इसरो, गर्वित हिंद हमारा।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
सर्व धर्म समभाव न भूले।
जग-कुटुंब हमने माना पर, हर आतंकी मारेंगे।
जयचंदों की खैर न होगी, गाड़-गाड़कर तारेंगे।।
आर्यावर्त बने फिर भारत, 'सलिल' मंत्र उच्चारा।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
***
६.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

दोहा सलिला

दोहा सलिला
देव लात के मानते, कब बातों से बात
जैसा देव उसी तरह, पूजा करिए तात
*
चरण कमल झुक लात से, मना रहे हैं खैर
आये आम चुनाव क्या?, पड़ें पैर के पैर
*
पाँव पूजने का नहीं, शेष रहा आनंद
'लिव इन' के दुष्काल में, भंग हो रहे छंद
*
पाद-प्रहार न भाई पर, कभी कीजिए भूल
घर भेदी लंका ढहे, चुभता बनकर शूल
*
'सलिल न मन में कीजिए, किंचित भी अभिमान
तीन पगों में नाप भू, हरि दें जीवन-दान
*
१९-५-२०१६

मुक्तिका

मुक्तिका
कल्पना की अल्पना से द्वार दिल का जब सजाओ
तब जरूरी देखना यह, द्वार अपना या पराया?
.
छाँह सर की, बाँह प्रिय की. छोड़ना नाहक कभी मत
क्या हुआ जो भाव उसका, कुछ कभी मन को न भाया
.
प्यार माता-पिता, भाई-भगिनी, बच्चों से किया जब
रागमय अनुराग में तब, दोष किंचित भी न पाया
.
कौन क्या कहता? न इससे, मन तुम्हारा हो प्रभावित
आप अपनी राह चुन, मत करो वह जो मन न भाया
.
जो गया वह बुरा तो क्यों याद कर तुम रो रहे हो?
आ रहा जो क्यों न उसके वास्ते दीपक जलाया?
.

१९-५-२०१६

मुक्तिका

मुक्तिका
जिनसे मिले न उनसे बिछुड़े अपने मन की बात है
लेकिन अपने हाथों में कब रह पाये हालात हैं?
.
फूल गिरे पत्थर पर चोटिल होता-करता कहे बिना
कौन जानता, कौन बताये कहाँ-कहाँ आघात है?
.
शिकवे गिले शिकायत जिससे उसको ही कुछ पता
रात विरह की भले अँधेरी उसके बाद प्रभात है
.
मिलने और बिछुड़ने का क्रम जीवन को जीवन देता
पले सखावत श्वास-आस में, यादों की बारात है
.
तन दूल्हे ने मन दुल्हन की रूप छटा जब-जब देखी
लूट न पाया, खुद ही लुटकर बोला 'दिल सौगात है'
.१९-५-२०१६

मुहावरेदार दोहे

मुहावरेदार दोहे
संजीव वर्मा 'सलिल
*
पाँव जमकर बढ़ 'सलिल', तभी रहेगी खैर
पाँव फिसलते ही हँसे, वे जो पाले बैर
*
बहुत बड़ा सौभाग्य है, होना भारी पाँव
बहुत बड़ा दुर्भाग्य है होना भारी पाँव
*
पाँव पूजना भूलकर, फिकरे कसते लोग
पाँव तोड़ने से मिटे, मन की कालिख रोग
*
पाँव गए जब शहर में, सर पर रही न छाँव
सूनी अमराई हुई, अश्रु बहाता गाँव
*
जो पैरों पर खड़ा है, मन रहा है खैर
धरा न पैरों तले तो, अपने करते बैर
*
सम्हल न पैरों-तले से, खिसके 'सलिल' जमीन
तीसमार खाँ हबी हुए, जमीं गँवाकर दीन
*
टाँग अड़ाते ये रहे, दिया सियासत नाम
टाँग मारते वे रहे, दोनों है बदनाम
*
टाँग फँसा हर काम में, पछताते हैं लोग
एक पूर्ण करते अगर, व्यर्थ न होता सोग
*
बिन कारण लातें न सह, सर चढ़ती है धूल
लात मार पाषाण पर, आप कर रहे भूल
*
चरण कमल कब रखे सके, हैं धरती पर पैर?
पैर पड़े जिसके वही, लतियाते कह गैर
*
धूल बिमाई पैर का, नाता पक्का जान
चरण कमल की कब हुई, इनसे कह पहचान?
***

