अग्रलेख-
ज्योतिष शास्त्र और फूल
- डॉ. गीता शर्मा
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(फुलबगिया के पौधे और फूल पर्यावरण शुद्ध रखने, प्राण वायु और दवा बनकर स्वास्थ्य सुधारने, पूजा में प्रभु को प्रसन्न करने के साथ-साथ ज्योतिष अनुसार प्रयोग किए जाने पर विपत्ति निवारण के काम भी आते हैं। सिद्ध और प्रसिद्ध ज्योतिष शास्त्री डॉ. गीता शर्मा इस अग्रलेख में महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर रही हैं।
महाभारत कालीन विराट नगर (जहाँ पांडवों ने अ गया में २४ अक्टूबर १९५२ को श्यामा देवी शर्मा तथा काशी प्रसाद शर्मा पर कृपा कर माँ भवानी ने अपना अंश कुल दीपिका कन्या रत्न के रूप में प्रदान किया जिसका नामकरण गीता किया गया। बचपन से मेधावी गीता ने दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते हुए विद्या अर्जित की। दूध, हट्टकुल, सिंदूर और महानदी नदियों से सिंचित, शिवधाम (गड़िया पहाड़ी), मलाजकुंडम जलप्रपात तथा दुर्गा-काली के संयुक्त रूप से युक्त शिवानी मंदिर के लिए प्रसिद्ध कांकेर में शास्त्रीय संगीत विशारद प्रयागराज तथा पी-एच.डी. (ज्योतिष) कोलकाता आदि उपाधियाँ प्राप्त कर गीता ने गीता के कर्म योग का अनुसरण करते हुए जनता जनार्दन की सेवा को जीवन का लक्ष्य बनाया।
माँ गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केंद्र की स्थापना कर अंध विश्वास उन्मूलन करते हुए ज्योतिष के विज्ञान सम्मत रूप को जन मानस में प्रतिष्ठित करने हेतु गीता ने विवाह बाधा विलंब एवं निवारण, संतान बाधा विलंब, धन्य धरा पुकारती, मेलापन एक वैज्ञानिक प्रक्रिया, जातिका ज्योतिष पारिजात, राम और राम काज (राम जन्म काल गणना) आदि ग्रंथों का प्रणयन कर आपने प्रसिद्धि प्राप्त की। नई प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें विकसित होने में सहायता करने का लोकोपयोगी कार्य आप निरंतर कर रही हैं।
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर द्वारा प्रकाशित विश्व कीर्तिमान धारी कृति 'चंद्र विजय अभियान' में सहभागी रही कवयित्री गीता फुलबगिया में 'ज्योतिष शास्त्र और फूल' शीर्षक अग्रलेख के माध्यम से सर्व उपयोगी जानकारी प्रदान कर रही हैं।
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ज्योतिष शास्त्र और फूल
ज्योतिष शास्त्रानुसार-
येषां न प्रतिषेधोऽस्ति गन्धवर्णान्वितानि च।
तानि पुष्पाणि देयानि भानवे लोकभानवे।।
अर्थात्- जो पुष्प वर्जित नहीं हैं और रंग-रूप तथा सुगंध से युक्त है वे पुष्प देवपूजा में चढ़ाने चाहिए। नवग्रह पूजन अनुष्ठान हेतु पुष्पों का चयन करने से पूर्व ज्योतिष की समझ होना आवश्यक है। आधुनिक विज्ञान कितनी भी उन्नति कर ले किन्तु वह ऐसी प्रणाली / सिद्धान्त खोज पाने में असमर्थ है जिसके माध्यम से यह जाना जा सके कि हमारे द्वारा किए गए कर्म का फल हमें कितना, कैसा और कब मिलेगा? सिर्फ ज्योतिष विज्ञान ही है जिसके माध्यम से यह जाना जा सकता है कि मानव के शुभाशुभ कर्म का फल कब उदय होगा? सभी पुष्प हर जगह नहीं मिलते। अत: जो पुष्प उपलब्ध हो उसमें अभीष्ट फूल है ऐसी भावना से उसका प्रयोग करना चाहिए।
