मुक्तिका :
उपहार सुदीपों का...
संजीव 'सलिल'
*
सारा जग पाये उपहार सुदीपोंका.
हर घर को भाये सिंगार सुदीपोंका..
रजनीचर से विहँस प्रभाकर गले मिले-
तारागण करते सत्कार सुदीपोंका..
जीते जी तम को न फैलने देते हैं
हम सब पर कितना उपकार सुदीपोंका..
जो माटी से जुडी हुई हैं झोपड़ियाँ.
उनके जीवन को आधार सुदीपोंका..
रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.
'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार सुदीपोंका..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 6 नवंबर 2010
मुक्तिका : उपहार सुदीपों का... संजीव 'सलिल'
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6 टिप्पणियां:
आदरणीय आचार्य सलिल जी - अति उत्तम !
रजनीचर से विहँस प्रभाकर गले मिले-
तारागण करते सत्कार सुदीपों का..
क्या सजीव चित्रं किया है आपने, ग़ज़ल की जुबान में इसको मंज़र निगारी कहा जाता है !
जो माटी से जुडी हुई हैं झोपड़ियाँ.
उनके जीवन को आधार सुदीपों का.
लाजवाब - बहुत गहरी बात कह दी इन दो पंक्तियों में आपने ! साधुवाद स्वीकार करें ! .
रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.
'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार सुदीपों का..
acharya ji yaha aapne rangat puri tarah se bhar dali. bahu sukhad lga padh kar.
priy sanjivji
happy deepavali
etni sundar rachana ke liye badhai antim panktiyan to bahut hi sundar hain
kusum
रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार सुदीपोंका..
verma ji bahut sunder gehre bhaav ki kavita hai
dhanyavaad
verma ji aapki har rachna mein kuchh to naya pan hota hai
verma ji mere blog per deepavali per likhi ek rachna hai kripaya usaay pad len
http://surinderratti.blogspot.com
बहुत आभार आचार्य जी :)
सुन्दर मुक्तिका - उपहार सुदीपों का... :)
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