सलिल सृजन जून ३
***
दोहा सलिला
सर ला कर दें केक हम, काट मचाएँ धूम
सरला जी बत्ती बुझा, गुटकें है मालूम
.
हर छवि नवला नूतना, चेहरा खिला गुलाब
अधरों पर मुस्कान है, नैनों में शत ख्वाब
.
चित्र चित्र बन गया है, यादों की बारात।
दिल दिलवर को याद कर, ले खुशियों का स्वाद
.
ग़म को गम हो है नहीं, उससे कुछ पहचान
खुशियाँ हो गृहवासिनी, अपना हमको मान
.
कंकर में शंकर बसे, श्वास श्वास में आप
संजीवित होकर बसें, जन-जीवन में व्याप
३.६.२०२५
०0०
ॐ
भारत गीत
*
'अंधकार को जीत
उजाला पाने में रत हूँ,
मैं भारत हूँ, मैं भारत हूँ।'
*
सभ्यता सनातन मैं जानो
हूँ कल्प-कल्प से सच मानो
मैं पंचतत्व, मैं तीन लोक
मैं तीन देव हूँ सम्मानो
मैं ही गत, अब हूँ, आगत हूँ
मैं भारत हूँ, मैं भारत हूँ।
*
जीवनदायिनी भारतमाता
मैं ही जनगण-मन विख्याता
हूँ वंदे मातरम् मैं अनुपम
मैं झंडा ऊँचा जग त्राता
मैं मानवता का स्वागत हूँ
मैं भारत हूँ, मैं भारत हूँ।
*
मैं कंकरवासी शंकर हूँ
है चित्र गुप्त अभ्यंकर हूँ
हूँ शक्ति-शांति-निर्माण पथिक
मैं ही ओढ़े दिक् अंबर हूँ
मैं गीतागायक जागत हूँ
मैं भारत हूँ, मैं भारत हूँ।
३.६.२०२१
***
हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है
और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है
उसके पीछे कुछ कारण है ,
अंग्रेजी भाषा में ये
बात देखने में नहीं आती |
______________________
क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय
ध्वनि
कंठ से निकलती है।
एक बार बोल कर देखिये |
च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के
समय जीभ
तालू से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |
ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के
मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
एक बार बोल कर देखिये |

त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के
समय
जीभ दांतों से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |
प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के
मिलने
पर ही होता है। एक बार बोल
कर देखिये ।

________________________
हम अपनी भाषा पर गर्व
करते हैं ये सही है परन्तु लोगो को
इसका कारण भी बताईये |
इतनी वैज्ञानिकता
दुनिया की किसी भाषा मे
नही है
जय हिन्द
क,ख,ग क्या कहता है जरा गौर करें....
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क - क्लेश मत करो
ख- खराब मत करो
ग- गर्व ना करो
घ- घमण्ड मत करो
च- चिँता मत करो
छ- छल-कपट मत करो
ज- जवाबदारी निभाओ
झ- झूठ मत बोलो
ट- टिप्पणी मत करो
ठ- ठगो मत
ड- डरपोक मत बनो
ढ- ढोंग ना करो
त- तैश मे मत रहो
थ- थको मत
द- दिलदार बनो
ध- धोखा मत करो
न- नम्र बनो
प- पाप मत करो
फ- फालतू काम मत करो
ब- बिगाङ मत करो
भ- भावुक बनो
म- मधुर बनो
य- यशश्वी बनो
र- रोओ मत
ल- लोभ मत करो
व- वैर मत करो
श- शत्रुता मत करो
ष- षटकोण की तरह स्थिर रहो
स- सच बोलो
ह- हँसमुख रहो
क्ष- क्षमा करो
त्र- त्रास मत करो
ज्ञ- ज्ञानी बनो !!