अप्रत्क्षाणि शास्त्राणि विवादस्तेषु केवलम्।
प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रम् चन्द्रार्कौ यत्र साक्षिणौ।।
"अन्य शास्त्रों में केवल विवाद होता है, प्रत्यक्ष दिखलाई नहीं देता है किन्तु ज्योतिष विज्ञान प्रत्यक्ष है, क्योंकि सूर्य तथा चंद्र साक्षी हैं।"
श्रेष्ठ शुभफल प्राप्ति हेतु नवग्रह की शान्ति अनुष्ठान में पुष्पों का महत्व-
नरसिंह पुराणानुसार- दस स्वर्णसुमनों का दान करने से जो फल प्राप्त होता वह एक गूमा पुष्प अर्पण करने से, हजार गुमा फूल से बढ़कर एक खैर पुष्प, हजार खैर पुष्पों से बढ़कर एक शमी पुष्प, हजार शमी पुष्प से बढ़कर एक मौलसिरी पुष्प, हजार मौलसिरी से बढ़कर नन्द्यावर्त, हजार नन्द्यावर्तों से बढ़कर कनेर पुष्प, हजारों कनेर से बढ़कर एक सफेद कनेर, हजारों सफेद कनेर से बढ़कर एक कुश पुष्प, हजारों कुश पुष्प से बढ़कर एक वनवेला पुष्प, हजारों वनवेला से बढ़कर एक चम्पा पुष्प, हजारों चम्पा पुष्पों से बढ़कर एक अशोक पुष्प, हजारों अशोक से बढ़कर एक माधवी पुष्प,हजारों माधवी से बढ़कर एक मालती पुष्प, हजार मालती पुष्प से बढ़कर लाल त्रिसंधी, हजारों त्रिसंधी से बढ़कर एक कुन्द पुष्प, हजारों कुन्द से बढ़कर एक कमल पुष्प, हजारों कमल से बढ़कर एक बेला, हजारों बेला से बढ़कर एक चमेली का पुष्प होता है।
नवग्रहों संबंधी पुष्प- पूर्णिमा, अमावस्या, नवरात्रि, दीपावली, अक्षय तृतीया आदि अनुष्ठानों में कार्य सिद्धि हेतु नवग्रहों की पूजा व शान्ति आवश्यक है। इन विशेष दिनों में देवी-देवता जाग्रत रहते हैं। ग्रहों की आराधना, उपासना, साधना में संबंधित ग्रह के पुष्प अर्पित करने से साधक के कार्यसिध्दि में बाधा नहीं आती, ग्रह अनुकूल हो शुभ हो जाते हैं।
सूर्य- सूर्य प्रत्यक्ष तेजस्वी ग्रह, नवग्रहों का सम्राट, अदिति पुत्र आदित्य ही दिन का कारण है। संसार के नेत्र सूर्य हैं। समस्त वेदों ने सूर्य का गुणगान देवरूप में किया है। सूर्य से दिन-रात, घटि-पल, मास, पक्ष, अयन तथा संवत आदि की जानकारी होती है। सूर्य उग्र अग्नि तत्वकारक, आत्मकारक, शासकीय सर्विस का कारक ग्रह हैं। डिग्री आधार पर निर्बल या नीच राशिगत हो तो ह्रदय रोग,हार्टफेल, नेत्ररोग, अन्धत्व, अस्थि पीड़ा, शासन द्वारा नौकरी से निष्कासन, मान-प्रतिष्ठा पर आघात होता है। सूर्य को अनुकूल व प्रसन्न करने हेतु आराधना आवश्यक है।
जवाकुसुमसंकाशं काश्यपेय महधुतितम्।
तमारिंसरवपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।।
सूर्यग्रह पूजा अनुष्ठान में जासौन, कमल, बेला, मालती, काश, माधवी, पाटला, कनेर, जपा, चम्पा, रोलक, कुन्द, अशोक, लोध, अरूषा, मौलसिरी अगस्त, पलाश, लाल डहलिया, सुनहरे गेंदे आदि के पुष्प अर्पित करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। वैदिक मंत्रों द्वारा सूर्य को नित्य जलअर्घ्य दें। सूर्यदेव को निषिद्ध पुष्प गुंजा, धतूरा, कांची, अपराजिता, भटकटैया, तगर,अमड़ा आदि अर्पित न करें। (सूर्याष्टक में बंधूक पुष्प का उल्लेख है- 'बंधूक पुष्प संकाशं, हार कुंडल भूषितं। एक चक्र धरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं।।' - सं.)
