मुक्तिका:
लिखी तकदीर रब ने...
संजीव वर्मा 'सलिल'
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लिखी तकदीर रब ने फिर भी हम तदबीर करते हैं.
फलक उसने बनाया है, मगर हम रंग भरते हैं..
न हमको मौत का डॉ है, न जीने की तनिक चिंता-
न लाते हैं, न ले जाते मगर धन जोड़ मरते हैं..
कमाते हैं करोड़ों पाप कर, खैरात देते दस.
लगाकर भोग तुझको खुद ही खाते और तरते हैं..
कहें नेता- 'करें क्यों पुत्र अपने काम सेना में?
फसल घोटालों-घपलों की उगाते और चरते हैं..
न साधन थे तो फिरते थे बिना कपड़ों के आदम पर-
बहुत साधन मिले तो भी कहो क्यों न्यूड फिरते हैं..
न जीवन को जिया आँखें मिलाकर, सिर झुकाए क्यों?
समय जब आख़िरी आया तो खुद से खुह्द ही डरते हैं..
'सलिल' ने ज़िंदगी जी है, सदा जिंदादिली से ही.
मिले चट्टान तो थमते. नहीं सूराख करते हैं..
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 25 जून 2010
मुक्तिका: लिखी तकदीर रब ने.......... --संजीव 'सलिल'
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3 टिप्पणियां:
बहुत दिनो बाद ब्लाग पर आने के लिये क्षमा चाहती हूँ। करोड़ों पाप कर, खैरात देते दस. लगाकर भोग तुझको खुद ही खाते और तरते हैं.. कहें...
वाह कितनी सटीक पँक्तियाँ हैं बधाई
सुंदर अभिव्यक्ति! बधाई।
कहें नेता- 'करें क्यों पुत्र अपने काम सेना में?
फसल घोटालों-घपलों की उगाते और चरते हैं..
....बहुत सुंदर रचना
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