चलें गाँव की ओर
स्नेह की सबल बँधी जहँ डोर
*
अलस्सुबह ऊषा-रवि आगत,
गुँजा प्रभाती करिए स्वागत।
गौ दुह पय पी किशन कन्हैया,
नाचें-खेलें ता ता थैया।
पवन बहे कर शोर
चलें गाँव की ओर
*
पनघट जाए मेंहदी पायल,
खिलखिल गूँजे, हो दिल घायल।
स्नान-ध्यान कर पूजे देवा
छाछ पिए, कर धनी कलेवा।
सुनने कलरव शोर
चलें गाँव की ओर
*
पूजें नीम शीतला मैया,
चल चौपाल मिले वट छैंया।
शुद्ध ओषजन धूप ग्रहणकर
बहा पसीना रोग दूर धर।
सुख-दुख संग अँजोर
चलें गाँव की ओर
२३-५-२०२१
***
चिट्ठी संविधान की
प्रिय नागरिकों।
खुश रहो कहूँ या प्रसन्न रहो?
- बहुत उलझन है, यह कहूँ तो फिरकापरस्ती का आरोप, वह कहूँ तो सांप्रदायिकता का। बचने की एक ही राह है 'कुछ न कहो, कुछ भी न कहो'।
क्या एक संवेदनशील समाज में कुछ न कहना उचित हो सकता है?
- कुछ न कहें तो क्या सकल साहित्य, संगीत और अन्य कलाएँ मूक रहें? चित्र न बनाया जाए, नृत्य न किया जाए, गीत न गाया जाए, लेख न लिखा जाए, वसन न पहने जाएँ, भोजन न पकाया जाए, सिर्फ इसलिए कि इससे कुछ व्यक्त होता है और अर्थ का अनर्थ न कर लिया जाए।
- राजनीति ने सत्ता को साध्य समझकर समाज नीति की हत्या कर स्वहित साधन को सर्वोच्च मान लिया है।
- देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन महानुभाव दलीय हितों को लिए आक्रामक मुद्राओं में पूर्ववर्तियों पर अप्रमाणित आरोपों का संकेत करते समय यह भूल जाते हैं कि जब इतिहास खुद को दोहराएगा तब उनके मुखमंडल का शोभा कैसी होगी?
- सत्तासीनों से सत्य, संयम सहित सर्वहित की अपेक्षा न की जाए तो किससे की जाए?
- दलीय स्पर्धा में दलीय हितों को संरक्षण हेतु दलीय पदाधिकारी आरोप-प्रत्यारोप करें किंतु राष्ट्र प्रमुख अपनी निर्लिप्तता प्रदर्शित करें या क्या वातावरण स्वस्थ्य न होगा?
- मुझे बनाते व अंगीकार करते समय जो सद्भाव तुम सबमें था, वह आज कहाँ है? स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र या निशस्त्र दोनों तरह के प्रयास करनेवालों की लक्ष्य और विदेशी संप्रभुओं की उन पर अत्याचार समान नहीं था क्या?
- स्वतंत्र होने पर सकल भारत को एक देखने की दृष्टि खो क्यों रही है? अपने कुछ संबंधियों के बचाने के लिए आतंकवादियों को छोड़ने का माँग करनेवाले नागरिक, उन्हें समर्थन देनेवाला समाचार माध्यम और उन्हें छोड़नेवाली सरकार सबने मेरी संप्रभुता के साथ खिलवाड़ ही किया।
- आरक्षण का आड़ में अपनी राजनैतिक रोटी सेंकनेवाले देश की संपत्ति को क्षति पहुँचानेवाले अपराधी ही तो हैं।
- चंद कोसों पर बदलनेवाली बोली के स्थानीय रूप को राजभाषा का स्पर्धी बनाने की चाहत क्यों? इस संकीर्ण सोच को बल देती दिशा-हीन राजनीति कभी भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन करती है, कभी प्रांतों को नाम पर प्रांत भाषा (छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी, राजस्थान में राजस्थानी आदि) की घोषणा कर देती है, भले ही उस नाम की भाषा पहले कभी नहीं रही हो।
- साहित्यकारों के चित्रों स् सुसज्जित विश्व हिंदी सम्मेलन के मंच से यह घोषित किया जाना कि 'यह भाषा सम्मेलन है, साहित्य सम्मेलन नहीं' राजनीति के 'बाँटो और राज्य करो' सिद्धांत का जयघोष था जिसे समझकर भी नहीं समझा गया।
- संशोधनों को नाम पर बार-बार अंग-भंग करने के स्थान पर एक ही बार में समाप्त क्यों न कर दो? मेरी शपथ लेकर पग-पग पर मेरी ही अवहेलना करना कितना उचित है?