चंद्र- चंद्र पृथ्वी के निकतम औषधि का, मन-मस्तिषक का अधिष्ठाता ग्रह है। नीच राशिगत चंद्र, क्रूर ग्रहों से आक्रान्त चंद्र, मानव को पागल तक कर देता है। चंद्र को मंत्र-जप, व्रतानुष्ठान से अनुकूल किया जा सकता है। चंद्र शान्ति हेतु अनुष्ठान पूजा में श्वेत पुष्प, चाॅंदी, चाॅंवल, दूध, दही, घी, पनीर, मावा, मिश्री, शंख, चीनी, कपूर, श्वेत-वस्त्र, मोती, दूधमोगरा, पारिजात, चम्पा, चमेली, सफेद गुलाब आदि का प्रयोग करें।
दधिशंखतुषाराभं क्षिरोदार्णवसन्तिभं।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम्।।
मंगल- मंगल अंगारक (जलता हुआ कोयला) भी कहा जाता है। जनमानस में मंगलदोष का भय इतना व्याप्त है कि कन्या के माता-पिता मांगलिक कन्या हेतु मांगलिक वर ही खोजते-खोजते ही विवाह में बिलम्ब कर देते हैं। मंगल अग्नि-तत्व कारक, पृथ्वीपुत्र, ऊर्जा-प्रवाह, विद्युत, शरीर में रक्त का कारक ग्रह है। मंगल प्रभावित व्यक्ति वीर पराक्रमी सेनानी व अन्यग्रह के शुभ योग में डाॅक्टर भी हो सकता है। मंगल का कुप्रभाव-रक्त विकारी बना ब्लड कैंसर, ब्लड-शुगर से ग्रसित करता है। अनुष्ठान में पुष्प- लाल गुलाब, कमल, लाल डहेलिया, गुलाबी जासौन, गुलाबी,लाल कनेर पुष्प,पलाश के पुष्प,खैर के पुष्प औषधि का कार्य करते हैं।
धरणीगर्भसंभूतं विद्युत कान्तिसमप्रभं।
कुमारं शक्ति हतस्ततं मंगलं प्रणमाम्यहम्।।
बुध- सौर मण्डल में सबसे लघु चमकदार ग्रह बुध है। सूर्य के अत्यन्त निकट बुध सूर्यास्त के बाद व सूर्योदय से पहले आकाश में दिखाई देते हैं। बुध वाणी, व्यवसाय, बुद्धि, शरीर में नसों का कारक ग्रह है। यदि शत्रु ग्रहों के साथ हैं, नीच राशिगत निर्बल हैं तो है शरीर में आन्तरिक कष्ट, व्यापार नष्ट, प्रतियोगी परीक्षा में असफलता आदि अशुभ फल शीध्र देते हैं। उपाय करने से बुध अनुकूल भी शीध्र होते हैं। बुध ग्रह के लिये हरे व नीले पुष्प अर्पण करने चाहिए- तुलसी की मंजरी,अपमार्ग, लटजीरा,चिड़चिड़ा,पीपल वनतुलसी के पुष्पों (मंजरी) की माला आदि पूजा में कुछ ध्रुम्र व श्याम वर्ण के नीले पुष्प दूर्वा भी चढ़ती है।
प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमंबुधं।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्हम्।।
गुरु- गुरु सबसे वृहद व भारी ग्रह है। बारह भावों में पाँच भावों के कारक ग्रह हैं। हमारे जीवन में धन, सन्तान, भाग्य, कर्म व आय के कारक गुरु ही हैं। यही इनका भारकत्व है। कन्या के विवाह के विवाह के कारक भी हैं गुरु महत्वाकांक्षी, मान-प्रतिष्ठा, समाज सुधारक, मठाधीश, पंडित, प्रवक्ता, उपदेशक, न्यायाधीश, दार्शनिक, उच्चपद प्रतिष्ठित, राज्य सम्मान, संचित धन, आय के संसाधनों का ज्ञान कराते हैं। गुरु रुष्ट हों तो मानव का कल्याण नहीं। गुरु जीवन जीने की कला सिखाते हैं। अत: मार्गदर्शक हैं। गुरु को शुभ व बलवान रहना चाहिए। नीच राशिगत गुरु, निर्बल गुरु, अस्त गुरु जातक के भाग्य को उदित नहीं होने देते।गुरु को शुभ व अनुकूल करने हेतु शास्त्र सम्मत अनुष्ठान हैं। गुरु व्रत उपासना पूजन में गुरु से सम्बन्धित सामग्रियों के साथ-साथ पीत पुष्प भी अर्पण करने चाहिए। भारत के भिन्न-भिन्न प्रान्त में कई प्रकार के पीत पुष्प मिलते हैं। पूजन,हवन अनुष्ठान में स्वर्ण भष्म के साथ-साथ पीला कनेर, स्वर्ण वैजन्ती, पीला गुलाब व केला, धार्मिक पुस्तकें भी अर्पण करें।
