चित्र पर कविता: १२
चित्र और कविता की कड़ी १. संवाद, २. स्वल्पाहार, ३. दिल-दौलत, ४. प्रकृति, ५ ममता, ६. पद-चिन्ह, ७. जागरण, ८. परिश्रम, ९. स्मरण, १०. उमंग तथा ११ सद्भाव के पश्चात् प्रस्तुत है चित्र १२. प्रकृति. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.

दोहा गीत :.प्रकृति
संजीव 'सलिल'
[छंद: दोहा, द्विपदी मात्रिक छंद, पद:२, चरण:४( २ सम-२ विषम), कलाएं: ४८(सम चरण में ११-११, विषम चरण में १३-१३)]
सघन तिमिर की कोख से, प्रगटे सदा उजास.
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
*
रक्त-पीत नीलाभ नभ, किरण सुनहरी आभ.
धरती की दहलीज़ पर, लिखतीं चुप शुभ-लाभ..
पवन सुनाता जागरण-गीत, बिखेरे हास.
गिरि शिखरों ने विनत हो, कहा: न झेलो त्रास..
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
*
हरियाली की क्रोड़ में, पंछी बैठे मौन.
स्वागत करते पर्ण पर, नहीं पूछते कौन?
सब समान हैं आम हो, या आगंतुक खास.
दूरी जिनके दिलों में, पलती- रहें उदास.
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
*
कलकल कलरव कर रही, रह किलकिल से दूर.
'सलिल'-धार में देख निज, चेहरा लगा सिन्दूर..
प्राची ने निज भाल पर, रवि टाँका ले आस.
जग-जीवन को जगाकर, दे सौगात हुलास..
*******
प्रकृति
इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं.
चित्र और कविता की कड़ी १. संवाद, २. स्वल्पाहार, ३. दिल-दौलत, ४. प्रकृति, ५ ममता, ६. पद-चिन्ह, ७. जागरण, ८. परिश्रम, ९. स्मरण, १०. उमंग तथा ११ सद्भाव के पश्चात् प्रस्तुत है चित्र १२. प्रकृति. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.
दोहा गीत :.प्रकृति
संजीव 'सलिल'
[छंद: दोहा, द्विपदी मात्रिक छंद, पद:२, चरण:४( २ सम-२ विषम), कलाएं: ४८(सम चरण में ११-११, विषम चरण में १३-१३)]
सघन तिमिर की कोख से, प्रगटे सदा उजास.
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
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रक्त-पीत नीलाभ नभ, किरण सुनहरी आभ.
धरती की दहलीज़ पर, लिखतीं चुप शुभ-लाभ..
पवन सुनाता जागरण-गीत, बिखेरे हास.
गिरि शिखरों ने विनत हो, कहा: न झेलो त्रास..
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
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हरियाली की क्रोड़ में, पंछी बैठे मौन.
स्वागत करते पर्ण पर, नहीं पूछते कौन?
सब समान हैं आम हो, या आगंतुक खास.
दूरी जिनके दिलों में, पलती- रहें उदास.
पौ फटते विहँसे उषा, दे सौगात हुलास..
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कलकल कलरव कर रही, रह किलकिल से दूर.
'सलिल'-धार में देख निज, चेहरा लगा सिन्दूर..
प्राची ने निज भाल पर, रवि टाँका ले आस.
जग-जीवन को जगाकर, दे सौगात हुलास..
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