- मुझे पल-पल पीड़ा पहुँचाकर मेरी अंतरात्मा को दुखी करने के स्थान पर तुम मुझे हटा ही क्यों नहीं देते?
-आम चुनाव लोकतंत्र का महोत्सव होना चाहिए किंतु तुमने इसे दलतंत्र का कुरुक्षेत्र बना दिया है। मैंने आम आदमी को मनोनुकूल प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया था पर पूँजीपतियों से चंदा बटोरकर उनके प्रति वफादार दलों ने नाग, साँप, बिच्छू, मगरमच्छ आदि को प्रत्याशी बनाकर जनाधिकार का परोक्षत: हरण कर लिया।
- विडंबना ही है कि जनतात्र को जनप्रतिनिधि जनमत और जनहित नहीं दलित और दल-हित साधते रहते हैं।
- 'समर शेष नहीं हुआ है, उठो, जागो, आगे बढ़ो। लोक का, लोक के लिए, लोक के द्वारा शासन-प्रशासन तंत्र बनाओ अन्यथा समय और मैं दोनों तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे।
- ईश्वर तुम्हें सुमति दें।
शुभेच्छु
तुम्हारा संविधान
२३-५-२०१९
***
भारत विभाजन का सत्य:
= दो देशों का सिद्धांत प्रतिपादक सावरकर, समर्थक हिन्दू महासभा,
मुस्लीम लीग, चौधरी.
= पाकिस्तान बनाने पर क्रमश: सहमत हुए: सरदार पटेल, नेहरू, राजगोपालाचारी. इनके बाद मजबूरी में जिन्ना
= अंत तक असहमत गांधी जी, लोहिया जी, खान अब्दुल गफ्फार खान
= लाहौर से ढाका तक एक राज्य बनाने तक अन्न-लवण न खाने का व्रत लेने और निभानेवाले स्वामी रामचंद्र शर्मा 'वीर' (आचार्य धर्मेन्द्र के स्वर्गवासी पिता).
इतिहास पढ़ें, सचाई जानें.पटेल को हृदयाघात हो चुका था, जिन्ना की लाइलाज टी. बी. अंतिम चरण में थी. दोनों के जीवन के कुछ ही दिन शेष थे, दोनों यह सत्य जानते थे.
पटेल ने अखंड भारत की सम्भावना समाप्त करते हुए सबसे पहले पकिस्तान को मंजूर किया, जिन्ना ने कोंग्रेसी नेताओं द्वारा छले जाने से खिन्न होकर पाकिस्तान माँगा किन्तु ऐसा पकिस्तान उन्हें स्वीकार नहीं था. वे आखिर तक इसके विरोध में थे. कोंग्रेस द्वारा माने जाने के बाद उन्हें बाध्य होकर मानना पड़ा.
***
दोहा सलिला:
मन में अब भी रह रहे, पल-पल मैया-तात।
जाने क्यों जग कह रहा, नहीं रहे बेबात।।
*
रचूँ कौन विधि छंद मैं,मन रहता बेचैन।
प्रीतम की छवि देखकर, निशि दिन बरसें नैन।।
*
कल की फिर-फिर कल्पना, कर न कलपना व्यर्थ।
मन में छवि साकार कर, अर्पित कर कुछ अर्ध्य।।
*
जब तक जीवन-श्वास है, तब तक कर्म सुवास।
आस धर्म का मर्म है, करें; न तजें प्रयास।।
*
मोह दुखों का हेतु है, काम करें निष्काम।
रहें नहीं बेकाम हम, चाहें रहें अ-काम।।
*
खुद न करें निज कद्र गर, कद्र करेगा कौन?