ॐ देवानां च ऋषिणां च गुरु कांचन सन्निभं।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं गुरु प्रणमाम्यहम्।।
शुक्र- नवग्रहों में शुक्र सर्वाधिक चमकीला, दूध की तरह सफेद, दैदीप्यमान ग्रह है। सूर्योदय से पहले पूर्व में व सूर्यास्त के पश्चात पश्चिम दिशा में दिखाई पड़ते हैं। शुक्र पूर्णतया सांसारिक ग्रह हैं इनसे प्रभावित जातक कलात्मक अभिरुचि सम्पन्न, चित्रकार, संगीतकार, अभिनेता, आभूषण विक्रेता, गायक, पर्यटन, होटल-रेस्ट्रोरेन्ट, बार, माॅडलिंग, इत्र, पेय पदार्थ, फोटोग्राफी फिल्म आदि व्यवसाय से जुड़कर सफलता प्राप्त करते हैं। भौतिक संसाधनों सुख- सुविधा ऐश्वर्य,आलस्य का कारक शुक्र विवाह का कारक भी है। शुक्र की स्थिति ही सम्पन्नता व विपन्नता को दर्शाती है। अर्थ बिना सब व्यर्थ। शुक्र शान्ति अनुष्ठान में गूलर, ब्रह्मकमल, श्वेत डहलिया, पारिजात, दूधिया पुष्प, चम्पा, चमेली, केवड़ा आदि सुगंधित पुष्प, इत्र-चंदन सुगंधित द्रव्य अर्पण करिए।
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्हयम्।।
शनि- सौर मंडल का सर्वाधिक सुन्दर ग्रह शं अपने तीन वलय के कारण विशिष्ट है। शनि की गति मंद है। शनि के प्रभाव से संसार का कोई भी प्राणी बच नहीं सकता। कभी महादशा, कभी अन्तर्दशा, कभी साढ़े साती, कभी अढ़ैया में शनि मानव को उसके किये गये कर्मों का प्रतिफल देने अवश्य आते हैं। विष व अमृत किरणों के प्रभाव से जातक शुभाशुभ फल पाता है। शनि राजा से रंक और रंक से राजा बना देते हैं। शनि उच्च का शुभ हो तो ठेकेदारी, फैक्टरी, मशीनरी के कार्य, कोयला, लोहे का व्यापार, राजनीति में सफलता देता है। शनि अशुभ हो तो देकर सब छीन लेता है। ऋषि-मुनियों को कोटि-कोटि प्रणाम जिन्होंने शनि के कोप का वर्णन किया, जिसके साक्ष्य वैदिक काल व महाभारत काल में भी मिले। शनि के कोप से बचने हेतु निश्चित जप संख्या के साथ शनि शान्ति करानी चाहिए।शनि दयालु भी हैं, अंतत: कृपा करते ही हैं। शनि शान्ति अनुष्ठान में श्याम-वर्णी, नील-वर्णी पुष्प, शमी ,केवड़ा ,नीला जासौन आदि पुष्प अर्पित कर सकते हैं ।
नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
