लेख :चित्रगुप्त रहस्य:
आचार्य संजीव 'सलिल'
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चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं
अर्थात श्री चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं जो आत्मा के रूप में सर्व
देहधारियों
में स्थित हैं. आत्मा क्या है? सभी जानते और मानते हैं कि 'आत्मा सो
परमात्मा' अर्थात परमात्मा का अंश ही आत्मा है। स्पष्ट है कि श्री
चित्रगुप्त जी ही आत्मा के रूप में समस्त सृष्टि के कण-कण में विराजमान
हैं। इसलिए वे सबके पूज्य हैं सिर्फ कायस्थों के नहीं।
चित्रगुप्त निर्गुण परमात्मा हैं
अनादि-अनंत
वही हो सकता है जो पूर्ण हो। अपूर्णता का लक्षण आरम्भ तथा अंत से युक्त
होना है। पूर्ण वह है जिसका क्षय (ह्रास या घटाव) नहीं होता। पूर्ण में से
पूर्ण को निकल देने पर भी पूर्ण ही शेष बचता है, पूर्ण में पूर्ण मिला देने
पर भी पूर्ण ही रहता है। इसे 'ॐ' से व्यक्त किया जाता है। दूज पूजन के समय कोरे कागज़ पर चन्दन, केसर, हल्दी, रोली तथा जल से ॐ लिखकर अक्षत (जिसका क्षय न हुआ हो आम भाषा में साबित चांवल)से चित्रगुप्त जी पूजन
कायस्थ जन करते हैं।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते
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पूर्ण है यह, पूर्ण है वह, पूर्ण कण-कण सृष्टि सब
पूर्ण में पूर्ण को यदि दें निकाल, पूर्ण तब भी शेष रहता है सदा।
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पूर्ण है यह, पूर्ण है वह, पूर्ण कण-कण सृष्टि सब
पूर्ण में पूर्ण को यदि दें निकाल, पूर्ण तब भी शेष रहता है सदा।
चित्रगुप्त निर्गुण तथा सगुण दोनों हैं
चित्रगुप्त निराकार-निर्गुण ही नहीं साकार-सगुण भी है। वे अजर, अमर, अक्षय, अनादि तथा अनंत हैं। परमेश्वर के इस स्वरूप की अनुभूति सिद्ध ही कर सकते हैं इसलिए सामान्य मनुष्यों के लिये वे साकार-सगुण रूप में प्रगट हुए वर्णित किये गए हैं। सकल सृष्टि का मूल होने के कारन उनके माता-पिता नहीं हो सकते। इसलिए उन्हें ब्रम्हा की काया से ध्यान पश्चात उत्पन्न बताया गया है. आरम्भ में वैदिक काल में ईश्वर को निराकार और निर्गुण मानकर उनकी उपस्थिति हवा, अग्नि (सूर्य), धरती, आकाश तथा पानी में अनुभूत की गयी क्योंकि इनके बिना जीवन संभव नहीं है। इन पञ्च तत्वों को जीवन का उद्गम और अंत कहा गया। काया की उत्पत्ति पञ्चतत्वों से होना और मृत्यु पश्चात् आत्मा का परमात्मा में तथा काया का पञ्च तत्वों में विलीन होने का सत्य सभी मानते हैं।
परमात्मा का अंश है, आत्मा निस्संदेह।।
*परमब्रम्ह के अंश कर, कर्म भोग परिणाम
जा मिलते परमात्म से, अगर कर्म निष्काम।।
कर्म ही वर्ण का आधार
श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण कहते हैं: 'चातुर्वर्ण्यमयासृष्टं गुणकर्म विभागशः' अर्थात
गुण-कर्मों के अनुसार चारों वर्ण मेरे द्वारा ही बनाये गये हैं। स्पष्ट है
कि वर्ण जन्म पर आधारित नहीं हो था। वह कर्म पर आधारित था। कर्म जन्म के
बाद ही किया जा सकता है, पहले नहीं। अतः, किसी जातक या व्यक्ति में
बुद्धि, शक्ति, व्यवसाय या सेवा वृत्ति की प्रधानता तथा योग्यता के आधार पर
ही उसे क्रमशः ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र वर्ग में रखा जा सकता
था। एक पिता की चार संतानें चार वर्णों में हो सकती थीं। मूलतः कोई वर्ण
किसी अन्य वर्ण से हीन या अछूत नहीं था। सभी वर्ण समान सम्मान, अवसरों तथा
रोटी-बेटी सम्बन्ध के लिये मान्य थे। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक
अथवा शैक्षणिक स्तर पर कोई भेदभाव मान्य नहीं था। कालांतर में यह स्थिति
पूरी तरह बदल कर वर्ण को जन्म पर आधारित मान लिया गया।
चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे?
