मुक्तिका:
करवा चौथ
संजीव 'सलिल'
*
करवा चौथ मनाने आया है चंदा.
दूर चाँदनी छोड़ भटकता क्यों बंदा..
खाली जेब हुई माँगे उपहार प्रिया.
निकल पड़ा है माँग-बटोरे कुछ चंदा..
घर जा भैये, भौजी पलक बिछाए है.
मत महेश के शीश बैठ होकर मंदा..
सूरज है स्वर्णाभ, चाँद पीताभ सलिल'
साँझ-उषा अरुणाभ, निशा का तम गंदा..
हर दंपति को जी भर खुशियाँ दे मौला.
'सलिल' मनाता शीश झुका आनंदकंदा..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
मुक्तिका: करवा चौथ संजीव 'सलिल'
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1 टिप्पणी:
करवा चौथ मनाने आया है चंदा.
दूर चाँदनी छोड़ भटकता क्यों बंदा..
खाली जेब हुई माँगे उपहार प्रिया.
निकल पड़ा है माँग-बटोरे कुछ चंदा..
घर जा भैये, भौजी पलक बिछाए है.
मत महेश के शीश बैठ होकर मंदा..
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सलिल जी, आपका ज़वाब नहीं!
--ख़लिश
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