ग़ज़ल:
शार्दूला

*
प्यार के ख़त किताब होने दो
रतजगों का हिसाब होने दो
इल्म की लौ ज़रा करो ऊँची
इस सिहाई में
आब होने दो
गैर ही की सही, ग़ज़ल गाओ
रात को ख़्वाब ख़्वाब होने दो
ज़िन्दगी ख़ार थी, बयाँबा थी
दफ़्न सँग में गुलाब होने दो
जिस अबाबील का लुटा कुनबा *
अबके उस को उकाब होने दो
सूरमा
तिल्फ़ से लड़े क्यों कर
अफसरों का दवाब? होने दो!
* उकाब - ईगल ; अबाबील - स्वालो पंछी
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