श्री चित्रगुप्त
का पूजन कायस्थों में प्रतिदिन प्रातः-संध्या में तथा विशेषकर यम द्वितीया को किया जाता है।
कायस्थ उदार प्रवृत्ति के सनातन (जो सदा था, है और रहेगा) धर्मी हैं। उनकी विशेषता सत्य की खोज करना
है इसलिए सत्य की तलाश में वे हर धर्म और पंथ में मिल जाते हैं। कायस्थ यह
जानता और मानता है कि परमात्मा निराकार-निर्गुण है इसलिए उसका कोई चित्र या
मूर्ति नहीं है, उसका चित्र गुप्त है। वह हर चित्त में गुप्त है अर्थात हर
देहधारी में उसका अंश होने पर भी वह अदृश्य है। जिस तरह खाने की थाली में
पानी न होने पर भी हर खाद्यान्न में पानी होता है उसी तरह समस्त देहधारियों
में चित्रगुप्त अपने अंश आत्मा रूप में विराजमान होते हैं। चित्रगुप्त ही
सकल सृष्टि के मूल तथा निर्माणकर्ता हैं। सृष्टि में ब्रम्हांड के निर्माण,
पालन तथा विनाश हेतु उनके अंश ब्रम्हा-महासरस्वती, विष्णु-महालक्ष्मी तथा
शिव-महाशक्ति के रूप में सक्रिय होते हैं। सर्वाधिक चेतन जीव मनुष्य की
आत्मा परमात्मा का ही अंश है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य परम सत्य परमात्मा की
प्राप्ति कर उसमें विलीन हो जाना है। अपनी इस चितन धारा के अनुरूप ही
कायस्थजन यम द्वितीय पर चित्रगुप्त पूजन करते हैं।
सृष्टि निर्माण और विकास का रहस्य:
आध्यात्म
के अनुसार सृष्टिकर्ता की उपस्थिति अनहद नाद से जानी जाती है। यह अनहद नाद
सिद्ध योगियों के कानों में प्रति पल भँवरे की गुनगुन की तरह गूँजता हुआ
कहा जाता है। इसे 'ॐ' से अभिव्यक्त किया जाता है। विज्ञान
सम्मत बिग बैंग थ्योरी के अनुसार ब्रम्हांड का निर्माण एक विशाल विस्फोट
से हुआ जिसका मूल यही अनहद नाद है। इससे उत्पन्न ध्वनि तरंगें संघनित होकर
कण (बोसान पार्टिकल) तथा क्रमश: शेष ब्रम्हांड बना। यम द्वितीया पर कायस्थ एक कोरा सफ़ेद
कागज़ लेकर उस पर चन्दन, हल्दी, रोली, केसर के तरल 'ॐ' अंकित करते हैं। यह
अंतरिक्ष में परमात्मा चित्रगुप्त की उपस्थिति दर्शाता है। 'ॐ' परमात्मा का
निराकार रूप है। निराकार के साकार होने की क्रिया को इंगित करने के लिये
'ॐ' को सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ काया मानव का रूप देने के लिये उसमें हाथ,
पैर, नेत्र आदि बनाये जाते हैं। तत्पश्चात ज्ञान की प्रतीक शिखा मस्तक से
जोड़ी जाती है। शिखा का मुक्त छोर ऊर्ध्वमुखी (ऊपर की ओर उठा) रखा जाता है
जिसका आशय यह है कि हमें ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा में विलीन (मुक्त) होना
है।
बहुदेववाद की परंपरा
इसके
नीचे श्री के साथ देवी-देवताओं के नाम लिखे जाते हैं, फिर दो
पंक्तियों में 9 अंक इस प्रकार लिखे जाते हैं कि उनका योग 9 बार 9 आये।
परिवार के सभी सदस्य अपने हस्ताक्षर करते हैं और इस कागज़ के साथ कलम रखकर
उसका पूजन कर दण्डवत प्रणाम करते हैं। पूजन के पश्चात् उस दिन कलम नहीं
उठायी जाती। इस पूजन विधि का अर्थ समझें।
चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे?
