अलंकार सलिला २३ :
उत्प्रेक्षा अलंकार
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जब होते दो वस्तु में, एक सदृश गुण-धर्म
एक लगे दूजी सदृश, उत्प्रेक्षा का मर्म
इसमें उसकी कल्पना, उत्प्रेक्षा का मूल.
जनु मनु बहुधा जानिए, है पहचान, न भूल..
जो है उसमें- जो नहीं, वह संभावित देख.
जानो-मानो से करे, उत्प्रेक्षा उल्लेख..
जब दो वस्तुओं में किसी समान धर्म(गुण) होने के कारण एक में दूसरे के होने की सम्भावना की जाए तब वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है. सम्भावना व्यक्त करने के लिये किसी वाचक शब्द यथा मानो, मनो, मनु, मनहुँ, जानो, जनु, जैसा, सा, सम आदि का उपयोग किया जाता है.
उत्प्रेक्षा का अर्थ कल्पना या सम्भावना है. जब दो वस्तुओं में भिन्नता रहते हुए भी उपमेय में उपमान की कल्पना की जाये या उपमेय के उपमान के सदृश्य होने की सम्भावना व्यक्त की जाये तो उत्प्रेक्षा अलंकार होता है. कल्पना या सम्भावना की अभिव्यक्ति हेतु जनु, जानो, मनु, मनहु, मानहु, मानो, जिमी, जैसे, इव, आदि कल्पनासूचक शब्दों का प्रयोग होता है..
उदाहरण:
१. चारू कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए.
लट लटकनि मनु मत्त मधुप-गन मादक मधुहिं पिए..
यहाँ श्रीकृष्ण के मुख पर झूलती हुई लटों (प्रस्तुत) में मत्त मधुप (अप्रस्तुत) की कल्पना (संभावना) किये जाने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है.
२. फूले कांस सकल महि छाई.
जनु वर्षा कृत प्रकट बुढाई..
यहाँ फूले हुए कांस (उपमेय) में वर्षा के श्वेत्केश (उपमान) की सम्भावना की गयी है.
३. फूले हैं कुमुद, फूली मालती सघन वन.
फूली रहे तारे मानो मोती अनगन हैं..
४. मानहु जगत क्षीर-सागर मगन है..
५. झुके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाए.
६. मनु आतप बारन तीर कों, सिमिटि सबै छाये रहत.
७. मनु दृग धारि अनेक जमुन निरखत ब्रज शोभा.
८. तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप, उठे न चलहिं लजाइ.
मनहुँ पाइ भट बाहुबल, अधिक-अधिक गुरुवाइ..
९. लखियत राधा बदन मनु विमल सरद राकेस.
१०. कहती हुए उत्तरा के नेत्र जल से भर गए.
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए..
११. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने लगा.
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा..
१२. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये.
झुके कूल सों जल परसन हित मनहु सुहाए..
१३. नित्य नहाता है चन्द्र क्षीर-सागर में.
सुन्दरि! मानो तुम्हारे मुख की समता के लिए.
१४. भूमि जीव संकुल रहे, गए सरद ऋतु पाइ.
सद्गुरु मिले जाहि जिमि, संसय-भ्रम समुदाइ..
१५. रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।। -श्यामल सुमन
१६. नाना रंगी जलद नभ में दीखते हैं अनूठे
योधा मानो विविध रंग के वस्त्र धारे हुए हैं
१७. अति कटु बचन कहति कैकेई, मानहु लोन जरे पर देई
१८. दूरदर्शनी बहस ज्यों बच्चे करते शोर
'सलिल' न दें परिणाम ज्यों, बंजर भूमि कठोर
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