त्रिपदिक गीत:
करो मुनादी...
संजीव 'सलिल'
*
करो मुनादी
गोडसे ने पहनी
उजली खादी.....
*
सवेरे कहा:
जय भोले भंडारी
फिर चढ़ा ली..
*
तोड़े कानून
ढहाया ढाँचा, और
सत्ता भी पाली..
*
बेचा ईमान
नेता हैं बेईमान
निष्ठा भुला दी.....
*
एक ने खोला
मंदिर का ताला तो -
दूसरा डोला..
*
रखीं मूर्तियाँ
करवाया पूजन
न्याय को तौला..
*
मत समझो
जनगण नादान
बात भुला दी.....
*
क्यों भ्रष्टाचार
नस-नस में भारी?
करें विचार..
*
आख़िरी पल
करें किला फतह
क्यों हिन्दुस्तानी?
*
लगाया भोग
बाँट-खाया प्रसाद.
सजा ली गादी.....
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
त्रिपदिक गीत: करो मुनादी... संजीव 'सलिल'
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4 टिप्पणियां:
आ०सलिल जी
सादर अभिवादन,
सुन्दर त्रिपदिक गीत के लिये साधुवाद,
वाह जी वाह
पहन कर खादी
आ०सलिल जी सादर अभिवादन,
सुन्दर त्रिपदिक गीत के लिये साधुवाद,
वाह जी वाह
पहन कर खादी
माफ़ गुनाह,
वाह मुनादी
तुमने गांधी जी की
याद दिला दी,
डा०अजय जनमेजय
आचार्य जी
कविता अच्छी है।
वास्तव में ये हाइकु विधा है।
त्रिपदी नाम और सार्थक है।
सन्तोष कुमार सिंह
आत्मीय संतोष जी!
इस त्रिपदिक गीत का शिल्प हाइकु जिस ही है. ५-७-५ शब्दों की तीन पंक्तियाँ किन्तु हाइकु मूलतः प्रकृति-दृश्यों से संबद्ध होता है, यहाँ सामाजिक-राजनैतिक पृष्ठ भूमि प्रमुख है. अतः, हाइकु के स्थान पर त्रिपदी उपयुक्त लगा. हिन्दी हाइकु ने मूल जापानी हाइकु से अलग नए आयामों को स्पर्श किया है.
अच्छे हाइकू हैं सलिल जी-बधाई.
महेश काह्न्द्र द्विवेदी
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