विशेष विमर्श
भाषा और तकनीक
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'भा' अर्थात् प्रकाशित करना। भाना, भामिनी, भाव, भावुक, भाषित, भास्कर आदि में 'भा' की विविध छवियाँ दृष्टव्य हैं।
विज्ञान, तकनीक और यांत्रिकी में लोक और साहित्य में प्रचलित भावार्थ की लीक से हटकर शब्दों को विशिष्ट अर्थ में प्रयोग कर अर्थ विशेष की अभिव्यक्ति अपरिहार्य है।
'आँसू न बहा फरियाद न कर /दिल जलता है तो जलने दे' जैसी अभिव्यक्ति साहित्य में मूल्यवान होते हुए भी तथ्य दोष से युक्त है। विज्ञान जानता है कि दिल (हार्ट) के दुखने का कारण 'विरह' नहीं दिल की बीमारी है।
सामान्य बोलचाल में 'रेल आ रही है' कहा जाता है जबकि 'रेल' का अर्थ 'पटरी' होता है जिस पर रेलगाड़ी (ट्रेन) चलती है।
इसी तरह जबलपुर आ गया कहना भी गलत है। जबलपुर एक स्थान है जो अपनी जगह स्थिर है, आना-जाना वाहन या सवारी का कार्य है।
'तस्वीर तेरी दिल में बसा रखी है' कहकर प्रेमी और सुनकर प्रेमिका भले खुश हो लें, विज्ञान जानता है कि प्राणी बसता-उजड़ता है, निष्प्राण तस्वीर बस-उजड़ नहीं सकती। दिल तस्वीर बसाने का मकान नहीं शरीर को रक्त प्रदाय करने का पंप है।
आशय यह नहीं है कि साहित्यिक अभिव्यक्ति निरर्थक या त्याज्य हैं। कहना यह है कि शिक्षा पाने के साथ शब्दों को सही अर्थ में प्रयोग करना भी आवश्यक है विशेष कर तकनीकी विषयों पर लिखने के लिए भाषा और शब्द-प्रयोग के प्रति सजगता आवश्यक है।
'साइज' और 'शेप' दोनों के लिए आकार या आकृति का प्रयोग करना गलत है। साइज के लिए सही शब्द 'परिमाप' है।
सामान्य बोलचाल में 'गेंद' और 'रोटी' दोनों को 'गोल' कह दिया जाता है जबकि गेंद गोल (स्फेरिकल) तथा रोटी वृत्ताकार (सर्कुलर) है। विज्ञान में वृत्तीय परिपथ को गोल या गोल पिंड को वृत्तीय कदापि नहीं कहा जा सकता।
'कला' के अंतर्गत अर्थशास्त्र या समाज शास्त्र आदि को रखा जाना भी भाषिक चूक है। ये सभी विषय सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) के यंग हैं।
शब्दकोशीय समानार्थी शब्द विज्ञान में भिन्नार्थों में प्रयुक्त हो सकते हैं। भाप (वाटर वेपर) और वाष्प (स्टीम) सामान्यत: समानार्थी होते हुए भी यांत्रिकी की दृष्टि से भिन्न हैं।
अणु एटम है, परमाणु मॉलिक्यूल पर हम परमाणु बम को एटम बम कह देते हैं।
हम सब यह जानते हैं कि पौधा लगाया जाता है वृक्ष नहीं, फिर भी 'पौधारोपण' की जगह 'वृक्षारोपण' कहते हैं।
बल (फोर्स) और शक्ति (स्ट्रैंग्थ) को सामान्य जन समानार्थी मानकर प्रयोग करता है पर भौतिकी का विद्यार्थी इनका अंतर जानता है।
कोई भाषा रातों-रात नहीं बनती। ध्वनि विज्ञान और भाषा शास्त्र की दृष्टि से हिंदी सर्वाधिक समर्थ है। हमारे सामने यह चुनौती है कि श्रेष्ठ साहित्यिक विरासत संपन्न हिंदी को विज्ञान और तकनीक के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा बनाएँ।
नव रचनाकार उच्च शिक्षित होने के बाद भी भाषा की शुद्धता के प्रति प्रायः सजग नहीं हैं। यह शोचनीय है। कोई भी साहित्य या साहित्यकार शब्दों का गलत प्रयोग कर यश नहीं पा सकता। अत:, रचना प्रकाशित करने के पूर्व एक-एक शब्द की उपयुक्तता परखना आवश्यक है।
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