राहु- राहु जन्मजात असुर व आसुरी प्रवृत्तियों का संवाहक छाया ग्रह है। राहु का अर्थ ही है राह रोकना, बाधा देना। राहु राजनीति प्रेरक ग्रह है। राहु जातकों को भ्रमित कर चलते कार्य को रोक देता है, गतिशील को गतिहीन कर देता है। राहु परास्त होता है बुद्ध से, बुद्धि व ज्ञान की देवी सरस्वती माॅं की आराधना नवरात्र पर्व में करने से व्यक्ति भ्रमित नहीं होता। राहु के कुप्रभाव से बच जाता है। नवग्रहों में देवरूप में प्रतिष्ठित राहु अनायास शुभाशुभ फल देता है। इसे शनिवत् माना गया है। शनि की उपासना नवग्रहों के साथ की जाती है। कथा है कि देवताओं को अमृतपान करा रही देवी मोहनी ने देवताओं की पंक्ति में बैठे देवरूप धारी राहु को पहचान लिया था। सूर्य-चंद्र ने संकेत किया, वह राहु ने देखा। इसलिए राहु सूर्य-चंद्र को समय असमय ग्रस लिया करता है। अमृतपान कर लेने से राहु अमर हो गया। मोहिनी रूपधारी विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से राहु का सर धड़ से अलग कर दिया था। विज्ञान सम्मत तथ्य तो अलग हैं। राहु सर है,धड़ केतु है। राहु पूजन में अश्वगंधा, केवड़ा, शमी, दूर्वा, चंदन, नागकेसर आदि नीले-काले पुष्प तथा तिल का तेल, कम्बल, तिल, तलवार, नीला-थोथा आदि अर्पण करें।
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिंकागर्भ संभूतं तं राहु प्रणमाम्यहम्।।
केतु- ज्योतिष में राहु को शनिवत और केतु को कुंजवत कहा गया है। केतु धड़ है। दैनिक मजदूरी करने वालों को केतु प्रेरित करता है। शुभ केतु मोक्ष दिलाता है। धर्म अर्थ काम मोक्ष में मानव अपने चौथेपन में मोक्ष की कामना करने ही लगता है। केतु छाया ग्रह है, ग्रह पिण्ड नहीं। सर्वाधिक रहस्मय ग्रह केतु तप, ब्रह्म ज्ञान, वैराग्य, मौन व्रत, तंत्र-मंत्र, रहस्यमयी-विद्याओं का ज्ञाता बना ध्वजा (ऐश्वर्य) प्रदान करता है। केतु ध्वज प्रतीक है, इनकी शुभता अविष्कारक, जासूस, योगी,धर्मगुरू, भविष्य-वक्ता, तत्वज्ञानी बना कर प्रतिष्ठित करता है, अशुभ होने पर गुप्त पीड़ा, अनायास दुर्घटना, आग लग जाना, अनायास प्राणघातक हमला होना, अपमानित होना, धन-नष्ट होने पर दैनिक मजदूरी कर जीवन यापन करना आदि। केतु को काले-नीले पुष्पों, कुश सहित अश्वगंधा पुष्प, सप्त-धान्य वैदूर्यमणि अर्पण कर पूजा की जाती है। असगंध की जड़ हवन सामग्री में डाल कर हवन किया जाता है। शुभता पाने मंदिरों में ध्वजा चढ़ाई जाती है।
पलाश पुष्प संकांशं तारका ग्रहमस्तकं।
रौद्रं रौद्रान्तकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्हम्।।
नवग्रह का शान्ति मंत्र-
ब्रह्ममुरारी त्रिपुरान्तकारी,भानु शशि भूमि सुतौ बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रशनि राहु केतव: सर्वेन ग्रहा: शान्ति करा भवन्तु।।
विशेष- ग्रह शान्ति में मंत्र (सामान्य, तांत्रोक्त, पौराणिक, वैदिक, गायत्री) का चयन आपके आचार्य जी के निर्देश पर ही हो। लेख में पौराणिक मंत्र दिए गए हैं। मंत्रोपचार के अन्तर्गत मंत्र आवृत्ति एक विशेष ध्वनि संयोजन है और इस ध्वनि संयोजन से ग्रह रश्मियों के कुप्रभाव, शुभप्रभाव को घटाया बढ़ाया जा सकता है। इति शुभमास्तु ।।
संपर्क- अध्यक्ष माँ गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केंद्र, रमा लाज, हनुमान चौक, कांकेर छत्तिसगढ़। चलभाष- ७९७४०३२७२२ / ९४२५२६१९४४ ईमेल- drgitasharma.70@gmail.com
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