खुद को कभी सराहिए, व्यर्थ न रहिए मौन.
*
प्रभु ने जैसा भी गढ़ा, वही श्रेष्ठ लें मान।
जो न सराहे; वही है, खुद अपूर्ण-नादान।।
*
लता कल्पना की बढ़े, खिलें सुमन अनमोल।
तूफां आ झकझोर दे, समझ न पाए मोल।।
*
क्रोध न छूटे अंत तक, रखें काम से काम।
गीता में कहते किशन, मत होना बेकाम।।
*
जिस पर बीते जानता, वही; बात है सत्य।
देख समझ लेता मनुज, यह भी नहीं असत्य।।
*
भिन्न न सत्य-असत्य हैं, कॉइन के दो फेस।
घोडा और सवार हो, अलग न जीतें रेस।।
७.५.२०१८
***
छंद बहर का मूल है
१६ वार्णिक अनुष्टुप छंद
मात्रिक दैशिक शशिवदना छंद
मुक्तिका
*
सूर्य ऊगा तो सवेरा ८/१४
सूर्य डूबा तो अँधेरा
.
प्रीत की जादूगरी है
नूर ऊषा ने बिखेरा
.
नींद तू भी जाग जा रे!
मुर्ग ने दे बाँग टेरा
.
भू न जाती सासरे को
सूर्य लेता संग फेरा
.
साँझ बाँधे रोज राखी
माँग तारे टाँक धीरा
.
है निशा बाँकी सहेली
बाँध-तोड़े मोह-घेरा
.
चाँदनी-चंदा लगाए
आसमां में प्रीत डेरा
३.६.२०१७
***
छंद बहर का मूल है: १४
*
दस वार्णिक पंक्ति जातीय
सत्रह मात्रिक महासंस्कारी जातीय, चन्द्र छंद
छंद संरचना:२१२ २१२ २१२ २
सूत्र: र र र गा.
*
मुक्तक
*
आपका नूर है आसमानी
रूह है आपका शादमानी
आपका ही रहा बोलबाला
आपका रूप है जाफरानी
*
मुक्तिका- १
आसमां छू रहीं कामनाएँ
आप ही खो रहीं भावनाएँ
.
कौन है जो नहीं चाहता है
शांत हों, जागती वासनाएँ
.
खूब हालात ने आजमाया
आज हालात को आजमाएँ
.
कोशिशों को मिली कामयाबी
हौसले ही सदा काम आएँ
.
आदमी के नहीं पास जाएँ
हैं विषैले न वो काट खाएँ
***
मुक्तिका- २
आप जो हैं वही तो नहीं हैं
दीखते हैं वही जो नहीं हैं
.
खोजते हैं खुदी को जहाँ पे
जानते हैं वहाँ तो नहीं हैं
.
जो न बोला वही बोलते हैं
बोलते, बोलते जो नहीं हैं
.
तौल को तौलते ही रहे जो
तौल को तौलते वो नहीं हैं
.
देश का वेश क्या हो बताएँ?
दश में शेष क्या जो नहीं है
.
आदमी देवता क्या बनेगा?
आदमी आदमी ही नहीं है
.
जोश में होश ही खो न देना
होश में जोश हो, क्यां नहीं है?
२०-४-२०१७
***
मुक्तिका/हिंदी ग़ज़ल
.
किस सा किस्सा?, कहे कहानी
गल्प- गप्प हँस कर मनमानी
.
कथ्य कथा है जी भर बाँचो
सुन, कह, समझे बुद्धि सयानी
.
बोध करा दे सत्य-असत का
बोध-कथा जो कहती नानी
.
देते पर उपदेश, न करते
आप आचरण पंडित-ज्ञानी
.
लाल बुझक्कड़ बूझ, न बूझें
कभी पहेली, पर ज़िद ठानी
***
[ सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय, अरिल्ल छन्द]
२३-५-२०१६
तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नालॉजी
जबलपुर, ११.३० ए एम
***
दोहा सलिला
*
कर अव्यक्त को व्यक्त हम, रचते नव 'साहित्य'
भगवद-मूल्यों का भजन, बने भाव-आदित्य
.