औरतें और इस्लाम

औरतें और इस्लाम
सोचिए, क्या औरतें गैर इस्लामिक और मर्दों की गुलाम मात्र हैं?
इस्लामाबाद। द कौंसिल ऑफ़ इस्लामिक आइडिओलॉजी The Council of Islamic Ideology (CII) की १९२ वीं बैठक के निर्णय अनुसार ' औरतों का अस्तित्व शरीया तथा अल्लाह की इच्छा के विपरीत है. कौंसिल के चेयरमैन मौलाना मुहम्मद खान शीरानी ने कहा कि औरतों का होना प्रकृति के नियमों का उल्लंघन है तथा औरतों से इस्लाम और शरीया की रक्षा लिए औरतों को निजी अस्तित्व न रखने के लिए बाध्य किया जाए. मुस्लिम औरतों की शादी के लिए न्यूनतम आयु निर्धारण को इस्लामविरोधी घोषित के २ दिन बाद यह घोषणा की गयी. शीरानी ने औरतों को इस्लाम विरोधी घाषित करते हुए कहा कि औरतें दो प्रकार की हराम (निषिद्ध) तथा मकरूह (नापसंद) होती हैं. कोई भी औरत जो अपनी इच्छा अनुसार कार्य करती है हराम तथा इस्लाम के विरुद्ध षड्यंत्रकर्त्री है. केवल पूरी तरह आज्ञापालक औरत खुद को मकरूह के स्तर तक उठा सकती है, यही इस्लाम की उदारता तथा मुस्लिम पुरुष की कोशिश है. कौंसिल सदस्यों ने औरतों से जुड़े कर ऐतिहासिक सन्दर्भों विचार के बाद पाया की हर औरत फ़ित्ना का इस्लाम की दुश्मन है. उन्होंने यह निर्णय भी लिया कि मोमिन तथा मुजाहिदीन औरतों को दास होने तक रोककर की इस्लाम शांति, समृद्धि तथा लैंगिक समानता का धर्म बना रहे. एक प्रतिनिधि ने कहा की औरतों सम्बन्धी अंतर्राष्ट्रीय मानक इस्लाम या पाकिस्तान के संविधान जिसमें अल्लाह को सर्वोच्चता दे गयी है के विरोधी हों तो उन्हें नहीं माना जाना चाहिए। कौंसिल ने सरकार को सलाह दी की औरतों से श्वास लेने का अधिकार छीनकर उसके पति या पालक को दिया जाना चाहिए। औरत को किसी भी हालत में श्वास लेने या न लेने का निर्णय करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।
Islamabad - Sharia Correspondent: The Council of Islamic Ideology (CII) concluded their 192nd meeting on Thursday with the ruling that women are un-Islamic and that their mere existence contradicted Sharia and the will of Allah. As the meeting concluded CII Chairman Maulana Muhammad Khan Shirani noted that women by existing defied the laws of nature, and to protect Islam and the Sharia women should be forced to stop existing as soon as possible. The announcement comes a couple of days after CII’s 191st meeting where they dubbed laws related to minimum marriage age to be un-Islamic.
After declaring women to be un-Islamic, Shirani explained that there were actually two kinds of women – haraam and makrooh. “We can divide all women in the world into two distinct categories: those who are haraam and those who are makrooh. Now the difference between haraam and makrooh is that the former is categorically forbidden while the latter is really really disliked,” Shirani said.
He further went on to explain how the women around the world can ensure that they get promoted to being makrooh, from just being downright haraam. “Any woman that exercises her will is haraam, absolutely haraam, and is conspiring against Islam and the Ummah, whereas those women who are totally subservient can reach the status of being makrooh. Such is the generosity of our ideology and such is the endeavour of Muslim men like us who are the true torchbearers of gender equality,” the CII chairman added.
Officials told Khabaristan Today that the council members deliberated over various historic references related to women and concluded that each woman is a source of fitna and a perpetual enemy of Islam. They also decided that by restricting them to their subordinate, bordering on slave status, the momineen and the mujahideen can ensure that Islam continues to be the religion of peace, prosperity and gender equality.
Responding to a question one of the officials said that international standards of gender equality should not be used if they contradict Islam or the constitution of Pakistan that had incorporated Islam and had given sovereignty to Allah. “We don’t believe in western ideals, and nothing that contradicts Islam should ever be paid heed. In any case by giving women the higher status of being makrooh, it’s us Muslims who have paved the way for true, Sharia compliant feminism,” the official said.
The CII meeting also advised the government that to protect Islam women’s right to breathe should also be taken away from them. “Whether a woman is allowed to breathe or not be left up to her husband or male guardian, and no woman under any circumstance whatsoever should be allowed to decide whether she can breathe or not,” Shirani said.

