दोहा का रंग प्रभु त्रिवेदी के संग:
बन्दूकों से हल नहीं, होते कभी विवाद.
ऐसी राह निकालिए, दुनिया हो आबाद..
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फूलों की शैया तजी, मात-पिता घर धाम.
स्वर्ण अक्षरों में लिखे उन वीरों के नाम..
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जल संस्कृति का मूल है, जल से है निर्माण.
जल से जीवित जन्तु सब, जल प्राणों का प्राण..
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कठिन राह का हो गया, सरल-सफल आधार.
संकल्पों की मुद्रिका, पहुँची सागर-पार..
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वर्तमान बनकर चला, सुख-दुःख भरा अतीत.
भावी-सम्मुख है खड़ा, लिये हाथ में जीत..
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स्वर्ण-कटोरा हाथ में, ले निकला दिनमान.
दिशा-दिशा सुख बाँटता, यही महा अभियान..
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जागृत हो संवेदना, देश-भक्ति का भाव.
परिलक्षित होगा तभी, शनैः-शनैः बदलाव..
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स्वस्थ्य होड़ हो आपसी, सभी बनें संपन्न.
हित साधन साधते रहें, अंतस रहे प्रसन्न..
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धरती पाकर खुश रहें, करते रहें तलाश.
समभाव है सब कुछ यहाँ, नीचा है आकाश..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 20 मई 2010
दोहा का रंग प्रभु त्रिवेदी के संग:
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