मुक्तिका:
सबब क्या ?
संजीव 'सलिल'
*
सबब क्या दर्द का है?, क्यों बताओ?
छिपा सीने में कुछ नगमे सुनाओ..
न बाँटा जा सकेगा दर्द किंचित.
लुटाओ हर्ष, सब जग को बुलाओ..
हसीं अधरों पे जब तुम हँसी देखो.
बिना पल गँवाये, खुद को लुटाओ..
न दामन थामना, ना दिल थमाना.
किसी आँचल में क्यों खुद को छिपाओ?
न जाओ, जा के फिर आना अगर हो.
इस तरह जाओ कि वापिस न आओ..
खलिश का खज़ाना कोई न देखे.
'सलिल' को भी 'सलिल' ठेंगा दिखाओ..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 25 नवंबर 2010
मुक्तिका: सबब क्या ? संजीव 'सलिल'
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