अभियान पर्व १६ : कथा पर्व (शिशु कथा, बाल कथा, लोक कथा, पर्व कथा, नीति कथा, दृष्टांत कथा आदि)

समाचार 
ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
पर्व १६ : कथा पर्व (शिशु कथा, बाल कथा, लोक कथा, पर्व कथा, नीति कथा, दृष्टांत कथा आदि)
मुखिया : डॉ. आलोक रंजन, जपला, पलामू, झारखण्ड
पाहुने : पुनीता भारद्वाज जी, प्राचार्य भीलवाड़ा
         : अरुण श्रीवास्तव 'अर्णव', इटारसी
विषय प्रवर्तन : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
उद्घोषणा : डॉ. मुकुल तिवारी
*
जबलपुर, १९ मई २०२०। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के तत्वावधान में दैनिक सारस्वत अनुष्ठानों की श्रृंखला में १६ वां कथा पर्व  का आयोजन पलामू झारखण्ड के प्रो. आलोक रंजन की अध्यक्षता, पुनीता भारदवाज भीलवाड़ा के मुख्यातिथ्य  तथा अरुण श्रीवास्तव 'अर्णव' के विशेषातिथ्य  में संपन्न हुआ।  श्रीगणेश इंजी. उदयभानु तिवारी 'मधुकर' ने स्वरचित सरस्वती वंदना का सस्वर गायन कर किया। संस्थान के संयोजक प्रसिद्द छंद शास्त्री-समीक्षक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने विषय प्रवर्तन करते हुए कथा का जन्म माँ तथा अजन्मे संतान के मध्य वार्ता से बताते हुए महाभारत के अभिमन्यु प्रसंग का संदर्भ दिया तथा कहा  भारतीय समाज में चिरकाल से कही जाती रही शिशु कथाएँ, बाल कथाएँ, पर्व कथाएँ, बोध कथाएँ, दृष्टांत कथाएँ, नीति कथाएँ, लोक कथाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। । भारत सरकार की हिंदी सलाहकार समिति की सदस्य वरिष्ठ उपन्यासकार डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे ने 'चिम्पी जी की दुल्हनिया' बाल कथा का पाठ कर स्वजाति प्रेम की सीख दी। 'अनमोल उपहार' बाल कथा का वाचन कर कविता राय दिल्ली ने आर्थिक असमानता की अदेखी कर समानतापरक व्यवहार की सीख दी। सिरोही के ख्यात साहित्यकार छगनलाल गर्ग 'विज्ञ' ने राजस्थानी कथा के माध्यम से दरबारियों की मुँहदेखी और कपट को उद्घाटित किया। संतोष शुक्ल ग्वालियर ने बालकथा के माध्यम से परोपकार का महत्व प्रतिपादित किया। से. नई. जिला जज मीना भट्ट ने रूप चतुर्दशी पर कही जानेवाली पर्व कथा सुनाकर उनका लक्ष्य तन-मन तथा पर्यावरण की स्वच्छता बताया। पुनीता भारदवाज ने राजस्थान में लोक कथाओं के महत्व को उद्घाटित करता हुआ आलेख प्रस्तुत किया। डॉ. मुकुल तिवारी ने बाल कथाओं को माँ द्वारा शिशु में  संस्कार रोपण का माध्यम बताया। पानीपत से पधारी मंजरी शुक्ल ने बाल कथा के माध्यम से पौधरोपण और हरियाली बढ़ाने की प्रेरणा दी। 

