विमर्श:
गण क्या है?
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अ. गण और वेद
अ. गण और वेद
गण मूलत: वैदिक शब्द है। 'गणपति' और 'गणनांगणपति' शब्दों का आशय 'जन जातीय समूह' है। देवगण, ऋषिगण, पितृगण, कविगण इन समस्त पदों में यही अर्थ अभिप्रेषित है।
सृष्टि मूल में अव्यक्त स्रोत (परब्रम्ह) से प्रवृत्त हुई है। वह एक था, उस एक का बहुधा भाव या गण रूप में आना ही विश्व है। सृष्टि-रचना के लिए गणतत्व अनिवार्य है। नानात्व (विविधता) से ही जगत् बनता है। बहुधा, नाना, गण इन सबका लक्ष्य अर्थ एक ही है। वैदिक सृष्टिविद्या के अनुसार मूलभूत एक प्राण सर्वप्रथम था, उससे अनेक (ऋषि, पितर, देव आदि) उत्पन्न हुए पर वह प्रमुख बना रहा इसलिए वह गणपति कहा गया। मूलभूत गणपति ही पुराण की भाषा में गणेश है। शुद्ध विज्ञान की परिभाषा में उसे समष्टि (युनिवर्सल) कहेंगे। उससे जिन अनेक व्यष्टि भावों का जन्म होता है, उसकी संज्ञा गण है। गणपति या गणेश को महत्ततत्व भी कहते हैं। जो निष्कलरूप से सर्वव्यापक हो वही गणपति है। उसका खंड भाव में आना या पृथक्-पृथक् रूप ग्रहण करना गणभाव की सृष्टि है। समष्टि और व्यष्टि दोनों एक दूसरे से अविनाभूत या मिले हुए रहते है। यही संतति संबंध गणेश की सूँड से इंगित है। हाथी का मस्तक महत् या महान का प्रतीक है और व या चूहा पार्थित व्यष्टि पदार्थों या केंद्रों का प्रतीक है। वही पुराण की भाषा में गणपति का पशु है। वस्तुत: गणपति तत्व मूलभूत रुद्र का ही रूप है। जिसे महान कहा जाता है उसकी संज्ञा समुद्र भी थी। उसे ही पुराणों ने एकार्णव कहा है। वह सोम का समुद्र था और उसी तत्व के गणभावों का जन्म होता है। सोम का ही वैदिक प्रतीक मधु या अपूप था, उसी का पौराणिक या लोकगत प्रतीक मोदक है जो गणपति को प्रिय कहा जाता है। यही गण और गणपति की मूल कल्पना थी।
गण-स्वामी गणेश के प्रधान वीरभद्र सप्तमातृका मूर्तियों की पंक्ति के अंत में दंड धारण कर खड़े होते हैं। शिव के अनंत गण हैं जिनके वामन तथा विचित्र स्वरूपों का गुप्तकालीन कला में पर्याप्त आकलन हुआ है। खोह (म. प्र.) से प्राप्त, इलाहाबाद के संग्रहालय में सुरक्षित स्थूल वामन गणों की संख्या अपरिमित है। विकृत रूपधारीगण पट्टिकाओं पर उत्खचित हैं। शिव-बारात में इन अप्राकृतिक रूपधारी गणों का विशेष महत्व है।
आ. गण और ज्योतिष
ज्योतिष शास्त्र में इंसान के गण को तीन भागों में वर्गीकृत गया है – देव गण, मनुष्य गण और राक्षस गण। मनुष्य के जन्म नक्षत्र एवं जन्मकुंडली के आधार पर उसके गण की पहचान की जा सकती है। क. देव गण से संबंधित जातक उदार, बुद्धिमान, साहसी, अल्पाहारी, समृद्ध और दान-पुण्य करने वाले होते हैं। 'सुंदरो दान शीलश्च मतिमान् सरल: सदा। अल्पभोगी महाप्राज्ञो तरो देवगणे भवेत्।।' अर्थात देवगण में उत्पन्न पुरुष दानी, बुद्धिमान, सरल हृदय, अल्पाहारी व विचारों में श्रेष्ठ, मेधावी, सरल, दयालु, परोपकारी, सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व के होते हैं। अश्विनी, मृगशिरा, पुर्नवासु, पुष्य, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रावण, रेवती नक्षत्र में जन्में बालक देव गण के होते हैं। ख. मनुष्य गण के व्यक्ति अभिमानी, समृद्ध और धनुर्विद्या में निपुण होते हैं। 'मानी धनी विशालाक्षो लक्ष्यवेधी धनुर्धर:। गौर: पोरजन ग्राही जायते मानवे गणे।।' अर्थात मनुष्य गण में उत्पन्न पुरुष मानी, धनवान, विशाल नेत्र वाला, धनुर्विद्या का जानकार, ठीक निशाने बेध करने वाला, गौर वर्ण, नगरवासियों को वश में करने वाला होता है। ऐसे जातक किसी समस्या या नकारात्मक स्थिति में भयभीत हो जाते हैं। परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता कम होती है। भरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, पूर्व षाढ़ा, उत्तर षाढा, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद में मनुष्य गण के जातक जन्म लेते हैं। ग. राक्षस गण के मनुष्य विलक्षण प्रतिभा के धनी, अपने आसपास की अशुभ ऊर्जा को शीघ्रता से भाँप लेते हैं। इनकी छठी इंद्रिय काफी शक्तिशाली और सक्रिय होती है। इस गण वाले लोग कठिन परिस्थिति में भी धैर्य और साहस से काम लेते हैं। ये लोग अपने जीवन में हर मुश्किल का डटकर सामना करना जानते हैं। राक्षस गण कृत्तिका, अश्लेषा, मघा, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र में बनता है। 'उन्मादी भीषणाकार: सर्वदा कलहप्रिय:। पुरुषो दुस्सहं बूते प्रमे ही राक्षसे गण।।' अर्थात राक्षस गण में उत्पन्न बालक उन्मादयुक्त, भयंकर स्वरूप, झगड़ालु, प्रमेह रोग से पीड़ित और कटु वचन बोलने वाला होता है। भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास इन्हें पहले ही हो जाता है।
गण और विवाह- विवाह के समय गणों का सही मिलान होने पर दांपत्य जीवन में सुख और आनंद बना रहता है। वर-कन्या का समान गण होने पर दोनों के मध्य उत्तम सामंजस्य से विवाह सर्वश्रेष्ठ रहता है। वर-कन्या देव तथा मनुष्य गण के हों तो वैवाहिक जीवन संतोषप्रद होता है, विवाह किया जा सकता है। वर-कन्या के देव गण और राक्षस गण होने पर दोनों के बीच सामंजस्य नहीं रहता है। विवाह नहीं करना चाहिए।

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