सामायिक मुक्तिका :
कहो कौन....
संजीव 'सलिल'
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कहो कौन नेता है जिसने स्वार्थ-साधना करी नहीं.
सत्ता पाकर सुख-सुविधा की हरी घास नित चरी नहीं..
सरकारी दफ्तर में बैठे बाबू की मनमानी पर
किस अफसर ने अपने हस्ताक्षर की चिड़िया धरी नहीं..
योजनाओं की थाली में रिश्वत की रोटी है लेकिन
जनहित की सब्जी सूखी है, उसमें पाई करी नहीं..
है जिजीविषा अद्भुत अपनी सहे पीठ में लाख़ छुरे
आरक्षण तोड़े समाज को, गहरी खाई भरी नहीं..
विश्वनाथ हों, रामलला हों, या हों नटवर गिरिधारी.
मस्जिद की अजान ने दिल की चोट करी क्या हरी नहीं?
सच है सच, साहस कर सच को समझ-बोलना भी होगा.
समझौतों की राजनीति से सत्य-साधना बरी नहीं..
जनमत की अस्मत पर डाका डाल रहे जनतंत्री ही
किस दल के करतब से आत्मा लोकतन्त्र की मरी नहीं.
घरवाली से ही घर में रौनक होती, सुख-शांति मिले.
'सलिल' न ताक पड़ोसन को, क्या प्रीत भावना खरी नहीं..
काया जो कमनीय न वह हितकर होती है सदा 'सलिल'.
नींव सुदृढ़-स्थूल बनाना, कोमल औ' छरहरी नहीं..
संयम के प्रबलित लोहे पर जंग लोभ-लालच की है.
कल क्या होगा सोच 'सलिल' क्यों होती है झुरझुरी नहीं..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
सामायिक मुक्तिका : कहो कौन.... -- संजीव 'सलिल'
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