मन से मन सेतु बन, 'भाषा' गहती भाव
कहे कहानी ज़िंदगी, रचकर नये रचाव
.
भाव-सुमन शत गूँथते, पात्र शब्द कर डोर
पाठक पढ़-सुन रो-हँसे, मन में भाव अँजोर
.
किस सा कौन कहाँ-कहाँ, 'किस्सा'-किस्सागोई
कहती-सुनती पीढ़ियाँ, फसल मूल्य की बोई
.
कहने-सुनने योग्य ही, कहे 'कहानी' बात
गुनने लायक कुछ कहीं, कह होती विख्यात
.
कथ्य प्रधान 'कथा' कहें, ज्ञानी-पंडित नित्य
किन्तु आचरण में नहीं, दीखते हैं सदकृत्य
.
व्यथा-कथाओं ने किया, निश-दिन ही आगाह
सावधान रहना 'सलिल', मत हो लापरवाह
.
'गल्प' गप्प मन को रुचे, प्रचुर कल्पना रम्य
मन-रंजन कर सफल हो, मन से मन तक गम्य
.
जब हो देना-पावना, नातों की सौगात
ताने-बाने तब बनें, मानव के ज़ज़्बात
.
कहानी गोष्ठी, २२-५-२०१६
कान्हा रेस्टॉरेंट, जबलपुर, १९.३०
***
मुहावरेदार दोहे
*
पाँव जमकर बढ़ 'सलिल', तभी रहेगी खैर
पाँव फिसलते ही हँसे, वे जो पाले बैर
*
बहुत बड़ा सौभाग्य है, होना भारी पाँव
बहुत बड़ा दुर्भाग्य है होना भारी पाँव
*
पाँव पूजना भूलकर, फिकरे कसते लोग
पाँव तोड़ने से मिटे, मन की कालिख रोग
*
पाँव गए जब शहर में, सर पर रही न छाँव
सूनी अमराई हुई, अश्रु बहाता गाँव
*
जो पैरों पर खड़ा है, मन रहा है खैर
धरा न पैरों तले तो, अपने करते बैर
*
सम्हल न पैरों-तले से, खिसके 'सलिल' जमीन
तीसमार खाँ हबी हुए, जमीं गँवाकर दीन
*
टाँग अड़ाते ये रहे, दिया सियासत नाम
टाँग मारते वे रहे, दोनों है बदनाम
*
टाँग फँसा हर काम में, पछताते हैं लोग
एक पूर्ण करते अगर, व्यर्थ न होता सोग
*
बिन कारण लातें न सह, सर चढ़ती है धूल
लात मार पाषाण पर, आप कर रहे भूल
*
चरण कमल कब रखे सके, हैं धरती पर पैर?
पैर पड़े जिसके वही, लतियाते कह गैर
*
धूल बिमाई पैर का, नाता पक्का जान
चरण कमल की कब हुई, इनसे कह पहचान?
१९-५-२०१६
***
मुक्तिका
*
धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर
साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर
.
मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर
तारे साथी धमाचौकड़ी मच रहे हैं हुलस-पुलककर
.
बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो
पता नहीं कब भोर हो गयी?, टेरे मौसी उषा लपककर
.
बहकी-महकी मंद पवन सँग, क्लो मोगरे की श्वेतभित
गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर
.
सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर
छोड़न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर
हरदोई
८-५-२०१६
***
छंद बहर का मूल है १५
वार्णिक अनुष्टुप जातीय छंद
मात्रिक दैशिक जातीय एकावली छंद
*
मुक्तिका
*
नित इबादत करो
मत अदावत करो
.
कुछ शराफ़त रहे
कुछ शरारत करो
.
सो लिए तुम बहुत
उठ बगावत करो
.
मत नज़र फेरना
मिल इनायत करो
.
भूल शिकवे सभी
मत शिकायत करो
.
बेहतर जो लगे
पग रवायत करो
.
छोड़ चलभाष दो
खत-किताबत करो
.