रायपुर छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर रही रजनी शर्मा ने निश्छल बाल प्रेम और धार्मिक वैमनस्य की कार्मिक कथा "सारी कौड़ियां उसके हक में औंधी हूं " सुना कर वाहवाही पाई। दमोह से पधारी मनोरमा रतले ने कोरोना के संदर्भ में बालोचित सरस् प्रसंग युक्त कहा कही। इंजी. अरुण भटनागर ने नीति कथाओं का महत्व प्रतिपादित करते हुए उन्हें पाठ्यक्रम में सम्मिलित किये जाने की सलाह दी। झारखण्ड के प्रो. आलोक रंजन ने मेवाड़ के कीरत बारी और पन्ना धाय की ऐतिहासिक कीर्ति कथा सुनाकर बलिदान का महत्व प्रतिपादित की। नल - दमयंती की नगरी दमोह से सम्मिलित हुई बबीता चौबे 'शक्ति' ने कलिकाल के प्रभाव को इंगित करती कथा सुनाई। मनोरमा जैन 'पाखी' भिंड ने माया-मोह की निस्सारता को उद्घाटित किया। छाया सक्सेना 'प्रभु' ने बाल कथाओं की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने बाल शिक्षा में बाल कथाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पाठ्यक्रम में अधिकाधिक सम्मिलित किये जाने पर बल दिया। इंजी. एच. एल. बड़गैया ने आपके आलेख में माँ हुए शिशु के बीच कथा को ज्ञान प्रदाय का माध्यम बताया। मिथिलेश बड़गैया ने शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य आत्मीय संबंध स्थापित करने में पाठ्य सामग्री की और उन्मुख करने में कहानी को सहायक बताया। अध्यक्षीय संबोधन में पलामू प्रो  आलोक रंजन ने विश्ववाणी हिंदी साहित्य संस्थान अभियान द्वारा १६ दिन लगातार अंतरजाल समूह पर साहित्यिक अनुष्ठान किया जाना अभूतपूर्व उपलब्धि और गिनीज बुक में दर्ज किये जाने योग्य बताया। आभार प्रदर्शन श्रीमती विनीता श्रीवास्तव ने किया। 
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सोमवार, 18 मई 2020