सृष्टि निर्माण और विकास का रहस्य:
बहुदेववाद की परंपरा
प्रथम चरण में निराकार निर्गुण
परमब्रम्ह चित्रगुप्त के साकार होकर सृष्टि निर्माण करने के सत्य को
अभिव्यक्त करने के पश्चात् दूसरे चरण में निराकार प्रभु द्वारा सृष्टि के कल्याण के लिये विविध देवी-देवताओं का रूप धारण कर जीव मात्र का
ज्ञान के माध्यम से कल्याण करने के प्रति आभार, विविध देवी-देवताओं के नाम
लिखकर व्यक्त किया जाता है। ये देवी शक्तियां ज्ञान के विविध शाखाओं के प्रमुख हैं. ज्ञान का शुद्धतम रूप गणित है। सृष्टि में
जन्म-मरण के आवागमन का परिणाम मुक्ति के रूप में मिले तो और क्या चाहिए? यह
भाव पहले देवी-देवताओं के नाम लिखकर फिर दो पंक्तियों में आठ-आठ अंक इस प्रकार लिखकर अभिव्यक्त किया जाता है
कि योगफल नौ बार नौ आये व्यक्त किया जाता है।
पूर्णता प्राप्ति का उद्देश्य
निर्गुण निराकार प्रभु चित्रगुप्त द्वारा अनहद नाद से साकार सृष्टि के निर्माण, पालन तथा नाश हेतु देव-देवी
त्रयी तथा ज्ञान प्रदाय हेतु अन्य देवियों-देवताओं की उत्पत्ति, ज्ञान
प्राप्त कर पूर्णता पाने की कामना तथा मुक्त होकर पुनः परमात्मा में विलीन
होने का समुच गूढ़ जीवन दर्शन यम द्वितीया को परम्परगत रूप से किये
जाते चित्रगुप्त पूजन में अन्तर्निहित है। इससे बड़ा सत्य कलम
व्यक्त नहीं कर सकती तथा इस सत्य की अभिव्यक्ति कर कलम भी पूज्य हो जाती है
इसलिए कलम को देव के समीप रखकर उसकी पूजा की जाती है। इस गूढ़ धार्मिक तथा वैज्ञानिक रहस्य को
जानने तथा मानने के प्रमाण स्वरूप परिवार के सभी स्त्री-पुरुष,
बच्चे-बच्चियाँ अपने हस्ताक्षर करते हैं, जो बच्चे लिख नहीं पाते
उनके अंगूठे का निशान लगाया जाता है। उस दिन कोई सांसारिक कार्य (व्यवसायिक, मैथुन आदि) न कर
आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहने की परम्परा है।
'ॐ' की ही अभिव्यक्ति अल्लाह और ईसा में भी होती है। सिख पंथ इसी 'ॐ' की रक्षा हेतु स्थापित किया गया। 'ॐ' की अग्नि आर्य समाज और पारसियों द्वारा पूजित है। सूर्य पूजन का विधान 'ॐ' की ऊर्जा से ही प्रचलित हुआ है।
उदारता तथा समरसता की विरासत
यम द्वितीया पर चित्रगुप्त पूजन की आध्यात्मिक-वैज्ञानिक पूजन विधि ने कायस्थों को एक अभिनव संस्कृति से संपन्न किया है। सभी देवताओं की उत्पत्ति चित्रगुप्त जी से होने का सत्य ज्ञात होने के कारण कायस्थ किसी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय से द्वेष नहीं करते। वे सभी देवताओं, महापुरुषों के प्रति आदर भाव रखते हैं। वे धार्मिक कर्म कांड पर ज्ञान प्राप्ति को वरीयता देते हैं। इसलिए उन्हें औरों से अधिक बुद्धिमान कहा गया है. चित्रगुप्त जी के कर्म विधान के प्रति विश्वास के कारण कायस्थ अपने देश, समाज और कर्त्तव्य के प्रति समर्पित होते हैं। मानव सभ्यता में कायस्थों का योगदान अप्रतिम है। कायस्थ ब्रम्ह के निर्गुण-सगुण दोनों रूपों की उपासना करते हैं। कायस्थ परिवारों में शैव, वैष्णव, गाणपत्य, शाक्त, राम, कृष्ण, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं के साथ समाज सुधारकों दयानंद सरस्वती, आचार्य श्री राम शर्मा, सत्य साल बाबा, माचार्य महेश योगी आदि का पूजन-अनुकरण किया जाता है। कायस्थ मानवता, विश्व तथा देश कल्याण के हर कार्य में योगदान करते मिलते हैं.
पूर्णता प्राप्ति का उद्देश्य
'ॐ' की ही अभिव्यक्ति अल्लाह और ईसा में भी होती है। सिख पंथ इसी 'ॐ' की रक्षा हेतु स्थापित किया गया। 'ॐ' की अग्नि आर्य समाज और पारसियों द्वारा पूजित है। सूर्य पूजन का विधान 'ॐ' की ऊर्जा से ही प्रचलित हुआ है।
उदारता तथा समरसता की विरासत
यम द्वितीया पर चित्रगुप्त पूजन की आध्यात्मिक-वैज्ञानिक पूजन विधि ने कायस्थों को एक अभिनव संस्कृति से संपन्न किया है। सभी देवताओं की उत्पत्ति चित्रगुप्त जी से होने का सत्य ज्ञात होने के कारण कायस्थ किसी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय से द्वेष नहीं करते। वे सभी देवताओं, महापुरुषों के प्रति आदर भाव रखते हैं। वे धार्मिक कर्म कांड पर ज्ञान प्राप्ति को वरीयता देते हैं। इसलिए उन्हें औरों से अधिक बुद्धिमान कहा गया है. चित्रगुप्त जी के कर्म विधान के प्रति विश्वास के कारण कायस्थ अपने देश, समाज और कर्त्तव्य के प्रति समर्पित होते हैं। मानव सभ्यता में कायस्थों का योगदान अप्रतिम है। कायस्थ ब्रम्ह के निर्गुण-सगुण दोनों रूपों की उपासना करते हैं। कायस्थ परिवारों में शैव, वैष्णव, गाणपत्य, शाक्त, राम, कृष्ण, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं के साथ समाज सुधारकों दयानंद सरस्वती, आचार्य श्री राम शर्मा, सत्य साल बाबा, माचार्य महेश योगी आदि का पूजन-अनुकरण किया जाता है। कायस्थ मानवता, विश्व तथा देश कल्याण के हर कार्य में योगदान करते मिलते हैं.
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0761 - 2411131 / 094251 83244
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