मुक्तिका
रह गयी
संजीव 'सलिल'
*
शारदा की कृपा जब भी जिस पर हुई.
उसकी हर पंक्ति में इक ग़ज़ल रह गई॥
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पुष्प सौरभ लुटाये न तो क्या करे?
तितलियों की नसल ही असल रह गई॥
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जान की खैर माँगे नहीं जानकी.
मौन- कह बात सब जानकी रह गयी..
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वध अवध में खुले-आम सत का हुआ.
अनसुनी बात सम्मान की रह गई..
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ध्वस्त दरबार पल में समय ने किया.
पर गढ़ी शेष हनुमान की रह गई..
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अर्चना वंचना में उलझती है क्यों?
प्रार्थना-वन्दना में कमी रह गयी?.
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डोर रिश्तों की पकड़ी है आशीष भी.
पर दुआओं में थोड़ी कमी रह गई..
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 21 सितंबर 2010
मुक्तिका रह गयी संजीव 'सलिल'
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