अभियान : काव्य विमर्श १८-५-२०२०

ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
पर्व १५ : काव्य विमर्श : कविता क्या?... क्यों?... किस तरह?... 
दिनाँक १८-५-२०२०, समय सायं  ४ बजे से 
मुखिया : आचार्य भगवत दुबे, ख्यात साहित्यकार, जबलपुर  
पाहुना : श्री राजेंद्र वर्मा, छन्दाचार्य, संपादक, लखनऊ 
विषय प्रवर्तक : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', जबलपुर 
उद्घोषक : प्रो. अलोक रंजन, पलामू झारखण्ड
शारदा वंदना : वन्दनाकार डॉ. अनामिका तिवारी, गायिका : मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' 
वाग्देवी शारदा तथा विघ्नेश्वर गजानन के श्री चरणों में प्रणति निवेदन के साथ डॉ. अनामिका तिवारी लिखित सरस्वती वंदना का सस्वर गायन मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने किया। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने विषय प्रवर्तन करते हुए कविता को अनुभूत की सरस अभिव्यक्ति निरूपित करते हुए लोक ग्राह्यता को कविता की कसौटी बताया। भीलवाड़ा की कवयित्री पुनीता भरद्वाज ने कविता में सरसता और दोषमुक्तता होना आवश्यक बताया। इंजी. अरुण भटनागर ने  कविता को लोकोत्तर उदात्त भावनाओं की वाहक बताया। डॉ. अनामिका तिवारी ने कविता को समय का दर्पण निरूपित करते हुए उसे जान संवेदनाओं की वाहक बताया। भारतीय वायु सेना में योद्धा रह चुके ग्रुप कैप्टेन श्यामल सिन्हा ने कविता को जीवन व्यापारों हुए मनोवेगों की सकारात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बताया। मेदिनी नगर पलामू झारखंड से सहभागिता कर रहे वरिष्ठ कवि श्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ने भारतीय तथा पाश्चात्य समीक्षकों के मतों की तुलना करते हुए कविता को जीवन का अपरिहार्य अंग बताया। 
डॉ. मुकुल तिवारी ने कविता को जीवन में कविता की उपस्थिति को अपरिहार्य बताया।  श्रीमती मनोरमा रतले प्राचार्य दमोह ने कविता को ज्ञान की ग्राह्यता का सरस-सरल माध्यम माना। श्रीमती विनीता श्रीवास्तव ने कविता को लोक मंगलकारी स्वार्थपरता से परे सामाजिकता न मानवता का कध्याम निरूपित किया। दमोह से पधारी कवयित्री बबीता चौबे 'शक्ति' दमोह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कविता में सन्देशपरकता और प्रवहमानता  को आवश्यक  बताते हुए कविता को आत्मा से निकली आवाज़ बताया।सुषमा शैली दिल्ली ने कविता को समाज का आइना निरूपित किया तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी चुपाई मारो दुलहिन कविता का उल्लेख किया।  टीकमगढ़ के साहित्यकार राजीव नामदेव राणा लिघौरी ने कविता के भाव सौंदर्य,  विचार सौंदर्य,  नाद सौंदर्य तथा योजना सौंदर्य पर प्रकाश डाला। प्रो. आलोक रंजन ने  ह्रदय, भाव योग और कविता को परस्पर पूरक बताया। भाव योग से ज्ञान योग तक की यात्रा में कविता की भूमिका को मधुमति भूमिका बताया। 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने रस -छंद-अलंकार तथा प्रत्यक्ष-परोक्ष अनुभूति की चर्चा करते हुए कहा कि कविता में भाषा की तीनों शक्तियों अमिधा, लक्षणा तथा व्यंजना की प्रासंगिकता है। विमर्श के अध्यक्ष लखनऊ से पधारे प्रसिद्ध छंद शास्त्री राजेंद्र वर्मा ने विधागत मानकों, छंद और भाव की प्रतिष्ठा को आवश्यक बताते हुए अच्छी कविता का निकष मन को अच्छी लगना बताया। उनहोंने कवि को अपना आलोचक होना जरूरी बताया। अंत में विमर्श के अध्यक्ष श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार आचार्य भगवत दुबे ने कवि को अपने युग का प्रवक्ता बताते हुए, अतीत के गौरव का प्रवक्ता होने के साथ युग का सचेतक निरूपित किया। डॉ. मुकुल तिवारी प्राचार्य महिला महाविद्यालय ने इस विचारपरक विमर्श के अतिथियों, सहभागियों संयोजकों आदि के प्रति आभार व्यक्त किया।
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कविता क्या है?
नेह नर्मदा सी है कविता, हहर-हहरकर बहती रहती
गेह वर्मदा सी है कविता घहर-घहर सच तहती रहती
कविता साक्षी देश-काल की, कविता मानव की जय गाथा
लोकमंगला जन हितैषिणी कविता दहती - सहती रहती
*
कविता क्यों हो?
भाप न असंतोष की मन में
हो एकत्र और फिर फूटे
अमन-चैन मानव के मन का
मौन - अबोला पैन मत लूटे
कविता वाल्व सेफ्टी का है
विप्लव को रोका करती है
अनाचार टोंका करती है
वक्त पड़े भौंका करती है
इसीलिये कविता करना ही
योद्धा बन बिन लड़, लड़ना है
बिन कुम्हार भावी गढ़ना है
कदम दर कदम हँस बढ़ना है
*
कविता किस तरह?
कविता करना बहुत सरल है
भाव नर्मदा डूब-नहाओ
रस-गंगा से प्रीत बढ़ाओ
शब्द सुमन चुन शारद माँ के
चरणों में बिन देर चढ़ाओ
अलंकार की अगरु-धूप ले
मिथक अग्नि का दीप जलाओ
छंद आरती-श्लोक-मंत्र पढ़
भाषा माँ की जय-जय गाओ
कविता करो नहीं, होने दो
तुकबंदी के कुछ दोने लो
भरो कथ्य-सच-लय पंजीरी
खाकर प्राण अमर होने दो।
*
क्षणिका
और अंत में
कविता मुझे पसंद, न कहना
वरना सजा मिलेगी मिस्टर
नहीं समझते क्यों
समझो है
कविता जज साहब की सिस्टर
*