२४-४-२०१६
सी २५६ आवास-विकास हरदोई
***
३-६-२०१६
मुक्तिका
*
नित इबादत करो
मत अदावत करो
.
मौन बैठो न तुम
कुछ शरारत करो
.
सो लिए हो बहुत
उठ बगावत करो
.
अब न फेरो नज़र
मिल इनायत करो
.
आज शिकवे भुला
कल शिकायत करो
.
बेहतरी का 'सलिल'
पग रवायत करो
.
छोड़ चलभाष प्रिय!
खत-किताबत करो
.
(दैशिक जातीय छंद)
२४-४-२०१६
सी २५६ आवास-विकास हरदोई
***
दोहा सलिला:
*
भँवरे की अनुगूँज को, सुनता है उद्यान
शर्त न थककर मौन हो, लाती रात विहान
*
धूप जलाती है बदन, धूल रही हैं ढांक
सलिल-चाँदनी साथ मिल, करते निर्मल-पाक
*
जाकर आना मोद दे, आकर जाना शोक
होनी होकर ही रहे, पूरक तम-आलोक
*
अब नालंदा अभय हो, ज्ञान-रश्मि हो खूब
'सलिल' मिटा अज्ञान निज, सके सत्य में डूब
३०-५-२०१५
*
मुक्तक:
*
पैर जमीं पर जमे रहें तो नभ बांहों में ले सकते हो
आशा की पतवार थामकर भव में नैया खे सकते हो.
शब्द-शब्द को कथ्य, बिंब, रस, भाव, छंद से अनुप्राणित कर
स्नेह-सलिल में अवगाहन कर नित काव्यामृत दे सकते हो
२३-५-२०१५
***
एक दोहा
करें आरती सत्य की, पूजें श्रम को नित्य
हों सहाय सब देवता, तजिए स्वार्थ अनित्य
१७-५-२०१५
***
मुक्तक
तुझको अपना पता लगाना है?
खुद से खुद को अगर मिलाना है
मूँद कर आँख बैठ जाओ भी
दूर जाना करीब आना है
१६-५-२०१५
***
पाती अमराई के नाम
*
पाती अमराई के नाम
भेजी खलिहानों ने
*
गदरायी अमियों को देख
तन रहे गुलेल सकें छेड़
संयम के ऊसर है खेत
बहक रहे पैर तोड़ मेड़
ढोलक ने,
मादल ने,
घुंघरू ने,
पायल ने
क्ज्रो की बिसरायी तान
पनघट-दालानों ने
पाती अमराई के नाम
भेजी खलिहानों ने
*
चेहरों से गुम रंगत
अब न ख़ुशी की संगत
भावी को भाती नहीं
अब अतीत की संगत
बादल ने,
बिजली ने,
भँवरों ने,
तितली ने
तानी है काम की कमान
मुकुलित बागानों ने
पाती अमराई के नाम
भेजी खलिहानों ने
*
परिवर्तन की आहट
खो-पाने की चाहत
सावन में भादों क्यों
चाह रहा फगुनाहट
सरगम ने,
परचम ने,
कोशिश ने,
बम-बम ने
किस्मत की थामी लगाम
जनगण ने हाथों ने
पाती अमराई के नाम
भेजी खलिहानों ने
३.६.२०१५
***
बुन्देली मुक्तिका :
काय रिसा रए
*
काय रिसा रए कछु तो बोलो
दिल की बंद किवरिया खोलो
कबहुँ न लौटे गोली-बोली
कओ बाद में पैले तोलो
ढाई आखर की चादर खों
अँखियन के पानी सें धो लो
मिहनत धागा, कोसिस मोती
हार सफलता का मिल पो लो
तनकउ बोझा रए न दिल पे
मुस्काबे के पैले रो लो
२३-५-२०१३
===
आयुर्वेद दोहा
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हे-ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढे सुयोग..
*
नींद न आये-अनिद्रा, का है सुलभ उपाय.
शुद्ध शहद सेवन करें, गहरी निद्रा आय..
*
२२-५-२०१०
***
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